आइए जाने की क्या और क्यों होता हैं नाड़ी दोष 

???

—पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री।
मोब.–.9669.90067…।
वाट्स अप् –090.9390067….।

हमारे ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार नाड़ी तीन प्रकार की होती है, इन नाड़ियों के नाम हैं आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी, अन्त्य नाड़ी। इन नाड़ियों को किस प्रकार विभाजित किया गया हैं।
आइये इसे देखें:—

..आदि नाड़ी: ज्येष्ठा, मूल, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, शतभिषा, पूर्वा भाद्र और अश्विनी नक्षत्रों की गणना आदि या आद्य नाड़ी में की जाती है।
2.मध्य नाड़ी: पुष्य, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, भरणी, घनिष्ठा, पूर्वाषाठा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्र नक्षत्रों की गणना मध्य नाड़ी में की जाती है।
3.अन्त्य नाड़ी: स्वाति, विशाखा, कृतिका, रोहणी, आश्लेषा, मघा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण और रेवती नक्षत्रों की गणना अन्त्य नाड़ी में की जाती है।
अब जानिए की नाड़ी दोष किन स्थितियों में लगता हैं ??
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब वर और कन्या दोनों के नक्षत्र एक नाड़ी में हों तब यह दोष लगता है। सभी दोषों में नाड़ी दोष को सबसे अशुभ माना जाता है क्योंकि इस दोष के लगने से सर्वाधिक गुणांक यानी 8 अंक की हानि होती है। इस दोष के लगने पर शादी की बात आगे बढ़ाने की इज़ाज़त नहीं दी जाती है।
आचार्य वाराहमिहिर के अनुसार यदि वर-कन्या दोनों की नाड़ी आदि हो तो उनका विवाह होने पर वैवाहिक सम्बन्ध अधिक दिनों तक कायम नहीं रहता अर्थात उनमें अलगाव हो जाता है। अगर कुण्डली मिलने पर कन्या और वर दोनों की कुण्डली में मध्य नाड़ी होने पर शादी की जाती है तो दोनों की मृत्यु हो सकती है, इसी क्रम में अगर वर वधू दोनों की कुण्डली में अन्त्य नाड़ी होने पर विवाह करने से दोनों का जीवन दु:खमय होता है। इन स्थितियों से बचने के लिए ही तीनों समान नाड़ियों में विवाह की आज्ञा नहीं दी जाती है।
महर्षि वशिष्ठ के अनुसार नाड़ी दोष होने पर यदि वर-कन्या के नक्षत्रों में नज़दीक होने पर विवाह के एक वर्ष के भीतर कन्या की मृत्यु हो सकती है अथवा तीन वर्षों के अन्दर पति की मृत्यु होने से विधवा होने की संभावना रहती है। आयुर्वेद के अन्तर्गतआदि, मध्य और अन्त्य नाड़ियों को वात(Mystique), पित्त (Bile) एवं कफ(Phlegem) की संज्ञा दी गयी है।
नाड़ी मानव के शारीरिक स्वस्थ्य को भी प्रभावित करती है। मान्यता है कि इस दोष के होने पर उनकी संतान मानसिक रूप से अविकसित एवं शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं।
जानिए की किन स्थितियों में नाड़ी दोष नहीं लगता है:–
1. यदि वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक ही हो परंतु दोनों के चरण पृथक हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।
2. यदि वर-वधू की एक ही राशि हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न हों तो नाड़ी दोष से व्यक्ति मुक्त माना जाता है।
3. वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो परंतु राशियां भिन्न-भिन्न हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।
नाड़ी दोष का उपचार: —
पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राणप्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।
≠=====================
आप सभी ज्योतिषाचार्य यह भली भांति जानते हैं की कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की प्रक्रिया में बनने वाले दोषों में से नाड़ी दोष को सबसे अधिक अशुभ दोष माना जाता है तथा अनेक वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष के बनने से बहुत निर्धनता होना, संतान न होना तथा वर अथवा वधू दोनों में से एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाना जैसी भारी मुसीबतें भी आ सकतीं है।
इसीलिए अनेक ज्योतिषी कुंडली मिलान के समय नाड़ी दोष बनने पर ऐसे लड़के तथा लड़की का विवाह करने से मना कर देते हैं। आज के इस लेख में हम किसी कुंडली में नाड़ी दोष के निर्माण, इसके वास्तविक फल तथा इसके महत्व के बारे में चर्चा करेंगे तथा यह विचार भी करेंगे कि क्या नाड़ी दोष वास्तव में ही इतनी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है या फिर इस दोष के बारे में बढ़ा चढ़ा कर लिखा गया है।
आप सबसे पहले यह जान लें कि नाड़ी दोष वास्तव में होता क्या है तथा ये दोष बनता कैसे है। गुण मिलान की प्रक्रिया में आठ कूटों का मिलान किया जाता है जिसके कारण इसे अष्टकूट मिलान भी कहा जाता है तथा ये आठ कूट हैं, वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी तथा आइए अब देखें कि नाड़ी नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है।
नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आदि नाड़ी, मध्या नाड़ी तथा अंत नाड़ी। प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। उदाहरण के लिए :
-ध्यान रखें की चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की आदि नाड़ी होती है :
अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुणी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद।
—-ध्यान रखें की चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है :–
भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुणी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद।
—-ध्यान रखें की चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की अंत नाड़ी होती है :–
कृत्तिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती।
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्य अथवा अंत। किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है। नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है। नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :
यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
आइए अब किसी कुंडली में नाड़ी दोष के निर्माण का वैज्ञानिक ढंग से तथा किसी इस दोष के साथ जुड़े अशुभ फलों का व्यवहारिक दृष्टि से विशलेषण करें तथा इस दोष के निर्माण तथा फलादेश की सत्यता की जांच करें। जैसा कि हम जान गए हैं कि कुल मिला कर तीन नाड़ियां होतीं हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति की इन्हीं तीन नाड़ियों में से एक नाड़ी होती है, इस लिए प्रत्येक पुरुष की प्रत्येक तीसरी स्त्री के समान नाड़ी होगी जिससे प्रत्येक पुरुष तथा स्त्री के लिए हर तीसरा पुरुष या स्त्री केवल नाड़ी दोष के बनने के कारण ही प्रतिकूल हो जाएगा जिसके चलते लगभग 33% विवाह तो नाड़ी दोष के कारण ही संभव नहीं हो पायेंगे। उदाहरण के लिए यदि किसी पुरुष की नाड़ी आदि है तो लगभग प्रत्येक तीसरी स्त्री की नाड़ी भी आदि होने के कारण इस प्रकार के कुंडली मिलान में नाड़ी दोष बन जाएगा जिसके चलते विवाह न करने का परामर्श दिया जाता है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारतवर्ष के अतिरिक्त अन्य लगभग किसी भी देश में कुंडली मिलान अथवा गुण मिलान जैसी प्रक्रियाओं का प्रयोग नहीं किया जाता इसलिए इन देशों में होने वाला प्रत्येक तीसरा विवाह नाड़ी दोष से पीड़ित है जिसके चलते इन देशों में होने वाले विवाहों में तलाक अथवा पति पत्नि में से किसी एक की मृत्यु की दर केवल नाड़ी दोष के कारण ही 33% होनी चाहिए।
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि नाड़ी दोष कुंडलीं मिलान के समय बनने वाले अनेक दोषों में से केवल एक दोष है तथा कुंडली मिलान में बनने वाले अन्य कई दोषों जैसे कि भकूट दोष, गण दोष, काल सर्प दोष, मांगलिक दोष आदि में से प्रत्येक दोष भी अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग 50% कुंडली मिलान के मामलों में तलाक तथा वैध्वय जैसीं समस्याएं पैदा करने में पूरी तरह से सक्षम है।
इन सभी दोषों को भी ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संसार में होने वाला लगभग प्रत्येक विवाह ही तलाक अथवा वैध्वय जैसी समस्याओं का सामना करेगा क्योंकि अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार इनमें से कोई एक अथवा एक से अधिक दोष लगभग प्रत्येक कुंडलीं मिलान के मामले में बन जाएगा। क्योंकि यह तथ्य वास्तविकता से बहुत परे है इसलिए यह मान लेना चाहिए कि नाड़ी दोष तथा ऐसे अन्य दोष अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार क्षति पहुंचाने में सक्षम नहीं हैं।
इसलिए कुंडली मिलान के किसी मामले में केवल नाड़ी दोष का उपस्थित होना अपने आप में ऐसे विवाह को तोड़ने में सक्षम नहीं है तथा ऐसा होने के लिए कुंडली में किसी ग्रह द्वारा बनाया गया कोई अन्य गंभीर दोष अवश्य होना चाहिए। मैने अपने ज्योतिष के कार्यकाल में हजारों कुंडलियों का मिलान किया है तथा यह देखा है कि केवल नाड़ी दोष के उपस्थित होने से ही विवाह में कोई गंभीर समस्याएं पैदा नहीं होतीं तथा ऐसे बहुत से विवाहित जोड़ों की कुंडलियां मेरे पास हैं जहां पर कुंडली मिलान के समय नाड़ी दोष बनता है किन्तु फिर भी ऐसे विवाह वर्षों से लगभग हर क्षेत्र में सफल हैं जिसका कारण यह है कि लगभग इन सभी मामलों में ही वर वधू की कुंडलियों में विवाह के शुभ फल बताने वाले कोई योग हैं जिनके कारण नाड़ी दोष का प्रभाव इन कुंडलियों से लगभग समाप्त हो गया है।
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि किसी भी कुंडली में किसी ग्रह द्वारा बनाया गया विवाह संबंधी कोई शुभ या अशुभ योग गुण मिलान के कारण बनने वाले दोषों की तुलना में बहुत अधिक प्रबल होता है तथा दोनों का टकराव होने की स्थिति में लगभग हर मामले में ही विजय कुंडली में बनने वाले शुभ अथवा अशुभ योग की ही होती है। इसलिए कुंडली में विवाह संबंधी बनने वाला मांगलिक योग अथवा मालव्य योग जैसा कोई शुभ योग गुण मिलान में नाड़ी दोष अथवा अन्य भी दोष बनने के पश्चात भी जातक को सफल तथा सुखी वैवाहिक जीवन देने में सक्षम है जबकि कुंडली में विवाह संबंधी बनने वाले मांगलिक दोष अथवा काल सर्प दोष जैसे किसी भयंकर दोष के बन जाने से नाड़ी मिलने के पश्चात तथा 36 में से 30 या इससे भी अधिक गुण मिलने के पश्चात भी ऐसे विवाह टूट जाते हैं अथवा गंभीर समस्याओं का सामना करते हैं।
इसलिए विवाह के लिए उपस्थित संभावित वर वधू को केवल नाड़ी दोष के बन जाने के कारण ही आशा नहीं छोड़ देनी चाहिए तथा अपनी कुंडलियों का गुण मिलान के अलावा अन्य विधियों से पूर्णतया मिलान करवाना चाहिए क्योंकि इन कुंडलियों के आपस में मिल जाने से नाड़ी दोष अथवा गुण मिलान से बनने वाला ऐसा ही कोई अन्य दोष ऐसे विवाह को कोई विशेष हानि नहीं पहुंचा सकता। इसके पश्चात एक अन्य शुभ समाचार यह भी है कि कुंडली मिलान में बनने वाले नाड़ी दोष का निवारण अधिकतर मामलों में ज्योतिष के उपायों से सफलतापूर्वक किया जा सकता है जो हमे इस दोष से न डरने का एक और कारण देता है।
कल्याण हो। शुभम भवतु।
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री।
मोब.–09669290067…।
वाट्स अप्–09039390067…।

=============================
जानिए की हमारे ज्योतोष ग्रन्थ क्या कहते हैं “नाड़ी दोष” के बारे में —
एक नाड़ीस्थनक्षत्रे दम्पत्योर्मरण ध्रुवं ।
सेवायां च भवेद्धानि विवाहे प्राण नाशकः ।।
यदि वर-कन्या कि एक नाड़ी हो तो निश्चय मरण, सेवा में हानि और विवाह में प्राणों का नाश होता है ।
आदि नाड़ी वर हान्ति मध्य नाड़ी च कन्यकाम् ।
अन्त्यनाड़ायां दूयोमृत्यु नाड़ी दोषं त्यजेद् बुधः ।।
आदि नाड़ी वर को, मध्य नाड़ी कन्या को और अन्य नाड़ी दोनों का हनन करती हैं। इससे नाड़ी दोष विद्वानों को त्याग देना चाहिए।
नाड़ी दोषश्च विप्राणां वर्णदोषस्तु भुभ्रुजाम्।
गण दोषश्च वैश्यषु योनि दोषतु पादजाम्।।
विवाह में ब्राह्मणों के लिए नाड़ी दोष, क्षत्रियों के लिए वर्ण दोष, वैश्यों को गण दोष और शुद्रों को योनि दोष विशेष कर विचारनाचाहिए।
एक नक्षत्र जातानां नाड़ी दोषो न विधते।
अन्यर्क्षे नाड़िवेधे च विवाहो वर्जितः सदा।
ऐकर्क्षे चैक पापे च विवाहो मरणः प्रदः।।
ऐकर्क्षे भिन्न पापे च विवाहः शुभदायक ।।
एक नक्षत्र में उत्पन्न हुए वर-कन्या को नाड़ी का दोष नहीं है। जो दूसरे नक्षत्रों का नाड़ी वेध हो तो विवाह सदा वर्जित है परन्तु एक नक्षत्र में एक ही चरण हो तो विवाह मरणदायक और एक नक्षत्र में अलग-अलग चरण हो तो विवाह शुभदायक है
===============================
इन स्थितियों में नाड़ी दोष नहीं लगता है: ——
1. यदि वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक ही हो परंतु दोनों के चरण पृथक हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।
2. यदि वर-वधू की एक ही राशि हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न हों तो नाड़ी दोष से व्यक्ति मुक्त माना जाता है।
3. वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो परंतु राशियां भिन्न-भिन्न हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।
4. वर-वधु प्राय – क्षत्रीय , वेश्य , या शूद्र वर्ण (जाती ) में जन्म होने वाले वर वधु पर नाड़ी दोष को पूर्ण नहीं माना जाता है !
जानिए नाडीदोष से संतानहीनता के कारण::——
अपनी आधार भूत पौराणिक एवं पारंपरिक मान्यताओं के ठोस आधार पर दृष्टिपात करने को ज़िल्लत, जाहिलो की चर्या एवं कल्पना आधारित एक ताना-बाना मान कर मानसिक रूप से भी गुलामी के बंधन में पूरी तरह बंध गए है.विचित्र, सुन्दर, सबसे अलग-थलग एवं सबकी नज़रो के आकर्षण केंद्र बनने के लिए विविध एवं विचित्र आभूषणों एवं रसायनों से शरीर सज्जा के लिए हम शारीरिक रूप से तो पराई सभ्यताओं के गुलाम हो ही गए है.
संतानोत्पादन के लिए लड़का लड़की का मात्र शारीरिक रूप से ही स्वस्थ रहना अनिवार्य नहीं है. बल्कि दोनों के शुक्राणुओ या गुणसूत्र या Chromosomes का संतुलित सामंजस्य भी स्वस्थ एवं समानुपाती होना चाहिए. अन्यथा हर तरह से स्वस्थ लड़का एवं लड़की भी संतान नहीं उत्पन्न नहीं कर सकते.
गुणसूत्र या Chromosomes के दो वर्ग होते है. एक तो X होता है तथा दूसरा Y. X पुरुष संतति का बोधक होता है. तथा Y महिला संतति का. यदि पुरुष एवं स्त्री के दोनों X मिल गए तो लड़का होगा. किन्तु यदि YY या XY हो गए तो लड़की जन्म लेगी. किन्तु यदि X ने Y को या Y ने X को खा लिया. तो फिर संतान हीनता का सामना करना पडेगा. क्योकि या तो फिर अकेले X बचेगा या फिर अकेले Y बचेगा. और ऐसी स्थिति में निषेचन क्रिया किसी भी प्रकार पूर्ण नहीं होगी. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की धाराओं में संतान उत्पन्न होने की यही प्रक्रिया है. और ज्योतिष शास्त्र में भी इसी कमी को नाडीदोष का नाम दिया गया है.
अब ज़रा ज्योतिष के स्तर पर इसे देखते है. यदि किसी भी तरह लड़का एवं लड़की के गुणसूत्रों का पार्श्व एवं पुरोभाग अर्थात Front Portion चापाकृति में होगा तो निषेचन नहीं हो सकता है. इनमें से किसी एक का विलोमवर्ती होना आवश्यक है. तभी निषेचन संभव है. जिस तरह से चुम्बक के दोनों उत्तरी ध्रुव वाले सिरे परस्पर नहीं चिपक सकते. उन्हें परस्पर चिपकाने के लिए एक का दक्षिण तथा दूसरे का उत्तर ध्रुव का सिरा होना आवश्यक है. ठीक उसी प्रकार गुनासूत्रो के परस्पर निषेचित होने के लिए परस्पर विलोमवर्ती होना आवश्यक है. अन्यथा दोनों सदृश संचारी हो जायेगें तो सदिश संचार होने के कारण दोनों एक दूसरे से मिल ही नहीं पायेगें. और गुणसूत्रों के इस मूल रूप को परिवर्तित नहीं किया जा सकता. अन्यथा ये संकुचित और परिणाम स्वरुप विकृत या मृत हो जाते है. सदृश नाडी वाले युग्म के गुणसूत्रों का लेबोरटरी टेस्ट किया जा सकता है. वैसे अभी अब तक भ्रूण परिक्षण तो किया जा सकता है किन्तु गुणसूत्र परिक्षण अभी बहुत दूर दिखाई दे रहा है. सीमेन टेस्ट के द्वारा यह तो पता लगाया जा चुका है कि संतान उत्पादन क्षमता है या नहीं. किन्तु यह पता नहीं लगाया जा सका है कि सीमेन में किन सूत्रों के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है?
जब कभी लडके एवं लड़की के जन्म नक्षत्र के अंतिम चरण का विकलात्मक सादृश्य हो तभी यह नाडी दोष प्रभावी होता है.मुहूर्त मार्तंड. मुहूर्त चिंतामणि, विवाह पटल एवं पाराशर संहिता के अलावा वृहज्जातक में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है. उसमें बताया गया है क़ि नाडी दोष होते हुए भी यदि नक्षत्रो के अंतिम अंश सदृश मापदंड के तुल्य नहीं होते, तो साक्षात दिखाई देने वाला भी नाडीदोष प्रभावी नहीं हो सकता है. अतः नाडी दोष का निर्धारण बहुत ही सूक्ष्मता पूर्वक होनी चाहिए ।।।
यह आदी नाडी ,मध्य नाडी और अंत: नाडी ज्योतिष के पूरक और सहयोगी शास्त्र आयुर्वेद के आधार पर ही गणना और गुण दोष का निर्णय देता है जो कि त्रिदोष वात,पित्त और कफ के आधार पर रक्त समूह का प्रतिनिधित्व करता है क्यूकि एक रक्त समूह के भी उक्त ही परिणाम होते हैं जो कि नाडी दोष के हैं और सम नाडी वालों के रक्त समूह भी एक ही होते हैं… जिनसे उत्पन संतति की भी विकृत होने की सम्भावना सामान्य से अधिक होती है।।।
यदि पति पत्नी दोनों पॉजिटिव ग्रुप के हैं तो संतान को कष्ट होने के परिणाम सामने आये हैं।।।
इतनी गहराई तक का ज्ञान हमारे ग्रंथो में भरा पडा है. किन्तु अति आधुनिक दिखने के चक्कर में भारतीय परम्परा एवं मान्यताओं का अनुकरण कर गंवार न दिखने की लालसा में इतर भारतीय मान्यताओं एवं परम्पराओं को सटीक, आवश्यक तर्कपूर्ण एवं ठोस मानते हुए उसी के अनुकरण में बड़प्पन एवं प्रतिष्ठा ढूंढा जा रहा है. पता नहीं किस आधार पर बिना समझे बूझे अनाडी एवं मनुष्य का चोला धारण किये भ्रष्ट बुद्धि लोग ऐसी मान्यताओं को पाखण्ड, ढोंग एवं झूठ की संज्ञा दे देते है? और आम जनता इनके बहकावे में आती जा रही है. अपूर्ण एवं घृणित मान्यताओं के आधार पर आधारित गैर भारतीय मूल्यों एवं सिद्धांतो का मुकुट पहन पाखण्ड, ढोंग एवं भ्रम बताकर हमारी इन परमोत्कृष्ट मान्यताओं एवं परम्पराओं को गर्त में धकेलने को आतुर हैं।
==============================
इन उपायों से नाडी दोष की शान्ति संभव है किन्तु इसमें भी कुछ नियम/सावधानी/शर्तें है——

——-जातक की उम्र साठ वर्ष से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
——शादी के बाद अधिक से अधिक आठ वर्ष तक प्रतीक्षा की जा सकती है. बारह वर्ष बीत जाने के बाद कुछ भी नहीं हो सकता है.
——–नाडी दोष सूक्ष्मता पूर्वक निर्धारित होना चाहिए. यदि अंत की अंशात्मक स्थिति नहीं बनाती है, तो साक्षात दिखाई देने वाला नाडी दोष भी निरर्थक होता है. अर्थात वह नाडी दोष में आता ही नहीं है.
——–पीयूष धारा ग्रन्थ के अनुसार – स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राणप्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय मंत्र का जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।
यदि उपरोक्त शर्तें है तो प्राथमिक स्तर पर निम्न उपाय किये जा सकते है. जीरकभष्म, बंगभष्म, कमल के बीज, शहद, जिमीकंद, गुदकंद, सफ़ेद दूब एवं चिलबिला का अर्क एक-एक पाँव लेकर शुद्ध घी में कम से कम सत्ताईस बार भावना दें. सत्ताईसवें दिन उसे निकाल कर अपने बलिस्त भर लबाई का रोल बना लें तथा उसके सत्ताईस टुकडे काट लें. इसके अलावा शिलाजीत, पत्थरधन, बिलाखा, कमोरिया एवं शतावर सब एक एक पाँव लेकर एक में ही कूट पीस ले. और नाकीरन पुखराज सात रत्ती का लेकर सोने की अंगूठी में जडवा लें.रोल बनाए गए मिश्रण को नित्य सुबह एवं शाम गर्म दूध के साठ निगल लिया करें. तथा शतावर आदि के चूर्ण को रोज एक छटाक लेकर गर्म पानी में उबाल लें जब वह ठंडा हो जाय तो उसे और थोड़े पानी में मिलकर रोज सूर्य निकलने के पहले स्नान कर ले. तथा उस पुखराज को तर्जनी अंगुली में किसी भी दिन शनि एवं मंगल छोड़ कर पहन लें.
—– वर एवं कन्या दोनो मध्य नाड़ी मे उत्पन्न हो तो पुरुष को प्राण भय रहता है । इसी स्थिति मे पुरुष को महामृत्यंजय जाप करना यदि अतिआवश्यक है । यदि वर एवं कन्या दोनो की नाड़ी आदि या अन्त्य हो तो स्त्री को प्राणभय की सम्भावना रहती है । इसलिए इस स्थिति मे कन्या महामृत्युजय अवश्य करे ।
—- नाड़ी दोष होने संकल्प लेकर किसी ब्राह्यण को गोदान या स्वर्णदान करना चाहिए ।
—— अपनी सालगिराह पर अपने वजन के बराबर अन्न दान करे एवं साथ मे ब्राह्यण भोजन कराकर वस्त्र दान करे ।
—— नाड़ी दोष के प्रभाव को दुर करने हेतु अनुकूल आहार दान करे । अर्थातृ आयुर्वेद के मतानुसार जिस दोष की अधिकतम बने उस दोष को दुर करने वाले आंहार का सेवन करे ।
—— वर एवं कन्या मे से जिसे मारकेश की दशा चल रही हो उसको दशानाथ का उपाय दशाकाल तक अवश्य करना चाहिए ।
—-विशाखा, अनुराधा, धनिष्ठा, रेवति, हस्त, स्वाति, आद्र्रा, पूर्वाभद्रपद इन 8 नक्षत्रो मे से किसी नक्षत्र मे वर कन्या का जन्म हो तो नाड़ी दोष नही रहता है ।
—–उत्तराभाद्रपद, रेवती, रोहिणी, विषाख, आद्र्रा, श्रवण, पुष्य, मघा, इन नक्षत्र मे भी वर कन्या का जन्म नक्षत्र पडे तो नाड़ी दोष नही रहता है । उपरोक्त मत कालिदास का है ।
—-वर एवं कन्या के राषिपति यदि बुध, गुरू, एवं शुक्र मे से कोई एक अथवा दोनो के राशिपति एक ही हो तो नाड़ी दोष नही रहता है ।
—–आचार्य सीताराम झा के अनुसार-नाड़ी दोष विप्र वर्ण पर प्रभावी माना जाता है । यदि वर एवं कन्या दोनो जन्म से विप्र हो तो उनमे नाड़ी दोष प्रबल माना जाता है । अन्य वर्णो पर नाड़ी पूर्ण प्रभावी नही रहता । यदि विप्र वर्ण पर नाड़ी दोष प्रभावी माने तो नियम नं घ का हनन होता हैं । क्योंकि बृहस्पती एवं शुक्र को विप्र वर्ण का माना गया हैं । यदि वर कन्या के राशिपति विप्र वर्ण ग्रह हों तो इसके अनुसार नाडी दोष नही रहता । विप्र वर्ण की राशियों में भी बुध व षुक्र राशिपति बनते हैं ।
—–सप्तमेश स्वगृही होकर शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो एवं वर कन्या के जन्म नक्षत्र चरण में भिन्नता हो तो नाडी दोष नही रहता हैं । इन परिहार वचनों के अलावा कुछ प्रबल नाडी दोष के योग भी बनते हैं जिनके होने पर विवाह न करना ही उचित हैं । यदि वर एवं कन्या की नाडी एक हो एवं निम्न में से कोई युग्म वर कन्या का जन्म नक्षत्र हो तो विवाह न करें ।
—–वर कन्या की एक राशि हो लेकिन जन्म नक्षत्र अलग-अलग हो या जन्म नक्षत्र एक ही हो परन्तु राशियां अलग हो तो नाड़ी नही होता है । यदि जन्म नक्षत्र एक ही हो लेकिन चरण भेद हो तो अति आवश्यकता अर्थात् सगाई हो गई हो, एक दुसरे को पंसद करते हों तब इस स्थिति मे विवाह किया जा सकता है.
विशेष ध्यान रखें की शोधित नाडीदोष के सिद्ध हो जाने पर यह नुस्खा बहुत अच्छा काम करता है. किन्तु यदि नाडी दोष अंतिम अंशो पर है तो कोई उपाय या यंत्र-मन्त्र आदि काम नहीं करेगें।।।
शुभम भवतु। कल्याण हो।
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री।
मोब.–09669290067….।
वाट्स अप् –09039390067….।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here