आपकी जन्मकुंडली के गृह बताएँगे  आपकी बोली/वाणी/भाषा शेली  का स्वभाव—

ज्योतिष के अनुसार कुंडली से किसी व्यक्ति की बोली कैसी है? मालूम किया जा सकता है..आइये जाने की केसे—


——जन्मपत्रिका का लग्न अथवा प्रथम भाव बोली का कारक होता है। लग्र में जिस तरह का ग्रह होता है या प्रथम पर जिस ग्रह की दृष्टि होती है उस व्यक्ति की बोली वैसी ही होता है।
—- लग्न भाव में सूर्य शुभ हो तो व्यक्ति कम बोलने वाला लेकिन अशुभ सूर्य होने पर व्यक्ति अत्यधिक बोलने वाला होता है।
—– लग्न भाव में चंद्र शुभ हो तो जातक मीठा बोलने वाला, अशुभ हो तो वह व्यक्ति कड़वा बोलता है।
—- यदि लग्न भाव में मंगल हो तो व्यक्ति तीखा बोलता है। मंगल के शुभ या अशुभ होने पर भी जातक तीखा बोलने वाला या मुंहफट होता है।
—– यदि प्रथम भाव में बुध शुभ हो या अशुभ व्यक्ति ओजस्वी वक्ता होता है।
—- गुरु शुभ हो या अशुभ व्यक्ति शालीन बोलने वाला होता है।
—- शुक्र लग्न में शुभ हो तो व्यक्ति चतुर भाषी और अशुभ होतो झुठ बोलने वाला होता है।
—- लग्न में शनि शुभ हो या अशुभ जातक कड़वा बोलने वाला होता है।
—– राहु लग्र में हो तो व्यक्ति असभ्य भाषा का प्रयोग करने वाला होता है।
—— केतु लग्न में हो तो मृदुभाषी होता है।
—–यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम भाव में कोई ग्रह न हो तो लग्न भाव पर जिस ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो वैसा ही असर समझना चाहिए।

उदहारण——

—-अमितेश्वर जी की कुंडली अध्ययन के लिए उपलब्ध है.तो आज कुछ दुर्लभ उर्जा रेखाओं की बात करते है.अमितेश्वर जी का जन्म पटना में शाम ६ बजकर सत्तावन मिनट पर २९ मार्च १९८३ को हुआ था.

पहले व्यक्तिगत बात करते है.बुध की राशी में लग्न में चन्द्रमा और उसपर बुध और सूर्य की पूर्ण दृष्टि आपकी गेहुएं वर्ण और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बनता है.आप का प्रथम प्रभाव मिलने वाले पर अमिट छाप छोड़ता है.वाणी के भाव में उच्च का वक्री शनि और मंगल और शुक्र की पूर्ण दृष्टि गजब की उर्जा रेखाए है.आपकी आत्मविश्वास से पूर्ण बातों से हर कोई प्रभावित हो जाएगा.
—–राजेश्वर जी की कुंडली कर्क लग्न की है चौथे भाव में वक्री गुरु राहु के साथ चंडाल योग (ऊर्जात्म्क सिद्धांत के अनुसार इसे शार्ट सर्किट की तरह से ले सकते है जिसमे विपरीत ऊर्जा धाराएं अवांछित तरीके से ऊर्जा क्षय करती है)धर्म दर्शन के प्रवक्ता के लिए गुरु का प्रभावी होना आवश्यक है जो आपकी कुंडली में नहीं है.आपकी कुंडली में सप्तम भाव में उच्च का मंगल एवं मित्र राशिगत शुक्र है.मंगल शुक्र की युति एवं चन्द्रमा से दृष्ट होने से भौतिक कामनाओं के प्रति जातक की प्रबल लालसा भी आपको धर्म दर्शन के प्रति जोड़े नहीं रख पाती है.अतः मानसिक रूप से इस कुंडली का जातक धर्म और दर्शन के प्रति गहराई से नहीं जुड़ सकता.हाँ दुसरे भाव जो कि वाणी का कारक होता है का स्वामी नवम भाव में गुरु की राशि में होने से आपकी वाणी में अद्वितीय ओज और तेजस्विता होगी.इसके कारण आप धार्मिक विषयों पर धारा प्रवाह रूप से बोल सकते है.नवम भाव आपका प्रारब्ध और जन मानस में आपकी लोकप्रियता को भी बताता है.इसमें आप सफल होंगे.आपकी ऊर्जा धाराओं की समग्रता यह बताती है कि आप राजनीति में सफल होने वाले है.

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