ज्योतिष शास्त्र – नक्षत्र—एक परिचय—-


सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों,नक्षत्रों आदि की गति,परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।ज्योतिषशास्त्र लेकर हमारे समाज की धरण है कि इससे हमें भविष्य में घटनेवाली घटनाओं के बारे में आगे ही पता जाता है। वास्तव में ज्योतिषशास्त्र का रहस्य अथवा वास्तविकता आज भी अस्पष्ट है, या इस विद्या पर अन्धविश्वास हमें हमेशा ही भटकता रहता है। इसी विषय पर तर्कपूर्ण विचार प्रकट कर रहा हूँ।


ज्योतिषशास्त्र वज्योतिषी के ऊपर जो लोग विश्वास करते हैं, वे अपनी आपबीती एवं अनुभवों की बातें सुनते हैं। उन बातों मेंज्योतिषी द्वारा की गई भविष्यवाणी में सच हने वाली घटना का उल्लेख होता है। इन घटनाओं में थोड़ी बहुत वास्तविकता नजर आती है। वहीं कई घटनाओं में कल्पनाओं का रंग चडा रहता है क्योंकि कभी – कभार ज्योतिषी कीभविष्यवाणी सच होती है ? 


इस सच के साथ क्या कोई संपर्कज्योतिष शास्त्र का है?ज्योतिषियों कीभविष्यवाणी सच होने के पीछे क्या राज है ?ज्योतिषी इस शास्त्र के पक्ष में क्या – क्या तर्क देते हैं ? यह तर्क कितना सही है ?


ज्योतिषशास्त्र की धोखाधड़ी के खिलाफ क्या तर्क दिये जाते हैं? इन सब बातों की चर्चा हम जरुर करेंगे लेकिन जिस शास्त्र को लेकर इतना तर्क – वितर्क हो रहा है ; उस बारे में जानना सबसे पहले जरुरी है। 


तो आइये , देखें क्या कहता हैंज्योतिषशास्त्र —-


ज्योतिष को चिरकाल से सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है । वेद शब्द की उत्पति “विद” धातु से हुई है जिसका अर्थ जानना या ज्ञान है ।ज्योतिष शास्त्रतारा जीवात्मा के ज्ञान के साथ ही परम आस्था का ज्ञान भी सहज प्राप्त हो सकता है ।


ज्‍योतिष शास्‍त्र मात्र श्रद्धा और विश्‍वास का विषय नहीं है, यह एक शिक्षा का विषय है।


पाणिनीय-शिक्षा4. के अनुसर”ज्योतिषामयनंयक्षुरू”ज्योतिष शास्त्र ही सनातन वेद का नैत्रा है। इस वाक्य से प्रेरित होकर ” प्रभु-कृपा ”भगवत-प्राप्ति भी ज्योतिष के योगो द्वारा ही प्राप्त होती है।


मनुष्य के जीवन में जितना महत्व उसके शरीर का है, उतना ही सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों अथवा आसपास के वातावरण का है। जागे हुए लोगों ने कहा है कि इस जगत में अथवा ब्रह्माण्ड में दो नहीं हैं। यदि एक ही है, यदि हम भौतिक अर्थों में भी लें तो इसका अर्थ हुआ कि पंच तत्वों से ही सभी निर्मित है। वही जिन पंचतत्वों से हमारा शरीर निर्मित हुआ है, उन्हीं पंच तत्वों से सूर्य, चंद्र आदि ग्रह भी निर्मित हुए हैं। यदि उनपर कोई हलचल होती है तो निश्चित रूप से हमारे शरीर पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा,क्योंकि तत्व तो एक ही है। ‘दो नहीं हैं। o का आध्यात्मिक अर्थ लें तो सबमें वहीं व्याप्त है, वह सूर्य, चंद्र हों, मनुष्य हो,पशु-पक्षी, वनस्पतियां,नदी, पहाड़ कुछ भी हो,गहरे में सब एक ही हैं। एक हैं तो कहीं भी कुछ होगा वह सबको प्रभावित करेगा। इस आधार पर भी ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। यह अनायास नहीं है कि मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा चलते हैं।


दिन, सप्ताह, पक्ष,मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव तिथि का परिज्ञान के लिए ज्योतिष शास्त्र को केन्द्र में रखा गया है। मानव समाज को इसका ज्ञान आवश्यक है। धार्मिक उत्सव,सामाजिक त्योहार,महापुरुषों के जन्म दिन, अपनी प्राचीन गौरव गाथा का इतिहास, प्रभृति, किसी भी बात का ठीक-ठीक पता लगा लेने में समर्थ है यह शास्त्र। इसका ज्ञान हमारी परंपरा, हमारे जीवन व व्यवहार में समाहित है। शिक्षित और सभ्य समाज की तो बात ही क्या, अनपढ़ और भारतीय कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिपूर्ण हैं। वह भलीभांति जानते हैं कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है, अत: बीज कब बोना चाहिए जिससे फसल अच्छी हो। यदि कृषक ज्योतिष शास्त्र के तत्वों को न जानता तो उसका अधिकांश फल निष्फल जाता। 




कुछ महानुभाव यह तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषि शास्त्र के मर्मज्ञ असमय ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को संपन्न कर लेते हैं या कर सकते हैं। इस दशा में कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष शास्त्र का ही शिष्य है।ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये? बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचे “भयात/भभोत” जैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है।
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आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुडे हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है। ऋग्वेद में एक स्थान सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। आकाश में चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर अपनी कक्षा पर चलता हुआ .7.. दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है। इस प्रकार एक मासिक चक्र में आकाश में जिन मुख्य सितारों के समूहों के बीच से चन्द्रमा गुजरता है, चन्द्रमा व सितारों के समूह के उसी संयोग को नक्षत्र कहा जाता है। चन्द्रमा की 36.˚ की एक परिक्रमा के पथ पर लगभग 27 विभिन्न तारा-समूह बनते हैं, आकाश में तारों के यही विभाजित समूह नक्षत्र या तारामंडल के नाम से जाने जाते हैं। इन 27 नक्षत्रों में चन्द्रमा प्रत्येक नक्षत्र की 13˚20’ की परिक्रमा अपनी कक्षा में चलता हुआ लगभग एक दिन में पूरी करता है। प्रत्येक नक्षत्र एक विशेष तारामंडल या तारों के एक समूह का प्रतिनिधी होता है। 27 नक्षत्र इस तरह हैं- अस्वनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगसिरा, रुद्रा, पुनरवासु, पूष, अस्लेशा, माघ, पूर्व फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, साका, अनुराधा, जयेष्ट, मूल, पूर्ववैशादा, उत्त्रशादा, श्रवण, धनिष्ठा, स्थाबिशक, पूर्व बरोश्तापध, उत्तरा बरोश्तापध, रेवति तथा अभिजीत 28 नक्षत्र है जिसका उपयोग आधारभूत तौर पर मुहूर्त के लिए किया जाता है.
सभी नक्षत्रों की अपनी दैवीक विशेषता होती है तथा प्रत्येक नक्षत्र इनके देवी के अध्यात्मिक बल से चलते हैं.


कहा जाता है कि ग्रह से बडा नक्षत्र होता है और नक्षत्र से भी बडा नक्षत्र का पाया होता है। हर नक्षत्र अपने अपने स्वभाव के जातक को इस संसार मे भेजते है और नक्षत्र के पदानुसार ही जातक को कार्य और संसार संभालने की जिम्मेदारी दी जाती है।
२७ नक्षत्रो के देवताओं का वर्णन किया जा रहा है —
1.अश्वनी का स्वामी = नासत्य (दोनों अश्वनी कुमार)
2.भरणी का स्वामी =अन्तक (यमराज)
3.कृतिका का स्वामी = अग्नि
4.रोहिणी का स्वामी = धाता (ब्रह्मा)
5.म्रगशिरा का स्वामी = शशम्रत (चन्द्रमा)
6.आर्दा का स्वामी = रूद्र (शिव)
7.पुनर्वसु का स्वामी = आदिती (देवमाता)
8.पुष्य का स्वामी =वृहस्पति
9.श्लेषा का स्वामी =सूर्य
10.मघा का स्वामी = पितर
11.पूर्व फाल्गुनी का स्वामी = भग्र  
12.उत्तरा फाल्गुनी का स्वामी = अर्यमा  
13.हस्त का स्वामी = रवि  
14.चित्र का स्वामी = विश्वकर्मा  
15.स्वाती का स्वामी = समीर  
16.विशाखाका स्वामी = इन्द्र और अग्नि
17.अनुराधा का स्वामी = मित्र  
18.ज्येष्ठा का स्वामी = इन्द्र  
19.मूल का स्वामी = निर्रुती (राक्षस)  
20.पुर्वाशाडा का स्वामी = क्षीर (जल)
21.उत्तरा शाडा का स्वामी = विश्वदेव    / अभिजित = विधि विधाता
22.श्रवण का स्वामी = गोविन्द ( विष्णु )
23.धनिष्ठा का स्वामी = वसु (आठ प्रकार के वसु)
24.शतभिषा का स्वामी = तोयम
25.पूर्वभाद्र का स्वामी = अजचरण (अजपात नामक सूर्य)
26.उत्तरा भाद्रपद का स्वामी = अहिर्बुध्न्य (नाम का सूर्य)
27.रेवती का स्वामी = पूषा (पूषण नाम का सूर्य) |


नोट — जो २७ नक्षत्रो के स्वामी कहे गए है उन्ही देवताओं की अर्जन करना भाग्य वर्धक रहता है | जो दोष है उनकी शांति नक्षत्र के स्वामी की करनी चाहिए | भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए नक्षत्रो की पूजा अवश्य करनी चाहिए | लोग कहते है की परिश्रम के अनुसार लाभ नहीं मिल रहा है, रात दिन मेहनत करते है,परिवार में शांति नहीं रहती है इन्ही का पूजन अवश्य करना चाहिए |
नक्षत्र का आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता हैं?


चन्द्रमा का एक राशिचक्र 27 नक्षत्रों में विभाजित है, इसलिए अपनी कक्षा में चलते हुए चन्द्रमा को प्रत्येक नक्षत्र में से गुजरना होता है। आपके जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में स्थित होगा, वही आपका जन्म नक्षत्र होगा। आपके वास्तविक जन्म नक्षत्र का निर्धारण होने के बाद आपके बारे में बिल्कुल सही भविष्यवाणी की जा सकती है। अपने नक्षत्रों की सही गणना व विवेचना से आप अवसरों का लाभ उठा सकते हैं। इसी प्रकार आप अपने अनेक प्रकार के दोषों व नकारात्मक प्रभावों का विभिन्न उपायों से निवारण भी कर सकते हैं। नक्षत्रों का मिलान रंगों, चिन्हों, देवताओं व राशि-रत्नों के साथ भी किया जा सकता है।
नक्षत्र              तारासंख्या          आकृति और पहचान
अश्विनी              ३                    घोड़ा
भरणी                ३                    त्रिकोण
कृत्तिका              ६                    अग्निशिखा
रोहिणी                ५                   गाड़ी
मृगशिरा               ३                   हरिणमस्तक वा विडालपद
आर्द्रा                  १                   उज्वल
पुनर्वसु                ५ या ६               धनुष या धर
पुष्य                  १ वा ३               माणिक्य वर्ण
अश्लेषा          ५                   कुत्ते की पूँछ वा कुलावचक्र
मघा             ५                   हल
पूर्वाफाल्गुनी       २                   खट्वाकार X उत्तर दक्षिण
उत्तराफाल्गुनी     २                   शय्याकारX उत्तर दक्षिण
हस्त             ५                  हाथ का पंजा
चित्रा             १                  मुक्तावत् उज्वल
स्वाती            १                  कुंकुं वर्ण
विशाखा           ५ व ६              तोरण या माला
अनुराधा           ७                 सूप या जलधारा
ज्येष्ठा            ३                 सर्प या कुंडल
मुल              ९ या ११           शंख या सिंह की पूँछ
पुर्वाषाढा           ४                 सूप या हाथी का दाँत
उत्तरषाढा          ४                 सूप
श्रवण             ३                  बाण या त्रिशूल
धनिष्ठा           ५                  मर्दल बाजा
शतभिषा          १००                मंडलाकार
पूर्वभाद्रपद         २                  भारवत् या घंटाकार
उत्तरभाद्रपद        २                 दो मस्तक
रेवती              ३२                मछली या मृदंग


इन २७ नक्षत्रों के अतिरिक्त ‘अभिजित्’ नाम का एक और नक्षत्र पहले माना जाता था पर वह पूर्वाषाढ़ा के भीतर ही आ जाता है, इससे अब २७ ही नक्षत्र गिने जाते हैं । इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं । महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण की पूर्णिमा को मृगशिरा वा आर्दा पर; इसी प्रकार और समझिए।  28वें नक्षत्र का नाम अभिजित उत्तराषाढ़ा और श्रवण मध्ये
ताराओं के समूह को नक्षत्र कहते हैं। आकाश स्थित अरबों मील के दायरे में फैले हुए तारामंडल को विवेचन की सुविधा के लिए सत्ताईस प्रमुख समूहों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक तारा समूह को नक्षत्र कहते हैं। प्रत्येक नक्षत्र की आकृति के अनुसार उसका नामकरण किया गया है। अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, श्रवण, घनिष्ठा, शतमिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद व रेवती। उत्तराषाढ़ के अंतिम चरण एवं श्रवण के आदि के पंचदशांश को अभिजित कहा गया है। इसे लेकर नक्षत्रों की संख्या 28 हो जाती है, किन्तु तारा विचार, राशि विचार आदि में अभिजित की गणना नहीं होती है। इसलिए नक्षत्रों की संख्या 27 ही प्रसिद्ध है।
ये नक्षत्र गुण एवं स्वभाव के अनुसार चराचर को प्रभावित करते हैं। समस्त आकाश मंडल यानी 360 अंश को 27 से भाग देने पर 13 अंश 20 कला क्षेत्र एक नक्षत्र का दायरा होता है। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में एक नामाक्षर की कल्पना की गई है। प्रत्येक नक्षत्र की दूरी को चार से भाग देने से 3 अंश 20 कला का एक चरण होता है।
भेद: स्वभाव के अनुसार नक्षत्र के सात भेद हैं। ये हैं- ध्रुव, चर, उग्र, मिश्र, लघु, मृदु और दारुण।
ध्रुव संज्ञक नक्षत्र- रविवार के दिन रोहिणी, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद होने से बीजवपन, शुभकार्य, वस्त्र, आभूषण धारण, नृत्य व मैत्री आदि कार्य उत्तम माना जाता है।
चर संज्ञक नक्षत्र- स्वाती, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतमिषा सोमवार को होने से वाहन क्रय-विक्रय, यात्रा, कला, शिक्षा इत्यादि कार्य उत्तम माने जाते हैं।
उग्र संज्ञक नक्षत्र- भरणी, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़, पूर्वाभाद्रपद यदि मंगलवार को हो तो निन्दित कार्य उत्तम माना जाता है।
मिश्र संज्ञक नक्षत्र- कृतिका, विशाखा यदि बुधवार को हो तो व्यापार, शस्त्र, विष घात व मांगलिक कार्य उत्तम माने जाते हैं।
लघु संज्ञक नक्षत्र- अश्विनी, पुष्य, हस्त, अभिजित, आदि गुरुवार को हो तो रतिकार्य, शिल्प, चित्रकला, ज्ञानार्जन व वाहन कार्य आदि उत्तम माना जाता है।
मृदु संज्ञक नक्षत्र- मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, रेवती यदि शुक्रवार को हो तो गृह संबंधी कार्य, बीजवपन, आभूषण, क्रीड़ा, शपथ व उत्सवादि कार्य उत्तम माना जाता है।
दारुण संज्ञक नक्षत्र- आश्लेषा, श्लेषा, ज्येष्ठा, मूल यदि शनिवार को हो तो निन्दित कार्य उत्तम माना जाता है।
नक्षत्रों का वर्गीकरण मुख ज्ञान के आधार पर तीन श्रेणियों में किया गया है।
उर्ध्व मुख संज्ञक नक्षत्र- रोहिणी, आश्लेषा, पुष्य, उ.फा., उ.षा., श्रवण, धनिष्ठा, शतमिषा, उ.भाद्रपद उर्ध्वमुख नक्षत्र कहलाता है। इसमें देवालय निर्माण, गृह निर्माण, ध्वजारोहण, बागीचा और समस्त मांगलिक कार्य उत्तम माना जाता है।
अधोमुख नक्षत्र- भरणी, कृतिका, श्लेषा, मघा, पू. फाल्गुनी, विशाखा, मूल, पूर्वाषाढ़, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र अधोमुख हैं। इसमें कूप, तालाब, नलकूप, नींव खनन आदि कार्य उत्तम माना जाता है।
पार्श्वमुख नक्षत्र- अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, ज्येष्ठा और रेवती पार्श्वमुख नक्षत्र हैं, इसमें चतुष्पद क्रय, वाहन कार्य, हल प्रवहणादि कार्य उत्तम माने जाते हैं।
बच्चों के जन्म के समय पाद विचार
रजतपाद नक्षत्र- आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, श्लेषा, मघा, पू. फाल्गुनी, उ. फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, ये रजतपाद नक्षत्र कहलाते हैं। इनका फल सौग्यदाभायक है।
लौहपाद नक्षत्र- विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, लौहपाद नक्षत्र हैं, इनका फल धनहानि है।
ताम्रपाद नक्षत्र- उ.षा., पू.षा., श्रवण, धनिष्ठा, शतमिषा, पू.भा., उ.भा. ताम्रपाद कहलाते हैं। इनका फल शुभ है।
सुवर्णपाद नक्षत्र- रेवती, अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, सुवर्णपाद नक्षत्र हैं, इनका फल सर्व सौख्यप्रद है।
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नक्षत्र,राशि तथा ग्रहो का आपसी संबंध—


ताराओ का समुदाय अर्थात तारों का समूह नक्षत्र कहलाता हैं |विभिन्न रूपो और आकारो मे जो तारा पुंज दिखाई देते हैं उन्हे नक्षत्रो की संज्ञा दी गयी हैं | सम्पूर्ण आकाश को 27 भागो मे बांटकर प्रत्येक भाग का एक नक्षत्र मान लिया गया हैं | पृथ्वी अपना घूर्णन करते समय जब एक नक्षत्र से दूसरे पर जाती हैं या होती हैं तो इससे यह पता चलता हैं की हमारी पृथ्वी कितना चल चुकी हैं अब चूंकि नक्षत्र  अपने नियत स्थान मे स्थिर रहते हैं धरती पर हम यह मानते हैं की नक्षत्र गुज़र रहे हैं |


गणितीय दृस्टी से कहे तो जिस मार्ग से पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती हैं उसी मार्ग के आसपास ही “नक्षत्र गोल”मे समस्त ग्रहो का भी मार्ग हैं,जो क्रांतिव्रत से अधिक से अधिक सात अंश का कोण बनाते हुये चक्कर लगाते हैं |इस विशिष्ट मार्ग का आकाशीय विस्तार “राशि” हैं जिसके 12 भाग हैं और प्रत्येक भाग 30 अंशो का हैं | यह 12 राशि भाग धरती से देखने पर जैसे नज़र आते हैं उसी आधार पर इनके नाम रखे गए हैं |इस प्रकार मेष से लेकर मीन तक राशिया मानी गयी हैं |


रशिपथ एक अंडाकार वृत की तरह हैं जिसके 360 अंश हैं | इन अंशो को 12 भागो मे बांटकर(प्रत्येक 30 अंश) राशि नाम दिया गया हैं | अब यदि 360 अंशो को 27 से भाग दिया जाये तो प्रत्येक भाग 13 अंश 20 मिनट का होता हैं जिसे गणितिय दृस्टी से एक “नक्षत्र” माना जाता हैं |प्रत्येक नक्षत्र को और सूक्ष्म रूप से जानने के लिए 4 भागो मे बांटा गया हैं (13 अंश 20 मिनट/4=3 अंश 20 मिनट) जिसे नक्षत्र के चार चरण कहाँ जाता हैं |


इस प्रकार सरल भाषा मे कहे तो पूरे ब्रह्मांड को 12 राशि व 27 नक्षत्रो मे बांटा गया हैं जिनमे हमारे 9 ग्रह भ्रमण करते रहते हैं | अब यदि इन 27 नक्षत्रो को 12 राशियो से भाग दिया जाये तो हमें एक राशि मे सवा दो नक्षत्र प्राप्त होते हैं अर्थात दो पूर्ण नक्षत्र तथा तीसरे नक्षत्र का एक चरण कुल 9 चरण, यानि ये कहाँ जा सकता हैं की एक राशि मे सवा दो नक्षत्र होते हैं या नक्षत्रो के 9 चरण होते हैं | हर राशि का एक स्वामी ग्रह होता हैं जिसे हम राशि स्वामी कहते हैं इस प्रकार कुल मिलाकर यह कहाँ जा सकता हैं की एक राशि जिसका  स्वामी कोई ग्रह हैं उसमे 9 नक्षत्र चरण अर्थात सवा दो नक्षत्र होते हैं |


किस राशि मे कौन से नक्षत्र व नक्षत्र चरण होते हैं और उनके स्वामी ग्रह कौन होते हैं इसको ज्ञात करने का एक सरल तरीका इस प्रकार से हैं |


सभी 27 नक्षत्रो को क्रमानुसार लिखकर उनके स्वामियो के आधार पर याद करले | अब नक्षत्र चरण के लिए निम्न सूत्र याद करे |


नक्षत्र चरण –राशिया
4 4 1-{ मेष,सिंह,धनु }
3 4 2 –{ वृष,कन्या,मकर }
2 4 3-{ मिथुन,तुला,कुम्भ }
1 4 4-{ कर्क,वृश्चिक,मीन }


आरंभ के 3 नक्षत्र केतू,शुक्र व सूर्य ग्रह के हैं ज़ो क्रमश; मेष,सिंह व धनु राशि मे ही आएंगे | इसके बाद तीसरा नक्षत्र (शेष 3 चरणो की वजह से ),चौथा व पांचवा नक्षत्र सूर्य,चन्द्र व मंगल के हैं जो क्रमश; वृष, कन्या व मकर राशि मे ही आएंगे |अब अगले(शेष)नक्षत्र मंगल,राहू व गुरु के हैं जो मिथुन,तुला व कुम्भ राशि मे ही आएंगे तथा अंत मे गुरु(शेष),शनि व बुध के नक्षत्र कर्क,वृश्चिक व मीन राशि मे ही आएंगे |
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जन्म नक्षत्र का व्यक्तित्व पर प्रभाव–


आकाश मंडल में 27 नक्षत्र और अभिजीत को मिलाकर कुल 28 नक्षत्र होते हैं। राशियों पर 27 नक्षत्रों का ही प्रभाव माना गया है। जन्म के समय हम किस नक्षत्र में जन्में हैं, उसका स्वामी कौन है व उसकी जन्म कुंडली में किस प्रकार की स्थिति है। 


जन्म के समय का नक्षत्र उदित है या अस्त, वक्री है या मार्गी किन ग्रहों की दृष्टि युति संबंध है व राशि स्वामी का संबंध कैसा है।नक्षत्र स्वामी का राशि स्वामी में बैर तो नही जन्म कुंडली में उन दोनों ग्रहों की स्थिति किस प्रकार है। यह सब ध्यान में रखकर हमारे बारे में जाना जा सकता है।


01…अश्विनी नक्षत्र का व्यक्तित्व पर प्रभाव:–


ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत बताया गया है कि नक्षत्रों की कुल संख्या२७ है विशेष परिस्थिति में अभिजीत को लेकर इनकी संख्या २८ हो जाती है। गोचरवश नक्षत्र दिवस परिवर्तित होता रहता है। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार हर नक्षत्र का अपना प्रभाव होता है। जिस नक्षत्र में व्यक्ति का जन्म होता है उसके अनुरूप उसका व्यक्तित्व, व्यवहार और आचरण होता है। 


नक्षत्रों में सबसे पहला अश्विनी होता है इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है वे कैसे होते हैं आइये इसे जानें:—


ज्योतिषशास्त्र में अश्विनी नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्रों के अन्तर्गत रखा गया है। इस नक्षत्र का स्वामी केतुदेव हैं। इस नक्षत्र में उत्पन्न होने वाले व्यक्ति बहुत ही उर्जावान होते हैं। ये सदैव सक्रिय रहना पसंद करते हैं इन्हें खाली बैठना अच्छा नहीं लगता, ये हमेशा कुछ न कुछ करते रहना पसंद करते हैं। इस नक्षत्र के जातक उच्च महत्वाकांक्षा से भरे होते हैं, छोटे-मोटे काम से ये संतुष्ट नहीं होते, इन्हें बड़े और महत्वपूर्ण काम करने में मज़ा आता है।अश्विनी नक्षत्र में जिनका जन्म होता है वे रहस्यमयी होते हैं। इन्हें समझपाना आमजनो के लिए काफी मुश्किल होता है। ये कब क्या करेंगे इसका अंदाज़ा लगाना भी कठिन होता है। ये जो भी हासिल करने की सोचते हैं उसे पाने के लिए किसी भी हद तक जाने से नहीं डरते। ये इस प्रकार के कार्य कर जाते हैं जिसके बारे में कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा पाता। इनके स्वभाव और व्यक्तित्व की एक बड़ी कमी है कि इनमें उतावलापन बहुत होता है। ये किसी बात पर बहुत जल्दी गुस्सा करने लग जाते हैं। इनके व्यक्तित्व की एक बड़ी कमी यह है कि ये काम को करने से पहले नहीं सोचते अपितु बाद में उस पर विचार करते हैं। जो भी इनसे शत्रुता करता है उनसे बदला लेने में ये पीछे नहीं हटते, अपने दुश्मनों को पराजित करना इन्हें अच्छी तरह आता है। इस नक्षत्र के जातक को दबाव या ताकत से वश में नहीं किया जा सकता। ये प्रेम एवं अपनत्व से ही वश में आते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति उत्तम एवं आदर्श मित्र होते हैं ये छल कपट से दूर रहते हैं तथा सच्ची मित्रता निभाते हैं, ये अपने मित्र के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। ये यूं तो बाहर से सख्त दिखते हैं परंतु भीतर से कोमल हृदय के होते हैं। इन व्यक्तियों का बचपन संघर्ष में गुजरता है। ये अपनी धुन के पक्के होते हैं, जो भी तय कर लेते हैं उसे पूरा करके दम लेते हैं।
02… भरणी नक्षत्र के जातक का व्यक्तित्व:- 


नक्षत्रों की कड़ी में भरणी को द्वितीय नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र ग्रह होता है। जो व्यक्ति भरणी नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे सुख सुविधाओं एवं ऐसो आराम चाहने वाले होते हैं। इनका जीवन भोग विलास एवं आनन्द में बीतता है। ये देखने में आकर्षक व सुन्दर होते हैं। इनका स्वभाव भी सुन्दर होता है जिससे ये सभी का मन मोह लेते हैं। इनके जीवन में प्रेम का स्थान सर्वोपरि होता है। इनके हृदय में प्रेम तरंगित होता रहता है ये विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति आकर्षण एवं लगाव रखते हैं।भरनी नक्षत्र के जातक उर्जा से परिपूर्ण रहते हैं। ये कला के प्रति आकर्षित रहते हैं और संगीत, नृत्य, चित्रकला आदि में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। ये दृढ़ निश्चयी एवं साहसी होते हैं। इस नक्षत्र के जातक जो भी दिल में ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। आमतौर पर ये विवाद से दूर रहते हैं फिर अगर विवाद की स्थिति बन ही जाती है तो उसे प्रेम और शान्ति से सुलझाने का प्रयास करते हैं। अगर विरोधी या विपक्षी बातों से नहीं मानता है तो उसे अपनी चतुराई और बुद्धि से पराजित कर देते हैं।जो व्यक्ति भरणी नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे विलासी होते हैं। अपनी विलासिता को पूरा करने के लिए ये सदैव प्रयासरत रहते हैं और नई नई वस्तुएं खरीदते हैं। ये साफ सफाई और स्वच्छता में विश्वास करते हैं। इनका हृदय कवि के समान होता है। ये किसी विषय में दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं। ये नैतिक मूल्यों का आदर करने वाले और सत्य का पालन करने वाले होते हैं। ये रूढ़िवादी नहीं होते हैं और न ही पुराने संस्कारों में बंधकर रहना पसंद करते हें। ये स्वतंत्र प्रकृति के एवं सुधारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले होते हैं। इन्हें झूठा दिखावा व पाखंड पसंद नहीं होता।इनका व्यक्तित्व दोस्ताना होता है और मित्र के प्रति बहुत ही वफादार होते हैं। ये विषयों को तर्क के आधार पर तौलते हैं जिसके कारण ये एक अच्छे समालोचक होते हैं। इनकी पत्नी गणवंती और देखने व व्यवहार मे सुन्दर होती हैं। इन्हें समाज में मान सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है।
03..पहली नज़र के प्यार पर नहीं करते ऐतबार कृतिका नक्षत्र के जातक:-


ज्योतिषशास्त्र में नक्षत्रों को काफी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जब भी किसी व्यक्ति के जीवन के सम्बन्ध में कोई भविष्यवाणी करनी होती है तब ग्रह स्थिति, राशि आदि के साथ नक्षत्रों का भी आंकलन किया जाता है। नक्षत्र न केवल भविष्य को दर्शाते हैं वरन इंसान के व्यक्तित्व को भी उजागर करते है।ज्योतिषशास्त्री यहां तक कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति का स्वभाव कैसा है, उसका व्यक्तित्व एवं उसकी जीवन शैली किस प्रकार की है यह व्यक्ति के जन्म के समय नक्षत्रों की स्थिति को देखकर जाना जा सकता है। नक्षत्रों का व्यक्तित्व पर प्रभाव की कड़ी में हम यहां नक्षत्रों की गणना में तीसरे स्थान पर रहने वाले नक्षत्र कृतिका की बात करते हैं।सूर्यदेव को कृतिका नक्षत्र का स्वामी माना जाता है । इन नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर सूर्य का प्रभाव रहता है। सूर्य के प्रभाव के कारण ये आत्म गौरव से परिपूर्ण होते हैं। ये स्वाभिमानी होंते हैं और तुनक मिज़ाज भी, छोटी-छोटी बातों पर ये उत्तेजित हो उठते हैं और गुस्से से लाल पीले होने लगते हैं। इस नक्षत्र के जातक उर्जा से परिपूर्ण होते हैं और दृढ़ निश्चयी होते हैं जो बात मन में ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं।कृतिका नक्षत्र में पैदा लेने वाले मनुष्य लगनशील होते हैं, जिस काम को भी अपने जिम्मे लेते हैं उसमें परिश्रम पूर्वक जुटे रहते हैं। ये नियम के पक्के होते हैं, किसी भी स्थिति में नियम और सिद्धांत से हटना पसंद नहीं करते। इस नक्षत्र के  जातक सरकारी क्षेत्र में प्रयास करते हैं तो इन्हें अच्छी सफलता मिलती है। शारीरिक रूप से ये स्वस्थ और सेहतमंद रहते हैं। ये व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी में अधिक कामयाब होते हैं। इनके जीवन में इनका सिद्धांन्त, जीवनमूल्य काफी अहम होता है। अपने सिद्धांत और आदर्शवादिता के कारण समाज में इन्हें काफी मान सम्मान मिलता है। ये समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में आदर प्राप्त करते हैं।जो व्यक्ति इस नक्षत्र में पैदा होते हैं वे महत्वाकांक्षी होते हैं। ये नौकरी में हों  अथवा व्यवसाय में अपना प्रभुत्व बनाये रखते हें, इस नक्षत्र के जातक अगर सरकारी नौकरी में होते हैं तो पूरे दफ्तर पर नियंत्रण बनाये रखते हैं। इनकी मित्रता का दायरा बहुत छोटा होता है क्योंकि ये लोगों से अधिक घुलते मिलते नहीं हैं परंतु जिनसे मित्रता करते हैं उनकी मित्रता को दिलोजान से निभाते हैं। शत्रुओं के प्रति इनका व्यवहार काफी सख्त़ होता है। ये जीवन में कभी भी हार नहीं मानते हैं और शत्रुओं को पराजित करने की क्षमता रखते हैं।ये प्रेम सम्बन्धों के मामले से दूर रहना पसंद करते हैं। इनकी संतान कम होती है, परंतु पहली संतान गुणवान व यशस्वी होती है। पत्नी से इनके सम्बन्ध सामान्य रहते हैं।
04..भावुक और संवदेनशील होते हैं रोहिणी नक्षत्र के जातक:-


हर इंसान के व्यक्तित्व पर नक्षत्रों का प्रभाव” इस कड़ी में हम रोहिणी नक्षत्र पर चर्चा करेंगे। ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार रोहिणी चारों चरणों में वृषभ राशि में होता है। जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनका व्यक्तित्व कैसा होता है चलिए देखते हैं। चन्द्रमा को रोहिणी नक्षत्र का स्वामी कहा जाता है। इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है वे कल्पना की ऊंची उड़ान भरने वाले होते हैं। वे अपनी कल्पना की दुनियां में खुश रहना पसंद करते हैं। इनका मन हिरण के समान चंचल होता है, किसी विषय पर देर तक विचार करना और मुद्दे पर कायम रहना इनके लिए कठिन होता है। कला के प्रति इनमें गहरी अभिरूचि होती है ये संगीत, नृत्य, चित्रकारी, शिल्पकला आदि में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। इनका स्वभाव मधुर और प्रेम से ओत प्रोत रहता है। इनका जीवन सुखमय रहता है, ये सभी प्रकार के सांसारिक सुखों का आनन्द लेते हैं। अगर ये प्रयास करें तो जीवन में निरंतर आगे की ओर बढ़ते रहते हैं। ये जिस विभाग या क्षेत्र में होते हैं उसमें उच्च पद तक जाते हैं। विपरीत लिंग वालों के प्रति इनमें विशेष आकर्षण देखा जाता है, इनका जीवन रोमांस से भरपूर होता है।रोहिणी नक्षत्र के जातक सरकारी विभाग में हों या व्यवसाय में दोनों ही जगहों पर ये प्रसिद्धि और यश प्राप्त करते हैं  इन्हें माता से पूरा सहयोग मिलता है और प्रेम प्राप्त होता है, मां के साथ इस नक्षत्र के जातक का विशेष लगाव रहता है। ये हृदय से भावुक और संवदेनशील होते हैं, भावनाओं पर नियंत्रण रखना इनके लिए अच्छा रहता है। ये जितने कल्पनाशील होते हैं, उसके अनुरूप अगर कल्पना को यथार्थ बनाने का प्रयास करें तो काफी आगे जा सकते हैं अन्यथा कल्पना रेत के महल बनकर रह जाते हैं। इनके जीवन में स्थायित्व की कमी पायी जाती है क्योंकि ये चींजों में परिवर्तन करते रहते हैं। इन्हे यात्रा करना, सैर सपाटा करना काफी अच्छा लगता है, परंतु अपने घर के प्रति भी बहुत लगाव रखते हैं। जीवन साथी के प्रति आकर्षण और हृदय से लगाव रहने के कारण इनका वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखमय और आनन्दमय रहता है। ये अपने मन पर बोझ लेकर नहीं चलते हैं इसलिए हमेशा प्रसन्न और खुश रहते हैं। इनके बच्चे समझदार और नेक गुणों वाले होते हैं। अपने नेक और सुन्दर व्यवहार के कारण ये समाज और अपने परिवेश में आदर व सम्मान प्राप्त करते हैं।                        
05…बहादुर होते हैं मृगशिरा नक्षत्र के जातक:-


वैदिक ज्योतिष में मूल रूप से २७ नक्षत्रों का जिक्र किया गया है। नक्षत्रों के गणना क्रम में मृगशिरा नक्षत्र का स्थान पांचवां है । इस नक्षत्र पर मंगल का प्रभाव रहता है क्योंकि इस नक्षत्र का स्वामी मंगलदेव  होते है।जैसा कि हम आप जानते हैं व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उसके स्वभाव पर उस नक्षत्र विशेष का प्रभाव रहता है। नक्षत्र विशेष के प्रभाव से व्यक्तित्व का निर्माण होने के कारण ज्योतिषशास्त्री जन्म कुण्डली में जन्म के समय उपस्थित नक्षत्र के आधार पर व्यक्ति के विषय में तमाम बातें बता देते हैं। जिनके जन्म के समय मृगशिरा नक्षत्र होता है अर्थात जो मृगशिरा नक्षत्र में पैदा होते हैं उनके विषय में ज्योतिषशास्त्री कहते हैं,मृगशिरा नक्षत्र का स्वामी मंगल होता है। जो व्यक्ति मृगशिरा नक्षत्र में जन्म लेते हैं उन जातकों पर मंगलदेव  का प्रभाव देखा जाता है यही कारण है कि इस नक्षत्र के जातक दृढ़ निश्चयी होते हैं । ये स्थायी काम करना पसंद करते हैं, ये जो काम करते हैं उसमें हिम्मत और लगन पूर्वक जुटे रहते हैं। ये आकर्षक व्यक्तित्व और रूप के स्वामी होते हैं।ये हमेशा सावधान एवं सचेत रहते हैं। ये सदा उर्जा से भरे रहते हैं, इनका हृदय निर्मल और पवित्र होता है। अगर कोई इनके साथ छल करता है तो ये धोखा देने वाले को सबक सिखाये बिना दम नहीं लेते। इनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है लोग इनसे  मित्रता करना पसंद करते हैं। ये मानसिक तौर पर बुद्धिमान होते और शारीरिक तौर पर तंदरूस्त होते हैं। इनके स्वभाव में मौजूद उतावलेपन के कारण कई बार इनका बनता हुआ काम बिगड़ जाता है या फिर आशा के अनुरूप इन्हें परिणाम नहीं मिल पाता है। ये संगीत के शौकीन होते हैं, संगीत के प्रति इनके मन में काफी लगाव रहता है। ये स्वयं भी सक्रिय रूप से संगीत में भाग लेते हैं परंतु इसे व्यवसायिक तौर पर नहीं अपनाते हैं। इन्हें यात्रओं का भी शौक होता है, इनकी यात्राओं का मूल उद्देश्य मनोरंजन होता है। कारोबार एवं व्यवसाय की दृष्टि से यात्रा करना इन्हें विशेष पसंद नहीं होता है।व्यक्तिगत जीवन में ये अच्छे मित्र साबित होते हैं, दोस्तों की हर संभव सहायता करने हेतु तैयार रहते हैं। ये स्वाभिमानी होते हैं और किसी भी स्थिति में अपने स्वाभिमान पर आंच नहीं आने देना चाहते। इनका वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखमय होता है क्योंकि ये प्रेम में विश्वास रखने वाले होते हैं। ये धन सम्पत्ति का संग्रह करने के शौकीन होते हैं। इनके अंदर आत्म गौरव भरा रहता है। ये सांसारिक सुखों का उपभोग करने वाले होते हैं। मृगशिरा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बहादुर होते हैं ये जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव को लेकर सदैव तैयार रहते हैं 
06..आर्द्रा नक्षत्र के जातकव्यक्तित्व:-


इस नक्षत्र की राशि मिथुन होती है। जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं उन पर जीवनभर राहु देव और बुधदेव  का प्रभाव रहता है। राहुदेव और बुधदेव के प्रभाव के कारण व्यक्ति का जीवन, स्वभाव और व्यक्तित्व किस प्रकार होता है चलिए इसकी खोज करते हैं।शायद आपको पता होगा कि राहुदेव के प्रभाव से  जातक  को राजनीतिक क्षेत्र  के हर प्रकार से विजय प्राप्त करता है और अन्य प्रकार की कूटनीतिक चालें भी चलना जानता है । इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को राहुदेव का यह गुण स्वभाविक रूप से मिलता है फलत: जातक राजनीति में अव्वल होते है और चतुराई से अपना मकसद पूरा करना जानते है। ये किसी से भी अपना काम आसानी से निकाल लेते हैं। अपनी मधुर वाणी और वाक्पटुता से ये लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इनकी सफलता और कामयाबी का एक बड़ा राज है, इनमें वक्त की नब्ज़ को पकड़ने की क्षमता का होना व उनके अनुसार अपने आप को तैयार कर लेना। यह अपने सामने वाले व्यक्ति को भी पढ़ना जानते हैं जिससे आसानी से कोई इन्हें मात नहीं दे पाता।इस नक्षत्र के जातक का मस्तिष्क हमेशा क्रियाशील और सक्रिय रहता है ये एक बार जिस काम को करने की सोचते हैं उसमें जी-जान से जुट जाते हैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ये पूरी ताकत झोंक देते हैं, सफलता हेतु साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति भी खुल कर अपनाते हैं। ये राजनीति में जितने पारंगत होते हैं उतने ही आध्यत्म में रूचि रखते है। ये स्वयं अध्यात्म को अपनाते हैं और दूसरो को भी इस दिशा में प्रेरित करते हैं। अपने गुणों और क्षमताओं के कारण इनमें अहम की भावना भी कभी कभी दृष्टिगोचर होती है इस नक्षत्र के जातक कभी खाली बैठना पसंद नहीं करते, इनके दिमाग में हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है। ये आम तौर पर प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में सक्रिय रहते हैं और अगर प्रत्यक्ष रूप से न भी रहें तो अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक हलकों में इनकी अच्छी पकड़ रहती है, ये राजनेताओं से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति निजी लाभ के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं, ये अपने लाभ के लिए नैतिकता को ताक पर रखने से भी नहीं चूकते हैं। इनके स्वभाव की इस कमी के कारण समाज में इनकी छवि बहुत अच्छी नहीं रहती और लोग इनके लिए नकारात्मक विचार रखने लगते हैं।आर्द्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने से विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति विशेष लगाव रखते हैं । ये सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए काफी लालायित रहते हैं।  हैं।
07…पुनर्वसु के जातक का व्यक्तित्व:–इस नक्षत्र के विषय में मान्यता है कि जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनमें कुछ न कुछ दैवी शक्ति होती है। इस नक्षत्र के जातक में और क्या गुण होते हैं और उनका व्यक्तित्व कैसा होता है आइये चर्चा करें:ज्योतिषशास्त्र मे कहा गया है कि जो व्यक्ति पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म् लेते हैं उनका हृदय कोमल होता है, उनकी वाणी में कोमलता व मधुरता रहती है। इनका शरीर भारी भड़कम होता है, इनकी स्मरण क्षमता काफी अच्छी होती है, ये एक बार जिस चीज़ को देख या पढ़ लेते हैं उसे लम्बे समय तक अपनी यादों में बसाये रखते हैं। पुनर्वसु के जातक की अन्तदृष्टि काफी गहरी होती है। इनका स्वभाव एवं व्यवहार सरल और नेक होता है जिसके कारण समाज में इनको काफी मान सम्मान एवं आदर प्राप्त होता है।पुनर्वसु नक्षत्र में जिस व्यक्ति का जन्म होता है वे काफी मिलनसार होते हैं, ये सभी के साथ प्रेम और स्नेह के साथ मिलते है, इनका व्यवहार सभी के साथ दोस्ताना होता है। इनके ऊपर दैवी कृपा बनी रहती है। जब भी इनपर कोई संकट या मुश्किल आती है अदृश्य शक्तियां स्वयं इनकी मदद करती हैं। ये आर्थिक मामलों के अच्छे जानकार होते हैं, वित्त सम्बन्धी मामलों में ये सफलता प्राप्त करते हैं। अंग्रेजी साहित्य में रूचि रखते हैं, और इस भाषा के अच्छे जानकार होते हैं।इस लग्न में जिनका जन्म होता है वे उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करते हैं, अपनी शिक्षा के बल पर ये उच्च पद पर आसीन होते हैं। इन्हें सरकारी क्षेत्र में भी उच्च पद प्राप्त होता है। ये समाज और राजनीति से जुड़े बड़े बड़े लोगों से सम्पर्क बनाए रखते है। ये राजनीति में भी सक्रिय होते हैं, अगर राजनीति में न हों तो अप्रत्यक्ष रूप से नेताओं से निकटता बनाए रखते हैं। इस नक्षत्र के जातक अगर सक्रिय राजनीति में भाग लें तो इन्हें सत्ता सुख प्राप्त होता है .इनका पारिवारिक और वैवाहिक जीवन अत्यंत सुखद होता है। इनके बच्चे शिक्षित, समझदार होते हैं, ये जीवन में कामयाब होकरउच्च स्तर का जीवन प्राप्त करते हैं। पुनर्वसु नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति के पास काफी मात्रा में धन होता है। ये अपने व्यवहार और स्वभाव के कारण समाज बेहतर मुकाम हासिल करते हैं।
08..पुष्य नक्षत्र के जातक परिपक्व होते हैं:—-


पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनिदेव है । शनि के प्रभाव से इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव व व्यवहार कैसा होता है आइये इस पर चर्चा करते हैं।ज्योतिषशास्त्र में पुष्य नक्षत्र को बहुत ही शुभ माना गया है । वार एवं पुष्य नक्षत्र के संयोग से रवि-पुष्य जैसे शुभ योग का निर्माण होता है । इस नक्षत्र में जिसका जन्म होता है वे दूसरों की भलाई के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, इन्हें दूसरों की सेवा एवं मदद करना अच्छा लगता है।। इन नक्षत्र के जातक को बाल्यावस्था में काफी मुश्किलों एवं कठिनाईयों से गुजरना पड़ता है। कम उम्र में ही विभिन्न परेशानियों एवं कठिनाईयों से गुजरने के कारण युवावस्था में कदम रखते रखते परिपक्व हो जाते हैं।इस नक्षत्र के जातक मेहनत और परिश्रम से कभी पीछे नहीं हटते और अपने काम में लगन पूर्वक जुटे रहते हैं। ये अध्यात्म में काफी गहरी रूचि रखते हैं और ईश्वर भक्त होते हैं। इनके स्वभाव की एक बड़ी विशेषता है कि ये चंचल मन के होते हैं। ये अपने से विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति काफी लगाव व प्रेम रखते हैं। ये यात्रा और भ्रमण के शौकीन होते हैं। ये अपनी मेहनत से जीवन में धीरे-धीरे तरक्की करते जाते हैं।पुष्य नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति अपनी मेहनत और लगन से जीवन में आगे बढ़ते हैं। ये मिलनसार स्वभाव के व्यक्ति होते हैं। ये गैर जरूरी चीज़ों में धन खर्च नहीं करते हैं, धन खर्च करने से पहले काफी सोच विचार करने के बाद ही कोई निर्णय लेते हैं। ये व्यवस्थित और संयमित जीवन के अनुयायी होते हैं। अगर इनसे किसी को मदद चाहिए होता है तो जैसा व्यक्ति होता है उसके अनुसार उसके लिए तैयार रहते हैं और व्यक्तिगत लाभ की परवाह नहीं करते।ये अपने जीवन में सत्य और न्याय को महत्वपूर्ण स्थान देते हैं। ये किसी भी दशा में सत्य से हटना नही चाहते, अगर किसी कारणवश इन्हें सत्य से हटना पड़ता है तो, ये उदास और खिन्न रहते हैं। ये आलस्य को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते, व एक स्थान पर टिक कर रहना पसंद नहीं करते। 
09…आश्लेषा नक्षत्र के जातक:- 


नक्षत्रों की गणना के क्रम में आश्लेषा नक्षत्र नवम स्थान पर आता है। यह नक्षत्र कर्क राशि के अन्तर्गत आता है। इस नक्षत्र का स्वामी बुध होता है। इस नक्षत्र को अशुभ नक्षत्र की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि यह गण्डमूल नक्षत्र के अन्तर्गत आता है। इस नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति गण्डमूल नक्षत्र से प्रभावित होते हैं।शास्त्रों का मानना है कि यह नक्षत्र विषैला होता है। प्राण घातक कीड़े मकोड़ो का जन्म भी इसी नक्षत्र में होता है। ऐसी मान्यता है कि इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है व उनमें विष का अंश पाया जाता है। इस नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव, व्यवहार और व्यक्तित्व कैसा होता है आइये इसे और भी विस्तार से जानें:ज्योतिषशास्त्र कहता है आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बहुत ही ईमानदार होते हैं परंतु मौकापरस्ती में भी पीछे नहीं रहते यानी ये लोगों से तब तक बहुत अधिक घनिष्ठता बनाए रखते हैं जबतक इनको लाभ मिलता है। इनका स्वभाव हठीला होता है, ये अपने जिद आगे किसी की नहीं सुनते हैं। भरोसे की बात करें तो ये दूसरे लोगों पर बड़ी मुश्किल से यकीन करते हैं।आश्लेषा नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होते हैं और अपनी बुद्धि व चतुराई से प्रगति की राह में आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। ये अपनी वाणी की मधुरता का भी लाभ उठाना खूब जानते हैं। ये शारीरिक मेहनत की बजाय बुद्धि से काम निकालना जानते है। ये व्यक्ति को परखकर उसके अनुसार अपना काम निकालने में होशियार होते हैं। ये खाने पीने के भी शौकीन होते हैं, परंतु इनके लिए नशीले पदार्थ का सेवन हितकर नहीं माना जाता है।ज्योतिषशास्त्र की मानें तो यह कहता है, जो लोग इस नक्षत्र में पैदा लेते हैं वे व्यवसाय में काफी कुशल होते हैं। ये नौकरी की अपेक्षा व्यापार करना अच्छा मानते हैं, यही कारण है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अधिक समय तक नौकरी नहीं करते हैं, अगर नौकरी करते भी हैं तो साथ ही साथ किसी व्यवसाय से भी जुड़े रहते हैं। इसका कारण यह है कि ये पढ़ाई लिखाई में तो ये सामान्य होते हैं परंतु वाणिज्य विषय में अच्छी पकड़ रखते हैं। ये भाषण कला में प्रवीण होते हैं, जब ये बोलना शुरू करते है तो अपनी बात पूरी करके ही शब्दों को विराम देते हैं। इनमें अपनी प्रशंसा सुनने की भी बड़ी ख्वाहिश रहती है।इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है वे अच्छे लेखक होते हैं। अगर ये अभिनय के क्षेत्र में आते हैं तो सफल अभिनेता बनते हैं। ये सांसारिक और भौतिक दृष्टि से काफी समृद्ध होते हैं एवं धन दौलत से परिपूर्ण होते हैं। इनके पास अपना वाहन होता है, ये व्यवसाय के उद्देश्य से काफी यात्रा भी करते है। इनमें अच्छी निर्णय क्षमता पायी जाती है। इनके व्यक्तित्व की एक बड़ी कमी यह है कि अगर अपने उद्देश्य में जल्दी सफलता नहीं मिलती है तो ये अवसाद और दु:ख से भर उठते हैं। अवसाद और दु:ख की स्थिति में ये साधु संतों की शरण लेते हैं।इस नक्षत्र के जातक का साथ कोई दे न दे परंतु भाईयों से पूरा सहयोग मिलता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाली स्त्री के विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि ये रंग रूप में सामान्य होते हैं, लेकिन स्वभाव एवं व्यवहार से सभी का मन मोह लेने वाली होती है। जो स्त्री इस नक्षत्र के अंतिम चरण में जन्म लेती हैं वे बहुत ही भाग्यशाली होती हैं ये जिस घर में जाती हैं वहां लक्ष्मी बनकर जाती हैं अर्थात धनवान होती हैं।ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि जिनका जन्म इस नक्षत्र में हुआ है उन्हें गण्डमूल नक्षत्र की शांति करवानी चाहिए व भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
10…मघा नक्षत्र के जातक का व्यक्तित्व:-


नक्षत्र मंडल में मघा नक्षत्र गिनती में दसवें स्थान पर आता है । मघा नक्षत्र को भी गण्डमूल नक्षत्र की श्रेणी में रखा गया है। मघा नक्षत्र का स्वामी केतु को माना जाता है। इस नक्षत्र के चारों पद सिंह राशि में आते हैं इसलिए सूर्य का प्रभाव भी इस नक्षत्र के जातक पर रहता है क्योंकि राशि का स्वामी सूर्य होता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर नक्षत्र का क्या प्रभाव रहता है और इस प्रभाव के कारण व्यक्ति का स्वभाव, व्यक्तित्व और व्यवहार कैसा होता है आइये देखेंज्योतिषशास्त्रियों की दृष्टि में जो व्यक्ति मघा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे प्रभावशाली होते हैं। ये  जहां भी रहते हैं अपना दबदबा बनाकर रखते हैं इस नक्षत्र के जातक समझदार होते हैं परंतु क्रोधी भी बहुत होते हैं ये छोटी छोटी बातों पर नाराज़ हो जाते हैं। ये उर्जावान और कर्मठ होते हैं जिस काम का जिम्मा लेते हैं उसे जल्दी से जल्दी पूरा करने की कोशिश करते हैं। इनका दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता है।मघा नक्षत्र के जातकों के विषय में यह कहा जाता है कि ये कभी कभी ऐसा कार्य कर जाते हैं जिससे देखने वाले अचम्भित रह जाते हैं। इनमें स्वाभिमान की भावना प्रबल रहती है, अपने स्वाभिमान के साथ ये कभी समझौता नहीं करते। अपने मान सम्मान को बनाए रखने के लिए ये हर संभव प्रयास करते हैं और सोच विचार कर कार्य करते हैं। जबकि इनके बारे में लोग यह सोचते हैं कि व्यक्ति जल्दबाज है और कोई भी निर्णय सोच समझकर नहीं लेते।इनका ईश्वर में पूर्ण विश्वास होता है। ये ईश्वर में गहरी आस्था रखते हैं। ये सरकार और सरकारी तंत्र से निकट सम्बन्ध बनाकर रखते हैं तथा समाज में भी उच्च वर्ग के लोगों से अच्छे सम्बन्ध बनाए रखते हैं। इन सम्बन्धों के कारण इन्हें काफी लाभ भी मिलता है। ये पूर्ण सांसारिक सुखों का उपभोग करने वाले होते हैं तथा इनके पास कई काम करने वाले होते हैं। धन सम्पत्ति के मामले में ये काफी समझदारी और अक्लमंदी दिखाते है। आर्थिक लाभ का जब मामला होता है तब उसमें पूरी क्षमता लगा देते हैं फलत: सफलता इनके कदमों पर होती है।जहां तक मित्रता का प्रश्न है, इस नक्षत्र के जातकों के बहुत अधिक मित्र नहीं होते हैं, लेकिन जो भी मित्र होते है उनसे अच्छी मित्रता और प्रेम रखते हैं। ये यात्रा के बहुत शौकीन नहीं होते हैं, अगर यात्रा आवश्यक हो तभी सफर पर निकलते हैं अन्यथा घर पर रहना ही पसंद करते हैं। कार्य क्षेत्र में भी ये स्थायित्व को पसंद करते हैं अर्थात स्थिर कार्य करना पसंद करते हैं। बार बार काम में बदलाव लाना इन्हें पसंद नहीं होता।मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या के विषय में कहा जाता है कि ये स्पष्टवादी होती हैं, इनके मन में जो आता है वे नि:संकोच बोलती हैं। ये हिम्मतवाली होती हैं और इनकी आकांक्षाएं बहुत ऊँची होती हैं
 11…पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के जातक:-


जो व्यक्ति पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे संगीत एवं कला के दूसरे क्षेत्र व साहित्य के अच्छे जानकार होते हैं क्योंकि इनमें इन विषयों के प्रति बचपन से ही लगाव रहता है। ये ईमानदार होते हैं व नैतिकता एवं सच्चाई के रास्ते पर चलकर जीवन का सफर तय करते हैं। इनके जीवन में प्रेम का स्थान सर्वोपरि होता है, ये प्रेम को अपने जीवन का आधर मानते हैं। इस नक्षत्र के जातक मार पीट एवं लड़ाई झगड़े से दूर रहना पसंद करते हैं। ये शांति पसंद होते हैं, कलह और विवाद होने पर बातों से समाधान निकालने की कोशिश करते हैं।पूर्वाफाल्गुनी के जातक शांत विचारधारा के होते हैं परंतु जब मान सम्मान पर आंच आने लगता है तो विरोधी को परास्त करने से पीछे नहीं हटते चाहे इसके लिए इन्हे कुछ भी करना पड़े। मित्रों एवं अच्छे लोगों का स्वागत दिल से करते हैं और प्यार से मिलते हैं। इनकी वाणी में मधुरता रहती है तथा अपनी जिम्मेवारियों का निर्वहन करना बखूबी जानते हैं।इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति नौकरी से अधिक व्यवसाय में सफल होते हैं। ये स्वतंत्र विचारधारा के व्यक्ति होते हैं ये किसी के दबाव या अधीन रहकर कार्य करना पसंद नहीं करते हैं। इनपर शुक्र पर गहरा प्रभाव होता है, शुक्र के प्रभाव के कारण ये सांसारिक सुखों के प्रति काफी लगाव रखते हैं। ये अपने से विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति विशेष लगाव रखते हैं। विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति लगाव रहने के कारण इनके प्रेम सम्बन्ध भी काफी चर्चित होते हैं।ये साफ-सफाई व सुन्दर के चाहने वाले होते हैं फलत: ये जीवन में हर वस्तु को व्यवस्थित रूप से रखते हैं। ये अपनी रोजमर्रा की चीजों यथा वस्त्र, पुस्तक एवं अन्य सामान के साथ घर को भी व्यवस्थित और सजा संवार कर रखते हैं। ये मित्र बनाने में निपुण होते हैं फलत: इनकी दोस्ती का दायरा काफी बड़ा होता है। इनके पास काफी मात्रा में धन होता है, और ये हर प्रकार के भौतिक सुखों का आनन्द लेते हैं।इस नक्षत्र में पैदा हाने वाली महिलाओं के विषय में माना जाता है कि वे सुन्दर होती हैं, इनका स्वभाव कोमल होता है परंतु दिखावा और तारीफ सुनना इनके स्वभाव का एक हिस्सा होता है। इनके स्वभाव में चंचलता और अहं का भी समावेश होता है। 
१२  उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के जातक:-उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र  में जिन लोगों का जन्म होता है उनका स्वभाव कैसा होता है,  इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा होता है एवं उनके विषय में ज्योतिषशास्त्र क्या कहता है आइये इस पर विचार करें। नक्षत्र मंडल में उत्तराफाल्गुनी १२ वां नक्षत्र होता है । इस नक्षत्र के स्वामी सूर्य होते हैं । यह नक्षत्र नीले रंग का होता है। इस नक्षत्र में जो लोग जन्म लेते हें उनके स्वभाव, व्यक्तित्व एवं जीवन के सम्बन्ध में ज्योतिषशास्त्र क्या कहता आइये इस विषय पर विचार करें।ज्योतिषशास्त्र के अनुसार उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के जातक उर्जावान होते हैं, ये अपना काम चुस्त फुर्ती से करते हैं। हमेशा सक्रिय रहना इनके व्यक्तित्व की विशेषता होती है। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के जातक बुद्धिमान एवं होशियार कहे जाते हैं। ये भविष्य सम्बन्धी योजना बनाने एवं रणनीति तैयार करने में कुशल होते हैं। इनके चरित्र की इस विशेषता के कारण अगर ये राजनीति के क्षेत्र में आते हैं तो काफी सफल होते हैं। राजनीतिक सफलता दिलाने में इनकी कुटनीतिक बुद्धि का प्रबल हाथ होता है।इनके विषय में यह कहा जाता है कि ये बहुत ही महत्वाकांक्षी होते हैं और अपनी महत्वाकांक्षा पूरा करने के लिए हर संभाव प्रयास करते हैं। ये अपना जो लक्ष्य तय कर लेते हैं उसे हर हाल में हासिल करने की चेष्टा करते हैं। उच्च महत्वाकांक्षा होने के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति छोटा मोटा काम करना पसंद नहीं करते हैं। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति सरकारी क्षेत्र में प्रयास करते हैं तो इन्हें जल्दी और बेहतर सफलता मिलती है। इनके लिए व्यापार एवं व्यवसाय या अन्य निजि कार्य करना लाभप्रद नहीं होता है।जो व्यक्ति उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र  में पैदा होते हैं वे स्थायित्व में यकीन रखते हैं, इन्हें बार बार काम बदलना पसंद नहीं होता है। ये जिस काम में एक बार लग जाते हैं उस काम में लम्बे समय तक बने रहते हैं। मित्रता के सम्बन्ध में भी इनके साथ यह बातें लागू होती हैं, ये जिनसे दोस्ती करते हैं उसके साथ लम्बे समय तक मित्रता निभाते हैं। इनके स्वभाव की विशेषता होती है कि ये स्वयं सामर्थवान होते हुए भी दूसरों से सीखने में हिचकते नहीं हैं। अपने स्वभाव की इस विशेषता के कारण ये निरंतन प्रगति की राह पर आगे बढ़ते हैं। इस राशि के जातक आर्थिक रूप से सामर्थवान होते हैं क्योंकि दृढ़विश्वास एवं लगन के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करने हेतु तत्पर रहते हैं।पारिवारिक जीवन के सम्बन्ध में देखा जाए तो ये अपनी जिम्मेवारियों का पालन अच्छी तरह से करते हैं। अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए ये हर संभव सहयोग एवं प्रयास करते हैं। दूसरों पर दबाव बनाने की आदत के कारण गृहस्थ जीवन में तनाव की स्थिति रहती है।सामाजिक तौर पर इनकी काफी प्रतिष्ठा रहती है और ये अपने आस पास के परिवेश में सम्मानित होते हैं। शारीरिक तौर पर ये सेहतमंद और स्वस्थ रहते हैं।
१३अपनी बुद्धि से बनते हैं धनवान हस्त नक्षत्र के जातक:- भूमंडल में विचरण करने वाले नक्षत्रों में हस्त नक्षत्र का स्थान तेरहवां है। इस नक्षत्र का स्वामी चन्द्रदेव  है। और इस नक्षत्र की राशि कन्या है। ज्योतिषशास्त्र कहता है जो व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उस पर जीवन भर उस नक्षत्र और उस नक्षत्र की राशि का प्रभाव रहता है। ज्योतिष के इस सिद्धांत पर और भी जानकारी लेते हैं और देखते हैं कि हस्त नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति पर इस नक्षत्र और राशि का क्या प्रभाव होता है।ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस नक्षत्र  में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर चन्द्रदेव का प्रभाव रहता है, चन्द्रदेव के प्रभाव के कारण व्यक्ति शांत स्वभाव का होता है, परंतु इनका मन चंचल होता है। दूसरों की सहायता करना इन्हें अच्छा लगता है और इसमें बढ़ चढ़ कर आगे आते हैं। इनका व्यक्तित्व आकर्षक और प्रभावशाली होता है।इस नक्षत्र के जातक पर कन्या राशि का प्रभाव होता है जिसके कारण इनकी बौद्धिक क्षमता अच्छी होती है। इनके मस्तिष्क में नई नई योजनाएं उभरती रहती हैं। ये पढ़ने लिखने में तेज होने के साथ ही शब्दों के भी जादूगर होते हैं, अपनी बातों से अपना सिक्का जमा लेते हैं। किसी भी विषय को आसानी से समझ लेने की क्षमता इनमें बचपन से रहती है, आपकी वाणी में मधुरता और चतुराई का समावेश होता है। बौद्धिक क्षमता प्रबल होने के बावजूद एक कमी होती है कि आप किसी विषय में तुरंत निर्णय नहीं ले पाते हैं।आप शांति पसंद होते हैं, कलह और विवाद की स्थिति से आप दूर रहना पसंद करते हैं। आपके मन में एक झिझक रहती है फिर आप नये नये मित्र बना लेते हैं। आप मित्रों से काम निकालना भी खूब अच्छी तरह से जानते हैं। अवसर आने पर जिधर लाभ दिखाई देता है उस पक्ष की ओर हो लेते हैं।इस नक्षत्र के जातक नौकरी की अपेक्षा व्यवसाय करना पसंद करते हैं। व्यवसाय के प्रति लगाव के कारण ये इस क्षेत्र में काफी तेजी से प्रगति करते हैं। आर्थिक रूप से इनकी स्थिति अच्छी रहती है। इनके पास काफी मात्रा में धन होता है। ये हर प्रकार के सांसारिक सुखों का आनन्द लेते हैं और सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं। इनका पारिवारिक जीवन सुखमय और आनन्दमय रहता है। जीवन साथी से इन्हें पूर्ण सहयोग एवं सहायता प्राप्त होती है। अपने कार्यों से ये समाज में मान सम्मान एवं आदर प्राप्त करते हैं।कई मौंकों पर अपने स्वार्थ को प्रमुखता देने के कारण कुछ लोग इन्हें स्वार्थी भी कहने लगते हैं। ये लोगों के कहने पर विशेष ध्यान नहीं देते हैं और जो अपने मन में होता है वही करते हैं, ये अपनी धुन में रहने वाले होते हैं। इन्हें जीवन में कभी भी आर्थिक तंगी या परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है क्योंकि ये अपनी बुद्धि का इस्तेमाल धनोपार्जन में बखूबी कर पाते हैं। अपनी बुद्धि से अर्जित धन के कारण इन्हें कभी भी आर्थिक रूप से परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।
 १४.खुशहाल और सुखमय जीवन जीते हैं चित्रा नक्षत्र के जातक:-चित्रा नक्षत्र की गिनती शुभ नक्षत्रों में की जाती है। आकाशमंडल में इस नक्षत्र का स्थान चौदहवां है। इस नक्षत्र का स्वमी मंगल ग्रह होता है इस नक्षत्र के दो चरण कन्या राशि में होते हैं और दो तुला राशि में। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस नक्षत्र का रंग काला होता है।चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर मंगल ग्रह का और इसके राशियों का भी प्रभाव देखा जाता है। म्रगल और राहु के कारण चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव, व्यवहार और व्यक्तित्व कैसा होता है आइये इस विषय पर हम आप चर्चा में भाग लें। ज्योतिषशास्त्र के मतानुसार जिस व्यक्ति का जन्म चित्रा नक्षत्र में होता है वह व्यक्ति मिलनसार होता है अर्थात वह सभी के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाये रखते हैं व जो भी लोग इनके सामने आते हैं उनके साथ खुलकर मिलते हैं। ये उर्जा से भरे होते हैं और इनमें साहस कूट कूट कर भरा होता है ये किसी भी काम में पीछे नहीं हटते हैं और अपनी उर्जा शक्ति से कार्य को पूरा करते हैं। ये विपरीत स्थितियों से घबराते नहीं हैं बल्कि उनका साहस पूर्वक सामना करते हैं और कठिनाईयों पर विजय हासिल करके आगे की ओर बढ़ते रहते हैं।आपके स्वभाव में व्यवहारिकता का पूर्ण समावेश होता है। व्यावहारिकता का दामन थाम कर आगे बढ़ने के कारण आप जीवन में निरन्तर सफलता की राह में आगे बढ़ते रहते हैं। ये काम में टाल मटोल नहीं करते हैं, जो भी काम करना होता है उसे जल्दी से जल्दी पूरा करके निश्चिन्त हो जाना चाहते हैं। आपके व्यवहार और स्वभाव में मानवीय गुण स्पष्ट दिखाई देता है। अपने मानवीय गुणों के कारण आप आदर प्राप्त करते हैं। इनके स्वभाव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है और ये किसी बात पर तुरंत उत्तेजित हो जाते हैं। इस नक्षत्र के जातक अगर संयम से काम लें तो इनके लिए बहुत ही अच्छा रहता है। जिन व्यक्तियों का जन्म चित्रा नक्षत्र में होता है वे लोग नौकरी से अधिक व्यवसाय को महत्व देते हैं। व्यवसायिक मामलों में इनकी बुद्धि खूब चलती है, अपनी बुद्धि से ये व्यवसाय में काफी तरक्की करते हैं। इस नक्षत्र के जातक बोलने की कला में भी प्रवीण होते हैं जिसके कारण वकील के रूप में भी सफल होते हैं ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि इस नक्षत्र के जातक की सबसे बड़ी ताकत है “परिश्रम”,  अपनी इस ताकत के कारण ये जिस काम में भी हाथ लगाते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं।चित्रा नक्षत्र का एक महत्वपूर्ण गुण है आशावाद। यह इनका गुण भी है और इनकी ताकत भी, यही कारण है कि ये जल्दी किसी बात से निराश नहीं होते हैं। इनके जीवन में सांसारिक सुखों की कमी नहीं रहती है। ये हर प्रकार के सांसारिक एवं भौतिक सुखों का उपभोग करते हैं ये काफी धनवान होते हैं क्योंकि ये धन दौलत जमा करने के शौकीन होते हैं। आपके पास सवारी के लिए अपना वाहन होता है। इनका पारिवारिक जीवन सुखमय और खुशहाल होता है, आपको अपने जीवनसाथी से पूर्ण सहयोग एवं सुख मिलता है। संतान की दृष्टि से भी आप काफी भाग्यशाली होते हैं, आपकी संतान काफी समझदार और होशियार होती है, अपनी बुद्धि और समझदारी से जीवन में उन्नति कती है। चित्रा नक्षत्र के जातकों को मित्रों एवं रिश्तेदारों से भी समर्थन एवं सहयोग मिलता है। कुल मिलाकर कहा जाय तो चित्रा नक्षत्र में जिनका जन्म होता है उनका जीवन खुशहाल और और सुखमय होता है।
१५.स्वाति नक्षत्र के जातक मोती के समान चमकते हैं:- स्वाति नक्षत्र का स्वरूप मोती के समान है। इसे शुभ नक्षत्रों में गिना जाता है। इस नक्षत्र के विषय में मान्यता है कि, इस नक्षत्र के दौरान जब वर्षा की बूंदें मोती के मुख में पड़ती है तब सच्चा मोती बनता है, बांस में इसकी बूंदे पड़े तो बंसलोचन और केले में पड़े में कर्पूर बन जाता है। यानी देखा जाय तो यह नक्षत्र गुणों को बढ़ाने वाला व्यक्तित्व में निखार लाने वाला होता है। इस नक्षत्र के विषय में यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस नक्षत्र में पैदा लेते हैं वे मोती के समान उज्जवल होते हैं।स्वाति नक्षत्र राहु का दूसरा नक्षत्र है । यह नक्षत्रमंडल में उपस्थित २७ नक्षत्रों में १५वां है  । इसकी राशि तुला होती है। इन सभी के प्रभाव के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति में सात्विक और तामसी गुणों का समावेश होता है। ये अध्यात्म में गहरी आस्था रखते हैं। आपका जन्म स्वाति नक्षत्र में हुआ है तो आप परिश्रमी होंगे और अपने परिश्रम के बल पर सफलता हासिल करने का ज़ज्बा रखते होंगे।आप राहु के प्रभाव के कारण कुटनीतिज्ञ बुद्धि के होते है, राजनीति में आपकी बुद्धि खूब चलती हैं, राजनीतिक दांव पेंच और चालों को आप अच्छी तरह समझते हैं यही कारण है कि आप सदैव सतर्क और चौकन्ने रहते हैं। आप राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से हों अथवा नहीं परंतु अपका व्यवहार आपको राजनैतिक व्यक्तित्व प्रदान करता है। आप अपना काम निकालना खूब जानते हैं। आप परिश्रम के साथ चतुराई का भी इस्तेमाल बखूबी करना जानते हैं। आप इस नक्षत्र के जातक हैं और सक्रिय राजनीति में हैं तो इस बात की संभावना प्रबल है कि आप सत्ता सुख प्राप्त करेंगे।सामाजिक तौर पर देखा जाए तो लोगों के साथ आपके बहुत ही अच्छे सम्बन्ध होते हैं क्योंकि आपक स्वभाव अच्छा होता है। आपके स्वभाव की अच्छाई एवं रिश्तों में ईमानदारी के कारण लोग आपके प्रति विश्वास रखते हैं। आपके हृदय में दूसरों के प्रति सहानुभूति और दया की भावना रहती है। लोगों के प्रति अच्छी भावना होने के कारण आपको जनता का सहयोग प्राप्त होता है और आपकी छवि उज्जवल रहती है।आप स्वतंत्र विचारधारा के व्यक्ति होते हैं अत: आप दबाव में रहकर काम करने में विश्वास नहीं रखते हैं। आप जो भी कार्य करना चाहते है उसमें पूर्ण स्वतंत्रता चाहते हैं। नौकरी, व्यवसाय एवं आजीविका की दृष्टि से इनकी स्थिति काफी अच्छी रहती है। आप चाहे नौकरी करें अथवा व्यवसाय दोनों ही में कामयाबी हासिल करते हैं। आप काफी महत्वाकांक्षी होते हैं और सदैव ऊँचाईयों पर पहुंचने की आकांक्षा रखते हैं।आर्थिक मामलों में भी स्वाति नक्षत्र के जातक भाग्यशाली होते हैं, अपनी बुद्धि और चतुराई से काफी मात्रा में धन सम्पत्ति प्राप्त करते हैं। स्वाति नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति पारिवारिक दायित्व को निभाना बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। अपने परिवार के प्रति काफी लगाव व प्रेम रखते हैं। आप सुख सुविधाओं से परिपूर्ण जीवन का आनन्द लेते हें। आपके व्यक्तित्व की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि आप अपने प्रतिद्वंद्वी को सदा पराजित करते हैं और विजयी होते हैं।
१६ सोलहवां नक्षत्र है विशाखा नक्षत्र:-


विशाखा नक्षत्र को नक्षत्र मंडल में 16 वां स्थान प्राप्त है। इस नक्षत्र को त्रिपाद नक्षत्र कहते हैं क्योंकि इसके तीन चरण तुला राशि में होते हैं और अंतिम चरण वृश्चिक में। इसका रंग सुनहरा होता है।इस नक्षत्र के स्वामी देवगुरू बृहस्पति होते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर बृहस्पति और उपरोक्त राशी का भी प्रभाव पड़ता। आइये देखें कि इनके प्रभाव से विशाखा नक्षत्र के जातक का व्यक्तित्व कैसा होता है।ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार जो व्यक्ति विशाखा नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनकी वाणी मीठी होती है, ये किसी से भी कटुतापूर्वक नहीं बोलते हैं। शिक्षा की दृष्टि से इनकी स्थिति अच्छी रहती है, बृहस्पति के प्रभाव से ज्ञान प्राप्ति के लिए बाल्यकाल से इनके अंदर एक उत्सुकता बनी रहती है। ये पठन-पाठन में अच्छे होते हैं जिससे उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति के विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि ये शारीरिक श्रम करने में पीछे रहते हैं जबकि बुद्धि का उपयोग अधिक करते हैं।समाजिक दृष्टि से देखा जाय तो इनका सामाजिक दायरा काफी विस्तृत होता है। ये बहुत ही मिलनसार व्यक्ति होते हैं, लोगों के साथ बहुत ही प्रेम और आदर से मिलते हैं। अगर किसी को इनकी जरूरत होती है तो मदद करने में ये पीछे नहीं रहते हैं यही कारण है कि जब भी इन्हें किसी की मदद की आवश्यक्ता होती है लोग इनकी मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति की विशेषता होती है कि ये किसी भी स्तर के हों परंतु सामजिक सेवा से सम्बन्धित संस्थानों से जुडे़ रहते हैं।पारिवारिक दृष्टिकोण से देखा जाय तो इन्हें संयुक्त परिवार में रहना पसंद होता है। इन्हें अपने परिवार से काफी लगाव व प्रेम होता है एवं अपने पारिवारिक जिम्मेवारियों का निर्वाह करना ये बखूबी जानते हैं। इस नक्षत्र के जातक की कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक समय अपने परिवार के साथ व्यतीत हो। इनके अंदर घर के प्रति विशेष लगाव रहता है।आजीविका के संदर्भ में बात करें तो इस नक्षत्र के जातक को नौकरी करना ज्यादा अच्छा लगता है व्यवसाय करने से। सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए ये भरपूर चेष्टा करते हैं। इस नक्षत्र के जातक व्यवसाय भी करते हैं तो किसी न किसी रूप में सरकार से सम्बन्ध बनाये रखते हैं। इनके व्यक्तित्व में विशेष आकर्षण होता है और हृदय विशाल होता है। इनमें मानवीय संस्कार और गुण वर्तमान होते हैं।आर्थिक रूप से विशाखा नक्षत्र के जातक भाग्यशाली कहे जाते हैं, इन्हें अचानक धन का लाभ होता है, ये लॉटरी के माध्यम से भी धन प्राप्त करते हैं। ये धन संग्रह करने के भी शौकीन होते हैं जिसके कारण काफी धन संचय कर पाते हैं। इन्हें जीवन में कभी भी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है, अगर कभी धन की कमी भी महसूस होती है तो वह अस्थायी होती है।विशाखा नक्षत्र के जातक के विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि ये बहुत ही महत्वाकांक्षी होते हैं। अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए ये भरपूर परिश्रम करते हैं फलत: इन्हें सफलता मिलती है और ये उच्च पद को प्राप्त करते हैं।
१७.अनुराधा नक्षत्र के जातक अनुभवी एवं सिद्धांतवादी होते हैं:-


अनुराधा नक्षत्र को नक्षत्र मंडल में १७वां स्थान प्राप्त है। इसे शुभ नक्षत्र के रूप में शुमार किया जाता है। इस नक्षत्र का स्वामी शनि ग्रह है। और इस नक्षत्र की राशि वृश्चिक है और इस राशि का स्वामी मंगल कहलता है। इस नक्षत्र के स्वामी और राशि के स्वामी में वैर भाव होता है। इस स्थिति का जातक पर क्या प्रभाव होता है और उसका व्यक्तित्व एवं स्वभाव कैसा होता है आइये इसे देखें:जो व्यक्ति अनुराधा नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनमें संयम की कमी होती है अर्थात वे अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाते हैं और छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लग जाते हैं। ये बातों को दिल में नहीं रखते हैं जो भी मन में होता है स्पष्ट बोलते हैं। इनके इस तरह के व्यवहार के कारण लोग इन्हें कटु स्वभाव का समझते हैं।अनुराधा नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति दूसरों पर अपना प्रभाव बनाने की कोशिश करते हैं। जब ये किसी की सहायता करने की सोचते हैं तो दिल से उनकी सहायता करते हैं परंतु जुबान में तीखापन होने के कारण लोग इनसे मन ही मन ईर्ष्या और द्वेष की भावना रखते हैं।इनके जीवन की एक बड़ी विशेषता यह है कि ये जीवन में काफी उतार-चढ़ाव का सामना करते हुए सफलता की राह में आगे बढ़ते हैं। ये मुश्किलों के बावजूद भी सफलता प्राप्त करते हैं क्योंकि ये लक्ष्य के प्रति गंभीर होते हैं और जो भी अवसर इनके सामने आता है उसका पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं। इनकी सफलता का एक और भी महत्वपूर्ण कारण यह है कि ये परिश्रमी होते हैं और वक्त़ का पूरा पूरा सदुपयोग करते हैं।अनुराधा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति नौकरी से अधिक व्यवसाय में रूचि रखते हैं। ये व्यवसाय के प्रति काफी गंभीर होते हैं फलत: व्यवस्थित रूप से अपने व्यापार को आगे ले जाते हैं। इस नक्षत्र के जातक नौकरी करते हैं तो प्रभुत्व वाले पदों पर होते हैं। ये अपने कार्य और जीवनशैली में अनुशासन बनाये रखते हैं। ये जीवन में सिद्धांतों को सबसे अधिक महत्व देते हैं। इनकी अनुशासनप्रियता के कारण लोग इनसे एक निश्चित दूरी बनाये रखना पसंद करते हैं।सिद्धांतवादी होने के कारण इनके गिने चुने मित्र होते हैं, अर्थात इनका सामाजिक दायरा बहुत ही छोटा होता है। इनके इस स्वभाव के कारण भी परिवार में तनाव और विवाद की स्थिति बनी रहती है। ये जीवन का अनुभव अपने संघर्षमय जीवन से प्राप्त करते हैं। जो लोग इनके व्यक्तित्व के गुणों को पहचानते हैं वे इनसे सलाह लेते हैं क्योंकि ये काफी अनुभवी होते हैं।धन सम्पत्ति की स्थिति से विचार किया जाए तो अनुराधा नक्षत्र के जातक के पास काफी धन होता है। ये सम्पत्ति, ज़मीन में धन निवेश करने के शौकीन होते हैं। निवेश की इस प्रवृति के कारण ये सम्पत्तिशाली होते हैं।
१८.ज्येष्ठा नक्षत्र के जातक का व्यक्तित्व:-


ज्येष्ठा नक्षत्र को अशुभ नक्षत्रों की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि यह गण्डमूल नक्षत्रों में शुमार किया जाता है। इस नक्षत्र का स्वामी बुधदेव को माना जाता है और इसकी राशि वृश्चिक होती है। मंगलदेव इस राशि का स्वामी होते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर उपरोक्त स्थिति का क्या प्रभाव होता है और इससे व्यक्ति के स्वभाव एवं व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव होता है आइये इसे समझते हैं।ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे तुनक मिजाजी होते है जिसके कारण छोटी छोटी बातों पर लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। ये काफी फुर्तीले होते हैं और अपने काम को जल्दी से जल्दी निबटा लेते हैं। ये समय की क़ीमत जानतें हैं अत: व्यर्थ समय नहीं गंवाते हैं। इनके व्यक्तित्व की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि जो भी काम ये काम करते हैं उसे पूरी तनम्यता और कुशलता के साथ करते हैं।जो व्यक्ति ज्येष्ठा नक्षत्र में पैदा होते हैं वे खुले मस्तिष्क के व्यक्ति होते हैं, ये संकुचित विचारधाराओं में बंधकर नहीं रहते हैं। ये काफी बुद्धिमान होते हैं जिससे किसी भी विषय को तुरंत समझ लेते हैं। बुद्धिमान होने के बावजूद इनके व्यक्ति की एक बड़ी है जल्दबाज़ होना। जल्दबाजी में ये कई बार ग़लती भी कर बैठते हैं। इनके व्यक्तित्व की दूसरी कमी है इनका स्पष्टवादी होना और वाणी में मधुरता की कमी रहना अर्थात कटु बोलना। व्यक्तित्व की इन कमियों के कारण इस नक्षत्र के जातक का सामाजिक दायरा काफी सीमित होता है। सामाजिक दायरा सीमित रहने के बावजूद ये समाज में मान सम्मान प्राप्त करते हैं तथा प्रसिद्धि प्राप्त करते हैंज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार जो व्यक्ति ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे नौकरी में हों अथवा व्यवसाय मे दोनों ही में इन्हें कामयाबी मिलती है। नौकरी करने वाले उच्चपद पर आसीन होते हें एवं कई लोग इनके निर्देशन में काम करते हैं। इस नक्षत्र के जो जातक व्यवसाय करते हैं वे व्यवसायिक रूप से काफी सफल होते हैं, इनका व्यवसाय सफलता की राह में आगे बढ़ता रहता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में जब प्रतियोगिता की बात आती है तब ये अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे होते हैं।ज्येष्ठा नक्षत्र के जातक का अपने परिवार के साथ काफी लगाव रहता है। ये अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों को दिल से निभाते हैं। इनके पास काफी मात्रा में धन होता है। ये अनेकानेक स्रोतों से धन लाभ प्राप्त करते हैं। ये ज़मीन ज़ायदाद ख़रीदने के शौकीन होते हैं। इस नक्षत्र के जातक अगर प्रोपर्टी के कारोबार में हाथ डालते हैं तो बहुत बड़े प्रोपर्टी डीलर अथवा बिल्डर बनते हैं। ज्योतिषशास्त्र कहता है कि जो व्यक्ति ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे राजसी ठाठ बाठ के साथ जीवन बीताते हैं। ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को मूल शांति करा लेनी चाहिए यही ज्योतिष शास्त्र की सलाह है।
 १९.दुर्भाग्यशाली नहीं होते मूल नक्षत्र के जातक:-


मूल नक्षत्र गण्डमूल नक्षत्र के अन्तर्गत आता है। यह नक्षत्र बहुत ही अशुभ माना जाता है। इस नक्षत्र का स्वामी केतु होता है। इस नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में होते हैं। इस नक्षत्र के विषय में यह धारणा है कि जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनके परिवार के सदस्यों को इसके दोष का सामना करना पड़ता है। दोष पर विशेष चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति में कई गुण होते हैं, हमें इन गुणों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।ज्योतिषशास्त्र कहता है जो व्यक्ति मूल नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे ईमानदार होते हैं। इनमें ईश्वर के प्रति आस्था होती है। ये बुद्धिमान होते हैं। ये न्याय के प्रति विश्वास रखते हैं। लोगों के साथ मधुर सम्बन्ध रखते हैं और इनकी प्रकृति मिलनसार होती है। स्वास्थ्य के मामले में ये भाग्यशाली होते हैं, ये सेहतमंद होते हैं। ये मजबूत व दृढ़ विचारधारा के स्वामी होते हैं। ये सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। ये अपने गुणों एवं कार्यो से काफी प्रसिद्धि हासिल करते हैं।मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के कई मित्र होते हैं क्योंकि इनमें वफादारी होती है। ये पढ़ने लिखने में अच्छे होते हैं तथा दर्शन शास्त्र में इनकी विशेष रूचि होती है। इन्हें विद्वानों की श्रेणी में गिना जाता है। ये आदर्शवादी और सिद्धान्तों पर चलने वाले व्यक्ति होते हैं अगर इनके सामने ऐसी स्थिति आ जाए जब धन और सम्मान मे से एक को चुनना हो तब ये धन की जगह सम्मान को चुनना पसंद करते हैं।जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे व्यवसाय एवं नौकरी दोनों में ही सफल होते हैं, परंतु व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी करना इन्हें अधिक पसंद है। ये जहां भी होते हैं अपने क्षेत्र में सर्वोच्च होते हैं। ये शारीरिक श्रम की अपेक्षा बुद्धि का प्रयोग करना यानी बुद्धि से काम निकालना खूब जानते हैं।अध्यात्म में विशेष रूचि होने के कारण धन का लोभ इनके अंदर नहीं रहता। ये समाज में पीड़ित लोगों की सहायता के लिए कई कार्यक्रमों में सक्रिय भाग लेते हैं। समाज में इनका काफी सम्मान होता है तथा ये प्रसिद्ध होते हैं। इनका सांसारिक जीवन खुशियों से भरा होता है। ये सुख सुविधाओं से युक्त जीवन जीने वाले होते हैं। समाज के उच्च वर्गों से इनकी मित्रता रहती है।ये ईश्वरीय सत्ता में हृदय से विश्वास रखते हैं। इस नक्षत्र के जातक को मूल शांति करा लेनी चाहिए, इससे उत्तमता में वृद्धि होती है और अशुभ प्रभाव में कमी आती है।
२०.पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के जातक:-


ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति ईमानदार होते हैं। इनका हृदय विशाल और उदार होता है, इनके हृदय में सभी के प्रति प्रेमभाव रहता है। व्यक्तित्व के इस गुण के कारण समाज में इन्हें काफी आदर और सम्मान मिलता है। ये आशावादी होते हैं जीवन में कठिन से कठिन स्थिति के आने पर भी आशा का दामन नहीं छोड़ते हैं व सदैव प्रसन्न एवं खुश रहने की कोशिश करते हैं।ये स्वभाव से विनम्र होते हैं और विभिन्न कलाओं एवं अभिनय में रूचि रखते हैं। इन्हें साहित्य का भी शौक होता है। ये इनमें से किसी विषय के अच्छे जानकार होते हैं। ये सत्य का आचरण करने वाले होते हैं और शुद्ध हृदय के व्यक्ति होते हैं। इन्हें आदर्श मित्र माना जाता है क्योंकि ये जिनसे मित्रता करते हैं उनसे आखिरी सांस तक मित्रता निभाते हैं। ये अपने वचन के पक्के होते हैं जो भी कहते हैं उसे पूरा करते हैं।आजीविका की दृष्टि से ये जिस क्षेत्र से सम्बन्ध रखते हैं उसमें उच्च पद पर होते हैं। इनके पास काफी मात्रा में धन होता है। ये सुख सुविधाओं से परिपूर्ण आरामदायक जीवन का आनन्द लेते हैं। ये इस धरती पर रहकर स्वर्ग के समान सुख का आनन्द लेते हैं।इनमें अध्यात्म के प्रति रूझान रहता है परंतु ये इसमें गहराई से नहीं उतर पाते हैं क्योंकि ये सुख की कामना करने वाले होते हैं और सांसारिकता में डूबे रहते हैं। इनके उल्लासपूर्ण जीवनशैली के कारण लोग इन्हें जिन्दादिल इंसान की संज्ञा देते हैं। ये ग़म को अपने उपर हावी नहीं होने देते हैं इसलिए इन्हें जोशीला इंसान भी कहा जाता है।
२१.उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के जातकों का व्यक्तित्व:-


नक्षत्र मंडल में उपस्थित सभी नक्षत्र का अपना गुण और प्रभाव होता है। ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार हमारा व्यक्तित्व, जीवन और हमारे विचार एवं व्यवहार आदि उस नक्षत्र और उसके स्वामी एवं राशि और राशि स्वामी से निर्देशित होते हैं जिसमें हमारा जन्म होता है। बात करें उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के विषय में तो इस नक्षत्र के स्वामी सूर्य ग्रह (विश्वदेव) होते हैं।उत्तराषाढ़ा को त्रिपादी नक्षत्र कहते हैं क्योंकि इसके एक चरण धनु में और तीन चरण मकर में होते हैं । इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर उपरोक्त स्थिति का क्या प्रभाव होता है और कैसे पहचाना जा सकता है कि किसी व्यक्ति का जन्म उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में हुआ है।ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे खुशमिज़ाज होते हैं और इन्हें हंसी मजाक बहुत ही पसंद होता है। अपने हंसी मजाक के स्वभाव के कारण ये जहां भी रहते हैं अपने आस पास के माहौल को खुशनुमा और दिलकश बना देते हैं। ये सभ्य और संस्कारी होते हैं। ये स्थापित नियमों का पालन करने वाले होते हैं तथा कानून में इनकी पूरी पूरी निष्ठा रहती है इसलिए ग़लत दिशा में कभी कदम उठाने की कोशिश नहीं करते हैं। ये आशावादी होते हैं, किसी भी स्थिति में परिस्थितियों से हार नहीं मानते हैं व सामने आने वाली चुनौतियों का सामना पूरी हिम्मत से करते हैं।शिक्षा के दृष्टिकोण से विचार किया जाए तो ये पढाई लिखाई में काफी होशियार होते हैं,  शिक्षा और अध्ययन में इनकी गहरी रूचि होती है। इस रूचि के कारण ये कुछ विषयों में गहरी जानकारी रखते हैं और विषय विशेष के विद्वान कहलाते हैं।आजीविका की दृष्टि से देखें तो इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति नौकरी एवं व्यवसाय दोनों ही में सफल और कामयाब होते हैं, इनके लिए नौकरी एवं व्यवसाय दोनों ही अनुकूल होते हैं। मुश्किल स्थितियों का सामना मुस्कुराते हुए करने का दम खम ये रखते हैं, जिसके कारण निराशा का भाव इनके चेहरे पर कभी नहीं दिखाई देता है।ये हर इंसान से प्रेम भाव एवं अपनापन रखते हैं। अपने चरित्र के इस गुण के कारण ये सामाजिक कार्यक्रमों में भागीदारी करते हैं और जनसेवा में सहयोग देते हैं। अपने इस व्यवहार एवं स्वभाव के कारण इनको समाज में गरिमापूर्ण स्थान मिलता है। ये समाज में सम्मानित व प्रमुख लोगों में होते हैं। इनकी मित्रता का दायरा काफी बड़ा होता है। ये मित्रता को दिल से निभाते हैं जिसके कारण मित्रों से परस्पर सहयोग और सहायता इन्हें मिलती है।आर्थिक मामलों पर गौर करें तो इनके पास काफी धन होता है, ये धन सम्पत्ति से परिपूर्ण होते हैं। इन्हें अपने जीवन में धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। अगर कभी धनाभाव भी होता है तो अपनी बुद्धिमानी एवं हिम्मत के बल पर इन पर काबू पा लेते हैं और आर्थिक संकट से निकल आते हैं।
 २२.श्रवण नक्षत्र के जातकों का व्यक्तित्व:-


ज्योतिषशास्त्र में नक्षत्रों की महत्ता का बखान मिलता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उस नक्षत्र का प्रभाव व्यक्ति पर जीवन भर रहता है। जन्म नक्षत्र, नक्षत्र स्वामी और उसकी राशि एवं राशि स्वामी से व्यक्ति सदा प्रभावित रहता है। यहां देखते हैं कि श्रवण नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर इसका प्रभाव होने पर व्यक्ति का व्यक्तित्व, स्वभाव एवं व्यवहार कैसा होता है।ज्योतिषशास्त्र में नक्षत्रों की महत्ता का बखान मिलता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उस नक्षत्र का प्रभाव व्यक्ति पर जीवन भर रहता है । जन्म नक्षत्र, नक्षत्र स्वामी और उसकी राशि एवं राशि स्वामी से व्यक्ति सदा प्रभावित रहता है। यहां देखते हैं कि श्रवण नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर इसका प्रभाव होने पर व्यक्ति का व्यक्तित्व, स्वभाव एवं व्यवहार कैसा होता है।धर्मशास्त्र में इस नक्षत्र को बहुत ही शुभ माना गया है। इस नक्षत्र का नाम मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार के नाम पर पड़ा है। इस नक्षत्र का स्वामी चन्द्रमा होता है और इस नक्षत्र के चारों चरण मकर राशि में होते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति में सेवाभाव होता है, ये माता पिता के भक्त होते हैं। इनके व्यवहार में सभ्यता और सदाचार झलकता है।श्रवण मास में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने कर्तव्य को जिम्मेवारी पूर्वक निभाते हैं। ये विश्वास के पात्र समझे जाते हैं क्योंकि अनजाने में भी ये किसी के विश्वास को तोड़ना नहीं चाहते। ये ईश्वर में आस्था रखते हैं और सत्य की तलाश में रहते हैं। पूजा-पाठ एवं अध्यात्म के क्षेत्र में ये काफी नाम अर्जित करते हैं। ये इस माध्यम से काफी धन भी प्राप्त करते हैं। इनके चरित्र की विशेषता होती है कि ये सोच समझकर कोई भी कार्य करते हैं इसलिए सामान्यत: कोई ग़लत कार्य नहीं करते हैं।इस मास में जो लोग पैदा होते हैं उनकी मानसिक क्षमता अच्छी होती है, ये पढ़ाई में अच्छे होते हैं । ये अपनी बौद्धिक क्षमता से योजना का निर्माण एवं उनका कार्यान्वयन करना बखूबी जानते हैं। इनके साथी एक कमी यह रहती है कि छुपे हुए शत्रुओं के भय से कई योजनाओं को इन्हें बीच में ही छोड़ना पड़ता है।इनके अंदर सहनशीलता व स्वाभिमान भरा रहता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले साहसी और बहादुर होते हैं। ये किसी बात को मन में नहीं रखते, जो भी इन्हें महसूस होता है या इन्हें उचित लगता है मुंह पर बोलते हैं यानी ये स्पष्टवादी होते हैं।आजीविका की दृष्टि से इस नक्षत्र के जातक के लिए नौकरी और व्यवसाय दोनों ही लाभप्रद और उपयुक्त होता है। ये इन दोनों में से जिस क्षेत्र में होते हैं उनमें तरक्की और कामयाबी हासिल करते हैं। इन्हें चिकित्सा, तकनीक, शिक्षा एवं कला आदि में काफी रूचि रहती है। इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है क्योंकि ये अनावश्यक खर्च नहीं करते हैं। इनके इस स्वभाव के कारण लोग इन्हें कंजूस भी समझने लगते हैं।अपने नेक एवं सरल स्वभाव के कारण समाज में इनका मान सम्मान काफी होता है और ये आदर पात्र करते हैं।
 २३शांति पसंद होते हैं धनिष्ठा नक्षत्र के जातक:-


नक्षत्र मण्डल के २७  नक्षत्रो में धनिष्ठा का स्थान २३वां हैं । इस नक्षत्र के स्वामी मंगलदेव हैं इस नक्षत्र में जो व्यक्ति जन्म लेते हैं उनका व्यवहार, उनकी जीवनशैली एवं उनका स्वभाव सभी कुछ जन्म नक्षत्र उसके स्वामी एवं राशि स्वामी पर निर्भर करता है।आइये जानें कि इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है उनका स्वभाव, व्यवहार एवं व्यक्तित्व कैसा होता है।ज्योतिषशास्त्र के कथनानुसार जो व्यक्ति घनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे काफी उर्जावान रहते हैं और हर समय कुछ न कुछ करते रहना चाहते हैं। अपनी लगन एवं क्रियाशीलता के कारण ये अपनी मंजिल प्राप्त करने में सफल होते हैं। ये काफी महत्वाकांक्षी होते हैं और जो कुछ मन में ठान लेते हैं उसके प्रति निश्चय पूर्वक तब तक जुटे रहते हैं जबतक की कार्य सफल न हो जाएं। इस नक्षत्र के जातक अधिकार जमाने में काफी आगे रहते। इन्हें लोगों पर अपना प्रभाव बनाये रखना पसंद होता है। ये जो भी कार्य करते हें उसमें सावधानी का ख्याल रखते हैं और हमेशा सचेत रहते हैं। इनके अंदर स्वाभिमान की भावना भरी होती है। आमतौर पर ये कलह एवं विवाद की स्थिति से दूर रहते हैं परंतु जब विवाद को टालना मुश्किल हो जाता है तब ये उग्र हो जाते हैं, अपनी उग्रता में ये हिंसक भी हो सकते हैं।धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता अच्छी होती है। ये किसी भी विषय में तुरंत निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। इसमें इन्हें किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं महसूस होती है। अपनी निर्णयात्मक क्षमता से ये जीवन में अच्छी सफलता हासिल करते हैं।इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति नौकरी को व्यवसाय से अधिक तरजीह देते हैं अर्थात नौकरी करना इन्हें अधिक पसंद होता है। ये नौकरी में हों या व्यवसाय में दोनों में ही उच्च स्थिति में रहते हैं। इनके लिए अभियंत्रिकी यानी इंजीनियरिंग व हार्ड वेयर का क्षेत्र अधिक अनुकूल रहता है। व्यवसाय की दृष्टि से इनके लिए प्रोपर्टी का काम अधिक लाभप्रद होता है।इनके विषय में कहा जाता है कि ये बहुत ही पराक्रमी होते हैं, अपने पराक्रम से जीवन में आने वाली परेशानियों एवं विपरीत परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करते हैं। ये अपने मान सम्मान को जीवन में सबसे अधिक महत्व देते हैं, इन्हें जब भी यह एहसास होता है कि इनके मान सम्मान को ठेस लगने वाला है ये उग्र हो उठते हैं। निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि ये शांतिपूर्ण तरीके से जीने की इच्छा रखते हैं। ये किसी भी प्रकार के विवादों से दूर रहना चाहते हैं। ये बहुत अधिक महत्वाकांक्षी नहीं होते हैं। संगीत से इन्हें बहुत लगाव रहता है।
२४.शतभिषा नक्षत्र के जातकों का व्यक्तित्व:-


इस नक्षत्र मे जो व्यक्ति पैदा होते हैं उनपर जीवन भर उपरोक्त कारकों का प्रभाव होता है । इस प्रभाव से व्यक्ति का जीवन और व्यक्तित्व किस प्रकार प्रभावित होता है चलिए इसका पता करें।ज्योतिषशास्त्र के मतानुसार इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति हिम्मती होते हैं व इनके अंदर साहस भरा होता है।  इनके इरादे काफी मजबूत और बुलंद होंते हैं जो एक बार तय कर लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। इनके अंदर जिम्मेवारियों का भी एहसास होता है अत: अपनी जिम्मेवारी को पूरी तरह निभाने की कोशिश करते हैं।इनकी सोच राजनीति से प्रेरित होती है और ये राजनीतिक दांव पेच में माहिर होते हैं। ये शारीरिक श्रम में विश्वास नहीं करते हैं अर्थात शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि का इस्तेमाल करने में भरोसा करते हैं। इस नक्षत्र में जो लोग पैदा होते हैं उनके विषय में माना जाता है कि ये स्वच्छंद विचारधारा के होते है अत: साझेदारी की अपेक्षा स्वतंत्र रूप से कार्य करना पसंद करते हैं।इनके स्वभाव में आलस्य का समावेश रहता है ये मौज मस्ती करना पसंद करते हैं, ये आराम तलब होते हैं। जिन्दग़ी को मशीन की तरह जीना इन्हें अच्छा नहीं लगता है बल्कि ये उन्मुक्त रूप से अपने अंदाज़ में जीवन का लुत्फ़ लेना चाहते हैं।शतभिषा नक्षत्र में जो लोग जन्म लेते हैं वे किसी भी स्थिति में घबराते नहीं हैं बल्कि परिस्थितियों एवं परेशानियों का डटकर मुकाबला करना पसंद करते हैं। इनके अन्दर का विश्वास और ताकत इन्हें बल प्रदान करता है जिससे ये कठिन से कठिन स्थिति पर विजय प्राप्त करते हैं। इनके व्यक्तित्व की एक विशेषता यह भी है कि अगर कोई इनसे शत्रुता करता है तो ये उनको पराजित कर देते हैं।इनका सामाजिक दायरा बहुत बड़ा नहीं रहता है क्योंकि ये समाज में लोगों से अधिक मेलजोल रखना पसंद नहीं करते। इनके मित्रों की संख्या भी सीमित रहती है। इस नक्षत्र के जातक अपने काम से मतलब रखने वाले होते हैं अत: अपने सहकर्मियों से अधिक मेल जोल रखना पसंद नहीं करते हैं।इनकी आर्थिक स्थिति इनकी बुद्धि की देन होती है यानी ये अपनी बुद्धि के द्वारा धनोपार्जन करते हैं। ये अपनी बुद्धि से कभी कभी ऐसे कार्य कर जाते हैं जिससे देखने वाले और सुनने वाले चकित रह जाते हैं।
२५.पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के जातकों का व्यक्तित्व:- 


नक्षत्रों की दुनियां में पूर्वाभाद्रपद का स्थान २५वां हैं। इस नक्षत्र के स्वामी बृहस्पति यानी गुरू होते हैं। इस नक्षत्र का एक चरण मीन में होता है और तीन चरण कुम्भ में रहता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव व्यक्तित्व एवं उनकी जीवनशैली कैसी होती है आइये इस पर विचार करें।ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है वे सत्य का आचरण करने वाले एवं सच बोलने वाले होते हैं । ये ईमानदार होते हैं अत: छल कपट और बेईमानी से दूर रहते हैं। ये आशावादी होते हैं यही कारण है कि ये किसी भी स्थिति में उम्मीद का दामन नहीं छोड़ते हैं।पूर्वाभाद्रपद में जिनका जन्म होता है वे व्यक्ति परोपकारी होते हैं । ये दूसरों की सहायता करने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। जब भी कोई कष्ट में होता है उसकी मदद करने से ये पीछे नहीं हटते हैं। ये व्यवहार कुशल एवं मिलनसार होते हैं, ये सभी के साथ प्रेम एवं हृदय से मिलते हैं। मित्रता में ये समझदारी एवं ईमानदारी का पूरा ख्याल रखते हैं।इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति शुद्ध हृदय के एवं पवित्र आचरण वाले होते हैं। ये कभी भी व्यक्ति का अहित करने की चेष्टा नहीं करते हैं। इनके व्यक्तित्व की इस विशेषता के कारण इनपर विश्वास किया जा सकता है।शिक्षा एवं बुद्धि की दृष्टि से देखा जाए तो इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति काफी बुद्धिमान होते हैं। इनकी रूचि साहित्य में रहती है। साहित्य के अलावा ये विज्ञान, खगोलशास्त्र एवं ज्योतिष में पारंगत होते हैं एवं इन विषयों के विद्वान होते हैं। ये अध्यात्म सहित भिन्न भिन्न विषयों की अच्छी जानकारी रखते हैं तथा ज्योतिषशास्त्र के भी अच्छे जानकार होते हैं। ये आदर्शवादी होते हैं, ये ज्ञान को धन से अधिक महत्व देते हैं।आजीविका की दृष्टि से नौकरी एवं व्यवसाय दोनों ही इनके लिए अनुकूल होता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी करना विशेष रूप से पसंद करते हैं। ये नौकरी में उच्च पद पर आसीन होते हैं। अगर ये व्यवसाय करते हैं तो पूरी लगन और मेहनत से उसे सींचते हैं। इन्हें साझेदारी में व्यापार करना अच्छा लगता है।इनमें जिम्मेवारियों का पूरा एहसास होता है। ये अपने कर्तव्य का निर्वाह ईमानदारी से करते हैं। नकारात्मक विचारों को ये अपने ऊपर हावी नहीं होने देते तथा आत्मबल एवं साहस से विषम परिस्थिति से बाहर निकल आते हैं।  
२६.उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के जातकों का व्यक्तित्व:- 


उत्तराभाद्रपद में जन्म लेने वाले व्यक्ति हवाई किले नहीं बनाते हैं अर्थात ये यथार्थ और सच में विश्वास रखते हैं। चारित्रिक रूप से ये काफी मजबूत होते हैं, ये विषय वासनाओं की ओर आकर्षित नहीं होते, ये अपनी बातों पर कायम रहते हैं जो कहते हैं वही करते हैं। इनके हृदय में दया की भावना रहती है। जब भी कोई कमज़ोर या लाचार व्यक्ति इनके सामने आता है ये उसकी मदद करने हेतु तैयार रहते हैं। इनके मन में धर्म के प्रति आस्था रहती है व धार्मिका कार्यों से भी ये जुडे रहते हैं। जो भी इनके सम्पर्क में रहता है उन्हें ये सेवा एवं धर्म के प्रति प्रेरित करते हैं।जो व्यक्ति इस नक्षत्र में पैदा होते हैं वे ज्योतिषशास्त्र के अनुसार काफी परिश्रमी होते हैं अत: मेहनत करने से पीछे नहीं हटते हैं। इनमें साहस भी रहता है इसलिए परिस्थितयों से भयभीत नहीं होते बल्कि आने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए डटे रहते हैं। ये सिद्धांत को तरजीह नहीं देते हैं बल्कि व्यवहारिकता में विश्वास रखते हैं।ये व्यापार करें अथवा नौकरी दोनों ही स्थिति में सफल होते हैं, सफलता का कारण है इनका कर्मयोगी होना यानी कर्म में विश्वास रखना। अपनी मेहनत और कर्म से ये ज़मीं से आसमां का सफर तय करते हैं यानी सफलता की सीढियों पर पायदान दर पायदान चढ़ते जाते हैं। ये अपनी मेहनत और लगन से सांसारिक सुखों का अर्जन करते हैं और उनका उपभोग करते है।जिनका जन्म उत्तराभाद्रपद में होता है वे अध्यात्म, दर्शन एवं रहस्यमयी विद्याओं में गहरी रूचि रखते हैं। समाज में इनकी गिनती भक्त और विद्वान के रूप में की जाती है। ये सामजिक संस्थाओं से सम्बन्ध रखते हुए भी एकान्त में रहना पसंद करते हैं। ये त्यागी प्रवृति के होते हैं तथा दान देने में विश्वास रखते हैं। समाज में अपने व्यक्तित्व के कारण काफी सम्मान एवं आदर प्राप्त करते हैं इनकी वृद्धावस्था सुख एवं आनन्द से व्यतीत होती है।आर्थिक रूप से ये काफी सम्पन्न रहते हैं क्योंकि धन का संचय समझदारी एवं अक्लमंदी से करते हैं।
 २७.रेवती नक्षत्र के जातकों का व्यक्तित्व:-


नक्षत्र मंडल में रेवती का स्थान २७वां हैं। यह आखिरी नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के विषय में ज्योतिषशास्त्र क्या कहता है आइये इसकी जानकारी प्राप्त करें।रेवती नक्षत्र का स्वामी बुध होता है और राशि स्वामी बृहस्पति होता है । इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर इस नक्षत्र के स्वामी और राशि एवं राशि स्वामी का स्पष्ट प्रभाव होता है।जो व्यक्ति रेवती नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे ईमानदार होते हैं । ये किसी को धोखा देने की प्रवृति नहीं रखते हैं। इनके स्वभाव की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि ये अपनी मान्यताओं पर एवं निश्चयो पर कायम रहते हैं अर्थात दूसरों की बातों को जल्दी स्वीकार नहीं करते हैं। मान्यताओं के प्रति जहां ये दृढ़निश्चयी होते हैं वहीं व्यवहार में लचीले भी होते हैं अर्थात अपना काम निकालने के लिए ये नरम रूख अपनाते हैं। व्यक्तित्व की इस विशेषता के कारण ये कामयाबी की राह पर आगे बढ़ते हैं।ये चतुर व होशियार होते हैं। इनकी बुद्धि प्रखर होती है। इनकी शिक्षा का स्तर ऊँचा होता है। अपनी बुद्धि के बल पर ये किसी भी काम को तेजी से सम्पन्न कर लेते हैं। इनमें अद्भूत निर्णय क्षमता पायी होती है। ये विद्वान होते हैं व इनकी वाणी में मधुरता रहती है, दूसरों के साथ इनका व्यवहार अच्छा रहता है। इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति अच्छे मित्र साबित होते हैं तथा जीवन की सभी बाधाओं को पार कर आगे की ओर बढ़ते रहते हैं।सामाजिक क्षेत्र में इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति काफी सम्मानित होते हैं। समाज में एकता और लोगो के बीच प्रेम व सौहार्द बनाये रखने में ये कुशल होते हैं। समाज में इनकी गिनती प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में होती है। ये अध्यात्म में गहरी रूचि रखते हैं। इनमें गहरी आस्था होती है और ये भक्त के रूप में समाज में जाने जाते हैं। इनमें नौकरी के प्रति विशेष लगाव होता है यानी ये नौकरी करना पसंद करते हैं। अपनी मेहनत, बुद्धि एवं लगन से ये नौकरी में उच्च पद को प्राप्त करते हैं। अगर इस नक्षत्र के जातक व्यापार करते हैं तो इस क्षेत्र में भी इन्हें अच्छी सफलता मिलती है और व्यवसायिक रूप से कामयाब होते हैं।रेवती नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति सुख की इच्छा रखने वाले होते हैं। इनका जीवन सुख और आराम में व्यतीत होता है। ये आर्थिक रूप से काफी सम्पन्न और सुखी होते हैं।
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किस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे का कैसा भविष्य रहेगा?


लगभग दो अरब वर्ष पूर्व वर्तमान सृष्टि का उदय हुआ.ब्रह्माण्ड में असंख्य तारे व नक्षत्र हैं.तारों के समूह को कुल सत्ताईस नक्षत्रों में विभक्त कर दिया गया है और इन नक्षत्रों को बारह राशियों में बांटा गया है.प्रत्येक में चार चरण होते हैं.सूर्य (जो कि एक तारा है),चन्द्र (जो सूर्य से प्रकाशित और खुद छाया ग्रह है),मंगल,बुध,ब्रहस्पति,शुक्र और शनि -ये सात ग्रह माने जाते हैं.हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर थोड़ी सी (२३.५ डिग्री)झुकी हुयी है .इस प्रकार इसके उत्तरी व दक्षिणी दोनों ध्रुवों का भी इसके निवासियों पर प्रभाव पड़ता है.साथ ही प्रत्येक ग्रह व नक्षत्र से आने वाली रश्मियों  को भी ये ध्रुव परावर्तित करते हैं.ज्योतिष में पृथ्वी  के इन छोरों की गणना छाया ग्रह के रूप में क्रमशः राहू व केतु नामों से की गयी है.(तथा कथित धार्मिकों-पौरानिकों के अमृत-कलश और  सर-धड वाली झूठी कहानी के बहकावे में न आयें) इसी लिए राहू व केतु कभी भी साथ-साथ एक ही राशि में नहीं पड़ते बल्कि इनकी राशियों में पूर्ण १८० डिग्री का अंतर रहता है.भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा को मन का प्रतीक  माना गया है और यह तीव्रगामी ग्रह है.किसी बच्चे के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र व राशि में भ्रमण कर रहा है उस बच्चे का जन्म का वही नक्षत्र व राशि निर्धारित होती है. आजीवन इस नक्षत्र का प्रभाव उस बच्चे पर पड़ता है.ऐसा उसके पूर्व जन्मों के संस्कारों पर निर्भर होता है.किस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे का कैसा भविष्य रहेगा,ऐसा हमारे ऋषियों ने (जो महान वैज्ञानिक भी थे) अपने अनुभव के आधार पर निर्धारित किया है जो इस प्रकार है-


अश्वनी नक्षत्र  -में उत्त्पन्न मनुष्य सुन्दर रूप वाला ,सुभग(भाग्यवान),हर एक कामों में चतुर,मोटी देह वाला,बड़ा धनवान और लोगों का प्रिय होता है.

भरणी नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य निरोग,सत्य-वक्ता,सुन्दर जीवन,दृढ  नियम वाला,खूब सुखी और धनवान होता है.

कृतिका नक्षत्र -में जन्म लेने वाला मनुष्य कंजूस,पाप-कर्म करने वाला,हर समय भूखा,नित्य पीड़ित रहने वाला और सदा नीच कर्म करने वाला होता है.

रोहिणी नक्षत्र-में जन्म लेने वाला बुद्धिमान,राजा से मान्य,प्रिय बोलने वाला,सत्य -वक्ता,और सुन्दर रूप वाला होता है.

मृगशिरा नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य देह आकृति से ठीक ,मानसिक रूप से असंतुष्ट,समाज प्रिय ,अपने कार्य में दक्ष,चपल-चंचल,संगीत-प्रेमी,सफल व्यवसायी,अन्वेषक,अल्प-व्यवहारी,परोपकारी,नेत्रित्व क्षमताशील होता है.

आर्द्रा  नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य कृतघ्न -किये हुए उपकार को न मानने वाला -क्रोधी,पाप में रत रहने वाला ,शठ और धन-धान्य से रहित होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र -में जन्म लेने वाला मनुष्य शान्त स्वभाव वाला,सुखी,अत्यंत भोगी,सुभग,सभी जनों का प्रेमी

और पुत्र,मित्र आदि से युक्त होता है.

पुष्य नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य देव,धर्म,धन आदि सबों से युक्त,पुत्र से युत,पंडित(ज्ञानी),शान्त स्वभाव ,सुभग और सुखी होता है.

आश्लेषा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य सब पदार्थों को खाने वाला अर्थात मांसाहारी ,दुष्ट आचरण वाला,कृतघ्न,ठग और दुर्जन तथा स्वार्थपरक कामों को करने वाला होता है.

मघा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य धनी,भोगी,नौकरी से संपन्न,पितृ-भक्त,बड़ा उद्योगी,सेनापति या राजसेवा करने वाला होता है.

पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र-में जन्म लेने वाला मनुष्य विद्या ,गौ,धन आदि से युक्त,गम्भीर,स्त्री-प्रिय,सुखी और विद्वान से आदर पाने वाला होता है.

उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य सहनशील,वीर,कोमल वचन बोलने वाला,शस्त्र विद्या में प्रवीण ,महान योद्धा और लोकप्रिय होता है.

हस्त नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य मिथ्या बोलने वाला,ढीठ ,शराबी,चोर,बंधुहीन और पर स्त्रीगामी होता है.

चित्रा नक्षत्र-में जन्म लेने वाला मनुष्य पुत्र और स्त्री से युक्त,सदा संतुष्ट,धन-धान्य से युक्त देवता और ब्राह्मणों का भक्त होता है.

स्वाती नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य चतुर ,धर्मात्मा,कंजूस,स्त्रियों का प्रेमी,सुशील और देश भक्त होता है.

विशाखा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य अधिक लोभी ,अधिक घमंडी,कठोर,कलहप्रिय और वेश्यागामी होता है.

अनुराधा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य अपने पुरुषार्थ से विदेश में रहने वाला ,अपने भाई -बंधुओं की सेवा करने वाला परन्तु ढीठ होता है.

ज्येष्ठा  नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य मित्रों से संपन्न,श्रेष्ठ,कवि,सहशील,विद्वान,धर्म में तत्पर और शूद्रों द्वारा पूजा जाता है.

मूल नक्षत्र -में जन्म लेने वाला मनुष्य सुख-संपन्न,धन,वाहन से युक्त,हिंसक,बलवान,विचारवान,शत्रुहंता,विद्वान और पवित्र होता है.

पूर्वाषाढ़ नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य देखने मात्र से ही परोपकारी ,भाग्यवान,लोकप्रिय और सम्पूर्ण विद्वान होता है.

उत्तराषाढ़ नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य बहू-मित्र संपन्न,हृष्ट-पुष्ट,वीर,विजयी,सुखी और विनीत स्वभाव का होता है.

श्रवण नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य किये हुए उपकार को मानने वाला,सुन्दर,दानी,सर्वगुण-संपन्न,धनवान और अधिक संतान्युक्त होता है.

धनिष्ठा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य गाने का शौक़ीन ,भाइयों से आदर प्राप्त करने वाला,स्वर्ण-रत्न आदि से भूषित तथा सैंकड़ों मनुष्यों का मालिक बन कर रहता है.

शतभिषा नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य कंजूस,धनवान,पर-स्त्री का सेवक तथा विदेशी महिला से काम करने वाला होता है.

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य सभा-वक्ता,सुखी,संतान-युक्त,अधिक सोने वाला और अकर्मण्य होता है.

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य गौर-वर्ण,सत्व-गुण युक्त ,धर्मग्य,साहसी,शत्रु हन्ता और देव-तुली होता है.

रेवती नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य के सर्वांग पूर्ण-पुष्ट,पवित्र,चतुर,सज्जन,वीर,विद्वान और भौतिक सुखों से संपन्न होता है.

इन सत्ताईस नक्षत्रों के एक २८ वां नक्षत्र भी होता है जो उत्तराषाढ़ नक्षत्र की अंतिम १५ घटी तथा श्रवण नक्षत्र की प्रारम्भिक ०४ घटी अर्थात कुल १९ घटी का बनता है .इसे ‘अभिजित नक्षत्र ‘कहते हैं.

अभिजित नक्षत्र-में जन्मा मनुष्य उत्तम भाग्य शाली होता है.वह अत्यंत सुन्दर,कान्तियुक्त,स्वजनों का प्रिय,कुलीन,यश्भागी,ब्राह्मण एवं देवता का भक्त,स्पष्ट-वक्ता और अपने खानदान में नृप तुल्य होता है.

अपने-अपने पूर्वजन्मों के संचित संस्कारों के आधार पर मनुष्य विभिन्न नक्षत्रों में जन्म लेकर तदनुरूप चरित्र तथा आचरण वाला बन जाता है.यदि आप अपने कर्म को परिष्कृत करके आचरण करें तो आगामी जन्म अपने अनुकूल नक्षत्र में भी प्राप्त कर सकते हैं.तो चुनिए अपने आगामी जन्म का नक्षत्र और अभी से सदाचरण में लग जाइए और अपने भाग्य के विधाता स्वंय बन जाइए.

जो यह कहना चाहें कि,पूर्व जन्म और पुनर्जन्म होता ही नहीं है ,वे इस आलेख को सहजता से नजर-अंदाज कर सकते हैं.

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राशि—-

‘राशि‘ विभिन्न ताराओ के समूह के राशि कहते है । आकाश मे विभिन्न तारा समूह अनेक प्रकार की आकृतियाँ बनते दिखाई देते है प्राचीन ज्योतिषचार्यो ने उन आकृतियाँ का तादात्म्य पृथ्वी पर विचराणी जीव-जन्तुओ के साथ करते हुए उन्हे मेष वृष मिथुन आदि 12 राशियाँ मे समाहित किया है । पूरे आकाश मण्डल के 360 अशों को 12 समान भागो मे बाँट देने से प्रत्येक राशि (भाग) 30 अषें की हो जाती है । बारह राशियों के गुण एंव स्वभाव के अनुसार ही हमारे पूर्वाचार्यो ने उनके स्वामी ग्रहो का निर्धारण किया है । क्रमनुसार 12 राशियों के नाम इस प्रकार है ।
1. मेष 2. वृष 3. मिथुन 4. कर्क 5. सिहं
6. कन्या 7. तुला 8. वृश्चिक 9. धनु 10. मकर
11. कुम्भ 12. मीन राशि
‘बारह राशियों और उनका स्वरूप—

राशियों के स्वामी ग्रह-

मेष और वृश्चिक इन दो राशियों का स्वामी ग्रह मंगल वृष व तुला का शुक्र, मिथुन व कन्या का बुध, धनु और मीन का गुरू, मकर व कुम्भ राशियों शनि सिहं राशि का सूर्य तथा कर्क का चन्द्रमा स्वामी है ।
‘बारह राशियों और उनके स्वामी‘ :—

राशि क्रम नाम राशि स्वामीग्रह
1 मेष मंगल
2 वृष शुक्र
3 मिथुन बुघ
4 कर्क चन्द्र
5 सिहं सूर्य
6 कन्या बुध
7 तुला शुक्र
8 वृश्चिक मंगल
9 धनु गुरू
10 मकर शनि
11 कुम्भ शनि
12 मीन गुरू

“राशि एंव नक्षत्र चरण च्रक”—

1 मेष -( अश्वनि , भरणी ,कृतिका १ – चरण)
2 वृष -( कृतिका 3 चरण, रोहणी, मृगशिरा २- चरण)
3 मिथुन -( मृगशिरा 2 चरण ,आद्रा, पुनर्वसु के 3 चरण)
4 कर्क -( पुनर्वसु का चौथा चरण , पुष्य, आश्लेषा )
5 सिहं -( मघा ,पू-फा, उ-फा का 1 चरण)
6 कन्या -( उ-फा के 3 चरण हस्त , चित्रा के 2 चरण)
7 तुला -( चित्रा के 2 चरण , स्वाती , विशाखा के 3 चरण)
8 वृश्चिक -( विशाखा का 4 था, अनुराधा , ज्येष्ठा
9 धनु -( मूला , पू-षा , उ-षा का १ चरण)
10 मकर -( उ-षा के अन्तिम 3 चरण, श्रवण , घनिष्ठा के 2 चरण,)
11 कुम्भ -( घनिष्ठा के अन्तिम 2 चरण , शतभिषा , पू-भा के 3 चरण )
12 मीन -( पू-भा का 4था चरण , उभा , रेवती)
‘प्रथम नामाक्षर‘

चु , चे , ला , लो , लू , ले , लो , अ
इ, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो,
का, की, कू, घ, ड, छ, के, को, ह,
हि, हु, हे, हो, डा, डी, डु, डे, डो,
म, मी, मू, मे, मो, टा, टि, टू, टे,
टो, प, पी, ष, ण, ठ, पे, पो,
र, री, रू, रे, रो, ता, ति, तू, ते,
तो, न, नि, नू, ने, नो, या, पि, यू,
य, यो, भा, भि, भू, घ, फा, ढ, भे,
भो, ज, जि, खि, खु, खे, खो, ग, गि,
गु, गे, गो, स, सि, सु, से, सो, द,
दि, दु, थ, झ, अ, दे, दो, च, चि,

बारह राशियां और शरीरांग—

काल पुरूष एक काल्पनिक विराट पुरषाकार है । जिसके विभिन्न अंगो पर मेषदि राशियों की परिकल्पना की गई है यथा-काल पुरूष के सिर पर मेष राशि की, मुख ,कंठ पर वृष की भुजाओं एंव स्तन के मघ्य भाग पर मिथुन राशि की हदय, फेफडे मे मेरूदण्ड व जिगर, दिल आदि पर सिंह की पेट के नीचे आंतडियो अदि पर कन्या की, नाभि के आस-पास का प्रदेष गुर्दो आदि पर तुला राशि का, जननेद्रिय, मूत्रेद्रियदि गुप्तांग पर वृष्चिक का, नितंभ एंव जंघाओ पर धनु का दोनो घुटने पर मकर का, पिडलियो एंव अंतडियों पर कुम्भ का, तथा दोनो पाँवो व उसकी अंगुलिया पर मीन राशि का प्रभाव रहता है । जन्म कुण्डली मे तो राशि बली एंव शुभ ग्रह युक्त या द्रष्ट होगी शरीर का सम्बंदित अंग पुष्ठ एंव स्वस्थ होगा । जो राशि पाप ग्रह से युक्त,द्रष्ठ व निर्बली होगी, शरीर का वह अंग दुर्बल या रूगुण होने की सम्भावना होती है ।

क्रूर और शुभ राशियां- मेष, मिथुन, सिहं, तुला, और कुभ….
ये क्रूर राशियां कहलाती है, जबकि वृष,कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर तथा मीन शुभ राशियां कहलाती है । इनमे मिथुन (3) तुला (7) व घनु (9) यह अपेशाकृत ग्रह है । जातक फलादेष मे क्रूर राशी का लग्न होने से जातक मे साहस, पराक्रम, पौरूष आदि गुण होते है । सौम्य राशि का लग्न होने से स्वभाव मे कोमलता, सौम्यता एंव मृदृता आदि गुण होते है । किसी भी भाव मे शुभ राशि होना, उसका स्वामी शुभ ग्रह होना, अथवा शुभ ग्रह यूक्त या शुभ द्रष्ठ होना अच्छा माना गया है । इससे तदभाव सम्बंदी फल शुभ होता है । क्रूर राशि मे क्रूर ग्रह और भी अघिक क्रूर हो जाता है । सौम्य राशि मे क्रूर ग्रह और भी अघिक क्रूर हो जाता है । सौम्य ग्रह और भी अघिक क्रूर हो जाता है । सौम्य राशि मे क्रूर ग्रह कम क्रूरता दिखता है ।

राशियों का गुण- स्वभाव बोधक चक्र :—-
राशि वर्ण चरादि सौम्यादि तत्व दीर्घादि नरादि रंग मूलादि गुण दिशा रत्न स्वामी प्रकृति जलादि
मेष क्षत्रिय चर सौम्य अग्नि ह्स्व नर लाल धातु रज पूर्व मूंगा मंगल पित्त जल 1/4
वृष वैश्य स्थिर क्रूर पृथ्वी हृस्व स्त्री सफेद मूल तम दक्षिण हीरा शुक्र वात जल 1/2
मिथुन शूद्र द्विस्भाव सौम्य वायु सम नर हरा जीव सत्व पश्चिम पन्ना बुध सम शुष्क
कर्क विप्र चर क्रूर जल सम स्त्री श्वेत धातु रज उत्तर मोती चन्द्र कफ जल 4
सिंह क्षत्रिय स्थिर सौम्य अग्नि दीर्घ नर गुलाबी मूल तम पूर्व मानक सूर्य पित्त शुष्क
कन्या वैश्य द्विस्भाव क्रूर पृथ्वी दीर्घ स्त्री मिश्रित जीव सत्व दक्षिण पन्ना बुध वात शुष्क
तुला शूद्र चर सौम्य वायु दीर्घ नर नीला धातु रज पश्चिम हीरा शुक्र सम जल 1/4
वृश्चिक विप्र स्थिर क्रूर जल दीर्घ स्त्री ताम्र मूल तम उत्तर मूंगा मंगल कफ जल 1/4
धनु क्षत्रिय द्विस्भाव सौम्य अग्नि सम नर पीला जीव सत्व पूर्व पुखराज गुरू पित्त जल 1/2
मकर वैश्य चर क्रूर पृथ्वी सम स्त्री भूरा धातु रज दक्षिण नीलम शनि वात जल 4
कुम्भ शूद्र स्थिर सौम्य वायु हृस्व नर भूराक मूल तम पश्चिम नीलम शनि सम जल 1/2
मीन विप्र द्विस्भाव क्रूर जल सम स्त्री पीला जीव सत्व उत्तर पुखराज गुरू कफ जल 4
जन्म राशि फल
विभिन्न राशियों में जन्म लेने वाले जातकों के स्वभाव, रूप, गुण, प्रकृति आदि कैसे होते हैं। इन्हें निम्नानुसार समझना चाहिए।
स्मरणीय है कि विभिन्न राशियों के तत्व, गुण, धर्म, स्वभाव आदि का वर्णन पहले किया जा चुका है, उनके आधार पर ही इन सब विषयों का विचार किया गया है। जिन राशियों में परस्पर मैत्री अथवा शत्रुता होती है, उनमें पैदा हुए जातकों के पारस्परिक सम्बन्ध भी उसी प्रकार के होते हैं।
पृथ्वी-तत्व और जल-तत्व तथा अग्नि-तत्व और वायु-तत्व वाली राशियों में परस्पर मित्रता है। अतः इन राशियों वाले जातकों के पारस्परिक मैत्री सम्बन्ध दृढ़ बने रहते हैं। इसी प्रकार जल-तत्व और अग्नि-तत्व वाली राशियों में परस्पर शत्रुता है अत इन राशियों वाले व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध शत्रुतापूर्ण रहते है।
मेष :-
इस राशि में क्रमशः अश्विनी, भरणी तथा कृतिका इस तीन नक्षत्रों का संयोग है। अतः मेष राशि वाले जातक प्रायः चंचल स्वभाव के मेधावी, सदाचारी परन्तु उष्ण प्रकृति, क्रोधी, असहिष्णु, तार्किक, साधारण ज्ञानी एवं निपुण-वक्ता होते हैं। इनकी प्रकृति रजोगुणी,तथा काम में लगे रहने की होती है। ये शरीर से कृश, दुर्बल, सुकुमार मध्यम कद वाले, पीताम वर्ण, बड़े दाँतों वाले, अल्परोगी कम शक्तिशाली तथा अधिक पसीना आने वाली गन्धयुक्त देह के होते है। ये अधिक कमी नहीं होेते तथा कुशाग्र-बुद्धि, विद्धान, स्वतन्त्र-विचारक ईष्र्यालु युद्ध-प्रिय, उग्र स्वभाव के तथा साहसी होते है। ये सूझ-बूझ वाले तथा प्रत्येक कार्य में किसी का प्रेरणा की उपेक्षा रखने वाले भी होते है।
अश्विनी नक्षत्र में उत्पन्न जातक चंचल होने पर भी दैवी-गणों से सम्पन्न होते है। भरणी नक्षत्र मं उत्पन्न जातक कभी तथा मन्द-गति वाले होते है। तथा कृत्तिका के जानक क्रोधी तथा हिंसक स्वभाव के होते है।
मेष राशि वाले जातक प्रायः ऐसे कार्यो द्वारा आजीविका का उपार्जन करते है। जिनका सम्बन्ध अग्नि-धातु से हो।
वृष-
इस राशि मे कृत्रिका, रोहणी तथा मृगशिरा -इन तीनों नक्षत्रों का संयोग है अतः वृष राशि वाले जातक उदार, सहृदय, साहिष्णु, क्षमाशील, शान्त, धीर, गम्भीर स्मृतिशील तथा चिरग्राही होते है। उनकी मैत्री तथा शत्रुत स्थायी होती है वे श्रदालु , दूरदर्शी, परिश्रमी तथा बुरे कामों से लज्जा का अनुभव करने वाले होते है।
इनके शरीर का आकार छोटा या मध्यम, मस्तक चैड़ा होठ मोटे, रंग गोरा, आँखें बड़ी तथा दांत बड़े होते हैं। अधेडावस्था में इनके सिर के बाल उड़ने लगते हैं। ये सत्संगतिय, अधिकार प्रिय, लेखक तथा मनोवैज्ञानिक होते है। परन्तु छेड़े जाने पर अत्यधिक सहहिष्णु भी हो उठते हैं। इन्हें प्रायः स्नायु-रोग से कष्ट होता है।
कृत्रिका नक्षत्र में उत्पन्न जातक क्रोधी तथा हिसंक स्वभाव के, रोहिणी नक्षत्र में उत्पन्न जातक सरल, परोपकारी तथा रसिक होते हुए भी अन्यों के लिए भयप्रद तथा मृगशिरा नक्षत्र वाले क्रोधी, विद्वान तथा दूषित चरित्र वाले होते हैं।
ये प्रायः कृषि, भूमि, लकड़ी, वन आदि से सम्बन्धित कार्यों एवं वस्तुओं द्वारा आजीविकापार्जन करते है।
मिथुन :-
इस राशि में मृगशिरा, आद्रा तथा पुनर्वसु – इन तीन नक्षत्रों का संयोग है, अतः मिथुन राशि वाले जातक अनुशासन प्रिय, व्यवहार कुशल, समतावादी, विनम्र, भुलक्कड स्वभाव के, शीघ्र प्रेम अथवा शत्रुता मानने वाले, भय शोकादि से शीघ्र प्रभावित हो जाने वाले, मत्सरता एवं कृर्तध्नता से युक्त, हास विलास एवं कलह-प्रिय, क्षीण स्मरण शक्ति वाले तथा मृगया संगीत, उधान भ्रमण इतिहास आदि से प्रेम रखने वाले होते है। इनका मस्तक चैड़ा, चेहरा गोल, कद मध्यम, शरीर रूक्ष, रंग गेहूंआ, आँखे चंचल तथा गोल, पुतलियां फैली हुई हाथ-पांव तथा दांत छोटे तथा नसे उभरी हुई होती है ये स्नायु रोग तथा श्वास रोग से पीडि़त होते हैं। ये लोग निरन्तर भ्रमणशील, गणितज्ञ, चतुर, हरफन मौला, कामी, रति प्रेमी तथा सम्पर्क -साधन द्वारा धर्नोपार्जन करने वाले होते है। इन्हें तथा संगीत से प्रेम होता है। इनमें कुछ परोपकारी भी हो सकते है।
ये प्राय अध्यापकी, दलाली तथा शील-कार्यों से जीविकोपार्जन करतेे हैं। मृगशिरा तथा पुर्नवसु नक्षत्रों में उत्पन्न हुए कुटिल, स्वभाव के तथा अकरण क्रोधी होते है। आद्रा में उत्पन्न जातक विवादी, शाहसी तथा कृतज्ञ होते है यदि जन्म कुण्डली में शनि दूषित हो तो ये ठग,मित्र-द्रोही कन्या-विक्रमी, प्रवासी तथा अस्थिर चित वाले भी हो सकते है।
कर्क :-
इस राशि में पुनर्वसु पुष्य तथा आश्लेशा इन तीन नक्षत्रों का संयोग है, अतः कर्क राशि वाले जातक सुन्दर मध्यम कद, स्थूल शरीर, चैड़ा चेहरा, चैड़ा मस्तक गौर-वर्ण तथा कुशाग्र बुद्धि होते है ये ऐश्वर्यशाली, सहृदय, ईमानदार आत्म-विश्वासी, सुवक्ता, गृहासक्त तथा न्याय प्रिय होते है। ऐसे जातक योजना प्रिय, व्यसनी तथा असफल-प्रेमी भी होते है। ये प्रायः जलीय वस्तुओं अथवा जल से सम्बन्धित कार्यों द्वारा आजीविकोपार्जन करते है तथा अधिकांश नौकरी भी करते है।
पुर्नवसु नक्षत्र में उत्पन्न जातक क्रोधी, परन्तु विद्वान होते है, पुण्य नक्षत्र वाले जातक तपस्वी तथा सहनशील होते है। आश्लेषा नक्षत्र वाले जातक आलसी, शोक मोह से ग्रस्त तथा हिंसक स्वभाव के होते है।
सिंह –
इस राशि में मघा, पूर्वफाल्गुनी तथा उतराफाल्गुनी इन तीन नक्षत्रों का संयोग है। अतः इस राशि वाले जातक चंचल स्वभाव के, क्रोधी, गर्म-मिजाज, जिद्दी तथा असहिष्णु होते होते हुए भी पवित्र, मेधावी, परोपकारी, सहृदय, सात्विक प्रकृति के उदार, साधु-सेवी, वेदान्त प्रिय, रूढि़वादी, विद्वान, कला तथा साहित्य, के प्रेमी तथा स्थिर स्वभाव वाले होते हैं। इनके कन्धे चोड़े तथा कमर पतली होती है। ये प्रायः उदर रोगी भी रहते है। इनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है। शरीर का रंग तांबे जैसा होता है। ये हर प्रकार की परिस्थितियों में गुजारा कर लेते हैं। अग्नि तत्व से सम्बन्धित वस्तुओं तथा कार्यों द्वारा इनका जीविकोपार्जन होता है। ये अपने स्थान पर ही प्रतिष्ठा प्राप्त करते है।
मघा नक्षत्र में उत्पन्न जातक प्राय आलसी हिंसक स्वभाव के तथा अपूर्ण मनोरथ वाले होते हैं। पूर्वाफाल्गुनी में उत्पन्न जातक अस्वस्थ भ्रान्त तथा हीन-वृत्ति वाले होते हैं। उत्तराफाल्गुनी वाले जातक सरली परोपकारी उन्नतिशील तथा संरक्षक स्वभाव के होते हैं। ये वकालत तथा चिकित्सा जैसे व्यवसायों द्वारा धन तथा यश अर्जित करते हैं।
कन्या :-
इस राशि में उत्तराफाल्गुनी, हस्त तथा चित्रा इन तीन नक्षत्रों का संयोग है, अतः इस राशि वाले जातक स्थूल शरीर, मध्यम कद, बड़ी आँखों वाले, जलहीन मृदु, मितभाषी और श्रृंगार-प्रिय होते हैं।
ये प्रत्युत्पन्न मति, भावुक, विद्वान साहित्य तथा कला के प्रेमी, धीर-गम्भीर, धार्मिक विज्ञान तथा गणित में रूचि रखने वाले तथा भीतरी स्वभाव के होते हैं। इन्हें स्नायु रोग से कष्ट होता है। ये पृथ्वी से सम्बन्धित वस्तुओं, पशु तथा शिल्पादि के द्वारा आजीविकापार्जन करते हैं। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले परोपकारों, उत्साही तथा सरल स्वभाव के होते है। हस्त नक्षत्र वाले योगी, सज्जन तथा स्वादिष्ट भोजन के शौकीन होते हैं। चित्रा नक्षत्र वाले हिंसक क्रोधी, वाकपटु तथा भीतरी स्वभाव के होते हैं।
तुला-
इस राशि में चित्रा , स्वाति तथा विशाखा, इन तीन नक्षत्रों का संयोग है, अतः इस राशि में उत्पन्न जातक गौर वर्ण, मध्यम कद वाले छोटा चेहरा, चोड़ी छाती तथा चपटी नाक वाले, सुन्दर नेत्र तथा शिथिल शरीर वाले होते है। ये व्यवहार कुशल, अनुशासन, प्रिय विनम्र न्याय प्रिय, सुधारक, सूक्ष्म निरीक्षक तथा श्रेष्ठ निर्णायक होते हैं। ये लोग अस्तित्व तथा मिर्दु भाषी होते हुए भी स्त्री-द्रोही तथा कुटुम्ब से दूर रहने वाले होते हैं। व्यवसाय तथा यातायात सम्बन्धी कार्यों में ये जीविकापार्जन करते हैं।
चित्रा नक्षत्र में उत्पन्न जातक प्रायः क्रोधी तथा हिंसक स्वभाव के होते हैं, ये बलात्कारी भी हो सकते हैं विशाखा नक्षत्र वाले विचारशील होते हैं तथा स्वाति नक्षत्र वाले आलसी, विवादी तथा खान-पान के शौकीन होते हुए भी सज्जन होते है।
वृश्चिक :-
इस राशि में विशाखा, अनुराधा तथा ज्येष्ठा इन तीन नक्षत्रों का संयोग है, अत इस राशि वाले जातक सुन्दर, छोटे, परन्तु स्थूल शरीर वाले, गोल तथा चमकीली आँखों वाले चैड़ा चेहरा और चौड़ी छाती वाले, अस्थिर चित तथा चौकन्ने स्वभाव के होते है। वे ऐश्वर्यवान, सन्तोषी विचारशील, स्वार्थ साधक, निन्दक, कटु स्वभाव, पाखण्डी कपटी, मन की बात भाप लेने वाले दयाहीन, दार्शनिक, कुशल, रूढि़वादी, अपनी प्रतिमा पर गर्व करने वाले, दयाहीन दार्शनिक कुशल, रूढि़वादी, अपनी प्रतिभा पर गर्ग करने वाले अपने समीपी व्यक्ति पर अधिक भरोसा करने वाले, अगम्यागमन करने वाले तथा गाली-गलौज का प्रयोग करने वाले निन्दक तथा भ्रातृद्रोही भी होते हैं। उन्हें अर्श तथा शिरोरोग होते हैं।
वे जलीय पदार्थों से अपनी आजीविका का उपार्जन करते हैं। विशाखा नक्षत्र वाले गणिक तथा संगीत प्रेमी, क्रोधी, हिसंक, परन्तु विचारशील होते हैं। अनुराधा वाले कपटी, चैकन्ने तथा जादू टोना करने वाले होते हैं तथा ज्येष्ठा नक्षत्र वाले क्रोधी, तीक्ष्ण स्वभाव, हिंसक तथा कुशाग्र बुद्धि होते हैं।
धनु :-
इस राशि में मूल, पूर्वाषाढ़ा, तथा उत्तराषाढ़ा  इन तीन नक्षत्रों का संयोग है। अतः इस राशि वाले जातक मेधावी, तार्किक, विद्वान, असहिष्णु, रंग गोरा है। बाल भूरे, नेत्र गोल तथा दांत बड़े होते हैं। ये दार्शनिक, कवि, लेखक, रूढि़वादी, धर्म-भीख, ईमानदार श्रद्धालु, परोपकारी, संयमी, शुद्ध व्यवहार कुशल प्रवासी सरल तथा प्रदर्शन से घृणा करने वाले होते है। ये लोग अग्नितत्व प्रधान पदार्थों अथवा जीवों के द्वारा आजिकोपार्जन करते हैं।
मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक ईष्र्यालु विवादी, साहसी तथा इन्द्रिय-सुख में लिप्त रहने वाले होते है। पूर्वाषाढ़ा वाले जातक अस्वस्थ, भ्रान्त स्वभाव विकारी तथा चंचल स्वभाव के होते हैं उत्तराषाढ़ा नक्षत्र मे जन्मे जातक शान्त, परोपकारी, प्रसन्न तथा सरल स्वभाव के होते हैं।
मकर :-
इस राशि में उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा घनिष्ठा इन तीन नक्षत्रों का संयोग है, अतः इस राशि वाले जातक दृढ़ निश्चयी, सहिष्णु, क्षमाशील, शान्त, धीर, गम्भीर उदार तथा ऐश्वर्यशील होते के साथ ही कामुक तमोगुणी, क्रोधी तथा हिसंक स्वभाव के भी होते हैं। इनका कद लम्बा होता है तथा आँखें, सुन्दर, भौहें घनी और दांत बड़े होते हैं। ये परिस्थिति के अनुसार स्वयं में परिवर्तन लाने वाले, स्त्रियासक्त, अपव्ययी, निर्लज्ज, आलसी धर्म-विमुख तथा सहृदय काव्य-कला प्रेमी और विज्ञान प्रेमी भी होते हैं। ये पृथ्वी, धातु आदि पदार्थों के द्वारा अपनी आजीविका का उपार्जन करते हैं।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्म लेने वाले साहसी, सौम्य तथा सहृदय होते हैं। श्रवण नक्षत्र वाले भोगी तथा चंचल स्वभाव के होते है तथा धनिष्ठा नक्षत्र वाले जातक ठग, क्रोधी तथा हिसंक -प्रकृति के होते हैं।
कुम्भ :-
इस राशि में धनिष्ठा, शतभिषा तथा पूर्वाभाद्रपद इन तीन नक्षत्रों का संयोेग है, अतः इस राशि वाले जातक व्यवहार कुशल, दुःसाहसी और चंचल प्रकृति के होते हैं। इनका चेहरा चौड़ा नाक चपटी कद लम्बा, गर्दन मोटी, होठ मोटे, गाल चौड़े, शरीर दुर्बल तथा व्यक्तित्व आकर्षक होता है। ये भ्रातद्रोही, ईष्र्यालु, द्वेषी, अंहकारी, ज्ञानी, विद्वान, कुशाग्र बुद्धि, सुवक्ता, सुलेखक, तपस्याप्रिय, दार्शनिक तथा अकुशल प्रबन्धक होते हैं। अपने कार्य साधन में ये चतुर होते हैं साथ ही शिक्षित और ग्रहासक्त भी होते है। ये शीत तथा शूल-रोग से पीडि़त होते है। नौकरी तथा वायु-तत्व से सम्बन्धित वस्तुओं एवं कार्यों द्वारा आजीविकोपार्जन करते हैं।
घनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक क्रोधी, ठग, हिसंक तथा शोक मोहग्रस्त होते हैं। शतमिषा वाले परिवार से दूर रहते है। तथा उन्नतिशील एवं अत्यधिक परिश्रमी होते है। पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र वाले जातक बुद्धिमान होते हुए भी इन्द्रियलोप भोग में लीन बने रहते हैं।
मीन :-
इस राशि में पूर्वाभाद्रपद उत्तराभाद्रपद तथा रेवती इन तीन, नक्षत्रों का संयोग है, अतः इस राशि में जन्म लेने वाले सुन्दर, गौरवर्ण, मध्यम कदम वाले, सुडौल शरीर, चौडा मस्तक तथा बड़े नेत्रों वाले होते हैं इनकी ठोड़ी में गड्ढा होता है। ये विद्वान सन्तोषी, सतोगुणी, दूरदर्शी सौम्य प्रकृति, रूढिवादी, धर्म, भीरू, अधिकार प्रिय, जिद्दी और ऐश्वर्यशाली होते हैं। ये बहु सन्तति वाले, अपनी शिक्षा पर गर्व करने वाले, स्वतन्त्र विचारक, परन्तु आत्म विश्वास रहित, अपव्ययी, उदार, विषयासक्त, न्याय प्रिय, परिश्रमी तथा आलसी भी होते है। इन्हें अकस्मात् हानियां भी उठानी पड़ती है। इस राशि वाले जलीय पदार्थों से अपनी आजीविका का उपार्जन करते है। तथा नौकरी भी कर सकते है।
पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र में जन्म लेने वाले क्रोधी, साहसी तथा भोगी होते हैं। उत्तराभाद्रपदा वाले परोपकारी, विद्वान तथा सरल स्वभाव के होते हैं तथा रेवती नक्षत्र वाले जातक बुद्धिमान गम्भीर, मन्दगामी कवि, लेखक तथा रसिक स्वभाव के होते है।

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