फिल्म “सुल्तान” की समीक्षा –
सितारे : सलमान खान, अनुष्का शर्मा, रणदीप हुड्डा,अमित साध, कुमुद मिश्रा
निर्देशक-लेखक : अली अब्बास जफर
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
संगीत : विशाल-शेखर
गीत : इरशाद कामिल

 

 

 

 

 

 

प्रिय मित्रों/पाठकों, आज हमारी मुलाकात  “सुल्तान” भाई से हुई अर्थात हमने भी फिल्म सुल्तान देखी..
इस फिल्म के बारे में मेरे विचार/समीक्षा/रिव्यू इस प्रकार से हैं–
फिल्म “सुल्तान” की कहानी है हरियाणा के रेवाड़ी जिले के बुरोली गांव के सुल्‍तान और आरफा की । 
.. वर्ष का सुल्तान अली खान (सलमान खान) इस उम्र में भी पतंग लूटता रहता है और जिंदगी के प्रति गंभीर नहीं है। अपने मित्र के साथ केबल कनेक्शन का काम करता हैं |
आरफा हुसैन (अनुष्का शर्मा) एक पहलवान की बेटी है और उसका सपना भारत के लिए कुश्ती में ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीतना है। आरफा को सुल्तान दिल दे बैठता है, लेकिन आरफा उसे उसकी औकात या‍द दिला देती है। आरफा की मोहब्बत उसे पहलवान बना देती है और वो राज्यस्तर के बाद अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहलवान बन जाता है। प्रसिद्धि अपने साथ बहुत कुछ लेकर आती है।इस बेइज्जती से सुल्तान जिंदगी को सीरियसली लेने लगता है और पहलवानी शुरू करता है। कामयाबी उसके कदम चूमती है और आरफा से उसका निकाह हो जाता है।  
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहलवान बनकर सुल्तान के लिए प्रसिद्धि गुरूर लेकर आती है, जिसे वह पचा नहीं पाता और अरफा के लाख मना करने के बावजूद वह एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए तुर्की चला जाता है। वह वहां से जीत कर तो आ जाता है, लेकिन आने के बाद वह बहुत कुछ खो देता है।
यहां से सुल्तान और आरफा के बीच अनबन शुरू हो जाती है और दोनों अलग हो जाते हैं। सुल्तान हमेशा के लिए रेस्लिंग को अलविदा कह देता है। इस घटना को आठ साल बीत जाते हैं और एक दिन सुल्तान की खोज में दिल्ली से एक बिजनेसमैन आकाश ओबेराय (अमित साध) रेवाड़ी आता है। वह सुल्तान को दिल्ली में पेशेवर रेस्लिंग का ऑफर देता है, जिसे सुल्तान पहले तो खारिज कर देता है। पर बाद में मान भी जाता है। मार्शल आर्ट का एक माहिर फाइटर (रणदीप हूडा) सुल्तान का कोच बन कर उसे पेशेवर कुश्ती की ट्रेनिंग देता है। लेकिन 40 साल के सुल्तान के लिए ये सब आसान नहीं होता।
मोटे तौर पर ये कहानी है एक मस्तमौला प्रेमी की है, जो शादी के बाद पति-पत्नी के बीच पैदा हुए विवाद से होते हुए एक पहलवान के पुर्नजन्म के रूप में करवट लेती है। इंटरवल से पहले की कहानी सुल्तान के पहलवान बनने एवं आरफा और उसके बीच हुए मन-मुटाव का चित्रण करती है। बाद की कहानी केवल पेशेवर रेस्लिंग को समर्पित है। कहने को तो ये एक छोटी-सी कहानी है, लेकिन इस कहानी को कहने में निर्देशक ने करीब तीन घंटे का समय लगा दिया है। पहली बात जो इस फिल्म को लेकर खटकती है वो है इसकी लंबाई।
फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले, संवाद और निर्देशन अली अब्बास ज़फर ने किया है। अली ने अपनी कहानी को दो भागों में बांटा है। एक तरफ सुल्तान, आरफा और पहलवानी है तो दूसरी ओर सुल्तान-आरफा की मोहब्बत है। इन दोनों कहानियों को उन्होंने पिरोकर खूबसूरती से साथ चलाया है। 
कहानी का एक अहम पहलू पहलवानी या कहिये कुश्ती पर आधारित है, जिससे दोनों किरदारों को बेहद लगाव है। उनके लिए ये खेल नहीं एक जुनून है। लेकिन ये जुनून एक छोर पर दामन छोडने (आरफा की ओर से) लगता है। यहां भावनात्मक पहलुओं पर फोकस कम किया गया है। यहां पूरी मेहनत सिर्फ और सिर्फ चीजों को एक ‘स्टार’ के अनुरूप बनाने में की गई है, जबकि फिल्म का आधार रेस्लिंग और रिश्ते हैं। भावनात्मक पहलुओं का स्थान ड्रामा और दोहराव ने ले लिया है। संवादों में गहराई न के बराबर है और हरियाणवी माहौल होने के बावजूद हंसी-हाजिरजवाबी की कमी भी खलती है। ये तमाम बातें सहज रूप से सामने आती हैं। इनके लिए दिमाग पर बहुत जोर देने की जरूरत नहीं है।
‘बजरंगी भाईजान’ में सलमान खान ने साबित किया कि वह अपने अभिनय से भी दर्शकों को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन ये फिल्म केवल उनके स्टारडम पर टिकी नजर आती है। इसका उदाहरण है वह तमाम सीन्स जिन पर दर्शक तालियां बजाते दिखते हैं, सीटियां मारते हैं। उनके संवाद ऐसे हैं, जो केवल उन पर ही फबते हैं। लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद सुल्तान का किरदार इंटरवल के बाद प्रभावी लगता है।
खासतौर से जब वह एक थका हारा सा इंसान दिखता है। थकान और एक पहलवान को हरा देने वाला उसका मोटापा सलमान पर कई जगह जंचता भी है। इसलिए सुल्तान को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। एक बात और कि सलमान खान का आभामंडल ही इस फिल्म को सुपरहिट बनाने के लिए काफी है। हो सकता है कि उनकी प्रसिद्धि के आगे फिल्म की तमाम खामियां कहीं न टिक पाएं। लेकिन एक सच ये भी है कि प्रेरणा देने वाली ये कहानी अपने हिचकोले खाते घटनाक्रम और कई जगह कमजोर लेखन की वजह से बोर भी करती है।
किसी फिल्म में सलमान की मौजूदगी के बाद किसी अन्य किरदार के लिए गुंजाइश कम ही रहती है। यहां भी ऐसा ही हुआ है। हरियाणवी लटके-झटकों से सजा अनुष्का शर्मा का रेस्लर वाला किरदार कुछ देर के लिए तो आकर्षित करता है, लेकिन बाद में उसे भी सुल्तान के स्टारडम की नजर लग जाती है। हालांकि उन्होंने कोशिश बहुत की है, लेकिन बहुत ज्यादा संभावनाओं के बावजूद आत्मविश्वास नहीं जगा पाई हैं। ‘सरबजीत’ जैसी फिल्म देखने के बाद आप कहेंगे कि रणदीप हुड्डा इस फिल्म में क्या कर रहे हैं। पेशेवर रेस्लिंग के दृश्य नाटकीयता से भरे पड़े हैं। इन्हें भी सुल्तान के अनुरूप ही बनाया गया है ताकि वह हर हाल में बस जीते ही। बेबी को बेस पसंद है…और जग घूमेया…जैसे गीत अच्छे हैं, जो सुनने में ज्यादा अच्छे लगते हैं।
खूबियों की बात करें तो सलमान के फ़ैन्स के लिए सबसे पहली खूबी हैं खुद सलमान खान, जो दर्शकों को फिल्म से बांधे रखते हैं… अपनी एक्टिंग से नहीं, अपने व्यक्तित्व से… कुछ सीन्स आपको मुस्कुराने पर मजबूर करेंगे तो कई जगह शायद आप अपने आंसू न रोक पाएं… आपके जज़्बात को फिल्म झकझोर सकती है… ‘सुल्तान’ जहां देश की मिट्टी के खेल पहलवानी की बात करती है, वहीं ‘बेटी बचाओ’ मुहिम से जुड़ा मज़बूत संदेश भी देती है…
हरियाणा की मिट्टी में लिपटी इस फिल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी और उसके विषय को फिल्म के क़िरदार बखूबी सामने लाते हैं… फिल्म के कुछ डायलॉग भी मुझे पसंद आए… संगीत की बात करें तो विशाल-शेखर का संगीत अच्छा है और दोनों ही आपको चौंकाएंगे उन गानों में, जिनमें हरियाणा की मिट्टी की ख़ुशबू झलकती है… फिल्म के सभी गाने सुरीले हैं और उनके बोल अच्छे हैं फिर चाहे वो ‘जग घुमया’ हो या टाइटल ट्रैक ‘सुल्तान’… फिल्म के कई फ़ाइट सीन मुझे अच्छे लगे, जहां दर्शक भी सलमान के साथ फ़ाइट का हिस्सा बने दिखते हैं..
कुल मिला कर ‘सुल्तान’ रिश्तों पर कम, बल्कि रेस्लिंग पर फोकस ज्यादा दिखती है, जिसका सौंदर्यकरण तो बहुत अच्छा किया गया है। लेकिन इसमें ठोस चीजों की कमीं भी दिखती है। ये फिल्म सलमान खान के लिए तो एक और सुपरहिट फिल्म साबित हो सकती है, लेकिन एक कलाकार के लिए नहीं।
फिल्म को आर्टर ज़ुरावस्की नामक पोलिश सिनेमाटोग्राफर ने शूट किया है। उन्होंने न केवल हरियाणा बल्कि कुश्ती और मार्शल आर्ट वाले सीन भी उम्दा तरीके से शूट किए हैं। आमतौर पर स्पोर्ट्स वाले सीन फिल्म में बहुत ज्यादा होते हैं तो उनकी एकरसता से दर्शक बोर हो जाते हैं, लेकिन यह आर्टर की सिनेमाटोग्राफी का कमाल है कि उन्होंने हर फाइट को अलग-अलग कोणों से शूट किया है। 
फिल्म के सभी कलाकारों का काम अच्छा है। सलमान खान ने कुश्ती वाले सीन में काफी मेहनत की है। धोबी पछाड़ वाले दृश्य वास्तविक लगते हैं। दौड़-भाग वाले सीन में वे उतने फुर्तीले नहीं लगते हैं जितना की फिल्म में उन्हें दिखाया गया है। उनका अभिनय अच्छा और ठहराव लिए है। खास बात यह है कि सुल्तान को उन्होंने सलमान खान नहीं बनने दिया। हरियाणवी लहजे में हिंदी बोली है। कहीं-कहीं वे जल्दी बोल गए हैं जिससे कुछ संवाद समझ में नहीं आते हैं। निर्देशक को हरियाणवी के कठिन शब्दों से बचना था। 
अनुष्का शर्मा ने अपने किरदार को खास एटीट्यूड दिया है। वे महिला पहलवान के रूप में विश्वसनीय लगी हैं और भावनात्मक दृश्यों में उनका अभिनय देखते ही बनता है। रणदीप हुड्डा छोटे रोल में अपना असर छोड़ जाते हैं। सुल्तान के दोस्त के रूप में अनंत शर्मा प्रभावित करते हैं। अमित सध, परीक्षित साहनी सहित अन्य अभिनेताओं की एक्टिंग बेहतरीन है। 
बड़े बजट के साथ खास मौके पर रिलीज की गई ‘सुल्तान’ आपको निराश तो नहीं करेगी, लेकिन कुछ ऐसा भी नहीं देगी, जिसे आप साथ घर ला पाएं। या लंबे समय तक याद रख सकें ||

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