यदि वास्तु अनुसार बना हो आशियाना(भवन/मकान/घर)…आएँगी खुशिया बेहिसाब–
घर के निर्माण में जिस तरह विभिन्न दिशाओं को महतवपूर्ण माना गया है, उसी तरह घर के प्रवेश द्वार की सही दिशा व स्थान भी बेहद आवश्यक है। प्राचीन ऋषियों ने भवन की बनावट, आकृति तथा मुख्य प्रवेश द्वार के माध्यम से प्रवेश होने वाली ऊर्जा
के सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव का गहरा अध्ययन किया है। आदिकाल से प्रमुख द्वार का बड़ा महत्व रहा है, जिसे हम फाटक, गेट, दरवाजा, प्रवेशद्वार आदि के नाम से संबोधित करते हैं, जो अत्यंत मजबूत व सुंदर होता हैं।वास्तु के अनुसार प्रमुख द्वार सदियों तक सुखद व मंगलमय अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम होते हैं। प्रवेश द्वार चाहे घर का हो, फैक्ट्री, कारखाने, गोदाम, आफिस, मंदिर, अस्पताल, प्रशासनिक भवन, बैंक, दुकान आदि का हो लाभ-हानि दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे जुड़े सिद्धांतों का सदियों से उपयोग कर मानव अरमानों के महल में मंगलमय जीव बिताता चला आ रहा हैं।दिशाओं के ज्ञान को ही वास्तु कहते हैं। यह एक ऐसी पद्धति का नाम है, जिसमें दिशाओं को ध्यान में रखकर भवन निर्माण व उसका इंटीरियर डेकोरेशन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वास्तु के अनुसार भवन निर्माण करने पर घर-परिवार में खुशहाली आती है।वास्तु में दिशाओं का बड़ा महत्व है। अगर आपके घर में गलत दिशा में कोई निर्माण होगा, तो उससे आपके परिवार को किसी न किसी तरह की हानि होगी, ऐसा वास्तु के अनुसार माना जाता है। वास्तु में आठ महत्वपूर्ण दिशाएँ होती हैं, भवन निर्माण करते समय जिन्हें ध्यान में रखना नितांत आवश्यक है। ये दिशाएँ पंचतत्वों की होती हैं।जीवन में कामयाबी पाने में शुभ ऊर्जा और सकारात्मक सोच की खासी जरूरत होती है, जो कि हमें आसपास के माहौल और हमारे निवास से मिलती है। ऎसे में यदि नव निर्माण वास्तु सम्मत कराया जाए तो घर का हर कोना आपको सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। अपने घर को वास्तु के अनुसार कुछ यूं बनाएं कि आशियाना मुस्कुराने लगे। वास्तुशास्त्र के अनुसार भूखण्ड में उत्तर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व दिशा में खुला स्थान अधिक रखना चाहिए। भवन निर्माण करते समय दक्षिण और पश्चिम दिशा में खुला स्थान कम रखें। भवन निर्माण करते समय मकान में खुली छत पूर्व तथा उत्तर दिशा में रखनी चाहिए।जब दो मंजिला भवन निर्माण की योजना बना रहे हों, तो ध्यान में रखें कि दक्षिण व पश्चिम की अपेक्षा पूर्व व उत्तर की ऊंचाई कम होनी चाहिए।
स्नानघर—
स्नानघर, गुसलखाना, नैऋत्य (पश्चिम-दक्षिण) कोण और दक्षिण दिशा के मध्य या नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में होना सर्वोत्तम है। इसका पानी का बहाव उत्तर-पूर्व में रखे। गुसलखाने की उत्तरी या पूर्वी दीवार पर एग्जास्ट फैन लगाना बेहतर होता है। गीजर आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) कोण में लगाना चाहिए क्योंकि इसका संबंध अग्नि से है। ईशान व नैऋत्य कोण में इसका स्थान कभी न बनवाएं।
शौचालय—
शौचालय सदैव नैऋत्य कोण व दक्षिण दिशा के मध्य या नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य बनाना चाहिए। शौचालय में शौच करते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए। शौचालय की सीट इस प्रकार लगाएं कि उस पर बैठते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम की ओर ही हो। प्रयास करें शौचालय एवं स्नानगृह अलग-अलग बनाएं। वैसे आधुनिक काल में दोनों को एक साथ संयुक्त रूप में बनाने का फैशन चल गया है। उत्तरी व पूर्वी दीवार के साथ शौचालय न बनाएं।
मुख्यद्वार—
द्वार में प्रवेश करते समय द्वार से निकलती चुंबकीय तरंगे बुद्धि को प्रभावित करती हंै। इसलिए प्रयास करना चाहिए कि द्वार का मुंह उत्तर या पूर्व में ही हो। दक्षिण और पश्चिम में द्वार नहीं होना चाहिए।
आंगन—
भवन का प्रारूप इस प्रकार बनाना चाहिए कि आंगन
मध्य में हो या जगह कम हो तो भवन में खुला क्षेत्र इस प्रकार उत्तर या पूर्व की ओर रखें जिससे सूर्य का प्रकाश व ताप भवन में अधिकाधिक प्रवेश करें। ऎसा करने पर भवन में रहने वाले स्वस्थ व प्रसन्न रहते हैं। पुराने समय में बड़ी-बड़ी हवेलियों में विशाल चौक या आंगन को देखकर इसके महत्व का पता चलता है।
सोपान या सीढ़ी—- वास्तु के अनुसार मकान में सीढ़ी या सोपान पूर्व या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। यह अत्यंत शुभ होता है। अगर सीढ़ियाँ मकान के पार्श्व में दक्षिणी व पश्चिमी भाग की दाईं ओर हो, तो उत्तम हैं। अगर आप मकान में घुमावदार सीढ़ियाँ बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो आपके लिए यह जान लेना आवश्यक है कि सीढ़ियों का घुमाव सदैव पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से पश्चिम, पश्चिम से उत्तर और उत्तर से पूर्व की ओर रखें। चढ़ते समय सीढ़ियाँ हमेशा बाएँ से दाईं ओर मुड़नी चाहिए। एक और बात, सीढ़ियों की संख्या हमेशा विषम होनी चाहिए। एक सामान्य फार्मूला है- सीढ़ियों की संख्या को . से विभाजित करें तथा शेष . रखें- अर्थात्‌ 5, .1, 17, 23, 29 आदि की संख्या में हों। वास्तु शास्त्र में भवन में सीढ़ियाँ वास्तु के अनुसार सही नहीं हो, तो उन्हें तोड़ने की जरूरत नहीं है। बस आपको वास्तु दोष दूर करने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक कमरा बनवाना चाहिए। यदि सीढ़ियाँ उत्तर-पूर्व दिशा में बनी हों, तो। तिजोरी (गल्ला) : मकान में गल्ला कहाँ रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार मकान में तिजोरी-गल्ला, नकदी, कीमती आभूषण आदि सदैव उत्तर दिशा में रखना शुभ होता है। क्योंकि कुबेर का वास उत्तर दिशा में होता है इसलिए उत्तर दिशा की ओर मुख रखने पर धन वृद्धि होती है। भवन में सीढियां वास्तु नियमों के अनुरूप बनानी चाहिए। सीढियों का द्वार पूर्व या दक्षिण दिशा में होना शुभफलप्रद होता है। सीढियां भवन के पाश्र्व में दक्षिणी व पश्चिमी भाग में दाएं ओर हो, तो उत्तम है। यदि सीढियां घुमावदार बनानी हो, तो उनका घुमाव सदैव पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से पश्चिम, पश्चिम से उत्तर और उत्तर से पूर्व की ओर होना चाहिए। यानी चढ़ते समय सीढियां हमेशा बाएं से दाएं ओर मुड़नी चाहिए। सीढियों के नीचे एवं ऊपर द्वार रखने चाहिए। यदि किसी पुराने घर में सीढियां उत्तर-पूर्व दिशा में बनी हो, तो उसके दोष्ा को समाप्त करने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक कमरा बनाना चाहिए।
बालकनी—-
बॉलकनी या बरामदे के रूप में खुला स्थान उत्तर-पूर्व में ज्यादा रखें। घर-परिवार में सुख-समृद्धि हेतु बरामदा या बालकनी उत्तर-पूर्व में ही निर्मित करना शुभ होता है। हवा, सूर्य प्रकाश और भवन के सौंदर्य के लिए आवासीय भवनों में बालकनी का खासा स्थान है। बालकनी भी एक प्रकार से भवन में खुले स्थान के रूप में मानी जाती है। बालकनी से सूरज कीक किरणें और प्राकृतिक हवा मिलती है। वास्तु सिद्धांतों के अनुसार बालकनी बनाई जा सकती है। यदि पूर्वोन्मुख भूखंड है, तो बालकनी उत्तर-पूर्व में उत्तर की ओर बनानी चाहिए। बालकनी उत्तर-पश्चिम में उत्तर की ओर बनानी चाहिए।शाम को दोस्तों के साथ चाय की चुस्कियाँ लेते हुए ढलता सूरज देखना भला किसे अच्छा नहीं लगता। हर कोई चाहता है कि उसके फ्लैट में एक ऐसी बालकनी हो, जिसमें हर सुबह अखबार पढ़ते-पढ़ते ताजी हवा का लुत्फ उठाया जा सके व हरे-भरे पौधों से घर की शोभा बढ़ाई जा सके। यही कारण है कि आजकल बालकनी वाले फ्लैट सबसे ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं।लोगों की माँग रहती है कि हमारे फ्लैट की बालकनी भी ऐसी हो जहाँ से बाहर का सुंदर नजारा दिखाई देता हो। अब दो बालकनी वाले फ्लैट भी लोगों की पसंद में शुमार हो गए हैं।यदि उत्तरोन्मुख भूखंड है, तो बालकनी उत्तर-पूर्व में उत्तर की ओर बनानी चाहिए। यदि दक्षिणोन्मुख भूखंड है, तो बालकनी दक्षिण-पूर्व में दक्षिण दिशा में बनाएं। बालकनी का स्थान भूखंड के मुख पर निर्भर है। लेकिन प्रयास यह होना चाहिए कि प्रात: कालीन सूर्य एवं प्राकृतिक हवा का प्रवेश भवन में होता रहे। ऎसा होने से मकान कई दोषों से मुक्त हो जाता है। बालकनी या बरामदे की लुक डिसाइड करते समय उसकी फ्लोरिंग का ध्यान रखें। मार्बल का चयन न करें क्योंकि उसमें दाग जल्दी लगते हैं। इसके अलावा टाइल्स जिसमें स्टोन और वुडेड टैक्सचर होते हैं, काफी अच्छे होते हैं। ग्रेनाइट भी अच्छा विकल्प है।
– बालकनी को प्लेटफार्म के जरिए एनहैंस किया जा सकता है। यहां बड़े पौधे और झाडि़यों को लगाएं। साथ ही बेल आदि दीवारों और बालकनी के रेलिंग पर लगाएं। हमारे देश की क्लाइमेट के अनुसार ट्रॉपिकल गार्डन को आसानी से मेंटेन किया जा सकता है। ज्यादा जगह बनाने के लिए çस्प्लट लेवले प्लांट्स को रॉट आयरन पर लगाएं। इसके अलावा बाहर की तरफ झूलने वाले कैंटिलिवर्ड प्लांटस भी लगा सकते हैं।
गैराज—–
वाहन (कार, गाड़ी) खड़ा करने के लिए गैराज की आवश्यकता होती है। फ्लैट, बंगला या बड़े घर ( जिसके पास जगह अधिक है) में गैराज दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए। यह बात ध्यान में रखें कि गैराज में उत्तर और पूर्व की दीवार पर वजन कम होना चाहिए। यदि भूखंड पूर्वोन्मुखी है, तो दक्षिण-पूर्व दिशा में पूर्व की ओर, यदि भूखंड उत्तरोन्मुख है, तो उत्तर-पश्चिम दिशा में उत्तर की ओर, यदि भूखंड पश्चिमोन्मुख है, तो दक्षिण-पश्चिम दिशा में पश्चिम की ओर, यदि भूखंड दक्षिणोन्मुख हो, तो दक्षिण-पश्चिम दिशा में पश्चिम की ओर गैराज बनाना चाहिए।
स्वागत कक्ष(ड्रॉइंगरूम) या बैठक—-
ड्रॉइंगरूम आपकी जीवनशैली का ही परिचय नहीं देता बल्कि वह वास्तु के अनुरूप हो तो घर के लोगों को शुभ फल भी देता है। तो ड्रॉइंगरूम को वास्तु अनुरूप क्यों न बनाएं।ड्रॉइंगरूम घर का सबसे खूबसूरत स्थान होता है। यह वह स्थान होता है, जहां न सिर्फ आप अपना दिनभर का अधिकांश समय बिताते हैं, बल्कि आगंतुकों की मेहमाननवाजी भी करते हैं। आगंतुक को आपके घर की साज-सज्जा, आपकी जीवनशैली और इंटीरियर के बारे में समझ का अंदाजा ड्राइंगरूम को देखकर ही हो जाता है। इसीलिए महत्वपूर्ण है कि आप अपने ड्राइंगरूम को किस प्रकार सुसज्जित करते हैं।ड्राइंगरूम से जुड़े आवश्यक दिशा-निर्देशों की चर्चा करने से पूर्व आपको यह जानना आवश्यक है कि घर के इस सबसे अहम स्थान को किस दिशा में होना चाहिए, जिससे यह पारिवारिक सदस्यों को शुभ फल प्रदान करें। प्रवेश द्वार की तरह ही ड्रॉइंगरूम भी अति महत्वपूर्ण है, लिहाजा इसके लिए सवरेचित स्थान उत्तर, पूर्व अथवा उत्तर-पूर्व है। आज के दौर में भवन में स्वागतकक्ष का महत्व सबसे ज्यादा है। प्राचीनकाल में इसे बैठक के नाम से जाना जाता था। स्वागतकक्ष या बैठक में मसनद व तकिए या फर्नीचर दक्षिण और पश्चिम दिशाओं की ओर रखना चाहिए। स्वागतकक्ष या बैठक जहां तक संभव हो उत्तर और पूर्व की ओर खुली जगह अधिक रखनी चाहिए। स्वागतकक्ष भवन में वायव्य और ईशान और पूर्व दिशा के मध्य में बनाना चाहिए।
स्वागत कक्ष(ड्रॉइंगरूम) या बैठक में दोष हो तो करें दूर—
-अगर आपके घर में ड्राइंगरूम उपरोक्त दिशाओं में न होकर दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम अथवा पश्चिम में है और उसे अन्यत्र स्थानांतरित करने का विकल्प नहीं है तो भी आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए वास्तु में रेमिडी यानी उपायों का प्रावधान है। कुशल वास्तु विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में इन उपायों को अपनाकर ड्रॉइंगरूम से संबंधित वास्तुदोष निवारण कर सकते हैं।
-ड्रॉइंगरूम का इंटीरियर इस प्रकार का होना चाहिए कि वहां चलने-फिरने के लिए पर्याप्त स्थान हो। ड्रॉइंगरूम में फर्नीचर दीवारों से सटाकर नहीं रखना चाहिए, बल्कि उनके पीछे इतना स्थान अवश्य हो कि वहां हवा का प्रवाह बना रहे, जिससे कमरे में पर्याप्त ऊर्जा बनी रहे।
अध्ययन कक्ष—
अध्ययन कक्ष हमेशा ईशान कोण में ही पूजागृह के साथ पूर्व दिशा में होना चाहिए। प्रकाश की ऊर्जा ही घर में सकारात्मकता लाती है, लिहाजा पूरब दिशा में स्टडी रूम काफी प्रभावी माना जाता है। वायव्य और पश्चिम दिशा के मध्य या वायव्य व उत्तर के मध्य बना सकते हैं। ईशान कोण पूजागृह के पास सर्वोत्तम है।बुध, गुरू, शुक्र एवं चंद्र चार ग्रहों के प्रभाव वाली पश्चिम-मध्य दिशा में अध्ययन कक्ष का निर्माण करने से अति लाभदायक सिद्ध होती है। अध्ययन कक्ष में टेबिल पूर्व-उत्तर ईशान या पष्चिम में रहना चाहिए। दक्षिण आग्नेय व नैऋत्य या उत्तर-वायव्य में नहीं होना चाहिए।खिड़की या रोषनदान पूर्व-उत्तर या पश्चिम में होना अति उत्तम माना गया है। दक्षिण में यथा संभव न ही रखें।अध्ययन कक्ष में रंग संयोजन सफेद, बादामी, पिंक, आसमानी या हल्का फिरोजी रंग दीवारों पर या टेबल-फर्नीचर पर अच्छा है। काला, गहरा नीला रंग कक्ष में नहीं करना चाहिए।अध्ययन कक्ष का प्रवेश द्वार पूर्व-उत्तर, मध्य या पष्चिम में रहना चाहिए। दक्षिण आग्नेय व नैऋत्य या उत्तर-वायव्य में नहीं होना चाहिए।कक्ष में पुस्तके रखने की अलमारी या रैक उत्तर दिशा की दीवार से लगी होना चाहिए।पानी रखने की जगह, मंदिर, एवं घड़ी उत्तर या पूर्व दिशा में उपयुक्त होती है।कक्ष की ढाल पूर्व या उत्तर दिशा में रखें तथा अनुपयोगी चीजों को कक्ष में न रखें।टेबिल गोलाकार या अंडाकार की जगह आयताकार हो।टेबिल के टाप का रंग सफेद दूधिया हो। प्लेन ग्लास रखा जाये। टेबिल पर अध्ययन करते समय आवश्यक पुस्तक ही रखें।बंद घड़ी, टूटे-फूटे बेकार पेन, धारदार चाकू, हथियार व औजार न रखें।कम्प्यूटर टेबिल पूर्व मध्य या उत्तर मध्य में रखें, ईशान में कदापि न रखे।अध्ययन कक्ष के मंदिर में सुबह-शाम चंदन की अगरबत्तियां लगाना न भूलें।
खिड़कियां—
जहां तक संभव हो सके दरवाजे तथा खिड़कियों की संख्या समरूप में रखें- जैसे 2, 4, 6, 8 आदि। विषम संख्याएं होती हैं- 1, 3, 5, 7, 9 आदि उनसे बचें।
भवन में मुख्य गेट के सामने खिड़कियां ज्यादा प्रभावी होती हैं। कहते हैं इससे चुंबकीय चक्र पूर्ण होता है औरघर में सुख-शांति निवास करती है। पश्चिमी, पूर्वी और उत्तरी दीवारों पर भी खिड़कियों का निर्माण शुभ होता है। भवन में खिड़कियों का मुख्य लक्ष्य भवन में शुद्ध वायु के निरंतर प्रवाह के लिए होता है। यहां सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है कि भवन में कभी भी खिड़कियों की संख्या विष्ाम न रखें। सम खिड़कियां शुभ होती हैं।
भोजनालय या भोजनकक्ष—–
भोजनकक्ष ड्राइंगरूम का ही एक भाग बन गया है या अलग भी बनाया जाता है। डायनिंग टेबल ड्राईगरूम के दक्षिण-पूर्व में रखनी चाहिए अथवा भोजन कक्ष में भी दक्षिण-पूर्व में रखनी चाहिए। भोजनालय या भोजन कक्ष भवन में पश्चिम या पूर्व दिशा में बनाना चाहिए।
भवन में वृक्ष—
ऊंचे व घने वृक्ष दक्षिण, पश्चिम भाग में लगाने चाहिए। पेड़ भवन में इस ढंग से लगाएं और उनमें दूरी इतनी रखें कि प्रात: से तीसरे प्रहर (तीन बजे तक) भवन पर उनकी छाया न पड़े। पीपल का वृक्ष पश्चिम, बरगद का पूर्व, गूलर दक्षिण और कैथा का वृक्ष उत्तर में लगाना चाहिए। अन्य वृक्ष किसी भी दिशा में लाभदायक है।
मीटर बोर्ड, विद्युतकक्ष—
अग्नि या विद्युत-शक्ति, मीटरबोर्ड, मेन स्विच, विद्युतकक्ष आदि भवन में दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा में लगाने चाहिए। अग्नि कोण इसके लिए सदैव उत्तम रहता है।
पूजागृह—-
पूजन, भजन, कीर्तन, अध्ययन-अध्यापन सदैव ईशान कोण में होना चाहिए। पूजा करते समय व्यक्ति का मुख पूर्व में होना चाहिए। ईश्वर की मूर्ति का मुख पश्चिम व दक्षिण की ओर होना चाहिए। ब्ा्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, सूर्य, कार्तिकेय का मुख पूर्व या पश्चिम की ओर होना चाहिए। गणेश, कुबेर, दुर्गा, भैरव, ष्ाोडश मातृका का मुख नैऋत्य कोण की ओर होना चाहिए। ज्ञान प्राप्ति के लिए पूजागृह में उत्तर-दिशा में बैठकर उत्तर की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए और धन प्राप्ति के लिए पूर्व दिशा में पूर्व की ओर मुख करके पूजा करना उत्तम है।
जल प्रवाह—
भवन निर्माण में जल के प्रवाह का भी विशेष्ा ध्यान रखना चाहिए। भवन का समस्त जल प्रवाह पूर्व, वायव्य, उत्तर और ईशान कोण में रखना शुभ होता है। भवन का जल ईशान (उत्तर-पूर्व) या वायव्य (उत्तर-पश्चिम) कोण से घर से बाहर निकालना चाहिए। वास्तु के अनुसार दिशाओं का जरूर ध्यान रखें। दिशाएं दशा बदलने का माद्दा रखती हैं।
वास्तु अनुसार करें पेड़-पौधों का चयन—-
वास्तु शास्त्र में पेड़-पौधों का महत्वपूर्ण स्थान है। वास्तु शास्त्र अनुसार यदि आप पेड़-पौधे लगाते हैं तो घर के आसपास बताई गई दिशाओं में पौधे लगाए। अनार का पौधा घर में लगाना लाभदायक होता है। पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए तुलसी का पौधा सर्वश्रेष्ठ होता है। धार्मिक अनुष्ठानों में भी इसका सर्वश्रेष्ठ स्थान है। तुलसी के सेवन से अनेक बीमारियों में लाभ होता है।
घर के पूर्व में वट वृक्ष, पष्चिम में पीपल, दक्षिण में गूलर तथा उत्तर में कैथ का पेड़ लगाना चाहिए। तुलसी, नीम, चमेली, साल चंपा, गुलाब, नारियल, केतकी, जवा कुसुम, केसर और मालती ऐसे पेड़ है जिन्हें आप अपने निवास के आसपास आसानी से लगा सकते है तथा फलदायी भी है।
राशि के अनुसार करें अपने निवास का चयन—-
सधारणतः निवास स्थान का चयन करते समय व्यक्ति असमंजस में रहता है कि यह मकान उसके लिए कहीं अशुभ तो नहीं रहेगा। इस दुविधा को दूर करने के लिए निवास स्थान के कस्बे, कालौनी, या शहर के नाम के प्रथम अक्षर से अपनी राशि व नक्षत्र का मिलान कर शुभ स्थान का चयन करना चाहिए।षहर व निवासकर्ता की राषि एक ही होना चाहिए। दोनों राषियां आपस में एक दूसरे से 6‘8 या 3-11 पड़े तो धन संचय में बाधा और वैर विरोध उत्पन्न करती है तथा दोनों राषियों में 2-11 का संबंध होने पर रोगप्रद साबित होती है।इनके अलावा 1,4,5,7,9,1.वह राशियां हो तो वास्तुशाास्त्र के अनुसार लाभप्रद मानी गई है। उदाहरणतः आपकी राशि वृष है और जयपुर में आप मकान खरीद रहे है तो यह आपके लिए लाभदायक रहेगा। क्योंकि वृष राशि से गिनने पर जयपुर की मकर राशि 9 वीं पड़ेंगी तथा मकर से गिनने पर वृष 5वीं राशि है।अतः निवासकर्ता और निवास स्थान की राषियों वृष-मकर में 9-5 का संबंध होने से शुभ तथा लाभप्रद संयोग बनेगा। इसी प्रकार निवास स्थान के नक्षत्र से अपने नक्षत्र तक गिनने से जो संख्या आए उससे भी शुभता का अनुमान लगाया जा सकता है।निवास स्थान के नक्षत्र से व्यक्ति का नक्षत्र यदि 1,2,3,4,5 पड़े तो धनलाभ के अच्छे योग बनेंगे। 6,7,8 पड़ने पर वहां रहने से धनाभाव बना रहेगा। 9,10,11,12,13 वां नक्षत्र होने पर धन-धान्य, सुख-समृद्धि में वृद्धि करता है।यदि व्यक्ति का नक्षत्र 14,15,16,17,18,19 वां हो तो जीवनसाथी के प्रति चिंताकारक है। निवासकर्ता का नक्षत्र यदि 20 वां हो तो हानिकारक है। यदि व्यक्ति का नक्षत्र 21, 22, 23, 24, हो तो संपत्ति में बढ़ोतरी होती है।25 वें नक्षत्र का व्यक्ति भय, कष्ट और अशांत रहता है। 26 वां हो तो लड़ाई-झगड़ा और 27 वां हो तो परिजनों के प्रति शोक को दर्शाता है। राशि और नक्षत्र का संयोग बनने पर ही निवासकर्ता के लिए श्रेष्ठ फल प्रदान करता है।
द्वार से सुख संपत्ति घर आवे—
वास्तु शास्त्र के मुताबिक घरों के द्वार की स्थिति के आधार पर सुख-संपत्ति, समृद्धि, स्वास्थ्य का अनुमान अलाया जा सकता हैं। प्राचीन समय में बड़े आवासों, हवेलियों और महलों के निर्माण में इन बातों का विशेष ध्यान रखा जाता था। दिशाओं की स्थिति, चैकोर वर्ग वृत्त आकार निर्माझा और वास्तु के अनुसार दरवाजों का निर्धाश्रण होता था।दिशा जिस काम के लिए सिद्ध हो, उसी दिशा में भवन संबंधित कक्ष का निर्माण हो और लाभांश वाली दिशा में द्वार का निर्माण करना उचित रहता हैं। प्लाटों के आकार और दिशा के अनुसार उनके उपयोग में वास्तु शास्त्र में उचित मार्गदर्शन दिया गया हैं।दक्षिण भारत के वास्तुशास्त्र के मुताबिक भवन की दिशा कैसी भी हो, पर यदि वह चैकोर बना हुआ हो और मुख्य भवन के आगे यदि एक कमरा वाहन, मेहमानों के स्वागत और बैठक के मकसद से बनाया जाए तो उसके द्वारों से गृहपति मनोवांछित लाभ प्राप्त कर सकता हैं। इस प्रकार के कक्ष को पूर्व भवन कहा जाता है।भवन में द्वार पूर्व या उत्तर दिशा में बनाया जायें तो संपदा की प्राप्ति सुनिश्चित हैं। तथा बुद्धि की प्राप्ति होती है।दक्षिण दिशा वाले द्वार से स्थायी वैभव की प्राप्ति होती हैं।पश्चिम दिशा वाले द्वार से धन-धान्य में वृद्धि होती हैं।ध्यान रखें कि भवन के मुख्य परिसर से लेकर भीतर के भवन के द्वार को परी तरह वास्तुशास्त्र के अनुसार रखें। इसके लिए वास्तु में बताया गया है कि प्लाट के आकार को आठ से विभाजित करें और दोनों ओर 2-2 भाग छोड़कर द्वार को रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
कैसे दूर करें घर के वास्तु दोष—-
जल-थल-नभ-अग्नि-पवन के पांचसूत्रों के मिलन से बने वास्तु शास्त्र में बिना तोड़-फोड़ के कुछ उपाय करने से वास्तु दोषों का निराकरण किया जा सकता है जानें कैसे निवारण करें-
1. अपनी रूचि के अनुसार सुगन्धित फूलों का गुलदस्ता सदैव अपने सिरहाने की ओर कोने में सजाएं।
2. बेडरूम में जूठे बर्तन न रखें इससे पत्नि का स्वास्थ्य प्रभावित होने के साथ ही धन का अभाव बना रहता हैं।
3. परिवार का कोई सदस्य मानसिक तनाव से ग्रस्त हो तो काले मृग की चर्म बिछाकर सोने से लाभ होगा।
4. घर में किसी को बुरे स्वप्न आते हो तो गंगाजल सिरहाने रखकर सोएं।
5. परिवार में कोई रोगग्रस्त हो तो चांदी के बर्तन में शुद्ध केसरयुक्त गंगाजल भरकर सिरहाने रखें।
6. यदि कोई व्यक्ति मानसिक तनाव से ग्रस्त हो तो कमरे में शुद्ध घी का दीपक जला कर रखें इसके साथ गुलाब की अगरबत्ती भी जलाएं।
7. शयन कक्ष में झाड़ू न रखें। तेल का कनस्तर, अंगीठी आदि न रखंे। व्यर्थ चिंतित रहेंगे। यदि कष्ट हो रहा है तो तकिए के नीचे लाल चंदन रखकर सोएं।
8. यदि दुकान में चोरी होती है तो दुकान की चैखट के पास पूजा करने के बाद मंगल यंत्र स्थापित करें।
9. दुकान में यदि मन नहीं लगता तो श्वेत गणेशजी की मूर्ति विधिवत् पूजा करके मुख्य द्वार के के आगे और पीछे स्थापित करें।
10. यदि दुकान का मुख्य द्वार अशुभ है या दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण दिशा में है तो यमकीलकयंत्र का पूजन करके स्थापित करें। यदि शासकीय कर्मचारी द्वारा परेशान है तो सूर्ययंत्र की विधि के अनुसार पूजा करके दुकान में स्थापित करें।
11. सीढ़ियों के नीचे बैठकर महत्वपूर्ण कार्य न करें। इससे प्रगति में बाधा आएगी।
12. दुकान, फैक्ट्री, कार्यालय आदि स्थानों में वर्ष में एक बार पूजा अवश्य करें।
13. गुप्त शत्रु परेशान कर रहे है तो लाल चांदी के सर्प बनाकर उनकी आंखों में सुरमा लगाकर पैर के नीचे रखकर सोना चाहिए।
14. जबसे आपने मकान लिया है तब से भाग्य साथ नहीं दे रहा है और लगता है पुराने मकान में सब कुछ ठीक-ठाक था या अब परेशानियां हैं तो घर में पीले रंग के पर्दे लगवाएं। सटे भवन में हल्दी के छींटे मारें और गुरू को पीले वस्त्र दान करें।
15. यदि संतान आज्ञाकारी नहीं है, संतान सुख और संतान का सहयोग प्राप्त हो इसके लिए सूर्य यंत्र या तांबा वहां पर रखें जहां भवन का प्रवेश द्वार हैं। यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा कराकर ही रखें।
यदि इन उपायों को आप करते है तो वास्तुदोष दूर होने के साथ ही आपके घर में किसी प्रकार के अन्य निर्माण का बिना तोड़-फोड़ किए सुख-समृद्धि एवं स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।

2 COMMENTS

  1. शौचालय—
    शौचालय सदैव नैऋत्य कोण व दक्षिण दिशा के मध्य या नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य बनाना चाहिए। शौचालय में शौच करते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए।गलत जानकारी उपलब्ध करई गयी हैं मुख हमेश उत्तर की और होना चाहिए

  2. सर बाकी सब का जिक्र हुआ है पर आपने रसोई घर की दिशा के बारे में नहीं बताया है अगर हो सके तो क्या बता सकते हो जी।

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