फिल्म “अकीरा” की समीक्षा —

बैनर : फॉक्स स्टार स्टुडियोज़

निर्देशक : एआर मुरुगादास

कहानी : सांथा कुमार 

संगीत : विशाल-शेखर

कलाकार : सोनाक्षी सिन्हा, कोंकणा सेन शर्मा, अनुराग कश्यप, अमित साध 

सेंसर सर्टिफिकेट : यूए 

समय अवधि : . घंटे .8 मिनट 52 सेकंड 

एक हिम्मती लड़की के अदम्य साहस की कहानी है ‘अकीरा’ | एआर मुरुगादास उन फिल्मकारों में से हैं जो कमर्शियल सिनेमा के फॉर्मेट में रह कर भी कुछ नया करने की कोशिश करते हैं। हिंदी में वे गजनी और हॉलिडे बना चुके हैं। इस बार उन्होंने हीरोइन को लीड रोल देकर एक्शन मूवी ‘अकीरा’ बनाई है। तमिल में बनी महिला पात्र केन्द्रित ‘मौना गुरू’ की रीमेक यह फिल्म सभी तरह के मसालों से भरपूर है- एक्शन, ड्रामा, स्टंट, इमोशन, ट्विस्ट! 

फिल्म में बताया गया है कि अकीरा संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है ऐसा शक्तिशाली जिसमें शालीनता भी हो। 

इस फिल्म में नायिका का नाम अकीरा है जो न चाहते हुए भी अपराधियों के चंगुल में ऐसी फंस जाती है कि अपनी बेगुनाही के लिए उसे काफी मशक्कत करना पड़ती है। अकीरा में भी एक्शन की भरभार है। हालांकि यह एक्शन हवा-हवाई नहीं है। इन्हें रियल फाइट की तरह रखा गया है। साथ ही यह न्याय प्रणाली की सुस्त चाल की ओर ध्यान इंगित करती है। न्याय में देरी इंसान की जिंदगी तबाह कर देती है और यह ताउम्र एक इंसान के लिए बदनुमा धब्बा भी बन जाती है। यह धब्बे चाहकर भी उसका पीछा नहीं छोड़ते। भले ही वह निर्दोष साबित हो।

 

शांता कुमार द्वारा लिखी कहानी रोमांचक और उतार-चढ़ाव से भरपूर है। समानांतर चलती कहानियों को उन्होंने बहुत ही उम्दा तरीके से एक-दूसरे से जोड़ा है। इंटरवल तक फिल्म तेज रफ्तार से भागती है और सीट से आपको चिपकाए रखती है। इस फिल्म की मुख्य किरदार अकीरा (सोनाक्षी सिन्हा) जोधपुर में रहती है। अकीरा का संस्कृत में अर्थ होता है वह शक्ति जिसमें शालीनता हो। बचपन में उसकी दोस्त पर एसिड अटैक होता है। यह देख अकीरा के पिता उसे जूडो कराटे सीखाते हैं। इसके बाद वह एक लड़के को ऐसा सबक सिखाती है कि तीन वर्ष की उसे सजा होती है। बड़ी होने के बाद वह जोधपुर से पढ़ने के लिए मुंबई जाती है और होस्टल में रहने लगती है। 

 

दूसरी ओर भ्रष्ट पुलिस ऑफिसर राणे (अनुराग कश्यप) और उसके साथियों के सामने एक कार एक्सीडेंट होता है। जब वे डिक्की खोल कर करोड़ों रुपये देखते हैं तो उनकी नीयत डोल जाती है। वे रुपये लेकर चम्पत हो जाते हैं। उनका यह राज राणे की एक महिला दोस्त को पता चल जाता है। धीरे-धीरे कुछ और लोग यह बात जान जाते हैं। राणे और उसके साथी एक-एक कर सबको मारते जाते हैं, लेकिन मामला उलझता जाता है और अकीरा भी इसमें फंस जाती है। अकीरा के पीछे राणे के साथी लग जाते हैं। राबिया (कोंकणा सेन शर्मा) ईमानदार पुलिस ऑफिसर है। वह भी जांच शुरू कर देती है इससे राणे की मुश्किल और बढ़ जाती है।

शांता कुमार द्वारा लिखी कहानी रोमांचक और उतार-चढ़ाव से भरपूर है और सीट से आपको चिपकाए रखती है। अकीरा, राणे और राबिया के किरदार बेहद प्रभावशाली हैं और सभी की एंट्री जबरदस्त है। पहले सीन से ही उनकी छवि दर्शकों के दिमाग में अंकित हो जाती है जो फिल्म देखते समय बहुत काम आती है। कहानी में अगले पल क्या होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है। फिल्म में घटनाचक्र ऐसे घूमता है कि अकीरा पुलिस के चंगुल में फंस जाती है और एनकाउंटर जैसे हालात बन जाते हैं। स्थिति और बिगड़ती है जब अकीरा एनकाउंटर से तो बच निकलती है परंतु उसे पागल घोषित करने के लिए मनोचिकित्सा अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता है। यहां उसे मिलते हैं बिजली के झटके और सलाखों वाली कोठरी। 

 

फिल्म की स्क्रिप्ट काफी इमोशंस से गुजरती हुई एक निष्कर्ष की तरफ बढ़ती है जिसमें एक लड़की को खुद के बचाव के लिए तरह-तरह के सबूत इकट्ठा करने पड़ते हैं. हालांकि, स्क्रिप्ट इंटरवल से पहले ठीक-ठाक ही है लेकिन उसके बाद कहानी किसी और लेवल पर चली जाती है. क्लाइमैक्स को और भी बेहतर बनाया जा सकता था. जिस तरह से फर्स्ट हाफ दिलचस्प था, उसके मुताबिक सेकेंड हाफ फीका रह गया |

फिल्म का सेकंड हाफ उस अपेक्षा पर खरा नहीं उतरता जिसकी उम्मीद पहले हाफ में जागती है। यहां पर निर्देशक सोनाक्षी सिन्हा को हीरो की तरह दिखाने की कोशिश करते हैं जिससे फिल्म बार-बार ट्रेक से उतरती है। सोनाक्षी सिन्हा को पागलखाने में भर्ती किए जाने वाला प्रसंग कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया है। करोड़ों रुपये लूट लिए गए, लेकिन इसकी कोई हलचल नजर नहीं आती। सेकंड हाफ में सोनाक्षी को प्रमुखता दिए जाने की बजाय राबिया और राणा को ज्यादा फुटेज दिए जाते तो रोमांच और बढ़ सकता था। 

निर्देशक के रूप में मुरुगादास का काम अच्छा है। महिला सशक्तिकरण। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ। इस वैचारिक पृष्ठभूमि में ए.आर. मुरगादौस ने अकीरा में ऐक्शनवाला बॉलीवुड तड़का मारा है। सिनेमा यहां इरादों पर भारी है और कहानी फिल्मी फार्मूलों से लैस है। सोनाक्षी सिन्हा यहां हीरो हैं। ज्यादातर समय वे दर्शकों को बांधने में सफल रहे। एक्शन दृश्यों में वे जरूर थोड़ा बहक गए जिसका असर फिल्म पर होता है। 

सोनाक्षी के किरदार  को लार्जर देन लाइफ पेश करने के चक्कर में नुकसान फिल्म का हुआ है। एक्शन के साथ उन्होंने इमोशन को भी अच्छे से जोड़ा है चाहे वो सोनाक्षी के भाई की पत्नी का दबदबा हो या मूक-बधिर बच्चों के प्रसंग हो। उन्होंने फिल्म को फालतू खींचने की कोशिश नहीं की है। रोमांस की जरूरत नहीं थी तो उन्होंने कोई समझौता नहीं किया। 

 

अभिनय: —

फिल्म में एक्शन और इमोशनल , दोनों ही रूप को सोनाक्षी ने बखूबी निभाया है. भ्रष्ट पुलिस वाले के रोल में अनुराग कश्यप ने काफी उम्दा अभिनय किया है. कोंकणा सेन का किरदार काफी दिलचस्प है और अमित साद और बाकी सह कलाकारों का काम भी सहज है| फिल्म के सारे कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया। सोनाक्षी सिन्हा को एक्शन करते देखना सुखद लगा। एंग्री यंग वूमैन के रोल में वे फिट लगीं। उन्हें निर्देशक ने संवाद कम दिए और ज्यादातर समय उन्हें अपने एक्सप्रेशन से ही काम चलाना पड़ा।  

अनुराग कश्यप पहले सीन से ही अपनी छाप छोड़ते हैं। हालांकि उन पर नाना पाटेकर का असर दिखा। गर्भवती और ईमानदार पुलिस ऑफिसर के रूप में कोंकणा सेन ने प्रभावशाली अभिनय किया। काश उनको और ज्यादा दृश्य दिए जाते। अमित सध, अतुल कुलकर्णी सहित तमाम कलाकारों का अभिनय उम्दा है।  अक्षय कुमार ने निर्माता से दोस्ती निभाई और अतिथि कलाकार बने हैं ।

 

संगीत:—

विशाल-शेखर की जोड़ी ने फिल्म के लिए बेहतरीन संगीत दिया है और इमोशंस के हिसाब से संगीत फिल्म को बांधे रखता है| सिनेमा हाल से निकलते हुए ‘रज रज’ औऱ ‘बादल’ गाना जुबान पर चढ़ जाता है।

परफेक्ट फिल्म न होने के बावजूद ‘अकीरा’ आपको बांधकर रखती है और एक्शन-थ्रिलर के शौकीनों को पसंद आ सकती है। यह पास टाइम फिल्म है, देख सकते हैं, नहीं देखेंगे तो भी कोई फर्क तो नहीं ही पड़ेगा।

 

 

 

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