पंचक एक ऐसा विशेष मुहूर्त दोष है जिसमें बहुत सारे कामों को करने की मनाही की जाती क्या यह वाकई हानिकारक होता है या फिर यह एक भ्रांति है। क्या पंचक के केवल उसके नाकारात्मक प्रभाव ही मिलते है या उसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं? हमारा यह लेख समाज में व्याप्त इस धारणा के वास्तविक स्वरूप समझाने का एक प्रयास है।

क्या होता है पंचक?

पांच_नक्षत्रों_के_समूह_को_पंचक_कहते_हैं। वैदिक_ज्योतिष के अनुसार राशिचक्र में .6. अंश एवं .7 नक्षत्र होते हैं। इस प्रकार एक नक्षत्र का मान .3 अंश एवं 20 कला या 800 कला का होता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार जब चन्द्रमा 27 नक्षत्रों में से अंतिम पांच नक्षत्रों अर्थात धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, एवं रेवती में होता है तो उस अवधि को पंचक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में जब चन्द्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता है तब उस समय को पंचक कहते हैं। क्योंकि चन्द्रमा 27 दिनों में इन सभी नक्षत्रों का भोग कर लेता है। अत: हर महीने में लगभग 27 दिनों के अन्तराल पर पंचक नक्षत्र आते ही रहते हैं।
भारतीय ज्योतिष में पंचक को अशुभ माना गया है। इसके अंतर्गत धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र आते हैं। पंचक के दौरान कुछ विशेष काम वर्जित किये गए है।

पंचक के प्रकार

  1. रोग पंचक  – रविवार को शुरू होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है। इसके प्रभाव से ये पांच दिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों वाले होते हैं। इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं करने चाहिए। हर तरह के मांगलिक कार्यों में ये पंचक अशुभ माना गया है।
  2.  राज पंचक – सोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है। ये पंचक शुभ माना जाता है। इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों में सफलता मिलती है। राज पंचक में संपत्ति से जुड़े काम करना भी शुभ रहता है।
  3. अग्नि पंचक – मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इन पांच दिनों में कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फैसले, अपना हक प्राप्त करने वाले काम किए जा सकते हैं। इस पंचक में अग्नि का भय होता है। इस पंचक में किसी भी तरह का निर्माण कार्य, औजार और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना गया है। इनसे नुकसान हो सकता है।
  4. मृत्यु पंचक – शनिवार को शुरू होने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है। नाम से ही पता चलता है कि अशुभ दिन से शुरू होने वाला ये पंचक मृत्यु के बराबर परेशानी देने वाला होता है। इन पांच दिनों में किसी भी तरह के जोखिम भरे काम नहीं करना चाहिए। इसके प्रभाव से विवाद, चोट, दुर्घटना आदि होने का खतरा रहता है।
  5. चोर पंचक – शुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है। विद्वानों के अनुसार, इस पंचक में यात्रा करने की मनाही है। इस पंचक में लेन-देन, व्यापार और किसी भी तरह के सौदे भी नहीं करने चाहिए। मना किए गए कार्य करने से धन हानि हो सकती है।
  6. इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को शुरू होने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है। इन दो दिनों में शुरू होने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं।

पंचक में वर्जित कर्म

  • पंचक में चारपाई बनवाना भी अच्छा नहीं माना जाता। विद्वानों के अनुसार ऐसा करने से कोई बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
  • पंचक के दौरान जिस समय घनिष्ठा नक्षत्र हो उस समय घास, लकड़ी आदि जलने वाली वस्तुएं इकट्ठी नहीं करना चाहिए, इससे आग लगने का भय हैं।
  • पंचक के दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है। इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
  •  पंचक के दौरान जब रेवती नक्षत्र चल रहा हो, उस समय घर की छत नहीं बनाना चाहिए, ऐसा विद्वानों का कहना है। इससे धन हानि और घर में क्लेश होता है।
  • पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य पंडित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यदि ऐसा न हो पाए तो शव के साथ पांच पुतले आटे या कुश (एक प्रकार की घास) से बनाकर अर्थी पर रखना चाहिए और इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार करना चाहिए, तो पंचक दोष समाप्त हो जाता है। ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है।

पंचक में करने योग्य शुभ कार्य

पंचक में आने वाले नक्षत्रों में शुभ कार्य हो भी किये जा सकते हैं। पंचक में आने वाला उत्तराभाद्रपद नक्षत्र वार के साथ मिलकर सर्वार्थसिद्धि योग बनाता है, वहीं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र यात्रा, व्यापार, मुंडन आदि शुभ कार्यों में श्रेष्ठ माने गए हैं। मेरे अनुसार, पंचक को भले ही अशुभ माना जाता है, लेकिन इस दौरान सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं। पंचक में आने वाले तीन नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद व रेवती रविवार को होने से आनंद आदि 28 योगों में से 3 शुभ योग बनाते हैं, ये शुभ योग इस प्रकार हैं- चर, स्थिर व प्रवर्ध। इन शुभ योगों से सफलता व धन लाभ का विचार किया जाता है।

मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार पंचक के नक्षत्रों का शुभ फल

  • घनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र चल संज्ञक माने जाते हैं। इनमें चलित काम करना शुभ माना गया है जैसे- यात्रा करना, वाहन खरीदना, मशीनरी संबंधित काम शुरू करना शुभ माना गया है।
  •  उत्तराभाद्रपद नक्षत्र स्थिर संज्ञक नक्षत्र माना गया है। इसमें स्थिरता वाले काम करने चाहिए जैसे- बीज बोना, गृह प्रवेश, शांति पूजन और जमीन से जुड़े स्थिर कार्य करने में सफलता मिलती है।
  •  रेवती नक्षत्र मैत्री संज्ञक होने से इस नक्षत्र में कपड़े, व्यापार से संबंधित सौदे करना, किसी विवाद का निपटारा करना, गहने खरीदना आदि काम शुभ माने गए हैं।

पंचक के नक्षत्रों का संभावित अशुभ प्रभाव

  • धनिष्ठा नक्षत्र में आग लगने का भय रहता है।
  • शतभिषा नक्षत्र में वाद-विवाद होने के योग बनते हैं।
  • पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र है यानी इस नक्षत्र में बीमारी होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
  • उत्तरा भाद्रपद में धन हानि के योग बनते है।
  • रेवती नक्षत्र में नुकसान व मानसिक तनाव होने की संभावना होती है

क्या पंचक वास्तव में इतने अशुभ होते हैं कि इसमें कोई भी कार्य करना अशुभ होता है?

ऐसा बिल्कुल नहीं है। बहुत सारे विद्वान इन #पंचक_संज्ञक नक्षत्रों को पूर्णत: अशुभ मानने से इन्कार करते हैं। कुछ विद्वानों ने ही इन नक्षत्रों को अशुभ माना है इसलिए पंचक में कुछ कार्य विशेष नहीं किए जाते हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इन नक्षत्रों में कोई भी कार्य करना अशुभ होता है। इन नक्षत्रों में भी बहुत सारे कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। पंचक के इन पांच नक्षत्रों में से धनिष्ठा एवं शतभिषा नक्षत्र चर संज्ञक नक्षत्र हैं अत: इसमें पर्यटन, मनोरंजन, मार्केटिंग एवं वस्त्रभूषण खरीदना शुभ होता है। #पूर्वाभाद्रपद उग्र संज्ञक नक्षत्र है अत: इसमें वाद-विवाद और मुकदमे जैसे कामों को करना अच्छा रहता है। जबकि उत्तरा-भाद्रपद ध्रुव संज्ञक नक्षत्र है इसमें #शिलान्यास, योगाभ्यास एवं दीर्घकालीन योजनाओं को प्रारम्भ किया जाता है। वहीं रेवती नक्षत्र मृदु संज्ञक नक्षत्र है अत: इसमें गीत, संगीत, अभिनय, टी.वी. सीरियल का निर्माण एवं फैशन शो आयोजित किये जा सकते हैं। इससे ये बात साफ हो जाती है कि पंचक नक्षत्रों में सभी कार्य निषिद्ध नहीं होते। किसी विद्वान से परमर्श करके पंचक काल में विवाह, उपनयन, मुण्डन आदि संस्कार और गृह-निर्माण व गृहप्रवेश के साथ-साथ व्यावसायिक एवं आर्थिक गतिविधियां भी संपन्न की जा सकती हैं।

क्या पंचक के दौरान पूजा पाठ या धार्मिक क्रिया कलाप नहीं करने चाहिए?

     बहुतायत में यह धारणा जगह बना चुकी है कि पंचक के दौरान #हवन_पूजन या फिर देव विसर्जन नहीं करना चाहिए। जो कि गलत है शुभ कार्यों, खास तौर पर देव पूजन में पंचक का विचार नहीं किया जाता। अत: पंचक के दौरान पूजा पाठ या धार्मिक क्रिया कलाप किए जा सकते हैं।  शास्त्रों में पंचक के दौरान शुभ कार्य के लिए कहीं भी निषेध का वर्णन नहीं है। केवल कुछ विशेष कार्यों को ही पंचक के दौरान न करने की सलाह विद्वानों द्वारा दी जाती है।
पंचक के दौरान कौन-कौन से काम नहीं करने चाहिए?
पंचक के दौरान मुख्य रूप से इन पांच कामों को वर्जित किया गया है-
  1. घनिष्ठा नक्षत्र में घास लकड़ी आदि ईंधन इकट्ठा नही करना चाहिए इससे अग्नि का भय रहता है।
  2. दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
  3. रेवती नक्षत्र में घर की छत डालना धन हानि और क्लेश कराने वाला होता है।
  4. पंचक के दौरान चारपाई नही बनवाना चाहिए।
  5. पंचक के दौरान किसी शव का अंतिम संस्कार करने की मनाही की गई है क्योकि ऐसा माना जाता है कि पंचक में शव का अन्तिम संस्कार करने से उस कुटुंब या गांव में पांच लोगों की मृत्यु हो सकती है। अत: शांतिकर्म कराने के पश्चात ही अंतिम संस्कार करने की सलाह दी गई है।

यदि किसी काम को पंचक के कारण टालना मुमकिन न हो तो उसके लिए क्या उपाय करना चाहिए?

आज का समय प्राचीन समय से बहुत अधिक भिन्न है वर्तमान में समाज की गति बहुत तेज है इसलिए आधुनिक युग में उपरोक्त कार्यो को पूर्ण रूप से रोक देना कई बार असम्भव हो जाता है| परन्तु शास्त्रकारों ने शोध करके ही उपरोक्त कार्यो को पंचक काल में न करने की सलाह दी है| जिन पांच कामों को पंचक के दौरान न करने की सलाह प्राचीन ग्रन्थों में दी गयी है अगर उपरोक्त वर्जित कार्य पंचक काल में करने की अनिवार्यता उपस्थित हो जाये तो निम्नलिखित उपाय करके उन्हें सम्पन्न किया जा सकता है।
  1. लकड़ी का समान खरीदना जरूरी हो तो खरीद ले किन्तु पंचक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम पर हवन कराए, इससे पंचक दोष दूर हो जाता है|
  2. पंचक काल में अगर दक्षिण दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनुमान मंदिर में फल चढा कर यात्रा आरम्भ करनी चाहिए।
  3. मकान पर छत डलवाना अगर जरूरी हो तो मजदूरों को मिठाई खिलने के पश्चात ही छत डलवाने का कार्य करे|
  4. पंचक काल में अगर पलंग या चारपाई लेना जरूरी हो तो उसे खरीद या बनवा तो सकते हैं लेकिन पंचक काल की समाप्ति के पश्चात ही इस पलंग या चारपाई का प्रयोग करना चाहिए|
  5. शव दाह एक आवश्यक काम है लेकिन पंचक काल होने पर शव दाह करते समय पाँच अलग पुतले बनाकर उन्हें भी अवश्य जलाएं|

इन उपायों को नियमानुसार करके आप पंचक के दुष्प्रभावों से बच सकते हैं।

” पँचक विचार” 
” पँचक”  ऐसा विषय जिसे हर सनातन धर्मी मानता है पर जानते बहुत ही कम लोग हैं । आज इसी विषय पर चर्चा है ,क्योंकि हर सनातन धर्मी को इस विषय का ज्ञान होना चाहिए।
किसी की मृत्यु होने पर पहला विचार यही किया जाता है की कहीं पँचक तो नहीं लगे हुए । पञ्चाङ्ग से इसकी कालावधि पता चल जाती है , किंतु पँचक होते क्या हैं, ये सामान्य जन नहीं जानते होंगें ।जानें वास्तव में पँचक होते क्या हैं और इनकी शाँति का वास्तविक विधान भी ।
धनिष्ठा नक्षत्र का उत्तरार्ध , पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र ,उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र , शतभिषा और रेवती नक्षत्र,  ये पाँच नक्षत्र ” पँचक” कहे गए हैं ।
इन पँचकों में निषिध्द कर्म भी निरूपित किये गए हैं  यथा…
धनिष्ठापंचके त्याज्यस्तृणकाष्ठादिसंग्रह: ।
त्याज्या दक्षिण दिगयात्रा ग्रहाणाम छादनम तथा ।।
अर्थात पँचक में तृण काष्ठ आदि का संचयन , दक्षिण दिशागत यात्रा, घर की छत डालना , प्रेतदाह और शय्या बीनना अर्थात खाट भरना ये कर्म निषिद्ध है।
इस विषय में ” मुहूर्त मार्तंड”  , ” ज्योतिर्विदा भरण”  आदि बहुत से ज्योतिष के प्राचीन ग्रँथ मार्ग दर्शन करते हैं ।
इस विषय में प्रसिद्ध ” निर्णयसिन्धु ” ग्रँथ और ” धर्म सिंधु” का मत है की इन पाँच नक्षत्रों में मृत्यु होने पर दोष निवारणार्थ शाँति विधान है जिसे” पँचक शाँति ”  कहा जाता है ।
इन धर्म ग्रन्थों के अनुसार जो विशेष बात कही गयी है वो है  ” पुत्तल दाह ” अर्थात पुतलों को जलाना ।
इस विषय में विशेष जानने योग्य बात ये है की अगर , मृत्यु पँचक प्रारम्भ होने से पूर्व हुई है और शव का दाह पँचक में होना है तो ” पुत्तल दाह ” करें , फिर शांति करने की आवश्यकता नहीं रहती । इसके विपरीत यदि मृत्यु पँचक में हुई है तो और दाह पँचक समाप्ति के बाद होना हो , तो पँचक शांति करने का विधान है । और यदि मृत्यु भी पँचक में हुई और दाह भी पँचक में होना है तो “पुत्तल दाह”  और ” शांति कर्म ” दोनों करें । पँचक शांति इसलिए भी आवश्यक है , इसका प्रभाव परिवार के सदस्यों पर भी पड़ता है ।
”  पँचक शांति ” सुतकान्त ( अर्थात सूतक के अंत में)  बारहवें दिन , तेरहवें दिन या धनिष्ठा आदि नक्षत्रों में करनी चाहिए । और जो ” पुत्तल दाह ”  विधान है वह इस प्रकार है …
” धर्मसिन्धु”  के मतानुसार ..
नक्षत्रान्तरे मृतस्य पंचके दाह प्राप्तौ पुत्तल विधिरेव न शांतिकम।
पँचकमृतस्याशविण्यां दाहप्रापतौ शांतिकमेव न पुत्तलविधि: ।।
अर्थात
यदि पँचकों में मृत्यु हो तो वह वंशजों को भी मार डालता है अतः , ऐसी स्थिति में अनिष्ट के निवारणार्थ कुशों की पाँच प्रतिमा ( पुत्तल) बनाकर सूत्र से वेष्टित कर जौ के आटे की पीठी से उनका लेपन कर उनका शव के साथ दाह करें ।
इन पाँच पुतलों के वैधानिक नाम हैं प्रेतवाह ,प्रेतसखा , प्रेतप , प्रेत भूमिप , प्रेतहर्ता ।
पुत्तल दाह का विशेष संकल्प…
अद्य ….. शर्मा / वर्मा/ गुप्तोहम ….गोत्रस्य ( … गोत्राया:) … अमुक नाम प्रेतस्य ( मरने वाले का नाम)  धनिष्ठादि पँचक जनित वंशानिष्टपरिहारार्थ पँचक विधि करिष्ये । ऐसा बोल कर पाँचों पुतलों का निम्न रीति से पूजन हो ।
प्रेतवाहाय नमः , प्रेतसखाय नम, प्रेतपाय नमः,प्रेतभूमिपाय नमः, प्रेतहरत्रे नमः  । इमानि गंधाक्षत पुष्पधूपदीपादिनी वस्तुनि युष्मभ्यं मया दीयन्ते युष्माकमुपतिष्ठन्ताम
ऐसे बोल पाँचों प्रेतों को गन्ध,अक्षत , पुष्प ,धूप दीप प्रदान करें ।
पूजन के बाद प्रेतवाह नामक पुतले को शव के सिर पर , दूसरे को नेत्रों पर ,तीसरे को बायीं काख पर चौथे को नाभि पर और पाँचवे को पैरों के ऊपर रख , ऊपर लिखित इन प्रेतों के नाम मंत्रों से क्रमानुसार घी की आहुति देनी चाहिए ,जैसे 1 प्रेतवाहाय स्वाहा 2 प्रेतसखाय स्वाहा 3 प्रेतपाय स्वाहा 4 प्रेत भूमिपाय स्वाहा 5 प्रेत हरत्रे स्वाहा ।
इसके बाद शव दाह होता है ।
हमारी वैदिक परम्पराएँ बहुत ही गूढ़ है और साथ ही इनके जानकार भी कम होते जा रहे हैं । वो विस्तृत रूप से कारण और विधान भी जानते हों । प्रस्तुत लेख को लिखने का कारण भी यही है और उद्देश्य भी की पारम्परिक ज्ञान अक्षुण्ण रहे ।

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