.9 अप्रेल,..1.  को मनेगी श्री रामनवमी (शुक्रवार)—–


मनाये भगवान राम का जन्मोत्सव धूमधाम से……
 
पं. दयानन्द शास्त्री  (मोब .–.) के  अनुसार इस बार नवरात्र के आठ दिन तक योग-संयोग की भरमार रहेगी। साथ ही, इस बार नवरात्र का गुरुवार से शुरू होना श्रेष्ठ व समृद्धिकारक माना जा रहा है।


नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ——


नवरात्र का शाब्दिक अर्थ है ‘नौ रात्रियां’ अर्थात मां जगदंबा के नौ विशिष्ट रूपों का दर्शन, अराधना और पूजन। विभिन्न लग्न, मुहूर्तो में मंत्र जाप और उपासना का विशिष्ट फल मिलता है।


पं. दयानन्द शास्त्री  (मोब .–09024390067) के  अनुसार इस  बार ग्रह चाल और सूर्य-चंद्रमा की गति के कारण नवरात्र घट स्थापना सर्वार्थसिद्धि योग में होगी। इससे मां की आराधना करने वाले सभी भक्तों को योग-संयोग के अनुसार फल मिलेगा। इस बार रामनवमी का पर्व अष्टमी में मनाया जाएगा।


ऐसा अष्टमी तिथि की वृद्धि के कारण होगा। चूंकि मध्याह्न् कालीन नवमी में प्रभु राम का जन्म हुआ था, इसलिए नवरात्र में दो दिन अष्टमी रहेगी। 19 अप्रैल को आ रही दूसरी अष्टमी की तिथि सुबह 6:55 बजे समाप्त हो जाएगी। इसके बाद नवमी शुरू होगी। 19 अप्रैल शुक्रवार को ही रामनवमी का पर्व मनाया जाएगा।आने वाले आठ दिनों की योग-संयोगों में 11 को सर्वार्थसिद्धि योग, 12 को राजयोग, 13 व 14 को रवियोग, 15 को सर्वार्थसिद्धि योग व अमृत सिद्धियोग पूरे दिन रहेगा। 16 को फिर रवियोग बनेगा जो 17 को दोपहर 12:47 तक रहेगा। 18 अप्रैल को सर्वार्थसिद्धि योग पूरे दिन रहेगा।


इसी दिन दोपहर बाद 3:31 से गुरुपुष्य व अमृत सिद्धि योग शुरू हो जाएगा। १९ को रामनवमी होगी। इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य आरंभ और वाहन, स्वर्णाभूषण व प्रॉपर्टी लेन-देन के लिए श्रेष्ठ रहेंगे। वहीं पूजा-अर्चना के लिए श्रेष्ठ फलदायी रहेगा।इस दिन भगवान श्रीराम के साथ हनुमानजी की आराधना करने से शनि की ढैया तथा साढ़ेसाती से प्रभावित जातकों को अनुकूलता प्राप्त होगी


रामनवमी का महत्त्व—–


  
पं. दयानन्द शास्त्री  (मोब .–09024390067) के  अनुसार त्रेता युग में अत्याचारी रावन के अत्याचारो से हर तरफ हाहाकार मचा हुआ था । साधू संतो का जीना मुश्किल हो गया था । अत्याचारी रावण ने अपने प्रताप से नव ग्रहों और काल को भी बंदी बना लिया था । कोई भी देव या मानव रावण का अंत नहीं कर पा रहा था । तब पालनकर्त्ता भगवान विष्णु ने राम के रूप में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लिया । यानि भगवान श्री राम भगवान विष्णु के ही अवतार थे।


मंगल भवन अमंगल हारी,
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ॥


अगस्त्यसंहिताके अनुसार चैत्र शुक्ल नवमीके दिन पुनर्वसु नक्षत्र, कर्कलग्‍नमें जब सूर्य अन्यान्य पाँच ग्रहोंकी शुभ दृष्टिके साथ मेषराशिपर विराजमान थे, तभी साक्षात्‌ भगवान्‌ श्रीरामका माता कौसल्याके गर्भसे जन्म हुआ।चैत्र शुक्ल नवमी का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। आज ही के दिन तेत्रा युग में रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहाँ अखिल ब्रम्हांड नायक अखिलेश ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था।


दिन के बारह बजे जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण कि‌ए हु‌ए चतुर्भुजधारी श्रीराम प्रकट हु‌ए तो मानो माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो ग‌ईं। उनके सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे।


पं. दयानन्द शास्त्री  (मोब .–09024390067) के  अनुसार श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था। देवता, ऋषि, किन्नार, चारण सभी जन्मोत्सव में शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। आज भी हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाते हैं और राममय होकर कीर्तन, भजन, कथा आदि में रम जाते हैं।


रामजन्म के कारण ही चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी कहा जाता है। रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था।भगवान श्रीराम जी ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बताया पर उससे उनका आशय यह था कि आम इंसान शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सके और भगवान की भक्ति कर सके। उन्होंने न तो किसी प्रकार के धर्म का नामकरण किया और न ही किसी विशेष प्रकार की भक्ति का प्रचार किया।
    
पं. दयानन्द शास्त्री  (मोब .–09024390067) के  अनुसार रामनवमी, भगवान राम की स्‍मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें “मर्यादा पुरुषोतम” कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्‍मदिन की स्‍मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्‍य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्‍य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्‍या में उनके जन्‍मोत्‍सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्‍य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है।


उस दिन जो कोई व्यक्ति दिनभर उपवास और रातभर जागरणका व्रत रखकर भगवान्‌ श्रीरामकी पूजा करता है, तथा अपनी आर्थिक स्थितिके अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मोंके पापोंको भस्म करनेमें समर्थ होता है।


पं. दयानन्द शास्त्री  (मोब .–09024390067) के  अनुसार रामनवमी के मौके पर भारत ही क्या विदेशों के मंदिरों में भी शोभा देखते ही बनती है। ऐसा लगता है पूरी दुनिया श्री राम की भक्ति में डूबी हुई है। हिन्दू धर्म में राम का नाम बहुत महत्त्व रखता है। हिन्दू होने के कारण मैंने भी बचपन से यही देखा है कि किस तरह मेरे घर में कोई भी पूजा राम नाम और ॐ जय जगदीश की आरती के बिना पूरी नहीं होती है। अरे! एक राम का नाम पत्थर पर लिख कर पूरी सेना ने इतना बड़ा समुन्दर पार कर लिया था तो हमारी नैया तो पार लग ही जाएगी। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है, जिन्होंने पृथ्वी से पाप और असूरों का नाश करने के लिए जन्म लिया था। भगवान राम कोई और नहीं बल्कि विष्णु भगवान के ही अवतार हैं। और जब बात स्वयं श्री राम के जन्म की हो तो उत्साह और जोश और भी बढ़ जाता है। 


भगवान श्री राम की जन्मकुंडली का विवेचन / फलादेश—-



पं. दयानन्द शास्त्री  (मोब .–09024390067) के  अनुसार भगवान राम का जन्म कर्क लगन में हुआ था। उनके लगन में उच्च का गुरु एवं स्वराशी का चंद्रमा था । भगवान श्री राम का जन्म दोपहर के 12 बजे हुआ था, इसी कारण भगवान राम विशाल व्यक्तित्व के थे और उनका रूप अति मनहोर था । 


लग्न में उच्च का गुरु होने से वह मर्यादा पुरुषोतम बने । चौथे घर में उच्च का शनि तथा सप्तम भाव में उच्च का मंगल था, अतः भगवान श्री राम मांगलिक थे । इसके कारण उनका वैवाहिक जीवन कष्टों से भरा रहा । उनकी कुंडली के दशम भाव में उच्च का सूर्य था, जिससे वे महा प्रतापी थे ।


कुल मिलकर भगवान राम के जन्म के समय चार केन्द्रो में चार उच्च के ग्रह विराजमान थे।आश्चर्य की बात यह है कि जैसी कुंडली भगवान राम की थी वैसी ही रावण की भी थी। 
राम की कुंडली कर्क लगन थी और रावन की मेष।
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पं. दयानन्द शास्त्री  (मोब .–09024390067) के  अनुसार विभिन्न राशि के जातक रामनवमी पर क्या करें…..????

कुंभ- सुंदरकांड के साथ श्रीराम रक्षा कवच। 
मीन – अयोध्याकांड के साथ बाल कांड का पाठ।
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क्या करें क्या नहीं करें इस रामनवमी को..????


मेष- बहुप्रतीक्षित कार्य के सम्पन्न होने से आपके प्रभाव में वृद्धि होगी।
क्या करें- श्रीराम रक्षा स्त्रोत का पाठ। 
क्या न करें- पश्चिम की तरफ सर कर के ना सोएं।


वृष- धन, सम्मान, यश, कीर्ति में वृद्धि होगी।
क्या करें- श्रीराम स्तुति। 
क्या न करें- संध्याकाल में अध्यन ना करें।


मिथुन- शिक्षा प्रतियोगिता के क्षेत्र में चल रहे प्रयास फलीभूत होंगे।
क्या करें- इंद्रकृत रामस्त्रोत का पाठ। 
क्या न करें- दक्षिण मुख भोजन ना करें।


कर्क- व्यावसायिक प्रयास परिवर्तन की दिशा में हितकर होगा।
क्या करें- श्रीरामाष्टक का पाठ। 
क्या न करें- तेल लगाकर शमशान भूमि की तरफ ना जाएं।


सिंह- नया स्थान नए लोग आपके लिए लाभदायी होंगे।
क्या करें- श्रीसीता रामाष्ट्‌कम का पाठ। 
क्या न करें- सोते व्यक्ति को ना जगाएं।


कन्या- सामाजिक कार्यो में रुचि लेंगे।
क्या करें- श्रीराम मंगलाशासनम का पाठ। 
क्या न करें- महानिशा (मध्य रात्रि) में स्नान ना करें।


तुला- आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।
क्या करें- श्रीराम प्रेमाष्ट्‌कम का पाठ। 
क्या न करें- देर रात किसी उपवन (पार्क) या चौराहे पर ना जाएं।


वृश्चिक- स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें।
क्या करें- श्रीराम चंद्राष्ट्‌कम का पाठ। 
क्या न करें- सांध्य काल में शयन ना करें।


धनु- संतान के दायित्व की पूर्ति होगी।
क्या करें- जटायुकृत श्री रामस्त्रोत का पाठ। 
क्या न करें- टूटी शय्या अर्थात खाट का प्रयोग ना करें, यह दुर्भाग्य कारक है।


मकर- धन, सम्मान, यश, कीर्ति में वृद्धि होगी।
क्या करें- श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ लाभ देगा।
क्या न करें- लाल रंग का वस्त्र प्रयोग ना करें।


कुम्भ- जीविका के क्षेत्र में आशातीत सफलता मिलेगी।
क्या करें- बजरंग बाण का पाठ करें।
क्या न करें- पितरों का अनादर ना करें।


मीन- मैत्री संबंध प्रगाढ़ होंगे। यात्रा भी संभव है।
क्या करें- श्री रामचरित मानस में रामजन्म प्रसंग का पाठ करें।
क्या न करें- किसी का दिल ना दुखाएं।
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यह होंगे लाभ :—–


रामनवमी पर श्रीराम व हनुमान आराधना से उक्त राशि के जातकों को शत्रु शमन, उच्च पद की प्राप्ति, मानसिक शांति, नेतृत्व क्षमता, मनोबल में वृद्घि, संबंधों में मधुरता तथा प्रगति के अवसरों की प्राप्ति के साथ समय की अनुकूलता प्राप्त होगी।


ऐसे करें पूजा——


पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उस पर कलश को विधिपूर्वक स्थापित करें। कलश पर मूर्ति की प्रतिष्ठा करें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति होने की आशंका हो, तो उस पर शीशा लगा दें। मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वास्तिक व उसके दोनों भुजाओं में त्रिशूल बनाकर दुर्गा जी का चित्र, पुस्तक व शालीग्राम को विराजित कर विष्णु का पूजन करें।

हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्‍यक सामग्री रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख हैं। पूजा के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्‍य परिवार के सभी सदस्‍यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है।
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रामनवमी पर भगवान श्री राम की स्तुति इस प्रकार करें  :——


श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् .
नवकञ्ज लोचन कञ्ज मुखकर कञ्जपद कञ्जारुणम् .. 1..
कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम् .
पटपीत मानहुं तड़ित रुचि सुचि नौमि जनक सुतावरम् .. 2..
भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम् .
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम् .. 3..
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणम् .
आजानुभुज सर चापधर सङ्ग्राम जित खरदूषणम् …4..
इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम् .
मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादिखलदलमञ्जनम् .. 5..

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