हीन भावना को समाप्त करने का उपाय—-

जगदीश पुर जिला सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश के एक पाण्डेय जी मेरे पास ज्योतिष के विषय में आते है,उनकी पत्नी भी उनके साथ आती है,पहले वे एक प्राइवेट फ़ैक्टरी में काम करते थे,तन्खाह भी बहुत कम थी,ऊपर से दो बच्चों का पालन पोषण कमरे का किराया सभी कुछ छोटी सी पगार में ही पूरा करना पडता था,बहुत दुखी थे,और अपने को यही कहा करते थे कि बेकार में इस जमीन पर जन्म लिया है,इस तरह से जीने का मतलब तो कुछ निकलता ही नही है,दो बच्चों में भी एक बच्चा बडा बच्चा मंद बुद्धि है,जीवन ही बेकार है,जब भी वे आते अपनी जन्म पत्री को दिखाते,उनकी जन्म पत्री को देखकर मुझे उनके मंगल पर काफ़ी सोचना पडता था,उनका मंगल नकारात्मक राशि वृश्चिक में था,और केतु से द्रश्य था,खून के अन्दर नकारात्मकता,यह साधारण भाव होता है वृश्चिक राशि के मंगल का और ऊपर से केतु जो खुद ही नकारात्मक है का प्रभाव भी मंगल के साथ हो तो एक तो करेला ऊपर से नीम चढा वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है। पाण्डेयजी की पत्नी एक ही बात करतीं कि गुरुजी ऐसी कोई चीज देदो,जिससे मेरे परिवार का भला हो जाये और हम भी अपने समाज में ऊंची स्थिति में जा खडे हों। मुझे बचपन से ही मंत्रों पर पूरा विश्वास रहा है,लेकिन मंत्र के प्रयोग करने पर उसके प्रति की जाने वाली सावधानियां भी ध्यान में रखने वाली होती हैं। कई चक्कर लगाने के बाद मैने उन्हे एक मंत्र दिया और कहा कि वे उस मंत्र को अकेले में ही जाप किया करें,उसका भेद और जाप के समय की इच्छा को भी बता दिया। उन्होने उस मंत्र को तीन महिने बिना किसी रुकावट के अकेले में जाप किया,उनका लडका जो मंदबुद्धि था वह ठीक हो गया,पाण्डेयजी ने फ़ैक्टरी को छोड कर अपना खुद का कपडे का काम कर लिया,उनकी पत्नी ने भी कपडे के काम में अपना हाथ बटाया,मुहल्ले पडौस की औरतों को जो बेकार थीं उन्हे कपडे सिलने का और कढाई आदि का काम दिया,बाजार से बीस रुपया किलो का कपडा खरीद कर लाकर उससे सिलाई की मशीनों से औरतों से विभिन्न डिजायन के कपडे सिलवा कर पाण्डेयजी के द्वारा दुकानों में सप्लाई का काम शुरु कर दिया,दो साल के अन्दर आज उनके पास खुद का मकान है,गांव की गिरवी रखी जमीन भी उन्होने छुडवा ली है और आने वाली तेरह अप्रैल को वे गांव जा रहे है और अपने एक मकान को गांव में भी बनवाने की बात कर रहे थे,उनके मंदबुद्धि वाले लडके की शादी की भी बात चल रही है,उनका लडका छोटा जो सरकारी स्कूल में पढता था और निम्न कोटि के साथियों की सोहबत में आकर साइकिल जैसी चोरी कर चुका था,वह अच्छे स्कूल में पढ रहा है और इस साल दसवीं की परीक्षा भी दे रहा है,अपने फ़ालतू समय में अपने बडे भाई के साथ कपडों को इकट्ठा करना और पिता के साथ काम में हाथ बंटाने का काम भी करता है,दोनो के पास अलग अलग मोटर साइकिलें है। मंत्र जाप की विधि और तरीके तथा जाप के समय की जाने वाली इच्छा के बारे में आपको बता देना चाहता हूँ।

क्या है मंत्रजाप का प्रभाव—

मनुष्य शरीर एक बायोकैमिकल मशीन की तरह से है,यह केवल जैविक तत्वों से ही चलता है,जो तत्व जमीन से उगे होते है,जिन तत्वों के अन्दर भी एक स्वयं की उत्पादित होने की क्षमता होती है,उन्ही तत्वों से शरीर चलता है। शरीर में ग्रहण करने की क्षमताओं में भोजन से शरीर के विकास,पानी से शरीर के लवणों क्षारों और सभी तत्वों की पूर्ति और निकास का काम,वायु से शरीर के तत्वों को आगे पीछे करने का काम,अग्नि से शरीर के अन्दर तत्वों को पकाने और बेकार के तत्वों को जलाने का काम,सभी तत्वों के आपसी संघर्षण करने से उत्पन्न विद्युत के द्वारा भाग्य और दुर्भाग्य को बुद्धिबल से प्रकट करने वाली बात को माना जाता है। शरीर में आंखे प्रकाश के विभिन्न रूपों से शक्ति को ग्रहण करती है,नाक हवा में उपस्थित शक्तियों को ग्रहण करती है,कान धरातलीय कर्षण विकर्षण से उत्पन्न आवाजों से शक्ति को ग्रहण करते है,जीभ विभिन्न स्वरों को पैदा करने के बाद शरीर के अन्दर ग्राह्य तन्त्रिका तंत्र को मजबूत करती है और उन अणुओं को खोलने का काम करती है जो पहले खोले नही गये है अथवा खोले तो गये है लेकिन समयावधि के बाद बे स्वत: बन्द हो गये है,इसके साथ ही जीभ और ह्रदय के आपसी तालमेल से स्वाद,रस,वाणी,कर्मेन्द्रियों का साथ देना भी जीभ का काम है। मंत्र जाप का रूप उसी प्रकार से माना जा सकता है जिस प्रकार से कम्पयूटर के कीबोर्ड पर विभिन्न बटनो को दबाने से विभिन्न काम होते है।

हीन भावना से दूर होने का मंत्र—

हीन भावना से ग्रसित व्यक्ति को अपने को एक घंटे के लिये एकान्त कमरे मे ले जाना चाहिये,वह समय कोई भी हो,दिन या रात सुबह या शाम जो भी उसके लिये उपयुक्त हो। दिमाग के अक्ष को साधने के लिये अक्षर “क्ष” का प्रयोग करने के लिये उसके सभी रूपों का उच्चारण जीभ और ह्रदय से एक साथ चलाना चाहिये। मतलब जाप करते वक्त जीभ की गति स्थिर होकर चले,लेकिन जोर से बोलना,आवाज निकालना आदि नही हो,इस प्रकार से मंत्र को जाप करते वक्त केवल यही ध्यान रखना चाहिये कि “मैं समर्थ हूँ,यह प्रकृति मेरे साथ है,मैं अपने को अमुक काम में अमुक व्यक्ति के साथ अमुक व्यक्ति के ठीक होने अमुक समय तक समर्थ होना चाहता हूँ”.इस सोच के साथ जो मंत्र है वह इस प्रकार से है,-“क्षं क्षां क्षिं क्षीं क्षुं क्षूं क्षृं क्षें क्षैं क्षों क्षौं क्षं क्ष:” इस मंत्र का फ़ल तीन महिने में साक्षात सामने आने लगता है,लेकिन मंत्र जाप के समय अन्य चिन्तायें नही होनी चाहिये,पेशाब पानी अन्य शरीर की गतियों को पहले से ही पूर्ण करने के बाद ही इसका जाप करना चाहिये। जब सभी इच्छायें पूरी होने लगें तो भी इस मंत्र को नही त्यागना चाहिये,यह ही अक्ष या यक्ष का मंत्र बोला जाता है,जिससे शरीर का मुख्य बिन्दु जागृत हो जाता है और शरीर के वे अणु धीरे धीरे खुलने लगते है जो उन्नति के लिये प्राय: बन्द हो गये होते है या पहले से खोले ही नही गये होते है। अपने अनुभव जरूर लिखते रहें जिससे नये आगुन्तकों को भी आपके किये जाने वाले प्रयासों से सफ़लता की तरफ़ जाने की दिशा मिलती रहे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here