——–श्री बदरीनारायणष्टकम्——–
पवन मन्द सुगन्ध शीतल हेम मदिंर शोभितम्।
श्री निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।।
गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्। १।।
शेष सुमिरन करत निशिदिन धरत ध्यान महेश्वरम्।
श्रीवेद ब्रह्मा पढत अस्तुति श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।।
गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्।। २।।
इन्द्र चन्द्र कुबेर दिनकर धूप दीप प्रकाशितम्।
श्री सिद्ध मुनिजन करत जै-जै श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।।
गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम।। ३।।
शक्ति गौरि गणेश शारद नारद मुनि जन उच्चारणम्।
श्री योगध्यान अपार लीला बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।।
गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्।। ४।।
दक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गन्ध प्रकाशितम्।
श्री लक्ष्मी कमला चँवर डोले श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।।
गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्।। ५।।
कैलाश में एक देव निरञ्जन शैल शिखर महेश्वरम।
श्री राजा युधिष्ठिर करत अस्तुति श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।।
गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्।। ६।।
श्री बद्रीनाथ जी के हाथों में कंकण, कानों में कुण्डल हीरारत्न जड़ावितम्।
श्री साँवली सूरत मोहनी मूरत श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।।
गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्।। ७।।
कोटि ब्रह्मा कोटि विष्णु कोटि देव महेश्वरम्।
श्री कोटि ऋषि-मुनि करत जै-जै श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।।
गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्।। ८।।
श्री बद्रीनाथ जी के अष्ट रत्न पढत पाप विनाशनम्।
श्री कोटि तीरथ भयहु पुण्यं प्राप्यते फलदायकं श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।।
गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्।। ९।।
हरि: ॐ पवन मन्द सुगन्ध शीतल हेम मदिंर शोभितम्।
श्री निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।।
गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्। १।।
बद्री विशाल भेजो रसाल, बादल जैसी रोटी दरिया जैसी दाल,
भोग लगावें तेरे बाल गोपाल, जो जावे बदरी कभी न आवे उदरी,
जो आवे उदरी कभी न होवे दरिद्री,
बोलो बद्री विशाल लाल भगवान की जय।