जानिए अक्षय तृतीया …6 का महत्त्व…
जानिए क्यों नहीं होंगे विवाह इस बार अक्षय तृतीया पर।।

अक्षय तृतीया पर्व को कई नामों से जाना जाता है।। इसे अखतीज और वैशाख तीज भी कहा जाता है।।

‘न क्षयः इति अक्षयः’ अर्थात- जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय।

मुहूर्त ज्योतिष के अनुसार चंद्रमास और सौरमास के अनुसार तिथियों का घटना-बढ़ना, क्षय होना तय होता है, लेकिन ‘अक्षय’ तृतीया का कभी भी क्षय नहीं होता। इस तिथि की अधिष्ठात्री देवी पार्वती हैं।

वे कहती हैं कि जो स्त्री-पुरुष सुख शांति और सफलता चाहतें हैं उन्हें ‘अक्षय’ तृतीया का व्रत करना चाहिए। व्रत की महत्ता बताते हुए पार्वती कहती हैं, कि यही व्रत करके मैं प्रत्येक जन्म में भगवान् शिव के साथ आनंदित रहती हूं। उत्तम पति की प्राप्ति के लिए भी हर कुंवारी कन्या को यह व्रत करना चाहिए।

इस वर्ष यह पर्व 9 मई 2016 (सोमवार) के दिन मनाया जाएगा।  इस पर्व को भारतवर्ष के विशेष त्यौहारों की श्रेणी में रखा जाता है. अक्षय तृतीया पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है. इस दिन स्नान, दान, जप, होम आदि अपने सामर्थ्य के अनुसार जितना भी किया जाएं, अक्षय रुप में प्राप्त होता है.
अक्षय तृतीया कई मायनों से बहुत ही महत्वपूर्ण दिन होता है.

इस दिन के साथ बहुत सारी कथाएं ओर किवदंतीया जुडी हुई हैं. ग्रीष्म ऋतु का आगमन, खेतों में फसलों का पकना और उस खुशि को मनाते खेतीहर व ग्रामीण लोग विभिन्न व्रत, पर्वों के साथ इस तिथि का पदार्पण होता है. धर्म की रक्षा हेतु भगवान श्री विष्णु के तीन शुभ रुपों का वतरण भी इसी अक्षय तृतीया के दिन ही हुए माने जाते हैं.

माना जाता है कि जिनके अटके हुए काम नहीं बन पाते हैं,या व्यापार में लगातार घाटा हो रहा है अथवा किसी कार्य के लिए कोई शुभ मुहुर्त नहीं मिल पा रहा हो तो उनके लिए कोई भी नई शुरुआत करने के लिए अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना जाता है. अक्षय तृतीया में सोना खरीदना बहुत शुभ माना गया है. इस दिन स्वर्णादि आभूषणों की ख़रीद-फरोख्त को भाग्य की शुभता से जोडा़ जाता है।।

जिनको संतान की प्राप्ति नहीं हो रही हो वे भी यह व्रत करके संतान सुख ले सकती हैं। देवी इंद्राणी ने यही व्रत करके ‘जयंत’ नामक पुत्र प्राप्त किया था।

देवी अरुंधती यही व्रत करके अपने पति महर्षि वशिष्ठ के साथ आकाश में सबसे ऊपर का स्थान प्राप्त कर सकीं थीं।

प्रजापति दक्ष की पुत्री रोहिणी ने यही व्रत करके अपने पति चंद्र की सबसे प्रिय रहीं। उन्होंने बिना नमक खाए यह व्रत किया था। व्रती अगर इस दिन यज्ञ, जप-तप, दान-पुण्य करता है उसके जरिए किए गए सत्कर्म का फल अक्षुण रहेगा।।

****इस वर्ष नहीं होंगें विवाह—
हमारे देश में अक्षय तृतीया तिथि को अबूझ मुहूर्त के रूप में माना जाता है, जो 9 मई 2016 को है। 
उज्जैन के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी पं. दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस साल वैवाहिक शुभ मुहूर्त में सबसे अधिक असर शुक्र के अस्त का पड़ रहा है जो दो मई को अस्त होकर नो जुलाई को उदित होगा। 
एेसी स्थिति में एेसा पहली बार होगा जब अक्षय तृतीया के दिन वैवाहिक मुहूर्त नहीं रहेगा।

****100 वर्षों बाद बन रहा है ऐसा विशेष योग—

9 मई 2016 को पड़ने वाले अक्षय तृतीया के अक्षय मुहूर्त विवाह के दो सबसे अहम ग्रहों के अस्त होने से ग्रहण लगेगा. ज्योतिषियों के मुताबिक, देव गुरु बृहस्पति और शुक्र के अस्त होने की वजह से यह स्थिति आई है।। यह योग इस प्रकार का बन रहा है कि अक्षय तृतीया के दिन वर्ष 2016 में शादी का कोई मुहूर्त ही नहीं है।।
आचार्य पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार अक्षय तृतीता 2016 पर शादी का मुहूर्त नहीं मिलना शताब्दी की पहली अनूठी घटना है।। ऐसा 100 वर्षों के बाद हुआ है कि इस साल 29 अप्रैल को मिलने वाले अंतिम विवाह मुहूर्त के बाद विवाद का कोई भी मुहूर्त नहीं है।। इसका मतलब यह हुआ कि .0 अप्रैल से गुरु और शुक्र के अस्त होने से विवाह कार्य बाधित होंगे क्योंकि इसके लिए कोई शुभ लग्न नहीं है।।

वेदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को विवाह का प्रमुख कारक ग्रह माना जाता है इसलिए शुक्र के अस्त रहते विवाह नहीं होते अतः 28 अपै्रल के पश्चात मई व जून माह में भी शुभ मुहूर्त नहीं है, इस बीच 9 मई को अबूझ माने जाने वाला महामुहूर्त अक्षय तृतीया पड़ेगा। चूंकि अक्षय तृतीया को अति शुभ मुहूर्त माना गया है, इसलिए कुछ विद्वानों की माने तो शुक्र ग्रह के अस्त रहते हुए भी इस वर्ष अक्षय तृतीय के दिन विवाह किया जा सकेगा। इस तरह मई-जून व मध्य जुलाई तक एक मात्र अक्षय तृतीया ही ऐसा दिन होगा जब शुक्र अस्त होने पर भी फेरे लिए जाएंगे।

बस इस दिन जिनका विवाह होने वाला हो, उनकी कुण्डली में शुक्र अस्त नहीं हो, इसका विशेष ध्यान रखें।।

****जुलाई 2016 में लगेगा विवाह लग्न मुहूर्त–

शुक्र का तारा 30 अप्रैल 2016 से पश्चिम दिशा में अस्त हो रहा है जो फिर जुलाई महीने में 6 जुलाई 2016 को पूर्व में उदय होगा।। 
इसके बाद ही शादी का योग बनेगा।। 
जुलाई महीने में 6 से 14 तारीख तक शादियों का शुभ मुहूर्त है।।
15 जुलाई आषाढ़ शुक्ल एकादशी से हरिशयनी की शुरुआत हो रही है. पौराणिक परंपरा के मुताबिक, इस दिन के बाद देव सो जाएंगे।।
फिर चातुर्मास शुरू होगा इसलिए 15 जुलाई 2016 से 10 नवंबर 2016 तक फिर शादियों के मुहूर्त नहीं रहेंगे।।

****कुंडली में शुक्र दोष न हो—
आचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस वर्ष अक्षय तृतीया 2016 के दिन विवाह करने वाले लड़के-लड़कियों को इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि उनकी कुंडली में शुक्र संबंधी दोष तो नहीं है। 
यदि शुक्र संबंधी कोई दोष हो तो विवाह नहीं करना ठीक रहेगा।

**** जानिए अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्व—
इस पर्व से अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. इसके साथ महाभारत के दौरान पांडवों के भगवान श्रीकृष्ण से अक्षय पात्र लेने का उल्लेख आता है. इस दिन सुदामा और कुलेचा भगवान श्री कृष्ण के पास मुट्ठी – भर भुने चावल प्राप्त करते हैं. इस तिथि में भगवान के नर-नारायण, परशुराम, हयग्रीव रुप में अवतरित हुए थे. इसलिये इस दिन इन अवतारों की जयन्तियां मानकर इस दिन को उत्सव रुप में मनाया जाता है. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी. इसी कारण से यह तिथि युग तिथि भी कहलाती है.
अक्षय तृतीया तिथि के दिन अगर दोपहर तक दूज रहे, तब भी अक्षय तृतीया इसी दिन मनाई जाती है. इस दिन सोमवार व रोहिणी नक्षत्र हो तो बहुत उत्तम है. जयन्तियों का उत्सव मनाना और पूजन इत्यादि कराना हों, तो विद्वान पंडित से कराएं. इसी दिन प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी खुलते हैं. वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मन्दिर में केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।।

****जानिए अक्षय तृतीया में दान पुण्य का महत्व —– 
अक्षय तृतीया में पूजा, जप-तप, दान स्नानादि शुभ कार्यों का विशेष महत्व तथा फल रहता है. इस दिन गंगा इत्यादि पवित्र नदियों और तीर्थों में स्नान करने का विशेष फल प्राप्त होता है. यज्ञ, होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दान आदि कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है.
अक्षय तृ्तिया के दिन गर्मी की ऋतु में खाने-पीने, पहनने आदि के काम आने वाली और गर्मी को शान्त करने वाली सभी वस्तुओं का दान करना शुभ होता है. इस्के अतिरिक्त इस दिन जौ, गेहूं, चने, दही, चावल, खिचडी, ईश (गन्ना) का रस, ठण्डाई व दूध से बने हुए पदार्थ, सोना, कपडे, जल का घडा आदि दें. इस दिन पार्वती जी का पूजन भी करना शुभ रहता है.

**** जानिए की कैसे करें अक्षत तृतीया का व्रत एवं पूजा–
अक्षय तृ्तीया का यह उतम दिन उपवास के लिए भी उतम माना गया है. इस दिन को व्रत-उत्सव और त्यौहार तीनों ही श्रेणी में शामिल किया जाता है. इसलिए इस दिन जो भी धर्म कार्य किए वे उतने ही उतम रहते है.
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान इत्यादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रत या उपवास का संकल्प करें. पूजा स्थान पर विष्णु भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित कर पूजन आरंभ करें भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं, तत्पश्चात उन्हें चंदन, पुष्पमाला अर्पित करें.
पूजा में में जौ या जौ का सत्तू, चावल, ककडी और चने की दाल अर्पित करें तथा इनसे भगवान विष्णु की पूजा करें. इसके साथ ही विष्णु की कथा एवं उनके विष्णु सस्त्रनाम का पाठ करें. पूजा समाप्त होने के पश्चात भगवान को भोग लाएं ओर प्रसाद को सभी भक्त जनों में बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें. सुख शांति तथा सौभाग्य समृद्धि हेतु इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती जी का पूजन भी किया जाता है.
लोकाचारे में इस दिन चावल, मूंग की खिचडी खाने का बडा रिवाज है. यह व्यंजन बनाने के लिये इमली के फल और गुड को अलग-2 भिगो दिया जाता है. और अच्छी तरह भीग जाने पर दोनों का रस बनाकर छान लेते है. इमली के बराबर का गुड मिलाया जाता है. इस दिन खेती करने वाले आने वाले वर्ष में खेती कैसी रहेगी. इसके कई तरह के शकुन निकालते है. इस दिन को नवन्न पर्व भी कहते हैं, इसलिए इस दिन बरतन, पात्र, मिष्ठान्न, तरबूजा, खरबूजा दूध दही चावल का दान भी किया जाता है

**** जानिए अक्षय तृतीया का अभिजीत मुहुर्त —
धर्म शास्त्रों में इस पुण्य शुभ पर्व की कथाओं के बारे में बहुत कुछ विस्तार पूर्वक कहा गया है. इनके अनुसार यह दिन सौभाग्य और संपन्नता का सूचक होता है. दशहरा, धनतेरस, देवउठान एकादशी की तरह अक्षय तृतीया को अभिजीत, अबूझ मुहुर्त या सर्वसिद्धि मुहूर्त भी कहा जाता है. क्योंकि इस दिन किसी भी शुभ कार्य करने हेतु पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती. अर्थात इस दिन किसी भी शुभ काम को करने के लिए आपको मुहूर्त निकलवाने की आवश्यकता नहीं होती. अक्षय अर्थात कभी कम ना होना वाला इसलिए मान्यता अनुसार इस दिन किए गए कार्यों में शुभता प्राप्त होती है. भविष्य में उसके शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।।

पूरे भारत वर्ष में अक्षय तृतीया की खासी धूम रहती है. हए कोई इस शुभ मुहुर्त के इंतजार में रहता है ताकी इस समय किया गया कार्य उसके लिए अच्छे फल लेकर आए. मान्यता है कि इस दिन होने वाले काम का कभी क्षय नहीं होता अर्थात इस दिन किया जाने वाला कार्य कभी अशुभ फल देने वाला नहीं होता. इसलिए किसी भी नए कार्य की शुरुआत से लेकर महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी व विवाह जैसे कार्य भी इस दिन बेहिचक किए जाते हैं.
नया वाहन लेना या गृह प्रेवेश करना, आभूषण खरीदना इत्यादि जैसे कार्यों के लिए तो लोग इस तिथि का विशेष उपयोग करते हैं. मान्यता है कि यह दिन सभी का जीवन में अच्छे भाग्य और सफलता को लाता है. इसलिए लोग जमीन जायदाद संबंधी कार्य, शेयर मार्केट में निवेश रीयल एस्टेट के सौदे या कोई नया बिजनेस शुरू करने जैसे काम भी लोग इसी दिन करने की चाह रखते हैं।

**** जानिए की क्या और क्यों हैं अक्षय तृतीया का महत्व —
वैशाख शुक्ल पक्ष की तृ्तिया को अक्षय तृ्तिया के नाम से पुकारा जाता है इस तिथि के दिन महर्षि गुरु परशुराम का जन्म दिन होने के कारण इसे “परशुराम तीज” या “परशुराम जयंती” भी कहा जाता है. इस दिन गंगा स्नान का बडा भारी महत्व है. इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्नाता के लिए कलश, पंखा, खडाऊँ, छाता,सत्तू, ककडी, खरबूजा आदि फल, शक्कर आदि पदार्थ ब्राह्माण को दान करने चाहिए. उसी दिन चारों धामों में श्री बद्रीनाथ नारायण धाम के पाट खुलते है. इस दिन भक्तजनों को श्री बद्री नारायण जी का चित्र सिंहासन पर रख के मिश्री तथा चने की भीगी दाल से भोग लगाना चाहिए. भारत में सभी शुभ कार्य मुहुर्त समय के अनुसार करने का प्रचलन है अत: इस जैसे अनेकों महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इस शुभ तिथि का चयन किया जाता है, जिसे अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है।।

मान्यता हैं की अक्षय तृतीय के दिन भूमिपूजन, व्यापार आरम्भ, गृहप्रवेश, वैवाहिक कार्य, यज्ञोपवीत संस्कार, नए अनुबंध, नामकरण आदि जैसे सभी मांगलिक कार्यों के लिए अक्षय तृतीया वरदान की तरह है। 
इस वर्ष 9 मई 2016,सोमवार (विक्रम सम्वत् 2073 के वैशाख मास की तृतीय तिथि, योग-सुकर्म) को चन्द्रमा मिथुन राशि में ( दोपहर लगभग 1 बजे से, इसके पूर्व वृषभ राशि रहेगी) और  रोहिणी नक्षत्र समाप्त होकर मृगशिरा का आरंभ दोपहर 11 बजकर 57 मिनट पर हो रहा है उस समय अभिजित मुहूर्त भी रहेगा।
इसलिए रोहिणी नक्षत्र के संयोग से दिन और भी शुभ रहेगा।

इस दिन भगवान विष्णु की लक्ष्मी सहित गंध, चंदन, अक्षत, पुष्प, धुप, दीप नैवैद्य आदि से पूजा करनी चाहिए। भगवान विष्णु के विग्रह को को गंगा जल और अक्षत से स्नान कराएं।

शास्त्रों में इस दिन वृक्षारोपण का भी अमोघ फल बताया गया है। प्रकार अक्षय तृतीया को लगाए गए वृक्ष हरे-भरे होकर पल्लवित पुष्पित होते हैं इस दिन वृक्षारोपण करने वाला व्यक्ति भी कामयाबियों के शिखर छूता चलता है।

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