आज मेरी जन्मदाती माँ “”स्वर्गीय श्रीमती कमला देवी”” की “”पंचम पुण्यतिथि/ स्मृति दिवस” हें…
 
मेरी माँ द्वारा प्रदत्त ज्ञान,संस्कार एवं सहयोगी एवं समाजसेवा/मदद करने के गुण को में आज भी प्रचार-प्रसार कर उन्ही के नाम को सार्थक करने के प्रयास कर रहा हूँ..
 
मैं आज मेरी माँ का स्‍मरण कर रहा हूँ,जो आज हमारे बीच नहीं हैफिर भी उनकी दी हुई शिक्षा और आदर्श हमें मार्ग दर्शन करती हैं !
 
माँ के बारे में जितना भी कहा जाए / लिखा जाये  कम है! 
माँ हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और माँ और पिताजी दोनों ही हमारे लिए भगवान का रूप हैं! उन्हीं की वजह से हम इस दुनिया में कदम रखें हैं और जब भी मैं तन्हा महसूस करता हूँ, तब माँ  ही है जिसे मैं बहुत याद करता है और माँ की गोद में सर रखने जैसा सुकून और कहीं नहीं मिलता….
 
.. अप्रेल 2.1. , आज पूरे पांच  साल हुए माँ को दुनिया छोड़ कर गए हुए , श्रद्धांजलि स्वरूप कुछ पंक्तियाँ उनके लिये …भावांजलि.—-
 
मेरी स्वर्गवासी माँ के लिए ये चार लाइन—-
ऊपर जिसका अंत नहीं,
उसे आसमां कहते हैं,
जहाँ में जिसका अंत नहीं,
उसे माँ कहते हैं!
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माँ को सादर नमन कर, दूँ श्रद्धांजलि मित्र ।
असमय घटनाएं करें, हालत बड़ी विचित्र ।
हालत बड़ी विचित्र,  दिगम्बर सहनशक्ति दे ।
 पाय आत्मा शान्ति, उसे अनुरक्ति भक्ति दे ।
बुद्धिमान हैं आप, सँभालो खुद को रविकर ।
रहा सदा आशीष,  नमन कर माँ को सादर ।।
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जिन्दगी भर बचपन बोला करता……
यादों की बगीची में माँ का चेहरा ही हमेशा ही डोला करता……
न भूले वो माँ की गोदी , आराम की वो माया सी…..
जीवन की धूप में घनी छाया सी…..
पकड़ के उँगली जो सिखाती हमको , जीवन की डगर पर चलना….
हाय अद्भुत है वो खजाना , वो ममता का पलना…..
गीले बिस्तर पर सो जाती , और शिकायत एक नहीं….
चौबीस घंटे वो पहरे पर , अपने लिये पल शेष नहीं….
होता है कोई ऐसा रिश्ता भी , भला कोई भूले से…..
छू ले जैसे ठण्डी हवा , जीवन की तपन में हौले से….
न मन भूलता है वो महक माँ के आँचल की…
न वो स्वाद माँ की उँगलियों का…..
जीवन भर साथ चले जैसे , उजली उजली…..
दुआ ही दुआ ,विश्वास बनी वो फ़रिश्ता सी मेरी माँ…
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“माँ की ममता को भुला सकता है कोन,
और कौन भुला सकता है वो प्यार,
किस तरह बताए माँ के बिना कैसे जी रहए 
मां को आज श्रद्धा सुमन उन्हें अर्पित करते है”
माँ है मंदिर, मां तीर्थयात्रा है,
माँ प्रार्थना है, माँ भगवान है,
माँ के बिना हम बिना माली के बगीचा हैं!
 
सादर श्रद्धानवत  ——
(पंडित दयानन्द शास्त्री”अंजाना”)

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