जानिए स्वतंत्र भारत की कुण्डली को और भारत का वर्ष …6  का भविष्य ...

प्रिय पाठकों /मित्रों , यदि भारत की कुंडली पर चर्चा करे तो भारत की कुंडली उसके स्वत्रंत्रता दिवस के आधार से बनाई जाती है | 

कुंडली विवरण – तिथि 15 अगस्त 1947, 

समय रात्रि 00:00, 

स्थान दिल्ली | 

इससे वृषभ लग्न तथा कर्क राशि की कुंडली बनती है | 

यदि शास्त्रानुसार वृषभ लग्न की प्रकृति पर चर्चा करे तो हम पाते है की वृषभ लग्न का स्वाभाव बड़ा ही शर्मिला, शांति प्रिय, तमाम प्रकार के कष्ट सहने वाला, समझोता करने वाला, दबाव झेल कर भी कुछ ना बोलने वाला, मेहनती व संघर्षरत, पड़ोसियों द्वारा प्रताड़ित, सहज ही मित्र बनाने वाला, किसी के भी विश्वास में आ जाने वाला, भोले स्वाभाव वाला, शोषित व चुप रह कर समाज को ढोने वाला होता है, और यही सब गुण भारत की प्रक्रति व स्वाभाव को दर्शाते है | इसी प्रकार शास्त्रानुसार कर्क राशी की प्रकृति पर चर्चा करे तो हम पाते है की यह एक कुटिल व सफल राजनितिक, बात का धनि , चतुर स्वाभाव वाला होता है | 

15 अगस्त, 1947 को रात्रि 12 बजे आधिकारिक तौर पर नए भारत या यूँ कहें कि विघटन के बाद बचे हुए शेष भारत का नया वजूद सामने आया। देश की असली कुंडली क्या बनायी जाये? क्या 15 अगस्त, 1947 ही भारत देश का वास्तविक उद्भव समय है? इस बात पर विद्वानों में मतभेद हैं, परन्तु यह सत्य है कि उस दिन एक बहुत ही बड़ी और ऐतिहासिक घटना घटी, और वर्तमान में भारत की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, भौगोलिक; अर्थात लगभग सभी परिस्थितियों की नयी परिभाषा गढ़ी गयी। अतः एक पुनर्जन्म तो कहा ही जायेगा। 

अगर ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाये तो 1942 से लेकर 1948 तक का दौर ग्रहों की विनाश लीला का दौर था। भयानक रक्त पात हुआ उस दौर में पूरी पृथ्वी पर, भारत की पूरी धरती रक्तरंजित हो उठी थी। 

देश की जन्म कुंडली के अनुसार 15.08.1947 को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में था जिसके स्वामी शनि हैं। इसलिए भारत को आजादी शनि की महादशा में प्राप्त हुई थी।  शनि की महादशा भारत के लिए शुभ फलदायी रही। शनि की महादशा में 1947 से 1965 तक भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध में दोनों बार भारत को सफलता प्राप्त हुई। उस समय भारत के प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु तथा श्री लाल बहादुर शास्त्री थे। 

भारत देश की कुंडली का वृष लग्न है और योगकारक ग्रह शनि नवम्, दशम का स्वामी होकर तृतीय (पराक्रम भाव) में विराजमान है। 1962 फरवरी में चीन देश ने भारत पर आक्रमण किया तथा उसमें भारत की पराजय हुई। उस समय शनि की महादशा में राहु की अंतर्दशा चल रही थी। भारत की कुंडली में राहु लग्न तथा केतु सप्तम भाव में कालसर्प दोष से ग्रसित होकर बैठे हुए हैं। युद्ध के समय गोचर की स्थिति के अनुसार 04.02.1962 तक मकर राशि में आठ ग्रह राशि से सप्तम भाव में बैठकर जन्म राशि को पूर्ण दृष्टि से देख रहे थे। इसी कारण भारत की पराजय हुई। बुध की महादशा 06.09.1965 से 07.09.1982 तक रही इस अवधि में बुध की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा जनवरी 1969 से दिसंबर 1971 तक रही। उस समय भारत और पाकिस्तान के परस्पर युद्ध में भारत को फिर से विजय प्राप्त हुई तथा पाकिस्तान का विभाजन होकर बांग्ला देश का जन्म हुआ। 

यदि वर्तमान गोचर से चर्चा करे तो, शनि – मंगल की पंचम भाव में कन्या राशी में युति स्थिति को भयावह व विस्फ्टक बनाती है | पंचम भाव ज्ञान व सुख का भाव होता है, अर्थात ज्ञान व सुख का कारक होता है | इन दोनों क्रूर व अति शत्रु ग्रहों की पंचम भाव में युति देश की गरीब, लचर, असहाय जनता के सुख में और भी कमी दर्शाती है | यदि मंगल निकट भविष्य में तुला राशि में जाता भी है तो परिस्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं आने वाला | साथ ही साथ भारत की कुंडली कालसर्प दोष से भी ग्रसित है | जिसके कारण विकास की गति या तो धीमी व अवरुद्ध है, और भ्रष्टाचार, आराजकता, चोरी, बईमानी पुरे चरम पर है | 

भारत की कुंडली वृषभ लगन की है और मंगल का स्थान मिथुन राशि का है,यह बुध की राशि है और मंगल के लिये बद का रूप प्रस्तुत करती है। लेकिन इस मंगल का प्रभाव तकनीक के लिये भी माना जा सकता है,मिथुन राशि से बोलने चालने पहिनने और अपने को प्रदर्शित करने के लिये भी माना जाता है,जब मंगल की युति इस राशि से मिल जाती है तो यह बोलने चालने अपने को प्रदर्शित करने के लिये हिंसक रूप में सामने आता है बोलने के अन्दर खरा स्वभाव और उत्तेजना को देने वाला माना जाता है,यह अपने रूप के अनुसार बद होने के कारण खूनी खेल और खून से सने हुये रूप में प्रदर्शित करने की मान्यता रखता है। चेहरे को कुरूप बनाने के लिये लाल कपडा पहिनने के लिये और हरी भरी धरती पर खूनी रंग फ़ैलाने के लिये भी अपनी मान्यता रखता है। 

मिथुन राशि का स्वामी बुध है,बुध की कारक बकरी को भी हिंसक रूप से देखता है,जो बकरी जैसे रूप को हिंसक देखता हो उसे भेडिया की उपाधि भी देना सही माना जा सकता है,यह अपनी द्रिष्टि के अनुसार पहले चौथे सातवें और आठवें भाव पर प्रभाव डालता है,लेकिन अन्दरूनी रूप में पंचम नवम भाव से भी अपना सम्बन्ध रखता है,इस मंगल के बारे में एक उक्ति बहुत ही मशहूर है कि यह कभी बीच का नही होता है,-“या तो सरासर सांग होजा या तो सरासर मोम हो जा”,सांग एक पत्थर होता है जो केवल टूटने में ही विश्वास रखता है,मोम तो सभी को पता होता है कि जब पिघलता है तो पानी की तरफ़ बहने लगता है,लेकिन मिथुन राशि में होने के कारण इसे दोहरे रूप में देखा जा सकता है,लेकिन दोहरे स्वभाव के प्रति आशा नही की जा सकती है,मिथुन राशि बुध की राशि है और कमन्यूकेशन के प्रति अपना स्वभाव रखती है,मंगल के साथ हो जाने से यह कमन्यूकेशन के अन्दर तकनीक के लिये भी अपनी मान्यता को रखता है,बनाये जाने वाले कपडे और साजो सामान की तकनीक भी यह मंगल मिथुन राशि को देता है। 

यदि हम स्वतंत्र भारत की जन्म कुंडली देखते हैं, तो आप देखेंगे कि केतु सातवें घर में स्थित है।ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महिलायों का स्वामि चंद्रमा, कर्क व शुक्र है। उनकी स्थिति को एक राष्ट्र की कुंडली के सातवें घर में देखा जा सकता है। सातवें घर में केतु का होना संकेत करता है कि महिलायों को अपनी प्रतिष्ठा एवं अपने हकों के लिए संघर्ष करना होगा। इसके साथ ही केतु की स्थिति से इस बात की संभावना देखी जा सकती है कि महिलायों के अधिकारों से संबंधित कानूनों में बदलाव व बिलों में सुधार होगा।महिलायों संबंधित अंदोलन अगले डेढ़ साल के समय में काफी आक्रामक होने की संभावना है एवं भारत में महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संबंधित प्रशासन के साथ संघर्ष करेंगी। 

स्वतंत्र भारत की जन्म कुंडली में बहुत सारे ग्रह कर्क राशि में स्थित हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि पंडित जवाहर लाल नेहरु के बाद श्रीमति इंदिरा गांधी भारत में सबसे अधिक समय (5829 दिन) तक बतौर प्रधान मंत्री कार्यरत रहीं। उसी वक्त, शनि की महादशा चल रही थी। उसके बाद, बुध महादशा चली। स्वतंत्र भारत की कुंडली में शनि व बुध दोनों कर्क राशि में हैं। 

बुध की राशि होने के कारण बोलने चालने की भाषा को यह अपने पराक्रम के रूप में प्रदर्शित करता है और इस स्वभाव से ग्रसित लोगों के लिये गाली देकर बात करना या मार डालने और मिटा देने वाली बात को सामने रख कर चलना,छोटी छोटी बातों में उत्तेजित होने लग जाना और अपने को कमजोर होते हुये भी सूरमा की उपाधि देना भी माना जा सकता है। भारत की कुंडली में दूसरे भाव में होने के कारण यह धन के भाव में अपनी मान्यता को देता है,तकनीक के मामले में जिन लोगों ने कमन्यूकेशन को धन के रूप में देखा है वे ही आज समृद्ध और फ़लीभूत है साथ ही जिन लोगों को कपडे और अन्य किसी प्रकार के साजोसामान बनाने की कला आती है,जो लोग इस मंगल की तकनीक को अपने कार्यों मे प्रयोग में लेते है जैसे कपडे का तकनीकी रूप में काटना बोलने चालने वाली भाषा को तकनीकी रूप में प्रदर्शित करना इसी मंगल की देन है। 

वक्री वृहस्पति की एकादश भाव में अर्थात आय भाव में स्थिति आय में कमी, आर्थिक नुकसान, धन का नाश व क्षय दर्शाता है | यदि वर्तमान दशा की चर्च करे तो सूर्य की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा घरेलु हिंसा, धार्मिक उन्माद, आन्तरिक सुरक्षा में कमी व खतरा, पडोसी राष्ट्रों से तनाव व कष्ट और राजनितिक उथल पुथल को दर्शाता है | कुल मिला कर यह कहा जा सकता है की आने वाला वर्ष भारत व भारत की जनता के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण, अस्थिरता से परिपूर्ण व आर्थिक अनिश्चितता से भरा होगा | wahin यह भी कहा जा सकता है की भारत के युवा वर्ग को अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का अवसर तो मिलेगा परन्तु सफलता हेतु कठिन परिश्रम की आवश्यकता होगी | साथ ही साथ यह भी अवश्य कहा जा सकता है की भारत की नीतियों को अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर समर्थन अवश्य प्राप्त होगा | परन्तु ठोस कदम व उचित सहयोग की कमी रहेगी | पिछले कई वर्ष की भांति कम वर्षा, लचर खेती से किसान बदहाल रहेगा | देश की गरीब जनता पर कर का बोझ और बढेगा | अभी भारत व भारत की जनता को अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर उचित सामान प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ेगा |

तृतीय भाव में पञ्च ग्रहा योग कदम कदम पर भारत व भारतीयों के संघर्ष को दर्शाता है | भारत व भारतीयों की व्यापारिक स्थिति दवादोल व संघर्षपूर्ण रहनेवाली है | इस काल में चोरी करने वाले, झूठ बोलने वाले, नीच कर्म करने वाले, दलाली करने वाले लोगो की भरमार होगी व उन्हें ही सफलता प्राप्त होगी | विद्याथियो को कठिन परिश्रम व एकाग्रता से अध्यन में जुटने की सलाह दी जाती है, क्योकि आने वाला समय भारत व भारतीयों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर और भी चुनोती पूर्ण व कठिन रहने वाला है | 

मंगल पराक्रम के लिये माना जाता है,शक्ति का दाता है,यह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है,मेष में सकारात्मक और वृश्चिक के लिये नकारात्मक माना जाता है। सकारात्मकता के भेद को समझने के लिये केवल इतना ही माना जा सकता है कि जो कारक तत्व सकारात्मक है उनके अनुसार अपने पराक्रम को और शक्ति को खर्च करने वाला माना जाता है,केवल शरीर और वस्तु से ही अपनी औकात दिखाने का कार्य करता है जबकि नकारात्मक का प्रभाव उन्ही कारकों से माना जाता है जो मरी हुयी चीजो और जीवों के अन्दर जान फ़ूंकने का काम कर सकता हो। 

मंगल का स्थान भारत की कुंडली में दूसरे भाव में है,और यह दूसरा भाव दिशाओं से भारत की उत्तरी-पश्चिमी दिशा को इंगित करता है। जिसके अन्दर काश्मीर आदि स्थान माने जाते है। मंगल का रूप हिंसक तभी माना जाता है जब यह अपने बद रूप में हो,यह बुध के भावों में बुध के साथ शनि के भावों में और शनि के साथ तथा राहु केतु की युति में और एक दूसरे के लिये सहयोगी युति के लिये अपना बद रूप लेकर उपस्थित होता है,बद मंगल के लिये लालकिताब का नियम बताता है कि यह भूत प्रेत और पिशाचात्मक शक्तियों से ग्रसित होता है। 

यह मंगल पिछले समय से अपने अपने भावों के अनुसार अपना प्रभाव देता चला आ रहा है,धन के भाव में आने के कारण इसका प्रभाव शेयर बाजार और विदेशी मुद्रा के प्रति भी अपना रवैया खतरनाक ही रखता है,दक्षिण की कोई भी वारदात शेयर बाजार को धराशायी कर देती है और उत्तर की कोई बारदात इस के भाव ऊंचे कर देती है,जब भी यह मेष राशि में आता है या अपनी युति बनाता है तो युद्ध जैसी हालत को पैदा कर देता है,और जब भी भारत की लगन में आता है तो पबलिक को कन्ट्रोल करने के लिये नये नये कानून बनाकर परेशान करने के उपक्रम चालू कर देता है। 

लग्नेश मंगल तीसरे भाव में गुरु के साथ मतलब जनता में उत्साह और जनता धर्म, संस्कृति और ऊर्जा को प्राथमिकता देना चाह रही है। लेकिन लग्न पर केतु मतलब जनता को कष्ट और उसका शोषण। चतुर्थ में सूर्य शनि से दृष्ट मतलब अंतरकलह और बच्चों को कष्ट। शुक्र छठे में सप्तम में शनि-राहु मतलब स्त्रियों को पीड़ा। यानी जनभावना को छोड़ सभी चीजें नकारात्मक।तृतीय भाव में सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, और शनि की युति यह दर्शाती है की देश में महिलाओं का वर्चस्व रहेगा। लेकिन धर्म के ग्रह गुरु के छठे भाव में जाने से देश के स्वधर्म और संस्कृति की हानि भी होगी। साथ ही इस भारत पर कर्ज सदैव बना रहेगा। हालाँकि देश में युवाओं की कभी कमी नहीं रहेगी और उन्हीं के भरोसे देश का भाग्य संवरेगा क्योंकि मंगल की उच्च दृष्टि भाग्य स्थान पर है। 

कुंडली को देखने से मालुम होता हैं कि स्वतंत्र भारत की कुडंली में लग्न स्थान पर वृषभ हैं और धन के स्थान पर मगंल हैं । पाँच ग्रहों की सभा में चंद्र,सूर्य,बुध,शुक्र और शनि तीसरे घर में हैं । शक्तिशाली बृहस्पति छटवें घर में हैं तथा राहु और केतु केन्द्र में हैं । वर्तमान ग्रहों की स्थिति की बात करें तो  बृहस्पति प्रथम गृह में तथा शनि और राहु छटवें घर से गमन कर रहें हैं 

मंगल अन्दरूनी गर्मी का कारक है जिससे भी कोई बात हो जाती है तो अपने स्वभाव के अनुसार अन्दर ही अन्दर सुलगता रहता है और अचानक अपनी विस्फ़ोटकता को जाहिर करता है,जहां भी धर्म स्थान है उन पर यह सबसे पहले अपने आघात को केवल इसलिये दिखाता है कि उसके सप्तम में गुरु की राशि धनु है,धनु राशि का स्वामी गुरु भी इस मंगल से अपनी अन्दरूनी युति को बनाकर रखता है,भारत की कुंडली में गुरु का स्थान छठे भाव में है और वह भाव व्यापार की राशि तुला में है,तुला राशि का गुरु केवल व्यापारियों और जमा करने वाली संस्थाओं जैसे बैंक आदि के बारे में अपनी अन्दरूनी सहायता इस मंगल को प्रदान करता रहता है और इस मंगल को बल मिलता रहता है। 

मंगल की खोजी नजर और कन्ट्रोल करने वाली चौथी नजर भारत के शिक्षा भाव पर है,खेल भाव पर है जल्दी से धन कमाने वाले भावों पर जिनसे लाटरी सट्टा और जुये जैसे कार्य शेयर बाजार और पूंजी को पूंजी से कमाने वाले भाव माने जाते है,जनता के रहने वाले स्थानों की तकनीक और जनता की बुद्धि का मालिक भी बुध है,बुध का भरोसा नही होता है कि कब कौन सा कानून शुरु हो जाये और जो आज बनाया है उसे कल तोडना पड जाये और जनता की पूंजी को कन्ट्रोल तो करता है लेकिन जनता की पूंजी का मालिक भी उत्तर दिशा में विराजमान हो गया है,इसलिये जो भी पूंजी भारत के विकास के लिये आती है वह मंगल की शह पर भारत के उत्तर में ही रह जाती है दक्षिण की तरफ़ जा ही नही पाती है,जब तक वह दक्षिण पहुंचती है तब तक गुरु अपनी युति से उसे केवल जांच और किये जाने वाले कार्यों के लिये अपनी बुद्धि को प्रकट करने लगता है,गुरु जो न्याय का कारक है खुद ही कर्जा दुश्मनी बीमारी और व्यापारिक कारणों में फ़ंसा पडा है,गुरु के पास जो बैंक के स्थान में है व्यापार के मामले में करोडों के केश आज भी भारतीय अदालतों में पेंडिंग है जो केवल बैंक के लेन देन और चैक सम्बन्धी मामले पाये जाते है उसका भी मुख्य कारण इस मंगल की गुप्त नीति है जो जनता को उधार लेने के लिए बाध्य भी करती है और चुकाने के लिये मना भी करती है,या तो जनता को उधार मिल नही पाता है उधार मिल भी जाता है तो जनता उसे चुका नही पाती है |

मंगल हस्ताक्षर के भाव में भी है जो देखो वही प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर करवाने के लिये भागा भागा फ़िरता है। मिथुन राशि का दूसरे भाव का मंगल अपनी सप्तम द्रिष्टि को भारत की कुंडली में अष्टम भाव पर डालता है,यह भाव दूसरे के धन को लेकर अपने द्वारा कमाने का भाव कहा जाता है,इस भाव से मौत के बाद की सम्पत्तियों को भी जाना जाता है,यह भाव अपमान मौत और जान जोखिम के भाव के रूप में भी जाना जाता है,इस भाव के अनुसार जो भी कार्य होते है वे जासूसी के द्वारा करने का भाव भी कहा जाता है,इस मंगल को रुचि भी इन्ही कामों से है जब भी कोई बात होती है तो सीधे से जमीन के नीचे पहुंचाने का कार्य करता है,इस मंगल को जनवरी दो हजार में राहु के द्वारा उसी नजर से देखा गया था जिस नजर से यह मंगल आठवें भाव से देखता है,इस मंगल के अन्दर पश्चिम दिशा में राहु ने वह करेंट भरा था कि पूरा गुजरात दहल गया था।

यही हाल गुरु के द्वारा रिस्ते नातों के लिये माने जाते है,भारत की स्वतंत्रता के बाद जितने भी रिस्ते होते आये है या हो रहे है किसी न किसी प्रकार से अपने अपने अनुसार इस मंगल के कारण उत्तेजना और घरेलू कार्यों की बजह से टूट भी रहे है,गुरु शुक्र के घर में होकर बुध के परमानेंट भाव में पडा है,जज वकील और समाज भारतीय रिस्तों को अन्ग्रेजी कानून के मार्फ़त से ठीक करने में लगा है,शुक्र को कानूनी बल मिलने से स्त्रियां गुरु से नवें भाव में मंगल होने से कानूनी रूप से पुलिसिया बल को प्राप्त करने लगीं है,यह पुलिसिआ बल सीधे से ही मंगल के आगे सूर्य चन्द्र शुक्र बुध राहु को अपने चपेटे में ले लेता है और जो भी शादी के बाद की बातें होती है उनके अन्दर इस मंगल के द्वारा सूर्य से पिता चन्द्र से माता शुक्र से सम्पत्ति और पत्नी बुध से परिवार के द्वारा बोले जाने कहे जाने वाले राहु से पूर्वजों की हस्ती तक नीलामी की कगार पर ले जाकर खडी कर जाती है,लोग इस मंगल के डर से लडकों के विवाह करना भूलते जा रहे है,और जो करते भी है वे विवाह करने के बाद सीधे से अपने लडके को अपने से दूर बिठा देते है कि कहीं बहू के माता पिता सीधे से जाकर अन्दर नही करवा दें। 

मंगल के मिथुन राशि में होने के कारण जो भी अपने दिखाना चाहता है वह अपने पराक्रम से कतई कम नही दिखाना चाहता है,जिसे भी देखो वही अपनी बाहें फ़ुलाये घूमता है,अच्छी बात कहने के बाद भी उसे बुरी लगती है,अक्सर पहले लडाई होती है और उस लडाई में पूर्वजों से लेकर वर्तमान तक का इतिहास बयान कर दिया जाता है,बुध के साथ राहु के आने से जो भी कहा जाता है वह झूठ की नींव पर कहा जाता है।

आप आज़ाद भारत की कुण्डली में देख सकते हैं। लग्नेश शुक्र तीसरे भाव में कई ग्रहों के साथ स्थिति है। वह अस्त भी है, लग्न पर राहु स्थित है। लग्न और लग्नेश पर किसी भी शुभ ग्रह का प्रभाव नहीं है। जाहिर से बात है इस देश की स्थिति कागजों कर तो मजबूत दिख सकती है लेकिन वास्तविकता इससे परे होगी। देश में कभी भी एक पार्टी का शासन नहीं होगा क्योंकि लग्न और लग्नेश पर लगभग सभी ग्रहों का प्रभाव है। लग्नेश शुक्र, चन्द्रमा, बुध, सूर्य और शनि के साथ स्थित है। लग्न पर राहु है और केतु की दृष्टि है। बचे बृहस्पति और मंगल, तो बृहस्पति केतु के उपनक्षत्र में है और केतु सप्तम से लग्न को देख रहा है तथा मंगल राहु के नक्षत्र में है और राहु लग्न पर ही स्थित है। जाहिर सी बात है बहुत से पुजारियों के हो जाने पर मंदिर का विनाश हो जाता है वाली कहावत यहां भी चरितार्थ होगी।

यानी कि जो भी आएगा देश को खोखला कर अपना पेट भरना चाहेगा। हां ये बात अलग है कि कुछ ऐसे ग्रह है जिन पर राहु का नकारत्मक प्रभाव होने के बाद भी वो कुछ अच्छे अच्छे परिणाम दे सकते हैं उनमे से शुक्र और बृहस्पति प्रमुख हैं। शुक्र यानि कि कोई स्त्री, क्योंकि शुक्र लग्नेश है अत: स्त्री को भारतीय होना चाहिए, उसके माता-पिता भी भारतीय होने चाहिए और उसका जन्म भी भारत में हुआ होना चाहिए। दूसरा बृहस्पति यानी कि धर्म और संस्कृति को विधिवत समझने और मानने वाला व्यक्ति। यहां धर्म का अभिप्राय राष्ट्र धर्म से भी है। लेकिन भारत में ऐसे व्यक्ति की चर्चा करना भी गुनाह माना जाता है। तथाकथित सेक्युलर बखेड़ा खड़ा कर देंगे। अब मेरा काम तो केवल बताना है सो मैंने बता दिया ||

यदि ग्रहों की दृष्टि और घटनाओं की समानता को देखा जाये तो ऐसा ही विभत्स और भयानक मंजर महाभारत काल में भी हुआ था, भयानक रक्त पात हुआ था उस समय भी, धरती काँप उठी थी, इतिहासकारों के अनुसार अक्टूबर माह, .104 ईसा पूर्व यह युद्ध हुआ था, उस माह 3 ग्रहण पड़े थे, 6 ग्रह – सूर्य, चन्द्रमा, बुध, गुरु, राहु, शनि – या तो साथ थे, या बहुत करीब थे। सूर्य, राहु से ग्रसित था, उसपर केतु और मंगल एक दूसरे के साथ अंगारक योग बना रहे थे। साथ ही इन दोनों मारक ग्रहों की सीधी दृष्टि, ग्रहण और शनि दृष्टि युत, सूर्य पर थी। परिणाम स्वरूप भीषण युद्ध हुआ, प्राकृतिक आपदाओं का भी ज़िक्र है कहीं-कहीं। यह सब कुछ किसी एक दिन के ग्रहों का परिणाम नहीं था, कई वर्षों से ये भूमिकाएँ बन रही थीं। 

लगभग ऐसा ही कुछ समय था 1942 से 1948 का था, जब भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व , द्वितीय विश्व युद्ध के चपेट में था। 1947 के वर्ष में भी नवम्बर माह में 12 और 28 को सूर्य और चन्द्र ग्रहण पड़े। सूर्य, राहु, बुध, मंगल, चन्द्रमा, और शनि जून माह में एक दूसरे के बहुत ही करीब थे जो कुछ समय पहले और कुछ समय बाद तक भी एक दूसरे के आस पास बने रहे।

वर्तमान में स्वतंत्र भारत की कुंडली में चन्द्रमा की महादशा ( 05 सितंबर 2015  से 05  सितंबर से 2025 ) तक चल रही हैं | उसमे अंतर्दशा मंगल की 06  जुलाई 2016  से आरम्भ हुयी हैं जो की 04  फरवरी 2017  तक चलेगी |

यहाँ चन्द्रमा अपनी राशि कर्क और पुष्य नक्षत्र में तीसरे भाव में अनेक ग्रहों के साथ विराजित हैं |केतु से दृश्य हैं जो की सप्तम भाव में बैठा हैं | तीसरे भाव में चंद्र -शनि मिलकर विष योग का निर्माण कर रहें हैं |यहाँ चंद्रमा की अंश/डिग्री भी बहुत कम हैं 03 :59  ..(संलग्न फोटो ध्यान से देखें)…

यह भारत का 70वाँ स्वतंत्रता वर्ष चल रहा हैं | 15 अगस्त 1947 को भारत में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। तब से लेकर आज तक लगभग सात दशक बीत चुके हैं। इन सत्तर सालों में भारत ने अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं। एक समय जो देश सोने की चिड़िया कहलाता था, उस पर मुगलों से लेकर अंग्रेंजों तक ने बहुत जुल्म ढहाये जिससे देश का आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक ताना बाना बिल्कुल ढहने की कगार पर पंहुच गया। 1947 में 14 अगस्त की रात जब 15 अगस्त में परिवर्तित हुई तो ब्रितानी हुकूमत का परचम नीचे गिरा भारत का तिरंगा शान से लहराने लगा। उस समय देश का नेतृत्व करने वाले लोगों के सामने देश के विकास की बड़ी चुनौति थी और साधन बहुत कम। जैसे तैसे इन सात दशकों में देश ने अपने आप को संभाला है और आज विश्व में अपना अलग मुकाम भी स्थापित किया है। 

वर्ष २०१६ में तकनीक के क्षेत्र में तरक्की करेगा भारत—

भारत की आजादी के समयानुसार भारत की कुंडली वृषभ लग्न चंद्र राशि कर्क है जिसका नक्षत्र पुष्य है। राशि स्वामी चंद्रमा एवं नक्षत्र स्वामी शनि है। इस समय भारत पर चंद्रमा की महादशा चल रही है और अंतर्दशा भी चंद्रमा की ही है। भारत की कुंडली में कुछ अच्छे योग बन रहे हैं जिनमें पंचग्राही योग भारत के पराक्रम व वीरता को बढ़ाने वाला है वर्तमान में जिस प्रकार से भारत विश्व के पटल पर चमक रहा है उससे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। आगे भी इसमें और वृद्धि होने की संभावना है। आकृति वापी योग से धन, ऐश्वर्य, मान-सम्मान विशेषकर कला क्षेत्र में भारत को मिल सकता है। वहीं बृहस्पति का छठे घर में होना सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के परिणाम मिलने के संकेत दे रहा है। बृहस्पति के प्रभाव से एक और हमारे शत्रुओं को हानि होगी तो वहीं दूसरी और अपने ही शत्रु भी बन बैठेंगें। देश के अंदर हुई कुछ घटनाओं से बृहस्पति का यह प्रभाव सपष्ट हो जाता है। यही स्थिति फिलहाल आगे भी बनी रह सकती है। हालांकि सातवें स्थान में केतु के प्रभाव से प्रेम की भावना भी प्रबल होगी और भारत को खोयी हुई प्रतिष्ठा वापस मिलने के अवसर भी प्राप्त हो सकते हैं। इस समय भारत पर चंद्रमा की दशा चल रही है जिसके साथ मंगल भी विराजमान है। यह तकनीकी क्षेत्रों के लिये विशेष रुप से लाभकारी साबित हो सकता है। सैन्य बलों की ओर भी भारत विशेष ध्यान दे सकता है। चंद्रमा का स्वभाव ऐसा होता है कि वह किसी को अपना शत्रु नहीं समझता ऐसे में हम शत्रु देशों के प्रति भी मैत्री का हाथ बढ़ाने के लिये प्रयासरत रहें इसकी संभावनाएं हैं। वहीं लग्न कुंडली व लग्न के अनुसार कन्या राशि में गुरु के आने से शैक्षणिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी हम वैश्विक स्तर पर कुछ अच्छा कर सकते हैं। यदि मंगल की अथाह उर्जा का सही दिशा में प्रयोग किया गया तो निश्चित रुप से भारत तरक्की करेगा। स्वच्छत भारत अभियान, डिजिटल इंडिया, स्कील इंडिया आदि योजनाओं के सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं। जीएसटी जैसे कानून भी पास होने की संभावना हैं।

वर्ष 2016  में आंतरिक कलह हो सकती है बड़ी चुनौति—

भारत की वर्ष कुंडली अनुसार मंगल व शनि का 12वें घर में होना और शनि का मार्गी होना थोड़ा चिंता विषय हो सकता है जिसमें बाहरी शत्रु हम पर हावि हो सकता है, लेकिन इसी स्थान पर मंगल के होने से भारत भी अपने शत्रु को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। वर्ष कुंडली में ही पराक्रम की मुंथा भारत के उत्साह व विश्वास को बढ़ाएगी। लग्न का चंद्रमा मन की गति और नूतन विचारों को सकारात्मक दिशा में ले जायेगा। गुरु का दशम स्थान में होना भारत को एक अच्छे सलाहकार के रुप में स्थापित कर सकता है। वहीं शुक्र, राहु और बुध का योग भाग्य स्थान में होना भारत के लिये परेशानियों का सबब भी हो सकता है। आंतरिक कलह बढ़ने के आसार हैं। बिमारी या आपदा से भी नुक्सान की संभावनाएं हो सकती हैं। सूर्य का अष्टम में होना राजनैतिक तौर पर प्रभावित कर सकता है। हो सकता है विपक्ष सरकार की मुश्किलों को बढ़ा दे या फिर राज्य सरकारों से केंद्र को अपेक्षित सहयोग न मिले। वहीं वृश्चिक राशि वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी वर्तमान में चंद्रमा की दशा चल रही है और चंद्रमा में शनि चल रहा है। यह भी उन्हें लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर करेगा। हालांकि मुश्किलों से तो सभी को गुजरना पड़ता ही है। कुल मिलाकर आने वाला समय भारत के लिए यह बहुत अच्छा है लेकिन आंतरिक कलह और प्राकृतिक आपदाएं सबसे बड़ी चुनौति साबित हो सकती हैं।

जानिए केसा रहेगा यह वर्ष 2016  भारत के लिए–

भारत की आजादी के समयानुसार भारत की चंद्र राशि कर्क है जिसका नक्षत्र पुष्य है। राशि स्वामी चंद्रमा एवं नक्षत्र स्वामी शनि है। इस समय भारत पर चंद्रमा की महादशा चल रही है और अंतर्दशा भी चंद्रमा की ही है। चंद्रमा भारत के अनुकुल है। सभी रचनात्मक क्षेत्रों में भारत के लिए यह उपलब्धियों का साल हो सकता है। चंद्रमा इस समय अति बलशाली है, जो लंबित कार्यों के सिरे चढ़ने की ओर संकेत करता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थायी सदस्यता मिलने के भी आसार हैं। 

कुछ लोग चंद्रमा को स्त्री ग्रह भी मानते हैं, इसलिए महिला सशक्तिकरण की योजनाओं पर विशेष बल दिया जा सकता है। शिक्षा, तकनीक, खेल, व्यवसाय हर क्षेत्र में महिलाएं अपना परचम लहराएंगी व देश का मान बढाने में अपना योगदान देंगी।

चूंकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भारत दोनों पर चंद्रमा की महादशा चल रही है यह बहुत ही शुभ योग है लेकिन इसी साल राहू का परिवर्तित होना देश में आंतरिक कलह, फसाद या प्राकृतिक आपदाओं की ओर संकेत करता है। वहीं काल सर्प दोष के कारण कुछ बनते काम ऐन मंजिल के समीप पंहुच कर बिगड़ जांएगें। विशेषकर खेलों में यह स्थिति हो सकती है।

कुल मिलाकर भारत के लिए यह बहुत ही अच्छा साल रहने वाला है। भारत के सितारे बुलंद हैं लेकिन आंतरिक कलह और प्राकृतिक आपदाएं सबसे बड़ी चुनौति साबित होंगी।

 

 

 

 

 

 

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