जानिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व को …!!!
क्यों और केसे मनाये यह पावन श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार …???
इस जन्माष्टमी पर बना अद्भुत ग्रह योग—-
इस वर्ष जन्माष्टमी के दिन तिथि, नक्षत्र एवं वार का संयोग ऐसा बन रहा है जैसे भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय बना था। भगवान कृष्ण के जन्म के समय जितने योग थे वे सभी इस बार जन्माष्टमी (.8 अगस्त) पर बन रहे हैं। पंडितों के अनुसार भाद्रमास की कृष्णपक्ष अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र, हर्षण योग, वृषभ लग्न और उच्च राशि का चंद्रमा, सिंह राशि का सूर्य इन सभी योग में श्रीकृष्ण प्राकट्य हुए थे। पंडित इसे अच्छा मान रहे हैं।
लेकिन कुण्डली में ग्रहों की स्थिति कृष्ण जन्म के समान नहीं है। फिर भी इस दिन जन्म लेने वाले बच्चे बुद्घिमान और ज्ञानी होंगे। आर्थिक मामलों में संपन्न एवं कूटनीतिक विषयों के जानकार रहेंगे। ज्योतिषीय गणना के अनुसार करीब 5.57 साल बाद इस तरह का योग बना है।
जन्माष्टमी पर्व कृष्ण की उपासना का पर्व है। इस अवसर पर हम कृष्ण के बाल रूप की वंदना करते हुए उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। कृष्ण के बाल रूप से लेकर उनका पूरा जीवन कर्म की प्रधानता को ही लक्षित करता है। अपने मामा कंस का वध कर कृष्ण ने यह उदाहरण पेश किया कि रिश्तों से बड़ा कर्तव्य होता है। कर्तव्य परायणता की यही सीख कृष्ण ने रणभूमि में अर्जुन को भी दी जो अपनों के निर्बाध वध से आहत होकर अपने कर्तव्य से विमुख हो चले थे। गीता आज भी हमारे धर्मग्रंथों में सर्वोत्तम ग्रंथ है जो जीवन के झंझावात में, आपके हर सवाल का जवाब देती है। कृष्ण हमारी तमाम अन्य धार्मिक उपासनाओं से इस प्रकार अलग हैं कि कृष्ण के उपदेश आज के व्यावहारिक जीवन के अनुरूप और व्यावहारिक लगते हैं।
जन्‍माष्‍टमी के त्‍यौहार में भगवान विष्‍णु की, श्री कृष्‍ण के रूप में, उनकी जयन्‍ती के अवसर पर प्रार्थना की जाती है. हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार कृष्‍ण का जन्‍म, मथुरा के असुर राजा कंस का अंत करने के लिए हुआ था. कृष्ण ने ही संसार को “गीता” का ज्ञान भी दिया जो हर इंसान को भय मुक्त रहने का मंत्र देती है. इस उत्सव में कृष्‍ण के जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्‍मरण करने के लिए रास लीला की जाती है.
जब-जब असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया। चूँकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे इसलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी अथवा जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष रात्रि बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झाँकियाँ सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है।
जन्‍माष्‍टमी के अवसर पर पुरूष व औरतें उपवास व प्रार्थना करते हैं. मन्दिरों व घरों को सुन्‍दर ढंग से सजाया जाता है. इस दिन जगह-जगह आपको झांकियां और कृष्ण-लीलाएं देखने को मिलेंगी.
जन्माष्टमी का यह पावन पर्व/त्यौहार देश के विभिन्न हिस्सों में यह पर्व अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है. मथुरा, वृदांवन और यूपी में आपको इस दिन कृष्ण-लीलाएं और रास-लीलाएं देखने को मिलेंगी तो वहीं महाराष्ट्र में मटकी-फोड़ने का विधान है. कृष्ण को लीलाओं का सरताज माना जाता है, उनका पूरा बचपन विभिन्न लीलाओं से भरा हुआ है. इसीलिए इस दिन झांकियों के द्वारा लोग उनके बाल जीवन को प्रदर्शित करने की कोशिश करते हैं.
यह हें श्री कृष्ण की जन्मकुंडली और उसके योग—-
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र मास कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में महानिशीथ काल में वृषभ लगन में हुआ था। उस समय बृषभ लग्न की कुंडली में लगन में चन्द्र और केतु, चतुर्थ भाव में सूर्य, पंचम भाव में बुध एवं छठे भाव में शुक्र और शनि बैठे हैं।
जबकि सप्तम भाव में राहू, भाग्य स्थान में मंगल तथा ग्यारहवें यानी लाभ स्थान में गुरु बैठे हैं। कुंडली में राहु को छोड़ दें तो सभी ग्रह अपनी उच्च अवस्था में हैं। कुंडली देखने से ही लगता है कि यह किसी महामानव की कुंडली है।
कृष्ण नाम किसने दिया..????
महामुनि गर्ग ने इऩका यशोदा के लल्ला का नाम ‘कृष्ण’ रखा। और कहा कि इनकी जन्म कुंडली में चन्द्र, मंगल, बुध और शनि उच्च राशिगत हैं तथा सूर्य, गुरु एवं शुक्र अपनी-अपनी राशि में बैठे हैं। चंद्रमा के साथ केतु की युती से केतु पापरहित हो गया हैं, लेकिन राहू दोष युक्त होकर पत्नी स्थान में बैठे हैं। राहू सप्तम भाव में हो तो विवाहेतर संबंध की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
सप्तम राहू के प्रभाव से उन पर हजारों स्त्रियों के पति होने के आरोप लगते रहे हैं। यह सत्य से परे है। इनकी कुंडली में लग्न में उच्च राशिगत चंद्र के द्ववारा ‘मृदंग योग’ बनने के फलस्वरूप ही कृष्ण कुशल शासक और जन-मानस प्रेमी बने। बृषभ लग्न हो और उसमे चन्द्रमा विराजमान हो तब व्यक्ति जनप्रिय नेता अथवा प्रशासक होता है।
कुंडली के सभी ग्रह ‘वीणा योग’ बना रहे हैं। कृष्ण गीत, नृत्य, संगीत में प्रवीण बने। कुंडली में ‘पर्वत योग’ इन्हें यशस्वी बना रहा है। बुध ने पंचम विद्या भाव में इन्हें कूटनीतिज्ञ विद्वान बनाया तो मकर राशिगत उच्च का मंगल ‘यशस्वी योग’ बनाकर इन्हें पूजनीय बनाया।
वहीं सूर्य से एकादश भाव में चंद्र होने से ‘भास्कर योग’ का निर्माण हो रहा है, यह योग किसी भी जातक को पराक्रमी, वेदांती, धीर और समर्थ बनाता है।
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत-पूजन कैसे करें..?????
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्ररूप में हुआ था. ऐसी मान्यता है कि जन्माष्टमी का सफल पूजन करने से मनुष्य का कल्याण होता ही है. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अर्द्धरात्रि में हुआ था इसलिए इस दिन सुबह से लेकर रात्रि तक श्रीकृष्ण भक्ति में हर कोई डूब जाता है. इसी पवित्र तिथि पर बताई जा रही है भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित व्रत और पूजा की सरलतम विधि. आप भी भगवान की पूजा करें और ध्यान करें.
सबसे पहले सुबह स्नान करने के बाद सभी देवताओं को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर में मुख कर श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का संकल्प करें. फिर अक्षत यानी पूरे चावल के दाने पर कलश स्थापना कर माता देवकी और श्रीकृष्ण की सोने, चांदी, तांबा, पीतल, मिट्टी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. इनकी यथा विधि से पूजा करें या योग्य ब्राह्मण से कराएं. पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नाम उच्चारण करना चाहिए. अंत में माता देवकी को अर्ध्य दें, भगवान श्री कृष्ण को पुष्पांजलि अर्पित करें. रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण के बाल रुप प्रतिमा की पूजा करें. रात में श्रीकृष्ण स्तोत्र, गीता का पाठ करें. दूसरे दिन स्नान कर जिस तिथि एवं नक्षत्र में व्रत किया हो, उसकी समाप्ति पर व्रत पूर्ण करें. इस दौरान आप इस मंत्र का जाप जब भी समय मिले करते रहें “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:’’.
उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएँ। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें-
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें। तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए। फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें-
‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।’
अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा करें।
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ये है दो मत, इसलिए अलग मनता है पर्व—–
स्मार्त मत——
अष्टमी तिथि मध्यरात्रि में होने से उत्सव मनाया जाता है। गोपाल मंदिर में इसी मत से जन्माष्टमी मनाई जाती है।
वैष्णव मत—-
उदयकालीन तिथि अष्टमी होने पर जन्माष्टमी मनाई जाती है। शहर में ज्यादातर वैष्णव मतावलंबी हैं। खजूरी बाजार के यशोदा मंदिर सहित शहरभर में इसी मत से पर्व मनाया जाता है।
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श्रीकृष्ण के प्रभावी मंत्र दिलाते हैं सुख-सौभाग्य—-
भगवन श्रीकृष्ण के अनेक मन्त्र aise हें jinke dvara sukh -वैभव-समृद्धि प्राप्त की जा सकती हैं। इन मंत्रों के जाप से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शुभ प्रभाव बढ़ाने व सुख प्रदान करने में ये मंत्र अत्यन्त प्रभावी माने जाते हैं। आपकी सुविधा के लिए हमने मंत्र से संबंधित जानकारी भी यहां दी है।
भगवान श्रीकृष्ण का मूलमंत्र :
‘कृं कृष्णाय नमः’
– यह श्रीकृष्ण का मूलमंत्र है। इस मूलमंत्र का जाप अपना सुख चाहने वाले प्रत्येक मनुष्य को प्रातःकाल नित्यक्रिया व स्नानादि के पश्चात एक सौ आठ बार करना चाहिए। ऐसा करने वाले मनुष्य सभी बाधाओं एवं कष्टों से सदैव मुक्त रहते हैं।
सप्तदशाक्षर श्रीकृष्णमहामंत्र :
‘ऊ श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा’
यह श्रीकृष्ण का सप्तदशाक्षर महामंत्र है। इस मंत्र का पांच लाख जाप करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। जप के समय हवन का दशांश अभिषेक का दशांश तर्पण तथा तर्पण का दशांश मार्जन करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है। जिस व्यक्ति को यह मंत्र सिद्ध हो जाता है उसे सबकुछ प्राप्त हो जाता है।
सात अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :
‘गोवल्लभाय स्वाहा’
इस सात (7) अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का जाप जो भी साधक करता है उसे संपूर्ण सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
आठ अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :
‘गोकुल नाथाय नमः’
इस आठ (8) अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक जाप करता है उसकी सभी इच्छाएं व अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं।
दशाक्षर श्रीकृष्ण मंत्र :
‘क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलांगाय नमः’
यह दशाक्षर (.0) मंत्र श्रीकृष्ण का है। इसका जो भी साधक जाप करता है उसे संपूर्ण सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
द्वादशाक्षर श्रीकृष्ण मंत्र :
‘ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय’
इस कृष्ण द्वादशाक्षर (12) मंत्र का जो भी साधक जाप करता है, उसे सबकुछ प्राप्त हो जाता है।
बाईस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :
‘ऐं क्लीं कृष्णाय ह्रीं गोविंदाय श्रीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा ह्‌सों।’
यह बाईस (22) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण का मंत्र है। जो भी साधक इस मंत्र का जाप करता है उसे वागीशत्व की प्राप्ति होती है।
तेईस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :
‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री’
यह तेईस (2.) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण का मंत्र है। जो भी साधक इस मंत्र का जाप करता है उसकी सभी बाधाएं स्वतः समाप्त हो जाती हैं।
अट्ठाईस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :
‘ॐ नमो भगवते नन्दपुत्राय आनन्दवपुषे गोपीजनवल्लभाय स्वाहा’
यह अट्ठाईस (28) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र है। जो भी साधक इस मंत्र का जाप करता है उसको समस्त अभिष्ट वस्तुएं प्राप्त होती हैं।
उन्तीस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :
‘लीलादंड गोपीजनसंसक्तदोर्दण्ड बालरूप मेघश्याम भगवन विष्णो स्वाहा।’
यह उन्तीस (29) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र है। इस श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक एक लाख जप और घी, शकर तथा शहद में तिल व अक्षत को मिलाकर होम करते हैं, उन्हें स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
बत्तीस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :
‘नन्दपुत्राय श्यामलांगाय बालवपुषे कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।’
यह बत्तीस (32) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र है। इस श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक एक लाख बार जाप करता है तथा पायस, दुग्ध व शक्कर से निर्मित खीर द्वारा दशांश हवन करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
तैंतीस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :
‘ॐ कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद मे। रमारमण विद्येश विद्यामाशु प्रयच्छ मे॥’
यह तैंतीस (33) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र है। इस श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक जाप करता है उसे समस्त प्रकार की विद्याएं निःसंदेह प्राप्त होती हैं।

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