सोमवती/ मौनी अमावस्या (.. जनवरी,2..2 ) के दिन करे पित्रदोष/कालसर्प दोष की शांति —
(ऐसा संयोग 60 साल के बाद बन रहा है और ऐसा ही योग अब 60 साल के बाद ही बनेगा जब होगी इस दिन मौनी अमावस्या, सोमवती अमावस्या और देव कार्य की अमावस्या एक साथ )—
किसी भी महीने की अमावस्या जब सोमवार को होती है. तो उसे सोमवती अमावस्या कहते है. पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार सोमवती अमावस्या कालसर्पदोष शांति व् निवारण तथा पितरो की शांति, तर्पण कार्यो के लिये सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. इस व्रत को करने के लिये इस दिन उपवासक को पीपल के पेड के नीचे शनि देव के बीज मंत्र का जाप करना विशेष रुप से कल्याण करने वाला कहा जाता है सोमवती अमावस्या के दिन स्नान, दान करने का विशेष महत्व कहा गया है. सोमवती अमावस्या के दिन मौन रहने का सर्वश्रेष्ठ फलकहा गया है. देव ऋषि व्यास के अनुसार इस तिथि में मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्त्र गौ दान के समान पुन्य फल प्राप्त होताहै.
इस के अतिरिक्त इस दिन पीपल की 108 परिक्रमा कर, पीपल के पेड और श्री विष्णु का पूजन करने का नियम है. मुख्य रुप से इससोमवती अमावस्या के व्रत को स्त्रियों के द्वारा किया जाता है. व्रत करने के बाद और पीपल की प्रदक्षिणा करने बाद अपने सामर्थ्यअनुसार दान-दक्षिणा देना शुभ होता है. जनवरी वर्ष 2012 में सोमवती अमावस्या पर हजारों की संख्या में हरिद्वार तीर्थ स्थल पर डूबकीलगाई जाने की संभावनाएं बन रही है.
इस दिन कुरुक्षेत्र के ब्रह्मा सरोवर में डूबकी लगाने का भी बहुत अधिक पुन्य फल कहा गया है. इस स्थान पर सोमवती अमावस्या केदिन स्नान और दान करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है. सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक की अवधि में पवित्र नदियों पर स्नान करनेवालों का तांता सा लगा रहेगा. स्नान के साथ भक्तजन भाल पर तिलक लगवाते है. और पवित्र श्लोकों की गुंज चारों ओर सुनाई देती है.यह सब कार्य करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है.
इस वर्ष 23 जनवरी 2012 को सोमवती अमावस्या , जिस जातक की कुंडली में पित्र दोष या कालसर्प दोष है सोमवती अमावस्या के दिन इसकी शांति करे , भागवान शिव की आराधना करे और साथ ही धर्म स्थान में या नदी के किनारे पीपल और बरगद का पेड़ भी लगायें.. पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार अमावस्या तिथि दोपहर 1 बजकर 9 मिनट तक उसके उपरान्त प्रतिपदा तिथि का आरंभ। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र अपराह्न 3 बजकर 31 मिनट तक उसके उपरान्त श्रवण नक्षत्र का आरंभ। वज्रयोग सायं 5 बजकर 34 मिनट तक उसके उपरान्त सिद्धियोग का आरंभ। नागकरण दोपहर 1 बजकर 9 मिनट तक उसके उपरान्त किंश्तुघ्नकरण का आरंभ। चन्द्रमा दिन-रात मकर राशि में ही संचार करेगा। इस दिन मौनी अमावस्या। सोमवती अमावस्या। देव कार्य की अमावस्या एवं स्नान आदि पर्व प्रयाग हरिद्वार और गढ़गंगा। प्रत्येक मास एक अमावस्या आती है। और प्रत्येक सात दिन बाद एक सोमवार। परन्तु ऐसा बहुत ही कम होता है जब अमावस्या सोमवार केदिन हो। पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार सोमवती अमावस्या कालसर्प दोष शांति व् निवारण तथा पितरो की शांति, तर्पण कार्यो के लिये सर्वश्रेष्ठ मानीजाती है. . ; सोमवती अमावस्या के दिन स्नान, दान करने का विशेष महत्व कहा गया है. हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि सोमवारको अमावस्या बड़े भाग्य से ही पड़ती है, पाण्डव पूरे जीवन तरसते रहे परंतु उनके संपूर्ण जीवन में सोमवती अमावस्या नहीं आई। सोमवार चंद्रमाका दिन हैं। इस दिन (प्रत्येक अमावस्या को) सूर्य तथा चंद्र एक सीध में स्थित रहते हैं। इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है। सोमवारभगवान शिव जी का दिन माना जाता है और सोमवती अमावस्या तो पूर्णरूपेण शिव जी को समर्पित होती…माघ मास की अमावस्या अद्भुत एवं दुर्लभ संयोग में आ रही है। इस दिन मौनी और सोमवती अमावस्या का संगम हो रहा है। कहते हैं कि ऐसे में गंगा में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पापों का शमन होकर अक्षय पुण्य मिलता है।पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार शास्त्रों के अनुसार माघ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस बार यह अमावस्या 23 जनवरी को आ रही है। इस दिन सोमवार भी है। इसलिए यह सोमवती अमावस्या भी है। पंचांग के अनुसार, 23 जनवरी को मकर राशि में चंद्रमा व सूर्य नारायण भी विद्यमान है और मकर राशि स्वयं भाष्कर देव की अपनी राशि है। यही नहीं, इस वक्त शनि भी उच्च राशि तुला में चल है। ज्योतिष शास्त्र में ऐसे योग को मकरध्वज योग कहते हैं। ज्योतिष गणना के अनुसार मकरध्वज योग सुबह 6 बजे से दोपहर बारह बजे तक रहेगा, जबकि मौनी और सोमवती का योग दिन भर। ज्योतिष गणना के अनुसार ऐसा संयोग 60 साल के बाद बन रहा है और ऐसा ही योग अब 60 साल के बाद ही बनेगा।
‘ऐसा संयोग 60 साल के बाद बना है। ऐसे दुर्लभ एवं शुभ संयोग में गंगा स्नान करने से जीवन की सभी प्रकार की विघ्न-बाधाओं का शमन हो जाता है।’
पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार शास्त्रों में काल सर्प दोष के बारे में नहीं लिखा गया है लेकिन पिछले कुछ सालो से इस योग का प्रचलन बहुत तेजी के साथ हुआ है,जीवन में सुख -दुःख तो आता ही रहता है , लेकिन अगर हमें उस दुःख के बारे पता है तो हम उसे कुछ कम जरुर कर सकते है , उपाय के द्वारा ,वैसे देखा जाय तो शर्प योनी के बारे में अनेक वर्णन मिलते है हमारे धर्म शास्त्रों में गीता में स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है की पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म केवल विषय -वासना के कारण जीव की उत्त्पत्ति होती है | जीव रुपी मनुष्य जैसा कर्म करता है उसी के अनुरूप फल मिलता है. विषय -वासना के कारन ही काम-क्रोध, मद-लोभ और अहंकार का जन्म होता है इन विकारों को भोगने के कारण ही जीव को “सर्प “योनी प्राप्त होती है | कर्मों के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को काल शर्प दोष कहा जाता है।पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार कुंडली में जब सारे ग्रह राहू और केतु के बीच में आ जाते है तब कालसर्प योग बनता है ज्योतिष में इस योग को अशुभ मन गया है लेकिन कभी कभी यह योग शुभ फल भी देता है, मनुष्य को अपने पूर्व दुष्कर्मो के फलस्वरूप यह दोष लगता है जैसे शर्प को मारना या मरवाना , भ्रूण हत्या करना या करवाने वाले को , अकाल मृत्यु ( किसी बीमारी या दुर्घटना में होने करण ) उसके जन्म जन्मान्तर के पापकर्म के अनुसार ही यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी चला आता है
मनुष्य को इसका आभास भी होता है —-जैसे …
जन्म के समय सूर्य ग्रहण, चंद्रग्रहण जैसे दोषों के होने से जोप्रभाव जातक पर होता है, वही प्रभावकाल सर्प योग होने पर होता है
जातक के लक्षण/ फल/प्रभाव परिलक्षित/दृष्टव्य होते हैं :- अकल्पित, असामयिक घटना दुर्घटना का होना, जन-धन की हानि होना। परिवार में अकारण लड़ाई-झगड़ा बना रहना। पति/तथा पत्नी वंश वृद्धि हेतु सक्षम न हों। आमदनी के स्रोत ठीक-ठाक होने तथा शिक्षित एवम् सुंदर होने के बावजूद विवाह का न हो पाना। बारंबार गर्भ की हानि (गर्भपात) होना। बच्चों की बीमारी लगातार बना रहना, नियत समय के पूर्व बच्चों का होना, बच्चों का जन्म होने के तीन वर्ष की अवधि के अंदर ही काल के गाल में समा जाना।धन का अपव्यय होना। जातक व अन्य परिवार जनों को अकारण क्रोध का बढ़ जाना, चिड़चिड़ापन होना। परीक्षा में पूरी तैयारी करने के बावजूद भी असफल रहना, या परीक्षा-हाल में याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भूल जाना, दिमाग शून्यवत हो जाना, शिक्षा पूर्ण न कर पाना। घर में वास्तु दोष सही कराने, गंडा-ताबीज बांधने, झाड़-फूंक कराने का भी कोई असर न होना। ऐसा प्रतीत होना कि सफलता व उन्नति के मार्ग अवरूद्ध हो गए हैं। जातक व उसके परिवार जनों का कुछ न कुछ अंतराल पर रोग ग्रस्त रहना, सोते समय बुरे स्वप्न देख कर चौक जाना या सपने में शर्प दिखाई देना या स्वप्न में परिवार के मरे हुए लोग आते हैं. किसी एक कार्य में मन का न लगना,शारीरिक ,आर्थिक व मानशिक रूप से परेशान तो होता ही है, इन्शान नाना प्रकार के विघ्नों से घिरा होता है प्रायः इसी योग वाले जातको के साथ समाज में अपमान ,परिजनों से विरोध ,मुकदमेबाजी आदि कालसर्प योग से पीड़ित होने के लक्षण हैं.
कैसे करे शांति :-
जातक किसी भी मंत्र का जप करना चाहे, तो निम्न मंत्रों में से किसी भी मंत्र का जप-पाठ आदि कर सकता है।
१- ऊँ नम शिवाय मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए और शिवलिंग के उपर गंगा जल, कला तिल चढ़ाये ।
२ – महामृत्युंजय मत्र : ॐ हौं ॐ जूं˙ सः ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यंवकंयजामहे सुगंधि पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव वन्धनाम् मृर्त्योमुक्षीय मामृतात्॥ ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः सः ॐ जूं ॐ हौं ॐ ॥
३- राहु मंत्र : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः और केतु मंत्र : ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।
४- नव नाग स्तुति : अनंतं वासुकिं शेषंपद्म नाभं च कम्बलं।शंख पालं धृत राष्ट्रं तक्षकं कालियंतथा॥ एतानि नव नामानि नागानां चमहात्मनां।सायं काले पठेन्नित्यं प्रातः कालेविशेषतः॥तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीभवेत्॥
सोमवती अमावश्या या नाग पंचमी के दिन रूद्राभिषेक कराना चाहिए.
नाग के जोड़े चांदी या सोने में बनवाकर उन्हें बहते पानी में प्रवाहित कर दें।
सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है .
शनिवार के दिन पीपल की जड़ में गंगा जल, कला तिल चढ़ाये । पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है
नागपंचमी के दिन व्रत रखकर नाग देव की पूजा करनी चाहिए.
कालसर्प गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए.
ॐ काल शर्पेभ्यो नमः… अगर कोए इस मंत्र को बोल कर कच्चे दूध को गंगाजल में मिलाकर उसमे काला तिल डाले और बरगद के पेड़ में दूध की धारा बनाकर ११ बार परिक्रमम करें , या शिवलिंग पर ॐ नमः शिवाय बोलकर चढ़ाये तो शार्प दोष से मुक्ति मिलेगी…
इन उपायों से कालसर्प के अनिष्टकारी प्रभाव में कमी आती है…
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सोमवती अमावस्या / Somvati अमावस्या—–
जिस अमावस्या को सोमवार हो उसी दिन इस व्रत का विधान है। प्रत्येक मास एक अमावस्या आती है। और प्रत्येक सात दिन बाद एकसोमवार। परन्तु ऐसा बहुत ही कम होता है जब अमावस्या सोमवार के दिन हो।यह स्नान, दान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस पर्व पर स्नान करने लोग दूर-दूर से आते हैं।हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि सोमवार को अमावस्या बड़े भाग्य से ही पड़ती है, पाण्डव पूरे जीवन तरसते रहे परंतु उनके संपूर्ण जीवनमें सोमवती अमावस्या नहीं आई।किसी भी मास की अमावस्या यदि सोमवार को हो तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाएगा।
इस दिन यमुनादि नदियों, मथुरा आदि तीर्थों में स्नान, गौदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्व मानागया है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशिष्ट महत्व है। यही कारण हे कि गंगा और अन्य पवित्र नदियों के तटों पर इतने श्रद्धालु एकत्रित होजाते हैं कि वहां मेले ही लग जाते हैं।सोमवती अमावस्या को गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों में स्नान पहले तो एक धार्मिक उत्सव का रूप ले लेता था। पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार इस दिन मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्र गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह स्त्रियों का प्रमुखव्रत है।सोमवार चंद्रमा का दिन हैं। इस दिन (प्रत्येक अमावस्या को) सूर्य तथा चंद्र एक सीध में स्थित रहते हैं। इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देनेवाला होता है।सोमवार भगवान शिव जी का दिन माना जाता है और सोमवती अमावस्या तो पूर्णरूपेण शिव जी को समर्पित होती है।
इस दिन यदि गंगा जी जाना संभव न हो तो प्रात:काल किसी नदी या सरोवर आदि में स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और तुलसी कीभक्तिपूर्वक पूजा करें। फिर पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करें और प्रत्येक परिक्रमा में कोई वस्तु चढ़ाए। प्रदक्षिणा के समय 108 फल अलग रखकर समापन के समय वे सभी वस्तुएं ब्राह्मणों और निर्धनों को दान करें।
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पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार पितृ दोष निवारण या काल सर्प दोष/योग की शांति करने का उपाय—–
कालसर्पयोग मुख्या रूप से १२ तरह के होते है जो मनुष्य के लिए बहुत ही कष्टकारी सीधा होते है , वे निम्न प्रकार के है—-
(1) अनंत काल सर्प योग, (२)कुलिक काल सर्प योग, (3) वासुकी काल सर्प योग,
(4) शंखपाल काल सर्प योग, (५)पदम् काल सर्प योग,(६) महापद्म काल सर्प योग,
(७) तक्षक काल सर्प योग,(८) कर्कोटक काल सर्प योग,(९) शंख्चूर्ण काल सर्प योग,
(10) पातक काल सर्प योग, (११) विषाक्त काल सर्प योग,(१२) शेषनाग काल सर्प योग,
अगर आप की कुंडली में पित्रदोश या काल सर्प दोष है तो आप किसी विद्वान पंडित से इसका उपाय जरुर कराएँ.. आप खुद भी अपने कुंडली में देख सकते है की लग्न कुंडली में अगर रहू-केतु के बिच में सभी ग्रह हो तो काल सर्प दोष बनता है . और सूर्य के साथ राहू की युति (साथ) बनता है तो भी पित्र दोष बनता है, अगर किसी के परिवार में अकाल मृत्यु होती है तो भी ये दोष देखने में आता है ….
आप इन सरल उपायों को खुद कर के अपने जीवन में लाभ उठा सकते है—-
(1) पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है . या पीपल का पेड़ किसी नदी के किनारे लगायें और पूजा करें, इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है .
(२) आप शिवलिंग पर शर्पो का जोड़ा चांदी या ताम्बे का बनवाकर चधयेम, और रुद्रभिशेख करवाएं .
(3) प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है.
(4) सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है.
(5) सोमवती अमावस्या के दिन पितृ दोष निवारण पूजा करने से भी पितृ दोष में लाभ मिलाता है ,
(6) अगर आप द्वाश ज्योतिर्लिन्ग्प का जाप करें तो महादेव मनुष्य को शुख-शांति प्रदान करते है—–
सोमनाथम ,मल्लिकर्जुना ,महाकालेश्वर , ओम्कारेश्वर , वैजनाथ , भीमाशंकर , रामेश्वरम, नागेश्वर , विश्वनाथ , त्रयम्बकेश्वर,केदारनाथ, सिद्देश्वर
—–सोमवती अमावश्य के दिन या नाग पंचमी पर या महाकालेश्वर मंदिर में जाकर इसकी शांति करें आप को अवश्य लाभ होगा ,
—–“”ॐ काल शर्पेभ्यो नमः”””—अगर कोए इस मंत्र को बोल कर कच्चे दूध को गंगाजल में मिलाकर उसमे काला तिल डाले और बरगद के पेड़ में दूध की धारा बनाकर ११ बार परिक्रमम करें , या शिवलिंग पर ॐ नमः शिवाय बोलकर चढ़ाये तो शार्प दोष से मुक्ति मिलेगी…