जानिए की क्या फल मिलता है आषाढ़ शुक्ल एकादशी(देवशयानी/हरिशयनी एकादशी) का ????
इस बार देवशयनी एकादशी व्रत .. जून,.0.2 ( शनिवार) को है। इस व्रत की कथा धर्म शास्त्रों में बताई गई है। उसके अनुसार-
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया। अत: उसी दिन से आरम्भ करके भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता ४-४ माह सुतल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं। राजा बलि ने वचनबद्ध हो चुके विष्णुजी से कहा- प्रभु, आप नित्य मेरे महल में निवास करें। उसी समय से श्री हरि द्वारा वर का अनुपालन करते हुए तीनों देवता-देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक विष्णु, देवप्रबोधिनी से महाशिवरात्रि तक शिवजी और महाशिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक ब्रह्माजी पाताल लोक में निवास करते हैं। संत एवं साधक इस देवशयन काल को विशेष आध्यात्मिक महत्व देते हैं। कहा जाता है कि जिसने केवल इस आषाढ़ एकादशी का व्रत रख कर कमल पुष्पों से भगवान विष्णु का पूजन कर लिया, उसने त्रिदेव का पूजन कर लिया।
वहां वे एक दिन ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे। अंगिरा ऋषि ने उनके जंगल में घूमने का कारण पूछा तो राजा ने अपनी समस्या बताई। तब महर्षि अंगिरा ने कहा कि सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है जबकि आपके राज्य में एक अन्य जाति का व्यक्ति तप कर रहा है इसीलिए आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक उसका अंत नहीं होगा तब तक यह अकाल समाप्त नहीं होगा।
किंतु राजा का हृदय एक निरपराध तपस्वी को मारने को तैयार नहीं हुआ। तब महर्षि अंगिरा ने राजा को आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। राजा के साथ ही सभी नागरिकों ने भी देवशयनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
——एकादशी को प्रातःकाल उठें।
——इसके बाद घर की साफ-सफाई तथा नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएँ।
——स्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करें।
—–घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चाँदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें।
——तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें।
—–इसके बाद भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें।
——तत्पश्चात व्रत कथा सुननी चाहिए।
——इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें।
——अंत में सफेद चादर से ढँके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्री विष्णु को शयन कराना चाहिए।
——-व्यक्ति को इन चार महीनों के लिए अपनी रुचि अथवा अभीष्ट के अनुसार नित्य व्यवहार के पदार्थों का त्याग और ग्रहण करें।
——— देवर्षि नारद के पूछने पर महादेव शंकरजी ने इस एकादशी के व्रत के विधान का वर्णन इस प्रकार किया है- आषाढ के शुक्लपक्ष में एकादशी के दिन उपवास करके भक्तिपूर्वक चातुर्मास-व्रत के नियम को ग्रहण करें | श्रीहरिके योग-निद्रा में प्रवृत्त हो जाने पर वैष्णव चार मास तक भूमि पर शयन करें | भगवान विष्णु की शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हुए स्वरूप वाली सौम्य प्रतिमा को पीताम्बर पहिनाएं | तत्पश्चात एक सुंदर पलंग पर स्वच्छ सफेद चादर बिछाकर तथा उस पर एक मुलायम तकिया रखकर शैय्या को तैयार करें | विष्णु-प्रतिमा को दूध, दही, शहद, लावा और शुद्ध घी से नहलाकर श्रीविग्रह पर चंदन का लेप करें | इसके बाद धूप-दीप दिखाकर मनोहर पुष्पों से उस प्रतिमा का श्रृंगार करें |
तदोपरांत निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करें-
सुप्तेत्वयिजगन्नाथ जगत्सुप्तंभवेदिदम्।
विबुद्धेत्वयिबुध्येतजगत्सर्वचराचरम्॥
हे जगन्नाथ! आपके सो जाने पर यह सारा जगत सुप्त हो जाता है तथा आपके जागने पर संपूर्ण चराचर जगत् जागृत हो उठता है।
श्रीहरिके श्रीविग्रहके समक्ष चातुर्मास-व्रतके नियम ग्रहण करें | स्त्री हो या पुरुष, जो भक्त व्रत करे, वह हरि-प्रबोधिनी एकादशी तक अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग अवश्य करे | जिस वस्तु का परित्याग करें, उसका दान दें |
” ॐ नमोनारायणाय या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” मंत्र का तुलसी की माला पर जप करें |
भगवान विष्णु का इस प्रकार ध्यान करें-
शान्ताकारंभुजगशयनं पद्मनाभंसुरेशं
विश्वाधारंगगनसदृशं मेघवर्णशुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तंकमलनयनं योगिभिध्र्यानगम्यं
वन्दे विष्णुंभवभयहरं सर्वलौकेकनाथम्॥
जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शय्यापर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर और सम्पूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त हैं, नीले मेघ के समान जिनका वर्ण है, जिनके सभी अंग अतिसुंदरहैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो सब लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरणरूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपतिकमलनेत्रभगवान विष्णु को मैं प्रणाम करता हूं।
हरिशयनीएकादशी की रात्रि में जागरण करते हुए हरिनाम-संकीर्तन करें | इस व्रत के प्रभाव से भक्त की सभी मनोकामनाएंपूर्ण होती हैं |
आज के दिन किसका त्याग करें..?????
—–मधुर स्वर के लिए गुड़ का।
—–दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का।
—-शत्रुनाशादि के लिए कड़वे तेल का।
—–सौभाग्य के लिए मीठे तेल का।
—–स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का।
—-प्रभु शयन के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहाँ तक हो सके न करें।
—-पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए।