हरतालिका तीज व्रत …4 —–
सुहागिनों का त्योहार हरतालिका तीज इस वर्ष 28 अगस्त 2014 (गुरुवार ) को मनाया जायेगा….
हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद की शुक्ल पक्ष तृतीय तिथि को मनाई जाती हैं ! मुख्यतः अन्य तीज की तरह इस तीज में भी भगवन शंकर और माता पार्वती की पूजा आराधना की जाती हैं ! धर्म ग्रंथों के अनुसार विधि-विधान से हरतालिका तीज का व्रत करने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है वहीं विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है।
हरतालिका तीज सुहागिन स्त्रियों का अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। इस अवसर पर स्त्रियां अपने पति से अटूट संबंधों के लिये उपवास व पूजा-पाठ करती हैं। सुहाग की जितनी भी चीजें होती हैं उन सभी को नया खरीदने और तीज वाले दिन पहनने की परंपरा है जो युगों-युगों से चली आ रही है। प्रत्येक महिला अपने सामथ्र्य के अनुसार अपने शृंगार का सामान बड़े उत्साह से एकत्रित करती है। प्रतीक्षा करती है हरतालिका तीज व्रत की जो सब व्रतों से कठिन होता है। इसमें व्रत के दौरान पानी पीने की भी सख्त मनाही है।
चौकी पर वस्त्र बिछाकर शंकर – पार्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजन करना चाहिए एवं निराहार व्रत करे !
इसी दिन पारवती जी सखियों के साथ पति रूप में भोलेनाथ की प्राप्ति के लिए वन में तपस्या करने गई थी तथा तप के प्रभाव और तप से प्रसन्न होकर शिव जी ने मनोवांक्षित वर दिया था !
उद्यापन में 16 जोड़ा ब्राह्मणों को जिमाना( भोजन करना) चाहिए !
रात्रि में स्वर्ण की शिव पार्वती की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए !
दूसरे दिन हवन करके देवी से प्रार्थना करनी चाहिए ! और बोलना चाहिए – हे करुणामयी वात्सल्यमयी माँ गौरी – माँ मेरे अपराधों को क्षमा कीजिये एवं लोक – परलोक का सुख प्रदान कीजिये !
इस दिन मिटटी के भगवान शंकर – पार्वती जी को बनाकर स्नान कराकर संकल्प आदि कर पूजन तथा श्रवण करना चाहिए !
हरतालिका तीज व्रत कथा—–
हरतालिका तीज व्रत की कथा लिंग पुराण से ली गई हैं, इस कथा को शिवजी ने पार्वती जी के विशेष आग्रह पर उन्हें कैलाश पर्वत पर सुनाया था !
एक बार कैलाश शिखर पर बैठे हुए शिव जी से माँ पार्वती जी ने कहा – हे नाथ यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो तो अत्यंत गोपनीय व्रत जो अत्यंत फलदायक हो उसे सुनाइये !
भगवान् भोलेनाथ ने कहा – मैं उस अत्यंत गोपनीय एवम उत्तम फल देने वाले व्रत को आपको सुनाता हूँ, इसे एकाग्र मन से सुने !
भाद्रपद शुक्ला हस्त नक्षत्र के होने पर इस व्रत को करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट होते हैं व् उत्तम फल की प्राप्ति भी होती हैं !
पार्वती जी ने पूछा – मैंने किस व्रत को किया था?
शिव जी ने कहा – पर्वतो के राजा हिमवान हैं, जहाँ सिद्ध चारण गंधर्व आदि का निवास हैं, उसी हिमालय पर तुमने बाल्यकाल की अवस्था में कठिन तपस्या की थी !
तुम्हारे कठिन तप को देखकर तुम्हारे पिता हिमवान को चिंता हुई कि इस कन्या के लिए कौन सर्वश्रेष्ठ वर होगा?
उसी समय नारद वहां पधारे, उनका यथोचित सम्मान कर तुम्हारे पिता हिमवान ने आगमन का कारण पूछा !
श्री नारद जी ने कहा – श्री विष्णु जी के कहेनुसार आपके पास आया हूँ !
योग्य वर को ही यह कन्या देना उचित हैं, श्री विष्णू जी ही योग्य हैं, वे सर्वश्रेष्ठ हैं, उनके अतिरिक्त दूसरा योग्य कौन हैं?
हिमवान जी ने कहा – यदि श्री भगवन विष्णू मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो अपनी कन्या देना मुझे स्वीकार हैं !
इसके पश्चात् श्री नारद जी ने सारा वृतांत श्री विष्णू जी के पास जाकर कह सुनाया !
यथा समय हिमवान ने गौरी जी कहा कि हे पुत्री – तुम्हे मैं विष्णू को दान करना चाहता हूँ !
पिता की बात सुनकर गौरी ( पार्वती ) जी सखी के पास पहुची और मूर्क्षित हो गिर पड़ी ! सखी ने उन्हें उठाया और जल देकर पूछा इस प्रकार क्यूँ रो रही हो ?
गौरी जी ने कहा शिव जी हमारे इष्ट और अभीष्ट देव हैं, पिता जी ने मुझे भगवान विष्णु को प्रदान करने का निश्चय लिया हैं अतः मैं इस शरीर को छोड़ देना चाहती हूँ !
सांत्वना देकर सखी ने पार्वती को उस वन में पंहुचा दिया जिस वन को हिमवान नहीं जानते थे !
गौरी जी के लुप्त हो जाने पर हिमवान को बहुत दुःख हुआ ! और गौरी जी को उन्हॊने सभी जगहों में खोजने के लिए अपने सैनिक भेजे !
जब उन्हें भगवान् विष्णू को अपनी कन्या दान देने की बात याद आती तो उन्हें बहुत कष्ट होता !
शिव जी ने आगे कथा सुनते हुए कहा कि हे पार्वती – आप सखी के साथ घोर जंगल से होते हुए एक बहुत ही रम्य स्थान पर पहुची, और वहीँ एक पर्वत की गुफा में प्रविष्ट हो सम्पूर्ण भोगों को छोड़कर तप प्रारंभ किया ! भाद्र पद की शुक्ल तृतीय के दिन बालू का लिंग बनाकर स्थापित किया और वाद्य गीत के साथ मेरी पूजा की और रात्रि भर जागरण किया !उस व्रत के प्रभाव से मेरा आसन चलायमान हो गया और सखी के साथ तुम्हे मेरे दर्शन हुए !जब मैंने वर माँगने को कहा तब आपने वर रूप में मुझे ही माँगा !तथास्तु कहकर मैं अंतर्धान हो गया और तुमने दूसरे दिन प्रातःकाल मेरा विसर्जन किया ! उसी समय आपको ढूढते हिमवान भी वहां आ पहुचे !
आपको देखक्र प्रसन्न हो गोदी में बैठाकर घनघोर जंगल में आने का कारण पूछा, तब आपने पूर्व जन्म का वृतांत बतलाकर मुझे पति रूप में पाने की इच्छा अपने पिता के साने व्यक्त की !
हिमवान ने घर जाकर यथा समय मेरे साथ तुम्हारा विवाह समपन्न किया !
जिस व्रत के प्रभाव से आपने मुझे और मेरे आधे आसन को प्राप्त किया वाही सर्वोत्तम व्रत हैं!
तब माता पार्वती जी ने इस व्रत का विधि और विधान भी भगवान् शिव जी से पूछा – कि यह व्रत किसे और कैसे करना चाहिए ?
तब भगवान् शिव जी ने कहा यह व्रत स्त्रियों का व्रत हैं, व्रत के दिन तोरण आदि से स्थान को सजा कर सुगन्धित द्रव्यों से युक्त गृह मंडप बनाकर वाद्य गीत के साथ पार्वती सहित मेरी प्रतिमा की स्थापना करनी चाहिए, तत पश्चात्देव पूजन विधि से पूजन करके शिव – पार्वती की स्तुति करनी चाहिए !
हे देवी – जो स्त्री इस व्रत को करती हैं, वह पापों से छुटकारा पाकर मन वांक्षित फल प्राप्त करती हैं तथा जो स्त्री उस दिन अन्न ग्रहण करती हैं, उसे जन्म – जन्मान्तर तक वैधव्य भोगना पड़ता हैं !
” हरितालिका व्रत को सुनने मात्र से हजारों अश्वमेघ यज्ञ और सैकड़ों ” वाजपेय यज्ञ ” करने का फल प्राप्त होता हैं !इसलिए हे देवी ! इस सर्वोत्तम वर्त को मैंने आपको सुनाया और बताया !
जो स्त्री इस व्रत को करेगी वह सभी पापों से छुटकारा पाकर इष्ट फल को प्राप्त करेगी, इसमें कोई भी संशय नहीं हैं !
इस दिन पूजन के दौरान प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है। भगवती-उमा की अर्चना के लिए निम्न मंत्रों का प्रयोग करें-
ऊँ उमायै नम:, ऊँ पार्वत्यै नम:, ऊँ जगद्धात्र्यै नम:, ऊँ जगत्प्रतिष्ठयै नम:, ऊँ शांतिरूपिण्यै नम:, ऊँ शिवायै नम:
– भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करें-
ऊँ हराय नम:, ऊँ महेश्वराय नम:, ऊँ शम्भवे नम:, ऊँ शूलपाणये नम:, ऊँ पिनाकवृषे नम:, ऊँ शिवाय नम:, ऊँ पशुपतये नम:, ऊँ महादेवाय नम:
पूजन दूसरे दिन सुबह समाप्त होता है तब महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं और अन्न ग्रहण करती हैं।

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