इन उपायों द्वारा पायें पितृ दोष से शांति—
(वास्तु-ज्योतिष के उपायों द्वारा पित्र दोष शांति—)
जिस घर का वास्तु ठीक होता है जहां किसी तरह का दोष नहीं होता है तो घर में सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है। यदि किसी घर की आर्थिक तरक्की नहीं हो रही है। पूरी मेहनत के बाद भी घर के हर सदस्य को उसकी योग्यता के अनुसार सफलता नहीं मिल पाती है, किसी ना किसी तरह की समस्या या परेशानी हमेशा बनी रहती है।
यदि किसी घर के निवासियों के बार-बार एक्सीडेंट्स होते हैं तो निश्चित मानिये की उस घर में पितृदोष होता है।
.. इसीलिए जिस घर में पीने के पानी का स्थान दक्षिण दिशा में हो उस घर को पितृदोष अधिक प्रभावित नहीं करता साथ ही यदि नियमित रूप से उस स्थान पर घी का दीपक लगाया जाए तो पितृदोष आशीर्वाद में बदल जाता है। ऐसा माना जाता है।
.. यदि पीने के पानी का स्थान उत्तर या उत्तर-पूर्व में भी है तो भी उसे उचित माना गया है और उस पर भी पितृ के निमित्त दीपक लगाने से पितृदोष का नाश होता है क्योंकि पानी में पितृ का वास माना गया है और पीने के पानी के स्थान पर उनके नाम का दीपक लगाने से पितृदोष की शांति होती है ऐसी मान्यता है..
—————————————————————————————————
पितृदोष में इन उपायों से होगा लाभ—-
(पित्रदोश की शांति हेतु सरल उपाय)——
—–घर में कभी-कभी गीता पाठ करवाते रहना चाहिए।
—–प्रत्येक अमावस्या को ब्राहमण भोजन अवश्य करवायें।
—–ब्राहमण भोजन में पूर्वजों की मनपसंद खाने की वस्तुएं अवश्य बनायी जाए।
—–ब्राहमण भोजन में खीर अवश्य बनाए।
——योग्य एवं पवित्र ब्राहमण को श्राद्ध में चांदी के पात्र में भोजन करवायें।
——स्वर्ण दक्षिणा सहित दान करने से अति उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
——पित्रृदोष की शांति करने पर सभी परेशानीयां अपने-आप समाप्त होने लगती है। मानव सफल, सुखी एवं ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता है।
—- हर रोज कम से कम पच्चीस मिनट के लिए खिड़की जरुर खोलें, इससे कमरे से नकारात्मक उर्जा बाहर निकल जाएगी और साथ ही सूरज की रोशनी के साथ घर में सकारात्मक उर्जा का प्रवेश हो जाएगा।
—प्रत्येक मास का प्रथम दिन अग्निस्वरूप होता है। इस दिन अग्नि पूजा अवश्य करनी चाहिए। अग्नि सब प्रकार के गुणों को प्रज्वलित करती है और वास्तु में अग्नि तत्त्व को क्रियाशील करती है। अग्नि की पूजा करने वाला तेजस्वी बनता है।
—साल में एक दो-बार हवन करें।
—-घर में अधिक कबाड़ एकत्रित ना होने दें।
–शाम के समय एक बार पूरे घर की लाइट जरूर जलाएं।
—सुबह-शाम सामुहिक आरती करें।
—महीने में एक या दो बार उपवास करें।
—–घर में हमेशा चन्दन और कपूर की खुशबु का प्रयोग करें।
—–घर या वास्तु के मुख्य दरवाजे में देहरी (दहलीज) लगाने से अनेक अनिष्टकारी शक्तियाँ प्रवेश नहीं कर पातीं व दूर रहती हैं। प्रतिदिन सुबह मुख्य द्वार के सामने हल्दी, कुमकुम व गोमूत्र मिश्रित गोबर से स्वास्तिक, कलश आदि आकारों से रंगोली बनाकर देहरी एवं रंगोली की पूजा कर परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि ‘हे ईश्वर ! मेरे घर व स्वास्थ्य की अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करें।’ आधुनिक वातावरण में संभव न हो तो गौमूत्र से बनी फिनाइल का उपयोग भी उपयुक्ति फल देता है।
—प्रवेश द्वार के ऊपर बाहर की ओर गणपति अथवा हनुमानजी का चित्र लगाना एवं आम, अशोक आदि के पत्ते का तोरण (बंदनवार) बाँधना भी मँगलकारी है।
—जिस घर, इमारत, प्लाट आदि के मध्यभाग (ब्रह्मस्थान) में कुआँ या गड्ढा रहता है वहाँ रहने वालों की प्रगति में रुकावट आती है एवं अनेक प्रकार के दुःख एवं कष्टों का सामान करना पड़ता है। अन्त में मुखिया का व कुटुम्ब का नाश ही होता है।।
—यदि किसी घर में वास्तुदोष पता नहीं हो अथवा ऐसा वास्तुदोष हो जो ठीक करना संभव न हो तो उस मकान के चारों कोनों में एक-एक कटोरी मोटा (ढेलावाला) नमक रखा जाय। प्रतिदिन कमरों में नमक के पानी का अथवा गौमूत्र (अथवा गौमूत्र से निर्मित फिनाइल) का पौंछा लगाया जाय। इससे ऋणात्मक ऊर्जाओं का प्रभाव कम हो जायेगा। जब नमक गीला हो जाये तो वह बदलते रहना आवश्यक है। वास्तु दोष प्रभावित स्थल पर देशी गाय रखने से भी वास्तुदोष का प्रभाव क्षीण होता है।
—जिस घर में आप रहते हैं कहीं वहां किसी बुरी आत्मा का वास तो नहीं हैं। जी हां जिस घर में आप रहते हैं वहां पर यदि किसी हवा अर्थात् बुरी आत्मा का वास है तो पक्की बात है आप कभी भी सुख से घर में नहीं रह सकेगें। घर के किसी सदस्य को बुरे अथवा डरावने स्वप्न आने लगेगें। किसीके न होने पर भी किसीके होने का ऐहसास होना अर्थात् ऐसा लगेगा घर में कोई हैं। फिर भयंकर गृह-क्लेश बनते बनते काम बिगडना बीमारीयां आत्महत्या के विचार घर के लोगों को बुरी आदतें लगना मेहनत करने पर भी लाभ न होना जैसी समस्याऐं आपको हमेशा घेरे रहेंगी। धन अधिक खर्च होने लगेगा। अंत में आप पूरे बर्बाद हो जाऐगें एवं जीवन नर्क बन जाऐगा। कभी-कभी तो आपको भी पता नहीं चल पाता है कि आपके घर में किसी आत्मा का वास हैं। वास्तुदोष अलग होता है परंतु बुरी आत्मा का वास अलग चीज हैं। पूजन-पाठ दान-पुण्य देवी-देवता सब कुछ करने पर भी समस्याऐं कम नहीं होंगी। परंतु इसका समाधान बहुत आसान होता हैं। जो वस्तु आत्मा मांगती है उसे वह दे दी जाए तो वह शांत हो जाती हैं एवं आपको परेशान करना बंद कर देती हैं। फिर आपकी समस्याऐं अपने-आप दूर होने लग जाऐगीं। परंतु हम वर्षों तक समस्याओं से लडते रहते हैं फिर भी हम यह नहीं जान पाते हैं कि वह आत्मा क्या चाहती हैं
माना जाता है कि इन सभी बातों का ध्यान रखने से घर से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक वातावरण का निर्माण होता है।
————————————————————————————-
पितृदोष किसे कहते है ?
हमारे पूर्वज, पितर जो कि अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति, असंतुष्टि का अनुभव करते हैं एवं उनकी सद्गति या मोक्ष किसी कारणवश नहीं हो पाता तो हमसे वे आशा करते हैं कि हम उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन या उपाय करें जिससे उनका अगला जन्म हो सके एवं उनकी सद्गति या मोक्ष हो सके। उनकी भटकती हुई आत्मा को संतानों से अनेक आशाएं होती हैं एवं यदि उनकी उन आशाओं को पूर्ण किया जाए तो वे आशिर्वाद देते हैं। यदि पितर असंतुष्ट रहे तो संतान की कुण्डली दूषित हो जाती है एवं वे अनेक प्रकार के कष्ट, परेशानीयां उत्पन्न करते है, फलस्वरूप कष्टों तथा र्दुभाग्यों का सामना करना पडता है।
—————————————————————————————————–
पितृदोष से होने वाली हानिया—–
यदि किसी जातक की कुंडली मे पित्रृदोष होता है तो उसे अनेक प्रकार की परेशानियां, हानियां उठानी पडती है। जो लोग अपने पितरों के लिए तर्पण एवं श्राद्ध नहीं करते, उन्हे राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, ब्रहमराक्षस आदि विभिन्न प्रकार से पीडित करते रहते है।
—–घर में कलह, अशांति रहती है।
—–रोग-पीडाएं पीछा नहीं छोडती है।
——घर में आपसी मतभेद बने रहते है।
——-कार्यों में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो जाती है।
——-अकाल मृत्यु का भय बना रहता है।
——–संकट, अनहोनीयां, अमंगल की आशंका बनी रहती है।
——-संतान की प्राप्ति में विलंब होता है।
——–घर में धन का अभाव भी रहता है।
———अनेक प्रकार के महादुखों का सामना करना पडता है।
———————————————————————————————–
पितृदोष के लक्षण——–
—–घर में आय की अपेक्षा खर्च बहुत अधिक होता है।
—-घर में लोगों के विचार नहीं मिल पाते जिसके कारण घर में झगडे होते रहते है।
—–अच्छी आय होने पर भी घर में बरकत नहीं होती जिसके कारण धन एकत्रित नहीं हो पाता।
—–संतान के विवाह में काफी परेशानीयां और विलंब होता है।
—–शुभ तथा मांगलीक कार्यों में काफी दिक्कते उठानी पडती है।
—-अथक परिश्रम के बाद भी थोडा-बहुत फल मिलता है।
—-बने-बनाए काम को बिगडते देर नहीं लगती।
—————————————————————————————–
आसानी से पायें पितृदोष से शांति—पीपल के पास यह चमत्कारी मंत्र बोल कर—
शास्त्रों के मुताबिक पितृ ऋण से मुक्ति के लिये पितृपक्ष में पितरों का स्मरण बहुत ही शुभ फल देता है। इसके लिए श्राद्ध का महत्व बताया गया है। किंतु शास्त्र कहते हैं कि नियत तिथि या काल में पितरों की शांति न होने पर परिवार में पितृदोष उत्पन्न होता है। यह पितृदोष जीवन में अनेक तरह रोग, परेशानियां व अशांति लाने वाला माना गया है।
शास्त्रों की मानें तो अगर आप भी जीवन में तन, मन या आर्थिक परेशानियों से जूझ रहें हैं तो पितृदोष के संकेत हो सकते हैं। जिसके लिये पितृपक्ष या अमावस्या जैसी तिथियों पर श्राद्धकर्म, तर्पण अचूक उपाय है। किंतु अगर इस कर्मों को करने में वक्त या धन की समस्या आए तो यहां बता जा रहा है एक ऐसा सरल उपाय जो पितृदोष से मुक्ति ही न देगा, बल्कि घर-परिवार में सुख-समृद्धि भी लाएगा –
यह उपाय है पीपल या वट की पूजा। शास्त्रों में पितरों को भगवान विष्णु का रूप भी बताया गया है। भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप पीपल भी है। इसलिए यहां बताए सरल उपाय से श्राद्धपक्ष में पीपल पूजा करें –
—– श्राद्धपक्ष में पीपल वृक्ष की गंध, अक्षत, तिल व फूल चढ़ाकर पूजा करें। दूध या दूध मिला जल चढ़ाकर पीपल के नीचे एक गोघृत यानी गाय के घी का दीप जलाएं। दूध से बनी खीर का भोग लगाएं।
——- दीप जलाकर पीपल के नीचे स्वच्छ स्थान पर कुश का आसन बिछाकर पितृरों को नीचे लिखे मंत्र से स्मरण करें। चंदन की माला से इस मंत्र की 1, . या 5 माला कर विष्णु आरती करें —–
“”””ऊँ ऐं पितृदोष शमनं हीं ऊँ स्वधा”””
—– आरती कर पीपल पूजा का जल घर में लाकर छिड़कें व प्रसाद घर-परिवार के सदस्यों को खिलाएं।
——————————————————————————————–
—–पित्रों की शांति, तर्पण आदि न करने से पाप—–
—–पित्रों की शांति एवं तर्पण आदि न करने वाले मानव के शरीर का रक्तपान पित्रृगण करते हैं अर्थात् तर्पण न करने के कारण पाप से शरीर का रक्त शोषण होता है।
——-पितृदोष की शांति हेतु त्रिपिण्डी श्राद्ध, नारायण बलि कर्म, महामृत्युंजय मंत्र
—–त्रिपिण्डी श्राद्ध यदि किसी मृतात्मा को लगातार तीन वर्षों तक श्राद्ध नहीं किया जाए तो वह जीवात्मा प्रेत योनि में चली जाती है। ऐसी प्रेतात्माओं की शांति के लिए त्रिपिण्डी श्राद्ध कराया जाता है।
——-नारायण बलि कर्म यदि किसी जातक की कुण्डली में पित्रृदोष है एवं परिवार मे किसी की असामयिक या अकाल मृत्यु हुई हो तो वह जीवात्मा प्रेत योनी में चला जाता है एवं परिवार में अशांति का वातावरण उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिति में नारायण बलि कर्म कराना आवश्यक हो जाता है।
——-महामृत्युंजय मंत्र महामृत्युंजय मंत्र जाप एक अचूक उपाय है। मृतात्मा की शांति के लिए भी महामृत्युंजय मंत्र जाप करवाया जा सकता है। इसके प्रभाव से पूर्व जन्मों के सभी पाप नष्ट भी हो जाते है।

1 COMMENT

  1. आप की फीस किस हिसाब से ली जाती है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here