मेरी अभिवक्ति (मेरे विचार-रचनाएं-कविताएँ )—
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मेरा दिल —–
( पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री..mob..–09669.90067)
गर चाहो तो मेरा दिल कभी तोड़कर देखना,
दिल के टूटने कि सदा दूर तलक जायेगी.
तन्हाई में जब भी गाओगे तुम गीत मेरे,
साथ में मेरे गुनगुनाने की आवाज़ “विशाल” आएगी.
जब भी तेरे बेपरवाह क़दम ठोकर खाएंगे,
बदले में मेरी चाल भी खुद ही बदल जायेगी.
मेरी गुस्ताख निगाहों को कभी आँखों से न पिलाना,
बरना मेरी मस्त जवानी एकदम दहक जायेगी.
हम तो दुश्मनों को भी प्यार से देखा करते हैं,
आप तो दोस्त हैं “विशाल” अब देखते हैं बात कहाँ तक जायेगी.
अपने हाथों से न छूना सामने रखा लस्सी का गिलास,
बरना सारी लस्सी अचानक शराब में बदल जायेगी.
जिस दिन तुम प्यार से रख दोगे मेरे कंधे पे हाथ,
खुदा कसम उस दिन से “विशाल” मेरी तक़दीर बदल जाएगी.
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02….
तुम भूल ना जाना…..
( पंडित”विशाल” दयानन्द शास्त्री..mob..–09669290067)
इस बार भी सताना भूल ना जाना तुम कितना है
रूलाना ये भूल ना जाना तुम,
हर बार ही तुमने रूसवा किया मुझे,
कसम है मेरी,
अब ना वफा निभाना तुम,
इस बार भी करना रूसवा भूल ना जाना “विशाल” तुम,
अब तो सनम आदत सी हो चली है,
तेरी बेरूखी और तेरे ओछेपन की,
कसम है मेरी
बढपन ना दिखाना तुम
इस बार भी करना रूसवा भूल ना जाना “विशाल” तुम,
जाने कितना चाहा मैं पागल थी झल्ली,
तेरे दिये ख्वाबो पे यकीं रखती,
कसम है मेरी,
ख्वाब ना दिखाना तुम ,
इस बार भी करना रूसवा भूल ना जाना “विशाल” तुम,
मोहब्बत की राह में तेरा नाम कोई ना लेगा,
मगर कर यकीं तुझे इल्जाम भी ना देगा,
कसम है मेरी नजरे ना चुराना तुम
इस बार भी करना रूसवा भूल ना जाना “विशाल” तुम,
ये वफा है सनम सबके बस की नही है,
तू निभाए इसको ये तेरा दम नही हैं,
फिर अब किसी से मोहब्बत”विशाल” ना जताना तुम,
इस बार भी करना रुसवा भूल ना जाना “विशाल” तुम।

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