बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोष दूर करने के वास्तु-फेंगशुई के टिप्स-उपाय(एक संकलन) ——-
घर में नहीं होगी धन-धान्य की कमी—
खिड़कियों की आवाज अशुभ क्यों? वास्तु के अनुसार घर में खिड़कियां होना आवश्यक है। इनसे नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलती है तथा सकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश करती है।
घर की सुंदरता में भी खिड़कियां का अहम योगदान होता है। घर में खिड़कियां बनवाते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
.- खिड़कियां खोलते व बंद करते समय आवाज नहीं आवाज नहीं होना चाहिए। इसका प्रभाव घर की सुख-शांति पर पड़ता है। इससे कारण परिवार के सदस्यों का ध्यान भंग होता है।
.- खिड़कियों की संख्या सम हो किंतु दस के गुणक में जैसे- 1., 20, .0 या 40 न हो।
3- किसी कमरे की किसी एक दीवार में जहां तक हो सके एक से अधिक खिड़कियां न रखें। कमरे की साइज के अनुपात में खिड़की बड़ी ही बनवाएं।
4- अधिक ऑक्सीजन एवं ताजा हवा के लिए अपेक्षित है कि प्रत्येक लिविंग रूम में कम से कम दो खिड़कियां व दो रोशनदान अवश्य हों।
5- खिड़कियां ऊंचे स्थानों पर हों ताकि शुद्ध हवा आसानी से घर में प्रवेश कर सके और अशुद्ध हवा दूसरी खिड़की से बाहर निकल सके।
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समृद्धि लेकर आते हैं तीन सिक्के——
फेंगशुई का चलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है इसका प्रमुख कारण है कि इसके आसान टिप्स। यह टिप्स इतने सरल होते हैं जो आसानी से किए जा सकते हैं।
इन्हीं में से कुछ प्रमुख फेंगशुई टिप्स नीचे दिए गए हैं-
1- फेंगशुई के अनुसार घर के दरवाजे में लाल रिबन से बंधे सिक्के लटकाने से घर में धन और समृद्धि आती है। अपने घर के दरवाजे के हैंडल में सिक्के लटकाना घर में संपत्ति व सौभाग्य लाने का सर्वोत्तम मार्ग है। सिर्फ तीन सिक्के ही लगाएं और वह भी दरवाजे के अंदर की ओर। बाहर सिक्के लगाने से लक्ष्मी द्वार पर ही ठहर जाती है। आप तीन पुराने चीनी सिक्कों को लाल रंग के धागे अथवा रिबन में बांध कर अपने घर के हैंडल में लटका सकते हैं। इससे घर के सभी लोग लाभान्वित होंगे। ये सिक्के दरवाजे के अंदर की ओर लटकाने चाहिए न कि बाहर की ओर। केवल मुख्य द्वार के हैंडल में सिक्के लटकाएं।
2- यदि सोते समय शरीर का कोई अंग दर्पण में दिखाई देता है, तो उस अंग में पीड़ा होने लगती है। इस तरह सोने से बचें।
3- सोते समय सिर या पैर किसी भी दरवाजे की ठीक सीध में नहीं होने चाहिए। इससे मानसिक दबाव बनता है।
4- घर के सदस्यों की दीर्घायु के लिए स्फटिक का बना हुआ एक कछुआ घर में पूर्व दिशा में रखें।
5- मछलियों के जोड़े को घर में लटकाना बहुत शुभ एवं सौभाग्यदायक माना जाता है। इनके प्रभाव से घर में धन की बरकत और कार्यक्षेत्र में उन्नति होती है। इन्हें बृहस्पतिवार अथवा शुक्रवार को घर में टांगना शुभ होता है।
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छत पर नहीं रखें कबाड़ा, क्यों?
वास्तु शास्त्र हमेशा इस बात पर अधिक ध्यान देता है कि घर में किसी भी तरह से नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश न हो। नकारात्मक ऊर्जा परिवार के सदस्यों को प्रभावित करती है, जिसके कई दुष्परिणाम हो सकते हैं।
नीचे कुछ वास्तु टिप्स दिए गए हैं जिनसे आप घर में प्रवेश करने वाली नकारात्मक ऊर्जा को रोक सकते हैं-
1- घर की छत पर कबाड़ा अथवा फालतू सामान न रखें। यदि जरुरी हो तो एक कोने में रखें। कबाड़ा व फालतू सामान रखने से परिवार के सदस्यों के मन-मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है। इससे पितृ दोष भी लगता है।
2- घर जितना प्राकृतिक लगेगा उतना ही उसका आभामंडल उन्नत होगा। घर का प्राकृतिक रूप देने के लिए आस-पास पेड़-पौधे, चारों ओर खुला हुआ स्थान, दूर से दिखने वाली दीवारों पर प्राकृतिक पत्थर, गमले आदि का उपयोग करें।
3- घर की आभा को कायम रखने के लिए जरुरी है कि घर का प्लास्टर उखड़ा हुआ न हो। यदि कहीं से थोड़ा सा भी प्लास्टर उखड़ जाए तो तुरंत उसे दुरुस्त करवाएं।
4- घर में कलर करवाते समय इस बात का ध्यान रखें कि पेंट एक सा हो। शेड एक से अधिक हो सकते हैं लेकिन शेड्स का तालमेल ठीक होना चाहिए।
5- घर के आस-पास कोई गंदा नाला, गंदा तालाब, शमशान घाट या कब्रिस्तान नहीं होना चाहिए। इससे भी आभामंडल को अधिक फर्क पड़ता है।6- घर कितना ही पुराना हो, समय-समय पर उसकी मरम्मत, रंग-रोगन आदि कार्य करवाते रहना चाहिए ताकि नयापन व ताजगी बनी रहे।
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बंद घड़ी घर में नहीं रखें, क्यों?
फेंगशुई वास्तु शास्त्र का ही एक रूप है। फेंगशुई से मिलती-जुलती कई बातें भारतीय वास्तु शास्त्र में भी है।
फेंगशुई बिना तोड़-फोड़ आपके घर को वास्तु सम्मत बना देता है। फेंगशुई की कुछ टिप्स नीचें दी गई हैं।
इनसे आप सुख-समृद्धि पा सकते हैं-
1- घर में जो घडिय़ां बंद पड़ी हों, उन्हें या तो घर से हटा दें या चालू करें। बंद घडिय़ां हानिकारक होती हैं। इनसे नकारात्मक ऊर्जा निकलती है।
2- फेंगशुई के अनुसार घर के पूर्वोत्तर कोण में तालाब या फव्वारा शुभ होता है। इसके पानी का बहाव घर की ओर होना चाहिए न कि बाहर की ओर।
3- घर को नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त रखने के लिए पूर्व दिशा में मिट्टी के एक छोटे से पात्र में नमक भर कर रखें और हर चौबीस घंटे के बाद नमक बदल दें।
4- अपने ऑफिस में पूर्व दिशा में लकड़ी से बनी ड्रैगन की एक मूर्ति रखें। इससे ऊर्जा एवं उत्साह प्राप्त होगा।
5- घर या दफ्तर में झाड़ू का जब इस्तेमाल न हो रहा हो, तब उसे नजऱों के सामने से हटाकर रखें।
6- यदि घर का मुख्य द्वार उत्तर, उत्तर-पश्चिम या पश्चिम में हो तो उसके ऊपर बाहर की तरफ घोड़े की नाल लगा देना चाहिए। इससे सुरक्षा एवं सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
7- कमरों में पूरे फर्श को घेरते हुए कालीन आदि बिछाने से लाभदायक ऊर्जा का प्रवाह रुकता है।
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फेंगशुई से मालामाल होगी दुकान—–
कारोबार की सफलता कई कारणों पर निर्भर करती है जिनमें से वास्तु भी महत्वपूर्ण है। फेंगशुई के कुछ सिद्धांतों का पालन करने से न सिर्फ कारोबार में सफलता मिलती है अपितु यश व मान-सम्मान भी मिलता है।
व्यवसाय में सफल होने के लिए फेंगसुई के इन सिद्धांतों का पालन करें-
1. दुकान का दरवाजा बड़ा होना चाहिए और वह किसी संकरे गलियारे में नहीं खुलना चाहिए।
2. दरवाजे के आगे कोई स्तम्भ, बिजली का खम्भा, वृक्ष, खंडहर, सीढियां, किसी भवन या दुकान का धारदार कोना नहीं होना चाहिए।
3 यदि आपकी दुकान किसी तिराहे या चौराहे पर हो तो यह अच्छा है। दुकान के बाहर एक दर्पण अवश्य लगाएं।
4. दुकान का कैश काउंटर दरवाजे के साथ लगता हुआ और उसके समानांतर नहीं होना चाहिए।
5. दुकान के कैश काउंटर के उपर लटकती बीम नहीं होनी चाहिए।
6. दुकान के अंदर दीवारों का रंग फेंगशुई के अनुरूप हो।
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बिना तोड़-फोड़ कैसे मिटाएं वास्तु दोष—–
बिना सोचे-विचारे मकान बनवाने पर उसमें कई वास्तु दोष आ जाते हैं। जिनका असर हमारे जीवन पर पड़ता है।
वास्तु शास्त्रियों के अनुसार कुछ मामूली परिवर्तन कर इन वास्तु दोषों को समाप्त किया जा सकता है। यह उपाय निम्न हैं-
1- यदि आपके घर की छत पर व्यर्थ का सामान पड़ा हो तो उसे वहां से हटा दें।
2- प्लास्टर आदि उखड़ गया हो तो उसकी तत्काल मरम्मत करवा दें।
3- यदि आपकी रसोई के गेट के ठीक सामने बाथरूम का गेट हो तो यह नकारात्मक ऊर्जा देगा। इस दोष से बचने के लिए बाथरूम तथा रसोई के बीच में एक कपड़े का पर्दा या किसी अन्य प्रकार का पार्टीशन खड़ा कर सकते हैं ताकि रसोई से बाथरूम दिखाई न दे।
4- यदि घर के दरवाजे व खिड़कियां खुलने व बंद होने पर आवाज करते हैं तो उनकी आवश्यक मरम्मत करवाएं।
5- आग्नेय कोण में रसोई न होने पर गैस चूल्हे को रसोई के आग्नेय कोण में रखकर दोष का निवारण कर सकते हैं।
और यह भी नहीं सकते तो आग्नेय कोण में एक जीरो वाट का बल्ब जलाकर भी इस दोष से बचा जा सकता है।
6- यदि ईशान में बोरिंग या अण्डर ग्राउंड टैंक आदि न बनवा सके हों तो ईशान में एक सादा जल लगवा कर दोष का निवारण कर सकते हैं।
7- यदि भूखण्ड चौकोर नहीं हो तो यह अवश्य देख लें कि लंबाई, चौड़ाई की दुगुनी से अधिक न हो। यदि लंबाई, चौड़ाई से दुगुनी हो तो अतिरिक्त भूभाग पर स्वतंत्र इकाई का निर्माण करवाया जा सकता है।
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बेडरूम बढ़ाए दाम्पत्य सुख—-
वास्तु शास्त्रियों का मानना है कि वास्तु में न सिर्फ सुख-समृद्धि के अपितु सुखद दाम्पत्य के सूत्र भी छिपे हैं। दाम्पत्य जीवन में बेडरूम काफी खास होता है। यदि बेडरूम में नीचे लिखे वास्तु नियमों का पालन किया जाए तो दाम्पत्य जीवन कहीं अधिक सुखमय हो सकता है।
1-यदि आप दाम्पत्य जीवन में खुशी चाहते हैं तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बेडरूम शांत, ठंड़ा, हवादार व बिना दबाव वाला होना चाहिए। बेडरूम में बेकार सामान नहीं होना चाहिए।
2-बेडरूम में निजता कायम रहे। इसके लिए ध्यान रखें कि बेडरूम की खिड़की दूसरे कमरे में न खुले। शयन कक्ष की आवाज बाहर नहीं आना चाहिए। इससे दाम्पत्य जीवन में मिठास बढ़ती है।
3-शयन कक्ष में पेंट हल्का व अच्छा हो। दीवारों पर चित्र कम हों, चित्र मोहक होना चाहिए।
4-बेडरूम में पलंग आवाज करने वाला न हो तथा सही दिशा में रखा हो। सोते समय सिर दक्षिण की ओर होना चाहिए। आरामदायक व भरपूर नींद से दाम्पत्य जीवन अधिक सुखद बनता है।
5-बाथरूम बेडरूम से लगा हुआ होना चाहिए। बाथरूम का दरवाजा बेडरूम में खुलता हो तो उसे बंद रखना चाहिए। उस पर परदा भी डाल सकते हैं।
6-बेडरूम में पेयजल की सुविधा होना चाहिए ताकि रात को उठकर बाहर न जाना पड़े।
7- बेडरूम में प्रकाश की उचित व्यवस्था होना चाहिए। सोते समय जीरो वॉट का बल्ब जलाना चाहिए। रोशनी सीधी पलंग पर नहीं पडऩी चाहिए।
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फेंगशुई : खुशहाली का प्रतीक है कछुआ————–
फेंगशुई में कछुए को शुभ माना जाता है। इसे घर में रखने से कामयाबी के साथ धन-दौलत और खुशहाली भी आती है। इसे अपने ऑफिस या मकान की उत्तर दिखा में रखें। याद रहे कछुए को जब भी रखें तो उसका चेहरा अंदर की ओर होना चाहिए तभी दिशा शुभ होगी। इसे कभी जोड़े में न रखें।
ड्रेगन मुंह वाला कछुआ सौभाग्य का प्रतीक है। अत: इसे शयनकक्ष में न रखें। इसको बैठक हॉल में रखें। अगर यह पूर्व या उत्तर दिशा में रखा जाए तो बहुत ही बेहतर है।
फेंगुशई से वास्तु दोष निवारण में दूसरा नंबर कछुआ का आता है। ऐसे में आपके घर में अगर कछुआ उपस्थित है तो समझिए कि आपकी बीमारी और शत्रुओं से छुट्टी हो गई है।
परिवार का फोटो क्यों लगाएं घर में?
लकड़ी तथा उससे बनी वस्तुओं का हमारे जीवन में काफी महत्व है।
फेंगशुई के अनुसार लकड़ी की वस्तुएं घर या दफ्तर के पूर्व दिशा में स्थापित करने से यह दिशा ऊर्जावान होती है।
यदि आप भी अपने घर और दुकान में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना चाहते हैं तो नीचे लिखी लकड़ी की वस्तुएं रखकर इन्हें सुधार सकते हैं-
1- यदि घर, कार्यालय, शो-रूम आदि के पूर्वी हिस्से में लकड़ी का फर्नीचर या लकड़ी से निर्मित वस्तुएं अलमारी, शो पीस, पेड़-पौधे या फ्रेम जड़े हुए चित्र लगाए जाएं, तो अपेक्षित लाभ होता है।
2- परिवार की खुशहाली और स्वास्थ्य के लिए पूरे परिवार का फोटो लकड़ी के फ्रेम में जड़वाकर घर की पूर्वी दीवार पर लटकाएं।
3- घर की बैठक में जहां घर के सदस्य आमतौर पर एकत्र होते हैं, वहां बांस का पौधा लगाना चाहिए। पौधे को बैठक के पूर्वी कोने में गमले में रखें।
4- नुकीले औजार जैसे- कैंची, चाकू आदि कभी भी इस प्रकार नहीं रखे जाने चाहिए कि उनका नुकीला बाहर की ओर हो।
5- शयन कक्ष में पौधा नहीं रखना चाहिए, किन्तु बीमार व्यक्ति के कमरे में ताजे फूल रखने चाहिए। इन फूलों को रात को कमरे से हटा दें।
6- मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए चंदन आदि से बनी अगरबत्ती जलाएं। इससे मानसिक बेचैनी कम होती है।
7- तीन हरे पौधे मिट्टी के बर्तनों में घर के अंदर पूर्व दिशा में रखें। बोनसाई व कैक्टस न लगाएं क्योंकि बोनसाइ प्रगति में बाधक एवं कैक्टस हानिकारक होता है।
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बेडरूम में रखें गुलदस्ता, क्यों?
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का हर हिस्सा व्यवस्थित होना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है। वास्तु शास्त्र में घर के रंग-रोगन, साज-सज्जा पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। अगर आप भी अपने घर को वास्तु सम्मत बनाना चाहते हैं तो नीचे लिखे वास्तु टिप्स का उपयोग करें-
1- अगर आप अपना दाम्पत्य जीवन सुखमय बनाना चाहते हैं तो बेडरूम में फ्लावर पॉट अवश्य रखें लेकिन उसकी रोजाना सफाई अवश्य करें। सफाई नहीं करने से दाम्पत्य जीवन में खटास आ सकती है।
2- शयन कक्ष बहुत खास जगह होती है। यहां आप कपल फोटो लगा सकते हैं लेकिन पैरों की ओर नहीं लगाएं।
3- बेडरूम में हल्की व सुंदर लाइट व्यवस्था होनी चाहिए।
4- जहां तक हो सके बाहरी दीवारों पर वाटर प्रुफ कलर का इस्तेमाल करें।
5- घर के बाहर खुले स्थानों पर सीमेंटेड गमलों में फूल या बेलें लगाएं।
6- रसोई के हर कोने में प्रकाश की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
7- पेंटिग्स दीवारों का खालीपन दूर करती है। बेडरूम व भोजन कक्ष में हल्के रंगों वाली पेंटिग्स लगाएं।
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क्या स्वयं का मकान बना पाएंगे?
सभी का सपना होता है कि उसका अपना एक सुंदर घर हो, जिसमें तमाम सुख-सुविधाएं भी हो। वास्तु शास्त्र में ऐसे लोगों की जन्म कुण्डली के बारे में भी उल्लेख मिलता है जिनके भाग्य में स्वश्रम से या अन्य किसी माध्यम से भवन प्राप्ति का योग होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति स्वपरिश्रम से भवन प्राप्त करते हैं उनकी कुण्डली में यह योग बनते हैं-
1- भूमि का ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चौथा भाव भूमि व भवन का है। वस्तुत: चौथे भाव के स्वामी (चतुर्थेश) का केंद्र त्रिकोण में होना उत्तम भवन प्राप्ति का योग है। मंगल और चतुर्थेश लग्नेश व नवमेश का बली होना या शुभग्रहों से युत या दुष्ट होना भवन प्राप्ति का अच्छा संकेत है।
2- जन्म कुण्डली के चौथे भाव का स्वामी किसी शुभ ग्रह के साथ युति करके 1, 4, 5, 7, 9 व 10 वें भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति को स्वश्रम से निर्मित उत्तम सुख-सुविधाओं ये युक्त भवन प्राप्त होता है।
3- जन्मकुण्डली के चौथे भाव का स्वामी (चतुर्थेश) पहले (लग्न) भाव में हो और पहले (लग्न) भाव का स्वामी (लग्नेश) चौथे भाव में हो तो भी ऐसा व्यक्ति स्व पराक्रम व पुरुषार्थ से अपना घर(भवन) बनाता है।
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कम बजट में कैसे बनाएं घर?
दिनोंदिन बढ़ती मंहगाई का असर सीधे-सीधे मकान की लागत पर हो रहा है। इससे नया मकान बनवाने वालों को अपनी जेबें कुछ ज्यादा ही ढीली करनी पड़ रही है।
अगर नीचे लिखे बातों पर ध्यान दें तो कम लागत में भी मजबूत व सुंदर घर बन सकता है-
1- गृह निर्माण करवाने से पहले घर का एक वास्तु सम्मत नक्शा बनवा लें और उसके अनुसार निर्माण करवाएं ताकि अनावश्यक तोड़-फोड़ न करनी पड़े।
2- विवाद ग्रस्त अथवा उबड़-खाबड़ भूखण्ड नहीं खरीदना चाहिए नहीं तो इसे व्यवस्थित करवाने में ही काफी पैसा खर्च हो जाएगा।
3- भूखण्ड के आस-पास यदि कोई कोई खाली कमरा हो तो उसे किराए पर लेकर उसमें निर्माण सामग्री रखवा सकते हैं। इससे चौकीदार का खर्चा बचेगा।
4- निर्माण आरंभ करने से पूर्व भूखण्ड पर निर्माण सामग्री पर्याप्त मात्रा में खरीद लें ताकि निर्माण कार्य में व्यवधान न हो। एक साथ खरीदने पर सामान सस्ता भी पड़ेगा।
5- नींव आवश्यकतानुसार ही खुदवाएं। अधिक गहरी नींव खुदवाने से भरने में खर्चा ही बढ़ेगा। सामान्यत: चार-पांच फुट गहरी नींव पर्याप्त होती है।
6- बाउंड्री वॉल पर अधिक महंगी रैलिंग न लगाएं। पत्थर, मार्बल व लोहे की जाली मंहगी होती है। सीमेंट की जाली अपेक्षाकृत सस्ती होती है।
7- यदि कारीगर अधिक लग रहे हों तो मसाला तैयार करने के लिए मिक्सर मशीन का उपयोग करें। मशीन से मसाला जल्दी व संतुलित बनता है तथा श्रम, समय व पैसे की बचत भी होती है।
8- शेल्फ व खिड़कियों में नीचे-ऊपर सस्ते पत्थर लगवाना चाहिए। सैण्ड स्टोन अन्य पत्थरों से काफी सस्ता पड़ता है।
9- शीशम व सागवान की लकड़ी की जगह बबूल की लकड़ी का उपयोग किया जा सकता है। यह सस्ती होने के साथ मजबूत भी होती है।
10- बिजली फिटिंग अण्डर ग्राउण्ड ही करवाएं। यह अपेक्षाकृत सस्ती पड़ती है।
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बेडरूम में न हो बाथरूम, क्यों?
आधुनिक भवनों में बाथरूम एक आवश्यक व महत्वपूर्ण अंग है। बाथरूम बनवाते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1- वास्तु के अनुसार बेडरूम में बाथरूम नहीं होना चाहिए क्योंकि दोनों की ऊर्जाओं का परस्पर आदान-प्रदान स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता ।
2- बाथरूम घर के नैऋत्य कोण में बनवाना चाहिए। अगर संभव न हो तो वायव्य कोण में भी बाथरूम बनवाया जा सकता है।
3- बाथरूम में पानी का बहाव उत्तर की ओर रखें।
4- गीजर आदि विद्युत उपकरण बाथरूम के आग्नेय कोण में लगाएं।
5- बाथरूम में एक बड़ी खिड़की व एक्जॉस्ट फैन के लिए रोशनदान अवश्य हो।
6- बाथरूम में गहरे रंग की टाइल्स न लगाएं। हमेशा हल्के रंग की टाइल्स का उपयोग करें।
7- यदि बाथरूम का दरवाजा बेडरूम में ही खुलता हो तो उसे सदैव बंद रखना चाहिए तथा उसके आगे पर्दा लगा देना चाहिए।
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ऐसे मिटाएं ऑफिस का वास्तु दोष——
ऑफिस वह स्थान होता है जहां अनेक कर्मचारी एक ही स्थान पर मिलकर एक-दूसरे से सामंजस्य बनाकर कार्य करते हैं। यदि ऑफिस में वास्तु दोष हो तो उसके कर्मचारियों तथा कंपनी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
ऑफिस के वास्तु दोषों को नीचे लिखे उपायों से दूर किया जा सकता है-
1- कार्यालय के मुख्य प्रभारी का कक्ष सबसे पहले नहीं होना चाहिए। प्रवेश द्वार के समीप किसी ऐसे सहायक का कक्ष हो जो आगन्तुकों को जानकारी उपलब्ध करवा सके।
2- कार्यालय में किसी भी कमरे के दरवाजे के ठीक सामने टेबल नहीं होना चाहिए।
3- ऑफिस में हरे या गहरे रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह रंग रोशनी अधिक खाता है। सफेद, क्रीम या पीला जैसे हल्के रंग का उपयोग करना चाहिए।
4- कार्यालय में पानी की व्यवस्था ईशान कोण में करनी चाहिए। ईशान में पानी तब ही शुभ होगा, जब उसका संबंध जमीन से हो। यदि धरातल से ऊंचे स्थान पर पानी रखना हो तो अपनी सुविधानुसार किसी भी स्थान पर रख सकते हैं।
5- कैशियर को ऐसे स्थान पर नहीं बैठाना चाहिए, जहां से उसे कार्य करते हुए अधिकाधिक कर्मचारी देखें। 6
– कुबेर का वास उत्तर दिशा में माना गया है इसलिए जहां तक संभव हो कैशियर को उत्तर दिशा में ही बैठाएं।
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हरियाली से वास्तु दोष निवारण—–
वास्तु शास्त्र में हरियाली को खास महत्व दिया गया है। इसके अनुसार यदि घर के आस-पास कोई बगीचा हो तो यह बहुत से दोषों का निवारण स्वतः ही हो जाता है। सामान्य वास्तु दोषों को मिटाने के लिए आप भी अपने घर में बगीचा बना सकते हैं। यह हरियाली आपको प्रकृति के बेहद नजदीक होने का अनुभव देगी।
घर में बगीचा बनाते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें-
1- घर में बगीचा बनाने केलिए सबसे पहले उसकी जगह तय कर लें।
2- गार्डन घर के हिसाब से बनाएं। यानि बड़े घर के हिसाब से बड़ा व छोटे घर के हिसाब से छोटा। इससे घर का लुक अच्छा लगेगा।
3- अब सीजन के हिसाब से अपने मन पसंद फूल चुन लीजिए।
4- गार्डन को अपनी इच्छानुसार 2 या 3 भागों में भी बांट सकते हैं।
5- इन भाग में अलग-अलग तरह के सुंदर फूलों के पौधे लगाइए।
6- गार्डन के बीच में गुलमोहर, नीम या आम जैसा बड़ा पेड़ भी लगा सकते हैं। यह पेड़ स्वास्थ के लिए अच्छे तो होते ही हैं, साथ ही साथ गर्मियों में ताजी हवा के लिए इससे बढिय़ा कोई उपाय नहीं है।
7- क्यारियों की सुंदरता बढ़ाने के लिए स्टार, सर्कल या कोई और शेप भी दे सकते हैं।
8- बीजों को यूं ही नहीं बिखेरना चाहिए। बल्कि इन्हें ठीक से लगाइए जिससे पौधे बड़े होने पर व्यवस्थित और सुंदर दिखे। 9- हमेशा पौधों के बीच परस्पर दूरी अवश्य छोड़ें। इससे पौधों की जड़ों को फैलने में आसानी रहेगी और उनकी सुंदरता बनी रहेगी।
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दुकान के लिए उपयोगी वास्तु टिप्स——
दुकान के लिए उपयोगी टिप्स वास्तु के सिद्धांत सिर्फ घर को ही नहीं अपितु दुकान आदि को भी प्रभावित करते हैं। दुकान में भी वास्तु का विशेष महत्व है। यदि दुकान वास्तु सम्मत हो तो शुभ साबित होती है।
इसलिए दुकान में नीचे लिखे वास्तु नियमों का पालन करना चाहिए-
1- दुकान का ईशान कोण खाली या हल्का रखें और स्वच्छता बनाएं रखें।
2- दुकान में पीने के पानी की व्यवस्था ईशान कोण, उत्तर या पूर्व में रखें।
3- भारी सामान दक्षिण या पश्चिम में रखें। 4- पूजा स्थल ईशान, उत्तर या पूर्व में बनाएं।
5- दुकान में तराजू पश्चिमी या दक्षिणी दीवार के साथ रखें।
6- आलमारी, शो-केस, फर्नीचर आदि दक्षिण-पश्चिम या नैऋत्य में लगाएं।
7- पूर्वी व उत्तरी क्षेत्र ग्राहकों के आने-जाने के लिए खाली छोड़ें।
– दुकान में माल का स्टोर दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य में कर सकते हैं।
9- विद्युत उपकरण मीटर, स्विच बोर्ड, इनवर्टर आदि आग्नेय कोण में स्थापित करें।
10- दुकान के सामने कोई सीढ़ी, बिजली या फोन का खंबा अथवा पेड़ नहीं होना चाहिए।
वास्तु के सिद्धांत सिर्फ घर को ही नहीं अपितु दुकान आदि को भी प्रभावित करते हैं। दुकान में भी वास्तु का विशेष महत्व है। यदि दुकान वास्तु सम्मत हो तो शुभ साबित होती है।
इसलिए दुकान में नीचे लिखे वास्तु नियमों का पालन करना चाहिए—
1- दुकान का ईशान कोण खाली या हल्का रखें और स्वच्छता बनाएं रख
2- दुकान में पीने के पानी की व्यवस्था ईशान कोण, उत्तर या पूर्व में रखें।
3- भारी सामान दक्षिण या पश्चिम में रखें।
4- पूजा स्थल ईशान, उत्तर या पूर्व में बनाएं।
5- दुकान में तराजू पश्चिमी या दक्षिणी दीवार के साथ रखें।
6- आलमारी, शो-केस, फर्नीचर आदि दक्षिण-पश्चिम या नैऋत्य में लगाएं।
7- पूर्वी व उत्तरी क्षेत्र ग्राहकों के आने-जाने के लिए खाली छोड़ें।
8- दुकान में माल का स्टोर दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य में कर सकते हैं।
9- विद्युत उपकरण मीटर, स्विच बोर्ड, इनवर्टर आदि आग्नेय कोण में स्थापित करें।
10- दुकान के सामने कोई सीढ़ी, बिजली या फोन का खंबा अथवा पेड़ नहीं होना चाहिए।
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घर में सीढिय़ां कैसी हों?
यदि मकान बहुमंजिला है तो उसमें सीढिय़ा अवश्य होती है। वर्तमान समय में डिजाइनर सीढिय़ों (लोहे की या घुमावदार) का चलन भी है। सीढिय़ां भी घर के वास्तु को प्रभावित करती हैं।
मकान में सीढिय़ां बनवाते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें—–
1- वास्तु सम्मत सीढिय़ां भवन के पूर्व या दक्षिण दिशा में बनवाई जानी चाहिए।
2- सीढिय़ों का उतार-चढ़ाव ढलान के अनुसार ही होना चाहिए। यानि सीढिय़ों पर पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण की तरफ चढ़ाई हो सकती है।
3- यदि सीढिय़ां बीच में घुमावदार हों तो यह घुमाव चढ़ते समय क्लॉकवाइज यानि बाएं से दाएं होनी चाहिए। चूंकि पृथ्वी भी इसी दिशा में घूमती है और चढ़ते समय एनर्जी भी अधिक खर्च होती है इसलिए क्लॉकवाइज घूमते हुए ही चढऩा चाहिए ताकि अतिरिक्त ऊर्जा न लगानी पड़े।
4- चूंकि उतरते समय कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है, इसलिए एण्टी-क्लॉकवाइज घूमते हुए भी उतरा जा सकता है। बड़े भवनों में नीचे से दो तरफ से सीढिय़ां चढ़ाई जाती हैं और घुमाव के स्थान पर मिलाते हुए ऊपर ही कर दी जाती है अथवा नीचे से एक सीढ़ी चढ़ाते हुए घुमाव के स्थान पर उस दो स्थानों पर उसे दो भागों में दो तरफ चढ़ा दी जाती है, इससे चढ़ते व उतरते समय क्लॉक वाइज घूमा जा सकता है।
5- यदि सीढिय़ां बिल्कुल सीधी हैं, बीच में कोई घुमाव नहीं है तब भी छत पर प्रवेश करते समय घड़ी की सूइयों की दिशा में ही दरवाजा होना चाहिए ताकि छत के कमरे में प्रवेश करते समय क्लॉकवाइज घूमना पड़े। एण्टी-क्लॉकवाइज घुमाव वाला दरवाजा न रखें। यदि सीढिय़ां सीधे ही छत के कमरे में प्रवेश करती हों तब किसी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है।
6- भवन के मध्य भाग में कोई पिलर अथवा सीढिय़ां नहीं बनवाई जानी चाहिए।
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क्या आसानी से मिलेगा मकान?
सभी का सपना होता है कि उसका एक सुंदर सा घर हो। इसके लिए वह दिन-रात मेहनत करता है। कई बार ऐसा भी होता है कि कोई जीवन भर मेहनत कर स्वयं का मकान नहीं बना पाता जबकि किसी को बिना मेहनत के ही कई मकान मिल जाते हैं। नीचे कुछ योग दिए गए हैं। जिनके भाग्य में यह योग होते हैं उन्हें सहजता के भवन की प्राप्ति होती है-
1- पहले व सातवें भाव का स्वामी पहले (लग्न) भाव में हो तथा चौथे भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति को बिना प्रयास के ही भवन प्राप्त हो जाता है।
2- जन्मकुण्डली के चौथे भाव का स्वामी उच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि में हो तथा नौवें भाव का स्वामी केंद्र (1, 4, 7, 10) में हो तो ऐसे जातक को सरलता से भवन की प्राप्ति हो जाती है।
3- जन्मकुण्डली के पहले और सातवें भाव का स्वामी पहले या चौथे भाव में हो और शुभ ग्रहों से युक्त हो, नौवें भाव का स्वामी केंद्र (1, 4, 7, 10) भाव में हो और चौथे भाव का स्वामी उच्च, मूल त्रिकोण या स्वराशि का हो तो ऐसा व्यक्ति अल्प प्रयास से अच्छा भवन प्राप्त कर लेता है। शुभ होता है घर के सामने बगीचा वास्तु ऐसा माध्यम है जिससे आप जान सकते हैं कि किस प्रकार आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते हैं।
नीचे वास्तु सम्मत ऐसी ही जानकारी दी गई है जो आपके लिए उपयोगी होगी——
1- ऐसे मकान जिनके सामने एक बगीचा हो, भले ही वह छोटा हो, अच्छे माने जाते हैं, जिनके दरवाजे सीधे सड़क की ओर खुलते हों क्योंकि बगीचे का क्षेत्र प्राण के वेग के लिए अनुकूल माना जाता है। घर के सामने बगीचे में ऐसा पेड़ नहीं होना चाहिए, जो घर से ऊंचा हो।
2- वास्तु नियम के अनुसार हर दो घरों के बीच खाली जगह होना चाहिए। हालांकि भीड़भाड़ वाले शहर में कतारबद्ध मकान बनाना किफायती होता है लेकिन वास्तु के नियमों के अनुसार यह नुकसानदेय होता है क्योंकि यह प्रकाश, हवा और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के आगमन को रोकता है।
3- आमतौर पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाले कतारबद्ध घरों में तमाम अच्छे प्रभाव प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाले मकान बुरे प्रभावों को बुलावा देते हैं। हालांकि पूर्व और पश्चिम की ओर मुंह वाले कतारबद्ध मकान अनुकूल स्थिति में माने जाते हैं क्योंकि पश्चिम की ओर मुंह वाले मकान सामान्य ढंग के न्यूट्रल होते हैं।
4- पूर्व की ओर मुंह वाले घर लाभकारी होते हैं। कतार के आखिरी छोर वाले मकान लाभकारी हो सकते हैं यदि उनका दक्षिणी भाग किसी अन्य मकान से जुड़ा हो या पूरी तरह बंद हो। ऐसी स्थिति में जहां कतारबद्ध घर एक-दूसरे के सामने हों, वहां सीध में फाटक या दरवाजे लगाने से बचना चाहिए।
5- यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण की ओर मुंह वाले घर यदि सही तरीके से बनाए जाएं तो लाभकारी परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।
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कैसी तस्वीर लगाएं घर में?
घरों में तस्वीर या चित्र लगाने से घर सुंदर दिखता है। परंतु बहुत कम ही लोग यह जानते हैं कि घर में लगाए गए चित्र का प्रभाव हमारे जीवन पर भी पड़ता है—–
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में श्रृंगार, हास्य व शांत रस उत्पन्न करने वाली तस्वीरें ही लगाई जानी चाहिए।
1- फल-फूल व हंसते हुए बच्चों की तस्वीरें जीवन शक्ति का प्रतीक है। उन्हें पूर्वी व उत्तरी दीवारों पर लगाएं।
2- लक्ष्मी व कुबेर की तस्वीरें भी उत्तर दिशा में लगानी चाहिए। ऐसा करने से धन लाभ होने की संभावना है।
3- पर्वत आदि प्राकृतिक दृश्यों को दक्षिण व पश्चिम में लगा सकते हैं।
4- नदियों-झरनों आदि की तस्वीरें उत्तरी व पूर्वी दिशा में लगा सकते हैं।
5- उजड़े शहर, खण्डहर, वीरान दृश्य, सूखी नदियां, सूखी झीलों, हिंसक युद्ध, अस्त्र-शस्त्र, महाभारत, बाघ, शेर, कौआ, उल्लू, भालू, चील, गिद्ध या रेगिस्तान का चित्र घर में नहीं लगाना चाहिए। इससे घर में अशांति फैलती है तथा परिवार के सदस्यों में मनमुटाव होता है।
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घर में क्यों न लगाएं कांटेदार पौधे ?
भवन की सीमा में आने वाली प्रत्येक वस्तु घर के वास्तु को प्रभावित करती है। इसके कई नकारात्मक व सकारात्मक प्रभाव भी होते हैं। घर की खूबसूरती बढ़ाने के लिए लगाए गए पेड़-पौधे भी घर के वास्तु को प्रभावित करते हैं।
घर में पौधे लगाते समय इन बातों का ध्यान अवश्य रखें-
1- वास्तु के अनुसार घर में कांटेदार व दूध वाले पौधे नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि कांटे नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। गुलाब जैसे कांटेदार पौधे लगाए जा सकते हैं।
2- बोनसाई पौधे भी घर में तैयार नहीं करने चाहिए और न ही बाहर से लाकर लगाने चाहिए। बोनसाई पौधे घर वालों का विकास रोकते हैं।
3- घर या कार्यस्थल की सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए ताजा फूल आवश्यक है। फूलों के गुलदस्ते ताजगी व सौभाग्य की वृद्धि करते हैं। मुरझाए फूल व पत्तियां नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती हैं।
4- प्लास्टिक या रेशम के फूल भी घर में सजा सकते हैं किंतु इनकी साफ-सफाई समय पर होती रहनी चाहिए।
5- शयन कक्ष में पौधे नहीं लगाने चाहिएं। डाइनिंग व ड्रॉइंग रूम में गमले रखे जा सकते हैं।
6- यदि किसी दीवार में पीपल उग आए तो उसे पूजा करके हटाते हुए गमले में लगा देना चाहिए। पीपल को बृहस्पति गृह का कारक माना जाता है।
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कैसी हो घर की बाउण्ड्री वॉल?
घर चाहे छोटा हो या बड़ा, गांव में हो या शहर में बाउण्ड्री वॉल यानि चारदीवारी अवश्य बनाई जाती है।
घर की बाउण्ड्री वॉल बनवाते समय इन बातों का ध्यान अवश्य रखें-
1- बाउण्ड्री की नींव तो गहरी ही खुदवाएं। नीचे से डेढ़ या दो फुट मोटी पत्थर की दीवार बनवाएं किंतु प्लींथ से ऊपर दीवार की चौड़ाई कम से कम रखें।
2- भवन निर्माण से पूर्व ही बाउण्ड्री वॉल की नींव भर देनी चाहिए ताकि नकारात्मक प्रभाव को भूखण्ड में आने से रोका जा सके। 3- आगे की बाउण्ड्री वॉल पर लोहे की, सीमेंट की अथवा पत्थर की रैलिंग लगवाई जा सकती है। बाउण्ड्री वॉल व रैलिंग का शिल्प भवन के शिल्प से मेल खाता हुआ होना चाहिए।
4- सामने की बाउण्ड्री वॉल की ऊंचाई अधिक नहीं रखनी चाहिए ताकि हवा व प्रकाश अवरुद्ध न हो सके।
5- चारदीवारी घर की सुरक्षा के साथ-साथ घर में अतिरिक्त ऊर्जा के प्रवाह को रोकने में भी मदद करती है।
6- चारदीवारी टूटी-फूटी न हो, टूट-फूट या प्लास्टर उखडऩे पर तुरंत मरम्मत करवा दें।
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वास्तु: ऐसे होगी हर इच्छा पूरी———–
वास्तु शास्त्र के अनुसार हर मनोकामना पूर्ति के लिए भवन के अलग-अलग स्थान उत्तरदायी होते हैं।
अगर आप भी अपनी मनोकामनाएं पूरी करना चाहते हैं तो इन वास्तु नियमों का पालन अवश्य करें-
1- वास्तु शास्त्र के अनुसार वायव्य कोण वायुदेवता का स्थान है। अत: विवाह योग्य कन्या को वायव्य कोण( उत्तर-पश्चिम) में स्थित कमरा देना चाहिए। इससे उसका विवाह शीघ्र हो जाता है।
2- यदि आप स्थान परिवर्तन चाहते हैं तो भी वायव्य कोण के कमरे में रहना ठीक होता है। इससे शीघ्र ही स्थान परिवर्तन हो जाता है।
3- लेकिन अगर आप स्थान परिवर्तन नहीं चाहते हो तो वायव्य कोण में स्थित कमरे में नहीं रहना चाहिए इससे जीवन में अस्थिरता आ जाती है।
4- दक्षिण-पूर्व में स्थित कमरे में रहने वाला परिवार का सदस्य झगड़ालू प्रवृत्ति का हो जाता है तथा वह असंतुष्ट रहने लगता है। अत: इस स्थान पर कमरा न बनाकर किसी अन्य उपयोग में ले सकते हैं।
5- दक्षिण-पश्चिम में स्थित कमरा स्थायित्व प्रदान करता है। अत: यह गृह स्वामी के रहने का उपयुक्त स्थान होता है।
6- उत्तर-पूर्व के कमरे में रहने वाले परिवार के सदस्य का स्वास्थ्य खराब रहता है। इसलिए यह स्थान खुला ही छोड़ दें।
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कैसी हो घर की बॉलकोनी?
बॉलकोनी होने से भवन की भव्यता में चार-चांद लग जाते हैं। बॉलकोनी ऐसे स्थान पर निर्मित करवानी चाहिए जहां प्रात:कालीन सूर्य का प्रकाश एवं प्राकृतिक हवा सहज सुलभ हो। बॉलकोनी से हवा व प्रकाश घर में भी प्रवेश करना चाहिए।
बॉलकोनी बनवाते समय इन बातों का ध्यान रखें-
1- यदि भूखण्ड पूर्वोन्मुखी या उत्तोन्मुखी हो तो वास्तु के अनुसार भवन के ईशान कोण में बॉलकोनी बनवाएं।
2- यदि भूखण्ड पश्चिममुखी हो तो बॉलकोनी वायव्य कोण में व दक्षिणोन्मुखी हो तो आग्नेय कोण में बनवाएं।
3- बॉलकोनी के फर्श की ऊंचाई भवन की सामान्य छत से थोड़ी नीची होनी चाहिए।
4- यदि भवन बहुमंजिला हो तो प्रत्येक लिविंग रूम के साथ बॉलकोनी भी होना चाहिए। मच्छर मक्खी आदि बॉलकोनी के माध्यम से घर में प्रवेश कर जाते हैं इसलिए आजकल बॉलकोनी को वायरगेज आदि से कवर्ड करने का भी प्रचलन है। इससे हवा व प्रकाश तो पूरा मिलता है, कीट-पतंग भी अंदर नहीं आते।
5- बॉलकोनी में सीमेंट, पत्थर, मार्बल, लोहा या लकड़ी की रैलिंग लगाई जा सकती है। पैराफिट वॉल पूरी तरह ईंट की न बनाएं अन्यथा हवा रुक जाएगी। डेढ़ फीट तक ईंट की दीवार बनवाई जा सकती है। इसके ऊपर रैलिंग लगवा लें।
6- बॉलकोनी के ऊपर की पूरी छत या आधी छत को ढलान देते हुए उस पर खपरैल की डिजाइन दी जा सकती है।
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कैसा हो स्टोर रूम?
बदलते समय के साथ स्टोर रूम घर का जरुरी हिस्सा हो गया है। आवासीय, वाणिज्यिक, औद्योगिक अथवा कार्यालयीन भवन, इन सभी में स्टोर रूम बेहद उपयोगी है।स्टोर रूम वह स्थान होता है जहां घर में उपयोग न वाली वस्तुएं रखी जाती हैं।
स्टोर रूम बनवाते समय इन बातों का ध्यान रखें—-
1- नियमित रूप से काम में आने वाली वस्तुओं को छोड़कर शेष प्रकार की वस्तुओं को सामान्यत: स्टोर रूम में ही रखना चाहिए ताकि घर खुला-खुला लगे और घर में अनावश्यक कबाड़ा भी नजर न आए।
2- खाद्य सामग्री के लिए यदि अलग से स्टोर रूम का निर्माण करवाना हो तो रसोई घर के पूर्व की ओर अथवा आग्नेय कोण के मध्य पूर्वी दीवार के सहारे या ईशान कोण में बनवाया जा सकता है।
3- स्टोर रूम में प्रकाश की व्यवस्था पर्याप्त होनी चाहिए। साथ ही रोशनदान की भी व्यवस्था हो ताकि नमी न रहे।
4- स्टोर रूम की छत की ऊंचाई भवन के अन्य भाग के बराबर रखी जा सकती है। चाहें तो मुख्य छत से तीन फुट नीचे दुछत्ती का निर्माण करवा दें ताकि स्टोर रूम की क्षमता बढ़ सके।
5- स्टोर रूम में एक ही दरवाजा रखें। खिड़की न हो तो ज्यादा बेहतर होगा लेकिन रोशनदान अवश्य होना चाहिए।
6- स्टोर का रंग-रोगन हल्का रखें ताकि अंदर अंधेरा नहो। वैसे दीवारों पर हल्का ऑयल/वॉटर बेस पेंट करवाना चाहिए।
7-स्टोर रूम में दीमक आदि भी लग सकती है इसलिए नींव भरते समय ही ट्रीटमेंट करवा लें।
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दाम्पत्य सुख बढ़ाता है मनी प्लांट——–
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का हर हिस्सा तथा हर वस्तु उसमें रहने वाले लोगों के जीवन को किसी न किसी तरह से प्रभावित करती है। यहां तक कि घर में रखे फूल व पौधे भी परिवार के सदस्यों पर अपना असर डालते हैं।
नीचे ऐसे ही कुछ पौधों के बारे में जानकारी दी गई है-
1- घरों की सुंदरता बढ़ाने के लिए मनी प्लांट्स लगाए जाते हैं। ये शुक्र के कारक हैं। मनी प्लांट लगाने से पति-पत्नी के संबंध मधुर होते हैं।
2- फैंगशुई के अनुसार बांस के पौधे सुख व समृद्धि के प्रतीक होते हैं।
3- परिवार में यदि कोई बीमार हो तो उसके आस-पास ताजा फूल रखना शुभ है किंतु रात को वहां से हटा देना चाहिए।
4- गुलाब, चंपा व चमेली के पौधे मानसिक तनाव व अवसाद में कमी लाते हैं। इन्हें लगाना अच्छा होता है।
5- शयन कक्ष के नैऋत्य कोण में टेराकोटा या चीनी मिट्टी के फूलदानों में सूरजमुखी के फूल लगाए जा सकते हैं। सूरजमुखी का पौधा मन में उल्लास पैदा करता है।
6- पौधे व फूलों का उपयोग घर के नुकीले कोणों व उबड़-खाबड़ जमीन को ढकने के लिए भी किया जा सकता है।
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ड्रैगन करता है घर की सुरक्षा——
फेंगशुई चीन का वास्तु शास्त्र है। वस्तुत: फेंगशुई चीन की दार्शनिक जीवन शैली है जो ताओवादी धर्म पर आधारित है। फेंग यानि वायु और शुई यानि जल अर्थात फेंगशुई शास्त्र जल व वायु पर आधारित है। फेंगशुई के कुछ उपयोगी टिप्स नीचे लिखे गए हैं-
1- फेंगशुई के अनुसार घर की रक्षा ड्रैगन करता है इसलिए घर में ड्रैगन की मूर्ति या चित्र अवश्य रखें।
2 – भारतीय बाजारों में विण्ड चाइम (हवा से हिलने वाली घंटी) उपलब्ध है। हवा चलने से जब यह टकराती हैं तो बहुत ही मधुर ध्वनि उत्पन्न करती है जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
3- फेंगशुई के अनुसार कंपनी के कान्फ्रेंस हॉल में धातु की सुंदर मूर्ति रखना आवश्यक अच्छा होता है।
4- कार्य स्थल(ऑफिस) पर प्रकाश की उचित व्यवस्था होना चाहिए।5- पलंग, सोफा या कुर्सी के ऊपर कोई झुकी हुई वस्तु न हो।
6- घर या फर्नीचर में लंबा चौड़ा व बड़ा फर्नीचर नहीं होना चाहिए। फर्नीचर कम जगह घेरने वाला होना चाहिए।
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ऐसे दूर करें फैक्ट्री का वास्तु दोष—————-
घर की तरह ही फैक्ट्री व कारखाना आदि में भी वास्तु शास्त्र बहुत उपयोगी है। यदि फैक्ट्री वास्तु सम्मत हो तो बेहद सफल साबित होती है और यदि वास्तु सम्मत न हो तो नुकसानदायक भी हो जाती है।
नीचे लिखे वास्तु नियमों को अपनाकर आप भी फैक्ट्री को वास्तु सम्मत बना सकते हैं-
1- फैक्ट्री का उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र भारी नहीं होना चाहिए। यह नकारात्मक ऊर्जा देता है।
2- पड़ोस की फैक्ट्री का मुख्य द्वार यदि आपकी फैक्ट्री के मुख्य द्वार की ठीक विपरीत दिशा में हो, तब भी नकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
3- यदि उत्तर की सड़क में पूर्व से पश्चिम की ओर ढलान हो या नैऋत्य क्षेत्र का दक्षिणी भाग खुला हो तो भी नकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
4- फैक्ट्री के दक्षिण या वायव्य कोण में ऊर्जा उत्पादन या ऊर्जा-गमन संबंधी उपकरण नहीं लगाए जाने चाहिए। लेबर कैंटीन या रसोई घर भी इन क्षेत्रों में नहीं बनाएं।
5- फैक्ट्री(कारखाना) लगाने से पहले बाउण्ड्री वॉल बनवानी चाहिए फिर मशीन आदि का फाउण्डेशन बनवाएं।
6- वर्षा का पानी दक्षिण-पश्चिम से उत्तर या ईशान कोण में निकलना चाहिए।
7- भारी मशीनें पश्चिम-दक्षिण में, भट्टी, बॉयलर, जनरेटर सेट, ट्रांसफार्मर, बिजली मीटर आदि आग्नेय कोण में लगाएं।
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बेडरूम में लगाएं बालकृष्ण की तस्वीर———
बेडरूम घर का सबसे खास हिस्सा होता है। यहां रखी हर एक वस्तु का दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव पड़ता है जैसे- तस्वीर, गुलदस्ता आदि। यदि आप भी चाहते हैं कि आपका दाम्पत्य जीवन सफल रहे तो यह उपाय करें-
1- ऐसे नवदम्पत्ति जो संतान सुख पाना चाहते हैं वे श्रीकृष्ण का बाल रूप दर्शाने वाली तस्वीर अपने बेडरूम में लगाएं।
2- ध्यान रखें कि कृष्ण का फोटो स्त्री के लेटने के समय बिल्कुल मुख के सामने की दीवार पर रहे।
3- यूं तो पति-पत्नी के कमरे में पूजा स्थल बनवाना या देवी-देवताओं की तस्वीर लगाना वास्तुशास्त्र में निषिद्ध है फिर भी राधा-कृष्ण की तस्वीर बेडरूम में लगा सकते हैं।
4- भवन में महाभारत के युद्ध दर्शाने वाली तस्वीर वास्तुशास्त्र के अनुरूप नहीं माना जाता इसलिए ऐसे चित्र घर में न लगाएं।
5- भगवान श्रीकृष्ण का चित्र आवासीय एवं व्यावसायिक दोनों ही स्थानों पर रखा जाना चाहिए, इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
6- भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला के दृश्यों की तस्वीरों को भवन की पूर्व दिशा पर लगाया जा सकता है।
7- वसुदेव द्वारा बाढग़्रस्त यमुना से श्रीकृष्ण को टोकरी में ले जाने वाली झांकी समस्याओं से उबरने की प्रेरण
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घर में न आए नकारात्मक ऊर्जा——-
वास्तु शास्त्र सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा के सिद्धांत पर कार्य करता है। यदि घर में या घर के आस-पास कोई ऐसी वस्तु हो जिससे नकारात्मक ऊर्जा निकलती हो तो यह गंभीर वास्तु दोष की श्रेणी में आता है। ऐसे दोषों को इस प्रकार दूर किया जा सकता है-
1- घर के आंगन में सूखे एवं भद्दे दिखने वाले पेड़ जीवन के अंत की ओर इशारा करते हैं। ऐसे पेड़ों या ठूंठ को शीघ्र ही कटवा देना चाहिए।
2- इंटीरियर डेकोरेशन के लिए कुछ ऐसी कलाकृतियों का प्रयोग होता है जो सूखे ठूंठ या नकारात्मक आकृति के होते हैं। ये सभी मृतप्राय: सजावटी वस्तुएं वास्तु शास्त्र में अच्छे नहीं माने जाते हैं अत: इनके प्रयोग से भी बचें।
3- यदि ड्रॉइंगरूम में फूलों को सजाते हैं तो ध्यान दें कि उन्हें प्रतिदिन बदलते रहना जरुरी है। चूंकि जब ये फूल मुरझा जाते हैं तो इनसे नकारात्मक ऊर्जा निकलने लगती है।
4- कभी-कभी बेडरूम की खिड़की से नकारात्मक वस्तुएं दिखाई देती हैं जैसे- सूखा पेड़, फैक्ट्री की चिमनी से निकलता हुआ धुआं आदि। ऐसे दृश्यों से बचने के लिए खिड़कियों पर परदा डाल दें।
5- किसी भी भवन के मुख्य द्वार के पास या बिल्कुल सामने बिजली के ट्रांसफार्मर लगे होते हैं जिनसे चिंगारियां निकलती हैं । ऐसे दृश्य भी नकारात्मक ऊर्जा फैलाते हैं।
6- पुराने भवन के भीतर कमरों की दीवारों पर सीलन पैदा होने से बनी भद्दी आकृतियां भी नकारात्मक ऊर्जा का सूचक होती हैं। ऐसी दीवारों की तुरंत रिपेयरिंग करवा लें।
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लवबर्ड का जोड़ा रखें बेडरूम में———
यदि आपका दाम्पत्य जीवन सुखमय है तो अन्य परेशानियां स्वयं ही समाप्त हो जाती हैं। पति-पत्नी के बीच मधुरता बढ़ाने के लिए कुछ फेंगशुई सिद्धांतों का भी उपयोग किया जा सकता है।
नीचे ऐसे ही कुछ फेंगशुई टिप्स दी गई है जिनसे आप अपना दाम्पत्य जीवन सुखमय बना सकते हैं-
1- लवबर्ड, मैंडरेन डक जैसे पक्षी प्रेम के प्रतीक हैं इनकी छोटी मूर्तियों का जोड़ा अपने बेडरूम में रखें।
2- बेडरूम में दक्षिण-पश्चिम दिशा में दिल की आकृति का रोज क्वाट्र्ज रखें।
3- पति-पत्नी के प्रतीक के रूप में बेडरूम में दो सुंदर सजावटी गमले रखें।
4- बेडरूम में पानी की तस्वीर वाली पेंटिंग न लगाएं इसके स्थान पर रोमांटिक कलाकृति, युगल पक्षी की तस्वीर लगाएं।
5- यदि आपको लगे कि आपका प्यार छिन रहा है तो आप अपने कमरे में शंख या सीपी अवश्य रखें। इससे आपका प्यार आपसे दूर नहीं जाएगा।
6- यदि आपकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और इसी वजह से दांपत्य जीवन सुखमय नहीं है तो सुंदर से बाउल में पवित्र क्रिस्टल को चावल के दानों के साथ मिलाकर रखें। इन नुस्खों को आजमाने पर निश्चित ही कुछ ही समय में आपको सकारात्मक प्रभाव दिखाई देने लगेंगे। आपका दांपत्य जीवन खुशियों भरा और सुखी होगा।
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ऐसे दूर करें वास्तु दोष———
वास्तु न सिर्फ आपके घर को बल्कि आपके जीवन को भी प्रभावित करता है। जीवन में आने वाली परेशानियों का कारण घर का वास्तु दोष भी हो सकता है।
नीचे लिखे कुछ सरल उपाय कर इन वास्तु दोषों को दूर किया जा सकता है-
1- स्वस्तिक, मंगल कलश, ओम, 786 आदि मंगल चिन्हों की तस्वीरें घर में अवश्य लगाएं। इनसे घर में सुख-शांति बढ़ती है।
2- पूर्वजों के चित्र, देवी-देवताओं के साथ कभी न लगाएं।
3- शयन कक्ष में सदैव सुंदर, कलात्मक फूलों या हंसते हुए बच्चों की तस्वीरें लगाने से नींद भी बेहतर आती है।
4- डाइनिंग हॉल की दीवारों का रंग हल्का व शांत व शीतलता प्रदान करने वाला हो। भारी सजावट से भी बचें।
5- डाइनिंग हॉल की दीवारों पर फल-फूलों व प्राकृतिक दृश्यों के अच्छे चित्र लगाए जा सकते हैं।
6 – अनुपयोगी वस्तुएं घर में न रखें। उन्हें घर से निकालते रहें।
7- यदि जनरेटर सेट अथवा इन्वर्टर ईशान में हो तो उसे वहां से हटाकर आग्नेय कोण में स्थापित करें।
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दरवाजे की आवाज अशुभ क्यों?
दरवाजे घर का मुख्य भाग होते हैं क्योंकि नकारात्मक व सकारात्मक ऊर्जा यहीं से घर में प्रवेश करती व बाहर निकलती है। वास्तु शास्त्र में दरवाजों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
नीचे दरवाजे से संबंधित कई उपयोगी वास्तु टिप्स दिए गए हैं-
1- दरवाजे खोलते व बंद करते समय आवाज नहीं आना चाहिए । इससे एकाग्रता भंग होती है।
2- दरवाजा स्वत: खुलने व बंद होने वाला नहीं होना चाहिए।
3- मुख्य द्वार पर कोई मांगलिक या शुभ चिन्ह बनवाया जा सकता है।
4- घर के कुल दरवाजों की संख्या यदि सम संख्या में हो तो शुभ माना जाता है।
5- दो भवनों के मुख्य द्वार एक-दूसरे के ठीक सामने न हो।
6- दरवाजे उत्तर व पूर्व दिशा में अधिक रखने चाहिए ताकि हवा प्रकाश व ऊर्जा का संचार पर्याप्त हो सके।
7- प्रवेश द्वार अंदर की ओर खुलना चाहिए।
8- पूर्व अथवा उत्तरमुखी भवनों में चारदीवारी की ऊंचाई पूर्व या उत्तर में मुख्य द्वार से कम होनी चाहिए तथा पश्चिम या दक्षिणमुखी भवनों की चारदीवारी भवन के मुख्य द्वार से ऊंची, बराबर अथवा नीची रखी जा सकती है।
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आमदनी पर असर डालती है उत्तर दिशा———————
घर की बनावट का प्रभाव घर में निवास करने वालों की आर्थिक, शारीरिक, मानसिक स्थिति आदि पर पड़ता है।
परिवार के सदस्यों का दिशाओं और कोणों से संबंध इस प्रकार रहता है-
1- उत्तर दिशा के शुभ-अशुभ का प्रभाव घर की महिलाओं एवं परिवार की आमदनी पर पड़ता है।
2- ईशान कोण के शुभ-अशुभ का प्रभाव घर के मालिक एवं वहां रहने वाले अन्य पुरुषों एवं उनकी संतानों पर पड़ता है। संतान में विशेषकर प्रथम पुत्र पर इसका प्रभाव ज्यादा पड़ता है।
3- पूर्व दिशा के शुभ-अशुभ का प्रभाव भी संतान पर ही पड़ता है ।
4- आग्नेय कोण के शुभ-अशुभ का प्रभाव घर की स्त्रियों, बच्चों विशेषकर द्वितीय संतान पर पड़ता है।
5- दक्षिण दिशा के शुभ-अशुभ का प्रभाव घर की स्त्रियों पर विशेष रूप से पड़ता है।
6- नैऋत्य कोण के शुभ-अशुभ का प्रभाव परिवार के मुखिया व उनकी पत्नी एवं बड़े पुत्र पर पड़ता है।
7- पश्चिम दिशा के शुभ-अशुभ का प्रभाव घर के पुरुषों पर पड़ता है।
8- वायव्य कोण के शुभ-अशुभ का प्रभाव घर की महिलाओं एवं तीसरी संतान पर पड़ता है।
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घर में कहां बनवाएं गैराज?
जिस तरह दिनों-दिन वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। उसी तरह वाहनों को रखने की भी समस्या भी आम बात हो चुकी है। बड़े शहरों में वाहनों को रखने के लिए गैराज बनाए जाते हैं जिनका मुख्य उपयोग वाहन रखने के लिए किया जाता है।
गैराज बनवाते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें-
1- गैराज घर के पश्चिमी वायव्य (उत्तर-पश्चिम) या आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में अति उत्तम माना गया है। दक्षिण या पश्चिम दिशा में उत्तम तथा ईशान (उत्तर-पूर्व) में वर्जित माना गया है।
2- गैराज के लिए अगर अलग से कोई शेड बनाना हो तो यह मुख्य भवन को टच नहीं करना चाहिए।
3- गैराज में उत्तर व पूर्व की दीवारों पर कम वजन होना चाहिए।
4- यदि गैराज को किराए पर देना हो तो उसमें रसोई व बाथरूम भी अवश्य बनवाएं।
5- यदि गैराज को भविष्य में दुकान के रूप में उपयोग करने का विचार हो तो निर्माण के समय ही गैराज में तीन तरफ दीवारों पर कोटा स्टो/मार्बल आदि की सैल्फ लगवाएं ताकि दुकान के लिए अलग से लकड़ी आदि की सैल्फ बनवाने की आवश्यकता नहीं पड़े।
6- गैराज का उपयोग स्टोर रूम के रूप में भी कर सकते हैं। इसके लिए पीछे के हिस्से में दुछत्ती भी बनवाई जा सकती है ताकि अधिक सामान रखा जा सके।
7- स्टोर रूम के लिए गैराज में शटर लगवाने की आवश्यकता नहीं है। करीब चार फुट चौड़ा दरवाजा लगवा लें। प्रकाश के लिए सामने खिड़की रखें।
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सोच-विचार कर बनाएं घर का मुख्य द्वार———
भवन के मुख्य द्वार का उसके वास्तु शास्त्र पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। यदि मुख्य द्वार में ही दोष हो तो इसे दूर करना अति आवश्यक होता है। मुख्य द्वार बनवाते समय नीचे लिखी बातों का ध्यान रखें-
1- वास्तु के अनुसार मुख्य द्वार काफी महत्वपूर्ण होता है इसे सिंह- द्वार भी कहते हैं।
2- वास्तु के अनुसार चारों दिशाओं के 32 देवताओं के शुभ-अशुभ फलों को देखते हुए ही मुख्य द्वार बनवाना चाहिए।
3- यदि भूखण्ड पूर्वोन्मुखी हो तो पूर्व की ओर के मध्य से ईशान कोण तक का भाग मुख्य द्वार बनवाने के लिए एकदम उपयुक्त होता है।
4- दक्षिणोन्मुखी भूखण्ड की भुजा के मध्य बिंदु से आग्नेय कोण तक का भाग मुख्य द्वार के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
5- पश्चिमोन्मुखी भूखण्ड की पश्चिमी भुजा के मध्य से वायव्य कोण तक का भाग मुख्य द्वार के लिए उच्च कोटि का माना गया है। साथ ही मध्य भाग से नैऋत्य कोण के बीच भी मुख्य द्वार रखा जा सकता है।
6- उत्तोन्मुखी भूखण्ड की उत्तरी भुजा के मध्य से ईशान तक का भाग मुख्य द्वार के लिए उत्तम माना गया है।
7- वास्तु के अनुसार मुख्य द्वार के लिए उत्तरी ईशान, पूर्वी ईशान, दक्षिणी आग्नेय व पश्चिमी वायव्य कोण अधिक शुभ माने जाते हैं।
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कैसी हो घर की विद्युत व्यवस्था?
घरों में विद्युत व प्रकाश व्यवस्था काफी महत्वपूर्ण होती है। अगर प्रकाश व्यवस्था ठीक नहीं होगी तो इसका नकारात्मक प्रभाव घर में रहने वाले सदस्यों पर पड़ेगा। विद्युत फिटिंग व प्रकाश व्यवस्था करते समय इन बातों का ध्यान रखें-
1- घर चाहे बड़ा हो या छोटा, कच्चा हो या पक्का, गांव में हो या शहर में विद्युत कनेक्शन आवश्यक है।
2- वास्तु शास्त्र के अनुसार बिजली का मीटर, जनरेटर, इनवर्टर आदि घर के आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में ही स्थापित करवाने चाहिए। ऐसा करना संभव नहीं हो तो वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में भी लगाए जा सकते हैं।
3- आपके घर का प्रवेश द्वार जिस दिशा में हो, सामान्यत: बिजली का मीटर भी उसी दिशा में लगाया जाता है। वैसे अपनी सुविधानुसार मीटर बोर्ड आदि लगवा सकते हैं।
4- प्रत्येक कमरे में प्रवेश करते समय दाईं तरफ स्विच बोर्ड लगवाने चाहिएं।
5- बिजली फिटिंग हेतु निर्माण कार्यों के साथ-साथ ही आवश्यक कार्य करवाते रहें ताकि बाद में तोड़-फोड़ व खुदाई न करनी पड़े।
6- विद्युत फिटिंग हेतु अच्छी किस्म के तार व अन्य सामग्री का प्रयोग करें। विद्युत फिटिंग व एसेस
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किस दिशा में हो फैक्टरी का स्टोर रूम ?
फैक्टरी में कच्चा तथा तैयार माल रखने के लिए स्टोर रूम अवश्य होते हैं। यदि तैयार माल रखने वाला स्टोर रूम वास्तु सम्मत नहीं है तो इसका प्रभाव फैक्टरी की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है।
फैक्टरी व कारखानों में इन बातों का भी ध्यान रखें-
1- तैयार माल का भण्डारण (स्टोर) वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम)में करें। किसी अन्य दिशा में स्टोर रूम बनाने से फैक्टरी की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
2- अर्द्ध निर्मित माल का भण्डारण पश्चिमी भाग में करें।
3 – कमरे के मुख्य द्वार के सामने बैठक कदापि न करें।
4- भारी मशीनों की स्थापना दक्षिण अथवा नैऋत्य कोण (पश्चिम-दक्षिण) में करनी चाहिए। हल्की मशीनें उत्तर या वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में लगाई जा सकती है।
5- यदि नैऋत्य (पश्चिम-दक्षिण) में भण्डारण करना पड़े तो उसे सदैव भरा हुआ रखें।
6- फैक्ट्री के भूखण्ड के पूर्व में ऊंचे-ऊंचे टीले अथवा दक्षिण-पश्चिम में ठीक न की जा सकने वाली खाइयां नहीं होनी चाहिए।
7- जल व्यवस्था के लिए कुआं, बोरिंग, ट्यूब वैल, स्वीमिंग पुल आदि उत्तर, पूर्व या ईशान (उत्तर-पूर्व) में खुदवाना चाहिए।
8- बोरिंग व बाउण्ड्री वॉल के बीच कम से कम तीन फुट का फासला होना चाहिए।
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दरवाजे के सामने न हो धार्मिक स्थल, क्यों ?
घर के वास्तु में मुख्य द्वार के साथ ही अन्य द्वारों का अहम योगदान होता है। अगर घर के द्वार में ही वास्तु दोष हो तो यह घर के साथ ही उसमें रहने वाले परिवार के सदस्यों को भी प्रभावित करते हैं। द्वार बनवाते समय इन बातों का ध्यान रखें-
1- वास्तु शास्त्रियों के अनुसार घर के मुख्य द्वार के सामने मंदिर या अन्य कोई धार्मिक स्थल नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर घर के वास्तु पर इसका असर पड़ता है। मुख्य द्वार के ठीक सामने कोई लेंप पोस्ट, खंभा, पिलर या वृक्ष आदि भी नहीं होने चाहिए।
2- मुख्य द्वार के संबंध में वास्तु शास्त्र के विद्वानों के विभिन्न मत हैं किंतु व्यावहारिक दृष्टि से मुख्य द्वार ऐसे स्थान पर रखा जाना चाहिए, जहां से पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो सके व परिवार के लिए सुविधाजनक हो।
3- यदि मुख्य द्वार पश्चिम में हो तो पूर्वी दिशा में भी एक द्वार बनवाया जा सकता है। यदि मुख्य द्वार दक्षिण में हो तो उत्तर में भी एक द्वार बनवा लेना चाहिए। इससे घर वालों की गति पूर्वोन्मुखी अथवा उत्तरोन्मुखी रहेगी, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक है।
4- कमरे के किसी भी कोने में दीवार से करीब चार इंच की दूरी पर द्वार बनवाया जा सकता है।
5- मुख्य द्वार के अतिरिक्त अन्य दरवाजों पर एक पल्ले वाला(सिंगल डोर) किवाड़ ही लगवाना चाहिए।
6- दरवाजे दीवार की तरफ खुलने चाहिएं ताकि अनावश्यक जगह न घिरे।
7- जिस दीवार के सहारे किंवाड़ खुलता हो, उसे दीवार में किंवाड़ के पीछे नीचे की तरफ छोटी-छोटी आलमारियां दी जा सकती हैं।
8- भवन के चारों ओर द्वार बनाए जा सकते हैं किंतु ध्यान रखें कि द्वार शुभ स्थानों पर ही बनवाया जाए।
9- जहां तक संभव हो, कमरे दरवाजा दीवार के मध्य न बनाएं अन्यथा कमरे का सही-सही उपयोग नहीं हो सकेगा।
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वास्तु: ऐसे आएं परीक्षा में अव्वल————————-
आजकल अभिभावक बच्चों की पढ़ाई के लिए अत्यधिक चिंतित रहते हैं। अधिक अंक लाने के लिए बच्चों में शिक्षा के प्रति एकाग्रता का होना आवश्यक होता है। अगर आप भी चाहते हैं कि आपके बच्चे परीक्षा में अव्वल नंबरों से पास हों तो
नीचे लिखे वास्तु टिप्स का उपयोग करें-
1- बच्चों का अध्ययन कक्ष हमेशा पश्चिम या दक्षिण दिशा में बनाना चाहिए क्योंकि इससे स्थायित्व रहता है।
2- बच्चों के अध्ययन कक्ष में अध्ययन करने की मेज कभी भी कोने में नहीं होनी चाहिए। अध्ययन के लिए मेज कक्ष के मध्य (दीवार के मध्य) में होनी चाहिए। दीवार से कुछ हटकर होनी चाहिए।
3- पढ़ाई करते समय बच्चे का मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रहना चाहिए। इससे अध्ययन में एकाग्रता बनी रहती है।
4- पुस्तकों को हमेशा दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम दीवार के साथ आलमारी में रखनी चाहिए। पूर्व, पूर्व-उत्तर या उत्तर दिशा में पुस्तकें नहीं रखनी चाहिए।
5- पुस्तकों को कभी भी खुला तथा इधर-उधर नहीं रखना चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
6- अध्ययन के लिए मेज पर भी अधिक अनावश्यक पुस्तकें नहीं होनी चाहिए। जिस विषय का अध्ययन करना हो, उससे संबंधित पुस्तक को निकालकर पढ़े और बाद में उसे यथास्थान रख दें।
7- भारतीय परंपरा के अनुसार पढ़ाई की मेज के सामने मां सरस्वती और गणेशजी की तस्वीर होनी चाहिए।
8- फेंगशुई के अनुसार मेज पर अमेथिस्ट या क्रिस्टल का एज्युकेशन टॉवर रखें, जिससे ऊपर उठने की प्रेरणा मिलती रहती है और एकाग्रता बढ़ती है।
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स्मरण शक्ति बढ़ाता है पिरामिड——-
भारतीय वास्तु शास्त्र में पिरामिड के आकार का विशेष महत्व है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के किसी एक हिस्से की छत को पिरामिड का आकार देना चाहिए। इसके नीचे बैठने से स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा और भी मानसिक समस्याएं पिरामिड के नीचे बैठने से दूर होती है।
पिरामिड के कुछ और फायदे नीचे बताए गए हैं-
1- यदि घर को पिरामिड की अद्भुत शक्तियों का लाभ दिलवाना हो तो घर के मध्य भाग को अथवा किसी लिविंग रूम को ऊपर से पिरामिड की आकृति का बनवाएं।
2- यदि घर के किसी भाग में पिरामिड का निर्माण करवाना हो तो उसका एक त्रिभुज उत्तर दिशा की ओर रखें, शेष त्रिभुज स्वत: ही दिशाओं के अनुरूप हो जाएंगे।
3- मस्तिष्क की सक्रियता के लिए पिरामिड के नीचे बैठना लाभप्रद रहता है। मानसिक थकावट दूर होगी और अनिद्रा, सिरदर्द, पीठदर्द आदि में लाभ मिलेगा।
4- लंबी बीमारी व शल्य क्रिया के बाद पिरामिड के नीचे बैठने से जल्दी आराम मिलता है।
5- पिरामिड के नीचे रखी दवाइयां कई दिनों तक खराब नहीं होती, साथ ही उनका असर भी बढ़ जाता है।
6- घर में पिरामिड का चित्र कभी नहीं लगाना चाहिए, यह नकारात्मक ऊर्जा देता है।
7- यदि आपका ईशान ऊंचा हो और नैऋत्य नीचा हो तो नैऋत्य में छत पर पिरामिड की आकृतिनुमा निर्माण करते हुए नैऋत्य को ईशान से ऊंचा किया जा सकता है।
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क्यों लगाएं रसोई घर में आईना?
घर में छोटे-छोटे वास्तु दोष होना आम बात है। घर में कुछ मामूली परिवर्तन कर इन दोषों को दूर किया जा सकता है या उसके नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है।
नीचे वास्तु दोष मिटाने के ऐसे ही कुछ उपाय दिए हैं-
1- खाना बनाते समय गृहिणी की पीठ रसोई के दरवाजे की तरफ न हो, यदि ऐसा हो तो गृहिणी के सामने दीवार पर एक आईना लगाकर दोष दूर किया जा सकता है।
2- यदि रसोई का सिंक उत्तर या ईशान में न हो और उसे बदलना भी संभव न हो तो लकड़ी या बांस का पांच रोड वाला विण्ड चिम सिंक के ऊपर लगाएं।
3- चूल्हा मुख्य द्वार से नहीं दिखना चाहिए। यदि ऐसा हो और चूल्हे का स्थान बदलना संभव नहीं हो तो पर्दा लगा सकते हैं।
4- यदि घर में तुलसी का पौधा न हो तो अवश्य लगाएं। कई रोगों व दोषों का निवारण अपने आप हो जाएगा।
5- यदि नैऋत्य कोण की छत ईशान से नीची हो तो नैऋत्य में एक टी.वी. एण्टिना लगाकर दोष दूर सकते हैं।
6- रसोई में यदि पानी व चूल्हा एक सीध में हो और उन्हें बदलना संभव न हो तो दोनों के बीच में एक छोटा सा पौधा रख सकते हैं।
7- यदि घर की सीढिय़ां घर के उत्तर या पूर्व दिशा में हों तो सीढिय़ों के दक्षिण या पश्चिम में एक कमरा और बनवा दें। दोष नहीं रहेगा।
8- अगर आप किसी मेहमान से परेशान हो गए हों तो उसका कमरा बदल दें या उसके पलंग की दिशा बदल दें। मेहमान स्वत: ही चला जाएगा। वास्तु शास्त्र के अनुसार वायव्य कोण में अतिथि कक्ष होने से अतिथि अधिक समय नहीं ठहरता है।
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सुख-समृद्धि का प्रतीक हैं फुक-लुक-साऊ—————
वास्तु शास्त्र का उद्देश्य मनुष्य के जीवन में आने वाली परेशानियों व समस्याओं का दूर कर उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाना है। फेंगशुई भी इसी सिद्धांत पर कार्य करता है। फेंगशुई के अनुसार घर में फुक-लुक-साऊ की मूर्ति रखने से सभी वास्तु दोष दूर हो जाते हैं तथा आर्थिक समस्याएं दूर हो जाती हैं। चीन के लगभग सभी घरों में इनकी मूर्तियां देखने को मिलेंगी। ये चीनी देवता हैं लेकिन इनकी पूजा नहीं की जाती। ये क्रमश: समृद्धि, वंशवृद्धि व दीर्घायु के देवता हैं। फुक राजसी पोशाक में समृद्धि व प्रसन्नता के देवता है यह लुक व साऊ से कद में ऊंचे हैं। इन्हें मध्य में रखा जाता है। लुक गोद में बच्चा लिए हैं ये वंशवृद्धि का प्रतीक हैं तथा साऊ गंजे सिर वाले हैं जिसका अर्थ है दीर्घायु।
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नींव खोदने पर कोयला निकले तो…
वास्तु शास्त्र का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है। चूंकि घर हो, ऑफिस हो या दुकान। यह सभी स्थान वास्तु से प्रभावित रहते हैं। इसलिए यहां के वास्तु दोषों को समाप्त करना अति आवश्यक होता है। वास्तु दोष को समाप्त करने के कुछ टिप्स नीचे दिए गए हैं-
1 – किसी भी भवन के निर्माण के पूर्व उसकी नींव खोदी जाती है। अगर नींव खोदते समय भूखण्ड से रूई या कोयला निकलता है तो अशुभ माना जाता है। ऐसे भूखण्ड पर भवन बनाने का विचार त्याग देना चाहिए।
2 – यदि भवन के पिछवाड़े गहरा गड्ढा, कुआं या काफी नीचा स्थल हो तो वह भी परेशानी पैदा करता है। यदि ऐसा है तो उसे समतल करवा दें। दोष समाप्त हो जाएगा।
3 – निर्मित भवनों के कोने आमने-सामने न हों अन्यथा मस्तिष्क पर नुकीला प्रभाव पड़ेगा।
4 – भवन के पास बड़े व भारी वृक्ष न हों। इनसे नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
5 – छत पर चील, कौए आदि के बैठने से इनकी परछाई भवन पर पड़ती है जो शुभ नहीं है।
6 – घर के सामने या बाईं ओर मंदिर न हो। मंदिर की परछाई भी घर पर नहीं पडऩी चाहिए।
7 – भूखण्ड के चारों कोणों का अनुपात सही न होने पर भी मानसिक अशांति बनी रहती है।
8 – घर के आस-पास रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड, सिनेमाघर, स्कूल या आवागमन के सार्वाजनिक स्थान नहीं होना चाहिए। इनसे मानसिक तनाव पड़ता है।
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फेंगशुई:—- ऐसे मिलेगी सफलता——
फेंगशुई हमारे जीवन की कई परेशानियों का समाधान करता है। समस्या चाहे दाम्पत्य की हो, व्यापार-व्यवसाय की या कोई और। फेंगशुई के उपाय सभी परेशानियों का हल करने में उपयोगी हैं।ऐसे ही कुछ उपाय नीचे लिखे गए हैं जिन्हे अपनाकर आप कार्यक्षेत्र में अप्रत्याशित सफलता पा सकते है
पानी का फव्वारा :—– यदि आपके कार्यक्षेत्र में बार-बार व्यवधान आ रहे हैं और किसी कार्य में सफलता नहीं मिल रही तो उत्तर दिशा में बहते पानी का फव्वारा रखने से सफलता मिलेगी। संगीत घड़ी : मधुर संगीत उत्पन्न करने वाली घड़ी घर में ऊर्जा का संतुलन बनाती है। ऐसी घड़ी घर के बाहर बरामदे में या गैलरी में नहीं लगानी चाहिए। हर समय ध्वनि पैदा करने वाली घड़ी भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।
नोकदार क्रिस्टल :—— यदि ड्रांइगरूम में टेबल पर मध्य में नोकदार क्रिस्टल रखा जाए तो व्यक्ति का जीवन काफी व्यवस्थित होगा। अगर ऐसे क्रिस्टल का उपयोग पेपरवेट के रूप में किया जाए तो कार्यक्षेत्र में अप्रत्याशित सफलता मिलती है।
कैरियर को ऊंचाई देता है क्रिस्टल ग्लोब——-
फेंगशुई की सहायता से आप जीवन की हर समस्या का समाधान आसानी से कर सकते हैं। यदि आप अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं तो भी फेंगशुई आपकी सहायता कर सकता है। फेंगशुई के अनुसार जो लोग अपने व्यापार या कैरियर के प्रति चिंतित हैं तो उन्हें अपने कमरे, दुकान या ऑफिस में क्रिस्टल ग्लोब रखना चाहिए। इस ग्लोब से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है, जो आपके व्यक्तित्व में नई ऊर्जा का संचार करती है और आप अपने कैरियर में उन्नति करते हैं। विद्यार्थियों के लिए क्रिस्टल ग्लोब काफी लाभदायक होता है। इससे उनकी स्मरण शक्ति तथा एकाग्रता बढ़ती है।
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कैसे करें उपयोग क्रिस्टल ग्लोब को ——-
प्रयोग में लाने से पहले 24 घंटे के लिए स्टैंड से खोलकर नमक के घोल में रख देना चाहिए, फिर साफ पानी से धोकर कांच के बर्तन में रखकर सुबह की धूप में दो-तीन घंटे सुखाना चाहिए। ऐसा करने से क्रिस्टल ग्लोब और प्रभावशाली हो जाता है। इस ग्लोब को दिन में तीन बार घुमाना चाहिए जिससे इसमें से निकलने वाली यांग ऊर्जा पूरे क्षेत्र में फैल जाए।
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जब खरीदने जाएं नया फ्लैट तो…
कुछ वास्तु दोष ऐसे होते हैं जो वास्तु का ज्ञान ना होने पर दिखाई दे जाते हैं। जैसे गलत स्थान पर रसोई, टैंक, जल की निकासी, पूजाघर, शयनकक्ष बच्चों का कमरा यदि गलत जगह बना हो तो उस घर में रहने वालों को मानसिक अशांति का सामना करना पड़ता है।
इसलिए अगर आप कोई नया घर या फ्लैट खरीदने जा रहे हैं तो नीचे लिखी बातों का जरुर ध्यान रखें ताकि नये घर में भी आपका जीवन खुशियों से भरा रहे—-
– रसोईघर कभी घर के मुख्य दरवाजे के सामने ना हो।
– शौचालय का स्थान उत्तर-पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए।
– रसोई, पूजा स्थल और शौचालय एक-दूसरे के अगल-बगल में ना हो।
– ईशान कोण या उत्तर-पूर्व नीचा और दक्षिण-पश्चिम ऊंचा रहना चाहिए।
– उत्तर-पूर्व कोने में शौचालय या रसोई घर नहीं होना चाहिए।
– उत्तर-पूर्व में कोई बोरिंग भूमिगत पानी या टंकी या किसी प्रकार का गढ्ढा ना हो।
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एक्वेरियम से पाएं धन, सपंदा व समृद्धि ——–
फिश एक्वेरियम देखते ही मन खुश हो जाता है। इससे न केवल घर की सुंदरता बढ़ती है बल्कि फेंगशुई के अनुसार घर में सुख-समृद्धि भी आती है। घर में एक छोटे से एक्वेरियम (मछलीघर) में सुनहरी मछलियां पालना सौभाग्यवर्धक होता है।फेंगशुई में मछली सफलता व व्यवसाय का प्रतीक मानी जाती है। ध्यान रहे कि एक्वेरियम में आठ मछलियां सुनहरी और एक काले रंग की होनी चाहिए। अगर कोई सुनहरी मछली मर जाए तो माना जाता है कि घर पर आई कोई मुसीबत वह अपने साथ ले गई यानि सुनहरी मछली का मरना अपशकुन नहीं होता। एक्वेरियम को मुख्यद्वार के समीप नहीं रखना चाहिए। उत्तर-पूर्व क्षेत्र धनसंपदा तथा समृद्धिदायक क्षेत्र है। यह जलतत्त्व का प्रतीक है। इस क्षेत्र में एक्वेरियम रखना उत्तम व शुभ रहता है। यह समृद्धि, संपत्ति और सफलता देता है।
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मिलेंगे करियर के क्षेत्र में नए अवसर —————-
फेंगशुई के अनुसार ड्रेगन और फीनिक्स चीन की पौराणिक कथाओं के दो अत्यंत शक्तिशाली और महत्वपूर्ण प्रतीक है। फीनिक्स अपने आप में यांग का प्रतीक है लेकिन ड्रेगन की परिस्थिति में यिन हो जाता है। चीनी परंपरा के अनुसार यांग पुरुषत्व का प्रतीक माना गया है और यिन स्त्रीत्व का। यदि घर में ड्रेगन और फीनिक्स दोनो एक साथ हों तो वे सफल वैवाहिक जीवन, आर्थिक सम्पन्नता और कई संतानों के प्रतीक माने जाते है। ऐसा माना जाता है इससे सम्पति व सौभाग्य बढ़ता है। चीनी परंपरा के अनुसार ड्रेगन कुल पिता का प्रतीक है, जबकि फीनिक्स कुलमाता का। इसे दक्षिण- पश्चिम दिशा में रखने से कुल माता के सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है। उत्तर पश्चिम दिशा में रखने पर कुलपिता के सौभाग्य वृद्धि होते है। ड्रेगन और फीनिक्स का यह प्रतिरूप पूर्व दिशा में रखने से परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य में सुधार होता है और दक्षिण दिशा में रखने से करियर के क्षेत्र में नए अवसर प्राप्त होते हैं। प्रतिष्ठा और मान सम्मान में वृद्धि होती है।
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सही दिशा में लगाएं भगवान की तस्वीर—————
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में छोटे-छोटे बदलाव करके आप अद्भुत मानसिक शांति महसुस कर सकते है। घर में देवी-देवताओं की तस्वीर तो सभी लगाते है। देवताओं की सही दिशा में सही तस्वीर लगाकर कोई भी अपना जीवन सुख-समृद्धि से पूर्ण बना सकता हैं तो आइये जानते है वास्तु के अनुसार घर में कौन से भगवान की तस्वीर घर की किस दिशा में लगाने से शुभ फल मिलता है।
– राधाकृष्ण की तस्वीर बेडरूम में लगाना शुभ है।
– रामायण, महाभारत के युद्ध के दृश्य नहीं लगाने चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार इन चित्रों से घर के सदस्यों को मानसिक तनाव झेलना पड़ सकता है और इनका आपस में तालमेल नहीं रहता।
– हनुमानजी की तस्वीर हमेशा दक्षिण दिशा की ओर देखती हुई लगाएं।
– स्वस्तिक, कमल के फुल, गुलदस्ते के चित्र को व खिलौने घर में रखना बहुत शुभ माना जाता है।
– भगवान शंकर, कुबेरदेव, गंधर्वदेव की तस्वीर उत्तर दिशा में लगाएं।
– महालक्ष्मी, मां दुर्गा, मां सरस्वती के चित्र लगाने के लिए उत्तर दिशा सर्वोत्तम है।
– महालक्ष्मी की बैठे स्वरूप वाली तस्वीर शुभ रहती है।
– मां दुर्गा के चित्र में शेर का मुंह खुला नहीं होना चाहिए।
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सही दिशा में रखें धन तो होगी तेजी से वृद्धि ———-
उत्तर दिशा को वास्तु शास्त्र के अनुसार धन के देवता कुबेर का स्थान माना जाता है। उत्तर दिशा का प्रभाव गृहस्वामी के धन की सुरक्षा और समृद्धि देने वाला माना जाता है। मतलब वास्तु शास्त्र के अनुसार गृहस्वामी को अपने नकद धन को उत्तर दिशा में रखना चाहिए। नकद धन के लिए अलग से कमरा बनाना आज के जमाने में तो संभव नहीं है। यह तो सिर्फ पुराने जमाने में राजे रजवाड़ो के लिए संभव था। इसलिए गृहस्थ को अपना धन उत्तर दिशा के बेडरुम में रखना चाहिये। नकद, गहनों एवं अन्य किमती चीजों को उत्तर दिशा में किसी स्थान पर रखना बहुत शुभ फल देने वाला होता हैं लेकिन उत्तर दिशा के पूजा स्थान के आसपास मे इसका स्थान उत्तम होता है धन को इस स्थान पर रखने से धन में तेजी से वृद्धि होने लगती है। इसमें एक अलग मत और भी है कुछ वास्तुशास्त्रीयों के अनुसार नकद धन को उत्तर में रखना चाहिए और रत्न, आभुषण आदि दक्षिण में रखना चाहिये। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि नकद धन आदि हल्के होते है इसलिए इन्हे उत्तर दिशा में रखना वृद्धिदायक माना जाता है। रत्न आभुषण में वजन होता है इसलिए उन्हे कहीं भी नहीं रखा जा सकता है। इसके लिए तिजोरी या अलमारी की आवश्कता होती है और ये काफी भारी होती है। इसलिए दक्षिण दिशा में रख उसमें आभुषण आदि रखने को उतम माना जाता है।
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इस वास्तु दोष का ध्यान नहीं रखा तो होगा आर्थिक नुकसान——–
बढ़ती हुई आबादी और कम पड़ती हुई जमीन के कारण आजकल चौक वाले मकान बनना बंद हो गए हैं। पुराने जमाने में बड़े – बूढ़े कहा करते थे, कि जिस मकान में चौक नहीं होते थे उन्हें शुभ फलदायक नहीं माना जाता था। आज कल महानगरों में इतनी जमीन ही नहीं मिल पाती है ऐसे में यह कोशिश करनी चाहिये की घर में ब्रम्ह स्थान खाली रहे। भवन के अन्दर के मध्य भाग को ब्रम्हास्थान कहा गया है जिसका बड़ा महत्व हैं। पुराने जमाने में जितने भी घर बनते थे उन सब में ब्रम्हस्थान खुला छोड़ा जाता था। जिसे चौक कहा जाता था। पहले के निर्माण कोई स्तंभ या कोई साजो सामान नहीं रखा जाता था। वास्तु के अनुसार घर के ब्रम्ह स्थान हमेशा खाली छोडऩा चाहिये। यह स्थान एकदम खाली पिल्लर रहित होना चाहिये। इस स्थल पर किसी भी तरह का निर्माण करवाना घर में रहने वालों के लिए बहुत अशुभ माना गया है। इस जगह को खाली ना छोडऩे पर गृहस्वामी को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। यदि इस जगह को मकान बनाते समय खाली ना छोड़ पाएं तो इस बात का ध्यान रखें की घर में उस जगह पर अधिक वजनदार सामान ना रखे। इसका वैज्ञानिक औचित्य भी है। ब्रम्हस्थान के खुला रहने पर सूर्य के प्रकाश की किरणे सीधे घर में पड़ती है। वायुमंडल की पूरी उर्जा इस स्थान से होकर पूरे घर में फैलती है। जिससे घर में सुख व समृद्धि आती है।
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अगर चाहते हैं खुशहाल वैवाहिक जीवन———
क्या आपके लाइफ पार्टनर से आपकी नहीं बनती है? बात -बात पर दोनों का झगड़ा होता है। कहीं इसका कारण आपके बेडरुम का वास्तु तो नहीं क्योंकि अक्सर घरों में कुछ ऐसे छोटे- छोटे वास्तुदोष होते है जो घर में अशांति और झगड़ो का कारण बनते है। अगर आपके साथ भी यही समस्या है तो नीचे लिखे इन वास्तु उपायों को अपनाकर आप अपने वैवाहिक जीवन को खुशहाल बना सकते है।
– बेडरुम में कभी भी टूटे हुए शीशे को नहीं रखें यह पति- पत्नी के लिए अशुभ है।
– कभी भी शीशे को बिस्तर के सामने न रखे इससे आपके विवाहित जीवन में किसी तीसरे व्यक्ति के आने की संभावना होती है। यदि शीशा रखने की कोई जगह नहीं है तो सोने से पहले उसे ढक दे।
– बेडरुम के दरवाजे को खोलते या बंद करते समय किसी तरह की कोई आवाज नहीं होनी चाहिए। यदि बेडरुम का दरवाजा आवाज करता है तो पति-पत्नी में हमेशा छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़ा होता है।
– घर के उत्तर-पूर्व दिशा में बेडरुम नहीं होना चाहिये। इस दिशा में बेडरुम होने पर वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहता है। – खराब एयर कंडीशनर या पंखा जिसके चलने पर आवाज हो उसे तुरंत ठीक करवा लें।
इसके कारण वर वधु के सम्बंधों में परेशानी पैदा हो सकती है।
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ऐसे पेड़ घर के निकट अशुभ होते है——
यदि घर का वास्तु एकदम सही हो तो उस घर में कभी कोई कमी नहीं आती है। जीवन सुख शांति से भरा रहता है। घर के आंगन में और घर के नजदीक लगे वृक्षों का वास्तु अनुसार भी घर पर शुभ-अशुभ प्रभाव पड़ता है।
घर के नजदीक बैर, बबुल के वृक्ष लगाने से घर में कलह बना रहता है।
– आधा जला हुआ, आधा सूखा, ठूंठ की तरह वृक्ष, तीन शिरों या अनेक शिरों वाला वृक्ष अशुभ होता है।
– इमली व मेंहदी पर बुरी आत्माओं का वास माना जाता है। घर के लान में या नजदीक ये पेड़ शुभ नहीं माने जाते है।
– पूर्व और ईशान में ऊंचे पेड़ नहीं होना चाहिये, क्योंकि ऊंचे वृक्षों घर के नजदीक या घर के आंगन में होना शुभ नहीं माना जाता है।
– ताड़ का वृक्ष, आंवला, कपास , रेशमी कपास भी अशुभ माना जाता है।
– अगर अशुभ पेड़ को काटना नहीं चाहते है तो उसके पास घर में नागकेसर, अशोक , नीम, नारियल, चन्दन, तुलसी, हल्दी, रात की रानी अन्य फुल वाले पौधे लगाना चाहिये।
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ऐसा पूजा घर देता है सुख-शांति से भरपूर जीवन——-
कहते हैं यदि मकान वास्तु के अनुसार बना हो तो घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है।
घर में पूजास्थल एक ऐसी जगह होती है जहां व्यक्ति पूजा-पाठ आदि के माध्यम से शांति प्राप्त करता है।
यदि पूजा घर वास्तु के अनुसार ना हो तो उस घर में कभी शांति नहीं मिलती है। वहां की गई पूजा का सकारात्मक परिणाम नहीं मिलता।
अगर आप चाहते हैं कि आपके घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहे, तो इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें- – पूजा घर के नजदीक और ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व में झाड़ू, कुड़ेदान, पोंछा आदि ना रखें। संभव हो तो पूजा घर को साफ करने के झाड़ू-पोछा अलग रखें। इससे घर में बरकत होती है।
– शयनकक्ष में पूजा घर अशुभ होता है। साथ ही किसी विवाहित जोड़े के कक्ष में पूजा घर होना ही नहीं चाहिए। घर में जगह का अभाव हो तो पूजा घर पर पूजा के समय के अतिरिक्त पर्दा डालकर रखें।
– पूजा घर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र और कार्तिकेय का मुख हमेशा पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिये।
– पूजा घर की दीवारों तथा फर्श का रंग सफेद या हल्के पीले रंग का होना चाहिए।
– पूजा घर को हमेशा शुद्ध, साफ एवं पवित्र बनाए रखें। इसमें कोई भी अशुद्ध या अपवित्र वस्तु ना रखें। घर के उत्तर-पूर्व के कोने को हमेशा साफ रखें।
– पूजा घर के नीचे अलमारी बनाकर किसी मुकदमे के कागजात रखने से मुकदमे में विजय होने की संभावना बढ़ जाती है। पूजा में इन बातों का ध्यान रखें और पाएं वास्तुदोष से मुक्ति
वास्तुदोषों का निवारण वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार मकान में तोडफ़ोड़ करवाकर किया जा सकता है, लेकिन ऐसा सभी के लिए संभव नहीं होता है। ऐसे में क्या आप जिन्दगी भर छोटे-छोटे वास्तुदोषों के कारण परेशान होते रहेंगे? आप सोच रहे होंगे कि इसका और क्या उपाय हो सकता है। उपाय है, यदि आप अपने पूजा के नियम में थोड़ा बदलाव कर लें तो आपको अनेक तरह के वास्तुदोषों से मुक्ति मिल सकती है।
– घर में सुबह-शाम पूजा करते समय तीन बार शंख बजाएं। इससे घर से नकारात्मक उर्जा बाहर चली जाती है।
– रोज घर के पूजास्थल पर घी का दीपक जलाएं।
– अपने घर उत्तर- पूर्व के कोने मे या घर का मध्य भाग जिसे ब्रम्ह स्थान भी कहते है वहां स्फटिक श्रीयंत्र की स्थापना शुभ मुहूर्त में करें।
– सुबह के समय कंडे पर थोड़ी गुग्गल डालकर रखें और ऊं नारायणाय नम: इस मंत्र का जप करें।
– अब गुग्गल से जो धुआं निकले उसे घर के हर कमरे में जाने दे। इससे घर की नकारात्मक उर्जा खत्म होगी और वास्तुदोषों का नाश होगा।
– शाम के समय घर में सामुहिक रूप से सभी परिवार के सदस्य आरती करें।
– सुबह के समय थोड़ी देर तक रोज गायत्री मंत्र या अन्य किसी मंत्र की धुन घर में चलने दें। मूर्ति दूर करेगी वास्तुदोष… वास्तु का शमन करने के लिए आदि काल से ही गणेश जी की वंदना की जाती रही है। गणेश जी को बुध ग्रह से संबंधित माना जाता है। गणेश जी की पूजा-अर्चना के बिना वास्तु देव की संतुष्टी संभव नहीं है। अगर आपके मकान में वास्तु दोष है, तो उसकी शांति के या निवारण के लिए नीचे लिखे उपाय को अपनाए।
– मकान के मुख्य द्वार पर एकदंत गणेश की प्रतिमा लगाकर उसके ठीक दूसरी ओर उसी स्थान पर दूसरी गणेश जी की मुर्ति इस प्रकार लगाएं कि दोनों प्रतिमाओं की पीठ आपस में मिल रहे।
– वास्तुदोष से प्रभावित मकान के किसी भाग में मिश्रित सिंदूर से दीवार पर स्वस्तिक बनाने से वास्तु दोष दूर होता है। – सुख-शांति समृद्धि के लिए घर में सफेद रंग के विनायक की प्रतिमा लगाएं।
– मकान में बैठे गजानन और ऑफिस में खड़े गजानन का चित्र लगाएं।
वास्तुदोष दूर करने के लिए गणेश जी की बांयी हाथ की ओर सूंड मुड़ी हुई हो तो कल्याणकारी और वास्तुदोष को दूर करने वाली है।
– मकान के ब्रम्हा्र स्थल मे दिशा व ईशान में विघ्रहर्ता विनायक की प्रतिमा लगाएं। इससे अनेक वास्तुदोष का निवारण स्वत: हो जाएगा।
– गणेश जी की प्रतिमा के सूंड में मोदक का होना शुभ है लेकिन ध्यान रहे प्रतिमा नैऋत्य या दक्षिण दिशा में ना लगाएं।
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ऐसा होगा किचन तो मिलेगी समृद्धि———-
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में छोटे-छोटे बदलाव करके भी आप अपने जीवन में खुशहाली ला सकते हैं। रसोई घर यानी किचन हमारे घर का सबसे महत्वपुर्ण कमरा होता है। आप अपने किचन में सिर्फ सामानों की जगह बदलकर अपने जीवन में सुख व समृद्धि ला सकते हैं।
– रसोई घर को आठ दिशाओं और उपादिशाओं में विभाजित करें।
– उत्तर पूर्व व उत्तर दिशा के अतिरिक्त किसी अन्य कोण या दिशा में चूल्हा रखने से कोई हानि नहीं होती।
– रसोई घर में भारी बर्तन आदि दक्षिणी दीवार की ओर रखें।
– रसोई घर में पीने का पानी उत्तर-पूर्वी कोने या उत्तर दिशा में रखें।
– खाना बनाते समय गृहिणी या खाना बनाने वाले का मुख पूर्व दिशा की तरफ होना चाहिए। यह घर के लोगों के स्वास्थय के लिए आवश्यक हैं।
– खाली या अतिरिक्त गैस सिलेन्डर को रसोईघर के नैऋत्य कोण में रखें।
– माइक्रोवेव, ओवन, मिक्सर ग्राइंडर आदि दक्षिणी दिशा के निकट रखें।
– रसोई घर में रेफ्रिजरेटर भी रखा जाना है तो इसके लिए दक्षिण, पश्चिम या उत्तर दिशा सही है।
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दर्पण लगाएं और कहें वास्तुदोष को अलविदा——
दुकान हो या घर के प्रवेश द्वार के सामने कोई धारदार किनारा, वृक्ष, खम्बा या ऊंचा भवन आदि नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा हो तो सभी के लिए तोड़-फोड़ करके वास्तुदोष दूर करना संभव नहीं होता।
इन सभी दोषों को दूर करने का सबसे सरल उपाय है सही दिशा में सही जगह आईना लगाना तो आइये जानते हैं कि कैसे आप दर्पण से पा सकते हैं वास्तुदोष से मुक्ति—-
– यदि घर का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में है तो घर पर पडऩे वाली बुरी छाया को रोकने के लिए शीशे का उपयोग करें।
– घर का दरवाजा लिफ्ट के सामनें होना बुरा माना जाता है। यह घर में रहने वाले की धन सम्पति और सुख शांति के लिए हानिकारक होता है। इससे बचने के लिए आप मुख्य द्वार के ऊपर दर्पण लगाएं और मुख्यद्वार के नीचे फर्श को पांच से.मी. ऊंचा रखें जिसे लांघकर घर में प्रवेश करें। – घर के सामने ऊंची इमारत हो तो घर में रहने वालों के साथ धोखा हो सकता है। इसलिए अपने आप को बचाने के लिए कभी उधार न देने का नियम बनाएं और मुख्यद्वार के ऊपर उत्तल दर्पण को लटका दें।
– आपके घर के मुख्य द्वार के सामने व्यस्त यातायात वाला मार्ग हो तो घर में धन ठहर नहीं पाता और रहने वालों को धन जोडऩे में परेशानी होती है तो मुख्य द्वार की दिशा बदलकर उसे दूसरी दिशा में बना दें, जिससे मुख्य द्वार व्यस्त द्वार के सामने न हो अगर यह न हो सके तो मुख्य द्वार के बाहर की तरफ शीशा लगाएं।
– मकान के सामने अधिक खुली जगह होने पर वहां रहने वालों का स्वास्थ्य कमजोर और सुस्त रहता है। ऐसी स्थिति में मुख्य द्वार पर उत्तल दर्पण लगाएं जिससे की खुली जगह का प्रतिबिंब दिखाई दें और मुख्य द्वार के नीचे फर्श को दो इंच ऊंचा रखें जिसे आप लांघ कर घर में प्रवेश कर सकें ।
– घर के पीछे सड़क रहने पर घर में रहने वालों के बारे में लोग पीठ पीछे बुराई करेंगे। ऐसी अवस्था में घर की पीठ वाली दीवार पर शीशा लटकाएं जिससे पीछे वाली सड़क का प्रतिबिम्ब दिखाई दें।
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वास्तु : ऐसे सजाएं डायनिंग रुम——————–
वास्तु के अनुसार सिर्फ घर बनवाने से ही वास्तु के सारे नियमों का पालन नहीं होता बल्कि घर की सजावट कैसी है? कौन सा सामान किस जगह रखा है? इसका घर के वास्तु पर गहरा प्रभाव पड़ता है। घर का डायनिंग रुम का इन्टीरियर यदि वास्तु के अनुरुप हो तो घर के सारे सदस्यों में प्रेम बना रहता है।
– डायनिंग मेज वर्गाकार हो या आयाताकार होनी चाहिए।
– तीखे नुकीले कोनों वाली असमान आकार की डायनिंग मेज का प्रयोग भूलकर भी ना करें।
– डायनिंग मेज पर ताजे फलों की टोकरी रखें।
– डायनिंग मेज के आसपास कुर्सियां इस प्रकार रखें कि खाना खाते समय मुंह पूर्व या पश्चिम दिशा में रहें।
– डायनिंग मेज पर चारों तरफ खाना खाया जा सकता है लेकिन एक दिशा की कुर्सियां खाली रखें।
– डायनिंग मेज हाल के बीचों-बीच ना रखें।
– डायनिंग रुम की दिवारों पर हल्के शांत रंगों का प्रयोग करना चाहिए जैसे हल्का नारंगी, हल्का हरा, पीला, आडू, गुलाबी, तथा इनसे मिलते-जुलते रंगों का प्रयोग करें।
– खाना-खाते समय हल्की रोशनी का प्रयोग करें।
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धन-दौलत बढ़ाती है ऐरोवाना-फिश—–
पीले और सुनहरे रंग की एरोवाना फिश को घर में रखना फेंगशुई के अनुसार बहुत शुभ माना जाता है। धन-दौलत में बढ़ोत्तरी करने वाला भी माना जाता है। वह भी खासतौर पर उन लोगों के लिए जो अपने भाग्य को बेहतर कर धन-दौलत को बढ़ाना चाहते हैं। रेजिन से बनी बहुत सुंदर एरोवाना फिश आपके घर व दफ्तर दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। इसे चाइनीज गोल्डन ड्रैगन फिश भी कहते हैं। जिससे इसे रखने वालों को फायदा होता है। एरोवाना को काफी कीमती मछली कहा जाता है, ऐसा इसलिए भी है क्योंकि यह ओरिएंटल ड्रैगन से बहुत मिलती-जुलती है। चीनी परंपराओं को मानने वाले वहां के रहवासी मछली को ‘यूÓ भी कहते हैं और इसे धन, भाग्य व शक्ति के लिहाज से महत्वपूर्ण मानते हैं। एरोवाना एक शक्तिशाली मछली है, जिसमें यलो इनगॉट्स और गोल्ड कॉइन को भी जगह दी गई है। घर की उत्तरी दिशा में इसे रखने से आपका विंडफॉल लक बेहतर होगा, जो कॅरियर को फायदा पहुंचाता है। व्यापार स्थल के रिसेप्शन पर इसे दक्षिण-पूर्व में रखने से सौभाग्य बढ़ता है और आमदनी में भी बढ़ोत्तरी होती है। इसे प्रवेश द्वार के ठीक सामने वाले कोण में भी रखा जा सकता है। ऐरावाना फिश देखने में जितनी सुंदर है, प्रभाव के मामले में भी यह इतनी ही प्रभावी है। यह एक तरह से शो पीस का भी काम करती है।
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जब किचन की रंगत बढ़ानी हो——-
क्या आप अपने किचन कि एक ही रंग के दीवारों से उब चुके हैं? आप अपने किचन में नए रंग का पेंट करवाना चाहते हैं? आप चाहते हैं कि आप वो रंग करवाएं जो शुभ और शांतिदायक हो तो आप अपने किचन को फेंगशुई के अनुसार पेंट करके अपने घर की आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ा सकते हैं।रसोई घर या किचन, घर का एक ऐसा स्थान होता है जहां फेंगशुई के अनुसार यांग का प्रभाव अधिक होना चाहिए इसलिए रसोई घर में गहरे रंग की अपेक्षा हल्के रंगों का प्रयोग करना ज्यादा अच्छा होगा। रसोई घर में नीले रंग से और उनसे मिलते-जुलते रंगों की अपेक्षा हल्के पिंक या रोज वाइट का प्रयोग करना चाहिए। वैसे सफेद रंग को अन्य कमरों के लिए यांग का प्रतीक माना जाता है।सफेद रंग को भी किचन में उपयोग में ला सकते हैं। आप जब भी रसोई घर में पेंट करवाएं या किसी विशिष्ट रंग का उपयोग करें तो यह ध्यान रखें कि कभी किसी रंग का उपयोग उसके विपरित क्षेत्र में गलती से भी ना हो। उदाहरण के लिए फेंगशुई के अनुसार काले रंग का पानी से संबंध है इसलिए इसे कभी भी दक्षिण दिशा में प्रयोग नहीं करना चाहिए जो कि अग्रि का सूचक है। सफेद और ग्रे रंग धातु से संबंधित है इसलिए इन्हें पूर्व या दक्षिण-पूर्व में प्रयोग नहीं करना चाहिए। घर में सही स्थान पर सही रंग का पेंट करवाकर आप भी अपने जीवन को सकारात्मक उर्जा से पूर्ण बना सकते हैं साथ ही सही रंग के प्रयोग से घर के वास्तुदोष में कमी के साथ ही सुख-समृद्धि बढ़ती है।
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एकाग्रता बढ़ाने के लिए ऐसा रखें स्टडीरुम———-
क्या आपके बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता? आप उसकी पढ़ाई को लेकर चिंतित हैं?बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता कहीं इसका कारण उसके कमरे का वास्तु तो नहीं है। अक्सर गलत दिशा में पढ़ाई की टेबल रखने से भी विद्यार्थी एकाग्रता के साथ पढ़ाई नहीं कर पाते हैं या करते भी हैं तो उन्हें मेहनत के अनुसार परिणाम नहीं मिल पाता है। इसलिए बच्चों के कमरे के वास्तु और उसकी सजावट पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
– उत्तर और पूर्व दिशा ज्ञान प्राप्त करने के लिए शुभ है और घर में पढ़ाई के लिए इन दिशाओं में स्थित कमरे का इस्तेमाल करना चाहिए।
– दीवारों पर हल्का गुलाबी,सफेद, हल्का पीला, क्रीम जैसे हल्के रंग अधिक उपयुक्त रहते हैं।
टेबल के दक्षिण के कोने पर स्टडी लैंप रखें।
– स्टडी टेबल को कमरे के उत्तर-पूर्व में रखें।
– इस टेबल के उत्तर-पूर्व के कोने पर सरस्वती माता की तस्वीर रखें।
– पढ़ाई की टेबल पर क्रिस्टल ग्लोब रखना चाहिए और रोज दिन में उसे तीन बार घुमाना चाहिए। इससे विद्यार्थी को सकारात्मक उर्जा मिलती है।
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इस उपाय से मिलेगी बिजनेस में सफलता———
फेंगशुई और वास्तु के अनुसार अपने घर में छोटे- छोटे परिवर्तन कर भी आप अपने जीवन से सभी परेशानियों को दूर कर जीवन सफल व सुखी बना सकते है। यदि आपके जीवन में बिजनेस से जुड़ी कोई परेशानी है, कारोबार में पर्याप्त सफलता नहीं मिल रही है तो आप नीचे लिखे फेंगशुई टोटके को अपनाकर बिजनेस में सफलता प्राप्त करते हैं।
बांस का पौधे शक्ति और लम्बी उम्र का प्रतीक माना जाता है। परिस्थितियां कैसी भी हो लेकिन बांस हमेशा सीधा खड़ा रह सकता है। अपनी अडिगता से बांस तेज झोंको में भी सीधा खड़ा रहता है। लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के प्रतीक बांस के टुकड़े को यदि बांसुरी के रूप में लटकाया जाये तो छत से होने वाला दोषों का दूर किया जा सकता है। यही नहीं बांस का चित्र मात्र ऑफिस, दुकान में लगा देने से भी दुकान या कार्यालय पर खड़ा कर देने से पर्याप्त सफलता प्राप्त होगी। फेंगशुई में लाल धागा और फीता भी बहुत शुभ माना जाता है। कार्यालय व व्यवसायिक उन्नति के लिए भी यदि बांस के दो टुकड़े लाल धागे बांधकर कार्यालय या घर के मुख्य द्वार पर लटकाने से भी व्यापार में प्रगृति होने के साथ ही सफलता मिलने लगती है। ये करें अगर बच्चा पढ़ाई से दूर भागता है बच्चों पर आजकल पढ़ाई का बोझ इतना बढ़ गया है। जिसके कारण बच्चों का पढ़ाई से मन उबने लगता है और बच्चे पढ़ाई से जी चुराने लगते हैं। अगर आप भी इसीलिए परेशान है क्योंकि आपका बच्चा पढ़ाई से दूर भागता है। पढ़ाई का नाम सुनते ही उसे नींद आने लगती है, तो इसका सबसे अच्छा उपाय फेंगशुई का एज्युकेशन टावर है। यदि बच्चे की स्टडी टेबल पर एज्युकेशन टावर रखा जाए तो लाभ होता है। स्मरण शक्ति बढ़ाने में और बोद्धिक विकास को सही दिशा देने मे एज्युकेशन टावर रखना सटीक उपाय है। इसे उत्तर-पूर्व दिशा में रखना चाहिए। विद्यार्थीयों और शिक्षा से जुड़े लोगों को इसके प्रयोग आशा के अनुरूप सफलता मिलने लगती है।
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ड्राइंगरूम की ऐसी सजावट देगी—————–
मानसिक शांति घर की आंतरिक साज- सज्जा बहुत महत्वपूर्ण है, ड्राइंगरूम घर का मुख्य आकर्षण होता है। यदि ड्राइंग रुम की सजावट वास्तु के अनुसार हो तो वह मानसिक शांति देने के साथ ही सभी का मनमोह लेगा।
– ड्राइंग रुम में क्रीम, सफेद, पीला, हल्का हरा रंग दीवारों पर करवाना शुभ माना जाता है।
– यदि आजकल के फैशन के हिसाब से कमरे की हर दीवार पर अलग कलर का उपयोग करना चाहते हैं तो पश्चिम दिशा की दीवार पर हल्का हरा, आसमानी करवाना ठीक रहेगा।पूर्व दिशा में गुलाबी,लाल या मेंजेंटा कलर और दक्षिण दिशा के लिए नीला, आसमानी, धूसर, मटमैला आदी रंग करवाना अच्छा और शांति देने वाला माना जाता है।
– ड्राइंग रुम में सोफा सेट दक्षिण पश्चिम दिशा की दीवार पर लगाना ठीक रहता है।
– इस रुम में कूलर को पश्चिम दिशा में या आग्रेय कोण में रखें।
– टेलीविजन के लिए वायव्य कोण सबसे अधिक उपयुक्त है।
– भारी सामान के लिए जहां तक संभव हो दक्षिण- पश्चिम दिशा की दिवार पर रखें।
– पेंटिंग्स लगाते समय ध्यान रखें की छोटे बच्चों की फव्वारे, पक्षियों, हरे पेड़ पौधों व गुलाब, या कमल आदि के चित्र उतरी अथवा पश्चिमी दीवारों पर लगाएं। सुख-समृद्धि देगी इच्छापूरक गाय भारत में गाय की पूजा की जाती है। इसी वजह से लोगों के मन में गाय के लिए विशेष आस्था है। गाय के वास्तविक महत्व के बारे में कम ही लोग जानते है। यदि हम गाय के प्रति दयालुतापूर्ण व्यवहार रखें और उसको पूज्यनीय मानें तो गाय में हमारी इच्छाओं को पूरी करने की शक्ति होती है।अपने सौभाग्य की वृद्धि करने के लिए सिक्कों के बिस्तर पर बैठी हुई गाय अपने ऑफिस में मेज पर रखें। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। इच्छापूरक गाय को आप यदि घर में दक्षिण पूर्व क्षेत्र में रखें इससे घर की सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है। यह आपके लिए बहुत शुभ फलदायक रहेगी। यदि आपको यह गाय उपलब्ध ना हो सके तो आप सुख -समृद्धि प्राप्त करने के लिए गाय का चित्र भी लगा सकते है।
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खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए वास्तु टोटके———
पति और पत्नी किसी भी खुशहाल परिवार की नींव होते हैं। यदि आप चाहते हैं आपके सबंध अपने लाइफ पार्टनर से हमेशा अच्छे बने रहे और वैवाहिक जीवन खुशहाल रहे तो इसके लिए नीचे लिखे वास्तु टोटकों को अपना सकते हैं।
– बेडरूम की उत्तर-पूर्व दीवार पर राधा कृ ष्ण का चित्र लगाएं।
– युवा दम्पति अत्याधिक रोमांस और मधुरता बनी रहे इसके लिए लव बर्ड का जोड़ा अपने कमरे में जरुर लगाएं।
– कमरे में बेड के सामने कोई आइना ना हो इसका विशेष ध्यान रखे और यदि हो तो उस पर कपड़ा डाल दें।
– बेडरूम में अगर डबल बेड हो और उसके नीचे सामान रखने की जगह हो तो उसमे कम से कम सामान रखने की कोशिश करें।
– कमरे मे राट आयरन के बेड नहीं होना चाहिए। जहां तक हो सके लकड़ी का ही बेड लगाए।
– क्रिस्टल कार्टस स्टोन के बने शो पीस पति-पत्नी के प्रेम को बढ़ावा देते हैं। ये क्रिस्टल गुलाबी रंग के होते हैं और इनसे सकारात्मक उर्जा का स्तर बहुत अच्छा होता है।
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ऐसे रखें कछुआ तो बढ़ेगी——————–
समृद्धि समय किसी का गुलाम नहीं होता। व्यक्ति के जीवन में समय की कमी हमेशा बनी रहती है। इसलिए आज हर कोई चाहता है कि कम से कम समय में अधिक से अधिक समृद्धि प्राप्त हो जाए। फेंगशुई के उपायों में समृद्धि और शांति के रूप में कछुए को माना जाता है। कछुए का इतिहास पांच हजार वर्ष पुराना है। कछुए के अन्दर ईश्वर का निवास होता है। चीन में प्रचलित एक किवदंती के अनुसार लगभग पांच हजार वर्ष पहले जब शिया काव नामक व्यक्ति अपने सहयोगियों के साथ खेत में सिंचाई के लिए खुदाई का काम कर रहा था। तब नीचे से एक बहुत बड़ा कछुआ निकला। तभी से चीनी मान्यता है कि इसके अन्दर भगवान का वास होता है। इसलिए उसका इस तरह अचानक प्रकट होना बहुत शुभ व समृद्धिदायक माना गया है। अक्सर घर में जीवित कछुए को रखना संभव नहीं होता। इसलिए फेंगशुई के अनुसार शीशे या धातु से बने कछुए को रखना शुभ माना जाता है। इसे भी पानी से भरे छोटे कटोरे में रखना चाहिए। घर के उत्तर दिशा में रखा कछुआ बहुत लाभदायक होता है। यदि शयन कक्ष या ड्राइंगरूम में रखना हो तो इसकी पीठ दीवार की तरफ होनी चाहिए। इससे घर में समृद्धि के साथ ही शांति का स्थाई निवास होता है।
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घर में क्यों लगाएं हंसते हुए बुद्धा की मूर्ति?
जीवन में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते है।शांति, समृद्धि आज के मानव की पहली प्राथमिकता है। बुद्धा की मुर्ति सुख का पर्याय मानी जाती है। इस मुर्ति को मुख्यत: घर के मुख्य द्वार के सामने रखी जाती है इसके अलावा लॉबी या बैठक कक्ष में रखी जा सकती है। मूर्ति का मुंह हमेशा मुख्य द्वार के सम्मुख होना चाहिए। अगर स्थापित करना मुश्किल हो तो टेबल, शाेकेस आदि के ऊपर इसे इस प्रकार स्थापित करें कि यह घर में प्रवेश करते समय दिखाई दे। यह सकारात्मक उर्जा का प्रतीक होता है। उसका हंसता हुआ चेहरा उर्जा को अधिक क्रियाशील व गतीशील बनाता है। इससे पूरे घर में सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता है। इस मूर्ति को शयन कक्ष, रसोई घर, बाथरुम और शौचघर आदि स्थान नहीं रखा जाता। हंसते हुए बुद्धा के विषय में मान्यता है कि इसे खरीदना नहीं चाहिए, उपहार में ही मिले तो ही अच्छा है लेकिन यह धारणा सही नहीं है।
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इस मूर्ति को लगाने से सारे विघ्न टल जाते हैं—–
स्फटिक रत्नों की श्रेणी में आता है, स्फटिक की अनेक मूर्तियां बनती है। गणेश की मूर्ति का महत्व अधिक माना जाता है। स्फटिक के गणेश की मूर्ति को घर में या कार्यालय में स्थापित करने से अनेक प्रकार के विघ्र टल जाते है। यदि स्फटिक श्री गणेश को किसी व्यक्ति को भेंट किया जाए तो अनन्त पुण्य प्राप्त होता है। यह विभिन्न क्षेत्रों में सफलता दिलाने वाला और विघ्रो को मिटाने वाला माना जाता है।
– भगवान शिव का सबसे प्रिय रत्न होने के कारण स्फटिक गणेश भी बहुत प्रिय है।
– इसके प्रभाव से ग्रहों के अशुभ दूर हो जाता है।
– घर का हर कार्य बिना रुकावट के सम्पन्न हो जाए इसके लिए घर के मुख्य दरवाजे के ऊपर स्फटिक गणेश को स्थापित करने से इच्छा अनुसार लाभ होता है।
– स्फटिक श्री गणेश को शुभ समय में प्रतिष्ठित करके रोज पूजन कर उसके सम्मुख अथर्वशीष का पाठ करें।
– पंचमेवा का सवा माह नियमित भोग लगाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
– किसी भी स्फटिक की मूर्ति को बार- बार स्पर्श करने से मस्तिष्क को धनात्मक उ ये चिन्ह जिदंगी को खुशियों से भर देता है फेंगशुई के अनुसार मिस्ट्रिक नॉट का चिन्ह ये प्रदर्शित करता है, कि ना इसकी शुरूआत है और ना ही इसका अंत इस वजह से इसे रहस्यमयी गांठ कहते है। मिस्टिक नॉट कभी ना समाप्त होने वाले प्रेम का प्रतीक है मतलब अमर प्रेम का इसीलिए इसे लव नॉट भी कहते है। इस रोमांस के चिन्ह से पति -पत्नी के संबंधो में दरार नहीं आती और न ही कोई इन्हे अलग कर सकता है। दाम्पत्य जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहता है। कभी ना समाप्त होने वाली इस गांठ को एण्डलैस नॉट के अलावा इसे गुड लक भी कहते है। चीन में यह मान्यता है कि इस गांठ को अपने घर या ऑफिस में लगाने से गुड लक हमेशा हमारे साथ रहता है। एण्डलैस नॉट चाइना का एक महत्वपूर्ण चिन्ह है। इस चिन्ह को घर या ऑफिस में लगाने से हमें अच्छा स्वास्थ्य और लम्बी आयु मिलती है। इसे ऑफिस में उत्तर दिशा में लगाते है तो ऑफिस हमेशा सकारात्मक उर्जा सें भरा रहता है।
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पर्स का वास्तु सुधारे तो रहेगी बरकत——-
घर का वास्तु, ऑफिस का वास्तु, आपकी कार का वास्तु, हर चीज में जब आप वास्तु का ध्यान रखते आएं हैं तो पर्स में वास्तु का ख्याल क्यों नहीं रखा जा सकता? जिस तरह हमारे आसपास का वातावरण हमें प्रभावित करता है। उसी प्रकार हमारा बैग या पर्स भी हमें प्रभावित करता है।तो आइये जानते हैं कि कैसे अपने बैग को वास्तु के अनुसार रखकर उसमें धन की बरकत बड़ा सकते हैं।
– अपने पर्स में एक लाल रंग का लिफाफा रखें। इसमें आप अपनी कोई भी मनोकामना एक कागज में लिख कर रखें। वह शीघ्र पूरी होगी।
– बैग में लाल रेशमी धागे से एक गांठ बांध कर रखें।
-बैग में शीशा और छोटा चाकु अवश्य रखें। – बैग में रुपये पैसे जहां रखते हों वहां पर कौड़ी या गोमती चक्र अवश्य रखें।
– चाबी को छल्ले में डाल कर रखें। यदि इस छल्ले में लाफिंग बुद्धा या अन्य कोई फेंगशुई का प्रतीक अच्छा रहता है।
– पर्स में किसी भी प्रकार का पिरामिड रखें। यह आपके लिए लाभदायक होगा।
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धनवर्षा के लिए वास्तु अनुसार करें लक्ष्मी पूजा——
हम अपना घर हो या ऑफिस सभी जगह वास्तु के अनुसार सामान रखना अच्छा मानते हैं। उसी तरह यदि वास्तु का ध्यान लक्ष्मी पूजन जैसे महत्वपूर्ण मौके पर रखा जाए तो लक्ष्मी कृपा बरसने लगती है।वास्तु के अनुसार दीपावली के पूजन के समय दिशाओं का भी उचित ताल-मेल रखना जरुरी है। पूजा का स्थान ईशान कोण की ओर बनाना शुभ हैं। इस दिशा के स्वामी भगवान शिव हैं, जो ज्ञान और विद्या के अधिष्ठाता है। पूजास्थल पूर्व या उत्तर दिशा की ओर भी बनाया जा सकता है। पूजा स्थल को सफेद या हल्के पीले रंग से रंगना चाहिए। ये शांति, पवित्रता ओर आध्यात्मिक प्र्र्रगति के प्रतीक है। देवी- देवताओं की मूर्तियां और चित्र पूर्व- उत्तर में इस प्रकार रखें कि उनका मुख दक्षिण पश्चिम की तरफ रहे।
दीपावली में दक्षिणावर्ती शंख का विशेष महत्व होता है। इसलिए दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी पूजन में जरुर रखें। इस शंख को विजय सुख-समृद्धि और लक्ष्मी का साक्षात प्रतीक माना जाता है।दीपावली का लक्ष्मी पूजन के बाद कनकधारा स्त्रोत का पाठ किया जाए तो घर में नकारात्मक उर्जा का नाश होने के साथ ही धनवर्षा होने लगती है।
दीपावली पूजन में रखें ये सावधानी——-
यदि आप चाहते हैं कि इस दीपावली पूजन पर लक्ष्मी का आगमन आपके घर में हो और जिदंगी खुशियों से भर जाए तो पूजन स्थल के वास्तु का ध्यान जरुर रखें।नीचे लिखे कुछ वास्तु टिप्स इसमें आपकी मदद करेंगे।
– दीपावली पूजन वाले स्थल से सभी दरवाजे व मुख्य दरवाजे तक का हिस्सा साफ रखें, बीच में सोफें की वजह से रास्ता बंद न हो इसका ध्यान रखें।
– दीपावली पूजा करते समय आपका मुंह दरवाजे की तरफ होना चाहिए।
– कुछ दिन पहले यदि हो सके तो संतरे के छिलकों के रस या नींबु के बहुत कम रस को बिना नमक पानी मिलाकर फर्श को जरुर धो डालें। इससे फर्श पर गरमाई आ जाती है और घर में आय के साधन बढऩे लगता है।
– फर्श पर किसी भी वस्तु को बिखेर कर ना रखें। इससे लक्ष्मी का लाभ विदा हो जाता है।दीपावली पूजन के कक्ष में यदि कोई सीवर, होल, आदि है तो उसे प्लास्टिक आदी से चिपकाकर मेट आदि बिछा दें या किसी कपड़े, कागज या प्लास्टिक सीट से अच्छी तरह ढक दें।
– घर के उत्तरी भाग में लाइट व दीप कम से कम समय के लिए जलाएं। दक्षिण-पूर्व में ज्यादा से ज्यादा दीप लगाएं।
– घर के मध्य भाग में लक्ष्मी पूजा ना करें घर के मध्य भाग में पूजा करना अच्छा नहीं माना जाता है।रसोई घर में पूजा ना करें क्योंकि रसोई में जूठे बर्तनों के कारण घर में बरकत नहीं रहती है।
तिजोरी रखें सही दिशा में तो लक्ष्मी होगी मेहरबान
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क्या आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं?
महीने के आखिरी तारिख आने से पहले ही आप का हाथ तंग हो जाता है। पैसा घर में आता तो है पर कहा चला जाता है पता ही नहीं चलता। बचत के नाम पर आपके पास कुछ नहीं रह पाता है। यदि ऐसा है तो कहीं इसका कारण आपके घर की तिजोरी का गलत दिशा में रखा होना तो नहीं है क्योंकि घर में गलत दिशा में तिजोरी का रखा होना भी धन के अपव्यय का एक बड़ा कारण हो सकता है। इसीलिए तिजोरी शयनकक्ष में न रखें परन्तु यदि स्थान न हो तो तिजोरी को दक्षिण दिशा में रखे।खुलते समय ध्यान रखें कि उसका मुख उत्तर दिशा की ओर हो। इससे लक्ष्मी का वास उस तिजोरी में होता है। यदि तिजोरी दक्षिण, उत्तर पश्चिम व दक्षिण पूर्व की ओर खुले तो धन, अनावश्यक बीमारी व खर्चे में व्यय हो जाता है।
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मानसिक शांति देंगे ये वास्तु टिप्स———–
यदि आपके घर की बनावट वास्तु सम्मत है फिर भी आपके घर में बहुत शांति महसूस नहीं होती है। यदि आप चाहते हैं कि आपके घर में हमेशा शांति सुख और समृद्धि बनी रहे तो आप नीचे लिखें इन वास्तु टिप्स को अपनाकर घर में अद्भूत मानसिक शांति महसूस करने लगेगें।
– घर के बाहर चप्पल खोलने का एक निश्चित जगह बनाएं क्योंकि मुख्य द्वार के सामने चप्पलों के फैले रहने से घर में आने वाले हर व्यक्ति के साथ नकारात्मक उर्जा प्रवेश करती है।
– यह कोशिश करें कि घर की में कोई भी बंद घड़ी ना लगी रहे। जो घड़ी काम ना कर रही हो उसे घर में ना रखें।
– कभी भी किचन के सिंक में ज्यादा समय के लिए गंदे बर्तन ना रखें क्योंकि इससे घर में अलक्ष्मी का निवास होता है साथ ही घर के सदस्यों में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है।
– हर रोज कम से कम पच्चीस मिनट के लिए खिड़की जरुर खोलें, इससे कमरे से रात की उर्जा बाहर निकल जाएगी और साथ ही सूरज की रोशनी के साथ घर में सकारात्मक उर्जा का प्रवेश हो जाए।
– घर के डस्टबीन में ज्यादा कचरा इकठ्ठा ना होने दें।
– झाड़ू घर में किसी ऐसे कोने में रखें जो एकदम दिखाई ना दें।
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गलत दिशा में दरवाजा डुबा सकता है कर्ज में —–
क्या करें घर में यदि घर में दरवाजा गलत दिशा में बना है?
कोई दूसरी तरह का द्वार दोष है? ऐसा दोष आपको कर्ज में डुबो सकता है। यदि आप भी द्वार दोष से परेशान है तो नीचे लिखे वास्तु उपायों को अपनाकर आप भी अपने घर के दरवाजे से वास्तु दोष को कम कर सकते हैं। वास्तु के अनुसार उत्तर का दरवाजा हमेशा लाभकारी होता है।यदि द्वार दोष उत्पन्न होता है, तो भगवान विष्णु की आराधना करें। पीले फूलों की माला दरवाजे पर लगाएं। लाभ होगा। ध्यान रखें कि अगर पूर्व दिशा में घर का दरवाजा है तो वो व्यक्ति को ऋणी बना देता है, तो सोमवार को रूद्राक्ष घर के दरवाजे के मध्य लटका दें और पहले सोमवार को रूद्राक्ष व शिव की आराधना करने से आपके समस्त कार्य सफल होंगे। यदि दक्षिण दिशा में घर का प्रमुख द्वार दोष उत्पन्न होता है, तो भगवान विष्णु की आराधना करें। पीले फूलों की माला दरवाजे पर लगाएं। लाभ होगा। पश्चिम दिशा में द्वार दोष उत्पन्न होने पर रविवार को सूर्योदय से पूर्व दरवाजे के सम्मुख नारियल के साथ कुछ सिक्के रखकर दबा दें। किसी लाल कपड़े में बांध कर लटका दें। सूर्य के मंत्र से हवन करें। द्वार दोष दूर होगा।
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घर में रहेगी बरकत इन वास्तु टोटकों से ——-
आजकल अधिकतर लोग घर के वास्तु को लेकर परेशान रहते हैं क्योंकि घर में वास्तुदोष हो तो घर में समृद्धि नहीं होती। कलह, बीमारियों व लड़ाई-झगड़े आदि से धन का नाश होता है। यदि यही समस्या आपके साथ भी है तो नीचे लिखे वास्तु टोटकों को जरुर अपनाएं। इन टोटकों से आपके घर के वास्तुदोष में कमी आएगी और साथ ही घर में बरकत रहने लगेगी।
– दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के समय पांच लक्ष्मीकारक कौडिय़ां और आम की लकड़ी का स्वास्तिक दोनों की धूप -दीप से पूजा करें, इसके बाद दूसरे दिन लक्ष्मीकारक कौडिय़ों को अपनी तिजोरी में लाल कपड़े में बांधकर रख दें। आम से बने स्वास्तिक को घर के मुख्यद्वार पर लगवा दें।
– ढक्कन वाला एक चांदी का कलश लें। उसमें गंगाजल डालक र उसकी गर्दन पर कलावे में मुंगा पिरोकर बांध दें। ढक्कन लगा दें। इसके बाद घर के उत्तर पूर्व में स्थापित कर दें।
– लाल रंग का रिबन तांबे के सिक्के के साथ, मुख्य द्वार पर बांधने से घर में धन वृद्धि होती है।
– स्फटिक का कछुआ उत्तर दिशा में इस प्रकार रखें कि उसका मुंह घर के अन्दर की ओर हो। गल्ले और तिजोरी में स्फटिक कछुआ, सोने चांदी के सिक्के और चावल रखने से लक्ष्मी आती है।
– घर के निवास के मुख्यद्वार पर बैठे हुए गणपति की दो मूर्तियां इस प्रकार लगाएं कि दोनों की पीठ एक-दूसरे से सट जाये।
फेंगशुई कैंडल्स भर देंगी घर को सकारात्मक ऊर्जा से दीपावली पर रंगीन मोमबत्ती की सजावट का ट्रेंड आजकल जोरों पर हैं। मोमबत्तीयों की सजावट को फेंगशुई के अनुसार भी शुभ माना गया है। दीपावली पर आप अपने घर के सही कोने में सही रंग की मोमबत्ती लगाएं तो घर सकारात्मक ऊर्जा से भर जाएगा।
– घर के उत्तर-पूर्वी कोने में ग्रीन रंग की मोमबत्ती लगाएं। इससे घर में पढऩे वाले बच्चों का एकाग्रता बढ़ती है।
– ग्रीन रंग की मोमबत्ती लगाने से घर की सकारात्मक ऊर्जा मे वृद्धि होती है।
– दक्षिण पश्चिम यानी अग्रिकोण में गुलाबी और पीले रंग की मोमबत्ती जलाएं। इससे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम व सामंजस्य बढ़ेगा।
– दक्षिण भाग को लाल रंग की मोमबत्ती से सजाएं। इससे धन समृद्धि में वृद्धि होती है।
– पूर्व में नीले रंग की मोमबत्ती जलाना चाहिए।
– उत्तर पश्चिम में सफेद रंग की मोमबत्ती लगाने से रचनात्मकता बढ़ती है।
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जीवनसाथी से अनबन का कारण कहीं ये तो नहीं!
क्या आपके लाइफ पार्टनर से आपकी नहीं बनती है? यदि आपका जीवनसाथी आपके रिश्ते को लेकर उदासीन है। हर छोटी सी बात आपसी अनबन का कारण बन गई हैं।
कहीं इसका कारण आपके घर का वास्तु तो नहीं है। घर का वास्तु सीधा संबंधो को प्रभावित करता है। अगर आपके लाइफ पार्टनर से आपकी नहीं बनती तो। आइये जानते हैं कुछ ऐसे ही वास्तुदोष जिनके होने पर पति-पत्नी के सबंधों को बुरी प्रभावित करते हैं।
इसलिए घर का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि ऋणात्मक शक्तियां कम तथा सकारात्मक शक्तियां अधिक क्रियाशील हों। यह सब वास्तु के द्वारा ही संभव हो सकता है।
घर के ईशान कोण का बहुत ही महत्व है। यदि पति-पत्नी साथ बैठकर पूजा करें तो उनका आपस का अहंकार खत्म होकर संबंधों में मधुरता बढ़ेगी। गृहलक्ष्मी द्वारा संध्या के समय तुलसी में दीपक जलाने से नकारात्मक शक्तियों को कम किया जा सकता है। घर के हर कमरे के ईशान कोण को साफ रखें, विशेषकर शयनकक्ष के।पति-पत्नी में आपस में वैमनस्यता का एक कारण सही दिशा में शयनकक्ष का न होना भी है।
अगर दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में स्थित कोने में बने कमरों में आपकी आवास व्यवस्था नहीं है तो प्रेम संबंध अच्छे के बजाए, कटुता भरे हो जाते हैं।शयनकक्ष के लिए दक्षिण दिशा निर्धारित करने का कारण यह है कि इस दिशा का स्वामी यम, शक्ति एवं विश्रामदायक है। घर में आराम से सोने के लिए दक्षिण एवं नैऋत्य कोण उपयुक्त है। शयनकक्ष में पति-पत्नी का सामान्य फोटो होने के बजाए हंसता हुआ हो, तो वास्तु के अनुसार उचित रहता है।
घर के अंदर उत्तर-पूर्व दिशाओं के कोने के कक्ष में अगर शौचालय है तो पति-पत्नी का जीवन बड़ा अशांत रहता है। आर्थिक संकट व संतान सुख में कमी आती है। इसलिए शौचालय हटा देना ही उचित है। अगर हटाना संभव न हो तो शीशे के एक बर्तन में समुद्री नमक रखें। यह अगर सील जाए तो बदल दें। अगर यह संभव न हो तो मिट्टी के एक बर्तन में सेंधा नमक डालकर रखें।
घर के अंदर यदि रसोई सही दिशा में नहीं है तो ऐसी अवस्था में पति-पत्नी के विचार कभी नहीं मिलेंगे। रिश्तों में कड़वाहट दिनों-दिन बढ़ेगी। कारण अग्नि का कहीं ओर जलना। रसोई घर की सही दिशा है आग्नेय कोण। अगर आग्नेय दिशा में संभव नहीं है तो अन्य वैकल्पिक दिशाएं हैं। आग्नेय एवं दक्षिण के बीच, आग्नेय एवं पूर्व के बीच, वायव्य एवं उत्तर के बीच।यदि हम अपने वैवाहिक जीवन को सुखद एवं समृद्ध बनाना चाहते हैं और अपेक्षा करते हैं कि जीवन के सुंदर स्वप्न को साकार कर सकें।
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मोर पंख मिटाएगा वास्तुदोष——-
मोर पंख को सम्मोहन का प्रतीक माना गया है। घर में मोर पंख रखना प्राचीनकाल से ही बहुत शुभ माना जाता है। वास्तु के अनुसार भी मोर पंख घर से अनेक प्रकार के वास्तुदोष दूर करता है। मोर पंख सकारात्मक उर्जा को अपनी तरफ खीचता है। मोर पंख को वास्तु के अनुसार बहुत उपयोगी माना गया है।
– मोर का एक पंख लेकर उसे दक्षिणामुखी राधा कृष्ण की मूर्ति के मुकुट में लगाएं। मूर्ति में मोर पंख चालीस दिन के लिए स्थापित कर दें और राधा कृष्ण को रोज भोग लगाएं। इकतालिसवे दिन उस मोर पंख को घर लाकर अपनी तिजोरी में रखें।
– घर के दक्षिण-पूर्वी कोने में मोर का पंख लगाने से भी घर में बरकत बढ़ती है।
– यदि घर की उत्तर- पश्चिमी कोने में रखें तो जहरीले जानवरों का भय नहीं रहता है।
– अपनी जेब या डायरी में मोर पंख रखने पर राहु दोष कभी प्रभावित नहीं करता है।
– नवजात बालक के सिर की तरफ चांदी की एक डिब्बी में भरकर उसके सिरहाने रखने से नजर नहीं लगती है।
इसे पुस्तको में रखना भी बहुत शुभ माना जाता है।
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नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदलें ऐसे———————-
भारतीय वास्तु और फेंगशुई के अनुसार क्रिस्टल बॉल में से ऐसी उर्जात्मक किरणे निकलती है।
जो हमारे वातावरण में फैले हुए नकारात्मक तत्वों एवं दोषों को समाप्त कर देती है। क्योंकि क्रिस्टल एक ऐसा यांत्रिक यंत्र है तो नकरात्मक एवं दोषपूर्ण उर्जा को सकारात्मक एवं दोष रहित ऊर्जा में परिवर्तित करता है।इसे हम अपने ऑफिस, घर, दुकान में रख सकते हैं। रेकी मास्टर अपने योग बल से इसकी ऊर्जा शक्ति को बढ़ा देते है। यदि कोई व्यक्ति बहुत लम्बे समय से बीमार है एवं काफी इलाज के बाद भी वह पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हो पा रहा है तो किसी रेकी मास्टर अपने योग बल से चार्ज किए हुए उस बॉल का प्रयोग करने से वह व्यक्ति बीमारी से निजात पा सकता है। इसे लगाकर अधिक से अधिक प्रकाश को आकर्षित किया जा सकता है। ऑफिस में रखने से इससे पूरे दिन माहौल में ताजगी का अनुभव होता है। यह अपने आप में एक अद्भुत वस्तु है।
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घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहेगा ऐसे———
अगर आप चाहते हैं कि आपका घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहे। उसके लिए के किचन में ये कुछ टिप्स आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते है।
– रसोई घर में यदि वास्तुदोष हो तो पंचररत्न को तांबे के कलश में डालकर उसे ईशान्य कोण यानी उत्तर-पूर्व के कोने में स्थापित करें।
– निर्माण के समय ध्यान रखे की रसोई घर आग्नेय कोण में हो अगर पूर्व में ही रसोईघर किसी और दिशा में बना हो तो उसमें लाल रंग कर उसका दोष दूर किया जा सकता हैं।
– रसोई घर के स्टेंड पर काला पत्थर न लगवाए।
– रसोई घर में माखन खाते हुए कृष्ण भगवान का चित्र लगाएं। इससे आपका घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहेगा।
– खाना बनाते समय गृहिणी की पीठ रसोई के दरवाजे की तरफ न हो, यदि ऐसा हो तो गृहिणी के सामने दीवार पर एक आईना लगाकर दोष दूर किया जा सकता है।
– यदि रसोई का सिंक उत्तर या ईशान में न हो और उसे बदलना भी संभव न हो तो लकड़ी या बांस का पांच रोड वाला विण्ड चिम सिंक के ऊपर लगाएं।
– चूल्हा मुख्य द्वार से नहीं दिखना चाहिए। यदि ऐसा हो और चूल्हे का स्थान बदलना संभव नहीं हो तो पर्दा लगा सकते हैं।
– यदि घर में तुलसी का पौधा न हो तो अवश्य लगाएं। कई रोगों व दोषों का निवारण अपने आप हो जाएगा।
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घर की बाहरी रंगत करेगी वास्तुदोष दूर——–
यदि घर में कोई वास्तुदोष हो और आपको समझ नहीं आ रहा है कि उस वास्तुदोष से कैसे निपटा जाए तो आप केवल अपने मकान के मुंह की दिशा के अनुसार बाहरी दिवारों पर पेंट करवाकर अपने घर के वास्तुदोष को कम कर सकते हैं।
यदि आपका घर पूर्वमुखी हो तो फ्रंट में लाल, मेहरून रंग करें।
पश्चिममुखी हो तो लाल, नारंगी, सिंदूरी रंग करें।
उत्तरामुखी हो तो पीला, नारंगी करें।
दक्षिणमुखी हो तो गहरा नीला रंग करें।किचन में लाल रंग।बेडरूम में हल्का नीला, आसमानी। ड्राइंग रूम में क्रीम कलर
पूजा घर में नारंगी रंग।
शौचालय में गहरा नीला।
फर्श पूर्ण सफेद न हो क्रीम रंग का होना चाहिए।
छोटे उपाय जिनसे होगा बढ़ा लाभ
क्या आप घर के वास्तुदोष से परेशान है?
वास्तुदोष के कारण ही घर में कोई ना कोई समस्या हमेशा बनी रहती है। घर के सही वास्तु का मतलब ये कतई नहीं है, कि घर में तोड़-फोड़ ही कि जाए। घर के वास्तु में कुछ छोटे-छोटे परिवर्तन ऐसे होते हैं जिनको अपनाने से आप बड़ा लाभ पा सकते हैं।
– घर में अगर झगड़ा ज्यादा हो तो कैक्टस या कांटे वाले पौधे निकाल दें।
– मंदिर सदैव ईशान कोण में ही रखें।
– अलमारी को कभी दक्षिण मुखी न रखे।
– घर अगर दक्षिणमुखी हो तो फ्रंट में नीला रंग रखें।
– घर में कोई ज्यादा बीमार होता हो तो एक कटोरी में केशर घोल कर रखें।
– घर में बरकत न हो तो गणपति को घर में स्थापित करें।
– घर के मुख्य दरवाजे पर गणेश का बांयी सूण्ड वाला चित्र लगाएं।
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गृह प्रवेश से पहले जरूरी है———
क्या आप नए घर में प्रवेश करने जा रहे हैं? आप चाहते हैं कि नए घर में आपका जीवन खुशियों से भर जाए,हर परेशानी आपके जीवन को अलविदा कह जाए तो गृह प्रवेश से पहले नीचे लिखे सभी उपाय जरुर करें इससे आपका नया घर सकारात्मक उर्जा से भर जाएगा।
– वास्तु शांति कराएं, विधिवत वास्तु पूजन कराएं।
– गृह प्रवेश करें जिससे उन्नति होगी एवं समृद्धि होगी।
विधिवत गृह प्रवेश कराएं, वास्तु जप जरूर कराएं।
– देवी दुर्गा की अक्षत, लाल पुष्प, कुमकुम से पूजा करें। प्रसाद चढ़ाएं, धूप, दीप दिखाएं एवं जप करें। निश्चित ही घर में सुख, शांति एवं समृद्धि होगी। – दुर्गासप्तशती का नौ दिन तक पाठ विधिवत घी का अखंड दीपक लगाकर, उपरांत नौ कन्याओं का भोजन (2-10 वर्ष की कन्या) करवाने से जीवन सुखद होता है। –
महामृत्युंजय मंत्र का जप करें, इससे भी लाभ प्राप्त होता है।
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वैभव को बढ़ाता है ये पेंडेंट———————–
इस खास पैंडेंट को पुआ शैल पैंडेंट भी कहा जाता है। गणित के 8 अंक के आकार का यह पैंडेंट चीनी पद्धति में खास माना जाता है। इसके आठ के अंक में आने वाली गोलाई के एक तरफ क्रिस्टल लगे हैं तो दूसरी तरफ समुद्र के नीले रंग के कई शेड्स समाए हुए हैं। इन्हें पुआ रंग कहा जाता है।इस खूबसूरत गहने में नीले, हरे और बैंगनी रंग के विभिन्न शेड्स हैं जो रोशनी में रंग बदलते हुए से प्रतीत होते हैं।
एक ओर क्रिस्टल होने से इसके रंग और निखरकर आते हैं। क्रिस्टल की वजह से ही इन रंगों की चमक भी बढ़ जाती है। चीनी पद्धति में आठ अंक को बहुत लकी नंबर मानते हैं और फेंगशुई में यह बहुत ही खास माना जाता है।
कहते हैं कि यह निरंतर व अनंत वैभव प्रदान करता है। इसे असीमता का वैश्विक प्रतीक भी कहते हैं। कुल मिलाकर वैभव व असीमता का यह अनंत प्रतीक है। नंबर 8 को महत्वपूर्ण बनाने वाली खास बात यह है कि अब हम नंबर 8 के 20 साल के सर्कल में हैं, जो 2004 से शुरू होकर 2024 तक चलेगा।
पुआ सीपियों का ताल्लुक लंबे समय से माओरी लोगों से जोड़ा जाता रहा है। व्यापक जनसमूह में यह माना जाता है कि यह सीप जीवन के बहुत से पहलुओं को सामने रखता है। यह मस्तिष्क की स्पष्टता और आपसी सहयोग को बढ़ाता है।
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घर में रहेगी शांति——-
. पौधे अपने आसपास के वातावरण को साफ व स्वच्छ बनाते है। वास्तु के अनुसार पौधे लगाने से घर सकारात्मक उर्जा से भर जाता है। हरियाली आंखों को शांति देती है। घर में भी यदि वास्तु के अनुसार पौधे लगाए जाएं तो घर में शांति के साथ ही सुख, समृद्धि भी बढऩे लगती है। – ईशान्य कोण यानी उत्तर-पूर्व में तुलसी का पौधा लगाएं।
– घर की बैठक में जहां घर के सदस्य आमतौर पर एकत्र होते हैं, वहां बांस का पौधा लगाना चाहिए। पौधे को बैठक के पूर्वी कोने में गमले में रखें।
– नुकीले औजार जैसे- कैंची, चाकू आदि कभी भी इस प्रकार नहीं रखे जाने चाहिए कि उनका नुकीला बाहर की ओर हो।
– शयन कक्ष में पौधा नहीं रखना चाहिए, किन्तु बीमार व्यक्ति के कमरे में ताजे फूल रखने चाहिए। इन फूलों को रात को कमरे से हटा दें। –
मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए चंदन आदि से बनी अगरबत्ती जलाएं। इससे मानसिक बेचैनी कम होती है।
– तीन हरे पौधे मिट्टी के बर्तनों में घर के अंदर पूर्व दिशा में रखें। बोनसाई व कैक्टस न लगाएं क्योंकि बोनसाइ प्रगति में बाधक एवं कैक्टस हानिकारक होता है।
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अपने घर की समस्या से जाने वास्तुदो——–
यदि आपका जीवन तनाव से घिरा है। हमेशा कोई ना कोई समस्या आपके परिवार को घेरे रहती है। ऐसा अक्सर घर में उपस्थित वास्तुदोष के कारण होता है लेकिन हम उससे अनजान होते हैं। घर में अलग- अलग कोने में वास्तुदोष का प्रभाव भी अलग होता है। पूर्व दिशा का स्वामी सूर्य है इसलिए इस दिशा में वास्तु दोष होने पर पिता-पुत्र की आपस में नहीं बनती। पुत्र पिता की आज्ञा का पालन नहीं करता। संतान की उन्नति में भी रूकावटे आती है। संतान का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। ईशान्य कोण यानी उत्तर पूर्व कोने का स्वामी गुरु होता है। इस कोने में दोष होने पर घर में पैसों से जुड़ी समस्या बनी रहती है। पूजा में मन नहीं लगता। घर के बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है। उत्तर दिशा का स्वामी बुध होता है। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर भाई-बहन में अधिक झगड़े होते हैं। आमदनी से अधिक खर्च होता है। दीपक भी दूर करता है वास्तुदोष…
हमारा शरीर पंच तत्व से बना है।
मिट्टी भी उन पंच तत्वों में से एक है।
मिट्टी से दीपक बनाने का रिवाज हमारे यहां का पुराने समय से चला आ रहा है
। मिट्टी को बहुत शुद्ध माना जाता है। इसलिए मिट्टी से बने दीपक आज भी पूजन में भगवान के सामने प्रज्वलित किए जाते हैं।
साथ ही मिट्टी का दीपक जलाने से घर से कई तरह के वास्तुदोष भी दूर हो जाते हैं।
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में यदी अखंड रूप से मिट्टी के दीपक जलाएं तो कई तरह के वास्तुदोष में कमी आती है।शाम के समय घर के परंडे पर दीपक जलाने से पितृदोष के साथ ही वास्तुदोष भी शांत होता है।
दक्षिण-पूर्व दिशा में मिट्टी का दीपक लगाने पर घर में किसी तरह का अभाव नहीं रहता।
घर में कभी भी उत्तर-पूर्व कोने में दीपक ना लगाएं। इस कोने में दीपक लगाना वास्तु के अनुसार उचित नहीं माना जाता है।
श्री रामचरित मानस का पाठ अखंड दीपक के सामने करने से घर का वास्तुदोष खत्म हो जाता है।
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घर में रहेगी सुख- शांति हमेशा——-
वास्तु के अनुसार घर में कुछ बातों का ध्यान रखने से घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है।
यदि आप भी चाहते हैं कि आपके घर में भी हमेशा सुख-शांति रहे तो बस जरुरत है,वास्तु के इन कुछ छोटे-छोटे टिप्स को ध्यान रखने कि
– घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक या ऊं का चिन्ह लगाने में सुख शांति बनी रहती है।
– नार्थ-ईस्ट दिशा में पानी का कलश रखें।
– ड्राइंग रुम में ताजा फूलों का गुलदस्ता रखें। इससे घर में सुख और शांति का स्थाई निवास होता है।
-रसोईघर में पूजन का स्थान नहीं होना चाहिए।
– बेडरुम में भगवान या धार्मिक चित्र नहीं लगाना चाहिए।
– घर के पूजन स्थल की दीवार से शौचालय की दीवार के संपर्क में नहीं होना चाहिए।
– घर के वातावरण को ऊर्जात्मक रखने के लिए घर की आंतरिक सज्जा में ये ध्यान रखना चाहिए कि घर के किसी भी कोने में अंधेरा ना रहे।
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घर का माहौल रहेगा खुशनुमा———-
मान्यता है कि यदि व्यक्ति वास्तु के हिसाब से बने घर में रहता है, तो उसका जीवन सुख एवं समृद्घि से पूर्ण होता है। यदि आपके घर में हमेशा कलह का माहौल बना रहता है। घर के सदस्यों में कभी आपसी तालमेल नहीं बन पाता है तो इस बार हम आपको वास्तु से संबंधित छोटे-छोटे उपाय बताते हैं जिनसे आपके घर का माहौल हो जाएगा खुशनुमा ।
– ऐसे पंखों को तुरंत ठीक करवाएं जिससे जो घर्र-घर्र की आवाज पैदा करते हों। पंखें से आने वाली आवाज आपके निजी जीवन में कलह पैदा कर सकती है।
– घर के किसी भी सदस्य या पारिवारिक लोग, रिश्तेदार जो जीवित हैं, उनकी तस्वीरें उत्तर-पूर्व, उत्तर या पूर्व तीनों दिशाओं में लगाई जा सकती हैं तथा घडिय़ां व दर्पण भी इन्हीं दिशाओं में लगाए जाते हैं। पूर्वजों की तस्वीर दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम में लगा सकते हैं।
– फेंगशुई के अनुसार ड्रैगन एक शक्तिशाली, शुभ प्रतीक है। जीवन में सौभाग्य और संपदा प्राप्त करने के लिए हमें शक्ति, साधन और सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
– ड्राइंग रुम में ताजे फूलो का गुलदस्ता जरूर रखें।
– रोज क्वाट्र्ज का पेड़ मन को शांत करता है और गुस्से को काबू में रखता है। फेंगशुई के अनुसार इससे घर में शांति बनी रहती है।
– घर में कभी बंद घड़ी ना रखें। कोशिश करें कि जो घड़ी उपयोग में नहीं आ रही हो उसे घर में ना रखें।
– बेडरुम में नाचते हुए मोर का चित्र लगाएं।
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कृष्णा की तस्वीर दूर करेगी वास्तुदोष——
श्री कृष्ण का हर स्वरूप इतना सुन्दर है। उनके हर स्वरूप के दर्शन से मन सकारात्मक उर्जा से भर जाता है। वास्तु के अनुसार घर में कृष्ण की तस्वीर लगाना बहुत शुभ माना गया है, तो आइए जानते की घर के किस कोने में कृष्ण के किस स्वरूप की तस्वीर शुभ फल देने वाली मानी जाती है।
– कृष्णा का मक्खन खाता हुआ चित्र रसोई घर में लगाना वास्तु के अनुसार बहुत शुभ माना जाता है।
– संतान सुख की प्राप्ति के लिए श्री कृष्ण के बालस्वरूप का चित्र बेडरुम में लगाएं।
– ध्यान रखें कि कृष्ण का फोटो स्त्री के लेटने के समय बिल्कुल मुख के सामने की दीवार पर रहे।
– यूं तो पति-पत्नी के कमरे में पूजा स्थल बनवाना या देवी-देवताओं की तस्वीर लगाना वास्तुशास्त्र में निषिद्ध है फिर भी राधा-कृष्ण की तस्वीर बेडरूम में लगा सकते हैं।
– भवन में महाभारत के युद्ध दर्शाने वाली तस्वीर वास्तुशास्त्र के अनुरूप नहीं माना जाता इसलिए ऐसे चित्र घर में न लगाएं।
– भगवान श्रीकृष्ण का चित्र आवासीय एवं व्यावसायिक दोनों ही स्थानों पर रखा जाना चाहिए, इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
– भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला के दृश्यों की तस्वीरों को भवन की पूर्व दिशा पर लगाया जा सकता है।
– वसुदेव द्वारा कृष्ण को टोकरी में लेकर नदी पार करने वाला फोटो को घर में लगाने से घर से कई तरह की समस्या दूर होने लगती है।
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ऐसी फेंगशुई सजावट होती है शुभ—–
आजकल अधिकांश लोग घर बनवाते समय वास्तु का विशेष ध्यान रखते हैं। लेकिन कम ही लोग ऐसे हैं जो घर की सजावट में वास्तु या फेंगशुई का ध्यान रखते हैं। यदि घर की सजावट फेंगशुई आइटम्स से की जाए तो घर सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।
– मछलियाँ, दर्पण, क्रिस्टल, घंटी, बाँसुरी, कछुआ, , सिक्के, लाफिंग बुद्धा आदि घर में सकारात्मक उर्जा के प्रवाह को बढ़ाने का कार्य करते हैं। – हाथी का जोड़ा संतान इच्छुक दम्पति के कमरे में रखना बहुत शुभ माना जाता है। इसे मुख्य द्वार के पास लगाना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
– घर में एक्वेरियम रखने से घर की सकारात्मक उर्जा में वृद्धि होती है। – ड्रेगन के मुंह वाला जीवन यान घर की सुख-समृद्धि के साथ ही परिवार की आयु में वृद्धि की द्योतक है। – मछली जल की प्रतीक होती है और फेंगशुई में जल एक प्रमुख तत्व है। यह धन का प्रतीक है। जल की उपस्थिति घर या कार्यालय में माँगलिक ऊर्जा की सूचक है, जिसका फल सौभाग्यवद्र्धक होता है। – मछली परीक्षा में सफलता, नौकरी में पदोन्नति एवं उपलब्धि की प्रतीक मानी जाती है।
– फेंगशुई की मान्यता के अनुसार लाफिंग बुद्धा घर में रखने से घर में हमेशा खुशी और प्रसन्नता का माहौल बना रहता है।
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कोना-कोना होगा वास्तुदोष से मुक्त—————–
र बनाते समय वास्तु का ध्यान ना रख पाएं हो या अज्ञानतावश घर में कोई वास्तुदोष रह गया हो तो बने हुए भवन में तोड़-फोड़ करना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए यदि मकान के निर्माण के समय यदि घर के किसी भी कोने में कोई वास्तु दोष रह गया हो तो नीचे लिखे वास्तुटिप्स अपनाकर आप घर के वास्तुदोष में कमी ला सकते हैं।
– यदि किसी के घर में पश्चिम दिशा में दोष हो तो ऐसे में घर के मुख्य दरवाजे पर काले घोड़ेे की नाल लगाएं साथ ही शनि यंत्र की स्थापना करें क्योंकि वास्तु के अनुसार पश्चिम दिशा का स्वामी शनि होता है। –
उत्तर-पूर्व यानी ईशान्य कोण का स्वामी गुरु होता है। इस कोने में वास्तुदोष होने पर परिवार को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दिशा के वास्तुदोष को समाप्त करने के लिए एक घड़े में बरसात पानी भरकर उसे मिट्टी के पात्र से ढ़ककर ईशान्य कोन में दबा दें।
– दक्षिण-पश्चिम कोने यदि नीचा हो तो इसे ऊंचा करने के लिए टी.वी. का एंटिना लगाएं इससे इस कोण का वास्तुदोष दूर होता हैं।
– अग्रि कोण या दक्षिण पश्चिम दिशा में दोष हो तो उस कोने में लाल बल्ब लगाएं।
– घर की छत के चारों कोने में तुलसी के पौधे लगाएं। इससे घर से कई तरह के वास्तुदोष दूर हो जाता है।
– सारा व्यर्थ और भारी समान दक्षिण दिशा में रखें इससे घर की सकारात्मक उर्जा में वृद्धि होती है।
बढ़ाएं सुन्दरता और दूर करे वास्तुदोष….
फेंगशुई के अनुसार, क्रिस्टल-ट्री का उपयोग घर में सुख-समृद्घि, प्रतिष्ठा व शांति के लिए किया जाता है। रत्नो का पौधा सुनने में भी भले ही काल्पनीक लगे किन्तु वास्तविकता यही है कि चीनी पद्धति में इस पौधे का अधिक महत्व है। यह पौधा तरह-तरह के रत्नों और स्फटिकों का बना होता है। इसमें कई वैरायटीज होती हैं।
– कानलियन का पेड़ छात्रों को करियर बनाने में सहायता देता है।
– रोज क्वाट्र्ज का पेड़ मन को शांत करता है और गुस्से को काबू में रखता है।
– नवरत्न पेड़ नवग्रहों की शांति, सुख तथा पारिवारिक शांति के लिए उपयोग किया जाता है। एमेथिस्ट का पेड़ दिमागा का संतुलन बनाए रखता है।
– रंग-बिरंगे रत्नों से सजे इस पौधे को यदि घर के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में रखा जाएं तो निश्चित रूप से जीविका चलाने वाले व्यक्ति के सौभाग्य में वृद्धि होती है।
– इसे घर में दक्षिण-पूर्व दिशा में भी रखा जा सकता है। इसे व्यवसायिक स्थल पर रखने से सम्पदा मिलती है।
– इसे बैठक में भी रखा जा सकता है। इसका एक ओर महत्वपूर्ण कार्य नकारात्मक ऊर्जा को दूर करना भी है।
अगर फ्लेट में हो वास्तुदोष…
अगर आप रेंट पर फ्लेट लेते हैं तो मकान मालिक की बिना मंजुरी के किराए के मकान में परिवर्तन नहीं कर सकते। अक्सर देखने में आता है कि वास्तु नियमों के अनुकूल बने भवन में किराएदार सुखी और संपन्न रहते हैं।
यदि आप भी चाहते हैं कि आपके घर में किसी तरह का वास्तुदोष ना रहे तो कुछ बातों का ध्यान रखकर किराए के भवन में रहते हुए भी वास्तुदोष दूर किया जा सकता है।
– भवन का उत्तर-पूर्व का भाग अधिक खाली रखें।
– दक्षिण-पश्चिम दिशा के भाग में अधिक भार या सामान रखें।
– पानी की सप्लाई उत्तर-पूर्व से लें।
– शयनकक्ष में पलंग का सिरहाना दक्षिण दिशा में रखें और सोते समय सिर दक्षिण दिशा में व पैर उत्तर दिशा में रखें। यदि ऐसा न हो तो पश्चिम दिशा में सिरहाना व सिर कर सकते हैं। – भोजन दक्षिण-पूर्व की ओर मुख करके ग्रहण करें। – पूजास्थल उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करें यदि अन्य दिशा में हो तो पानी ग्रहण करते समय मुख ईशान (उत्तर-पूर्व) कोण की ओर रखें। ऑफिस के लिए फेंगशुई टिप्स… ऑफिस का वास्तु सम्मत होना बहुत आवश्यक है चूंकि ऑफिस में काम करने वाले कर्मचारियों व अधिकारियों का अधिकांश समय यहीं गुजरता है। फेंगशुई बा-गुआ पद्धति के अनुसार किसी भी घर को या ऑफिस को काल्पनिक रूप से नौ भागों में बांटा गया है। बा-गुआ के अनुसार उत्तर-पश्चिम कोने को व्यापारिक संबधित कोना माना गया है इसलिए इस कोने के फेंगशई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
– वायव्य कोने में सुन्दर फूलों का गमला लगाएं।
– कम्प्यूटर, कंट्रोल पैनल, विद्युत उपकरण आदि कार्यालय के आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में ही लगाए जाने चाहिए।
– चित्र, पशुओं या प्रसिद्ध हस्तियों के चित्र लगाना भी अच्छा माना जाता है।
– यदि ऑफिस के इस हिस्से में क्रिस्टल लैम्प जलाएं या झाड़ फानूस लगाएं।
– घर और व्यवसाय में कार्य करने वाले लोगों का यदि आपको सहयोग नहीं मिल पा रहे है तो वायव्य कोण में संगठित रूप से कार्यरत लोगों की तस्वीर लगाना लाभ होता है।
– उत्तर-पश्चिम हिस्से में सफेद रंग का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए। –
यदि ऑफिस में वेटिंग रूम बनवाएं तो वायव्य कोण (पश्चिम-उत्तर) उचित रहेगा। कान्फ्रेंस/मीटिंग हॉल भी वायव्य कोण में शुभ माना गया है। घर में नहीं रहेगी दरिद्रता यदि आपके घर में पैसा नहीं टिकता। पैसा जितनी तेजी से आता है उससे कही ज्यादा तेजी से खर्च हो जाता है यानी आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपैया है तो घर में दरिद्रता रहने के कई कारण है। उसमें से ही एक कारण है कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान ना रखना। –
पूजा घर के अग्निकोण में पूजा करें।
– उत्तर-पूर्व में लकड़ी का मन्दिर रखें जिसके नीचे गोल पाए हों।
– लकड़ी के मन्दिर को दीवार से सटाकर न रखें।
– जहां तक हो सके पत्थर की मूर्ति न रखें, वजन बढ़ेगा।
– घर में टूटे बर्तन व टूटी हुई खाट नहीं होनी चाहिए, न ही टूटे-फूटे बर्तनों में खाना खाएँ। इससे दरिद्रता बढ़ती है।
– घर के द्वार पर जो उत्तर दिशा की ओर हो वहाँ पर अष्टकोणीय आईना लगाएँ।
– उत्तर-पूर्व के भाग में दीपक जलाना घातक सिद्ध हो सकता है। इस कोने में हवन करने से व्यापार में घाटा प्राप्त होता है।
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समृद्धि के लिए जरूरी है——-
घर के अंदर ईशान्य कोण यानी उत्तर-पूर्व कोने को वास्तु के अनुसार गुरु ग्रह का कोना माना जाता है। इसलिए इस कोने की सफाई को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है।वास्तु में इसी कोने को पूजास्थल, उपासना स्थल और प्रधान इष्ट देव स्थापना का योग्य कोण भी माना जाता है, किंतु यहां जल स्थान का होना बहुत ही लाभकारी है। यदि इस कोने में नीचे लिखें वास्तु टिप्स अपनाएं तो घर में सुख-समृद्धि बढऩे के साथ ही घर की सकारात्मक उर्जा में वृद्धि होने लगती है मतलब समृद्धि के लिए घर के ईशान्य कोण के वास्तु का ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरी है।
– इस कोने में तांबे के कलश में पानी भरकर उसमें पंच रत्न डाले। कलश का पानी रोज बदले।
– ईशान्य कोण में पारद का शिवलिंग स्थापित कर उसका नियमित रूप से अभिषेक करने से घर में उपस्थित हर तरह के वास्तुदोष का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगता है।
– घर के ईशान कोण में जलस्रोत का होना बहुत शुभ है। आजकल इस कोण में बोरिंग करवाने का चलन है, किंतु वहां जलस्रोत या हौज का होना शास्त्र सम्मत है। यह शिव का स्थान है। इसी कारण इसे गंगा तुल्य माना जाता है।
– यदि इस जलस्रोत में चांदी की छोटी-सी मछली, शंख, मकर, लघु कलश, कल्पवृक्ष और चांदी का ही कूर्म बनाकर रखा जाए और पूजा के बाद जल भरा जाए तो इच्छित परिणाम मिलता है। ईशान के जल-स्रोत को बराबर भरा रखा जाए और उसके जलस्तर को बराबर बनाए रखा जाए तो समृद्धि आती है।
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अगर घर के मुख्यद्वार में हो वास्तुदोष…
यदि घर का मुख्यद्वार गलत दिशा में बना हो या द्वार दोष हो तो नीचे लिखे वास्तुटिप्स जरूर अपनाएं।
– पूरे घर में ची मुख्य द्वार से घर में प्रवेश करती है।
अत: मुख्यद्वार के सामने किसी तरह की रूकावट या अवरोध नहीं होना चाहिए।
– मुख्यद्वार के सामने पिल्लर, फर्नीचर जूते का रैक, टूटी वस्तुएं आदि घर में नकारात्मक उर्जा में वृद्धि करते हैं।
– घर में प्रवेश करते समय सामने बाथरूम या किचन न हो बाथरूम होने पर दरवाजा बंद रखें।
– मुख्यद्वार के सामने किचन होने पर, किचन के द्वार पर गणेश जी तस्वीर लगाएं।
– मजबूत दरवाजे घर में सकारात्मक ऊर्जा को लाते हैं।
– घर के मुख्य द्वार के सामने सीढ़ी नहीं होनी चाहिए।
. तो नहीं होगी पैसों की तंगी फेंगशुई और वास्तु दोनों के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य है कि वास्तव में इनसे जीवन की कई सारी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। यदि आपके जीवन में पैसों की तंगी है तो नीचे लिखे वास्तु और फेंगशुई टिप्स आपकी मदद कर सकते हैं।
– घर के मुख्य दरवाजे के दोनों तरफ ही खिड़कियां हों तो जातक हमेशा जीवन में धन की तंगी महसूस करेगा। इससे बचने के लिए दोनों खिड़कियों पर बेल या मनी प्लांट का पौधा लगाएं।
– घर में यदि कोई नल टपक रहा हो तो उसे तुरंत बदलवाएं क्योंकि वास्तु के अनुसार यदि नल से व्यर्थ पानी बहता है, तो फालतु खर्च बढऩे लगता है।
– यदि दक्षिण- पूर्व दिशा में यदि वाशरुम बना है या नल लगा है तो उसका उपयोग तुरंत बंद कर दें ।
– उत्तर- पूर्व में यदि शौचालय बना हो तो उसका उपयोग तुरंत बंद कर दे हो सके तो घर में दूसरी जगह पर शौचालय बनवाएं।
– टेबल पर ताजे फूलों के रखने से भाग्योदय होता है। इसके अलावा बैंबू प्लांट या मनी प्लांट को भी टेबल पर रखा जा सकता है। ध्यान रखें कि फूल या पौधे को टेबल पर बाईं ओर ही रखें।
– घर के उत्तर में एक्वेरियम या कोई भी ऐसी कलात्मक चीज, जिसमें पानी हो, रखना फायदेमंद होता है।
– तीन टांग वाला मेंढ़क जो मुंह में सिक्का लिए हुए हो, समृद्धि को आकर्षित करता है। इसे अपने घर के मेन गेट के ठीक पास अंदर आते हुए प्रदर्शित करें। यह ध्यान रखें कि इसे सम्मानित जगह पर किसी टेबल के ऊपर रखा जाए। यह आपके मार्ग में आती हुई लक्ष्मी को प्रदर्शित करेगा।
– मोती शंख को अपने वर्क टेबल पर रखें इससे धन से जुड़ी सारी समस्याएं समाप्त हो जाती है।
– घर में कभी भी रात को झूठे बर्तन ना छोड़े। तो भाग्य देने लगेगा साथ अगर आप को हर काम में असफलता ही मिलती है। मनचाही सफलता नहीं मिल पा रही है तो आप नीचे लिखे फेंगशुई उपाय को जरूर अपनाएं।
– चीनी ड्रैगन को शक्ति, अच्छे भाग्य और सम्मान का प्रतीक मानते हैं। ड्रैगन एक कीमती कास्मिक ‘चीÓ बनाता है जिसे ‘शेंग चीÓ भी कहते हैं, जिससे घर और कार्यस्थल पर भाग्य साथ देता है।
– डबल ड्रैगन को यूं तो किसी भी दिशा में रखा जा सकता है लेकिन पूर्व दिशा में रखना सबसे ज्यादा लाभदायक है। चीनी संस्कृति और फेंगशुई में ड्रैगन को बहुत सम्मान दिया जाता है और इसे शुद्ध मानते हैं।
– यह ड्रैगन लकड़ी, सेरेमिक व धातु में उपलब्ध है। लकड़ी के ड्रैगन को दक्षिण- पूर्व या पूर्व में, सेरेमिक, क्रिस्टल के ड्रैगन को दक्षिण- पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर पश्चिम में रखा जाना चाहिये। -छात्र इसे अपनी पढ़ाई की टेबल पर रखें। घर की उत्तर-पश्चिम दिशा में इसे रखने से अच्छे सलाहकार, दोस्त व बढिय़ा नेतृत्व करने वाले साथी मिलेंगे।ध्यान रखें: यह जिस उंचाई पर रखा हो वह आंख के स्तर से अधिक न हो।
एक्वेरियम या क्रत्रिम फाउन्टेन के पास रखने से भाग्य ज्यादा साथ देता है।
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वास्तुदोष दूर करता है नमक ——-
आपके घर में यदि वास्तुदोष हो या हमेशा दरिद्रता रहती हो। पैसा कहां से आता है और कहां चला जाता है पता ही नहीं चलता है। इस परेशानी से निजात पाने के लिए अपने घर में हमेशा थोड़ा साबुत नमक जरूर रखें।
साबुत नमक रखने का कारण यह है कि नमक में पॉजिटीव एनर्जी को अपनी तरफ आकर्षित करने की क्षमता होती है। साथ ही यह नकारात्मक उर्जा को घर से दूर करता है। इसलिए घर में कोई भी शुभ काम करने जा रहे हों तो नमक डालकर पौछा जरूर लगाएं।
मन में खिन्नता, भय, चिंता होने से, दोनों हाथों में साबुत नमक भर कर कुछ देर रखे रहें, फि र वॉशबेसिन में डाल कर पानी से बहा दें।
नमक इधर-उधर न फेंकें।नमक हानिकारक चीजों को नष्ट करता है।फफूंदी भी नहीं लगने देता।
अगर ना लगता हो मन पढ़ाई में…
आजकल अधिकतर विद्यार्थियों की यह समस्या होती है कि उन्हें याद नहीं रहता है या पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता है। ऐसी समस्या अक्सर घर के स्टडीरुम में उपस्थित वास्तुदोष के कारण होती है। इस समस्या के समाधान के लिए जरुरी है कि विद्यार्थी का कमरा वास्तुसम्मत हो। अगर आप भी चाहते हैं कि आपके बच्चे का मन पढ़ाई में लगे तो नीचे लिखे वास्तुटिप्स का ध्यान अध्ययन कक्ष में जरुर रखें।
– टेबल को दक्षिण-पश्चिम या दरवाजे के सामने न लगाएं क्योंकि इससे पढ़ाई में मन नहीं लगता है।
– टेबल को दरवाजे या दीवार से सटाकर कभी ना लगाएं इसे वास्तु के अनुसार ठीक नहीं माना जाता है।
– उत्तर-पूर्व में हरियाली से भरे चित्र लगाना भी अच्छा रहता है।
– पढ़ाई के कमरे में ज्यादा सामान ना रखें।
– अगर संभव हो तो कमरे में पूर्व दिशा में नाचते हुए गणेश का चित्र लगाएं।
– स्मरण व निर्णय शक्ति हेतु दक्षिण में टेबल सेट कर उत्तर या पूर्व की ओर मुँह कर अध्ययन करें। उत्तर-पूर्व विद्यार्थी को योग्य बनाने में सहायक होती है।
– विद्या की देवी माँ सरस्वती को प्रणाम कर अध्ययन शुरू करें।
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बिजनेस में होने लगेगा तेजी से धन लाभ—–
सफल व्यापारी बनना आपका सपना है। अपने व्यापार में यदि आपको जबरदस्त सफलता चाहिए तो इसके लिए जरूरी है कि व्यापार स्थल पर आपकी बैठक और तिजोरी वास्तु के अनुसार हो तो आपको व्यापार में लगातार बिना किसी घाटे की सफलता मिलने लगेगी।
वास्तु शास्त्रियों के अनुसार चुंबकीय उत्तर क्षेत्र कुबेर का स्थान माना जाता है जो कि धन वृद्धि के लिए शुभ है। यदि कोई व्यापारिक वार्ता, परामर्श, लेन-देन या कोई बड़ा सौदा करें तो मुख उत्तर की ओर रखें। इससे व्यापार में काफी लाभ होता है।
इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है कि इस ओर चुंबकीय तरंगे विद्यमान रहती हैं जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं सक्रिय रहती हैं और शुद्ध वायु के कारण भी अधिक ऑक्सीजन मिलती है जो मस्तिष्क को सक्रिय करके स्मरण शक्ति बढ़ाती हैं। सक्रियता और स्मरण शक्ति व्यापारिक उन्नति और कार्यों को सफल करते हैं।व्यापारियों के लिए चाहिए कि वे जहां तक हो सके व्यापार आदि में उत्तर दिशा की ओर मुख रखें तथा कैश बॉक्स और महत्वपूर्ण कागज चैक-बुक आदि दाहिनी ओर रखें। इन उपायों से धन लाभ तो होता ही है साथ ही समाज में मान-प्रतिष्ठा भी बढ़ती है। क्यों लगाएं दौड़ते हुए घोड़े की तस्वीर? क्या आपका काम में मन नहीं लगता? काम करना तो चाहते हैं पर आपका ध्यान दूसरी ही जगह भटकता रहता है। जीवन में इतनी समस्याएं हैं कि एक जाती है तो दूसरी आ जाती है। कभी आप अपना काम सहीं से नहीं कर पाते हैं। दिमाग में एक साथ कई सारे विचार कौंधने लगते है और विचारों में आप इतना खो जाते हैं कि आप काम शुरू करने से पहले ही अपने आप को उर्जाहीन महसुस करने लगते हैं। यदि आपके साथ भी यही समस्या है तो ज्योतिष के अनुसार आपको अपने घर के स्टडी रुम में बगुले की तस्वीर लगाना चाहिए। साथ ही आप अगर हमेशा खुशी से भरे रहना चाहते हैं तो अपने कार्यस्थल पर दौड़ते हुए सफेद घोड़े का चित्र लगाएं। अगर आप छोटी- छोटी बातों पर मायुस हो जाते है तो अपने बेडरुम में नाचते हुए मोर का चित्र लगाएं। अपने ऑफिस केबिन पर टेबल की पीछे की दीवार पर पर्वत का चित्र लगाएं। घर के ईशान्य कोण में झरने का चित्र लगाएं।
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नहीं आएगी कभी आर्थिक परेशानी——
आजकल इस बढ़ती महंगाई के जमाने में अधिकांश मध्यमवर्गीय परिवारों को पैसों की तंगी का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी आर्थिक रूप से परेशान है। पैसों की तंगी से जीवन मुश्किल हो गया है।
कुछ वास्तुटिप्स ऐसे हैं जो आपको पैसों की कमी से छूटकारा दिलवा सकते हैं।
– घर में लक्ष्मी का निर्बाध आगमन होता रहे इसके लिए हो सके तो घर की पूर्व दिशा में बांस का पेड़ लगाएं, अगर ऐसा करना संभव न हो तो मुख्य द्वार के दोनों तरफ छह इंच लंबी बांस की लकड़ी लटकाएं। जीवन में आर्थिक परेशानियां कभी नहीं आएगी।
– घर के मुख्यद्वार के पर श्री गणेश की मूर्ति लगाएं।
– तिजोरी में मोती शंख लाल कपड़े में बांधकर जरूर रखें।
– शनिवार के दिन घर की विशेष रुप से साफ-सफाई जरूर करें।
– अग्रिकोण में यदि कोई जलस्त्रोत हो तो उसे तुरंत वहां से हटवाएं।
– आपके फ्लैट का मुख्य द्वार यदि लिफ्ट के सामने खुलता है तो ऐसे परिवार के मुखिया का भाग्य और भविष्य दुर्भाग्य की गर्त में चला जाता है। इस विषम परिस्थिति से बचने के लिए मुख्य द्वार पर अष्टकोणीय दर्पण को लगवाएं।
– घर का मुख्य द्वार किसी निर्माण की वजह से ढक जाए या दूर से दिखाई न दे तो इस दुष्प्रभाव से बचने के लिए घर के मुख्य द्वार के नीचे छह सुनहरे सिक्के पंक्तिबद्ध होकर गाडें।
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अगर चाहिए सुकून भरी नींद——
कहते हैं चैन की नींद हर किसी के नसीब में नहीं होती है।
हर व्यक्ति सूकून भरी नींद चाहता हैं लेकिन आजकल अधिकतर लोगों के साथ अनिद्रा की समस्या होती है। इसका कारण अधिकतर शारीरिक होता है लेकिन कई बार इसका कारण आपके घर का वास्तु भी हो सकता है। अगर आपको भी लगता है कि आपके घर का वास्तुदोष आपकी नींद में खलल डाल रहा है तो नीचे लिखे वास्तुटिप्स जरूर अपनाएं।
– किसी भी कमरे का सामान बिखरा हुआ नहीं होना चाहिए। जो वस्तु जहां से उठाई हो या जहां रखते हों वहीं रखें।
– प्रथम मंजिल में स्टोर का होना अशुभ है। नकारात्मक ऊर्जा के साथ सामान लाने ले जाने में भी असुविधा होती है। यदि आपके शयन कक्ष के ऊपर स्टोर अथवा कबाड़ा हो तो हर वक्त आपको इसका अहसास होता रहेगा और आप ठीक से सो नहीं पाएंगे।
– यदि घर में अधिक अंधेरा रहता हो, दीवारें ऊबड़-खाबड़ हों, दीवारों में दरारें हों तो शारीरिक कष्ट व संघर्षपूर्ण जीवन होता है। ऐसा नहीं होने दें।
– दीवारों पर गहरा रंग हो तो उसे हल्का करवा दें।
– यदि कीलें ठोकने या अन्य कारणों से दीवार में खड्डे हो गए हों तो तत्काल प्लास्टर करवा दें या उस पर कोई तस्वीर टांग दें ताकि खड्डे दिखाई न दें। तो घर भर जाएगा सकारात्मक ऊर्जा से अगर आप चाहते हैं कि आपका घर हमेशा सकारात्मक उर्जा से भरा रहे तो इसके लिए आप नीचे लिखें वास्तुटिप्स जरूर अपनाएं। आप अपने को घर को सकारात्मक उर्जा से भरा महसूस करेंगे।
– मेहमान को चाय या पानी सर्व करते समय केतली या जग का मुंह मेहमान की ओर न करें, इससे उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जा मेहमान को नाराज कर सकती है।
– घर में थोड़े-थोड़े दिनों में किसी ना किसी बहाने सामूहिक भोज का आयोजन अवश्य करते रहें।
– टूटी-फूटी क्राकरी में सामान परोसने से नकारात्मक ऊर्जा विचरण करती है। इससे आपका आत्मविश्वास कमजोर होता है।
– पार्टी या फं क्शन में बचा खाना-खाने से गरीबी आती है।
– आपके घर के मेहमान आएं, इसके लिए खाने की मेज के चारों तरफ तीन कुर्सियां जरूर रखें।
– यह भी ध्यान रखें कि भोजन कक्ष में ज्यादा फर्नीचर न हो। क्योंकि ज्यादा फर्नीचर से उर्जा के बहाव में बाधा उत्पन्न होती हैं। बांसुरी लगाकर हटाएं वास्तुदोष कहते हैं बांसुरी का संगीत इतना सम्मोहक होता है कि हर कोई इस संगीत की तरफ सहज ही आकर्षित हो जाता है। इसलिए कृष्ण की बांसुरी सम्मोहन खुशी और आकर्षण का प्रतीक मानी गई है।
वास्तु के अनुसार भी घर में बांसुरी रखना बहुत शुभ माना गया है।
ऐसी मान्यता है कि बांसुरी में से गुजर कर नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक उर्जा में बदल जाती है। बांस के तने, बांसुरी छत के बीम की नकारात्मक ऊर्जा के दुष्प्रभाव को रोकने में कारगर हैं। इससे आपके घर का माहौल खुशनुमा रहेगा।साथ ही बांसुरी शांति व समृद्धि कर प्रतीक है।
घर के मुख्य द्वार के समीप बांसुरी लटकाएं। इससे घर की सकारात्मक ऊर्जा में बढऩे लगती है।
घर में सुबह-शाम शंख घंटी बजाएं।शंख ध्वनि व घंटी की मधुर आवाज से प्राणिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
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सफलता चाहते हैं तो अपनाएं ये वास्तु टोटके—————–
हर व्यक्ति रोज अपना सबसे ज्यादा समय अपने कार्यस्थल पर बिताता है। यदि कार्यस्थल यानी ऑफिस या व्यवसायिक स्थल का वास्तु ठीक हो तो व्यक्ति को काम करने के लिए सकारात्मक उर्जा मिलती है। यदि कार्यस्थल का वास्तु सही हो तो वहां काम करने वाला व्यक्ति दोगुनी उर्जा से काम करने लगता है। वास्तु नियम के पालन से उसे हर कार्य में सफलता मिलने लगते हैं।
-हमेशा अपने ऑफिस का केन्द्र स्थान हमेशा खाली रखना चाहिए, इसे ब्रह्म स्थान भी कहा जाता है। इस स्थान पर कोई खंबा, स्तंभ, कील आदि नहीं लगाना चाहिए।
– कम्पयूटर हमेशा दक्षिण-पूर्व या पूर्व दिशा में रखें।
– जो सामान जल्दी बेचना चाहते हों उसे वायव्य कोण अर्थात उत्तर-पश्चिम दिशा में रखें तो शीघ्र बिकेगा।
– ऑफिस की सजावट में कभी भी कांटेदार पौधे नहीं लगाने चाहिए।
– अगर ऑफिस में वेटिंग रुम बनाना हो, तो हमेशा वायव्य कोण में ही बनाना चाहिए।
– आपके केबिन में पीठ के पीछे कोई खुली खिडकी अथवा दरवाजा नहीं होना चाहिए।
– स्वीच बोर्ड या दक्षिण-पूर्व या दक्षिण दिशा में रखें।
– अगर आपके व्यवसाय में बाधा आ रही हो तो अशोक वृ्क्ष के 9 पत्ते कच्चे सूत में बाँधकर बंदनवार के जैसे बाँध दें।
पत्ते सूखने पर उसे बदलते रहें।
सेहत और भाग्य के लिए घर में लाएं बुद्धा
फेंगशुई के अनुसार बुद्धा की मुर्ति आज के इस युग में सुख का पर्याय मानी गई है। इस मुर्ति को अधिकतर घर में मुख्यद्वार के सामने लॉबी या बैठक कक्ष में रखी जा सकती है।
– मूर्ति का मुंह हमेशा मुख्यद्वार के सामने होना चाहिए और कुछ ऊंचाई वाले स्थान पर ऐसे स्थापित करें कि यह प्रवेश करते ही दिखाई दें।
– यह सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होती है। उसका हंसता हुआ चेहरा ऊर्जा का प्रतीक है।
– इस मूर्ति को शयनकक्ष, रसोईघर, बाथरुम, और शौचघर में नहीं रखा जाता।
– हंसते हुए बुद्धा की विशेष मान्यता है कि इसे खरीदना नहीं चाहिए, उपहार में मिले तो अच्छा है।
– लाफिंग बुद्धा को घर में रखना सौभाग्य प्रसिद्धि और संतुष्टी का सूचक है। इसे देखते ही चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।
– वुलू के साथ लिए लॉफिंग बुद्धा कई रंगों में मौजुद है, लेकिन यह सबसे ज्यादा महरुन रंग में पसंद किए जाते हैं। इनकी पीठ पर लटक रही छड़ी में दौलत की गठरी भी है।
– लॉफिंग बुद्धा घर में अच्छा भाग्य और सेहत का प्रतीक है। बुद्धा कभी भी घर के लोगों को परेशान नहीं होने देता , बल्कि परेशानियों को खुशियों में बदल देता है। क्या आप तनाव से परेशान हैं?
यदि आप घर में बहुत ज्यादा मानसिक दबाव महसुस करते हैं छोटी- छोटी बातों पर आपको टेंशन हो जाता है। सोते वक्त कुछ विशेष वास्तु नियमों का जरूर ध्यान रखें।
– यदि सोते समय शरीर का कोई अंग दर्पण में दिखाई देता है, तो उस अंग में पीड़ा होने लगती है। इस तरह सोने से बचें।
– बेड को दीवार से सटाकर ना लगाएं।
– यदि बक्से वाला बेड हो तो कोशिश करें कि उसमें कम से कम सामान रहे।
– सोते समय सिर या पैर किसी भी दरवाजे की ठीक सीध में नहीं होने चाहिए। इससे मानसिक दबाव बनता है।
– घर के सदस्यों की दीर्घायु के लिए स्फटिक का बना हुआ एक कछुआ घर में पूर्व दिशा में रखें।
– मछलियों के जोड़े को घर में लटकाना बहुत शुभ एवं सौभाग्यदायक माना जाता है। इनके प्रभाव से घर में धन की बरकत और कार्यक्षेत्र में उन्नति होती है। इन्हें बृहस्पतिवार अथवा शुक्रवार को घर में टांगना शुभ होता है।
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बच्चे कभी बीमार नहीं होगें अगर…
वास्तुशास्त्र में हर समस्या का निदान छिपा है। वास्तु से अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त किया जा सकता है। कहा जाता है कि यदि वास्तु के सभी नियमों का पालन करें तो घर के सभी सदस्य निरोगी रहते है। – बच्चों के लिए सोने का कमरा घर की पूर्व या दक्षिण-पूर्व दिशा में बनवाएं।
– दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा के कमरे नविवाहित पुत्रों के लिए ठीक नहीं है। इन दिशाओं के कमरों में निवास करने से वे बीमार हो जायेंगे।
– पुत्री का कक्ष दक्षिण दिशा में रखें। पुत्र का कक्ष पश्चिम दिशा में होना चाहिए।
– बच्चों का पलंग का सिरहाना पूरब दिशा की ओर सिराहना रखें। – अच्छे स्वास्थय के लिए शयन कक्ष में क्रिस्टल का गोला या विंड चाइम लगाएं।
– घर में अगर कोई बच्चा बहुत दिनों से बीमार हैं, तो उसे नेऋत्य कोण में सुलाएं।
क्यों लगाएं घर में पेड़-पौधे?
फेंगशुई का मानना है कि पेड़-पौधे समृद्धि के प्रतीक है। घर में नकारात्मक उर्जा को नष्ट करते हैं। यदि आप भी चाहते हैं कि आपका जीवन सुखी और समृद्ध हो तो घर में पौधे जरूर लगाएं।
– गोल आकार की पत्तियों वाले पौधे ऊर्जा दृष्टिकोण से बहुत शुभ होते हैं।
– लंबे और सीधे पत्ते वाले पौधे कम शुभ होते हैं।
– नींबु का पौधा एक मांगलिक पौधा है।
– छोटे व शुभ पौधों को मकान की पूर्व दिशा में उगाएं। इससे घर के मालिक का स्वास्थय सही रहता है। परिवार के लोग भी सुखी रहते हैं।
– घर या दफ्तर में कैक्टस का पौधा न लगाएं क्योंकि ये नकारात्मक उर्जा प्रदान करते हैं।
– फूल वाले पौधे प्रमाणिक उर्जा के बहाव में मदद करता है।
– व्यवसाय में सफलता प्राप्ति के लिए अपने ऑफिस में पूर्व दिशा में फूलों का पौधा लगाएं। फूल के पौधे से आश्चर्यजनकरूप से उर्जा वृद्धि करते हैं।
– पौधों के लिए गमला लेते समय ध्यान रखें गमला प्लास्टिक का ना हो।
– पौधे को लटकाने वाली टोकरी में लगाएं और इन्हे प्रत्येक को खिड़की के आगे लटका दें। सही दिशा में खिड़कियां देती हैं समृद्धि हम सभी के घर में दो तरह की उर्जा रहती है सकारात्मक उर्जा और नकारात्मक। सकारात्मक उर्जा समृद्धि देती है। नकारात्मक उर्जा सुख चैन छीन लेती है। यदि आप चाहते हैं कि आपका घर सकारात्मक उर्जा से भरा रहे तो इसके लिए आवश्यक है कि घर में खिड़कियां सही दिशा में हों। खिड़कियों से आने वाली सूर्य की रोशनी से घर का माहौल हमेशा सकारात्मक बना रहता है।
– भवन में उत्तर दिशा की खिड़कियों को अधिक समय तक खुला रखें। इससे भवन में रहने वाले सदस्यों के स्वास्थ्य को बहुत लाभ पहुंचता है।
– वास्तुशास्त्र के अनुसार पश्चिम दिशा में पूर्व व उत्तर की तुलना में कम खिड़कियां रखनी चाहिए।
– भवन के उत्तर में कम खिड़कियां रखनी चाहिए। इससे निवासियों को स्वस्थ संबंधी समस्याओं से निजात मिलती है।
– घर के पश्चिम भाग में खिसकाने वाली खिड़की हो होने से सिर दर्द, चिड़चिड़ापन आदि की समस्या होती है।
मकान की खिड़कियों के शीशे टूटे हुए न हो, न ही उनमें कोई दरार ना पड़े। इसका ध्यान रखें नहीं तो निवासियों को रक्त से संबंधित रोग हो सकता है।
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बेडरुम में हनीमून के फोटो?
घर के किसी भी कमरे की सजावट करते समय यदि वास्तु नियमों का ध्यान भी रखा जाएं तो सबंधों में और भी ज्यादा मिठास लाई जा सकती है। घर की और विशेषकर यदि शयनकक्ष की सजावट में तस्वीर लगाते समय सावधानी रखी जाए तो रिश्ते और भी ज्यादा प्रगाड़ होने लगते हैं।
– अपने शयन कक्ष में हनीमून के क्षणों का फोटो लगाने से वैवाहिक संबंधों में आश्चर्यजनक रूप से सुधार आता है।
– दीवारों पर नीला आसमानी रंग और गुलाबी रंग सजाएं।
– यदि पति-पत्नी के अधिक विवाद होते हों तो कमरे में नाचते हुए मोर की तस्वीर लगाएं।
– अगर आप चाहते हैं कि आपके जीवन साथी के साथ आपका सामंजस्य बना रहे तो कबूतर के जोड़े का चित्र कमरे में लगाएं।
ऐसे खुलेगा किस्मत का ताला..
घर, दुकान व्यवसायिक स्थल से वास्तुदोष मिटाना आवश्यक है। वास्तुदोष व्यक्ति हर गतिविधि को प्रभावित कर उसे असफल साबित कर देते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपको सफलता मिलें तो नीचे लिखे वास्तु उपायों को अपनाकर आप भी अपने किस्मत के ताले को खोल सकते हैं।
– ईशान्य कोण में एक जल कलश रखें और उसका किसी न किसी सोमवार को पूजन करें। घी या तेल का दीपक जलाएं।एक सौ आठ बार लक्ष्मी मंत्र का जप करें । कलश के जल को चारों दिशाओं में छींटे लगाएं और बचा हुआ जल पूजन स्थल पर डाल दें। इस प्रकार लक्ष्मी का वास सदा आपके घर में रहेगा।
– घर के अंदर और बाहर तुलसी और मौसमी का पौधा लगाएं।
– सुबह-शाम सामुहिक आरती करें।
– महीने में एक या दो बार उपवास करें।
– साल में एक दो-बार हवन करें।
– घर में अधिक कबाड़ एकत्रित ना होने दें।
– शाम के समय एक बार पूरे घर की लाइट जरूर जलाएं। इस समय घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है।
– घर में हमेशा चन्दन और कपूर की खुशबु का प्रयोग करें।
-झाड़ू हमेशा छुपाकर रखें। रात्रि के समय झाड़ू लगाने से लक्ष्मी नष्ट हो जाती है।
घर में हमेशा रहेगी पॉजिटीव एनर्जी….
सबको सुख शांति चाहिए और साथ ही सफलता चाहिए। ऐसी तमाम बातों के लिए फेंगशुई में कई उपाय ऐसे कारगर उपाय बताए गए हैं। जिनका इस्तेमाल कर जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया जा सकता है।आप तीन पुराने चीनी सिक्कों को लाल रंग के धागे अथवा रिबन में बांध कर अपने घर के हैंडल में लटका सकते हैं। इससे घर के सभी लोग लाभान्वित होंगे।
ये सिक्के दरवाजे के अंदर की ओर लटकाने चाहिए न कि बाहर की ओर। घर के सभी दरवाजों के हैंडल में सिक्के न लटकाएं केवल मुख्य द्वार के हैंडल में सिक्के लटकाएं क्योंकि इससे घर में आने वाले हर व्यक्ति के प्रवेश के साथ ही घर की सकारात्मक उर्जा बढ़ती है।
आप दरवाजे के बाहर वाले हैंडल में छोटी घंटी भी लटका सकते हैं। यह घंटी आपके घर में अच्छे समय के प्रवेश का सूचक हैसिक्के घर में सम्पत्ति आ जाने के प्रतीक हैं, पिछले दरवाजे पर आपको एक भी सिक्का नहीं लटकाना चाहिए, क्योंकि पिछला दरवाजा इस बात का सूचक है कि इस मार्ग से होकर आपका कुछ न कुछ कैरियर में मिलेगी अपार सफलता…..
हर व्यक्ति अपनी शिक्षा, आर्थिक क्षमता के अनुसार अपना लक्ष्य निर्धारित करता है और उसे प्राप्त करने के लिए कोशिश करता है। अगर कोई व्यक्ति चाहता है कि उसे कैरियर में जल्द सफलता मिले तो उसे अपने घर के वास्तु में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए।
– आपके घर या दफ्तर में आपकी नेमप्लेट आगुंतको को सपष्ट रूप से नजर आनी चाहिए। कैरियर में सफलता के लिए नेमप्लेट पर रात के वक्त रोशनी डालें।
– रोज सुबह उगते सुरज हाथों में जल लेकर उज्जवल भविष्य के लिए संकल्प करें और ईश्वर से अपने शक्ति और सामथ्र्य में वृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
– कैरियर सौभाग्य वृद्धि के लिए घर के आंगन में तुलसी पौधा लगाएं।
– कैरियर में सफलता प्राप्ति के लिए उत्तर दिशा में जंपिंग फिश, डॉल्फिन या मछालियों के जोड़े का प्रतीक चिन्ह लगाए जाने चाहिए। इससे न केवल बेहतर कैरियर की ही प्राप्ति होती है बल्कि व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है।
– कैरियर बनाने के लिए घर आपका ध्यान अपने लक्ष्य की ओर रहे इसलिए शयन कक्ष मेंवायव्य में पलंग लगाएं।
– अगर आप विदेश में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं तो अपने कमरे में स्टडी टेबल पर एक ग्लोब रखें।
– दक्षिण दिशा की दिवार पर विश्व मानचित्र लटकाएं।
– घर की उत्तर दिशा में स्थित लॉबी या बॉल्कनी में एक सुन्दर सा छोटा वाटर फाउंटेन रखें। इसे रोज सुबह शाम जरूर चलाएं।
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तब घर में मिलेगा सुकून—————–
आज की भाग-दौड़ भरी और तनावपूर्ण जिंदगी में लोग यही चाहते हैं कि घर में उन्हें वह सारा सुकून मिले जिसकी उन्हें आशा है। जब भी घर सजाने की बात होती है तो हमें अलग-अलग तरह की वस्तुओं का ध्यान आता है पर आजकल इतना ही काफी नहीं है। यही वजह है कि लोग वास्तु का महत्व जानने लगे हैं। दरअसल वास्तु के अंतर्गत कुछ ऐसी बातों का समावेश है जिससे हमारी जिंदगी में पॉजिटीविटी आने लगती है।
– शयनकक्ष में मोटा कालीन बिछाना चाहिए। कालीन घर में ऊर्जा तापमान , रंगों व परिदृश्य को संतुलित व अवलोकित करते है। बैठकों और भोजन कक्षो को कालीनों से पूरा ढकना वास्तु के अनुसार सही नहीं है। – घर की सजावट पर्दे की भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। हल्के रंगों के पर्दे अधिक प्रकाश परावर्तित करते हैं। बैठक के कमरे में सकारात्मक उर्जा का स्तर बढ़ जाए इसलिए बैठक के कमरे में हमेशा हल्के रंग के परदे ही लगाए।
– शयनकक्ष में पर्दे उतने ही मोटे रखें, ताकि आवश्कता पडऩे पर एकदम से बाहरी प्रकाश अंदर आने से रोका जा सके।
– स्वास्तिक चिन्ह, लक्ष्मी गणेश के चिन्हों वाले स्टिकर या अपने धर्म के शुभ संकेतों को लगाएँ।
– ड्राइंग रूम में फर्नीचर लकड़ी का ही होना अच्छा माना जाता है। यह भी ध्यान रहे कि फर्नीचरों के कोने तीखे तथा नुकीले न होकर के गोल या चिकने होने चाहिए। तीखे कोने नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माने जाते हैं।
– बच्चों के कमरे का रंग नीला बैंगनी या हरा होना चाहिए। टेबल इस तरह से लगी होनी चाहिए कि पढऩे वाले का मुँह पूर्व या उत्तर में रहे तथा पीठ की ओर दीवार होनी चाहिए। इस कमरे में विद्या का वास होता है अत: बच्चों को जूते-चप्पल बाहर रखने की सलाह दें।
– सुन्दर लिखावट में लिखे कुछ मंत्र घर में सजाना बहुत शुभ माना जाता है।
– दर्पण प्राण उर्जा को सक्रीय करने के लिए घरों की सजावट में दर्पण का बहुमुल्य योगदान है। ये अनियमित आकार के कमरों को संतुलित करने या दुष्प्रभावो को दुर करने के लिए प्रयोग में लाते है। प्राकृतिक प्रकाश को अधिक से अधिक अंदर लाने के लिए इन्हें खिड़की के पास लगाना चाहिए।
घर का बिगड़ा वास्तु भी हो जाएगा ठीक… रसोईघर में अग्नितत्व, दिशा के स्वामी व काम आने वाली चीजों के सही रखरखाव का तालमेल हो जाए, तो घर का बिगड़ा वास्तु भी ठीक हो सकता है। केवल जरूरत है तो सिर्फ इन छोटे-छोटे वास्तुटिप्स को ध्यान में रखने की।
– खाना खाते समय गृहिणी की पीठ किचन के दरवाजे कि तरफ नहीं होना चाहिए। अन्यथा अशुभ ऊर्जा के प्रभाव से गृहिणी को कमरदर्द का सामना करना पड़ सकता है।
– फेंगशुई के अनुसार किचन में रखा चूल्हा भवन के मुख्य द्वार प्रवेश करते समय दिखना नहीं चाहिए।
– अग्रि व जल एक दूसरे के विरोधी तत्व है। इसलिए किचन में चूल्हे कि स्थिति सिंक या फ्रिज के सामने नहीं होना चाहिए।
– फेंगशुई के अनुसार किचन में रखा चूल्हा, भवन के मुख्य द्वार में प्रवेश करते समय नहीं दिखना चाहिए। उत्तर दिशा में रसोई और पूर्व दिशा में दरवाजा बंद होने पर भी ऊर्जा असंतुलित हो जाती है। पूर्व का दरवाजा खोल देने और किचन दक्षिण- पूर्व में कर देने से ऊर्जा का प्रवाह नियमित और संतुलित हो जाता है।
– किचन खुला और हवादार होना चाहिए। किचन में प्रवेश द्वार मुख्यद्वार के सामने होना चाहिए।
– किचन में चूल्हे और सिंक पास ना रखें। अगर ऐसो करना संभव नहीं है, तो सिंक चूल्हे एक क्रिस्टल बॉल लटका दें। पूरे घर में ऊर्जा प्रवाहित हो सके इसके लिए किचन को आग्रेय कोण में स्थान दें। अगर दक्षिण पश्चिम की ओर मुंह है तो घर की सुख-शांति पूरी तरह से भंग हो जाएगी।
– पश्चिम की ओर मुंह करके भोजन पकाने से त्वचा व हड्डी संबंधी रोग हो सकते हैं यदि उत्तर की ओर मुंह करके भोजन पकाया जाए तो आर्थिक हानि होने का भय रहता है।
– फेंगशुई में जल का रंग काला होता है। चूल्हा रखने का प्लेटफार्म काले रंग का नहीं होना चाहिए।
ऐसा हो घर तो निश्चित है भाग्योदय यदि कोई घर वास्तु के अनुसार बना हो तो आप अधिक ऊर्जावान बन सकते हैं। यह सकारात्मक ऊर्जा काम के साथ ही भाग्योदय में भी सहायक होती हैं। वास्तु के अनुसार ऐसा माना जाता है कि यदि घर का हर एक कोना वास्तु अनुरूप हो तो घर में आने वाले हर व्यक्ति को बहुत मानसिक शांति महसुस होती है और घर में रहने वाले हर सदस्य की तरक्की होती है।
– पूर्व दिशा ऐश्वर्य व ख्याति के साथ सौर ऊर्जा प्रदान करती हैं। अत: भवन निर्माण में इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान रखना चाहिए। इस दिशा में भूमि नीची होना चाहिए। दरवाजे और खिडकियां भी पूर्व दिशा में बनाना उपयुक्त रहता हैं। बरामदा, बालकनी और वाशबेसिन आदि इसी दिशा में रखना चाहिए। बच्चे भी इसी दिशा में मुख करके अध्ययन करें तो अच्छे अंक अर्जित कर सकते हैं।
– पश्चिम दिशा में टायलेट बनाएं यह दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा हैं अत: इसे अधिक से अधिक बंद रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इसी दिशा में बनाना चाहिए। भोजन कक्ष भी इसी दिशा में होना चाहिए।
– उत्तर दिशा से चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता हैं। चुम्बकीय तरंगे मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से इस दिशा का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। स्वास्थ्य के साथ ही यह धन को भी प्रभावित करती हैं। इस दिशा में निर्माण करते समय विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं। उत्तर दिशा में भूमि रूप से नीची होना चाहिए तथा बालकनी का निर्माण भी इसी दिशा में करना चाहिए।
– उत्तर-पूर्व दिशा में देवताओं का निवास होने के कारण यह दिशा दो प्रमुख ऊजाओं का समागम हैं। उत्तर दिशा और पूर्व दिशा दोनों इसी स्थान पर मिलती हैं। अत इस दिशा में चुम्बकीय तरंगों के साथ-साथ सौर ऊर्जा भी मिलती हैं। इसलिए इसे देवताओं का स्थान अथवा ईशान दिशा कहते हैं।
– घर का मुख्य द्वार इसी दिशा में शुभकारी होता हैं। उत्तर-पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष बनाएं यह दिशा वायु का स्थान हैं। अत: भवन निर्माण में गोशाला, बेडरूम और गैरेज इसी दिशा में बनाना हितकर होता है। सेवक कक्ष भी इसी दिशा में बनाना चाहिए।
– दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुखिया का कक्ष सबसे अच्छा वास्तु नियमों में इस दिशा को राक्षस अथवा नैऋत्व दिशा के नाम से संबोधित किया गया हैं। परिवार के मुखिया का कक्ष परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में होना चाहिए। सीढिय़ों का निर्माण भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में खुलापन जैसे खिड़की, दरवाजे आदि बिल्कुल न निर्मित करें। किसी भी प्रकार का गड्ढा, शौचालय अथवा नलकूप का इस दिशा में वास्तु के अनुसार वर्जित हैं। दक्षिण-पूर्व दिशा में किचिन, सेप्टिक टेंक बनाना उपयुक्त होता है। यह दिशा अग्नि प्रधान होती हैं। घर में नहीं होगी धन-धान्य की कमी घर में रखा गया हर सामान घर के वास्तु और हमारी विचारधारा को भी किसी ना किसी रुप में प्रभावित करता है। यदि घर का वास्तु ठीक हो तो किसी भी तरह की कोई कमी नहीं होती घर हमेशा धनधान्य से भरा रहता है।
– सामान्य तौर पर शुभ दिशा उत्तर है। ईशान कोण ऊर्जा का बेहतर क्षेत्र है। यह स्थान खुला निर्माण रहित व साफ -सुथरा होना चाहिए क्योंकि यहां से प्रवाहित होने वाली ऊर्जा पूरे घर को ऊर्जामय रखती है।
– ईशान कोण में भूलकर भी झाड़ू ना रखें।
– दक्षिण दिशा हल्की व खाली होने पर घर में ऊर्जा का संतुलन बिगड़ जाता है।
– भवन में भारी संदूक, सोफासेट , अलमारी , भारी समान का स्टोर दक्षिण- पश्चिम दिशा में रखें।
– पलंग का किनारा दक्षिण दिशा में करें। ऊर्जा संतुलन के लिए आवश्यक है। घर के धरातल का ढलान उत्तर-पूर्व व ईशान्य कोण की तरफ रखें।
– उत्तर और पूर्व दिशा नीची हल्की व खुली रखने से सूर्य का प्रकाश पूर्व से पश्चिम और चुंबकीय धाराएं उत्तर से दक्षिण बिना किसी बाधा के बहती है। धनधान्य की कमी नहीं होती।
– घर में अगर कोई बीमार हो तो उसे नेऋत्य कोण में सुलाएं।
– उत्तर- पूर्व की ओर मुंह करके पानी-पीने से पर्याप्त ऊर्जा भोजन को ऊर्जावान करके स्वास्थ्य को बहुत लाभ पहुंचाती है।
– अच्छी ऊर्जा के लिए घर के कोनों को खाली और साफ-सुथरा रखना चाहिए।
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कैसा हो पति-पत्नी का स्वीट रूम?
कई लोगों के वैवाहिक जीवन में छोटी-छोटी बातों को लेकर विवाद चलते रहते हैं। कई बार इन विवादों का कारण घर में फेंगशुई के दोष भी होते हैं। फेंगशुई के कुछ टिप्स जिनसे पति-पत्नी के बीच परस्पर प्रेम बढ़ता है- फेंगशुई के अनुसार घर के दक्षिण-पश्चिम भाग को आपसी रिश्तों के लिए एक्टिव माना जाता है। इसलिए इस भाग में सकारात्मक ऊर्जा को सक्रिय और नकारात्मक ऊर्जा को निष्क्रिय करने के लिए आप जो भी प्रयास करेंगे, वह बहुत फलदाई साबित होगा जैसे:
– अपना बिस्तर खिड़की के पास कभी भी न लगाएं। इससे पति-पत्नी के रिश्तों में तनाव और आपसी असहयोग की प्रवृत्ति बढ़ती है। फिर यदि खिड़की के पास बिस्तर लगाना पड़े तो अपने सिरहाने और खिड़की के बीच पर्दा जरूर डालें। इससे नकारात्मक ऊर्जा रिश्तों पर असर नहीं कर पाएगी।
– ऐसी चीज का प्रयोग करने से बचें जो अलगाव दर्शाती हो। छत पर बीम का होना या दो अलग-अलग मैट्रेस का प्रयोग भी अलगाव दर्शाता है।
– नवदंपतियों के लिए बिस्तर (गद्दा, चादर वगैरह) भी नया होना चाहिए। ये संभव न हो तो कोशिश करें कि ऐसी चादर या बिस्तर बिलकुल ही प्रयोग में न लाएं जिसमें छेद हो या कहीं से कटे-फटे हो।
– जिस पलंग पर दंपत्ति सोते हों उस पर किसी और को न सोने दें।
– दंपत्ति के पलंग के नीचे कुछ भी सामान न रखा जाए। जगह को खाली रहने दें। इससे आपके बेड के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा बिना किसी बाधा के प्रवाहित हो सकेगी।
– प्रवेश द्वार वाली दीवार के साथ अगर आपने अपना बेड लगा रखा है तो इससे बचें। इससे रिश्तों में कटुता आती है।
– उस दीवार से सटाकर अपना बेड न लगाएं जिसकी दूसरी ओर बाथरूम या टॉयलेट हो और न ही ऐसी जगह, जहां से बाथरूम या टॉयलेट का दरवाजा ठीक सामने दिखता हो। यदि ऐसा हो तो इसका दरवाजा हमेशा बंद कर के ही रखना चाहिए। इसकी नकारात्मक ऊर्जा रिश्तों पर विपरीत असर डालती है।
– बेड के सामने या कहीं भी ऐसी जगह शीशा नहीं लगाना चाहिए, जहां से आपके बेड का प्रतिबिंब दिखता हो। इससे संबंधों में दरार आती है और आप अनिद्रा के भी शिकार हो सकते हैं। यदि इसे टाला न जा सके तो आप शीशे पर एक पर्दा डालकर रखें।
-बेडरूम में वैसे तो कोई यंत्र टीवी, फ्रिज या कंप्यूटर आदि नहीं रखना चाहिए क्योंकि इनसे निकलने वाली हानिकारक तरंगे शरीर पर दुष्प्रभाव डालती हैं। पर यदि टीवी रखना ही पड़े तो उसे कैबिनेट के अंदर या ढंककर रखें। जब टीवी न चल रहा हो तो कैबिनेट का शटर बंद रखें।
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– रंगों का भी रिश्तों पर खासा असर होता है।
घर की दीवारों के लिए हल्का गुलाबी, हल्का नीला, ब्राउनिश ग्रे या ग्रेइश येलो रंग का ही प्रयोग करें। ये रंग शांत और प्यार को बढ़ाने वाले हैं। वास्तु: पाएं परीक्षा में अधिक अंक माता- पिता को बच्चों की पढ़ाई को लेकर हमेशा चिंता बनी रहती है। आजकल काम्पीटिशन इतना बढ़ गया है कि बच्चे भी अधिक अंक लाने के लिए खुब मेहनत करते हैं पर उनकी मेहनत का कई बार उन्हें उचित परिणाम नहीं मिलता है। कुछ बच्चों के साथ यह समस्या होती है कि उनका मन पढ़ाई करते समय एकाग्र नहीं होता है। कहा जाता है कि वास्तु और फेंगशुई से इस समस्या का निवारण संभव है।प्रकृति में सकारात्मक और नकारात्मक दो तरह की ऊर्जा प्रवाहित हो रही है। वास्तु फेंगशुई का काम है, दोनों ऊर्जाओं को संतुलित राखना और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देना। इसके लिए हमें वास्तु और फेंगशुई के कुछ साधारण नियमों का पालन करना चाहिए।
– बच्चों की पढ़ाई की मेज पर एज्युकेशन टावर रखें। जिससे ऊपर उठने की प्रेरणा मिलती है और एकाग्रता बढ़ती है।
– मेज के ऊपर किसी भी प्रकार का बीम छज्जा आदि नहीं होना चाहिए।
– मेज के ऊपर पिरामिड लगा सकते हैं। इससे पिरामिड की दीवारों से ऊर्जा टकराकर जातक के सिर पर पड़ती है। जिससे उसकी स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।
– अध्ययन कक्ष में करने की मेज कभी भी कोने में नहीं होनी चाहिए। अध्ययन के लिए मेज कक्ष के मध्य में होनी चाहिए। दीवार से कुछ हटकर होनी चाहिए।
– बच्चों का मुंह पढ़ाई करते समय पूर्व या उत्तर दिशा में रहना चाहिए। इससे सूर्य का प्रकाश प्राप्त होता रहता है। जिससे बच्चे स्वस्थ रहते हैं। अध्ययन कक्ष में एकाग्रता हमेशा बनी रहती है।
– अध्ययन की मेज पर अधिक अनावश्यक पुस्तकें नहीं होनी चाहिए।
– बच्चे की सोने की दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सिर दक्षिण दिशा में होनी चाहिए।
– बच्चों के कमरे में टेलीफोन डीवीडी आदि मनोरंजन की वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए। बाथरुम का वास्तु हो कुछ इस तरह… किसी भी घर का बाथरुम कैसा है? यह बात किसी आने वाले पर गहरा प्रभाव डालती है। बाथरुम का इंटीरियर किसी भी घर की शोभा होती है। हर घर के वास्तु में बाथरुम का भी विशेष महत्व होता है। इसलिए घर के इंटीरियर में वास्तु का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।
– बाथरूम में पानी का बहाव उत्तर की ओर रखें।
– बाथरूम घर के नैऋत्य कोण में बनवाना चाहिए।
– अगर संभव न हो तो वायव्य कोण में भी बाथरूम बनवाया जा सकता है।
-गीजर आदि विद्युत उपकरण बाथरूम के आग्नेय कोण में लगाएं।
– बाथरूम में एक बड़ी खिड़की व एक्जॉस्ट फैन के लिए रोशनदान अवश्य हो।
– बाथरूम में गहरे रंग की टाइल्स न लगाएं। हमेशा हल्के रंग की टाइल्स का उपयोग करें।
– यदि बाथरूम का दरवाजा बेडरूम में ही खुलता हो तो उसे सदैव बंद रखना चाहिए तथा उसके आगे पर्दा लगा देना चाहिए।
– बेडरूम में बाथरूम नहीं होना चाहिए क्योंकि दोनों की ऊर्जाओं का परस्पर आदान-प्रदान स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता । सही दिशा में जलस्त्रोत से होगा धन लाभ घर में पानी की पूर्ति के लिए कुआं, बोरवेल या भूमिगत पानी के टैंक का निर्माण किया जाता है। वास्तु के अनुसार घर में पानी की व्यवस्था करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि घर में जलस्त्रोत गलत दिशा में न हो, मकान के निर्माण करते समय कुछ ऐसे वास्तु नियम है। जिनका पालन करने व्यक्ति अनेक जानी-अनजानी परेशानियों से छुटकारा पा सकता है।
– वास्तु के अनुसार पूर्व में जल स्रोत या टैंक बनवाने से ग्रह स्वामी के मान सम्मान और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है।
– पश्चिम में होने पर मानहानि, शरीर की आंतरिक शक्ति और अध्यात्मिक भावना में वृद्धि होती है। – उत्तर दिशा में पानी का स्रोत लाभदायक और धन लाभ कराने वाला होता है।
– दक्षिण दिशा में जलस्रोत होना कष्टों को आमंत्रण देना है।
– पूर्व-ईशान कोण में होने पर अत्यंत शुभ व सौभाग्य प्रदान करने वाला होता है।
– उत्तर ईशान कोण में पानी का स्रोत होने पर आर्थिक उन्नति के अवसर बनते हैं।
– ये भी ध्यान रखें कि घर का किसी भी नल में से पानी का लगातार टपकना भी एक तरह का वास्तुदोष होता है। इससे घर में आमदनी से अधिक खर्च की समस्या बनी रहती है।
मन की प्रसन्नता के लिए अपनाएं वास्तु प्रयोग आजकल हर किसी की जिंदगी भागदौड़ से भरी है। हर कोई इस तरह अपने काम में लगा हुआ है कि मानसिक शांति का तो नाम ही नहीं है। किसी के भी पास अपने आप के लिए वक्त ही नहीं है। यदि आप चाहते हैं मानसिक तनाव से मुक्ति तो नीचे लिखे वास्तु प्रयोग जरूर अपनाएं।
– घर में जाले न लगने दें, इससे मानसिक तनाव कम होता है।
– दिन में एक बार चांदी के ग्लास का पानी पिये। इससे क्रोध पर नियंत्रण होता है।
– अपने घर में चटकीले रंग नहीं कराये।
– किचन का पत्थर काला नहीं रखें।
– कंटीले पौधे घर में नहीं लगाएं।
– भोजन रसोईघर में बैठकर ही करें।
– शयन कक्ष में मदिरापान नहीं करें। अन्यथा रोगी होने तथा डरावने सपनों का भय होता है।
– इन छोटे-छोटे उपायों से आप शांति का अनुभव करेंगे।
– घर में कोई रोगी हो तो एक कटोरी में केसर घोलकर उसके कमरे में रखे दें। वह जल्दी स्वस्थ हो जाएगा।
– घर में ऐसी व्यवस्था करें कि वातावरण सुगंधित रहे। सुगंधित वातावरण से मन प्रसन्न रहता है।
श्री गणेश की पूजा कर मिटाएं वास्तुदोषहिन्दू धर्म में गणपति को प्रथम पूज्य माना गया है। वास्तुशास्त्र में भी गणेश जी को कई जगह वास्तुदोषहर्ता के रूप में माना गया है। कुछ वास्तु नियम ऐसे हैं जिनकी अनदेखी करने पर उपयोगकर्ता की शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि होती है। वास्तुदेवता की प्रसन्नता की कल्पना बिना गणेश आराधना के नहीं कि जा सकती है। इसलिए गणपति जी की पूजा कर कई तरह के वास्तुदोषों को शांत किया जा सकता है।
– घर में बैठे हुए गणेशजी लगाना चाहिए।
– घर में रोज गणेशजी की आराधना से वास्तु दोष उत्पन्न होने की संभावना बहुत कम होती है।
– घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होने लगते हैं।
– भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।
– घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं। किन्तु यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुँह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं होना चाहिए।
– खड़े गणेशजी भी कायर्यस्थल पर लगाए जा सकते है। इस प्रतिमा के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए हों। इससे कार्य में स्थिरता आने की संभावना रहती है।
– भवन के ब्रह्म स्थान अर्थात केंद्र में, ईशान कोण एवं पूर्व दिशा में सुखकर्ता की मूर्ति अथवा चित्र लगाना शुभ रहता है। किन्तु टॉयलेट अथवा ऐसे स्थान पर गणेशजी का चित्र नहीं लगाना चाहिए जहाँ लोगों को थूकने आदि से रोकना हो। यह गणेशजी के चित्र का अपमान होगा।
– सफेद रंग के विनायक की मूर्ति, चित्र लगाना चाहिए।
इससे घर में हमेशा समृद्धि बनी रहती है।
– सिन्दूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। इससे घर के सदस्यों का मन स्फूर्ति से भरा रहता है।
नक्काशीदार बर्तन से घर में रहेगी बरकतभारतीय कलाकृतिया काफी प्राचीन समय से ही मशहूर रही हैं। भारत के नक्काशीदार बर्तन मुख्य आकर्षण रहे हैं। नक्काशीदार बर्तन देखने में सुन्दर तो होते ही है साथ ही वास्तु सम्मत भी होते हैं। आजकल घर के कामकाज में प्रयोग होने वाले बर्तनों पर अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नक्काशी की जाने लगी है।ये बर्तन थोड़े महंगे जरूर होते हैं पर इन्हे घर में रखना उतना ही शुभ भी होता है। इन कुछ खास बर्तनों में पीतल के बर्तन घर का वास्तुदोष दूर करेंगे। इन बर्तनों की नक्काशी इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर बनाई जाती है।
इसके अलावा इनके आकार पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। साथ ही यह भी बताया जाता है कि घर के किस हिस्से में रखने पर वास्तुदोष कम होगा।पीतल के बर्तन वैसे भी शुभ माने जाते हैं।
पीतल के बड़े आकार के इन बर्तनों पर भगवान के सूक्ष्म रूप की नक्काशी की गई है जो काफी शुभ मानी जाती है। यह सूक्ष्म नक्काशी वास्तुदोष को दूर कर घर को सुख-समृद्धि से भर देती है। इन्हें घर की दीवारों और दरवाजों पर रखा जाता है।वैज्ञानिक दृष्टि से ये बर्तन इतने शुभ हैं कि लोग इनमें गेहूँ-चावल भरकर अपने घरों में रखते हैं। इससे घर में धन-धान्य की बरकत बनी रहती है।
अधिकतर लोग इन बर्तनों को कला की दृष्टि से भी खरीदते हैं। नक्काशीदार बर्तन में जल भरकर उसमें पंचरत्न डालकर रखें और रोज उसका पानी बदले तो घर से बहुत सारे वास्तुदोष दूर होते हैं।नक्काशीदार बर्तन में घर में तुलसी का पौधा लगाने से घर में बरकत रहती है। नक्काशीदार चांदी की डिब्बी में गुरू पुष्य नक्षत्र में पीले चावल भरकर रखें। घर में हमेशा बरकत रहेगी।
तुलसी से दूर होगी शादी, संतान और नौकरी की समस्याएं तुलसी के पौधे को हिन्दू परम्परा में बहुत पूज्यनीय माना गया है। भारतीय परम्परा में तुलसी को प्राचीन समय से बहुत शुभ माना जाता है। इसे घर का वैद्य कहा गया है। इससे कई तरह की बीमारियां तो दूर होती ही है। साथ ही वास्तुशास्त्र के अनुसार भी इसे घर में रखने का विशेष महत्व माना गया है। तुलसी को घर में लगाने से कई तरह के वास्तुदोष दूर होते हैं। तुलसी के भी बहुत से प्रकार है। जिसमें जिसमें रक्त तुलसी, राम तुलसी, भू तुलसी, वन तुलसी, ज्ञान तुलसी, मुख्यरूप से विद्यमान है। तुलसी की इन सभी प्रजातियों के गुण अलग है।
– शरीर में नाक, कान वायु, कफ, ज्वर खांसी और दिल की बीमारियों पर खास प्रभाव डालती है।
तुलसी वो पौधा है जो जीवन को सुखमय बनाने में सक्षम है।
वास्तुदोष दूर करने के लिए इसे दक्षिण-पूर्व से लेकर उत्तर पश्चिम तक किसी भी खाली कोने में लगाया जा सकता है।
यदि खाली स्थान ना हो तो गमले में भी तुलसी के पौधे को लगाया जा सकता है।
– तुलसी का पौधा किचन के पास रखने से घर के सदस्यों में आपसी सामंजस्य बढ़ता है। पूर्व दिशा में यदि खिड़की के पास रखा जाए तो आपकी संतान आपका कहना मानने लगेगी।
– अगर संतान बहुत ज्यादा जिद्दी और अपनी मर्यादा से बाहर है तो पूर्व दिशा में रखे तुलसी के पौधे के तीन पत्ते रोज उसे किसी ना किसी तरह खिला दें।
– यदि आपकी कन्या का विवाह नहीं हो रहा हो तो तुलसी के पौधे को दक्षिण-पूर्व में रखकर उसे नियमित रूप से जल अर्पण करें। इस उपाय से जल्द ही योग्य वर की प्राप्ति होगी।
– यदि आपका कारोबार ठीक से नहीं चल रहा है तो तुलसी के पौधे को नैऋत्य कोण में रखकर हर शुक्रवार को कच्चा दूध चढ़ाएं।
– नौकरी में यदि उच्चाधिकारी की वजह से परेशानी हो तो ऑफिस में जहां भी खाली जगह हो वहां पर सोमवार को तुलसी के सोलह बीज किसी सफेद कपड़े में बांधकर कोने में दबा दे। इससे आपके संबंध सुधरने लगेगें। घर के सदस्यों में प्यार बढ़ाता है ये बाउल जिस तरह घर में शंख रखने को हिन्दू परम्परा में शुभ माना गया है। दक्षिणावर्ती शंख को हमारी परम्परा में लक्ष्मी का रूप और वामावर्ती शंख को नारायण माना गया है। दोनों को ही धन और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है। इसी तरह फेंगशुई में भी मधुर ध्वनि उत्पन्न करने वाली विंडचाइम और सिंगिंग बाउल को भी घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने वाला माना जाता है।
सिंगिग बाऊल चीनी मान्यता के अनुसार घर के सदस्यों में सामंजस्य बढ़ाने में सहायक होता है। यह किसी भी धातु जैसे सोना, चांदी, लोहा, स्फटिक आदि से बना हो सकता है। यह सिंगिंग बाउल कटोरेनुमा होता है। इस बाउल को लकड़ी से बजाया जाता है जिसे मुंगरी कहा जाता है।
पहले मुंगरी से कटोरी को धीरे-धीरे बजाया जाता है। उसके बाद मुंगरी को दांये से बांये घुमाने पर एक विचित्र सी ध्वनि उत्पन्न होती है।इसके नियमित प्रयोग से यह लय में बोलने लगेगी और इसका संगीत आपके कानों को मधुर लगने लगेगा। घर के सदस्यों में आपस में प्यार और सामंजस्य बढऩे लगेगा। क्यों बनाएं मुख्यद्वार के दोनों ओर स्वस्तिक? हिन्दू धर्म में किसी भी त्यौहार और उत्सव पर घर में रंगोली बनाना, स्वस्तिक बनाना और मांडने बनाना आदि का रिवाज है। ये प्रतीक चिन्ह जिनमें नदी, इन्द्रध्वज, स्वास्तिक, चन्द्रमरू आदि हैं। सभी बहुत शुभ माने जाते हैं। कई खुदाइयों में ऐसे अवशेष मिले, जिनमें तीन से चार हजार सालों पहले भी लोग अपने आवासों में अनेक प्रतीक चिन्ह बनाया करते थे। आज भी हम गांवों में देखते हैं कि मकान कच्चे हों या पक्के, उनकी बाहरी दीवारों को चित्रकला के माध्यम से सजाया जाता है।
ये चित्र बेल-बूटे नहीं, बल्कि इनमें मांगलिक चिन्हों का समावेश किया जाता है, मुख्य द्वार के दोनों ओर बना स्वस्तिक चिह्न नकारात्मक ऊर्जा को बाहर फेंककर हमारी रक्षा करता है। आजकल वास्तु दोष निवारण में स्वस्तिक पिरामिड का बहुतायत प्रयोग किया जा रहा है। मांगलिक चिन्हों का प्रयोग घर-मकानों व्यवसायिक स्थलों में परम्परागत रूप से चला आ रहा है। वास्तु निर्माण में पूजा-अर्चना के बाद से ही मांगलिक चिन्ह का प्रयोग आरंभ हो जाता है।ये चिन्ह हमारी धार्मिक भावनाओं से जुड़े होते हैं। इन्हें अपनाकर हम अपने अंदर शक्ति का अनुभव करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि मुख्यद्वार पर इन चिन्हों को लगाने से घर में हर प्रवेश करने वाले व्यक्ति के साथ सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। इन्हें बनाने या इनको प्रतीक रूप से लगाने से घर में सुख-शान्ति एवं मंगलकारी प्रभाव उत्पन्न होते हैं। ये मांगलिक चिन्ह हमारी संस्कृति व सभ्यता की धरोहर हैं। संसार हर धर्म, हर सम्प्रदाय के लोग अपने-अपने धर्म से संबंधित मांगलिक चिन्हों का प्रयोग करते हैं। घर में क्यों बनवाएं पिरामिड? वास्तुशास्त्र और फेंगशुई के अनुसार घर में पिरामिड की आकृति बनवाने का विशेष महत्व है। घर में पिरामिड बनवाने के अनेक लाभ है। पिरामिड की आकृति को सकारात्मक उर्जा को आकर्षित करने वाली मानी जाती है। इसलिए प्राचीनकाल से ही चीन में घरों के ऊपर की आकृति पिरामिडनुमा बनाने का प्रचलन था।
– यदि घर को पिरामिड की अद्भुत शक्तियों का लाभ दिलवाना हो तो घर के मध्य भाग को अथवा किसी लिविंग रूम को ऊपर से पिरामिड की आकृति का बनवाएं।
– यदि घर के किसी भाग में पिरामिड का निर्माण करवाना हो तो उसका एक त्रिभुज उत्तर दिशा की ओर रखें, शेष त्रिभुज स्वत: ही दिशाओं के अनुरूप हो जाएंगे।
– मस्तिष्क की सक्रियता के लिए पिरामिड के नीचे बैठना लाभप्रद रहता है। मानसिक थकावट दूर होगी और अनिद्रा, सिरदर्द, पीठदर्द आदि में लाभ मिलेगा।
– लंबी बीमारी व शल्य क्रिया के बाद पिरामिड के नीचे बैठने से जल्दी आराम मिलता है।
– पिरामिड के नीचे रखी दवाइयां कई दिनों तक खराब नहीं होती, साथ ही उनका असर भी बढ़ जाता है।
– घर में पिरामिड का चित्र कभी नहीं लगाना चाहिए, यह नकारात्मक ऊर्जा देता है।
– यदि आपका ईशान ऊंचा हो और नैऋत्य नीचा हो तो नैऋत्य में छत पर पिरामिड की आकृतिनुमा निर्माण करते हुए नैऋत्य को ईशान से ऊंचा किया जा सकता है।
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बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोष दूर करने के उपाय——–
एक सुंदर एवं दोषमुक्त घर हर व्यक्ति की कामना होती है। किंतु वास्तु विज्ञान के पर्याप्त ज्ञान के अभाव में भवन निर्माण में कुछ अशुभ तत्वों तथा वास्तु दोषों का समावेश हो जाता है। फलतः गृहस्वामी को विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। घर के निर्माण के बाद फिर से उसे तोड़कर दोषों को दूर करना कठिन होता है। ऐसे में हमारे ऋषि-मुनियों ने बिना तोड़-फोड़ किए इन दोषों को दूर करने के कुछ उपाय बताए हैं। उन्होंने प्रकृति की अनमोल देन सूर्य की किरणों, हवा और पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति आदि के उचित उपयोग की सलाह दी है। यहां वास्तु दोषों के निवारण के निमित्त कुछ उपाय प्रस्तुत हैं जिन्हें अपना कर विभिन्न दिशाओं से जुड़े दोषों को दूर किया जा सकता है। ईशान दिशा
यदि ईशान क्षेत्र की उत्तरी या पूर्वी दीवार कटी हो, तो उस कटे हुए भाग पर एक बड़ा शीशा लगाएं। इससे भवन का ईशान क्षेत्र प्रतीकात्मक रूप से बढ़ जाता है।
यदि ईशान कटा हो अथवा किसी अन्य कोण की दिशा बढ़ी हो, तो किसी साधु पुरुष अथवा अपने गुरु या बृहस्पति ग्रह या फिर ब्रह्मा जी का कोई चित्र अथवा मूर्ति या कोई अन्य प्रतीक चिह्न ईशान में रखें। गुरु की सेवा करना सर्वोत्तम उपाय है। बृहस्पति ईशान के स्वामी और देवताओं के गुरु हैं। कटे ईशान के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए साधु पुरुषों को बेसन की बनी बर्फी या लड्डुओं का प्रसाद बांटना चाहिए।
यह क्षेत्र जलकुंड, कुआं अथवा पेयजल के किसी अन्य स्रोत हेतु सर्वोत्तम स्थान है। यदि यहां जल हो, तो चीनी मिट्टी के एक पात्र में जल और तुलसीदल या फिर गुलदस्ता अथवा एक पात्र में फूलों की पंखुड़ियां और जल रखें। शुभ फल की प्राप्ति के लिए इस जल और फूलों को नित्य प्रति बदलते रहें।
अपने शयन कक्ष की ईशान दिशा की दीवार पर भोजन की तलाश में उड़ते शुभ पक्षियों का एक सुंदर चित्र लगाएं। कमाने हेतु बाहर निकलने से हिचकने वाले लोगों पर इसका चमत्कारी प्रभाव होता है। यह अकर्मण्य लोगों में नवीन उत्साह और ऊर्जा का संचार करता है।
बर्फ से ढके कैलाश पर्वत पर ध्यानस्थ योगी की मुद्रा में बैठे महादेव शिव का ऐसा फोटो, चित्र अथवा मूर्ति स्थापित करें, जिसमें उनके भाल पर चंद्रमा हो और लंबी जटाओं से गंगा जी निकल रही हों।
ईशान में विधिपूर्वक बृहस्पति यंत्र की स्थापना करें।
पूर्व दिशा
यदि पूर्व की दिशा कटी हो, तो पूर्वी दीवार पर एक बड़ा शीशा लगाएं। इससे भवन के पूर्वी क्षेत्र में प्रतीकात्मक वृद्धि होती है।
पूर्व की दिशा के कटे होने की स्थिति में वहां सात घोड़ों के रथ पर सवार भगवान सूर्य देव की एक तस्वीर, मूर्ति अथवा चिह्न रखें।
सूर्योदय के समय सूर्य भगवान को जल का अर्य दें। अर्य देते समय गायत्री मंत्र का सात बार जप करें। पुरूष अपने पिता और स्त्री अपने स्वामी की सेवा करें। प्रत्येक कक्ष के पूर्व में प्रातःकालीन सूर्य की प्रथम किरणों के प्रवेश हेतु एक खिड़की होनी चाहिए। यदि ऐसा संभव नहीं हो, तो उस भाग में सुनहरी या पीली रोशनी देने वाला बल्ब जलाएं।
पूर्व में लाल, सुनहरे और पीले रंग का प्रयोग करें। पूर्वी क्षेत्र में मिट्टी खोदकर जलकुंड बनाएं और उसमें लाल कमल उगाएं अथवा पूर्वी बगीचे में लाल गुलाब रोपें। अपने शयन कक्ष की पूर्वी दीवार पर उदय होते हुए सूर्य की ओर पंक्तिबद्ध उड़ते हुए हंस, तोता, मोर आदि अथवा भोजन की तलाश में अपना घोंसला छोड़ने को तैयार शुभ पक्षियों का चित्र लगाएं। अकर्मण्य और कमाने हेतु बाहर जाने से हिचकने वाले व्यक्तियों के लिए यह जादुई छड़ी के समान काम करता है।
बंदरों को गुड़ और भुने चने खिलाएं।
पूर्व में सूर्य यंत्र की स्थापना विधि विधान पूर्वक करें। आग्नेय दिशा
यदि आग्नेय कोण पूर्व दिशा में बढ़ा हो, तो इसे काटकर वर्गाकार या आयताकार बनाएं।
शुद्ध बालू और मिट्टी से आग्नेय क्षेत्र के सभी गड्ढे इस प्रकार भर दें कि यह क्षेत्र ईशान और वायव्य से ऊंचा लेकिन नैर्ऋत्य से नीचा रहे।
यदि आग्नेय किसी भी प्रकार से कटा हो अथवा पर्याप्त रूप से खुला न हो, तो इस दिशा में लाल रंग का एक दीपक या बल्ब अग्नि देवता के सम्मान में कार्य करते समय कम से कम एक प्रहर (तीन घंटे) तक जलाए रखें।
यदि आग्नेय कटा हो, तो इस दिशा में अग्नि देव की एक तस्वीर, मूर्ति या संकेत चिह्न रखें। गणेश जी की तस्वीर या मूर्ति रखने से भी उक्त दोष दूर होता है।
अग्नि देव की स्तुति में ऋग्वेद में उल्लिखित पवित्र मंत्रों का उच्चारण करें।
आग्नेय कोण में दोष होने पर वहां भोजन में प्रयोग होने वाले फल, सब्जियां (सूर्यमुखी, पालक, तुलसी, गाजर आदि) और अदरक मिर्च, मेथी, हल्दी, पुदीना, कढ़+ी पत्ता आदि उगाएं अथवा मनीप्लांट लगाएं।
आग्नेय दिशा से आने वाली सूर्य किरणों को रोकने वाले सभी पेड़ों को हटाएं। इस दिशा में ऊंचे पेड़ न लगाएं
आग्नेय का स्वामी ग्रह शुक्र दाम्पत्य संबंधों का कारक है। अतः इस दिशा के दोषों को दूर करने के लिए अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम और आदर भाव रखें।
घर की स्त्रियों को नए रेश्मी परिधान, सौंदर्य प्रसाधन, सामग्री, सजावट के सामान और गहने आदि देकर हमेशा खुश रखें। यह सर्वोत्तम उपाय है।
प्रत्येक शुक्रवार को गाय को गेहूं का आटा, चीनी और दही से बने पेड़े खिलाएं। प्रतिदिन रसोई में बनने वाली पहली रोटी गाय को खिलाएं। दोषयुक्त आग्नेय में गाय-बछड़े की सफेद संगमरमर से बनी मूर्ति या तस्वीर इतनी ऊंचाई पर लगाएं कि वह आसानी से दिखाई दे।
आग्नेय में शुक्र यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें। दक्षिण दिशा
यदि दक्षिणी क्षेत्र बढ़ा हो, तो उसे काटकर शेष क्षेत्र को वर्गाकार या आयताकार बनाएं। कटे भाग का विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा सकता है।
यदि दक्षिण में भवन की ऊंचाई के बराबर या उससे अधिक खुला क्षेत्र हो, तो ऊंचे पेड़ या घनी झाड़ियां उगाएं।
इस दिशा में कंक्रीट के बड़े और भारी गमलों में घर में रखने योग्य भारी प्रकृति के पौधे लगाएं।
यमराज अथवा मंगल ग्रह के मंत्रों का पाठ करें।
इस दिशा के स्वामी मंगल को प्रसन्न करने के लिए घर के बाहर लाल रंग का प्रयोग करें। दक्षिण दिशा के दोष अग्नि के सावधानीपूर्वक उपयोग और अग्नि तत्व प्रधान लोगों के प्रति उचित आदर भाव से दूर किए जा सकते हैंं।
इस क्षेत्र की दक्षिणी दीवार पर हनुमान जी का लाल रंग का चित्र लगाएं।
दक्षिण दिशा में विधिपूर्वक मंगल यंत्र की स्थापना करें। नैर्ऋत्य दिशा
नैर्ऋत्य दिशा के बढ़े होने से असहनीय परेशानियां पैदा होती हैं। यदि यह क्षेत्र किसी भी प्रकार से बढ़ा हो, तो इसे वर्गाकार या आयताकार बनाएं।
रॉक गार्डन बनाने अथवा भारी मूर्तियां रखने हेतु नैर्ऋत्य सर्वोत्तम है। यदि यह क्षेत्र नैसर्गिक रूप से ऊंचा या टीलेनुमा हो या इस दिशा में ऊंचे भवन अथवा पर्वत हों, तो इस ऊंची उठी जगह को ज्यों का त्यों छोड़ दें।
यदि नैर्ऋत्य दिशा में भवन की ऊंचाई के बराबर अथवा अधिक खुला क्षेत्र हो, तो यहां ऊंचे पेड़ या घनी झाड़ियां लगाएं। इसके अतिरिक्त घर के भीतर कंक्रीट के गमलों में भारी पेड़ पौधे लगाएं।
इस दिशा में भूतल पर अथवा ऊंचाई पर पानी का फव्वारा बनाएं।
राहु के मंत्रों का जप स्वयं करें अथवा किसी योग्य ब्राह्मण से कराएं। श्राद्धकर्म का विधिपूर्वक संपादन कर अपने पूर्वजों की आत्माओं को तुष्ट करें। इस क्षेत्र की दक्षिणी दीवार पर मृत सदस्यों की एक तस्वीर लगाएं जिस पर पुष्पदम टंगी हों।
मिथ्याचारी, अनैतिक, क्रोधी अथवा समाज विरोधी लोगों से मित्रता न करें। वाणी पर नियंत्रण रखें तांबे, चांदी, सोने अथवा स्टील से निर्मित सिक्के या नाग-नागिन के जोड़े की प्रार्थना कर उसे नैर्ऋत्य दिशा में दबा दें।
नैर्ऋत्य दिशा में राहु यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें। पश्चिम दिशा
यदि पश्चिम दिशा बढ़ी हुई हो, तो उसे काटकर वर्गाकार या आयताकार बनाएं। यदि इस दिशा में भवन की ऊंचाई के बराबर या अधिक दूरी तक का क्षेत्र खुला हो, तो वहां ऊंचे वृक्ष या घनी झाड़ियां लगाएं। इसके अतिरिक्त इस दिशा में घर के पास बगीचे में लगाए जाने वाले सजावटी पेड़-पौधे जैसे इंडोर पाम, रबड़ प्लांट या अंबे्रला ट्री कंक्रीट के बड़े व भारी गमलों में लगा सकते हैं।
भूतल पर बहते पानी का स्रोत अथवा पानी का फव्वारा भी लगा सकते हैं।
पद्म पुराण में उल्लिखित नील शनि स्तोत्र अथवा शनि के किसी अन्य मंत्र का जप और दिशाधिपति वरुण की प्रार्थना करें।
सूर्यास्त के समय प्रार्थना के अलावा कोई भी अन्य शुभ कार्य न करें।
पश्चिम दिशा में शनि यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें।
वायव्य दिशा यदि वायव्य दिशा का भाग बढ़ा हुआ हो, तो उसे वर्गाकार या आयताकार बनाएं अथवा ईशान को बढ़ाएं।
यदि यह भाग घटा हो तो वहां मारुतिदेव की एक तस्वीर, मूर्ति या संकेत चिह्न लगाएं। हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति भी लगाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त पूर्णिमा के चंद्र की एक तस्वीर या चित्र भी लगाएं, दोषों से रक्षा होगी।
वायुदेव अथवा चंद्र के मंत्रों का जप तथा हनुमान चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करें।
पूर्णिमा की रात खाने की चीजों पर पहले चांद की किरणों को पड़ने दें और फिर उनका सवेन करें। निर्मित भवन से बाहर खुला स्थान हो, तो वहां ऐसे वृक्ष लगाएं, जिनके मोटे चमचमाते पत्ते वायु में नृत्य करते हों।
वायव्य दिशा में बने कमरे में ताजे फूलों का गुलदस्ता रखें।
इस दिशा में एक छोटा फव्वारा या एक्वेरियम (मछलीघर) स्थापित करें। अपनी मां का यथासंभव आदर करें, सुबह उठकर उनके चरण छूकर उनका आशीर्वाद लें और शुभ अवसरों पर उन्हें खीर खिलाएं।
प्रतिदिन सुबह, खासकर सोमवार को, गंगाजल में कच्चा दूध मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं और शिव चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करें।
वायव्य दिशा में प्राण-प्रतिष्ठित मारुति यंत्र एवं चंद्र यंत्र की स्थापना करें। उत्तर दिशा यदि उत्तर दिशा का भाग कटा हो, तो उत्तरी दीवार पर एक बड़ा आदमकद शीशा लगाएं।
यदि उत्तर का भाग घटा हो, तो इस दिशा में देवी लक्ष्मी अथवा चंद्र का फोटो, मूर्ति अथवा कोई संकेत चिह्न लगाएं। लक्ष्मी देवी चित्र में कमलासन पर विराजमान हों और स्वर्ण मुद्राएं गिरा रही हों।
विद्यार्थियों और संन्यासियों को उनके उपयुक्त अध्ययन सामग्री का दान देकर सहायता करें। उत्तर दिशा के स्वामी बुध से अध्ययन सामग्री का विचार किया जाता है।
दिशा में हल्के हरे रंग का पेंट करवाएं। उत्तर क्षेत्र की उत्तरी दीवार पर तोतों का चित्र लगाएं। यह पढ़ाई में कमजोर बच्चों के लिए जादू का काम करता है।
इस दिशा में बुध यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें। इसके अतिरिक्त कुबेर यंत्र अथवा लक्ष्मी यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा कर स्थापित करें।
इस तरह ऊपर वर्णित ये सारे उपाय सहज व सरल हैं जिन्हें अपनाकर जीवन को सुखमय किया जा सकता है। लक्ष्मी आगमन के विशेष वास्तु उपचार
वास्तु शास्त्र का आधार प्रकृति है। आकाश, अग्नि, जल, वायु एवं पृथ्वी इन पांच तत्वों को वास्तु-शास्त्र में पंचमहाभूत कहा गया है। शैनागम एवं अन्य दर्शन साहित्य में भी इन्हीं पंच तत्वों की प्रमुखता है। अरस्तु ने भी चार तत्वों की कल्पना की है। चीनी फेंगशुई में केवल दो तत्वों की प्रधानता है- वायु एवं जल की। वस्तुतः ये पंचतत्व सनातन हैं। ये मनुष्य ही नहीं बल्कि संपूर्ण चराचर जगत पर प्रभाव डालते हैं। वास्तु शास्त्र प्रकृति के साथ सामंजस्य एवं समरसता रखकर भवन निर्माण के सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है। ये सिद्धांत मनुष्य जीवन से गहरे जुड़े हैं।
अथर्ववेद में कहा गया है- पन्चवाहि वहत्यग्रमेशां प्रष्टयो युक्ता अनु सवहन्त।
अयातमस्य दस्ये नयातं पर नेदियोवर दवीय ॥ 10 /8 ॥
सृष्टिकर्ता परमेश्वर पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि), प्रकाश, वायु व आकाश को रचकर, उन्हें संतुलित रखकर संसार को नियमपूर्वक चलाते हैं। मननशील विद्वान लोग उन्हें अपने भीतर जानकर संतुलित हो प्रबल प्रशस्त रहते हैं। इन्हीं पांच संतुलित तत्वों से निवास गृह व कार्य गृह आदि का वातावरण तथा वास्तु शुद्ध व संतुलित होता है, तब प्राणी की प्रगति होती है। ऋग्वेद में कहा गया है-
ये आस्ते पश्त चरति यश्च पश्यति नो जनः।
तेषां सं हन्मो अक्षणि यथेदं हर्म्थ तथा।
प्रोस्ठेशया वहनेशया नारीर्यास्तल्पशीवरीः।
स्त्रिायो या : पुण्यगन्धास्ता सर्वाः स्वायपा मसि !!
हे गृहस्थ जनो ! गृह निर्माण इस प्रकार का हो कि सूर्य का प्रकाश सब दिशाओं से आए तथा सब प्रकार से ऋतु अनुकूल हो, ताकि परिवार स्वस्थ रहे। राह चलता राहगीर भी अंदर न झांक पाए, न ही गृह में वास करने वाले बाहर वालों को देख पाएं। ऐसे उत्तम गृह में गृहिणी की निज संतान उत्तम ही उत्तम होती है। वास्तु शास्त्र तथा वास्तु कला का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार वेद और उपवेद हैं। भारतीय वाड्.मय में आधिभौतिक वास्तुकला (आर्किटेक्चर) तथा वास्तु-शास्त्र का जितना उच्चकोटि का विस्तृत विवरण ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद में उपलब्ध है, उतना अन्य किसी साहित्य में नहीं।
गृह के मुख्य द्वार को गृहमुख माना जाता है। इसका वास्तु शास्त्र में विशेष महत्व है। यह परिवार व गृहस्वामी की शालीनता, समृद्धि व विद्वत्ता दर्शाता है। इसलिए मुख्य द्वार को हमेशा बाकी द्वारों की अपेक्षा बड़ा व सुसज्जित रखने की प्रथा रही है। पौराणिक भारतीय संस्कृति के अनुसार इसे कलश, नारियल व पुष्प, केले के पत्र या स्वास्तिक आदि से अथवा उनके चित्रों से सुसज्जित करना चाहिए। मुख्य द्वार चार भुजाओं की चौखट वाला हो। इसे दहलीज भी कहते हैं। इससे निवास में गंदगी भी कम आती है तथा नकारात्मक ऊर्जाएं प्रवेश नहीं कर पातीं। प्रातः घर का जो भी व्यक्ति मुख्य द्वार खोले, उसे सर्वप्रथम दहलीज पर जल छिड़कना चाहिए, ताकि रात में वहां एकत्रित दूषित ऊर्जाएं घुलकर बह जाएं और गृह में प्रवेश न कर पाएं।
गृहिणी को चाहिए कि वह प्रातः सर्वप्रथम घर की साफ-सफाई करे या कराए। तत्पश्चात स्वयं नहा-धोकर मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर एकदम सामने स्थल पर सामर्थ्य के अनुसार रंगोली बनाए। यह भी नकारात्मक ऊर्जाओं को रोकती है। मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपर केसरिया रंग से ९ग९ परिमाण का स्वास्तिक बनाकर लगाएं। मुख्य प्रवेश द्वार को हरे व पीले रंग से रंगना वास्तुसम्मत होता है।
खाना बनाना शुरू करने से पहले पाकशाला का साफ होना अति आवश्यक है। रोसोईये को चाहिए कि मंत्र पाठ से ईश्वर को याद करे और कहे कि मेरे हाथ से बना खाना स्वादिष्ट तथा सभी के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक हो। पहली चपाती गाय के, दूसरी पक्षियों के तथा तीसरी कुत्ते के निमित्त बनाए। तदुपरांत परविार का भोजन आदि बनाए।
विशेष वास्तु उपचार—–
निवास गृह या कार्यालय में शुद्ध ऊर्जा के संचार हेतु प्रातः व सायं शंख-ध्वनि करें। गुग्गुल युक्त धूप व अगरवत्ती प्रज्वलित करें तथा क्क का उच्चारण करते हुए समस्त गृह में धूम्र को घुमाएं।
प्रातः काल सूर्य को अर्य देकर सूर्य नमस्कार अवश्य करें।
यदि परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य अनुकूल रहेगा, तो गृह का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। ध्यान रखें, आईने व झरोखों के शीशों पर धूल नहीं रहे। उन्हें प्रतिदिन साफ रखें। गृह की उत्तर दिशा में विभूषक फव्वारा या मछली कुंड रखें। इससे परिवार में समृद्धि की वृद्धि होती है।
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वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय—–
कभी-कभी दोषों का निवारण वास्तुशास्त्रीय ढंग से करना कठिन हो जाता है। ऐसे में दिनचर्या के कुछ सामान्य नियमों का पालन करते हुए निम्नोक्त सरल उपाय कर इनका निवारण किया जा सकता है।
पूजा घर पूर्व-उत्तर (ईशान कोण) में होना चाहिए तथा पूजा यथासंभव प्रातः 06 से 08 बजे के बीच भूमि पर ऊनी आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर ही करनी चाहिए।
पूजा घर के पास उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में सदैव जल का एक कलश भरकर रखना चाहिए। इससे घर में सपन्नता आती है। मकान के उत्तर पूर्व कोने को हमेशा खाली रखना चाहिए।
घर में कहीं भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखना चाहिए। उसे पैर नहीं लगना चाहिए, न ही लांघा जाना चाहिए, अन्यथा घर में बरकत और धनागम के स्रोतों में वृद्धि नहीं होगी।
पूजाघर में तीन गणेशों की पूजा नहीं होनी चाहिए, अन्यथा घर में अशांति उत्पन्न हो सकती है। तीन माताओं तथा दो शंखों का एक साथ पूजन भी वर्जित है। धूप, आरती, दीप, पूजा अग्नि आदि को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझाएं। पूजा कक्ष में, धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड हमेशा दक्षिण पूर्व में रखें।
घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले नहीं होने चाहिए। ऐसे दरवाजे अज्ञात भय पैदा करते हैं। दरवाजे खोलते तथा बंद करते समय सावधानी बरतें ताकि कर्कश आवाज नहीं हो। इससे घर में कलह होता है। इससे बचने के लिए दरवाजों पर स्टॉपर लगाएं तथा कब्जों में समय समय पर तेल डालें।
खिड़कियां खोलकर रखें, ताकि घर में रोशनी आती रहे।
घर के मुख्य द्वार पर गणपति को चढ़ाए गए सिंदूर से दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं।
महत्वपूर्ण कागजात हमेशा आलमारी में रखें। मुकदमे आदि से संबंधित कागजों को गल्ले, तिजोरी आदि में नहीं रखें, सारा धन मुदमेबाजी में खर्च हो जाएगा।
घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखरे हुए या उल्टे पड़े हुए नहीं हों, अन्यथा घर में अशांति होगी।
सामान्य स्थिति में संध्या के समय नहीं सोना चाहिए। रात को सोने से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान जरूर करना चाहिए।
घर में पढ़ने वाले बच्चों का मुंह पूर्व तथा पढ़ाने वाले का उत्तर की ओर होना चाहिए।
घर के मध्य भाग में जूठे बर्तन साफ करने का स्थान नहीं बनाना चाहिए।
उत्तर-पूर्वी कोने को वायु प्रवेश हेतु खुला रखें, इससे मन और शरीर में ऊर्जा का संचार होगा।
अचल संपत्ति की सुरक्षा तथा परिवार की समृद्धि के लिए शौचालय, स्नानागार आदि दक्षिण-पश्चिम के कोने में बनाएं।
भोजन बनाते समय पहली रोटी अग्निदेव अर्पित करें या गाय खिलाएं, धनागम के स्रोत बढ़ेंगे।
पूजा-स्थान (ईशान कोण) में रोज सुबह श्री सूक्त, पुरुष सूक्त एवं हनुमान चालीसा का पाठ करें, घर में शांति बनी रहेगी। भवन के चारों ओर जल या गंगा जल छिड़कें।
घर के अहाते में कंटीले या जहरीले पेड़ जैसे बबूल, खेजड़ी आदि नहीं होने चाहिए, अन्यथा असुरक्षा का भय बना रहेगा।
कहीं जाने हेतु घर से रात्रि या दिन के ठीक १२ बजे न निकलें।
किसी महत्वपूर्ण काम हेतु दही खाकर या मछली का दर्शन कर घर से निकलें।
घर में या घर के बाहर नाली में पानी जमा नहीं रहने दें।
घर में मकड़ी का जाल नहीं लगने दें, अन्यथा धन की हानि होगी।
शयनकक्ष में कभी जूठे बर्तन नहीं रखें, अन्यथा परिवार में क्लेश और धन की हानि हो सकती है।
भोजन यथासंभव आग्नेय कोण में पूर्व की ओर मुंह करके बनाना तथा पूर्व की ओर ही मुंह करके करना चाहिए।
वास्तुशास्त्र में कार्यालय प्रबंघन
किसी भी वास्तु खंड में सर्वश्रेष्ठ स्थिति दक्षिण दिशा की मानी गई है। वास्तु संबंघी किसी भी पुराने वास्तुशास्त्र में दक्षिण-पश्चिम को प्रमुख स्थान नहीं दिया गया है।
प्राचीन योजनाओं में दक्षिण-पश्चिम में शस्त्रागार के लिए स्थान बताया है। लगभग सभी शास्त्रों मे वास्तु खंड में दक्षिण दिशा तथा जन्मपत्रिका में दशम भाव (दक्षिण दिशा) को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है
अत: स्वामी, मैनेजिंग डायरेक्टर, चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर या स्वमी की अनुपस्थिति में कार्यालय में द्वितीय स्थान रखने वाले अघिकारी को बैठाना चाहिए। उन्हें यदि उत्तर की ओर मुंह करके बैठाया जाए तो श्रेष्ठ रहता है अन्यथा पूर्व में मुख करके भी बैठाया जा सकता है।
यदि गलती से मुख्य कार्यकारी अघिकारी अग्निकोण में बैठे व उसका अघीनस्थ अघिकारी दक्षिण में बैठे तो थोडे दिनों में ही दोनों का अहम टकराने लगेगा और अघीनस्थ अघिकारी अपने वरिष्ठ की आज्ञा का उल्लंघन करने की स्थिति में आ जाएगा।
इसी भांति यदि मुख्य अघिकारी उत्तर, पश्चिम या पूर्व में बैठे तथा कनिष्ठ अघिकारी दक्षिण, दक्षिण-पूर्व या दक्षिण-पश्चि में बैठे तो भी वरिष्ठतम अघिकारी का नियंत्रण कार्यालय पर नहीं रह पाएगा तथा कार्यालय में अराजकता फैल जाएगी।
वायव्य कोण में बैठने वाले कर्मचारी प्राय: थोडे समय बाद वहां कम बैठना शुरू कर देते हैं तथा कुछ अघिक समय बीत जाने के बाद वे अन्यत्र कहीं नौकरी पकडने की कोशिश करते हैं। उन्हें अघिक वेतन पर काम मिल भी जाता है।
यह कोण माकेटिंग करने वाले व्यक्तियों के लिए श्रेष्ठ है।
कोई भी कार्यालय प्रभारी यह चाहेगा कि माकेर्टिग से संबंघित व्यक्ति हमेशा मार्केट में ही रहे। वायव्य कोण में कुछ गुण ही ऎसा है कि व्यक्ति के मन में उच्चाटन की भावनाएं पैदा होती है, इसीलिए विवाह योग्य कन्याओं के लिए भी यही जगह प्रशस्त बताई गई है परंतु 10वीं, 12वीं में पढने वाली लडकियों के लिए वायव्य कोण में सोना खतरनाक है क्योंकि उनका मन घर में नहीं लगेगा।
अग्निकोण में उन कर्मचारियों को स्थान दिया जा सकता है जिनका दिमागी कार्य है तथा जो शोघ कार्य करते रहते हैं। नित नवीन योजनाएँ बनाने वाले कर्मचारियों को भी वहां स्थान दिया जा सकता है।
टैस्टिंग लेबोरेटरी भी यहां स्थापित की जा सकती है। अग्निकोण में यदि अघिक वर्षो तक बैठना पडे तो स्वभाव में आवेश आने लगता है। इसका नुकसान अघीनस्थ को तो झेलनासंस्थान को भी झेलना पड सकता है।
अग्निकोण में उन्हीं कर्मचारियों को बैठाया जाना चाहिए जिनसे पब्लिक रिलेशंस के कार्य नहीं कराए जाते हों।
ऎसे कर्मचारियों को किसी बीम या तहखाने के ऊपर भी नहीं बैठाया जाना चाहिए।
ईशान कोण में यदि वरिष्ठ अघिकारी बैंठे तो भी उत्तम नहीं माना जाता क्योंकि आवश्यक रूप से अन्य शक्तिशाली स्थानों पर अघीनस्थ कर्मचारियों को बैठना पडेगा। ईशान कोण में अपेक्षाकृत कनिष्ठ एवं उन लोगों को बैठाया जाना चाहिए जो वाक्पटु हों और मुस्कुराकर अभिवादन कर सकें।
प्राय: सभी स्थितियों में कर्मचारियों को उत्तराभिमुख बैठना चाहिए और ऎसा न हो सकते की स्थिति में पूर्वाभिमुख बैठनाचाहिए।
भारी-भरकम अलमारियाँ या रैक्स नैऋत्य कोण में रखा जाना उचित होता है। ऊंचे या भारी सामान को उत्तर या ईशान कोण में रखने से कार्यालय में बाघाएं उत्पन्नहो जाती है।
बीच में, मघ्य स्थान में अर्थात ब्रास्थान में भी भारी-भरकम सामान या स्थायी स्ट्रक्चर नहीं बनाया जाना चाहिए। बीम या गढा भी यहां नहीं होना चाहिए।
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;वास्तु अनुसार कहाँ हो बाथरूम… उत्तर-पूर्व में रखें पानी का बहाव
बाथरूम यह मकान के नैऋत्य; पश्चिम-दक्षिण कोण में एवं दिशा के मध्य अथवा नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में होना उत्तम है। वास्तु के अनुसार, पानी का बहाव उत्तर-पूर्व में रखें।
जिन घरों में बाथरूम में गीजर आदि की व्यवस्था है, उनके लिए यह और जरूरी है कि वे अपना बाथरूम आग्नेय कोण में ही रखें, क्योंकि गीजर का संबंध अग्नि से है।
चूँकि बाथरूम व शौचालय का परस्पर संबंध है तथा दोनों पास-पास स्थित होते हैं।
शौचालय के लिए वायव्य कोण तथा दक्षिण दिशा के मध्य या नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य स्थान को सर्वोपरि रखना चाहिए।
शौचालय में सीट इस प्रकार हो कि उस पर बैठते समय आपका मुख दक्षिण या उत्तर की ओर होना चाहिए। अगर शौचालय में एग्जास्ट फैन है, तो उसे उत्तरी या पूर्वी दीवार में रखने का निर्धारण कर लें। पानी का बहाव उत्तर-पूर्व रखें।
वैसे तो वास्तु शास्त्र-स्नान कमरा व शौचालय का अलग-अलग स्थान निर्धारित करता है,पर आजकल जगह की कमी के कारण दोनों को एक साथ रखने का रिवाज-सा चल पड़ा है।
लेकिन ध्यान रखें कि अगर बाथरूम व लैट्रिन, दोनों एक साथ रखने की जरूरत हो तो मकान के दक्षिण-पश्चिम भाग में अथवा वायव्य कोण में ही बनवाएँ या फिर आग्नेय कोण में शौचालय बनवाकर उसके साथ पूर्व की ओर बाथरूम समायोजित कर लें।
स्नान गृह व शौचालय नैऋत्य व ईशान कोण में कदापि न रखें।
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पश्चिम दिशा में रखें शयनकक्ष—–
बैडरूम कई प्रकार के होते हैं। एक कमरा होता है- गृह स्वामी के सोने का एक कमरा होता है परिवार के दूसरे सदस्यों के सोने का। लेकिन जिस कमरे में गृह स्वामी सोता है, वह मुख्य कक्ष होता है।
अतः यह सुनिश्चित करें कि गृह स्वामी का मुख्य कक्ष; शयन कक्ष, भवन में दक्षिण या पश्चिम दिशा में स्थित हो। सोते समय गृह स्वामी का सिर दक्षिण में और पैर उत्तर दिशा की ओर होने चाहिए।
इसके पीछे एक वैज्ञानिक धारणा भी है। पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव और सिर के रूप में मनुष्य का उत्तरी ध्रुव और मनुष्य के पैरों का दक्षिणी ध्रुव भी ऊर्जा की दूसरी धारा सूर्य करता है। इस तरह चुम्बकीय तरंगों के प्रवेश में बाधा उत्पन्न नहीं होती है।
सोने वाले को गहरी नींद आती है। उसका स्वास्थ्य ठीक रहता है।
घर के दूसरे लोग भी स्वस्थ रहते हैं।
घर में अनावश्यक विवाद नहीं होते हैं।
यदि सिरहाना दक्षिण दिशा में रखना संभव न हो, तो पश्चिम दिशा में रखा जा सकता है।
स्टडी; अध्ययन कक्ष वास्तु शास्त्र के अनुसार आपका स्टडी रूम वायव्य, नैऋत्य कोण और पश्चिम दिशा के मध्य होना उत्तम माना गया है।
ईशान कोण में पूर्व दिशा में पूजा स्थल के साथ अध्ययन कक्ष शामिल करें, अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध होगा। आपकी बुद्धि का विकास होता है। कोई भी बात जल्दी आपके मस्तिष्क में फिट हो सकती है। मस्तिष्क पर अनावश्यक दबाव नहीं रहता।
आकार
वर्गाकार : इस तरह का प्लॉट घर में निवास करने वाले को सुख और संपन्नता प्रदान करता है।
आयताकार : इस तरह का भू खंड मालिक को आर्थिक उन्नति में अत्यन्त सहायक होता है।
अण्डाकार : इस प्रकार की भूमि क्रय करने से बचना चाहिए। इस भूमि पर निर्मित भवन में रहने पर दु:ख और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
चक्राकार : चक्राकार जमीन का चयन यथा संभव नहीं करना चाहिए। शास्त्रानुसार इस तरह का भूखंड मालिक के धन का नाश करता है।
वृत्ताकार : समृद्धि में निरंतर वृद्धि चाहने के इच्छुक जातकों को ऎसा प्लॉट नहीं लेना
चाहिए क्योंकि इसमें निवास करने से समृद्धि कम होती है। त्रिकोणाकार : इस आकार प्रकार का भू खंड निवास करने वाले मालिक को राजकीय समस्याएं, अस्थिरता और अगिA भय प्रदान करता है।
अर्द्धवृत्ताकार : यह जमीन का टुकड़ा मकान मालिक और इसमें निवास करने वाले जातकों को दु:ख प्रदान करता है।
धनुषाकार : धनुषाकार प्लॉट में निर्मित भवन में निवास करने वाले जातकों में भय पैदा करता है।
समानान्तर चतुर्भुज : इस तरह के भू खंड का चयन नहीं करना चाहिए। अशुभ परिणाम देने वाला तथा दुश्मनी पैदा करने के कारण निवासी सुख से नहीं रह सकता।
गोमुखी : इस तरह का प्लॉट रहने के लिए शुभ होता है किंतु व्यापार के लिए अशुभ होता है।
सिंहमुखी : सिंहमुखी प्लॉट रहने के
लिए अशुभ होता है किंतु व्यापार के लिए शुभ होता है।
भूमि परीक्षण आद्रता : प्राचीन समय में भूमि का आद्रता परीक्षण किया जाता था। भूमि में गbा खोदकर पानी भरा जाता था और भूमि में नमी का पता लगाया जाता था।
दिशा प्रभाव : भूमि पर चार मुखी दीपक जलाकर यह प्रयोग करके यह जानने की कोशिश की जाती थी कि यह चारों वर्णो में से किसके लिए लाभकारी रहेगी।
जीवन्तता : सभी तरह के बीजों को बोकर जमीन की उपजाऊ सामथ्र्य का अनुमान लगाया जाता था।
विकिरण : सफेद, लाल, पीले और काले रंगों के फूलों का परीक्षण करके फूलों पर रेडियम का प्रभाव देखकर आकलन किया जाता था कि यह जमीन किस वर्ण के लिए शुभ है।
वायु संचरण : धूल उड़ाकर देखा जाता था कि हवा का रूख और उसके प्रभाव क्या रहेंगे।
इन परिणामों के आधार पर चारों वर्णो में से किसके लिए भू खंड उपयुक्त रहेगा, उसके अनुसार भूमि में गर्भविन्यासविधानम् के द्वारा ऊर्जा बतायी जाती थी।
विज्ञान के युग में हम लेबर एंटिना की मदद से कॉस्मिक एवं टेलटिक ऊर्जा की स्थिति का पता लगा लेते हैं। गृह स्वामी के लिए रेडिशियन कैसे हैं, पता कर लेते हैं। साथ ही हमें जिस प्रकार की ऊर्जा अलग अलग कमरों में बनानी होती है वैसी ऊर्जा हम यंत्रों, नगों, इत्रों, मिनरल्स, जडियों आदि द्वारा बनाकर घर को ऊर्जावान बनाकर सभी की कार्यक्षमता बढ़ा लेते हैं। कार्यक्षमता बढ़ने से घर में सुख-समृद्धि का आगमन और उल्लास का वातावरण बनता है। घर में किसी चीज की कमी नहीं होने से प्रेम बना रहता है।
घर के इंटीरियर में परदों की विशेष भूमिका है। अलग-अलग रंग के परदे घर को और भी ज्यादा खूबसरत बनाने में विशेष महत्व है। घर में सही रंग के परदे लगाकर आप अपने घर के वातावरण को शांतिपूर्ण बनाया जा सकता है।
साथ ही अनुकूल रंग के परदे लगाने से सौभाग्य में वृद्धि होती है साथ ही प्रतिकूल परिस्थितियां अनुकूल होने लगाती है।
– परदे हमेशा दो पर्तो वाले लगाएं।
– पश्चिम दिशा में यदि परदें लगाना हो तो सफेद रंग के परदे लगाएं।
-उत्तर दिशा के कमरे में नीले रंग के परदे लगाएं।
-दक्षिण दिशा के कोने का कमरा हो तो लाल रंग के परदे उपयुक्त रहेंगे।
-पूर्व दिशा का कमरा हो तो हरे रंग के परदे ठीक रहेंगे।
– पूर्वी कोने में यदि कमरा हो तो हल्के पीले या ओरेंज रंग के परदे लगाएं।
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वास्तु में सुधार——– घर का द्वार यदि वास्तु के विरुद्ध हो तो द्वार पर तीन मोर पंख स्थापित करें ,
मंत्र से अभिमंत्रित कर पंख के नीचे गणपति भगवान का चित्र या छोटी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए मंत्र है-ॐ द्वारपालाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
यदि पूजा का स्थान वास्तु के विपरीत है तो पूजा स्थान को इच्छानुसार मोर पंखों से सजाएँ, सभी मोर पंखो को कुमकुम का तिलक करें व शिवलिं की स्थापना करें पूजा घर का दोष मिट जाएगा,
प्रस्तुत मंत्र से मोर पंखों को अभी मंत्रित करें मंत्र है-ॐ कूर्म पुरुषाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा: यदि रसोईघर वास्तु के अनुसार न बना हो तो दो मोर पंख रसोईघर में स्थापित करें,
ध्यान रखें की भोजन बनाने वाले स्थान से दूर हो, दोनों पंखों के नीचे मौली बाँध लेँ, और गंगाजल से अभिमंत्रित करें मंत्र-ॐ अन्नपूर्णाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
और यदि शयन कक्ष वास्तु अनुसार न हो तो शैय्या के सात मोर पंखों के गुच्छे स्थापित करें, मौली के साथ कौड़ियाँ बाँध कर पंखों के मध्य भाग में सजाएं, सिराहने की और ही स्थापित करें, स्थापना का मंत्र है मंत्र-ॐ स्वप्नेश्वरी देव्यै नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
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वास्तुशास्त्र में पूर्व,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण तथा अग्रेय,नैऋत्य,वायव्य एवं ईशान्य-इन आठों ही दिशाओं-उपदिशाओं का महत्व है। वास्तुशास्त्र के आधार पर किसी को प्लॉट,बंगला,मकान या बड़ी इमारत बनानी हो या रहने के लिए जाना हो तो सर्वप्रथम उस जगह की दिशाओं को विचार करना आवश्यक है। प्लॉट,बंगला,इमारत या इमारत के अंदर के ब्लॉक का प्रवेशद्वार किस दिशा में है-इसका विचार करना चाहिए। पूर्व दिशा आमतौर पर सूर्योदयवाली मानी जाती है किंतु केवल सूर्योदय की दिशा को पूर्व दिशा न मानकर दिशाबोधक यंत्र के माध्यम से ही दिशा निश्चित करनी चाहिए। पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द घूमती रहने से उदित सूर्य की पूर्व दिशा में थोड़ा अंतर हो सकता है। किंतु चुंबकीय गुणोंवाले दिशाबोधक यंत्र के उपयोग से पूर्व,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण के संबंध में अचूक अनुमान लगाया जा सकता है।
विषुववृत्त की मूल कल्पना के अनुसार,पृथ्वी का दायरा बदलता रहता है और इसी कारण प्रोसीजर ऑफ दक्विनॉक्स की पद्धति का अध्ययनकरने कम्पस की रचना की गई। इसी कारण इस यंत्र द्वारा इंगित की गई दिशा मं सौ प्रतिशत ठीक होती है। जिस प्रकार मानव-जीवन में अंकों का महत्व है,उसी प्रकार यही बात दिशाओं के संबंध में भी लागू होती है। व्यक्ति पर होनेवाले या हो रहे अच्छे-बुरे प्रभाव को हम महसूस करते है। इसी पद्धति से सूर्य के इर्द-गिर्द के परिभ्रमण,उसका दिशाओं पर होनेवाले प्रभाव और सूर्य किरणों का व्यक्ति पर होनेवाला प्रभाव भी ध्यान में लेने की जरूरत है। विश्वविख्यात भविष्यवेत्ता कीरो ने अपनी पुस्तक कनसेपशन्स में उपरोक्त बात की पुष्टि की है। हिंदू संस्कृति के उपासक ऋषि-मुनियों ने भी इस बात का उल्लेख किया है।
उनकी हजारों वर्ष पहले लिखी बातों को पढ़कर और उन्हें सत्य सिद्ध होता देखकर आज हमें अचंभा होता है। उपरोक्त सभी बातों का एक ही निष्कर्ष निकलता है कि व्यक्ति के जीवन में दिशाओं का अत्यधिक महत्व है। वह किस दिशा में बने मकान में रहता है? जिस घर में वह रहता है उस मकान का दरवाजा किस दिशा में है?
उसके मकान की आंतरिक साज-सज्जा कैसी है? इस बातों से उस व्यक्ति की संपन्नता या विपन्नता का पता आसानी से लग जाता है। इसी तरह मकान में कौन-कौन से परिवर्तन किए जाएं कि रहनेवालों का भला हो सके और जो बुरा हो रहा है या होनेवाला है उस पर रोक लगे।
प्रमुख रूप से दिशाओं की विस्तृत जानकारी पुस्तक में हम आपको अन्यत्र देंगे।
पूर्व,पश्चिम,उत्तर एवं दक्षिण मुख्य दिशाएं हैं। आग्रेय,नैऋत्य,वायव्य एवं ईशान्य- ये चार उपदिशाएं है। हर दिशा एवं उपदिशा के अपने खास गुण-दोष हैं। इन गुण-दोषों के अनुसार फल मिलते रहते हैं। हर दिशा का एक स्वामी या देवता माना गया है।
पूर्व:- पूर्व दिशा को प्राची भी कहा जाता है। इस दिशा का स्वामी इंद्र है। इंद्र को देवों का राजा और हर कार्य में दक्ष माना गया है तथा वेदों में भी स्थान दिया गया है।
शत्रुओं का नाश करनेवाला यह बहुरूपिया इंद्र ब्रह्मदेव के मुंह से उत्पन्न हुआ है। यह अपनी मर्जी से किसी भी आकार या रूप में प्रकट हो सकता है। वर्षा का देवता भी इंद्र ही है। यही कारण है कि जब वर्षा नहीं होती तब मानव इंद्र से प्रार्थना करते है।
मरूत का मतलब है हवा,यह हवा उसकी सहायक होती है। धन,धान्य,पशु,इत्यादि की वृद्धि के लिए इंद्रोपासना की परम आवश्यकता है। इंद्र का निवास स्वर्ग में है।
उसकी राजधानी अमरावती है और वाहन ऐरावत नामक हाथी है। उसके घोड़े का नाम उच्च्श्रवा और शस्त्र वज्र है। सूर्य,अग्रि,इंद्र,जयन्त,ईश,पर्जन्य,सत्य,भूप एवं आकाश आदि देवताओं को निवास पूर्व दिशा में है।
पश्चिम:- पश्चिम का अर्थ है बाद में। व्यावहारिक भाषा में कहा जाए तो उदय होने के बाद जिस जगह उसकी अस्त होता है वह दिशा। इस दिशा में कोई भी कार्य आगे नहीं बढ़ पाता,पनप नहीं पाता।
इस दिशा का स्वामी वरूण है। इस दिशा पर अगस्त्य ऋषि का प्रभाव है। निवास समुद्र है। पानी परी इनका प्रभाव रहता है। उत्तर:- इस दिशा का स्वामी या देवता है।
कुबेर का अर्थ है-आनेवाली या होनेवाली घटना पर नियंत्रण एवं हमेशा बढ़ोतरी करनेवाला। संस्कृत में कुत्सित वेट शरीरं यस्यस: कहा गया है। इसके पास ऐश्वर्य का भंडार तथा अकूत धन रहता है।
यक्ष एवं किन्नरों का यह राज है। रूद्र इसका मित्र है।
कैलाश पर्वत पर इसका निवास है इसके तीन पैर,आठ हाथ और एक आंख की जगह पीले रंग का बिंदु है।
इसका ग्रह बुध है,हर महीने के कृष्णपक्ष में इसका प्रभाव अधिक होता है। कुबेर,दिती,आदिती,शैल,नाग एवं भल्लाट आदि देवताओं का निवास इसके पास होता है। दक्षिण:- इस दिशा का स्वामी या देवता यम है। यह सूर्यपूत्र है।
विष्णु इसके शत्रु है। भरणी नक्षत्र इसके लिए महत्वपूर्ण है।
इस नक्षत्र का प्रभाव आश्विन एवं कार्तिक मास के अंतिम 8-8 दिन अधिक रहता है। मानव जीवन को क्षीण बनानेवाली यह दिशा है। दक्षिण दिशा का स्वामी यह होने से दक्षिण दिशा सभी शुभ कार्यों के लिए वज्र्य मानी गई है। यम,गंधर्व,मृग,पूषा,वितथ और क्षत आदि देवताओं का निवास दक्षिण दिशा में रहता है।
अग्रेय:- पूर्व एवं दक्षिण के मध्य के कोण को आग्रेय कहा गया है। इस दिशा का स्वामी अग्रि है,इसीलिए अपने नाम अनुसार यह अग्रेय कहलाती है। महर्षि व्यास द्वारा लिखे गए अठारह पुराणों में वशिष्ठ ऋषि द्वारा कथित 14,500 श�ोकों का जिसमें अंतर्भाव है,उसी को अग्रिपुराण की संज्ञा प्राप्त है।
ऋगवेद की कई ऋचाओं के अनुसार अग्रि और इंद्र जुड़वां भाई हैं। यद्यपि अग्रि अमर है,फिर भी मानव का घर उसका अतिथि गृह है। सभी समारोहों का अधिपत्य इसी के पास है। अग्रि सबका त्राता और संरक्षक है। अग्रि भक्तिभाव और पुजा-अर्चना करनेवाले मानव की भावना को आकाश में बसे उसके ईश्वर तक पहुंचाता है। इस कल्पना में वाईब्रेशन थ्योरी कार्यरत रहती है। अग्रि का अस्तित्व आकाश में सूर्य भगवान के कारण,वातावरण में बिजली के कारण और पृथ्वी पर ज्योति या ज्वाला के कारण रहता है। अग्रि प्राणिमात्र की सभी बातों से परिचित है और वह सभी पर कृपा करती है।
अग्रि उपासक व्यक्तिआर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ और दीर्घायु होता है। अग्रि में आहुति देनेवाले मनुष्य की चिंता स्वयं अग्रि करती है।
यज्ञ-याग,होम-हवन करनेवाले मानव को अग्रि सुख-शांति,संतान एवं समृद्धि प्रदान करती है। यह बात ऋगवेद में स्पष्ट की गई है।
इसीलिए सुबह-शाम सूर्योदय एवं सूर्यास्त के कुछ क्षण पहले अग्रिहोत्र करने का प्रावधान है।
इस संदर्भ मे निम्र श�ोक का उद्धरण यहां प्रासंगिक है: सप्तहस्तचतु: शंृग सप्तजिव्हि द्विशीर्षक: त्रियात् प्रसन्न-वदन: सुखीसीन: शुचिस्मित: स्वाहां तु दक्षिणं पाश्र्वे देवो वामें स्वधांतथा बिभ्रद दक्षिणहस्तैस्तु शक्तिमननं सृचं श्रृवं तोमरं व्यंजनं वामैघतपात्रे च धारयन् आत्माभिमुखमासोनं एवं रूपो हुताशन: कराली धमिनो श्वेता लोहिता नोललोहिता सुवर्णा पद्मरागाइति विभावसों: सप्तजिव्हानामानि पोजा श्वेतो आरशा घूमा तोक्ष्णा स्फुलिंगिनो ज्वलिनो ज्वालिनी इति कुशाना: नव शक्तय:
महाभारत मे अनुशासन पर्व में पेड़ में अग्रि के अस्तित्व की बात कही गई है। कोई भी मकान बनाते समय उसका पहला स्तंभ या रसोईघर की जगह हमेशा आग्रेय दिशा में ही होनी चाहिए। यह वास्तुषास्त्र का पहला और महत्वपूर्ण नियम है। हर महीने का पहला दिन अग्रि तत्व स्वरूप होता है।
नैऋत्य:- दक्षिण एवं पश्चिम के मध्य का कोण नैऋत्य है। इस दिशा की स्वामिनी या देवता नैऋति है।
इसका मूलार्थ है-पुन:-पुन: होना-चाहे वह मनुष्य का जन्म हो या कोई अन्य घटना।
नैऋति से तात्पर्य है कि उचित समय पर उचित बात या घटना न हो तो उसका पुनर्निर्माण कभी नहीं होता। ऐसी दिशा में अगर मकान बनाया जाए तो गड्ढे खोदने पड़ते हैं,इसका अर्थ यह है कि इस दिशा में मकान बनने पर निरंतर उसका क्षरण होता रहेगा। नैऋत: यानी असुर या क्रुर कर्म करनेवाला व्यक्ति।
ऋगवेद में इस संदर्भ निम्र श�ोक है: भयमप्रथो द्वेगादाचरंव्युनैऋतो दधे:।
इस दिशा का गुणधर्म नाश करना है,बुरे काम करना है।
मकान की नेऋत्य दिशा कभी खाली नहीं रखनी चाहिए और न ही भूखंड के नैऋत्य में कोई गड्ढा ही खोदना चाहिए।
यह दिशा असुर,क्रूर कर्म करनेवाली शक्ति यास भूत-पिशाच की दिशा है। इसलिए यह दिशा कभी भी खाली या रिक्त न रखें। भूखंड में अशुभ एवं कष्टकारी बातों का संचय न हो इसलिए इस दिशा में गड्ढा खोदना निषेध है।
किसी कारणवश गड्ढा खोदना पड़े तो उससे अच्छे फल देेनेवाले वृक्ष लगाएं या फिर वह गड्ढा बंद करवा दें।
वायव्य:- उत्तर तथा पूर्व दिशा के मध्य कोण को वायव्य की संज्ञा दी गई है। इस दिशा का स्वामी या देवता वायु है। प्राण,अपान,समान,व्यान ओर उदान-इन पांच प्रकार के वायु की आवश्यकात मनुष्य जीवन के लिए अपरिहार्य है। हनुमान या भीम इसके प्रतीक स्वरूप हैं। अठारह पुराणों में वायुपुराण नामक एक अलग पुराण है। वायु यानी हनुमान का पूजन या भक्ति उपासना करनेवाले को, उसके जीवन में अविलंब फल प्राप्त होते हैं-यह अनुभव सिद्ध बात है।
ईशान्य:- उत्तर और पूर्व दिशा के मध्य का कोण ईशान्य कहलाता है। इस दिशा का स्वामी या देवता स्वयं ईश्वर है। श्री भगवान शंकर इस दिशा के अधिपति हैं इसका अस्त्र पाशुपत है। आद्र्रा नक्षत्र इसका द्योतक प्रतीक है। सेमल का वृक्ष इस दिशा में शुभ माना जाता है।
इस दिशा के देवता का ध्यान स्मरण करने से मनुष्य में कई गुण उत्पन्न होते हैं।
सभी प्रकार की दैवी शक्तियां इस दिशा को पवित्र रखने से प्राप्त होती हैं।
इस दिशा में मकान बनाने से उसमें रहनेवालों को धन-यश-संपत्ति एवं सभी प्रकार की श्रेष्ठता प्राप्त होती है।
ईशान्य दिशा में सूर्य की जो किरणें फैलती हैं उन्हे अल्ट्रा वायलेट रेज कहा जाता है।
इन किरणों को मनुष्य के उपचारार्थ काम में लाया जाता है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने इस अदृश्य शक्ति को कई नामों से संबोधित किया है।
इस दिशा को कई नाम और प्रतीक दिए गए हैं यथा-नीलकंठ,अत्युग्रु,शशिखर,नागेंद्रहार,त्रिनयन,अतिंद्रिय,गंगाधर,नागेंद्रकाय,सहस्राक्षर,सुक्ष्म,ज्वल-त्रिशूल,शंकर,वज्रदंष्ट्र,अनंत,गंडमल।
इन नामें का गहराई से अध्ययन करने पर उनके गुणधर्म और परिणामों की जानकारी प्राप्त होती है। महान भारतीय ज्ञानियों व संतों ने पंचमहाभूतों के आधार पर जिस अद्भुत ज्ञान को समाज के कल्याण के लिए सदियों पहले अपनाया था, वह था वास्तुशास्त्र जो आज भी दुर्घटनाओं और संपत्ति के नुकसान को रोकने के लिए व्यक्तियों की मदद करता है।
कई बार दिखने में सब कुछ ठीक ठाक लगने के बावजूद भी पर्याप्त सफलता नहीं मिल पाती तथा हाथ लगती है तो केवल हताशा और निराशा ।
मेगास्टार चिरंजीवी को अपने प्रशंसकों के चलते चुनावों से बहुत अधिक उम्मीद थी, और वे खुद को जीता हुआ समझ रहे थे।
पर वे अपमानजनक तरीके से चुनाव हार गए। इसके बाद लोगों ने चुनाव में हार के कारणों को खोजना शुरूकिया और काफी खोजबीन के बाद यह पता चला कि यह सब वास्तु दोष की वजह से है।
परिणामस्वरूप वास्तु के अनुसार घर में कुछ आवश्यक फेरबदल के साथ-साथ मेगा स्टार चिरंजीवी को भविष्य में समृद्धि हेतु सामने के मुख्य द्वार वाले मार्ग का उपयोग करने की सलाह दी, जबकि अब तक वे कार्यालय में आने जाने के लिए घर के पिछवाड़े वाले मार्ग का उपयोग कर रहे थे।
इन वास्तु परिवर्तनों ने अपेक्षित परिणाम दिया——
इस प्रकार हम देखते हैं कि वास्तु जाने अनजाने में हमारे परिवेष तथा हमारे जीवन पर अपना पूर्ण प्रभुत्व रखता है।
आज वास्तु का संबंध केवल घर, आफिस अथवा निर्माण कायों तक ही सीमित नहीं हैं।
बल्कि यह तो प्राकृतिक उर्जा को संतुलित करने वाला ऐसा ज्ञान है जिससे जीवित व अजीवित दोनों प्रकार की वस्तुओं का नियंत्रण किया जा सकता है।
इंसान यदि सकारात्मक चेष्टा करे तो उसके लिए कुछ भी कर पाना संभव है।
सकारात्मक चेष्टा के लिए उचित प्रयास व सकारात्मक ज्ञान की आवश्यकता होती है।
फिल्म व्यवसाय जहां भवन के रूप में आॅफिस से लेकर स्टूडियो तथा मेकअप से लेकर अभिनय तक के क्रिया कलाप होते है। वहां हर समय बहुत अधिक उर्जा की आवश्यकता होती है।
ऐसे में सिनेमा से जुड़े लोगों को हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी और साथ ही उनके परिवेश की उर्जा को संतुलित रखा जाय।
इसके लिए वास्तु संबंधी कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए। यदि आप अभिनेता हैं तो आपको अभिनय करते हुए हमेशा पूरब अथवा दक्षिण पूर्व हिस्से का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। इस दिशा से अभिनय करने वाले का मुख पूरब की ओर होना चाहिए।
क्योंकि दक्षिण पूर्व की दिशा शुक्र की दिशा है और शुक्र सिनेमा, रंगमंच व मीडिया के क्षेत्र के नियंता है।
शुक्र ग्रह का संबंध सांसारिक सुखों, रास, रंग, भोग, ऐश्वर्य, आकर्षण तथा लगाव से है।
शुक्र दैत्यों के गुरु हैं और कार्य सिद्धि के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद के प्रयोग से भी नहीं चूकते।
सौन्दर्य में शुक्र की सहायता के बिना सफलता असंभव है।
ऐसा अधिकतर देखा गया है कि शुक्र ग्रह से प्रभावित युवक व युवतियां फिल्मों में काफी सफल रहे हैं। कुछ अन्य ग्रह जो कुछ दूर तक तो इनका सहयोग करते हैं, लेकिन जैसे ही दूसरे प्रतियोगियों के ग्रह भारी पड़ते हैं, कमजोर ग्रह वाले प्रतिभागी पिछड़ने लगते हंै।
यह सच है कि फिल्मों की सफलता के निर्णायक लोग जो आम इंसान होते हैं, भी शनि, मंगल, गुरु जैसे ग्रहों से प्रभावित होते हैं।
अतः उन्हें प्रभावित करने के लिए शुक्र का मजबूत होना जरूरी है, और इसके लिए परिवेश का वास्तु सही चाहिए।
फिल्म व सौन्दर्य शास्त्र का विधान पूरी तरह से वास्तु, ज्योतिषकर्म और चिकित्सकों के पेशे जैसा ही है।
ऐसे में निर्णायक जन समुदाय शुक्र से प्रभावित तो होते हैं लेकिन उन पर गुरु-चंद्रमा का भी प्रभाव होता है जो उन्हें विवेकवान बनाता है।
अभिनय एवं संगीत में दक्षता प्रदान करने वाला ग्रह शुक्र ही है। शुक्र सौन्दर्य, प्रेम, कलात्मक अभिरुचि, नृत्य, संगीतकला एवं बुद्धि प्रदान करता है। अभी कलियुग का 5109 वां वर्ष चल रहा है। इस समय कलियुग और शुक्र ग्रह की युति सौंदर्य के विश्वव्यापी बाजार के मूल में है।
अतः इस दौर में मिलने वाली सफलता ने लोगों को फिल्म, टेलीविजन और विज्ञापन के साथ संबद्ध कर दिया है।
ऐसे में सिनेमा से जुड़े लोगों को कुछ आवश्यक बातो का खास ध्यान रखना चाहिए।
कभी भी दक्षिण पश्चिम और उत्तर पश्चिम दिशा में टेलीफोन न रखें और न ही इन दिशाओ में इसका प्रयोग कर। ऐसा करने से आप दिक्भ्रमित हो सकते हैं।
फोन को दक्षिण पूर्व अथवा पर्व दिशा में रखना अच्छा होता है।
फिल्म का व्यवसाय शुक्र ग्रह से जुड़ा है। शुक्र की दिशा दक्षिण पूरब की दिशा है अतः महत्वपूर्ण दस्तावेज, फाइलें व कागजात इसी दिशा में अथवा ईषान कोण में रखी जानी चाहिए।
कलाकारों के लिए श्वेत रंग के परिधान धारण करना उत्तम व शुभ माना जाता है।
इसलिए यदि शूटिंग आदि में अधिक जरूरी न हो तो श्वेत और काले रंग के कपड़े ही पहनें।
रत्न में यदि हीरा धारण करे तो उत्तम फल की प्राप्ति निश्चित है।
क्योंकि हीरा शुक्र का प्रिय रत्न है। अतः इसके धारण करने से मीडिया व सिनेमा में वांक्षित सफलता की संभावना प्रबल हो जाती है।
गाय की पूजा करें और घर में बांसुरी रखें।
फिल्म से जुड़े व्यक्ति द्वारा चांदी, सोना, चावल, घी, श्वेत वस्त्र, सफेद घोड़़़ा, दही और मिश्री का प्रयोग करने से सफलता की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
पूरी दुनिया भर में फिल्म से जुडे स्थान व उनका परिवेशएक विशेष प्रकार की उर्जा से युक्त होते हैं।
जिनके आस पास रहने वाले लोगों की दिनचर्या व प्रकृति में एक प्रकार का विशिष्टीकरण देखा जाता है।
मिलान, मुंबई, पेरिस, लाॅस एंजिल्स आदि शहर फिल्म, फेशन और सौंदर्य के लिए जाने जाते हंै।
इन सफल नगरों की अवस्थिति वृहत जल राशी के समीप अथवा समुद्र के पास है। जल तत्व चंद्रमा के प्रभाव में होने से सौंदर्य और समृद्धि का कारण बनता है। इसी वजह से दुनिया में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े स्थान जहां भी जल तत्व का प्राचुर्य है धन और संपत्ति की संपन्नता है। किंतु इस उद्योग की सफलता और धन वृष्टि ने दांपत्य जीवन में किसी तीसरे की संभावना को बढ़ाया है। और यही वजह कि ऐसे शहर टूटते रिश्तो के दर्द से पीड़ित हैं। जिसका प्रभाव उनकी आने वाली पीढ़ी पर भी पड़ रहा है।
पति पत्नी के रिश्तो में किसी तीसरे के आने से परिवार बिखर रहे हैं। ऐसे में यदि थोड़ी सी आध्यात्मिक व वास्तु संबंधी सावधानी बरती जाय तो इस अनचाही मुसीबत से छुटकारा पाया जा सकता है। उपरोक्त चर्चा से यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि सिनेमा जगत जहां एक ओर समाज के लिए कुछ अच्छा करने हेतु अभिप्रेत है। वहीं वह अपनी आधारभूत गलतियों की वजह से पीड़ित व व्यथित भी है। इससे अवसाद व बिगड़ते रिश्तो को अनजाने में कहीं बढ़ावा न मिले, इसके लिए सजग व जागरूक होने की आवश्यकता है। और इसके लिए हमें अपने उत्कृष्ट प्राचीन ज्ञान-वास्तु का सहारा लेने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए।
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वास्तुशास्त्र का उदभव ‘वैदिक शास्त्रों में वास्तु का अर्थ है गृह निर्माण योग्य भूमि—–
अर्थात् जिस भूमि पर अधिक सुरक्षा व सुविधा प्राप्त हो सके, इस प्रकार के मकान को भवन व महल आदि जिसमें मनुष्य रहते हैं या काम करते हैं वास्तु कहते है।
इस ब्रह्मण्ड में सबसे शाक्तिशाली प्राकृति है क्योंकि यही सृष्टि का विकास करती है।
यही ह्रास प्रलय, नाशा करती है।
वास्तु शास्त्र इन्हीं प्राकृतिक शाक्तियों का अधिक प्रयोग कर अधिकतम सुरक्षा व सुविधा प्रदान करता है।
ये प्राकृतिक शाक्तियां अनवरत चक्र से लगातार चलती रही है।
(1) गुरूत्व बल, (2) चुम्बकीय शाक्ति, (3) सौर ऊर्जा पृथ्वी में दो प्रकार की प्रावृति शक्तियां हैं।
(1) गुरूत्व बल, (2) चुम्बकीय शक्ति गुरूत्व :- गुरूत्व का अर्थ है पृथ्वी की वह आकर्षण शक्ति जिससे वह अपने ऊपर आकाश में स्थित वजनदार वस्तुओं को अपनी ओर खींच लेती है।
उदाहरण के लिए थर्मोकोल व पत्थर का टुकडा। ऊपर से गिराने पर थर्मोकोल देरी से धरती पर आता है जबकि ठोस पत्थर जल्दी आकर्षित करती है। इसी आधार पर मकान के लिए ठोस भूमि प्रशांत मानी गई है।
चुम्बकीय शक्ति :-
यह प्राकृति शक्ति भी निरन्तर पुरे ब्राह्मण्ड में संचालन करती है। सौर परिवार के अन्य ग्रहों के समान पृथ्वी अपनी कक्षा और अपने पर घुमने से अपनी चुम्बकीय शक्ति को अन्त विकसित करती है। हमारा पुरा ब्रह्मण्ड एक चुम्बकीय क्षेत्र है। इसके दो ध्रुव है। एक उत्तर, दूसरा दक्षिण ध्रुव। यह शक्ति उत्तरसे दक्षिण की ओर चलती है।
सौर ऊर्जा :-
पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत सूर्य है। यह एक बडी ऊर्जा का केन्द्र है। सौर ऊर्जा पूर्व से पश्चिम कार्य करती है। पंच महाभूतों का महत्व दर्शन, विज्ञान एवं कला से संबंधित प्राय सभी शास्त्र यह मानते है कि मानव सहित सभी प्राणी पंचमहाभूतों से बने हैं। अत: मानव का तन, मन एवं जीवन इन महाभूतों के स्वत: स्फूर्त और इनके असन्तुलन से निश्क्रिय सा हो जाता है।
वास्तु शास्त्र में इन्हीं पॉंच महाभूतों का अनुपात में तालमेल बैठाकर प्रयोग कर जीवन में चेतना का विकास संभव है।
(1) क्षिति (2) जल (3) पावक (4) गगन (5) समीरा अर्थात् , पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश।
धरती :-
धरती के बिना जीवन एवं जीवन की गतिविधियों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
जल :-
जीवन के लिए जल की आवश्यकता होती है।
जल ही जीवन है। इस सृष्टि से यह शास्त्र भवन निर्माण हेतु कुआं, नलकूप, बोरिंग, नल, भूमिगत टंकी, भवन के ऊपर पानी की टंकी आदि का विचार करना।
अग्नि :-
जीवन में पृथ्वी, जल के बाद अग्नि का क्रम आता है। जिस प्रकार मानव जीवन में जब तक ताप है, गर्मी है तब तक जीवन है इसके ठण्डा पडते ही जीवन समाप्त हो जाता है। अग्नि तत्व प्रकाश के रूप में ऊर्जा का संचार कारता है।
वायु :-
वायु की भी महत्वपूर्ण भूमिका है, वायु के बिना जीवन संभव नहीं है। तब तक वायु सक्रिय व शुद्ध है ? तब तक जीवन है।
आकाश :-
पंचमहाभूतों में आकाश का महत्व कम नहीं है। यह चारों तत्वों में सब से बड़ा और व्यापक है। इसका विस्तार अनन्त है। आकाश ही न होता तो जीवन ही नहीं होता।
वास्तु और विज्ञान सूर्य की ऊर्जा को अधिक समय तक भवन में प्रभाव बनाए रखने के लिए ही दक्षिण और पश्चिम भाग की अपेक्षा पूर्व एवं उत्तर के भवन निर्माण तथा उसकी सतह को नीचा रखे जाने का प्रयास किया जाता है।
प्रात:कालीन सूर्य रशिमयों में अल्ट्रा वॉयलेट रशिमयों से ज्यादा विटामिन ”डी” तथा विटामिन ”एफ” रहता है
। वास्तु शास्त्र में भवन का पूर्वी एवं उत्तरी क्षेत्र खुला रखने का मुख्य कारण यही है कि प्रात:कालीन सूर्य रशिमयों आसानी से भवन में प्रविष्ट हो सकें। इसी प्रकार दक्षिण और पश्चिम के भवन क्षेत्र को ऊचां रखने या मोटी दीवार बनाने के पीछे भी वास्तु शास्त्र का एक वैज्ञानिक तथ्य है। क्योकि जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिण दिशा में करती है तो उस समय पृथ्वी विशेष कोणीय स्थिति लिए होती है। अतएव इस भाग में अधिक भार होने से सन्तुलन बना रहता है और सूर्य के अति ताप से बचा जा सकता है। इस प्रकार इस भाग में गर्मियों में ठण्डक और सर्दियों में गरमाहट बनी रहती है।
खिड़कियों और दरवाजें के बारे में भी वास्तु शास्त्र वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखता है। इसलिए भवन के दक्षिण या पश्चिम भाग में पूर्व या उत्तर की अपेक्षा छोटे एवे कम दरवाजे खिड़कियाँ रखने के लिए कहा जाता है, ताकि गर्मियों में इस क्षेत्र में कमरों में ठण्डक तथा सर्दियों में गरमाहट महसूसकी जा सके। वास्तु शास्त्र के अनुसार रसोईघर को आगनेय यानी दक्षिण-पूर्व दिशा में रखा जाना चाहिए।
इसका वैज्ञानिक आधार यह है कि इस क्षेत्र में पूर्व से विटामिन युक्त प्रात:कालीन सूर्य की रशिमयों तथा दक्षिण से शुद्ध वायु का प्रवेश होता है, क्योंकि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिणायन की ओर करती है।
अत: इस कोण की स्थिति के कारण भवन के इस भाग को विटामिन ”डी” एवं विटामिन ”एफ” से युक्त अल्ट्रा वॉयलेट किरणें अधिक समय तक मिलती हैं।
इससे रसोईघर में रखी खाद्य सामग्री लम्बे समय तक शुद्ध रहती है। वास्तु शास्त्र पूजाघर या आराधना स्थल को उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण में बनाने के लिए भी वैज्ञानिक तथ्य देता है। पूजा के समय हमारे शरीर पर अपेक्षाकृत कम वस्त्र या पतले वस्त्र होते हैं, ताकि प्रात:कालीन सूर्य रशिमयों के माध्यम से विटामिन ‘डी` हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से प्रविष्ट हो सके।
उत्तरी क्षेत्र में हमें पृथ्वी की चुम्बकीय ऊर्जा का अनुकूल प्रभाव प्राप्त होता है।
इस क्षेत्र को सबसे अधिक पवित्र माना गया है, क्योंकि इसके द्धारा अंतरिक्ष से अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है।
यही मुख्य कारण है कि मंदिरों एवं साधना स्थलों के प्रवेश द्वार इन्हीं दिशाओं में बनाए जाते हैं।
हमारे वायुमण्डल में 20 प्रकार के मैग्नेटिक फील्ड पाए जाते हैं वैज्ञानिकों के मतानुसार, इनमें से चार प्रकार के मैग्नेटिक फील्ड हमारी शारीरिक गतिविधियों को ऊर्जा प्रदान करने में अत्यंत सहायक होते हैं।
वास्तु शास्त्र ने भी अपने क्रिया-कलापों में इनकी व्यापक सहायता ली है।
बिना तोड़-फोड़ के वास्तु सुधार आजकल पूर्व निर्मित गृह को वास्तु अनुसार करने हेतु तरह-२ की सलाह दी जाती है जो ठीक जो है लेकिन उसको कार्य रूप देना हर परिवार या इंसान के लिए एक कठिन कार्य हो गया है।
जैसा कि विज्ञान ने आज बहुत ज्यादा उन्नति कर ली है उसी तरह वास्तु विज्ञान में भी आज बिना किसी तोड़-फोड़ किए उसमें सुधार करने के नए-नए तरीके सुझाये जा सकते हैं।
उपरोक्त दोषों के मूल निवारक इस प्रकार हैं :-
1वास्तु दोष निवारक यन्त्र।
2सिद्ध गणपति स्थापना।
3पिरामिड यन्त्र। ४ हरे पौधे। ५ दर्पण। ६ प्रकाश। ७ शुभ चिन्ह। ८ जल। ९ क्रिस्टल बाल। १०रंग। ११घंटी। १२ बांसुरी । १३स्वास्तिक यन्त्र। १४ वास्तुशांति हवन। १५ मीन। १६शंख। १७ अग्निहोत्र।
हमारे पहले वास्तु दोषों को समझना होगा ये निम्न प्रकार के होते हैं :-
१ भूमि दोष :- भूमि का आकार, ढ़लान उचित न होगा। भूखण्डकी स्थिति व शल्य दोष इत्यादि। भवन निर्माण दोष :- पूजा घर, नलकूप, (जल स्त्रोत), रसोई घर, शयनकक्ष, स्नानघर, शौचालय इत्यादि का उचित स्थान पर न होना।
भवन साज-सज्जा दोष :- साज-सज्जा का सामान व उचित चित्र सही स्थान पर न रखना।
४ आगुन्तक दोष :- यह नितांत सत्य है कि आगुन्तक दोष भी कभी-
२ आदमी की प्रगति में बाघा उत्पन्न करता है वह उसको हर तरह से असहाय कर देता है।
इस दोष से बचने हेतु मुख्य द्वार पर सिद्ध गणपति की स्थापना की जा सकती है। उपरोक्त दोषों को किसी भी वास्तु शास्त्री से सम्पर्क कर आसानी से जाना जा सकता है।
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वास्तुदोष निवारक यन्त्र :——-
वास्तु दोषों के विभिन्न दिशाओं में होने से उससे सम्बन्धित यन्त्र उपयोग में लाकर उन दोषों का निवारण किया जा सकता है। इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि यन्त्र जानकर व्यक्ति द्वारा विधि पूर्वक बनाये गये हों व उनकी शुद्धि भी कर ली गई हो।
यन्त्र का उपयोग किसी भी जानकर वास्तुशास्त्री से सलाह लेकर विधि पूर्वक करना चाहिए।
मुख्य यन्त्र :——
पूर्व में दोष होने पर – सूर्य यन्त्र पूर्व की तरफ स्थापित करें।
पश्चिम में दोष होने पर – वरूण यन्त्र या चन्द्र यन्त्र पूजा में रखें।
दक्षिण में दोष होने पर – मंगल यन्त्र पूजा में रखें।
उत्तर में दोष होने पर – बुध यन्त्र पूजा में रखें।
ईशान में दोष होने पर – ईशान में प्रकाश डालें व तुलसी का पौधा रखें।
पूजा में गुरू यन्त्र रखें।
आग्नेय में दोष होने पर – प्रवेश द्वार पर सिद्ध गणपति की स्थापना एवं शुक्र यन्त्र पूजा में रखें।
नैरूत में दोष होने पर – राहु यन्त्र पूजा में स्थापित करें।
वायव्य में दोष होने पर – चन्द्र यन्त्र पूजा में रखें।
उपरोक्त के अलावा अन्य भी कई यन्त्र हैं, जैसे व्यापार वृद्धि यन्त्र, वास्तुदोष नाशक यन्त्र, श्री यन्त्र इत्यादि।
वास्तुदोष नाशक यन्त्र को द्वार पर लगाया जा सकता है।
भूमि पूजन के समय भी चांदी के सर्प के साथ वास्तु यन्त्र गाड़ा जाना बहुत फलदायक होता है।
विभिन्न प्रकार के आवासीय कक्ष आधुनिक जीवन के आवासीय भवनो में अनेक प्रकार के कक्षों – रसोईघर, शौचालय, शयन कक्ष, पूजाघर, अन्न भण्डार, अध्ययन कक्ष, स्वागत कक्ष आदि का अपना-अपना महत्वपूर्ण स्थान होता है।
ऐसे में इन कक्षों आदि को किस दिशा में बनाना उपयोगी होगा यह भी जानना अति आवश्यक है।
स्थान निर्धारण ——
अब हम विभिन्न आवश्यक कक्षों का निर्धारण उनकी दिशा-विदिशा सहित निम्नवत् सारिणी द्वारा प्रस्तुत कर रहे हैं
– कक्षों के नाम वास्तु सम्मत दिशा एवं कोण रसोईघर आग्नेय कोण में शयन कक्ष दक्षिण दिशा में स्नानघर पूर्व दिशा में भोजन कराने का स्थान पश्चिम दिशा में पूजाघर ईशान कोण में शौचालय नैर्ऋत्य कोण में भण्डार घर उत्तर दिशा में अध्ययन कक्ष नैर्ऋत्य कोण एवं पश्चिम दिशा के बीच स्वागत कक्ष या बैठक पूर्व दिशा में पशुघर वायव्य कोण में तलघर या बेसमेंट पूर्व या उत्तर दिशा में चौक भवन के बीच में कुआं पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं ईशान कोण में घृत-तेल भण्डार दक्षिणी आग्नेय कोण में अन्य वस्तु भण्डार दक्षिण दिशा में अन्न भण्डार पश्चिमी वायव्य कोण में एकांतवास कक्ष पश्चिमी वायव्य कोण में चिकित्सा कक्ष पूर्वी ईशान कोण में कोषागार उत्तर दिशा
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वास्तु में द्वार व अन्य वेध—–
मुख्य द्वार से प्रकाश व वायु को रोकने वाली किसी भी प्रतिरोध को द्वारवेध कहा जाता है अर्थात् मुख्य द्वार के सामने बिजली, टेलिफोन का खम्भा, वृक्ष, पानी की टंकी, मंदिर, कुआँ आदि को द्वारवेध कहते हैं। भवन की ऊँचाई से दो गुनी या अधिक दूरी पर होने वाले प्रतिरोध द्वारवेध नहीं होते हैं।
द्वारवेध निम्न भागों में वर्गीकृत किये जा सकते हैं-
कूपवेधः—- मुख्य द्वार के सामने आने वाली भूमिगत पानी की टंकी, बोर, कुआँ, शौचकूप आदि कूपवेध होते हैं और धन हानि का कारण बनते हैं। स्तंभ वेधः मुख्य द्वार के सामने टेलिफोन, बिजली का खम्भा, डी.पी. आदि होने से रहवासियों के मध्य विचारों में भिन्नता व मतभेद रहता है, जो उनके विकास में बाधक बनता है।
स्वरवेधः—– द्वार के खुलने बंद होने में आने वाली चरमराती ध्वनि स्वरवेध कहलाती है जिसके कारण आकस्मिक अप्रिय घटनाओं को प्रोत्साहन मिलता है। चूल मजागरा (Hinges) में तेल डालने से यह ठीक हो जाता है।
ब्रह्मवेधः—- मुख्य द्वार के सामने कोई तेलघानी, चक्की, धार तेज करने की मशीन आदि लगी हो तो ब्रह्मवेध कहलाती है, इसके कारण जीवन अस्थिर व रहवासियों में मनमुटाव रहता है। कीलवेधः मुख्य द्वार के सामने गाय, भैंस, कुत्ते आदि को बाँधने के लिए खूँटे को कीलवेध कहते हैं, यह रहवासियों के विकास में बाधक बनता है।
वास्तुवेधः—– द्वार के सामने बना गोदाम, स्टोर रूम, गैराज, आऊटहाऊस आदि वास्तुवेध कहलाता है जिसके कारण सम्पत्ति का नुकसान हो सकता है।
मुख्य द्वार भूखण्ड की लम्बाई या चौड़ाई के एकदम मध्य में नहीं होना चाहिए, वरन किसी भी मंगलकारी स्थिती की तरफ थोड़ा ज्यादा होना चाहिए। मुख्य द्वार के समक्ष कीचड़, पत्थर ईंट आदि का ढेर रहवासियों के विकास में बाधक बनता है।
मुख्य द्वार के सामने लीकेज आदि से एकत्रित पानी रहने वाले बच्चों के लिए नुकसानदायक होता है। मुख्य द्वार के सामने कोई अन्य निर्माण का कोना अथवा दूसरे दरवाजे का हिस्सा नहीं होना चाहिए।
मुख्य द्वार के ठीक सामने दूसरा उससे बड़ा मुख्य द्वार जिसमें पहला मुख्य द्वार पूरा अंदर आ जाता हो तो छोटे मुख्य द्वार वाले भवन की धनात्मक ऊर्जा बड़े मुख्य द्वार के भवन में समाहित हो जाती है और छोटे मुख्य द्वारवाला भवन वहाँ के निवासियों के लिए अमंगलकारी रहता है।
मुख्यद्वार के पूर्व, उत्तर या ईशान में कोई भट्टी आदि नहीं होना चाहिए और दक्षिण, पश्चिम, आग्नेय अथवा नैऋत्य में पानी की टंकी, खड्डा कुआँ आदि हानिकारक है।
यह मार्गवेध कहलाती है और परिवार के मुखिया के समक्ष रूकावटें पैदा होने का कारक है।
भवन वेधः— मकान से ऊँची चारदीवारी होना भवन वेध कहलाता है। जेलों के अतिरिक्त यह अक्सर नहीं होता है। यह आर्थिक विकास में बाधक है। दो मकानों का संयुक्त प्रवेश द्वार नहीं होना चाहिए। वह एक मकान के लिए अमंगलकारी बन जाता है।
मुख्यद्वार के सामने कोई पुराना खंडहर आदि उस मकान में रहने वालों के दैनिक हानि और व्यापार-धंधे बंद होने का सूचक है।
छाया-वेधः—- किसी वृक्ष, मंदिर, ध्वजा, पहाड़ी आदि की छाया प्रातः 10 से सायं 3 बजे के मध्य मकान पर पड़ने को छाया वेध कहते हैं।
यह निम्न 5 तरह की हो सकती है—–
मंदिर छाया वेधः—-
भवन पर पड़ रही मंदिर की छाया शांति की प्रतिरोधक व व्यापार व विकास पर प्रतिकूल प्रभाव रखती है। बच्चों के विवाह में देर व वंशवृद्धि पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
ध्वज छाया वेधः—
ध्वज, स्तूप, समाधि या खम्भे की छाया के कारण रहवासियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
वृक्ष छायावेधः
भवन पर पड़ने वाली वृक्ष की छाया रहवासियों के विकास में बाधक बनती है।
पर्वत छायावेधः—-
मकान के पूर्व में पड़ने वाली पर्वत की छाया रहवासियों के जीवन में प्रतिकूलता के साथ शोहरत में भी नुकसानदायक होती है। भवन कूप छायावेधः—- मकान के कुएँ या बोरिंग पर पड़ रही भवन की छाया धन-हानि की द्योतक है।
द्वारवेध के ज्यादातर प्रतिरोध जिस द्वार में वेध आ रहा है उसमें श्री पर्णी∕सेवण की लकड़ी की एक कील जैसी बनाकर लगाने से ठीक होते पाये गये हैं।

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