क्या होता है विवाह मुहूर्त…????
विवाह स्त्री और पुरुष की जीवन यात्रा की शुरुआत मानी जाती है,पुरुष का बायां और स्त्री का दाहिना भाग मिलाकर एक दूसरे की शक्ति को पूरक बनाने की क्रिया को विवाह कहा जाता है,भगवान शिव और पार्वती को अर्धनारीश्वर की संज्ञा देना इसी बात का प्रमाण है। ज्योतिष में चार पुरुषार्थों में काम नाम का पुरुषार्थ विवाह के बाद ही पूर्ण होता है,जिस प्रकार से धर्म के अन्दर माता पिता और पूर्वजों की मान्यता है,अर्थ के अन्दर जीवन यापन के लिये धन कमाने की क्रिया को माना जाता है,उसी प्रकार से काम के अन्दर स्त्री और पुरुष के संगम के बाद आगे की वंश प्रणाली को चलाने के लिये विवाह का महत्व माना जाता है,विवाह के बाद संतान और संतान का पालन पोषण संसार के प्रत्येक जीव के अन्दर अपने आप पनपता है।
क्यों किया जाता है विवाह????
संसार में संतान को बिना विवाह किये भी पैदा किया जा सकता है,लेकिन संसारी मर्यादा का हनन न हो,आने वाली संतान को इस बात का भान हो कि वह अमुक समाज की वंश प्रणाली का हिस्सा है,अपने पिता के स्वभाव के अनुसार कार्य और सामाजिक प्रणाली को चलाने की क्षमता उसके अन्दर अपने आप पता लगे,माता अपने पुत्र और पुत्रियों के साथ सम्मान से रह सके,पीछे चलने वाला समाज किसी भी प्रकार के सुख दुख में शामिल हो सके,किसी प्रकार के अक्समात दुख में समाज सहयोग कर सके,अपने समाज और कुल को आगे बढाने के लिये पैदा होने वाला जातक चिंतित हो सके,अपने पुत्र या पुत्री को पाल पोष कर उच्च से उच्च स्थान देने की हिम्मत माता पिता के अन्दर चल सके आदि कारणो के लिये विवाह किया जाता है। अगर बिना विवाह के संतान को पैदा किया जायेगा तो वह अपने को नितांत अकेला समझकर दूसरों को भी हेय द्रिष्टि से देखेगा,उसे मा और बहिन तथा दूसरी स्त्रियों के अन्दर भेद नही मिलेगा,इन कारणो से समाज में अनैतिकता का बोलबाला हो जायेगा,तथा मनुष्य और पशु के अन्दर भेद करना मुश्किल हो जायेगा।
विवाह मुहूर्त क्या है ????
सभी ग्रह अपनी अपनी उपस्थिति जीवित अवस्था में बताते है,यथा ब्रह्माण्डे,तथा पिण्डे के कथन के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति सभी ग्रहों से पूर्ण है,संसार में पिता के रूप में सूर्य माता के रूप में चन्द्र भाई के और पति के रूप में मंगल बहिन बुआ और बेटी के रूप में बुध धर्म और भाग्य के प्रदाता तथा शिक्षा को देने वाले गुरु के रूप में बृहस्पति,पत्नी और भौतिक सम्पन्नता के रूप में शुक्र,जमीन जायदाद कार्य तथा कामकरने वाले लोगों के रूप में शनि ससुराल और दूर के सम्बन्धियों के रूप में राहु,पुत्र भान्जा साले आदि के रूप में केतु जीवित रूप में माना जाते है,इन सभी ग्रहों के अनुसार व्यक्ति के लिये विवाह मुहूर्त बनाये गये है,जिस प्रकार की प्रकृति व्यक्ति के अन्दर होती है उसी प्रकार के ग्रह की शक्ति के समय में विवाह किया जाता है,जब स्त्री और पुरुष के आपसी सम्बन्धों के लिये विवाह मिलान किया जाता है,तथा दोनों के ग्रहों को राशि स्वामियों के अनुसार समय को तय किया जाता है तभी विवाह किया जाता है,और उसी ग्रह के नक्षत्र के समय में लगन और समय निकाल कर विवाह किया जाता है,इस प्रकार से उन ग्रहों की शक्तियो का आशीर्वाद मिलने पर विवाह करने से जीवन सुचारु रूप से किया जाता है,अगर बिना मुहूर्त और प्रकृति के मिलाये विवाह कर दिया जाता है तो कुछ समय में शारीरिक संतुष्टि के बाद विवाह विच्छेद आदि के कारणों,आत्म हत्या और कई तरह के दोषों से पूर्ण हो जाता है,तथा एक परिवार में पुरुष तो आराम से जिन्दा रह लेता है,लेकिन स्त्री की दशा सोचनीय हो जाती है,समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाता है,अधिक से अधिक काम संतुष्टि के लिये स्त्री और पुरुष दोनो ही चरित्र से नीचे गिर जाते है,तामसी भोजन और शराब कबाब भूत के भोजन से खुद को बरबाद करने के बाद दुनिया से कूच कर जाते है।
विवाह क्यों नही होता है..????
मानव जीवन एक पेड की भांति होता है,जिस जमीन पर पेड को लगाया जाताहै उसकी परवरिस की जाती है,उस के अनुसार ही पेड फ़लता फ़ूलता है,व्यक्ति का जन्म सितारों की शक्ति से होता है,सितारे उस जीवन को चलाते है,उनकी किरणें जैसे जैसे जीवन को प्राप्त होती है,जीवन अच्छा या बुरा चलता है,कुन्डली का सप्तम भाव सभी के लिये जरूरी होता है,सुर नर मुनि सभी को इस भाव ने प्रवाभित किया होता है,कहा भी गया है कि,”चिन्ता सांपिनि केहि नहिं खाया,केहि जग जाहि न व्यापी माया”,इस माया रूपी जिन्दगी को जीने के लिये सभी लालियत रहते है,हर कोई एक प्रकार के अजीब नशे के अन्दर जीना चाहता है,जीवन साथी का नशा सबसे अधिक गहरा होता है,वह जब चढता है तो ताज और तख्त की भी चिंता नही करता है,लेकिन यह जरूरी भी नही होता है कि सभी का वैवाहिक जीवन सुखी ही हो,वैवाहिक जीवन को सुखी रखने के लिये और उत्तम ग्रह-रश्मियों को प्राप्त करने के लिये रत्नों का प्रयोग किया जाता है,उत्तम रत्न हमेशा ही सफ़ल वैवाहिक जीवन देता है,रत्न परामर्श करने के लिये और मंगवाने के लिये आप सम्पर्क कर सकते है।
विवाह योग के लिये जो कारक मुख्य है वे इस प्रकार हैं—-
सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है।
सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है।
कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है।
यदि सप्तम भाव में सम राशि है।
सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है।
सप्तमेश बली है।
सप्तम में कोई ग्रह नही है।
किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है।
दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है।
सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है।
विवाह नही होगा अगर
सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
सप्तमेश नीच राशि में है।
सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है।
चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों।
शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो।
शुक्र बुध शनि तीनो ही नीच हों।
पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों।
सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो।
विवाह में देरी
सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते है,विवाह आधी उम्र में होता है।
चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो,सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती है।
सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं।
चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता है,यही बात चन्द्रमा की राशि कर्क से भी माना जाता है।
सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो,कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो,तो पुरुष विवाह में देरी होती है।
सूर्य मंगल बुध लगन या राशिपति को देखता हो,और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है।
लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक नही हों,परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो विवाह नही होता है,अगर हो भी जावे तो संतान नही होती है।
महिला की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम शनि से पीडित हो तो विवाह देर से होता है।
राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है।
विवाह का समय
सप्तम या सप्तम से सम्बन्ध रखने वाले ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा में विवाह होता है।
कन्या की कुन्डली में शुक्र से सप्तम और पुरुष की कुन्डली में गुरु से सप्तम की दशा में या अन्तर्दशा में विवाह होता है।
सप्तमेश की महादशा में पुरुष के प्रति शुक्र या चन्द्र की अन्तर्दशा में और स्त्री के प्रति गुरु या मंगल की अन्तर्दशा में विवाह होता है।
सप्तमेश जिस राशि में हो,उस राशि के स्वामी के त्रिकोण में गुरु के आने पर विवाह होता है।
गुरु गोचर से सप्तम में या लगन में या चन्द्र राशि में या चन्द्र राशि के सप्तम में आये तो विवाह होता है।
गुरु का गोचर जब सप्तमेश और लगनेश की स्पष्ट राशि के जोड में आये तो विवाह होता है।
सप्तमेश जब गोचर से शुक्र की राशि में आये और गुरु से सम्बन्ध बना ले तो विवाह या शारीरिक सम्बन्ध बनता है।
सप्तमेश और गुरु का त्रिकोणात्मक सम्पर्क गोचर से शादी करवा देता है,या प्यार प्रेम चालू हो जाता है।
चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है।