सादर विनम्र श्रद्धांजलि….भाव पूर्ण नमन , विनम्र श्रद्धांजलि


==== स्वर्गीय “विनोद खन्ना” को ===


इंसान,दयावान,दबंग,क्षत्रिय,सच्चा झूठा ,मेरे अपने, दिलवाले और “खून पसीना” एक कर “परवरिश” कर “जुर्म” करने वाला “डाकू जब्बर सिंह” (मेरा गांव मेरा देश का ) आज “क़ुरबानी” देकर आज  “अमर” हो गया…



बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता विनोद खन्ना ने आज मुंबई के अस्पताल में अंतिम साँस ली. विनोद खन्ना का हरीकिशन दास अस्पताल में निधन हो गया है. विनोद खन्ना काफी समय से बीमार चल रहे थे. विनोद खन्ना को बीते कुछ समय पहले मुंबई के अस्पताल में पानी की कमी के चलते एडमिट किया गया था.अभिनेता और राजनेता विनोद खन्ना को शरीर में पानी की कमी होने के कारण मुम्बई के खन्ना का यहां गिरगांव के एचएन रिलायंस फाउंडेशन एंड रिसर्च सेंटर में निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों ने उनके निधन की जानकारी देते हुए कहा कि वह पिछले कुछ समय से कैंसर से जूझ रहे थे। इसी वजह से उन्हें पिछले कई दिनों से गिरगांव के एचएन रिलायंस फाउंडेशन एंड रिसर्च सेंटर में भर्ती थे। आज सुबह .1… बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. वह कैंसर से पीड़ित थे.


तब डॉक्टरों ने विनोद खन्ना की हालत में सुधार की बात कही थी और कहा था की उन्हें जल्द ही अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी,जिसके बाद उनसे जुडी एक तस्वीर सामने आई थी.जिसमे वे काफी कमजोर दिखाई दे रहे थे. विनोद खन्ना के बेटे ने भी उनके हालत में सुधार के संकेत दिए थे.


लेकिन आज सुबह उन्होंने अपनी अंतिम सांसे ली. यह फिल्म इंडस्ट्री को बहुत बड़ा नुकसान है. विनोद अपने करियर में 146 फिल्मो में काम कर चुके है. आखरी बार वे रोहित शेट्टी की फिल्म दिलवाले में नजर आये थे. विनोद खन्ना का जन्म एक व्यापारिक परिवार में 6 अक्टूबर,1946 को पेशावर में हुआ था। उनका परिवार अगले साल 1947 में हुए भारत-पाक विभाजन के बाद पेशावर से मुंबई आ गया था। उनके माता-पिता का नाम कमला और किशनचंद खन्ना था। | उनकी पहली शादी प्रेम विवाह का परिणाम थी,उनकी प्रथम पत्नी का नाम गीतांजलि था| कॉलेज लाइफ में उन्होंने थिएटर में काम करना शुरू किया। यहीं उनकी मुलाकात गीतांजलि से हुई। गीतांजलि विनोद की पहली पत्नी थीं। कॉलेज से ही उनकी लव-स्टोरी शुरू हुई थी।लगभग 144 फिल्मों में काम कर चुके खन्ना मौजूदा लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के सांसद थे। 1960 के बाद की उनकी स्कूली शिक्षा नासिक के एक बोर्डिग स्कूल में हुई वहीं उन्होने सिद्धेहम कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक किया था।


उन्होंने अपने फ़िल्मी सफर की शुरूआत 1968 मे आई फिल्म “मन का मीत” से की जिसमें उन्होने एक खलनायक का अभिनय किया था। कई फिल्मों में उल्लेखनीय सहायक और खलनायक के किरदार निभाने के बाद 1971 में उनकी पहली एकल हीरो वाली फिल्म हम तुम और वो आई। कुछ वर्ष के फिल्मी सन्यास, जिसके दौरान वे आचार्य रजनीश के अनुयायी बन गए थे, के बाद उन्होने अपनी दूसरी फिल्मी पारी भी सफलतापूर्वक खेली और अभी तक भी फिल्मों में सक्रिय हैं।


70 के जिस दशक में सिनेमा का सितारा समीकरण बदल रहा था, विनोद खन्ना की एंट्री ऐसे नायक के तौर पर हुई, जिसकी पहचान उसकी कद-काठी उसके रूप-रंग और मोहक मुस्कान की बदौलत बनती है. इस दौर में दिलकश अदाओं के सबसे बड़े हीरो राजेश खन्ना बनकर उभरे थे. धर्मेन्द्र तब के ही-मैन थे, तो शशि कपूर उस दौर के सबसे खूबसूरत हीरो. लेकिन विनोद खन्ना की खूबसूरती के साथ उनके अंदाज में बात कोई गजब थी. 1968 में पहली फिल्म मन का मीत आई, तो उसके आगे पीछे निर्माताओं की कतार लग गई. तब एक हफ्ते में ही 15 फिल्में साइन कर ली थी विनोद खन्ना ने.


उन्हीं 15 फिल्मों में से एक थी मेरा गांव मेरा देश. जिसमें निभाया डाकू जब्बर सिंह का किरदार उन्हें फिल्म से भी ज्यादा मशहूर कर गया. जबकि उस फिल्म में हीरो उस दौर में सुपरहिट धर्मेन्द्र जैसे अभिनेता थे. डाकू जब्बर सिंह के रूप में विनोद खन्ना का किरदार इतना चर्चित हुआ, कि इसके बाद डकैत कथाओं पर फिल्मों का चलन शुरु हो गया. शोले जैसी फिल्म और डाकू गब्बर सिंह का किरदार इसकी एक मिसाल है. खलनायक के रूप में विनोद खन्ना की शोहरत आसमान पर थी, लेकिन दिल से कहें तो अदाकारी का ये रंग उन्हें कतई रास नहीं आता था. अभिनेता संजय खान कहते हैं कि वो पहला आदमी था जो विलेन से हीरो बना.


उस हीरो को अदाकारी का नया रंग 1971 में आई गुलजार की फिल्म मेरे अपने से मिला, जिसमें नेक इरादों के साथ अंदाज भी तेवराना था. शत्रुघन सिन्हा के साथ उस फिल्म ने विनोद खन्ना को भी फिल्म इंडस्ट्री में बतौर अदाकार स्थापित कर दिया. तब विनोद खन्ना सिर्फ इसलिए नहीं खुश थे कि फिल्मों में संयोग से शुरू हुई उनकी पारी कामयाब रही, बल्कि सुकून इस बात का था कि अब उन्हें फिल्मों की दुनिया छोड़नी नहीं पड़ेगी. फिल्मों में नाकाम हुआ तो फेमिली बिजनेस में लौट आऊंगा, ये करार विनोद खन्ना ने अपने पिता से किया था |


सुनील दत्त के जरिए हुई बॉलीवुड में एंट्री—
– विनोद की सुनील दत्त से एक पार्टी में मुलाकात हुई थी। उस वक्त सुनील के छोटे भाई सोम दत्त अपने होम प्रोडक्शन में ‘मन का मीत’ बना रहे थे। इसमें सुनील दत्त को अपने भाई के किरदार के लिए किसी नए एक्टर की तलाश थी। विनोद खन्ना की पर्सनैलिटी, ऊंची कद-काठी को देखकर सुनील दत्त ने उन्हें वह रोल ऑफर किया। यह फिल्म 1968 में रिलीज हुई और बॉलीवुड में विनोद की एंट्री हुई। जब विनोद खन्ना ने सुनील दत्त का ऑफर कबूल किया तो उनके पिता नाराज हो गए। उन्होंने विनोद पर बंदूक तान दी और कहा कि यदि वे फिल्मों में गए तो वो उन्हें गोली मार देंगे।


1999 में उनको फिल्मों में उनके .0 वर्ष से भी ज्यादा समय के योगदान के लिए फिल्मफेयर के लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित भी किया गया।


 एक समय था जब फैमिली को वक्त देने के लिए विनोद संडे काम नहीं करते थे। ऐसा करने वाले वो शशि कपूर के बाद दूसरे एक्टर थे।
– हालांकि ओशो से प्रभावित होकर उन्होंने अपना पारिवारिक जीवन तबाह कर लिया था।
– 1975 में फिल्मों से संन्यास के बाद विनोद अमेरिका चले गए और वहां 5 साल तक ओशो के माली बनकर रहे।
– 4-5 साल दूर रहने के कारण विनोद का परिवार पूरी तरह टूट गया था। जब वो इंडिया लौटे तो पत्नी उन्हें तलाक देने का फैसला कर चुकी थीं। फैमिली बिखरने के बाद 1987 में विनोद ने फिल्म ‘इंसाफ’ से फिर बॉलीवुड में एंट्री की।
– गीतांजलि से विनोद के दो बेटे अक्षय और राहुल खन्ना हैं।
–दोबारा फिल्मी करियर शुरू करने के बाद विनोद ने 1990 में कविता से शादी की। दोनों का एक बेटा साक्षी और एक बेटी श्रद्धा खन्ना है।


आखरी फिल्म–-राजमाता विजयाराजे सिंधिया के जीवन पर बनी फिल्म ‘एक थी रानी ऐसी भी’ में हेमा मालिनी के साथ विनोद खन्ना की आखिरी फिल्म थी. यह फिल्म 21 अप्रैल को देश भर में रिलीज हुई. इस फिल्म में अभिनेत्री एवं मथुरा लोकसभा सीट से भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने विजयाराजे की भूमिका निभाई है. उनके अलावा, इस फिल्म में विनोद खन्ना, सचिन खेडेकर एवं राजेश शृंगारपुरे भी नजर आएंगे.


अजब संयोग-– बॉलीवुड के शानदार कलाकारों में से एक विनोद खन्ना आज सुबह इस दुनिया को अलविदा कह गए. उनकी सोलो फिल्मों के अलावा भी उनकी कई फिल्मों में उनके साथ नजर आए एक्टर फिरोज खान का निधन भी 27 अप्रैल को हुआ था.
फिरोज खान और विनोद खन्ना फिल्म दयावान, कुर्बानी और शंकी शंम्भू में साथ नजर आए थे. साल 1980 में आई फिल्‍म ‘कुर्बानी’ ने विनोद खन्‍ना के खाते में एक और हिट फिल्म ला दी थी. इस फिल्म में फिरोज खान निर्माता, निर्देशक और एक्टर तीनों भूमिका में थे. इस फिल्म के बाद फिरोज खान और विनोद खन्ना की काफी दोस्ती हो गई थी. विनोद खन्ना की तरह फिरोज खान का निधन भी 27 अप्रैल को हुआ था. फिरोज ने सन 2009 में दुनिया को अलविदा कहा था. 


राजनैतिक कैरियर—
वर्ष 1997 और 1999 में वे दो बार पंजाब के गुरदासपुर क्षेत्र से भाजपा की ओर से सांसद चुने गए। 2002 में वे संस्कृति और पर्यटन के केन्द्रिय मंत्री भी रहे। सिर्फ 6 माह पश्चात् ही उनको अति महत्वपूर्ण विदेश मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री बना दिया गया। वह इस समय भी गुरदासपुर से संसद थे |


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