रक्षा बंधन का त्यौहार ../2. अगस्त,201. (मंगलवार-बुधवार) को मनेगा—
इस वर्ष 2013 में रक्षा बंधन का त्यौहार 20/21 अगस्त, को मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि का आरम्भ 20 अगस्त 2013 को सुबह 10:22 से हो जाएगा. परन्तु सुबह 10:22 से रात्रि 20:49 तक भद्राकाल रहेगा. इसलिए यह त्यौहार अगले दिन 21 अगस्त को 2013 को सुबह 07:15 तक मनाना शुभ रहेगा.
सामान्यत: उतरी भारत जिसमें पंजाब, दिल्ली, हरियाणा आदि में प्रात: काल में ही राखी बांधने का शुभ कार्य किया जाता है. परम्परा वश अगर किसी व्यक्ति को परिस्थितिवश भद्रा-काल में ही रक्षा बंधन का कार्य करना हों, तो भद्रा मुख को छोड्कर भद्रा-पुच्छ काल में रक्षा – बंधन का कार्य करना शुभ रहता है. शास्त्रों के अनुसार में भद्रा के पुच्छ काल में कार्य करने से कार्यसिद्धि और विजय प्राप्त होती है. परन्तु भद्रा के पुच्छ काल समय का प्रयोग शुभ कार्यों के के लिये विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए.
रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि राजा के अभिमान को इसी दिन चकानाचूर किया था। इसलिए यह त्योहार ‘बलेव’ नाम से भी प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र राज्य में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से यह त्योहार विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं।
यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बांधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता, वरन प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बांधने का भी वचन देता है। पहले आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिए किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। सूत्र अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी व्यक्ति से, समाज से और अपने कर्तव्यों से जोड़ता है।
रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का प्रमुख पर्व है। उत्तर भारत में आम तौर पर इसे भाई-बहन के स्नेह व उनके आपसी कर्तव्यों के लिए जाना जाता है। भाई द्वारा बहन की रक्षा और इसके लिए बहन द्वारा भाई की कलाई पर रक्षा-सूत्र या राखी बांधने का रिवाज ही रक्षाबंधन पर्व कहा जाता है। किंतु यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में देश और राष्ट्र की रक्षा, जीवों की रक्षा, समाज व परिवार की रक्षा और भाषा व संस्कृति की रक्षा से भी जुड़ा हुआ है। वर्तमान में रक्षाबंधन के संकल्प को पर्यावरण की रक्षा के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है। कई लोग वृक्षों को राखी बांधकर पर्यावरण के प्रति जागरूकता ला रहे हैं।
रक्षा का संकल्प व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास लाता है। रक्षा करने का भाव ही व्यक्ति को ऊर्जस्वित बना देता है और वह इस ऊर्जा के वशीभूत बड़े से बड़े काम कर जाता है। रक्षा का संकल्प लेने वाला व्यक्ति भले ही शारीरिक रूपरेखा में कमजोर हो, लेकिन वह अंतस की ऊर्जा से ओतप्रोत हो जाता है।
रक्षाबंधन भाई और बहन के रिश्ते की पहचान माना जाता है. राखी का धागा बांध बहन अपने भाई से अपनी रक्षा का प्रण लेती है. यूं तो भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है.आप सभी जानते हैं भारत में अगर हिंदू धर्म की कोई सबसे बड़ी पहचान है तो वह हैं इसके त्यौहार. और सिर्फ हिंदू ही क्यूं भारत में तो हर जाति और धर्म के त्यौहारों का अनूठा संगम देखने को मिलता है. हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है राखी या रक्षाबंधन.
यह त्योंहार भाई-बहन के निस्वार्थ प्रेम का प्रतिक है ! भाई-बहन के पवित्र प्रेम के साथ ही इसमें जो सादगी है, वह किसी दुसरे त्योंहार में नहीं है ! दिवाली में दीयों की रोशनी होती है ! होली में रंग और गुलाल की धूम मची होती है ! दशहरे में दिन भी बडा धूमधाम से होता है, लेकिन रक्षाबंधन का त्योंहार मानाने के लिए पवित्र हार्दिक प्रेम के सिवा अन्य किसी भी चीज की जरुरत नहीं पड़ती !
राखी के दिन मोसम बहुत सुहावना होता है ! आकाश में बिजली मोनो अपने भाई बादलों को राखी बांधने के लिए अधीरता प्रकट करती दिखाई देती ! यहाँ त्योंहार हर भाई को अपनी बहन के प्रति अपने कर्तव्य की याद दिलाता है ! बहन भाई को प्यार से राखी बंधती है और भाई मन ही मन अपनी बहन की रक्षा की जिमेदारी स्वीकार करता है ! राखी से बही बहन के बीच स्नेह का पवित्र बंधन और मजबूत हो जाता है !
अभी तक लोग यही मानते आये है कि अबला होने के नाते नारी राखी बांधकर अपनी रक्षा का भर भाई पर डालती है ! किन्तु वास्तव में वह भाई को केवल अपनी रक्षा का ही नहीं, बल्कि सारी नारीजाति की रक्षा का भार सौंपती है ! राखी बांधकर वह अपने भाई को सक्ती और साहस का मंत्र देती है और उसके कल्याण की कामना करती है इसलियें ऐसे पवित्र त्योंहार को उत्साह और आनंद से मनाना चाहिए !
भारत चाहे आज कितना भी विकसित क्यूं ना हो जाए यहां धर्म हर चीज पर भारी पड़ता है. रक्षाबंधन के संदर्भ में भी कहा जाता है कि अगर इस पर्व का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व नहीं होता तो शायद यह पर्व अब तक अस्तित्व में रहता ही नहीं.रक्षा बंधन की पर्व का सबसे खूबसूरत पहलू यही है कि यह पर्व धर्म ओर जाति के बंधनों को नहीं मानता. अपने इसी गुण के कारण आज इस पर्व की सराहना पूरी दुनिया में की जाती है.
रक्षाबंधन का मंत्र—–
येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
जब भी कोई कार्य शुभ समय में किया जाता है, तो उस कार्य की शुभता में वृ्द्धि होती है. भाई- बहन के रिश्ते को अटूट बनाने के लिये इस राखी बांधने का कार्य शुभ मुहूर्त समय में करना चाहिए.
रक्षाबंधन के संबंध में एक अन्य पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है। देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इंद्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देखकर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बाँध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। तभी से राखी बाँधने की प्रथा शुरू हुई। दूसरी मान्यता के अनुसार ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। वे राजाओं के हाथों में रक्षासूत्र बाँधते थे। इसलिए आज भी इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधते हैं।
रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई को प्यार से राखी बाँधती है और उसके लिए अनेक शुभकामनाएँ करती है। भाई अपनी बहन को यथाशक्ति उपहार देता है। बीते हुए बचपन की झूमती हुई याद भाई-बहन की आँखों के सामने नाचने लगती है। सचमुच, रक्षाबंधन का त्योहार हर भाई को बहन के प्रति अपने कर्तव्य की याद दिलाता है।
इस पर्व का संबंध रक्षा से है। जो भी आपकी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए आप उसे रक्षासूत्र बांध सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युधिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्योहार अपनी सेना के साथ मनाओ इससे पाण्डवों एवं उनकी सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है।
राखी के इन धागों ने अनेक कुरबानियाँ कराई हैं। चित्तौड़ की राजमाता कर्मवती ने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपना भाई बनाया था और वह भी संकट के समय बहन कर्मवती की रक्षा के लिए चित्तौड़ आ पहुँचा था। आजकल तो बहन भाई को राखी बाँध देती है और भाई बहन को कुछ उपहार देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है। लोग इस बात को भूल गए हैं कि राखी के धागों का संबंध मन की पवित्र भावनाओं से हैं।
मेरे विचार रक्षाबंधन के लिए—–
सावन के रिमझिम करते मौसम में,
रिश्तों की भीनी खुशबू आती है|
रंग-बिरंगे त्योहारों के मध्य,
रिश्तों का रेशम एहसास कराती है|
भाई-बहन का ये पावन रिश्ता,
भावभीना अहसास जगाता है|
मन के कोने में छिपा हुआ बचपन,
शीतल छींटे पड़ कर याद आता है||
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रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व——
रक्षाबंधन कब प्रारम्भ हुआ इसके विषय में कोई निश्चित कथा नहीं है लेकिन जैसा कि भविष्य पुराण में लिखा है, उसके अनुसार सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवराज इन्द्र को देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए मंत्र से सिद्ध करके रक्षा सूत्र बंधा था। इससे सूत्र की शक्ति से देवराज युद्ध में विजयी हुए। शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी।
पौराणिक मान्यता के अनुसार यह पर्व देवासुर संग्राम से जुडा है. जब देवों और दानवों के बीच युद्ध चल रहा था और दानव विजय की ओर अग्रसर थे तो यह देख कर राजा इंद्र बेहद परेशान थे. दिन-रात उन्हें परेशान देखकर उनकी पत्नी इंद्राणी (जिन्हें शशिकला भी कहा जाता है) ने भगवान की अराधना की. उनकी पूजा से प्रसन्न हो ईश्वर ने उन्हें एक मंत्रसिद्ध धागा दिया. इस धागे को इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर बांध दिया. इस प्रकार इंद्राणी ने पति को विजयी कराने में मदद की. इस धागे को रक्षासूत्र का नाम दिया गया और बाद में यही रक्षा सूत्र रक्षाबंधन हो गया.
वामनावतार में रक्षाबंधन—–
रक्षाबंधन का वचन निभाया था राजा बलि ने—-
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार राजा बलि ने भगवान विष्णु से अपना साम्राज्य दुश्मनों के प्रपंचों से बचाने हेतु आग्रह किया। अपने भक्त के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने ब्राह्मण स्त्री का रूप लेकर राजा बलि के निवास में रहने का संकल्प लिया, परंतु इस प्रतिज्ञा को सुन भगवान विष्णु की पत्नि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि से अपने स्वामी को स्वर्गलोक नहीं छोड़ने के लिए निवेदन किया।अपने भक्त के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने ब्राह्मण स्त्री का रूप लेकर राजा बलि के निवास में रहने का संकल्प लिया, परंतु इस प्रतिज्ञा को सुन भगवान विष्णु की पत्नि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि से अपने स्वामी को स्वर्गलोक नहीं छोड़ने के लिए निवेदन किया।देवी लक्ष्मी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि को राखी बांधकर उनसे अपने स्वामी को स्वर्गलोक नहीं त्यागने का वचन लिया। बहन की कामना जानकर राजा बलि ने विष्णु देव से स्वर्गलोक में ही रहने की विनती की और इस तरह उन्होंने अपनी बहन के सुहाग की रक्षा की। इसीलिए, राखी के त्योहार को ‘बलेवा’ भी कहा जाता है। इसका मतलब है, राजा बलि की भगवान विष्णु के प्रति सच्ची भक्ति।
महाभारत में रक्षाबंधन—–
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है. जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्यौहार मनाने की सलाह दी थी. शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण (Lord Krishna) की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी. यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था. कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था.
जैन धर्म में रक्षाबंधन पर्व—-
यह पर्व साधना में लीन सात सौ मुनिराजों की रक्षा के साथ जुड़ा है। इसकी कथा भी वामन अवतार की तरह ही है। इसमें मुनिराज विष्णु कुमार वामन का रूप धारण कर राजा बलि से मुनियों की रक्षा करते हैं। इस कथा के अनुसार, अकंपनाचार्य का सात सौ मुनियों का संघ विहार करते हुए हस्तिनापुर पहुंचा। जिस स्थान पर मुनि साधना कर रहे थे, उसके चारों तरफ राजा बलि ने आग लगवा दी। धुएं से मुनियों के गले अवरुद्ध हो गए, आंखें सूज गईं और तेज गर्मी से उन्हें कष्ट होने लगा, लेकिन मुनियों ने धैर्य नहीं छोड़ा। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक यह कष्ट दूर नहीं होगा, तब तक अन्न-जल का त्याग करेंगे। वह श्रावण शुक्ल पूर्णिमा का ही दिन था। उस दिन मुनियों के संकट दूर करने के लिए मुनिराज विष्णु कुमार ने वामन का भेष धारण किया और बलि से भिक्षा में तीन पैर धरती मांगी। विष्णु कुमार ने अपने शरीर को बहुत अधिक बढ़ा लिया। उन्होंने अपना एक पैर सुमेरु पर्वत पर रखा, तो दूसरा पैर मानुषोत्तर पर्वत पर। तीसरा पैर रखने की जगह ही न थी। सर्वत्र हाहाकार मच गया। बलि ने जब क्षमा याचना की, तब जाकर वे पूर्ववत हुए। इस तरह सात सौ मुनियों की रक्षा हुई। सभी ने परस्पर रक्षा करने के लिए बंधन बांधा।
—–राखी के त्योहार का ज्यादा महत्व पहले उत्तर भारत में था। आज यह पूरे भारत में बडे उत्साह से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे नारली पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। लोग समुद्र में वरुण राजा को नारियल दान करते हैं। नारियल के तीन आंखों को भगवान शिव की तीन आंखें मानते हैं। दक्षिण भारत में इसे अवनी अविट्टम के नाम से जाना जाता है।
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रक्षाबंधन का ऐतिहासिक महत्व—-
-हुमायूं ने निभाई राखी की लाज—–
चित्तौड़ की विधवा महारानी कर्मावती ने जब अपने राज्य पर संकट के बादल मंडराते देखे तो उन्होंने गुजरात के बहादुर शाह के खिलाफ मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेज मदद की गुहार लगाई और उस धागे का मान रखते हुए हुमायूं ने तुरंत अपनी सेना चित्तौड़ रवाना कर दी. इस धागे की मूल भावना को मुगल सम्राट ने न केवल समझा बल्कि उसका मान भी रखा.
सिकंदर ने अदा किया राखी का कर्ज——
कहते हैं, सिकंदर की पत्‍‌नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांध कर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था. पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवन दान दिया था.
रविंद्र नाथ टैगोर ने दिया नया नजरिया—–
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने राखी के पर्व को एकदम नया अर्थ दे दिया. उनका मानना था कि राखी केवल भाई-बहन के संबंधों का पर्व नहीं बल्कि यह इंसानियत का पर्व है. विश्वकवि रवींद्रनाथ जी ने इस पर्व पर बंग भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था. 1947 के भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिया गया.
इसमें कोई संदेह नहीं कि रिश्तों से ऊपर उठकर रक्षाबंधन की भावना ने हर समय और जरूरत पर अपना रूप बदला है. जब जैसी जरूरत रही वैसा अस्तित्व उसने अपना बनाया. जरूरत होने पर हिंदू स्त्री ने मुसलमान भाई की कलाई पर इसे बांधा तो सीमा पर हर स्त्री ने सैनिकों को राखी बांध कर उन्हें भाई बनाया. राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है. इस नजरिये से देखें तो एक अर्थ में यह हमारा राष्ट्रीय पर्व बन गया है.
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रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि—-
रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई-बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंमकुंम एवं दीप जलकर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाइयों के माथे पर कुंमकुंम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं।
इसके बाद भाई की दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बां धती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आशीर्वाद एवं उपहार व धन देता है। बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है।
इस दिन बहनों के हाथ से राखी बंधवाने से भूत-प्रेत एवं अन्य बाधाओं से भाई की रक्षा होती है। जिन लोगों की बहनें नहीं हैं वह आज के दिन किसी को मुंहबोली बहन बनाकर राखी बंधवाएं तो शुभ फल मिलता है। इन दिनों चांदी एवं सोनी की राखी का प्रचलन भी काफी बढ़ गया है। चांदी एवं सोना शुद्ध धातु माना जाता है अतः इनकी राखी बांधी जा सकती है लेकिन, इनमें रेशम का धागा लपेट लेना चाहिए।
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वर्तमान में राखी का स्वरूप—-
आज बहुत जरूरत है दायित्वों से बंधी राखी का सम्मान करने की। क्योंकि राखी का रिश्ता महज कच्चे धागों की परंपरा नहीं है। लेन-देन की परंपरा में प्यार का कोई मूल्य भी नहीं है। बल्कि जहां लेन-देन की परंपरा होती है वहां प्यार तो टिक ही नहीं सकता। ये कथाएं बताती हैं कि पहले खतरों के बीच फंसी बहन का साया जब भी भाई को पुकारता था, तो दुनिया की हर ताकत से लडकर भी भाई उसे सुरक्षा देने दौड पडता था और उसकी राखी का मान रखता था। आज भातृत्व की सीमाओें को बहन फिर चुनौती दे रही है, क्योंकि उसके उम्र का हर पडाव असुरक्षित है। बौद्धिक प्रतिभा होते हुए भी उसे ऊंची शिक्षा से वंचित रखा जाता है, क्योंकि आखिर उसे घर ही तो संभालना है। नयी सभ्यता और नयी संस्कृति से अनजान रखा जाता है, ताकि वह भारतीय आदर्शों व सिद्धांतों से बगावत न कर बैठे। इन हालातों में उसकी योग्यता, अधिकार, चिंतन और जीवन का हर सपना कसमसाते रहते ह।
यदि अपवादों को छोड दें, तो अब सामान्यतः यह स्नेह-संबंध भी पहले जैसा नहीं रहा। क्या हो गया भाई-बहिन के इस प्रेम को? आखिर किसकी नजर लग गई इसे? सच तो यह है कि अब वैष्वीकरण का दौर है और इस दौर में आदमी मानवीय संबंधों से कटता और अपने में सिमटता जा रहा है। उस पर उपभोक्तावादी संस्कृति हावी हो रही है। पैसा अब प्रमुख हो चला है और वह संबंधों के निर्वाह पर भी अपना असर छोडता है। भाई-बहिन के संबंधों में भी यही बात है। दोनों की ही दृष्टि अर्थ और स्वार्थ पर गडी रहती है।
थोडी-सी सावधानी और समझदारी बरतकर दरकते-टूटते और बालू की तरह बिखरते रिश्तों को बचाया जा सकता है। उनमें पहले जैसा प्यार लाया जा सकता है। भाई-बहिन के रिश्ते ही क्यों, पिता, पुत्र, चाचा, ताऊ, मित्र, पडोसी आदि लोगों के साथ भी जो रिश्ते होते हैं, उन्हें भी कडुवाहट की जगह, मिठास में पाला जा सकता है। जरूरत है ’मैं और तुम‘ की जगह ’हम‘ की भावना पैदा करें। खुशियां बांटने से ही खुशियां मिलती हैं।
अगर जीवन में पारम्परिक संबंधों के प्रति हमारा तनावरहित सुखद लगाव है, मन में उल्लास का, उत्साह का भाव है और फलतः जीने की चाव है, तो त्योहार भी महज खानापूरी न होकर हमें सचमुच त्योहार जैसे लगेंगे
और अपनी सार्थकता को सिद्ध करेंगे।
हर लड़की किसी की बहन होती है और राखी का फ़र्ज़ निभाने के लिए हर लड़की की सुरक्षा करना आवश्यक है. जब समाज में हर व्यक्ति ऐसा सोचेगा तभी हर बहन सुरक्षित होगी और लड़कियों के लिए एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो पाएगा. क्या आप मेरी बात से सहमत नहीं? क्या राखी का त्यौहार मनाने मात्र से हम अपनी बहनों को सुरक्षित रख पाएंगे?
आप सभी से मेरा इस राखी पर यही अनुरोध है कि आप रक्षाबंधन मनाएं ही नहीं निभाएं भी! रक्षाबंधन की आप सभी को हार्दिक बधाइयाँ!!

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