जानिए दीपावली और लक्ष्मी पूजन मुहूर्त .. अक्तूबर, 2..4 (गुरुवार )—-
हर वर्ष भारतवर्ष में दिवाली का त्यौहार कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. रावण से दस दिन के युद्ध के बाद श्रीराम जी जब अयोध्या वापिस आते हैं तब उस दिन कार्तिक माह की अमावस्या थी, उस दिन घर-घर में दिए जलाए गए थे तब से इस त्योहार को दीवाली के रुप में मनाया जाने लगा और समय के साथ और भी बहुत सी बातें इस त्यौहार के साथ जुड़ती चली गई.
दीपावली का प्रमुख पर्व लक्ष्मी पूजन होता है। इस दिन रात्रि को जागरण करके धन की देवी लक्ष्मी माता का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए एवं घर के प्रत्येक स्थान को स्वच्छ करके वहां दीपक लगाना चाहिए जिससे घर में लक्ष्मी का वास एवं दरिद्रता का नाश होता है।
लक्ष्मी अर्थात धन की देवी महालक्ष्मी विष्णु पत्नी का पूजन कार्तिक अमावस्या को सारे भारत के सभी वर्गों में समान रूप से पूजा जाता है। इस बार दीपावली 13 नवंबर को अमावस्या क्षय तिथि में मनाई जाएगी।
जानिए की कैसे करें लक्ष्मी-पूजन—
सर्व प्रथम लक्ष्मीजी के पूजन में स्फटिक का श्रीयंत्र ईशान कोण में बनी वेदी पर लाल रंग के कपडे़ पर विराजित करें साथ ही लक्ष्मीजी की सुंदर प्रतिमा रखें।
इसके बाद चावल-गेहूं की नौ-नौ ढेरी बनाकर नवग्रहों का सामान बिछाकर शुद्ध घी का दीप प्रज्ज्वलित कर धूप बत्ती जलाकर सुगंधित इत्रादि से चर्चित कर गंध पुष्पादि नैवद्य चढा़कर इस मंत्र को बोले – गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः गुरुर साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः॥
इस मंत्र पश्चात इस मंत्र का जाप करें- ब्रह्‌मा मुरारि-त्रिपुरांतकारी भानु शशि भूमि सुता बुधश्च। गुरुश्च, शुक्र, शनि राहु, केतवे सर्वे ग्रह शांति करा भवंतु।
इसके बाद आसन के नीचे कुछ मुद्रा रखकर ऊपर सुखासन में बैठकर सिर पर रूमाल या टोपी रखकर, शुद्ध चित्त मन से निम्न में से एक मंत्र चुनकर जितना हो सके उतना जाप करना चाहिए।
“ऊं श्री ह्रीं कमले कमलालये। प्रसीद् प्रसीद् श्री ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नम:।”
“ओम्‌ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं हं सोः जगत प्रसूत्ये नमः”
शास्त्रों में कहा गया है कि इन मंत्रों के श्रद्धापूर्वक जाप से व्यक्ति आर्थिक व भौतिक क्षेत्र में उच्चतम शिखर पर पहुंचने में समर्थ हो सकता है। दरिद्रता-निवारण, व्यापार उन्नति तथा आर्थिक उन्नति के लिए इस मंत्र का प्रयोग श्रेष्ठ माना गया है।
—गायत्री लक्ष्मी मंत्र
—ॐ श्री विष्णवे च विदमहे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्‌।
–सिद्ध मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै नमः।
लक्ष्मी मंत्रों का जाप स्फटिक की माला से करना उत्तम फलदायी रहता है।
कमलगट्टे की माला भी श्रेष्ठ मानी गई है।
आपकी जानकारी के लिए प्रस्तु‍त है दीपावली पूजन के लिएशुभ मंगलकारी मुहूर्त।
इन मुहूर्त में पूजन करने से महालक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है और जीवन ऐश्वर्यशाली होता है।
इस वर्ष 23 अक्तूबर, 2014 (गुरुवार )के दिन यह त्योहार मनाया जाएगा. इस दिन बृहस्पतिवार का दिन होगा, चित्रा नक्षत्र और विष्कुंभ योग होगा.
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पूजन सामग्री——-
मा लक्ष्मी व गणेश की प्रतिमा, माला, वस्त्र, प्रसाद, अक्षत, चंदन, सुपारी, पान, मौली, घी, कपूर, लौंग, इलायची, दीप, धूप आदि।
ऐसे करें महालक्ष्मी पूजन—–
महालक्ष्मी पूजन कैसे हो इसके लिए ऋग्वेद के श्रीसूक्त में विधान किया गया है। बीज मंत्र है ॐ स्त्रीं ह्रीं श्री कमले कमलालयी प्रसीदा-प्रसीदा महालक्ष्मी नमो नम:। मुख्यत: कमलगट्टा, धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, खील-बताशे, पकवान, सुपारी, पान के पत्ते को महालक्ष्मी को अर्पित किया जाता है। साथ ही पानी वाला नारियल चढ़ाया जाता है।
दीवाली पूजा का मुहूर्त —–
दीवाली के दिन लक्ष्मी का पूजा का विशेष महत्व माना गया है, इसलिए यदि इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजा की जाए तब लक्ष्मी व्यक्ति के पास ही निवास करती है. “ब्रह्मपुराण” के अनुसार आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ होती है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए. लक्ष्मी पूजा व दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गए हैं.
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2014 के दीवाली पूजन के स्थिर लग्न मुहूर्त—-
कुंभ लग्न की अवधि—मध्याह्न 02.40 से अपराह्न 15.56 तक
वृषभ लग्न की अवधि—-शाम को अपराह्न 19.15 से लेकर रात्रि 21.10 तक
सिंह लग्न की अवधि——रात्रि 01.18 से लेकर 03.38 तक
वृश्चिक लग्न–प्रातः 08 :40 से लेकर 10 :50 तक
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चोघडिया मुहूर्त—-
अमृत–– शाम को 06 :00 PM से 19:30 तक
शुभ – दोपहर 04:30 PM से 06:00 PM तक
लाभ— रात्रि 11 बजकर 40 मिनट से से मध्यरात्रि 01:20 AM तक
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दीवाली पूजा गोधुलि बेला मुहूर्त 2014 —-
गोधुलि बेला के लिए शुभ मुहूर्त 323 अक्टूबर 2014, गुरूवार के दिन—. इस दिन 18:05 से 20:37 के बीच प्रदोष काल भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी, कुबेर पूजा, व्यवसाय की पूजा और कार्यकर्ताओं को दान देने के लिए शुभ है.यह इस मुहूर्त भी मिठाई, कपड़े और उपहार की सेवा के लिए शुभ है. यह भी बड़ों और उपहार देने और रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए सम्मान का आशीर्वाद लेने के लिए अच्छा है.आप इस शुभ मुहूर्त के दौरान आध्यात्मिक स्थानों या मंदिरों में दान करते हैं, तो यह आप के लिए अनुकूल हो जाएगा.
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दीवाली पूजा मुहूर्त प्रदोष काल—-
23 अक्टूबर 2014, गुरूवार के दिन इंदौर तथा आसपास के इलाकों में सूर्यास्त 17:27 पर होगा. इस अवधि से लेकर 18:20 to 19:35 तक प्रदोष काल रहेगा. इसे प्रदोष काल का समय कहा जाता है. प्रदोष काल समय को दिपावली पूजन के लिये शुभ मुहूर्त के रुप में प्रयोग किया जाता है. प्रदोष काल में भी स्थिर लग्न समय सबसे उतम रहता है. इस दिन प्रदोष काल व स्थिर लग्न दोनों तथा इसके साथ शुभ चौघडिया भी रहने से मुहुर्त की शुभता में वृद्धि हो रही है.
दीवाली पूजा मुहूर्त – निशीथ काल—–
निशिथ काल में स्थानीय प्रदेश समय के अनुसार इस समय में कुछ मिनट का अन्तर हो सकता है. निशिथ काल में लाभ की चौघडिया भी रहेगी, ऎसे में व्यापारियों वर्ग के लिये लक्ष्मी पूजन के लिये इस समय की विशेष शुभता रहेगी. इस अवधि में श्रीसूक्त, कनकधारा स्तोत्र एवं लक्ष्मी स्तोत्र आदि मंत्रों का जाप व अनुष्ठान करना चाहिए..
यह पूजा और ब्राह्मणों के लिए देवी लक्ष्मी, सभी नौ ग्रहों, मंत्र सुनाना और स्तोत्र, अनुष्ठान, दान कपड़े, फल, अनाज और पैसे पूजा के लिए शुभ है. निशीथ काल के मुहूर्त 12:34 बजे शुरू होगा और पूरे भारत के लिए 1:26 बजे तक है.
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दीवाली पूजन मुहूर्त लिए महानिशीथ काल—–
धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना चाहिए. इसके अतिरिक्त समय का प्रयोग श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य मंन्त्रों का जपानुष्ठान करना चाहिए.महानिशीथ काल काल कर्क लग्न के लिए बहुत ही शुभ है. दीपावली महानिशीथ काल काल की रात के दौरान (कर्क लग्न) 22:49 से 1:21 के बीच पूरे भारत के लिए शुभ है.
23 अक्टूबर,(गुरूवार) 2014 के रात्रि में 12:30 से 01:21 मिनट तक महानिशीथ काल रहेगा. महानिशीथ काल में पूजा समय स्थिर लग्न या चर लग्न में कर्क लग्न भी हों, तो विशेष शुभ माना जाता है. महानिशीथ काल व कर्क लग्न एक साथ होने के कारण यह समय अधिक शुभ हो गया है. जो जन शास्त्रों के अनुसार दिपावली पूजन करना चाहते हो, उन्हें इस समयावधि को पूजा के लिये प्रयोग करना चाहिए.

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