क्यों जरुरी है गृहप्रवेश से पहले वास्तु शांति करवाना…????
नए घर में प्रवेश से पूर्व वास्तु शांति अर्थात यज्ञादि धार्मिक कार्य अवश्य करवाने चाहिए।वास्तु शांति कराने से भवन की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है तभी घर शुभ प्रभाव देता है। जिससे जीवन में खुशी व सुख-समृद्धि आती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार मंगलाचरण सहित वाद्य ध्वनि करते हुए कुलदेव की पूजा व बडो का सम्मान करके और ब्राह्मणों को प्रसन्न करके गृह प्रवेश करना चाहिए
आप जब भी कोई नया घर या मकान खरीदते है तो उसमे प्रवेश से पहले उसकी वास्तु शांति करायी जाती है | जाने अनजाने हमारे द्वारा खरीदे या बनाये गये मकाने में कोई भी दोष हो तो उसे वास्तु शांति करवा के दोष को दूर किया जाता है | इसमें वास्तु देव का ही विशेष पूजन किया जाता है | जिससे हमारे घर में सुख शांति बनी रहती है |
वास्तु का अर्थ है मनुष्य और भगवान का रहने का स्थान। वास्तु शास्त्र प्राचीन विज्ञान है जो सृष्टि के मुख्य तत्वों के द्वारा निःशुल्क देने में आने वाले लाभ प्राप्त करने में मदद करता है।
ये मुख्य तत्व हैं- आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु। वास्तु शांति यह वास्तव में दिशाओं का, प्रकृति के पांच तत्वों के , प्राकृतिक स्त्रोंतों और उसके साथ जुड़ी हुइ वस्तुओं के देव हैं। हम प्रत्येक प्रकार के वास्तु दोष दूर करने के लिए वास्तु शांति करवाते हैं। उसके कारण ज़मीन या बांधकाम में, प्रकृति अथवा वातावरण में रहा हुआ वास्तु दोष दूर होता है। वास्तु दोष हो वैसी बिल्डींग में कोइ बड़ा भांग तोड करने के लिए वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा करने में आती है। निम्न के हिसाब से परिस्थिति में प्रकृति या वातावरण के द्वारा होने वाली खराब असर को टालने के लिए आपको एक निश्चित वास्तु शांति करनी चाहिए।
गृह प्रवेश के पूर्व वास्तु शांति कराना शुभ होता है। इसके लिए शुभ नक्षत्र वार एवं तिथि इस प्रकार हैं-
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, व शुक्रवार शुभ हैं।
शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी।
शुभ नक्षत्र- अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, उत्ताफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति, अनुराधा एवं मघा।
अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं भद्रादि का विचार कर लेना चाहिए।
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इसमें क्या हें वास्तु शांति की विधि——
स्वस्तिवचन, गणपति स्मरण, संकल्प, श्री गणपति पूजन, कलश स्थापन और पूजन, पुनःवचन, अभिषेक, शोडेशमातेर का पूजन, वसोधेरा पूजन, औशेया मंत्रजाप, नांन्देशराद, आचार्य आदे का वरेन, योग्ने पूजन, क्षेत्रपाल पूजन, अग्ने सेथापन, नवग्रह स्थापन और पूजन, वास्तु मंडला पूजल और स्थापन, गृह हवन, वास्तु देवता होम, बलिदान, पूर्णाहुति, त्रिसुत्रेवस्तेन, जलदुग्धारा और ध्वजा पताका स्थापन, गतिविधि, वास्तुपुरुष-प्रार्थना, दक्षिणासंकल्प, ब्राम्ळण भोजन, उत्तर भोजन, अभिषेक, विसर्जन
उपयुक्त वास्तु शांति पूजा के हिस्सा है।
सांकेतिक वास्तुशांतिः—
सांकेतिक वास्तु शांति पूजा पद्घति भी होती है, इस पद्घति में हम नोंध के अनुसार वास्तु शांति पूजा में से नज़रअंदार न कर सके वैसी वास्तु शांति पूजा का अनुसरण करते हैं।
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‘विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र’ विधिवत अनुष्ठान करने से सभी ग्रह, नक्षत्र, वास्तु दोषों की शांति होती है। विद्याप्राप्ति, स्वास्थ्य एवं नौकरी-व्यवसाय में खूब लाभ होता है।
कोर्ट-कचहरी तथा अन्य शत्रुपीड़ा की समस्याओं में भी खूब लाभ होता है। इस अनुष्ठान को करके गर्भाधान करने पर घर में पुण्यात्माएँ आती हैं। सगर्भावस्था के दौरान पति-पत्नी तथा कुटुम्बीजनों को इसका पाठ करना चाहिए।
अनुष्ठान-विधिः—–
सर्वप्रथम एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाएँ। उस पर थोड़े चावल रख दें। उसके ऊपर ताँबे का छोटा कलश पानी भर के रखें। उसमें कमल का फूल रखें। कमल का फूल बिल्कुल ही अनुपलब्ध हो तो उसमें अडूसे का फूल रखें। कलश के समीप एक फल रखें। तत्पश्चात ताँबे के कलश पर मानसिक रूप से चारों वेदों की स्थापना कर ‘विष्णुसहस्रनाम’ स्तोत्र का सात बार पाठ सम्भव हो तो प्रातः काल एक ही बैठक में करें तथा एक बार उसकी फलप्राप्ति पढ़ें। इस प्रकार सात या इक्कीस दिन तक करें।
रोज फूल एवं फल बदलें और पिछले दिन वाला फूल चौबीस घंटे तक अपनी पुस्तकों, दफ्तर, तिजोरी अथवा अन्य महत्त्वपूर्ण जगहों पर रखें व बाद में जमीन में गाड़ दें। चावल के दाने रोज एक पात्र में एकत्र करें तथा अनुष्ठान के अंत में उन्हें पकाकर गाय को खिला दें या प्रसाद रूप में बाँट दें। अनुष्ठान के अंतिम दिन भगवान को हलवे का भोग लगायें।
यह अनुष्ठान हो सके तो शुक्ल पक्ष में शुरू करें। संकटकाल में कभी भी शुरू कर सकते हैं। स्त्रियों को यदि अनुष्ठान के बीच में मासिक धर्म के दिन आते हों तो उन दिनों में अनुष्ठान बंद करके बाद में फिर से शुरू करना चाहिए। जितने दिन अनुष्ठान हुआ था, उससे आगे के दिन गिनें।
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कब करवानी चाहिए वास्तु शांति..???
—-यदि बांध काम वास्तु के नियमों के विरुद्घ करने में आया हो तो और उसके ढ़ांचे के लिए धन की कमी महसूस हो
—-महत्व के कमरे में अथवा बिल्ड़िग में इन्टिरियर में कोइ कमी हो।
—-आप जब भी कोइ पुराना घर खरीदे।
—आप जब लगातार .. वर्ष से किसी एक जगह पर रह रहे हो
—–आप जब बहुत लंबे विदेश प्रवास के बाद घर वापस आ रहे हैं तब।
—-नये घर के उदघाटन के समय।
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इनका ध्यान रखें अपने नए या पुराने घर में—
——-घर के खिड़की-दरवाजे इस तरह होने चाहिए कि सूरज की रोशनी अच्छी तरह से घर के अंदर आए।
—–ड्रॉइंग रूम में फूलों का गुलदस्ता लगाएं।
—–रसोई घर में पूजा की आलमारी या मंदिर नहीं रखना चाहिए।
——बेडरूम में भगवान के कैलेंडर, तस्वीरें या फिर धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुएं न रखें।
——घर में टॉइलेट के बगल में देवस्थान नहीं होना चाहिए।
——दीपावली अथवा अन्य किसी शुभ मुहूर्त में अपने घर में पूजास्थल में वास्तुदोशनाशक कवच की स्थापना करें और नित्य इसकी पूजा करें. इस कवच को दोषयुक्त स्थान पर भी स्थापित करके आप वास्तुदोषों से सरलता से मुक्ति पा सकते हैं.
——-अपने घर में ईशान कोण अथवा ब्रह्मस्थल में स्फटिक श्रीयंत्र की शुभ मुहूर्त में स्थापना करें. यह यन्त्र लक्ष्मीप्रदायक भी होता ही है, साथ ही साथ घर में स्थित वास्तुदोषों का भी निवारण करता है.
——-प्रातःकाल के समय एक कंडे पर थोड़ी अग्नि जलाकर उस पर थोड़ी गुग्गल रखें और ‘ॐ नारायणाय नमन’ मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार घी की कुछ बूँदें डालें. अब गुग्गल से जो धूम्र उत्पन्न हो, उसे अपने घर के प्रत्येक कमरे में जाने दें. इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा ख़त्म होगी और वातुदोशों का नाश होगा.
——-प्रतीदिन शाम के समय घर मे कपूर जलाएं इससे घर मे मौजूद नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है।
——वास्तु पूजन के पश्चात् भी कभी-कभी मिट्टी में किन्हीं कारणों से कुछ दोष रह जाते हैं जिनका निवारण कराना आवश्यक है।
——-घर के सभी प्रकार के वास्तु दोष दूर करने के लिए मुख्य द्वार पर एक ओर केले का वृक्ष दूसरी ओर तुलसी का पौधा गमले में लगायें।
——दुकान की शुभता बढ़ाने के लिए प्रवेश द्वार के दोनों ओर गणपति की मूर्ति या स्टिकर लगायें। एक गणपति की दृष्टि दुकान पर पड़ेगी, दूसरे गणपति की बाहर की ओर।
——हल्दी को जल में घोलकर एक पान के पत्ते की सहायता से अपने सम्पूर्ण घर में छिडकाव करें। इससे घर में लक्ष्मी का वास तथा शांति भी बनी रहती है
——अपने घर के मन्दिर में घी का एक दीपक नियमित जलाएं तथा शंख की ध्वनि तीन बार सुबह और शाम के समय करने से नकारात्मक ऊर्जा घर से बहार निकलती है.
——घर में उत्पन्न वास्तुदोष घर के मुखिया को कष्टदायक होते हैं. इसके निवारण के लिये घर के मुखिया को सातमुखी रूद्राक्ष धारण करना चाहिए.
—–यदि आपके घर का मुख्य द्वार दक्षिणमुखी है, तो यह भी मुखिया के के लिये हानिकारक होता है. इसके लिये मुख्यद्वार पर श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए.
—–अपने घर के पूजा घर में देवताओं के चित्र भूलकर भी आमने-सामने नहीं रखने चाहिए इससे बड़ा दोष उत्पन्न होता है.
——अपने घर के ईशान कोण में स्थित पूजा-घर में अपने बहुमूल्य वस्तुएँ नहीं छिपानी चाहिए.
—–पूजाकक्ष की दीवारों का रंग सफ़ेद हल्का पीला अथवा हल्का नीला होना चाहिए.
—–यदि झाडू के बार-बार पैर का स्पर्थ होता है, तो यह धन-नाश का कारण होता है. झाडू के ऊपर कोई वजनदार वास्तु भी नहीं रखें.। ध्यान रखें की बाहर से आने वाले व्यक्ति की दृष्टि झारू पड़ न परे।
——अपने घर में दीवारों पर सुन्दर, हरियाली से युक्त और मन को प्रसन्न करने वाले चित्र लगाएं. इससे घर के मुखिया को होने वाली मानसिक परेशानियों से निजात मिलती है.
——घर की पूर्वोत्तर दिशा में पानी का कलश रखें। इससे घर में समृद्धि आती है।
—–बेडरूम में भगवान के कैलेंडर या तस्वीरें या फिर धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए। बेडरूम की दीवारों पर पोस्टर या तस्वीरें नहीं लगाएं तो अच्छा है। हां अगर आपका बहुत मन है, तो प्राकृतिक सौंदर्य दर्शाने वाली तस्वीर लगाएं। इससे मन को शांति मिलती है, पति-पत्नी में झगड़े नहीं होते।
—-गणेश पूजा, नवग्रह शांति और वास्तु पुरुष की पूजा,नवचंडी यज्ञ, शांतिपाठ, अग्नि होत्र यज्ञ
—-वास्तु पुरूष की मूर्ति, चांदी का नाग, तांबा का वायर, मोती और पौला ये सब वस्तुएं लाल मिटटी के साथ लाल कपड़े में रखकर उसको पूर्व दिशा में रखें।
—-लाल रेती, काजू, पौला को लाल कपड़ों में रख कर मंगलवार को पश्चिम दिशा में रखें और उसकी पूजा की जाएं है तो घर में शांति की वृद्घि होती है।
—–वास्तु पुरुष की योग्य पूजा बाद उसकी आज्ञा प्राप्त करने के बाद पुरानी इमारत तोड़नी चाहिए।
—-तोड़ते समय मिट्टी का घड़ा, जल अथवा बैठक घर में नहीं ले जानी चाहिए।
—-प्रवेश की सीढ़ियों की प्रतिदिन पूजा करें, वहां कुंकुम और चावल के साथ स्वास्तिक, मिट्टी के घड़े का चित्र बनाएं।
—रक्षोज्ञा सूक्त जप, होम, अनुष्ठान इत्यादि भी करना चाहिए।
—ओम नमो भगवती वास्तु देवताय नमः- इस मंत्र का जप प्रतिदिन 108बार और कुल 1.500 जप तब तक करें और अंत में दसमसा होम करें।
—-वास्तु पुरुष की प्रार्थना करें।
—दक्षिण-पश्चिम दिशा अगर कट गइ हो तो अथवा घर में अशांति हो तो पितृशांति, पिडदान, नागबली, नारायण बली इत्यादि करें।
—-प्रत्येक सोमवार और अमावास्या के दिन रुद्री करें।
—-घर में गणपति की मूर्ति या छबि रखें।
—प्रत्येक घर में पूजा कक्ष बहुत ज़रूरी है।
—-नवग्रह शांति के बिना ग्रह प्रवेश मत करें।
—-जो मकान बहुत वर्षों से रिक्त हो उसको वास्तुशांति के बाद में उपयोग में लेना चाहिए। वास्तु शांति के बाद उस घर को तीन महिने से अधिक समय तक खाली मत रखें।
—–भंडार घर कभी भी खाली मत रखें।
—–घर में पानी से भरा मटका हो वहां पर रोज सांझ को दीपक जलाएं।
—प्रति वर्ष ग्रह शांति कराए क्योंकि हम अपने जीवन में बहुत से पाप करते रहते हैं।