गणेश चतुर्थी पर्व …6-

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल चतुर्थी को हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार गणेश चतुर्थी मनाया जाता है। गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी का आविर्भाव हुआ था।माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकट या संकटा चौथ कहलाती है। इसे वक्रतुंडी चतुर्थी, माही चौथ, तिल अथवा तिलकूट चतुर्थी व्रत भी कहते हैं। मंगलमूर्ति और प्रथम पूज्य भगवान गणेश को संकटहरण भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस चतुर्थी के दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से जहां सभी कष्ट दूर हो जाते हैं वहीं इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति भी होती है। पौराणिक मान्यता है कि दस दिवसीय इस उत्सव के दौरान भगवान शिव और पार्वती के पुत्र गणेश पृथ्वी पर रहते हैं। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। उन्हें बुद्धि, समृद्धि और वैभव का देवता मान कर उनकी पूजा की जाती है।

शिवपुराणमें भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्तिगणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेशपुराणके मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गण + पति = गणपति। संस्कृतकोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकोंके स्वामी।

गणेशोत्सव की शुरुआत हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भादों माह में शुक्ल चतुर्थी से होती है। इस दिन को गणेश चतुर्थी कहा जाता है। दस दिन तक गणपति पूजा के बाद आती है अनंत चतुर्दशी जिस दिन यह उत्सव समाप्त होता है। पूरे भारत में गणेशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।

गणपति उत्सव का इतिहास वैसे तो काफी पुराना है लेकिन इस सालाना घरेलू उत्सव को एक विशाल, संगठित सार्वजनिक आयोजन में तब्दील करने का श्रेय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक लोकमान्य तिलक को जाता है।

‘सन् 189. में तिलक ने ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच की दूरी खत्म करने के लिए ऐलान किया कि गणेश भगवान सभी के देवता हैं। इसी उद्देश्य से उन्होंने गणेशोत्सव के सार्वजनिक आयोजन किए और देखते ही देखते महाराष्ट्र में हुई यह शुरुआत देश भर में फैल गई। यह प्रयास एकता की एक मिसाल साबित हुआ।’

गणेश चतुर्थी पर्व 2016—-

भगवान विनायक के जन्मदिवस पर मनाया जानेवाला यह महापर्व महाराष्ट्र सहित भारत के सभी राज्यों में हर्सोल्लास पूर्वक और भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी का पर्व गणेश चतुर्थी व्रत 05  सितंबर,2016  (सोमवार) को मनाया जाएगा।

 

 

 

 

 

गणेश चतुर्थी की कथा—-

कथानुसार एक बार मां पार्वती स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसका नाम गणेश रखा। फिर उसे अपना द्वारपाल बना कर दरवाजे पर पहरा देने का आदेश देकर स्नान करने चली गई। थोड़ी देर बाद भगवान शिव आए और द्वार के अन्दर प्रवेश करना चाहा तो गणेश ने उन्हें अन्दर जाने से रोक दिया। इसपर भगवान शिव क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से गणेश के सिर को काट दिया और द्वार के अन्दर चले गए। जब मां पार्वती ने पुत्र गणेश जी का कटा हुआ सिर देखा तो अत्यंत क्रोधित हो गई। तब ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देवताओं ने उनकी स्तुति कर उनको शांत किया और भोलेनाथ से बालक गणेश को जिंदा करने का अनुरोध किया। महामृत्युंजय रुद्र उनके अनुरोध को स्वीकारते हुए एक गज के कटे हुए मस्तक को श्री गणेश के धड़ से जोड़ कर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।

गणेश चतुर्थी पूजा विधि —

इस महापर्व पर लोग प्रातः काल उठकर सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी के गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर षोडशोपचार विधि से उनका पूजन करते हैं। पूजन के पश्चात् नीची नज़र से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को दक्षिणा देते हैं। इस पूजा में गणपति को 21 लड्डुओं का भोग लगाने का विधान है। मान्यता के अनुसार इन दिन चंद्रमा की तरफ नही देखना चाहिए।

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हिन्दू धर्म शास्त्रों में के अनुसार भगवान श्री गणेश कई रुपों में अवतार लेकर प्राणीजनों के दुखों को दूर करते हैं. श्री गणेश मंगलमूर्ति है, सभी देवों में सबसे पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है. श्री गणेश क्योकि शुभता के प्रतीक है. पंचतत्वों में श्री गणेश को जल का स्थान दिया गया है. बिना गणेश का पूजन किए बिना कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती है. विनायक भगवान का ही एक नाम अष्टविनायक भी है ||

इनका पूजन व दर्शन का विशेष महत्व है.  इनके अस्त्रों में अंकुश एवं पाश है, चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं, उनका लंबोदर रूप “समस्त सृष्टि उनके उदर में विचरती है” का भाव है बड़े-बडे़ कान अधिक ग्राह्यशक्ति का तथा आँखें सूक्ष्म तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं, उनकी लंबी सूंड महाबुद्धित्व का प्रतीक है ||

प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश के लिए जो व्रत किया जाता है उसे गणेश चतुर्थी व्रत कहते हैं। इस बार गणेश चतुर्थी व्रत 05  सितंबर,2016  (सोमवार)  को है। इस दिन व्रत इस प्रकार करें-

– सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्यकर्म से शीघ्र निवृत्त हों लें ।

– शाम के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।

– संकल्प मंत्र के बाद श्रीगणेश की षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र (ऊँ गं गणपतयै नम:) बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं।

– गुड़ या बूंदी के 21 लड्डूओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास ही रखें और 5 ब्राह्मण को दान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें।

– पूजा में भगवान श्री गणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। 

– चंद्रमा के उदय होने पर पंचोपचार पूजा करें व अध्र्य दें तत्पश्चात भोजन करें। 

व्रत का आस्था और श्रद्धा से पालन करने पर श्री गणेश की कृपा से मनोरथ पूरे होते हैं और जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त होती है।

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प्रथम पूजनीय श्री गणेश जी को विनायक, विघ्नेश्वर, गणपति, लंबोदर के नाम से भी जाना जाता हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार किसी भी कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। गणेश जी की पूजा-साधना के लिए कुछ मंत्र निम्न हैं—

भगवान गणेश जी के मंत्र—-

किसी भी कार्य के प्रारंभ में गणेश जी को इस मंत्र से प्रसन्न करना चाहिए:

श्री गणेश मंत्र ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।

om vakratunra mahakaya surya koti samaprabha.

Nirvighnam kuru me deva, sarva karyesu sarvada

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गणेश जी को प्रसन्न करने का एक मंत्र निम्न भी है:—-

ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।

Om ekadantaya vihe vakratundsya dhimahi tanno dantih pracodayat

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Ganesh Mantra for Success in Study:—-

निम्न मंत्र का जाप करने से गणेश जी बुद्धि प्रदान करते हैं:

श्री गणेश बीज मंत्र — “”ऊँ गं गणपतये नमः “”।।

Is mantra ka jaap krne se ganesh ji budhhi prdan krte hain.

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Ganesh Mantra for Success in Business:—

गणेश जी के इस मंत्र द्वारा सिद्धि की प्राप्ति होती है।

एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥

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Ganesh ji ke is mantra dvara shiddhi ki prapti hoiti hai

Ekadantaya vidmahe, vakratundaya dhimahi, tanno danti pracodayat

Mahakaranya vidmahe, vakratundaya dhimahi, tanno danti pracodayat

Gajananaya vidmahe, vakratundaya dhimahi, tanno danti pracodayat

Shri Vakratunda Mahakaya Suryakoti Samaprabha

Nirvighnam Kuru Me Deva Sarva-Kaaryeshu Sarvada

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Ganesh Mantra To Remove ऑब्स्टैकल्स—-

मंगल विधान और विघ्नों के नाश के लिए गणेश जी के इस मंत्र का जाप करें।

गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।

द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥

विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌॥

विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌।

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Mangal vidhana aur vighno ke naash ke liye ganesh ji ke is mantra ka jaap kare.

Ganapativighnarajo lambatundo gajananah

Dvaimaturasca heramba ekadanto ganadhipah.

Vinayakascarukarnan pasupalo bhavatmajaah.

Dvadasaitani namani pratarut thaya yah pathet.

Visvam tasya bhavedvasyam na cha vighnam bhavet kvacit.

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पूजा के दौरान गणेश जी के निम्न मंत्रों का प्रयोग करना चाहिए:—

इस मंत्र के द्वारा भगवान गणेश को दीप दर्शन कराना चाहिए-

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया |

दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् |

भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने |

त्राहि मां निरयाद् घोरद्दीपज्योत

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Is mantra ke dwara Bhagvan Ganesh ko deep darshan karana chahiye-

Saajyam Ch Vartisanyuktam Vahninaa Yojitam Maya |

Deepam Grihaan Devesh Trailokyatimiraapaham ||

Bhaktya Deepam Prayachchhami Devaay Parmaatmane |

Traahi Maam Niryaad Ghorddheepajyotirnamostu Te ||

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भगवान गणपति की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें सिन्दूर अर्पण करना चाहिए-

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् |

शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ||

Bhagvan Ganpati ki pooja ke dauran is mantra ko padhte huye unhe sindur arpan karna chahiye-

Sinduram Shobhanam Raktam Saubhaagyam Sukhvardhnam |

Shubhdam Kaamdam Chaiv Sinduram Pratigrihyataam ||

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इस मंत्र के द्वारा भगवान गणेश को नैवेद्य समर्पण करना चाहिए-

नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरू |

ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गरतिम् ||

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च |

आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद

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Is mantra ke dwara Bhagvan Ganesh ko naivedya samarpan karna chahiye-

Naivedyam Grihyataam Dev Bhaktim Me Hyachalaam Kuru |

Eepsitam Me Varam Dehi Paratra Ch Paraam Gartim ||Sharkarakhandkhaadyaani Dadhiksheerghritaani Ch |

Aahaaram Bhakshyabhojyam Ch Naivedyam Pratigrihyataam ||

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भगवान गणेश की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें पुष्प-माला समर्पण करना चाहिए-

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो |

मयाहृतानि पुष्पाणि गृह्यन्तां पूजनाय भोः ||

Bhagvan Ganesh ki pooja karte samay is mantra ko padhte huye unhe pushp-mala samarpan karna chahiye-

Maalyaadeeni Sugandheeni Maaltyaadeeni Vai Prabho |

Mayahritaani Pushpaani Grihyantaam Poojanaaybhoh ||

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गणपति पूजन के दौरान इस मंत्र के द्वारा भगवान गणेश को यज्ञोपवीत समर्पण करना चाहिए-

नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् | उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ||

Ganpati poojan ke dauran is mantra ke dwara Bhagvan Ganesh ko yagyopaveet samarpan karna chahiye-

Navbhistantubhiryuktam trigunam devtaamayam |

Upveetam maya dattam grihaan parmehsar ||

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पूजा के दौरान इस मंत्र के द्वारा भगवान गजानन श्री गणेश को आसन समर्पण करना चाहिए-

नि षु सीड गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम् |

न ऋते त्वत् क्रियते किंचनारे महामर्कं मघवन्चित्रमर्च ||

Pooja ke dauran is mantra ke dwara Bhagvan Gajaanan Shri Ganehs ko aasan samarpan karna chahiye-

Ni Shu Seed Ganpate Ganeshu Tvaamaahurvipratamam Kaveenaam

Na Rite Tvat Kriyate Kinchanaare Mahaamarkam Maghvanchitramarch ||

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गणेश पूजा के उपरान्त इस मंत्र के द्वारा भगवान् भालचंद्र को प्रणाम करना चाहिए-

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय |

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ||

Ganesh pooja ke upraant is mantra ke dwara Bhagvan Bhalchand ko pranaam karna chahiye-

Vighneshwaraay Vardaay Surpriyaay Lambodaraay Sakalaay Jagddhitaay |

Naagaananaay Shrutiyagyavibhushitaay Gaurisutaay Gananaath Namo Namaste ||

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विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा करते समय इस मंत्र के द्वारा उनका आवाहन करना चाहिए-

गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे |

निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ||

Vighnharta Bhagvan Ganesh ki pooja karte samay is mantra ke dwara unka aavahan karna chahiye-

Ganaanaam Tva Ganpatim Havamahe Prayaanaam Tva Priyapatim Havamahe |

Nidheenaam Tva Nidhipatim Havamahe Vaso Mam Aahamajaani Garbhdhamaa Rvamajaasi Garbhdham ||

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इस मंत्र के द्वारा प्रातः काल भगवान श्री गणेश जी का स्मरण करना चाहिए-

प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम् |

तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयोः शिवाय ||

Is mantra ke dwara pratah kaal Bhagvan Shri Ganesh ka smaran karna chahiye-

Praatarnamaami Chaturaananavandyamaanamichchhanukoolmakhilam Ch Varam Dadaanam |

Tam Dundilam Dvirasnaadhipayagyasutram Putram Vilaaschaturam Shivayoh Shivaay.

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गणपति पूजन के समय इस मंत्र से भगवान गणेश जी का ध्यान करना चाहिए-

खर्व स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम |

दंताघातविदारितारिरूधिरैः सिन्दूरशोभाकरं वन्दे शलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम् ||

Ganpati poojan ke samay is mantra se Bhagvan Ganesh ka dhyan karna chahiye-

Kharv Sthoolatanum Gajendravadanam Lambodaram Sundaram Prasyandanmadagandhalubdhmadhupavyaalolagandasthalam |

Dantaaghaatavidaareetaarirudhiraih Sindurashobhakaram Vande Shalsutaasutam Ganpatim Siddhipradam Kaamdam ||

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श्री गणेश चतुर्थी पूजन—-

इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान शिव तथा पार्वती की पूजा भी गणेश जी के साथ करें. सुबह के समय आप अपने पूजा स्थान पर भगवान गणेश की पुजा कर सकते हैं अथवा घर के समीप बने किसी शिवालय में जाकर गणेश जी के साथ शिव भगवान व माता पार्वति की पूजा करें. पूजा में गणेश जी को विधिवत तरीके से धूप-दीप दिखाकर मंत्रों का जाप या गणेश स्तोत्र का पाठ आदि किया जा सकता है. प्रात: श्री गणेश की पूजा करने के बाद, दोपहर में गणेश के बीजमंत्र ऊँ गं गणपतये नम: का जाप करना चाहिए. संध्या समय में सूर्यास्त से पहले गणेश संकष्ट चतुर्थी व्रत की कथा की जाती है, कथा करते अथवा सुनते समय स्वच्छ वस्त्र धारण करें. स्वच्छ आसन पर विराजें. हाथ में चावल और दूर्वा लेकर कथा सुनें. कथा सुनते समय एक लोटे अथवा गिलास में पानी भरकर अपने पास रखें. उस लोटे अथवा गिलास पर रोली से पांच या सात बिन्दी लगा दें और उसके चारों ओर मौली का धागा बांध दें. कथा सुनने के पश्चात पानी से भरा गिलास अथवा लोटे के पानी को आप सूर्य को अर्पित कर दें. यदि सूर्य अस्त हो गया तब आप पानी पौधों में डाल दें. हाथ में लिए गए चावल तथा दूर्वा को एक चुन्नी अथवा साडी़ या साफ रुमाल में बाँधा लिया जाता है और रात में चन्द्रमा को अर्ध्य देते समय उन्हीं चावल तथा दूर्वा को हाथ में लेकर गणेश जी व चन्द्र भगवान का ध्यान करते हुए अर्ध्य दिया जाता है. कुछ स्थानों पर इस दिन तिल खाने का भी विधान मिलता है. चीनी अथवा गुड़ के साथ तिल को मिलाकर पीसा या कूटा जाता है. इसे तिलकुट के नाम से जाना जाता है. कथा सुनते समय इस तिलकूट को एक

पात्र में या कटोरी में भरकर व्यक्ति अपने समीप रखता है और हाथ में चावल के स्थान पर दूर्वा के साथ तिल रखा जाता है. कथा सुनने के उपरान्त जल को सूर्यदेव अथवा पौधों को दे दिया जाता है. कथा सुनते समय जो तिल तथा दूर्वा हाथ में ली जाती है उसे साडी़ या चुन्नी या साफ रूमाल में बाँध कर रखा जाता है. रात में चन्द्रमा को अर्ध्य देते समय इसी दूर्वा व तिल को हाथ में लेकर गणेश जी तथा चन्द्र भगवान का ध्यान करते हुए अर्ध्य दिया जाता हैं.

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श्री गणेश चतुर्थी व्रत कथा—

 

श्री गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है. कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थें. वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड खेलने को कहा. भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये. परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा?

इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बना, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी. और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है. परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है. इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता.

यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया. खेल तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गई. खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया. यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई. और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व किचड में पडे रहने का श्राप दे दिया. बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऎसा नहीं किया. बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगें, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई.

ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं. नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालुम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया. उसकी श्रद्वा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए. और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा. बालक ने कहा की है विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों.

बालक को यह वरदान दे, श्री गणेश अन्तर्धान हो गए. बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया. और अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई. उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गई. देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया. इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी. वह समाप्त होई.

यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई. यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई. माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया. व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें. उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है.

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गणेश चौथ व्रत का महत्व—

श्री गणेश चतुर्थी का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसकी बुद्धि और ऋषि-सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विध्न बाधाओं का भी नाश होता है. सभी तिथियों में चतुर्थी तिथि श्री गणेश को सबसे अधिक प्रिय होती है.

संकष्टी चतुर्थी का बहुत महत्त्व है. क्या  आप जानते है ,कि प्रत्येक माह में  दो बार गणेश चौथ आती है। एक शुक्ल पक्ष मई एक कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है.माघ मास  की संकष्टी चतुर्थी का बहुत महत्त्व है,इसे सकट  चौथ कहते है. इसी प्रकार जब विनायक चतुर्थी भाद्रपदा

में  आती है, तो इस गणेश चतुर्थी पर  श्री विनायक का जन्मदिन मानते है. जब संकष्टी चतुर्थी मंगलवार को आती है तो इसे अंगारकी चतुर्थी कहते है.

माह के कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन को संकष्टी चौथ के नाम से भी जाना जाता है. इस तिथि समय रात्री को चंद्र उदय होने के पश्च्यात चंद्र उदित होने के बाद भोजन करे तो अति उत्तम रहता है. तथा रात में चन्द्र को अर्ध्य देते हैं.

हिन्दू धर्म शास्त्रों में के अनुसार भगवान श्री गणेश कई रुपों में अवतार लेकर प्राणीजनों के दुखों को दूर करते हैं. श्री गणेश मंगलमूर्ति है, सभी देवों में सबसे पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है. श्री गणेश क्योकि शुभता के प्रतीक है. पंचतत्वों में श्री गणेश को जल का स्थान दिया गया है. बिना गणेश का पूजन किए बिना कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती है | 

इनका पूजन व दर्शन का विशेष महत्व है.  इनके अस्त्रों में अंकुश एवं पाश है, चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं, उनका लंबोदर रूप “समस्त सृष्टि उनके उदर में विचरती है” का भाव है बड़े-बडे़ कान अधिक ग्राह्यशक्ति का तथा आँखें सूक्ष्म तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं, उनकी लंबी सूंड महाबुद्धित्व का प्रतीक है.

गणेश चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा का विधान है. श्री गणेश सुख सम्बृद्धि के देवता है. प्रथम पूजनीय भगवान गणेश बुद्धि के देवता  है।  अपने नाम के ही अनुरूपगणेश सब विघ्नों /बाधाओं को हरने वाले है. ऐसी मानता है की  जो व्यक्ति गनेश चतुर्थी का व्रत करता है, उसकी सारी परेशानियों को श्री गणेश हर लेते है |

श्री गणेश चतुर्थी के दिन श्री विध्नहर्ता की पूजा- अर्चना और व्रत करने से व्यक्ति के समस्त संकट दूर होते है. 

सभी 12 माह में पड़ने वाली चतुर्थियों में माघ, श्रावण, भाद्रपद और मार्गशीर्ष माह में पडने वाली चतुर्थी का व्रत करना  विशेष कल्याणकारी रहता है | मंगलमूर्ति और प्रथम पूज्य भगवान गणेश को संकटहरण भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस चतुर्थी के दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से जहां सभी कष्ट दूर हो जाते हैं वहीं इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति भी होती है।

ज्योतिषियों और पंडितों का कहना है कि इस दिन तिल दान करने का महत्व होता है। इस दिन गणेशजी को तिल के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक देवी-देवताओं में सर्वोच्च स्थान रखने वाले विघ्न विनाशक भगवान गणेश की पूजा-अर्चना जो लोग नियमित रूप से करते हैं, उनकी सुख-समृद्घि में बढ़ोतरी होती है। पुराणों में संकट चतुर्थी का विशेष महत्व बताया गया है। भगवान गणेश की अर्चना के साथ चंद्रोदय के समय अर्घ्य दिया जाता है। खासकर महिलाओं के लिए इस व्रत को उपयोगी माना गया है।

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गणेश संकट चौथ व्रत का महत्व—

श्री गणेश चतुर्थी का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसकी बुद्धि और ऋषि-सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विध्न बाधाओं का भी नाश होता है. सभी तिथियों में चतुर्थी तिथि श्री गणेश को सबसे अधिक प्रिय होती है.

श्री गणेश संकट चतुर्थी पूजन—

संतान की कुशलता की कामना व लंबी आयु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए, व्रत का आरंभ तारों की छांव में करना चाहिए व्रतधारी को पूरा दिन अन्न, जल ग्रहण किए बिना मंदिरों में पूजा अर्चना करनी चाहिए और बच्चों की दीर्घायु के लिए कामना करनी चाहिए. इसके बाद संध्या समय पूजा की तैयारी के लिए गुड़, तिल, गन्ने और मूली को उपयोग करना चाहिए. व्रत में यह सामग्री विशेष महत्व रखती है, देर शाम चंद्रोदय के समय व्रतधारी को तिल, गुड़ आदि का अ‌र्घ्य देकर भगवान चंद्र देव से व्रत की सफलता की कामना करनी चाहिए ||

माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत लोक प्रचलित भाषा में इसे सकट चौथ कहा जाता है. इस दिन संकट हरण गणेशजी तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है, यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है. इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं गणेशजी की पूजा की जाती है और कथा सुनने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही व्रत खोला जाता है || इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान शिव तथा पार्वती की पूजा भी गणेश जी के साथ करें. सुबह के समय आप अपने पूजा स्थान पर भगवान गणेश की पुजा कर सकते हैं अथवा घर के समीप बने किसी शिवालय में जाकर गणेश जी के साथ शिव भगवान व माता पार्वति की पूजा करें. पूजा में गणेश जी को विधिवत तरीके से धूप-दीप दिखाकर मंत्रों का जाप या गणेश स्तोत्र का पाठ आदि किया जा सकता है. संध्या समय में सूर्यास्त से पहले गणेश संकष्ट चतुर्थी व्रत की कथा की जाती है, कथा करते अथवा सुनते समय स्वच्छ वस्त्र धारण करें. स्वच्छ आसन पर विराजें. हाथ में चावल और दूर्वा लेकर कथा सुनें. कथा सुनते समय एक लोटे अथवा गिलास में पानी भरकर अपने पास रखें. उस लोटे अथवा गिलास पर रोली से पांच या सात बिन्दी लगा दें और उसके चारों ओर मौली का धागा बांध दें. कथा सुनने के पश्चात पानी से भरा गिलास अथवा लोटे के पानी को आप सूर्य को अर्पित कर दें. यदि सूर्य अस्त हो गया तब आप पानी पौधों में डाल दें. हाथ में लिए गए चावल तथा दूर्वा को एक चुन्नी अथवा साडी़ या साफ रुमाल में बाँधा लिया जाता है और रात में चन्द्रमा को अर्ध्य देते समय उन्हीं चावल तथा दूर्वा को हाथ में लेकर गणेश जी व चन्द्र भगवान का ध्यान करते हुए अर्ध्य दिया जाता है. कुछ स्थानों पर इस दिन तिल खाने का भी विधान मिलता है. चीनी अथवा गुड़ के साथ तिल को मिलाकर पीसा या कूटा जाता है. इसे तिलकुट के नाम से जाना जाता है. कथा सुनते समय इस तिलकूट को एक पात्र में या कटोरी में भरकर व्यक्ति अपने समीप रखता है और हाथ में चावल के स्थान पर दूर्वा के साथ तिल रखा जाता है. कथा सुनने के उपरान्त जल को सूर्यदेव अथवा पौधों को दे दिया जाता है. कथा सुनते समय जो तिल तथा दूर्वा हाथ में ली जाती है उसे साडी़ या चुन्नी या साफ रूमाल में बाँध कर रखा जाता है. रात में चन्द्रमा को अर्ध्य देते समय इसी दूर्वा व तिल को हाथ में लेकर गणेश जी तथा चन्द्र भगवान का ध्यान करते हुए अर्ध्य दिया जाता हैं||

प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात्‌ व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है।

जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-

‘सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥’

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जानिए भगवान् गणेश के 108 नाम–

भगवान श्री गणेश को हिन्दू धर्म में प्रथम पूजनीय माना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक शुभ कार्य से पहले सर्वप्रथम भगवान गणेश के पूजन का विधान है। इनकी सवारी मूषक यानि चूहा और प्रिय भोग मोदक (लड्डू) है।

हाथी जैसा सिर होने के कारण भगवान गणेश को गजानन भी कहा जाता है। शिवपुत्र, गौरी नंदन जैसे नामों से साथ गणेश जी को विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है जैसे मुंबई में गणेश जी को गणपति बप्पा मोरया के नाम से जाना जाता है। गणेश जी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। गणेश जी के कुछ प्रमुख नाम निम्न हैं:

गणेश नामवली-108—-

1. बालगणपति : सबसे प्रिय बालक

2. भालचन्द्र : जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो

3. बुद्धिनाथ : बुद्धि के भगवान

4. धूम्रवर्ण : धुंए को उड़ाने वाला

5. एकाक्षर : एकल अक्षर

6. एकदन्त : एक दांत वाले

7. गजकर्ण : हाथी की तरह आंखें वाला

8. गजानन : हाथी के मुख वाले भगवान

9. गजनान : हाथी के मुख वाले भगवान

10. गजवक्र : हाथी की सूंड वाला

11. गजवक्त्र : जिसका हाथी की तरह मुँह है

12. गणाध्यक्ष : सभी गणों के मालिक

13. गणपति : सभी गणों के मालिक

14. गौरीसुत : माता गौरी के पुत्र

15. लम्बकर्ण : बड़े कान वाले

16. लम्बोदर : बड़े पेट वाले

17. महाबल : बलशाली

18. महागणपति : देवो के देव

19. महेश्वर : ब्रह्मांड के भगवान

20. मंगलमूर्त्ति : शुभ कार्य के देव

21. मूषकवाहन : जिसका सारथी चूहा

22. निदीश्वरम : धन और निधि के दाता

23. प्रथमेश्वर : सब के बीच प्रथम आने वाले

24. शूपकर्ण : बड़े कान वाले

25. शुभम : सभी शुभ कार्यों के प्रभु

26. सिद्धिदाता : इच्छाओं और अवसरों के स्वामी

27. सिद्दिविनायक : सफलता के स्वामी

28. सुरेश्वरम : देवों के देव

29. वक्रतुण्ड : घुमावदार सूंड

30. अखूरथ : जिसका सारथी मूषक है

31. अलम्पता : अनन्त देव

32. अमित : अतुलनीय प्रभु

33. अनन्तचिदरुपम : अनंत और व्यक्ति चेतना

34. अवनीश : पूरे विश्व के प्रभु

35. अविघ्न : बाधाओं को हरने वाले

36. भीम : विशाल

37. भूपति : धरती के मालिक

38. भुवनपति : देवों के देव

39. बुद्धिप्रिय : ज्ञान के दाता

40. बुद्धिविधाता : बुद्धि के मालिक

41. चतुर्भुज : चार भुजाओं वाले

42. देवादेव : सभी भगवान में सर्वोपरी

43. देवांतकनाशकारी : बुराइयों और असुरों के विनाशक

44. देवव्रत : सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले

45. देवेन्द्राशिक : सभी देवताओं की रक्षा करने वाले

46. धार्मिक : दान देने वाला

47. दूर्जा : अपराजित देव

48. द्वैमातुर : दो माताओं वाले

49. एकदंष्ट्र : एक दांत वाले

50. ईशानपुत्र : भगवान शिव के बेटे

51. गदाधर : जिसका हथियार गदा है

52. गणाध्यक्षिण : सभी पिंडों के नेता

53. गुणिन : जो सभी गुणों के ज्ञानी

54. हरिद्र : स्वर्ण के रंग वाला

55. हेरम्ब : माँ का प्रिय पुत्र

56. कपिल : पीले भूरे रंग वाला

57. कवीश : कवियों के स्वामी

58. कीर्त्ति : यश के स्वामी

59. कृपाकर : कृपा करने वाले

60. कृष्णपिंगाश : पीली भूरि आंख वाले

61. क्षेमंकरी : माफी प्रदान करने वाला

62. क्षिप्रा : आराधना के योग्य

63. मनोमय : दिल जीतने वाले

64. मृत्युंजय : मौत को हरने वाले

65. मूढ़ाकरम : जिनमें खुशी का वास होता है

66. मुक्तिदायी : शाश्वत आनंद के दाता

67. नादप्रतिष्ठित : जिसे संगीत से प्यार हो

68. नमस्थेतु : सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले

69. नन्दन : भगवान शिव का बेटा

70. सिद्धांथ : सफलता और उपलब्धियों की गुरु

71. पीताम्बर : पीले वस्त्र धारण करने वाला

72. प्रमोद : आनंद

73. पुरुष : अद्भुत व्यक्तित्व

74. रक्त : लाल रंग के शरीर वाला

75. रुद्रप्रिय : भगवान शिव के चहीते

76. सर्वदेवात्मन : सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकर्ता

77. सर्वसिद्धांत : कौशल और बुद्धि के दाता

78. सर्वात्मन : ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला

79. ओमकार : ओम के आकार वाला

80. शशिवर्णम : जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो

81. शुभगुणकानन : जो सभी गुण के गुरु हैं

82. श्वेता : जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है

83. सिद्धिप्रिय : इच्छापूर्ति वाले

84. स्कन्दपूर्वज : भगवान कार्तिकेय के भाई

85. सुमुख : शुभ मुख वाले

86. स्वरुप : सौंदर्य के प्रेमी

87. तरुण : जिसकी कोई आयु न हो

88. उद्दण्ड : शरारती

89. उमापुत्र : पार्वती के बेटे

90. वरगणपति : अवसरों के स्वामी

91. वरप्रद : इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता

92. वरदविनायक : सफलता के स्वामी

93. वीरगणपति : वीर प्रभु

94. विद्यावारिधि : बुद्धि की देव

95. विघ्नहर : बाधाओं को दूर करने वाले

96. विघ्नहर्त्ता : बुद्धि की देव

97. विघ्नविनाशन : बाधाओं का अंत करने वाले

98. विघ्नराज : सभी बाधाओं के मालिक

99. विघ्नराजेन्द्र : सभी बाधाओं के भगवान

100. विघ्नविनाशाय : सभी बाधाओं का नाश करने वाला

101. विघ्नेश्वर : सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान

102. विकट : अत्यंत विशाल

103. विनायक : सब का भगवान

104. विश्वमुख : ब्रह्मांड के गुरु

105. विश्वराजा : संसार के स्वामी

105. यज्ञकाय : सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला

106. यशस्कर : प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी

107. यशस्विन : सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव

108. योगाधिप : ध्यान के प्रभु

 

 

 

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