भारतीय संस्कृति में गुरु का महत्व आदिकाल से ही रहा है। कबीर साहब ने कहा था कि गुरु बिन ज्ञान न होए साधु बाबा। तब फिर ज्यादा सोचने-विचारने की आवश्यकता नहीं है बस गुरु के प्रति समर्पण कर दो। हमारे सुख-दु:ख और हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य गुरु को ही साधने दो। ज्यादा सोचोगे तो भटक जाओगे। अहंकार से किसी ने कुछ नहीं पाया। सिर और चप्पलों को बाहर ही छोड़कर जरा अदब से गुरु के द्वार खड़े हो जाओ बस। गुरु को ही करने दो हमारी चिंता। हम क्यों करें।
सिख धर्म के दस गुरुओं की कड़ी में प्रथम हैं गुरु नानक। गुरु नानकदेव से मोक्ष तक पहुँचने के एक नए मार्ग का अवतरण होता है। इतना प्यारा और सरल मार्ग कि सहज ही मोक्ष तक या ईश्वर तक पहुँचा जा सकता है।गुरू नानक जयन्ती, 10 सिक्ख गुरूओं के गुरू पर्वों या जयन्तियों में सर्वप्रथम है। यह सिक्ख पंथ के संस्थापक गुरू नानक देव, जिन्होंने धर्म में एक नई लहर की घोषणा की, की जयन्ती है।गुरू नानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु (आदि गुरु) है। इनके अनुयायी इन्हें गुरु नानक, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं।
गुरु नानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु माने जाते हैं। इन्हें सिख धर्म का संस्थापक भी माना जाता है। गुरु नानक जी का जन्मदिन प्रकाश दिवस के रूप में “कार्तिक पूर्णिमा” के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष गुरु नानक जयंती 06 नवंबर, 2014 को मनाई जाएगी। इस दिन जगह-जगह जुलूस निकाले जाते हैं और गुरुद्वारों में “गुरु ग्रंथ साहिब” का अखंड पाठ किया जाता है।
“”जो बोले सो निहाल सतश्री अकाल””
जन्म —
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी गांव में कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को राएभोए के तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर गुरु नानक का जन्म हुआ था। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है…गुरु नानक देव जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। बहुत कम आयु से ही उन्होंने भ्रमण द्वारा अपने उपदेशों और विचारों को जनता के बीच रखा।
गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु – सभी के गुण समेटे हुए थे। नानक सर्वेश्वरवादी थे। मूर्तिपूजा को उन्हांने निरर्थक माना। रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में वे सदैव तीखे रहे। ईश्वर का साक्षात्कार, उनके मतानुसार, बाह्य साधनों से नहीं वरन् आंतरिक साधना से संभव है। उनके दर्शन में वैराग्य तो है ही साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नजर डाली है।
संत साहित्य में नानक अकेले हैं, जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है।नानक अच्छे कवि भी थे। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह निराली है। उनकी भाषा “बहता नीर” थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी, संस्कृत, और ब्रजभाषा के शब्द समा गए थे।
सिक्ख समाज में कई धर्मों के चलन व विभिन्न देवताओं को स्वीकार करने के प्रति अरुचि ने व्यापक यात्रा किए हुए नेता को धार्मिक विविधता के बंधन से मुक्त होने, तथा एक प्रभु जो कि शाश्वत सत्य है के आधार पर धर्म स्थापना करने की प्रेरणा दी।
गुरू नानक जयन्ती के त्यौहार में, तीन दिन का अखण्ड पाठ, जिसमें सिक्खों की धर्म पुस्तक “गुरू ग्रंथ साहिब” का पूरा पाठ बिना रुके किया जाता है, शामिल है। मुख्य कार्यक्रम के दिन गुरू ग्रंथ साहिब को फूलों से सजाया जाता है, और एक बेड़े (फ्लोट) पर रखकर जुलूस के रूप में पूरे गांव या नगर में घुमाया जाता है।
शोभायात्रा की अगुवाई पांच सशस्त्र गार्डों, जो ‘पंज प्यारों’ का प्रतिनिधित्व करते हैं, तथा निशान साहब, अथवा उनके तत्व को प्रस्तुत करने वाला सिक्ख ध्वज, लेकर चलते हैं, द्वारा की जाती है। पूरी शोभायात्रा के दौरान गुरूवाणी का पाठ किया जाता है, अवसर की विशेषता को दर्शाते हुए, गुरू ग्रंथ साहिब से धार्मिक भजन गाए जाते हैं। शोभायात्रा अंत में गुरूद्वारे की ओर जाती है, जहां एकत्रित श्रद्धालु सामूहिक भोजन, जिसे लंगर कहते हैं, के लिए एकत्रित होते हैं।