सप्तमांश से विवाह समय निर्घारण-
 
ज्योतिषशास्त्र में विवाह के लिए नवमांश को ही आधार माना गया है और इसी के आधार पर विवाह समय का निर्घारण किया जाता है. लेकिन नवमांश के साथ ही सप्तमांश का अध्ययन भी इस संदर्भ महत्वपूर्ण है.
 
सोलह संस्कारो में विवाह एक प्रमुख संस्कार है.  लड़का हो या लड़की जब वे युवावस्था में पहुंचते हैं तो माता पिता बच्चों की शादी के लिए सोचने लगते हैं.  किसी की शादी चट मंगनी पट व्याह की तरह हो जाती है तो किसी की शादी में काफी समय लग जाता है.  ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि में यह सब कुण्डली में मौजूद ग्रहों का खेल होता है. 
 
कुण्डली का महत्व (Importance of kundali in marriage)
कहते हैं जोड़ियां ऊपर से बनकर आती है और कब उनका मिलन होगा यह भी ऊपर वाला तय करता है.  हमारी कुण्डली में ईश्वर ग्रहों की ऐसी गिनती बैठाता है कि वे अपनी चाल चलकर समय समय पर अपना फल देते रहते हैं फिर भी हम लोग अपनी जिज्ञासा की शांति के लिए भविष्य में झांकना चाहते हैं.  अगर कहें कि भविष्य देखने के लिए एक ही झरोखा ऊपर वाले ने खोल रखा है तो वह हमारी जन्मपत्री है.  जन्मपत्री के बारह घरों यानी भावों में ही व्यक्ति की पूरी ज़िन्दग़ी सिमटी हुई है.  कुण्डली के बारह भावों में स्थित ग्रहों की स्थिति को समझकर ही भूत भविष्य का फलादेश किया जा सकता है. (Future can be assessed through the .. houses of the kundali) 
 
विवाह कुण्डली विचार (Marriage kundali analysis)
विवाह सम्बन्धी गंभीर विषय पर भी कुण्डली के द्वारा ही रोशनी डाली जा सकती है.  इन दिनों बहुत से मैरिज ब्यूरो और शादी से सम्बन्धित वेबसाईट आ गये हैं इससे विवाह के इच्छुक लोगों को लाभ मिल रहा है लेकिन यह इस बात का भी संकेत है कि विवाह जैसे विषय को लेकर लोग किस कदर परेशान हैं.  ज्योतिषशास्त्रियों के पास बहुत से लोग इस प्रश्न को लेकर आ रहे हैं कि उनकी शादी या उनके किसी अपने की शादी कब होगी.  इस प्रश्न का जवाब देना यूं तो कुछ कठिन होता है परंतु कुण्डली में अन्य स्थितियों को ध्यान में रखते हुए अगर नवमांश और सप्तमांश की स्थितियों का गहराई से अध्ययन किया जाय तो व्यक्ति की शादी कब होगी इस सम्बन्ध में सही सही जानकारी ज्ञात की जा सकती है. 
 
विवाह नवमांश सप्तांश (Navamsh and Saptamamsh for marriage)
ज्योतिषशास्त्र में यूं तो विवाह के लिए नवमांश को ही आधार माना गया है और इसी के आधार पर विवाह समय का निर्घारण किया जाता है.  ज्योतिषशास्त्र के कुछ विद्वान मानते हैं कि नवमांश के साथ ही सप्तमांश का अध्ययन भी इस संदर्भ महत्वपूर्ण स्थान रखता है.  विवाह का समय जानने में सप्तमांश की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए जो तर्क दिये गये हैं उनके अनुसार यह कहा गया है कि सामान्य स्थिति में विवाह के पश्चात एक से दो वर्ष के अंदर संतान का जन्म होता है.  इस आधार पर अगर सप्तमांश में संतान का योग प्रबल दिखाई देता है तो नवमांश से तुलनात्मक अध्ययन करने पर विवाह का सही काल निर्घारण किया जा सकता है.

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