वास्तु से लाएँ रिश्‍तों में प्रगाढ़ता–वास्तु बढ़ाएगा पिता-पुत्र में प्रेम—-

ग्रह, उपग्रह, नक्षत्रों की चाल व ब्रह्मांड की क्रियाकलापों को देखते ही मन यह सोचने पर विवश हो जाता है कि यह परस्पर एक-दूसरे के चक्कर क्यों लगाते हैं। कभी तो अपनी परिधि में चलते हुए बिल्कुल पास आ जाते हैं तो कभी बहुत दूर। ब्रह्मांड की गतिशीलता व क्रियाकलाप परस्पर आपसी संबंधों पर निर्भर हैं। जिनको कभी हम प्रतिकूल और कभी अनुकूल स्थितियों में देखते या पाते हैं।

ठीक इसी के अनुरूप विश्व के देव-दानव, गंधर्व, नाग, किन्नर, मानव रिश्तों के डोर में आ बँधे। मानव जीवन के कई पवित्र व अनुपम रिश्ते हैं, जो जीवन के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इनमें समय के अनुसार उतार-चढ़ाव देखे जाते हैं, जो जीवन पथ पर कई खट्टी-मीठी यादें देते रहते हैं। किन्तु बढ़ती नीरसता, स्वार्थपरता, आपाधापी व अनैतिकता से आज सिर्फ पिता-पुत्र के मध्य ही नहीं बल्कि अनेक रिश्ते मतभेद, कटुता, कलह, नीरसता व कंलक के हत्थे चढ़ते जा रहे हैं।

इन सम्पूर्ण विकारों ने मिलकर रिश्ते की पवित्र नींव को उखाड़ने का मानो ठेका ले रखा हो, शर्म, संकोच, दायित्व, सामाजिक मर्यादाएँ जो यथा समय इनकी रक्षा करती थीं आज वे विवश नजर आ रही हैं। जिन पंच तत्वों के सहारे तन, मन, श्वॉस, रक्त, दृष्टि में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता था आज उनकी वास्तु स्थिति गड़बडा गई है। आज वह लाख प्रयास करने के बावजूद भी चोट पर चोट खाते जा रहे हैं।
वास्तु अध्ययन व अनुभव यह बताता है कि जिस भवन में वास्तु स्थिति गड़बड होती है वहाँ व्यक्ति के पारिवारिक व व्यक्तिगत रिश्तों में अक्सर मतभेद, तनाव उत्पन्न होते रहते हैं। वास्तु में पूर्व व ईशानजनित दोषों के कारण पिता-पुत्र के संबंधों में धीरे-धीरे गहरे मतभेद व दूरियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और साथ ही कई परिवारों को पुत्र हानि का भी सामना करना पड़ता है। सूर्य को पुत्र का कारक ग्रह माना जाता है, जब भवन में ईशान व पूर्व वास्तु दोषयुक्त हो तो यह घाव में नमक का कार्य करता है। जिससे पिता-पुत्र जैसे संबंधों में तालमेल का भाव व पुत्र-पिता के प्रति दुर्भावना रखता है। वास्तु के माध्यम से पिता पुत्र के संबंधों को अति मधुर बनाया जा सकता है।

महत्वपूर्ण व उपयोगी तथ्य जो पिता-पुत्र के संबंधों को प्रभावित करते हैं :—
– ईशान (उत्तर-पूर्व) में भूखण्ड कटा हुआ नहीं होना चाहिए।
– भवन का भाग ईशान (उत्तर-पूर्व) में उठा होना अशुभ हैं। अगर यह उठा हुआ है तो पुत्र संबंधों में मधुरता व नजदीकी का आभाव रहेगा।
– उत्तर-पूर्व (ईशान) में रसोई घर या शौचालय का होना भी पुत्र संबंधों को प्रभावित करता है। दोनों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बनी रहती है।
– दबे हुए ईशान में निर्माण के दौरान अधिक ऊँचाई देना या भारी रखना भी पुत्र और पिता के संबंधों को कलह और परेशानी में डालता रहता है।
– ईशान (उत्तर-पूर्व) में स्टोर रूम, टीले या पर्वतनुमा आकृति के निर्माण से भी पिता-पुत्र के संबंधों में कटुता रहती है तथा दोनों एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं।
– इलेक्ट्रॉनिक आइटम या ज्वलनशील पदार्थ तथा गर्मी उत्पन्न करने वाले अन्य उपकरणों को ईशान (उत्तर-पूर्व) में रखने से पुत्र, पिता की बातों की अवज्ञा अर्थात्‌ अवहे‌लना करता रहता है, और समाज में बदनामी की स्थिति पर ला देता है।
– इस दिशा में कूड़ेदान बनाने या कूड़ा रखने से भी पुत्र, पिता के प्रति दूषित भावना रखता हैं। यहाँ तक मारपीट की नौबत आ जाती है।
– ईशान कोण खंडित होने से पिता-पुत्र आपसी मामलों को लेकर सदैव लड़ते-झगड़ते रहते हैं।
– यदि कोई भूखंड उत्तर व दक्षिण में सँकरा तथा पूर्व व पश्चिम में लंबा है तो ऐसे भवन को सूर्यभेदी कहते हैं यहाँ भी पिता-पुत्र के संबंधों में अनबन की स्थिति सदैव रहती है। सेवा तो दूर वह पिता से बात करना तथा उसकी परछाई में भी नहीं आना चाहता है।

इस प्रकार ईशान कोण दोष अर्थात्‌ वास्तुजनित दोषों को सुधार कर पिता-पुत्र के संबंधों में अत्यंत मधुरता लाई जा सकती हैं। सूर्य संपूर्ण विश्व को ऊर्जा शक्ति प्रदान करता है तथा इसी के सहारे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया संचालित होती है तथा पराग कण खिलते हैं जिसके प्रभाव से वनस्पति ही नहीं बल्कि समूचा प्राणी जगत्‌ प्रभावित होता है। पूर्व व ईशानजनित दोषों से प्राकृतिक तौर पर प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा नहीं मिल पाती और पिता-पुत्र जैसे संबंधों में गहरे तनाव उत्पन्न हो जाते हैं। अतएव वास्तुजनित दोषों को समझते हुए ईशान की रक्षा यत्नपूर्वक करनी चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here