गुप्त नवरात्री ( .9 जुलाई .0.. ,मंगलवार ) से शुरू होंगे—-

इस वर्ष आषाढ़ी गुप्त नवरात्री (09 जुलाई 2013 ,मंगलवार ) से आशाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से पुनर्वसु नक्षत्र में शुरू हो रहे है अष्टमी भी मंगलवार चित्र नक्षत्र सक्रांति के दिन होने से इन नवरात्रों का महत्त्व और अधिक हो गया है

9 जुलाई 2013 , मंगलवार, आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा, विक्रम संवत 2070 
(घट स्थापना आदि का समय जोधपुर के मानक समय पर आधारित है)
1. घट स्थापना मुहूर्त -9 जुलाई 2013 , मंगलवार को
सिंह लग्न – प्रात: 8. 46 से 11.00 तक….
(या ) लाभ -अमृत के चौघडिये में दिन में – 11.00 से 2.15 बजे तक। 
(या ) अभिजित -दिन में 12 .16 से 1.10 बजे तक। 
(2 ) उत्थापन – 17 जुलाई 2013 , बुधवार को आषाढ़ गुप्त नवरात्र समाप्त।
इस समय में हर् सद्ग गृहस्थ को घर में सुख-शांति हेतु प्रत्येक दिन नहा धोकर माँ जगदम्बा के चरणों में बैठ कर यथा सामर्थ्य पूजा-पाठ,जप-तप,सप्तशती पाठ नियम पूर्वक करने चाहिए अंत में अष्टमी वाले दिन कन्याओं को भोजन करवाएं
नवरात्रि एक हिंदू पर्व है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें। यह पर्व साल में दो बार आता है। एक शारदीय नवरात्रि, दूसरा है चैत्रीय नवरात्रि। नवरात्रि के नौ रातों में तीन हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ में स्वरूपों पूजा होती है, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।
अनंत सिद्धियाँ देती हैं मां—–
नवदुर्गा और दस महाविधाओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविधाएँ अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।
नवरात्र के दौरान पाठ- जप आदि :—
साधक अपनी इच्छानुसार दुर्गासप्तशती का पाठ या दुर्गा के किसी मन्त्र का जप करे।
(या ) सुन्दर काण्ड का पाठ
(या ) राम रक्षा स्त्रोत का पाठ
(या) गायत्री मन्त्र जप (या )रामचरित मानस पाठ
(या)किसी भी देवी – देवता के मन्त्र का जप करे।
पाठ या मन्त्र जाप का फल —-
नवरात्रि का समय वर्ष के श्रेष्ट समय में से एक है अत: इस अवधि में किये गए जप – तप , व्रत, उपवास का फल तुलनात्मक रूप से ज्यादा मिलता है।जप – तप या पाठ निष्काम भाव से किया जाये या सकाम भाव से, सभी का सुफल मिलता है, सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। यदि किसी विशेष उद्देश्य के लिए जप या पाठ किया जाता है तो उस उद्देश्य की अवश्य पूर्ति होती है।
साधकों से प्रार्थना है यदि वे अपने मन्त्र या नवार्ण मंत्र को अपने लिए शक्ति संपन्न करना चाहें तो भोज पत्र पर अपना मन्त्र अष्टगंध की स्याही से लिखें पंचोपचार पूजन करें फिर सीधे बाजु में लाल कपडे में बाँध लें आठ पाठ देव्या अथर्व शीर्ष के साम्पन्न करें हर् वार माँ पराशक्ति का पूजन करें एक पाठ सिध्ह्कुंजिका स्तोत्र का करें फिर विधि सहित नवार्ण का संकल्पित/निश्चित संख्या में एवं निश्चित समय पर अष्टांग योग के अंतर्गत पूर्ण नियम पालन करते हुए दिन रात माँ की अनुभूति महसूस करें और जप करें अष्टमी को दशांश हवन करें…
हलवा,खीर,सुखामेवा,मालपुआ,शहद,अनार के द्वारा माँ पराशक्ति के प्राकृतिक स्वरूप नवदुर्गा को आहुति अर्पण करें तर्पण मार्जन करें (विशेष इस क्रिया को सिध्ही का नाम न दें क्यूंकि “पराशक्ति”को कोई सिद्ध नहीं कर सकता हाँ हम तप-जप के द्वारा अपने को उसकी कृपा के लायक बना सकते हैं 
गुप्त नवरात्रि टोने-टोटकों के लिए बहुत ही उत्तम समय रहता है।गुप्त नवरात्रि में तंत्र शास्त्र के अनुसार इस दौरान किए गए सभी तंत्र प्रयोग शीघ्र ही फल देते हैं। यदि आप गरीब हैं और धनवान होना चाहते हैं गुप्त नवरात्रि इसके लिए बहुत ही श्रेष्ठ समय है। नीचे लिखे टोटके को विधि-विधान से करने से आपकी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होगी।
—-इसी भाव से अनुष्ठान पूरा करें 
—इस कार्य में गुरु के सनिध्या या आदेश की नितांत आवश्यकता है, उनके निमित्त वस्त्र दक्षिणा रख कर उनसे इस पूजा की स्वीकृति अवश्य लें अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद भी उनको दर्शन कर यथा योग्य सामग्री भेंट कर प्रसन्न करें…
——————————————————————————
नवरात्रि में क्यों करते हैं कन्या पूजन, जानिए महत्व व विधि—-
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार चैत्र व शारदीय नवरात्रि एवं गुप्त नवरात्रियों में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। अष्टमी व नवमी तिथि के दिन तीन से नौ वर्ष की कन्याओं का पूजन किए जाने की परंपरा है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है।
शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। कन्या पूजन की विधि इस प्रकार है-
पूजन विधि—–
कन्या पूजन में तीन से लेकर नौ साल तक की कन्याओं का ही पूजन करना चाहिए इससे कम या ज्यादा उम्र वाली कन्याओं का पूजन वर्जित है। अपने सामथ्र्य के अनुसार नौ दिनों तक अथवा नवरात्रि के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन के लिए आमंत्रित करें। कन्याओं को आसन पर एक पंक्ति में बैठाएं। ऊँ कुमार्यै नम: मंत्र से कन्याओं का पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद उन्हें रुचि के अनुसार भोजन कराएं। भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें। भोजन के बाद कन्याओं के पैर धुलाकर विधिवत कुंकुम से तिलक करें तथा दक्षिणा देकर हाथ में पुष्प लेकर यह प्रार्थना करें-
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।
नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।
जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।
पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।
तब वह पुष्प कुमारी के चरणों में अर्पण कर उन्हें ससम्मान विदा करें।
—————————————————————————-
धन लाभ हेतु यह टोटका करें इस गुप्त नवरात्री में—
गुप्त नवरात्रि में पडऩे वाले शुक्रवार को रात 10 बजे के बाद सभी कार्यों से निवृत्त होकर उत्तर दिशा की ओर मुख करके पीले आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने तेल के 9 दीपक जला लें। 
ये दीपक साधनाकाल तक जलते रहने चाहिए। दीपक के सामने लाल चावल की एक ढेरी बनाएं फिर उस पर एक श्रीयंत्र रखकर उसका कुंकुम, फूल, धूप, तथा दीप से पूजन करें। 
उसके बाद एक प्लेट पर स्वस्तिक बनाकर उसे अपने सामने रखकर उसका पूजन करें। 
श्रीयंत्र को अपने पूजा स्थल पर स्थापित कर लें और शेष सामग्री को नदी में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से धनागमन होने लगेगा।
——————————————————————————
आप सभी को गुप्त नवरात्री की ढेरों हार्दिक शुभकामनाएं. माता सभी को खुश और आबाद रखे..
अखंड सौभाग्य और मनचाहा वर देने वाली माँ आप सभी के हर मनोकामना पूर्ण करे ऐसी शुभकामनाएं.. 
——————————————————————–
कैसे बनी माँ पार्वती नवदुर्गा..???
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दुर्गा अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। जब दुर्गा का नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सभी देवताओं को भाग लेने हेतु आमंत्रण भेजा, किन्तु भगवान शंकर को आमंत्रण नहीं भेजा।
सती के अपने पिता का यज्ञ देखने और वहाँ जाकर परिवार के सदस्यों से मिलने का आग्रह करते देख भगवान शंकर ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुंच कर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा है। उन्होंने देखा कि वहाँ भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। पिता दक्ष ने भी भगवान के प्रति अपमानजनक वचन कहे। यह सब देख कर सती का मन ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। वह अपने पति का अपमान न सह सकीं और उन्होंने अपने आपको यज्ञ में जला कर भस्म कर लिया। अगले जन्म में सती ने नव दुर्गा का रूप धारण कर जन्म लिया। जब देव और दानव युद्ध में देवतागण परास्त हो गये तो उन्होंने आदि शक्ति का आह्वान किया और एक-एक करके उपरोक्त नौ दुर्गाओं ने युद्ध भूमि में उतरकर अपनी रणनीति से धरती और स्वर्ग लोक में छाए हुए दानवों का संहार किया। इनकी इस अपार शक्ति को स्थायी रूप देने के लिए देवताओं ने धरती पर चैत्र और आश्विन मास में नवरात्रों में इन्हीं देवियों की पूजा-अर्चना करने का प्रावधान किया। वैदिक युग की यही परम्परा आज भी बरकरार है। साल में रबी और खरीफ की फसलें कट जाने के बाद अन्न का पहला भोग नवरात्रों में इन्हीं देवियों के नाम से अर्पित किया जाता है। आदिशक्ति दुर्गा के इन नौ स्वरूपों को प्रतिपदा से लेकर नवमी तक देवी के मण्डपों में क्रमवार पूजा जाता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here