क्या करें सुखी दाम्पत्य जीवन /वैवाहिक सुख के लिए????
आज कल पहले तो विवाह न होना बड़ी परेशानी है और फिर विवाह के बाद निबाह होना उससे बड़ी परेशानी। अधिकांश लोगों की शिकायत है कि उनका दाम्पत्य जीवन असहज है। पति-पत्नी में तकरार और अविश्वास लगभग हर गृहस्थी में प्रवेश करता जा रहा है। वास्तव में हम सुखी दाम्पत्य के तीन प्रमुख सूत्रों को भूलते जा रहे हैं ये सूत्र हैं आदर, विश्वास और प्रेम।
सभी चाहते हैं कि दाम्पत्य सुखी रहे। इसके लिए खूब कोशिश भी की जाती है। सुख दाम्पत्य का मूल स्वभाव है। चूंकि गृहस्थी में हम मूल छोड़ आवरण पर टिक जाते हैं इस कारण सुख जो है ही उसे बाहर से लाने के लिए प्रयास करते हैं। दाम्पत्य में सुख बिल्कुल ऐसा है जैसे कोई चीज रखकर भूल जाएं। यदि ठीक से ढूंढ लें तो वस्तु मिल जाती है उसे बाहर कहीं से लाना नहीं पड़ेगा या पैदा नहीं करना पड़ेगा। वह पूर्व से हमारे पास था, बस हम विस्मृत कर गए, बिल्कुल ऐसा ही है परिवार में सुख। इस सुख को ढूंढना है तो शुरुआत अपने भीतर के प्रेम से की जाए। हम जितने प्रेम से भरे होंगे, परिवार में सुख की संभावना उतनी ही बढ़ा देंगे। जीवन में प्रेम उतरने के बाद क्रियाएं करना नहीं पड़ती, होने लगती हैं।आज के समय में यह भी देखा गया है कि कुछ लोगों की पत्नियां बेवजह संदेह करती हैं और सोचती हैं कि दूसरी लड़की मेरे पति पर डोरे डाल रही है और इस कारण से अपने पति को ताने मारती हैं जिसका कारण यह होता है कि उसका पति एक दिन उस राह पर मुड़ जाता है जिसको उसकी पत्नी सोचती है। वैसे कहा जा सकता है कि जिसको जहां प्यार मिलता है वह वहीं पर जाता है। इस तरह कहा जा सकता है कि पत्नी का शक्की नजरिया अपने-आप मुसीबतें पैदा कर देगा। बहुत सी स्त्रियां तो यह सोचती हैं कि मेरा पति मेरे अलावा किसी और लड़की से बातें न करें, ऐसा सोचने से वह अपने पैरों पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मारने का काम करती है। पति-पत्नी को अपना संबंध ठीक प्रकार से चलाने के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने पति पर बेवजह शक न करें और पत्नी को चाहिए कि वह अपने पति की पसंद-नापसंद का ध्यान रखते हुए उन्हें मानसिक रूप से भी स्वस्थ रखने की कोशिश करें, न कि पति के पास आकर इधर-उधर की शिकायतों का पुलिंदा लेकर अपने प्यार में रुकावट डालें। उसे किसी भी बात-बात पर रूठ जाना भी परिवार के माहौल को खराब कर देता है।
अधिकतर यह भी देखा गया है कि कुछ पति अपनी पत्नी पर बेवजह शक करते हैं चाहे उनकी पत्नी सुंदर, गुणवान तथा सच्चरित्र हो, लेकिन फिर भी दूसरी औरतों या लड़कियों से दिल्लगी करने से बाज नहीं आते। उनकी इस दिल्लगी के कारण से स्त्रियों में यह धारणा बन चुकी है कि पुरुषों को हमेशा दूसरे की औरत अच्छी लगती है। इसलिए पति को हमेशा यह चाहिए कि कोई भी ऐसा काम न करें जिससे आप पर पत्नी संदेह करें।
इस बात में कोई दो मत नहीं है कि विवाह एक सुखद अनुभूति है, जिसके आनंद की प्राप्ति के लिये प्रत्येक मानव उत्सुक रहता है। पति-पत्‍नी के मध्य संबंधो में सुख और आनंद का श्रीगणेश विवाह के पश्चात् ही होता है, जो भावी सुखी जीवन के मार्ग को प्रशस्त करता है। किन्तु, आज के भाग-दौड़ और खींचतान भरे समय में पति-पत्‍नी दाम्पत्य जीवन के सुख से काफी दूर जाते हुए नजर आ रहे हैं। तनाव पति-पत्‍नी के मध्य आम बात बनती जा रही है, जिसके चलते वैवाहिक जीवन में नई-नई परेशानियां घर करती जा रही हैं। यही कारण है कि आज कुकुरमुत्ते की तरह कई दुकानें उग आई हैं, जो सफल दाम्पत्य जीवन के गुर लोगों को बताती हैं। दरअसल, पति-पत्‍नी के मध्य टकराव ही वैवाहिक जीवन के लिए अभिशाप बनता है। जहां पर ईगो का टकराव न हो, वहां पर वैवाहिक जीवन निरंतर सफलता के साथ चलता है। एक कारण यह भी है कि जहां अपेक्षाए ज्यादा हो, वहां अगर उनकी पूति नहीं होती है, तो नित्य नई समस्याएं होती हैं।
वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए आवश्यक है कि परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों, पति-पत्‍नी के मध्य प्रेम हमेशा बना रहना चाहिए। पति-पत्‍नी एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, इसलिए दोनों को ही अपने अहम के टकराव से बचना चाहिए और दोनों को प्रेम, सेवा के मंत्र पर अमल करना चाहिए क्योंकि दाम्पत्य जीवन अगर सहज नहीं है, तो पारिवारिक जीवन भी परेशानियों का केन्द्र बन जाता है।
पति-पत्नी को अपने बीच की बातों को ध्यान लगाकर सुनना चाहिए। यदि कोई बात हो गई हो तो उसे प्यार से निबटाना चाहिए न कि लड़ाई-झगड़े से, क्योंकि लड़ाई-झगड़े से किसी भी मामले का हल नहीं होता है। लड़ाई-झगड़े से बात बिगड़ सकती है। पत्नी को हमेशा यह बात ध्यान रखना चाहिए कि यदि आपका प्यार वास्तव में सच्चा प्यार हो तो आपके पति को आपसे कोई भी नहीं छीन सकता है। हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि प्रेम, विश्वास, सहयोग की बुनियाद पर ही पति-पत्नी के संबंध कायम रह सकते हैं।
पति को यह चाहिए कि यदि छोटी-मोटी अनबन हो जाए तो उसे प्यार से बातकर निबटाना चाहिए। पति-पत्नी दोनों को एक-दूसरे पर विश्वास करना चाहिए। पति को हमेशा अपनी पत्नी को विश्वास में लेकर महत्वपूर्ण कार्यों में उसका सहयोग देना चाहिए। पति-पत्नी को हमेशा अपनी जिंदगी का हर अच्छा-बुरा पहलू पत्नी के सामने ईमानदारी से खोल दें और पत्नी का भी इसमें बराबर योगदान होता है। एक सुखी जीवन जीने के लिए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पति-पत्नी में ज्यादा गोपनीयता ठीक नहीं है। ऐसे पति जो दिलफेंक किस्म के हैं या दूसरी औरतों के आकर्षण में फंस गये हैं, उनके साथ पत्नी को मनोवैज्ञानिक ढंग से पेश आना चाहिए न कि पहले ही आक्रामक व्यवहार अपना लेना चाहिए। यदि किसी का पति किसी दूसरी औरत के चक्कर में फंस गया है तो पत्नी को सबसे पहले यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि मेरा पति दूसरी औरत के चक्कर में क्यों फंस गया है। अपने पति से इस बारे में साफ-साफ बात करें और एक-दूसरे की गलतफहमी को मन से निकाल दें।।पति-पत्‍नी के मध्य सेक्स संबंधों का अभाव भी उनके भावी जीवन में कटुता पैदा करता है। इसलिए, यह भी जरूरी है कि दोनों पक्ष सेक्स संबंधो में पूर्ण समर्थन की भावना को हमेशा बना रहने दें। कई अवसर पर देखा गया है कि पति-पत्‍नी के मध्य आयु का अंतर भी समस्याओं का कारण बनता है, इसलिए आवश्यक है कि आयु के अंतर की परिस्थितियों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें। इससे पारिवारिक जीवन में उत्पन्न होने वाली कटुता से बचा जा सकता है। यदि दोनों के मध्य किन्हीं कारणों से अविश्वास की परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं, तो इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि जितनी जल्दी हो सके, इस बीमारी का इलाज कराया जा सके। विश्वास सफल संबंधों का प्रमुख आधार होता है। एक कारण यह भी है कि कई अवसर पर पति-पत्‍नी एक दूसरे की आवश्यकताओं का समझ नहीं पाते हैं, जिसके चलते उनके मध्य कटुता की परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं।
चलिए आज शिव-पार्वती के दाम्पत्य के एक प्रसंग के दर्शन कर लें।
विवाह के बाद शिव कैलाश पर बैठे थे और पार्वतीजी का प्रवेश हुआ। इस घटनाक्रम के लिए तुलसीदासजी ने लिखा है—-
“””जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा, बाम भाग आसन हर दीन्हा””
अपनी प्रिया पत्नी को जानकर बैठने के लिए आदर से बाएं भाग में स्थान दिया। शिव का अर्थ है कल्याण, जो प्रेम का ही प्रतिबिंब है। यहां पार्वतीजी के आने पर शिव तीन काम करते दिखते हैं। इस पंक्ति में तीन शब्द आए हैं-प्रिया, आदर और आसन। पत्नी को प्रिया माना। पति-पत्नी दोनों के बीच जुड़ाव प्रेम होना चाहिए, मजबूरी नहीं। फिर आदर दिया। प्रेम का दावा करें और एक दूसरे के प्रति आदर का भाव न हो, गड़बड़ यहां से शुरु हो जाती है। और फिर बाएं भाग में बराबर का आसन दिया। पति-पत्नी के बीच समानता का भाव हो, बड़े-छोटे होने के इरादे, एक ऐसी प्रतिस्पर्धा को जन्म देते हैं जिससे वह अशांति का केन्द्र बन जाती है। शास्त्रों ने शिव को विश्वास और पार्वती को श्रद्धा माना है।
आज दाम्पत्य जीवन में पारिवरिक क्लेश अधिक देखने को मिलते हैं जिसमें अधिकतर पति-पत्नी अपने आपसी मन-मुटाव के कारण से छोटी-छोटी बातों पर झगड़ते रहते हैं। इस प्रकार के मन-मुटाव के कारण से पति-पत्नी दोनों मानसिक रूप से अच्छे-बुरे के बारे में ठीक से सोच नहीं पाते हैं जिसका कारण यह होता है कि उनमें तलाक होने तक की नौबत आ जाती है। कभी-कभी तो उनकी पारिवारिक स्थितियां इतनी अधिक बिगड़ जाती हैं कि दोनों के व्यवहार में परिवर्तन का जिम्मेदार कोई एक नहीं बल्कि दोनों ही दोषी होते हैं। आज कुछ ऐसी घटना समाज में अधिकांश परिवारों में देखने को मिलती है जो पति-पत्नी के संबंधों में दरार पैदा करती है। जैसे कभी-कभी कुछ स्त्रियां अपने पति पर शक करती हैं और पति देर से घर आता है तो वह समझती हैं कि जरूर किसी न किसी से इनका संबंध है। इसलिए ये देर से घर आ रहे हैं। कुछ तो पुरुष भी अपनी पत्नी पर शक करते हैं और वे सोचते हैं कि जरूर इसका किसी से चक्कर चल रहा है। इस प्रकार की सोच मन में रखने से परिवार में क्लेश होने लगता है। अतः ऐसे सोच को मन में न लाए अन्यथा आपका सुखी परिवार क्लेश के चक्कर में पीसने लगेगा। हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि पति-पत्नी का संबंध बहुत अधिक नाजुक होता है। इन संबंधों को बनाये रखने के लिए पति-पत्नी दोनों को एक-दूसरे पर विश्वास बनाये रखना चाहिए और एक-दूसरे पर बेवजह संदेह नहीं करना चाहिए लेकिन इसके बावजूद दोनों की संदेह की सुई भी एक-दूसरे की ओर मुड़ने लगती है। कभी-कभी तो पत्नियां यह भी सोचने लगती हैं कि वह देर से घर क्यों आते हैं। वह यह भी सोचने लगती है कि कही उनकी जिंदगी में कोई दूसरी लड़की तो नहीं है। बिना सोचे-विचारे पति पर संदेह करने लगती हैं जबकि पति उस समय यह सोचना होता है कि जब मैं घर जाऊंगा तो मेरी पत्नी मेरा स्वागत करेगी लेकिन पत्नी तुरंत ही ऐसा माहौल बना देती है कि पति कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं होता है। इस कारण से पति-पत्नी के बीच में तनाव उत्पन्न हो जाता है और पारिवारिक कलह होने लगती है तथा पति-पत्नी के बीच की दूरियां बनने लगती हैं।
इसी तरह के कई अन्य कारण हैं, जिसके चलते दाम्पत्य जीवन में नई-नई समस्याओं का अखाड़ा बन जाता है और पारिवारिक जीवन कांटों की सेज साबित होता है। इसलिए, आवश्यक है कि पति पत्‍नी दाम्पत्य जीवन सफल और सुखद बनाने के लिए एक-दूसरे के प्रति विश्वास की नींव को हमेशा मजबूत बनाने का प्रयास करते रहें। यदि किन्हीं कारणों के चलते अविश्वास की परिस्थिति उत्पन्न होती है, तो उसे आक्रोश के बजाये सहज और सामान्य व्यवहार के जरिये अनुकूल बनाएं। साथ ही, दोनों को एक-दूसरे की भावनाओं का हमेशा ध्यान रखना चाहिए। पत्‍नी को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने ससुराल के प्रति जो दायित्व है, उसके निर्वहन में कमी न छोड़े। वहीं, पति का भी कर्त्तव्य है कि परिवार का कोई व्‍यक्ति पत्‍नी के प्रति अनर्गल बातें कर परिवार में नकारात्मक स्थिति को जन्म देने का प्रयास करता है, तो उसे सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर हल करें। दोनों पक्षों को उन बातों से दूर रहना और बचना चाहिए, जो हंसते-खेलते दाम्पत्य जीवन में कांटें बोने का कार्य करते हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथों मे शुक्र यानि शुक्राचार्य योग के देवता के रुप में पूजे जाते हैं। उनको दैत्यों के गुरु के रुप में भी जाना जाता है। उनके पास भगवान शिव से मिली मृत देह को पुन: जीवित करने की संजीवनी विद्या थी। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र व्यक्ति को भौतिक सुखों को देने वाले होते हैं। शुक्र को शुभ ग्रह माना जाता है। शुक्र दांपत्य जीवन के सुख-दु:ख का निर्धारक भी होता है। शुक्र स्त्री तत्व का कारक है। इसलिए सांसारिक सुखों की कामना, दांपत्य जीवन की सफलता और पुरुषों के लिए जीवनसाथी पाने के लिए शुक्रवार का व्रत विधान है। पुरुषों की कुण्डली में उचित जीवनसाथी का निर्णय शुक्र ग्रह की स्थिति के आधार पर ही होता है। शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव से उदर रोग, इंद्रिय रोग, त्वचा रोग और दांपत्य जीवन में कलह हो सकता है। जिस माह के ज्येष्ठा नक्षत्र और शुक्रवार का संयोग बनें। उस दिन से शुक्रवार का व्रत प्रारंभ करें। शुक्रदेव की सोने से बनी प्रतिमा को चांदी या कांसे से बने किसी पात्र में रखकर दो सफेद वस्त्र, सफेद फूल, गंध और अक्षत आदि से पूजन करें। यथोपचार पूजा करनी चाहिए। शुक्र देव को खीर तथा घी का भोज लगाएं। शुक्र के नाम मंत्र से हवन भी करें। भगवान शुक्रदेव से बुरे ग्रहदोषों से मुक्त करने और बुराईयों का नाश करने के साथ ही अच्छे स्वास्थ और लंबी आयु के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। पूजन हवन के बाद यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराएं। खीर तथा प्रतिमा सहित पूजन उपचारों का भी दान ब्राह्मणों को करने से शुक्र देव की विशेष कृ पा प्राप्त होती है। इस दिन व्रती के लिए नक्त भोजन का विधान है। नक्त भोजन का अर्थ होता है रात्रि में एक बार भोजन करना। इसी प्रकार सात शुक्रवार तक अखंडित व्रत करना चाहिए। इससे शुक्र ग्रह के कुण्डली में बने बुरे योग और दोष की शांति होती है और वैवाहिक संबंधों की ग्रह बाधा नष्ट होती है। इस शुक्र ग्रह और इस व्रत के शुभ प्रभाव से व्यक्ति संपूर्ण रोगों और व्याधियों से मुक्त होने के साथ तन, मन, धन से सुख समृद्ध होता है।
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सुखी दाम्पत्य जीवन के लिये संतान का समय पर होना आवश्यक समझा जाता है | विवाह के बाद सर्वप्रथम संतान का ही विचार किया जाता है | अगर गुरु किसी पापी ग्रह के प्रभाव से दूषित हों तो संतान प्राप्ति में बाधाएं आती है | जब गुरु पर पाप प्रभाव हों तथा गुरु पापी ग्रह की राशि में भी स्थित हों तो निश्चित रुप से दाम्पत्य जीवन में अनेक प्रकार की समस्यायें आने की संभावनाएं बनती है |आप सभी जानते हे सुखी दाम्पत्य जीवन के लिये भावी वर-वधू की कुण्डली में गुरु पाप प्रभाव से मुक्त होना चाहिए | गुरु की शुभ दृ्ष्टि सप्तम भाव पर हों तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों व दिक्कतों के बाद भो अलगाव की स्थिति नहीं बनती है | अर्थात गुरु की शुभता वर-वधू का साथ व उसके विवाह को बनाये रखती है | गुरु दाम्पत्य जीवन की बाधाओं को दूर करने के साथ-साथ, संतान का कारक ग्रह भी है | अगर कुण्डली में गुरु पीडित हों तो सर्वप्रथम तो विवाह में विलम्ब होगा, तथा उसके बाद संतान प्राप्ति में भी परेशानियां आती है |
जब किसी व्यक्ति की कुण्डली से दांपत्य का विचार किया जाता है, तो उसके लिये गुरु, शुक्र व मंगल का विश्लेषण किया जाता है. इन तीनों ग्रहों कि स्थिति को समझने के बाद ही व्यक्ति के दांपत्य जीवन के विषय में कुछ कहना सही रहता है. आईये यहां हम दाम्पत्य जीवन से जुडे तीन मुख्य ग्रहों को समझने का प्रयास करते है—
.. गुरु की वैवाहिक जीवन में भूमिका —–
सुखी दाम्पत्य जीवन के लिये भावी वर-वधू की कुण्डली में गुरु पाप प्रभाव से मुक्त- होना चाहिए. गुरु की शुभ दृ्ष्टि सप्तम भाव पर हों तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों व दिक्कतों के बाद भो अलगाव की स्थिति नहीं बनती है. अर्थात गुरु की शुभता वर-वधू का साथ व उसके विवाह को बनाये रखती है. गुरु दाम्पत्य जीवन की बाधाओं को दूर करने के साथ-साथ, संतान का कारक ग्रह भी है. अगर कुण्डली में गुरु पीडित हों तो सर्वप्रथम तो विवाह में विलम्ब होगा, तथा उसके बाद संतान प्राप्ति में भी परेशानियां आती है.सुखी दाम्पत्य जीवन के लिये संतान का समय पर होना आवश्यक समझा जाता है. विवाह के बाद सर्वप्रथम संतान का ही विचार किया जाता है. अगर गुरु किसी पापी ग्रह के प्रभाव से दूषित हों तो संतान प्राप्ति में बाधाएं आती है. जब गुरु पर पाप प्रभाव हों तथा गुरु पापी ग्रह की राशि में भी स्थित हों तो निश्चित रुप से दाम्पत्य जीवन में अनेक प्रकार की समस्यायें आने की संभावनाएं बनती है.
.. शुक्र की वैवाहिक जीवन में भूमिका —-
शुक्र विवाह का कारक ग्रह है. वैवाहिक सुख की प्राप्ति के लिये शुक्र का कुण्डली में सुस्थिर होना आवश्यक होता है. जब पति-पत्नी दोनों की ही कुण्डली में शुक्र पूर्ण रुप से पाप प्रभाव से मुक्त हो तब ही विवाह के बाद संबन्धों में सुख की संभावनाएं बनती है. इसके साथ-साथ शुक्र का पूर्ण बली व शुभ होना भी जरूरी होता है.
शुक्र को वैवाहिक संबन्धों का कारक ग्रह कहा जाता है. कुण्डली में शुक्र का किसी भी अशुभ स्थिति में होना पति अथवा पत्नी में से किसी के जीवन साथी के अलावा अन्यत्र संबन्धों की ओर झुकाव होने की संभावनाएं बनाता है. इसलिये शुक्र की शुभ स्थिति दाम्पत्य जीवन के सुख को प्रभावित करती है.
कुण्डली में शुक्र की शुभाशुभ स्थिति के आधार पर ही दाम्पत्य जीवन में आने वाले सुख का आकलन किया जा सकता है. इसलिये जब शुक्र बली हों, पाप प्रभाव से मुक्त हों, किसी उच्च ग्रह के साथ किसी शुभ भाव में बैठा हों तो, अथवा शुभ ग्रह से दृ्ष्ट हों तो दाम्पत्य सुख में कमी नहीं होती है. उपरोक्त ये योग जब कुण्डली में नहीं होते है. तब स्थिति इसके विपरीत होती है. शुक्र अगर स्वयं बली है, स्व अथवा उच्च राशि में स्थित है. केन्द्र या त्रिकोण में हों तब भी अच्छा दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है.इसके विपरीत जब त्रिक भाव, नीच का अथवा शत्रु क्षेत्र में बैठा हों, अस्त अथवा किसी पापी ग्रह से दृ्ष्ट अथवा पापी ग्रह के साथ में बैठा हों तब दाम्पत्य जीवन के लिये अशुभ योग बनता है. यहां तक की ऎसे योग के कारण ं पति-पत्नी के अलगाव की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है. इसके अलावा शुक्र, मंगल का संबन्ध व्यक्ति की अत्यधिक रुचि वैवाहिक सम्बन्धों में होने की सम्भावनाएं बनाती है. यह योग इन संबन्धों में व्यक्ति के हिंसक प्रवृ्ति अपनाने का भी संकेत करता है.इसलिये विवाह के समय कुण्डलियों की जांच करते समय शुक्र का भी गहराई से अध्ययन करना चाहिए.
.. मंगल की वैवाहिक जीवन में भूमिका —–
मंगल की जांच किये बिना विवाह के पक्ष से कुण्डलियों का अध्ययन पूरा ही नहीं होता है. भावी वर-वधू की कुण्डलियों का विश्लेषण करते समय सबसे पहले कुण्डली में मंगल की स्थिति पर विचार किया जाता है. मंगल किन भावों में स्थित है, कौन से ग्रहों से द्रष्टि संबन्ध बना रहा है , तथा किन ग्रहों से युति संबन्ध में है. इन सभी बातों की बारीकी से जांच की जाती है.मंगल के सहयोग से मांगलिक योग का निर्माण होता है . वैवाहिक जीवन में मांगलिक योग को इतना अधिक महत्वपूर्ण बना दिया गया है कि जो लोग ज्योतिष शास्त्र में विश्वास नहीं करते है. अथवा जिन्हें विवाह से पूर्व कुण्डलियों की जांच करना अनुकुल नहीं लगता है वे भी यह जान लेना चाहते है कि वर-वधू की कुण्डलियों में मांगलिक योग बन रहा है या नहीं.चूंकि विवाह के बाद सभी दाम्पत्य जीवन में सुख की कामना करते है. जबकि मांगलिक योग से इन इसमें कमी होती है. जब मंगल कुंण्डली के लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव में स्थित होता है तो व्यक्ति मांगलिक होता है. परन्तु मंगल का इन भावों में स्थित होने के अलावा भी मंगल के कारण वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आने की अनेक संभावनाएं बनती है.अनेक बार ऎसा होता है कि कुण्डली में मांगलिक योग बनता है. परन्तु कुण्डली के अन्य योगों से इस योग की अशुभता में कमी हो रही होती है. ऎसे में अपूर्ण जानकारी के कारण वर-वधू अपने मन में मांगलिक योग से प्राप्त होने वाले अशुभ प्रभाव को लेकर भयभीत होते रहते है. तथा बेवजह की बातों को लेकर अनेक प्रकार के भ्रम भी बनाये रखते है. जो सही नहीं है. विवाह के बाद एक नये जीवन में प्रवेश करते समय मन में दाम्पत्य जीवन को लेकर किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं रखना चाहिए. 
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सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए पति-पत्नी को सेक्स क्रिया के बारे में ज्ञान होना जरूरी है—-
कोई भी स्त्री और पुरुष जब आपस में विवाह करते हैं तो उनके लिए सबसे पहली बात है शारीरिक संबंधों के बारे में पूरी तरह से जानकारी होना। इसको इस तरह से भी कहा जा सकता है कि भूख का लगना एक स्वाभाविक और प्राकृतिक प्रक्रिया है। भूख दो प्रकार की होती है- पहली पेट की भूख और दूसरी शरीर की भूख। पेट की भूख तो बच्चे को जन्म लेते ही लगने लगती है लेकिन शरीर की भूख युवावस्था के बाद लगती है। पेट की भूख को शांत करने के लिए तो प्रकृति ने भोजन की व्यवस्था की है लेकिन शरीर की भूख को शांत करने के लिए समाज द्वारा विवाह की स्थापना की है। विवाह के बाद शरीर की भूख को शांत करने के लिए पत्नी मौजूद रहती है जिसे हर तरह की मान्यता प्राप्त होती है—-
1.अपने दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने के लिए पति-पत्नी को सेक्स क्रिया का ज्ञान होना जरूरी है क्योंकि इसके ज्ञान के बिना दाम्पत्य जीवन का सुख अधूरा होता है।
2. सेक्स क्रिया करना दाम्पत्य जीवन में इसलिए जरूरी होता है क्योंकि इससे पति-पत्नी का आपसी संबंध गहरा होता है और वे एक-दूसरे को ठीक प्रकार से जान पाते हैं।
3. जब लड़की अपनी युवावस्था में पहुंचती है, तभी उसकी मां या सहेली, बड़ी बहन तथा कोई भी जानकार स्त्री को उसे सेक्स के बारे में शिक्षा देनी चाहिए ताकि वह शादी के बाद अपना जीवन सुखपूर्वक जी सके।
4. लड़की को शादी से पहले ही सेक्स का ज्ञान देना जरूरी इसलिए होता है क्योंकि हरेक पुरुष चाहता है कि उसकी पत्नी उसे सेक्स का सुख ठीक प्रकार से दे।
5. आजकल बहुत से स्त्री-पुरुष यह सोचते हैं कि सेक्स केवल शारीरिक जरूरत है जबकि ऐसा नहीं है क्योंकि सेक्स क्रिया के दौरान स्त्री-पुरुष खुलकर आपस में मिलते हैं तथा अपने अंदर के प्यार को एक-दूसरे पर लुटाने लगते हैं, इससे उनका प्यार गहरा हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि सेक्स के बिना दाम्पत्य जीवन अधूरा होता है।
6. कभी-कभी तो यह भी देखा गया है कि पति-पत्नी के दाम्पत्य जीवन के संबंध में पुराने-रीतिरिवाज के चक्कर से दरार पड़ने लगता है। अतः पति-पत्नी को कोई भी ऐसे रीतिरिवाज नहीं अपनाना चाहिए, जिससे आपसी संबंध में खट्टास उत्पन्न हो। उदाहारण के लिए मैं आपको यह बताना चाहूंगा कि बहुत से पति-पत्नी तो ऐसे होते हैं जो अपने परिवार वालों के कारण से कही बाहर एक-दूसरे के साथ नहीं जा पाते और इसके लिए पति-पत्नी का आपस में कलह होता रहता है।
7. पति-पत्नी को अपने डिप्रेशन तथा चिड़चिड़ेपन को दूर करके के लिए तथा अपने दाम्पत्य जीवन को अधिक गहरा बनाने के लिए एक-दूसरे पर भरोसा करना चाहिए।
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शुक्रवार देता है दांपत्य सुख, ग्लेमर, प्रेम और संतान सुख—-
जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह दांपत्य जीवन, ग्लेमर, वैभव, मान-प्रतिष्ठा, संतान सुख, प्रेम आदि का कारक ग्रह है। शुक्र आपके पक्ष में है तो आपको यह सभी सुख स्वत: ही प्राप्त हो जाएंगे। इन सभी सुखों के संबंध में वैसे तो अन्य ग्रहों का भी प्रभाव होता है परंतु काफी हद तक शुक्र ग्रह ही यह सभी देने में सक्षम है।
यदि आपकी कुंडली में शुक्र अशुभ फल देने वाला या विपक्ष में है तो यह उपाय करें:
– शुक्रवार के दिन किसी मंदिर या धार्मिक स्थान पर तुलसी का पौधा लगाएं।
– पांच शुक्रवार तक कन्याओं को दूध-मिश्री पिलाएं।
– अपने साथ हमेशा चांदी का सिक्का रखें।
– कम से कम एक गाय का पालन-पोषण करें। अपने घर में रखें।
– महालक्ष्मी की विशेष पूजा अर्चना करें।
– प्रति शुक्रवार शुक्र का दान करें। सफेद वस्तुएं दान में दें।
– गरीबों को घी दान करें।
– शुक्र ग्रह की किसी भी वस्तु को दान या उपहार में स्वीकार ना करें।
– प्रति शुक्रवार का व्रत करें।
– किसी स्त्री का दिल ना दुखाए।
– सदाचार का पालन करें। धर्म का साथा ना छोड़े।
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लाल किताब और गृहस्थ सुख—–(दाम्पत्य जीवन की सफलता के सूत्र)—
नीतिशास्त्र में मनुष्यों के लिए जिन सुखों का वर्णन किया गया है, उनमें पत्नी का सुंदर होने के साथ प्रिय बोलने वाली होना भी है- प्रिया च भार्या, प्रियवादिनी च। दाम्पत्य जीवन सुखमय होने में इन दोनों का ही महत्व है। पति-पत्नी परस्पर एक-दूसरे की भावनाओं का यदि आदर करते हैं तो वे व्यक्तिगत जीवन में भी सुखी होते ही हैं, उन्हें समाज में यश और सम्मान भी मिलता है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में शिव-पार्वती और राम-सीता को आदर्श दम्पती माना जाता है। कारण स्पष्ट है, प्रत्येक परिस्थिति में एक-दूसरे के प्रति अटूट विश्वास तथा एक-दूसरे की स्वीकृति। कभी-कभी चाहकर भी ऎसा नहीं हो पाता है। मानव मन उद्विग्न हो जाता है। एक-दूसरे के लिए,अस्थायी रूप में ही कुछ ऎसे भाव पैदा हो जाते हैं जो परस्पर कलह पैदा कर देते हैं। निम्न उपाय प्रेम-संबंध प्रगाढ कर पुन: दाम्पत्य सुख प्राप्त कराते हैं।
गृहस्थ जीवन के सुख के विषय में लाल किताब की अपनी मान्यताएं हैं. ज्योतिष की इस विधा में वैवाहिक जीवन के सुख के विषय में कई योगों का उल्लेख किया गया है. इनके अनुसार विवाह और वैवाहिक सुख के लिए शुक्र सबसे अधिक जिम्मेवार होता है. इस विषय में लाल किताब और भी बहुत कुछ कहता है.
लाल किताब पीड़ित शुक्र —-
लाल किताब कहता है यदि शुक्र जन्म कुण्डली में सोया हुआ है तो स्त्री सुख में कमी आती है. राहु अगर सूर्य के साथ योग बनाता है तो शुक्र मंदा हो जाता है जिसके कारण आर्थिक परेशानियों के साथ साथ स्त्री सुख भी बाधित होता है. लाल किताब में लग्न, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव को बंद मुट्ठी का घर कहा गया है. इन भाव के अतिरिक्त किसी भी अन्य भाव में शुक्र और बुध एक दूसरे के आमने सामने बैठे हों तो शुक्र पीड़ित होकर मन्दा प्रभाव देने लगता है. इस स्थिति में शुक्र यदि द्वादश भाव में होता है तो मन्दा फल नहीं देता है.
कुण्डली में खाना संख्या 1 में शुक्र हो और सप्तम में राहु तो शुक्र को मंदा करता है जिसके कारण दाम्पत्य जीवन का सुख नष्ट होता है.
लाल किताब के टोटके के अनुसार इस स्थिति में गृहस्थ सुख हेतु घर का फर्श बनवाते समय कुछ भाग कच्चा रखना चाहिए. लाल किताव के अनुसार ग्रह अगर एक दूसरे से छठे और आठवें घर में होते हैं तो टकराव के ग्रह बनते हैं. सूर्य और शनि कुण्डली में टकराव के ग्रह बनते हैं तब भी शुक्र मंदा फल देता है जिससे गृहस्थी का सुख प्रभावित होता है. पति पत्नी के बीच वैमनस्य और मनमुटाव रहता है.
लाल किताब पीड़ित मंगल —–
शुक्र के समान मंगल पीड़ित होने से भी वैवाहिक जीवन का सुख नष्ट होता है. कुण्डली में मंगल 1, 4, 7, 8 और खाना संख्या 12 में उपस्थित हो तो मंगली दोष बनाता है. इस दोष के कारण पति पत्नी में सामंजस्य की कमी रहती है. एक दूसरे से वैमनस्य रहता है. जीवनसाथी का स्वास्थ्य प्रभावित होत है.
लाल किताब कहता है अगर कुण्डली में मंगल दोषपूर्ण हो तो विवाह के समय घर में भूमि खोदकर उसमें तंदूर या भट्ठी नहीं लगानी चाहिए. इस स्थिति में व्यक्ति को मिट्टी का खाली पात्र चलते पानी मे प्रवाहित करना चाहिए. अगर आठवें खाने में मंगल पीड़ित है तो किसी विधवा स्त्री से आशीर्वाद लेना चाहिए. कन्या की कुण्डली में अष्टम भाव में मंगल है तो रोटी बनाते समय तबे पर ठंडे पानी के छींटे डालकर रोटी बनानी चाहिए.
सुखयम गृहस्थी के लिए लाल किताब के टोटके —
लाल किताब के अनुसार जन्मपत्री में शुक्र मंदा होने पर व्यक्ति को 25 वर्ष से पूर्व विवाह नहीं करना चाहिए. सूर्य और शुक्र के योग से शुक्र मंदा होने पर व्यक्ति को कान छिदवाना चाहिए. संयम का पालन करना चाहिए. परायी स्त्रियों से सम्पर्क नहीं रखना चाहिए. दाम्पत्य जीवन में परस्पर प्रेम और सामंजस्य की कमी होने पर शुक्रवार के दिन जीवनसाथी को सुगंधित फूल देना चाहिए. ) कांटेदार फूलों को घर के अंदर गमले में नहीं लगाना चाहिए इससे भी पारिवारिक जीवन अशांत होता है. विवाह के पश्चात स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां बढ़ने पर कपिला गाय के दूध का दान करना चाहिए. जीवनसाथी को सोने का कड़ा पहनाने से भी लाभ मिलता है.
कुण्डली में शुक्र से छठे खाने में बैठे ग्रह का उपाय करने से दाम्पत्य जीवन में खुशहाली आती है. इस उपाय से पति पत्नी के बीच वैचारिक मतभेद भी दूर होता है और आपसी सामंजस्य स्थापित होता है.सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए पति पत्नी को अपने सोने की चारपायी के सभी पायों में शुक्रवार के दिन चांदी की कील ठोंकनी चाहिए. सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए कुण्डली में अगर शुक्र के मुकाबले का कोई ग्रह बलवान है तो उसे दबाने का उपाय करना चाहिए.
विवाह में विलम्ब सम्बन्धी टोटके —-
विवाह में बार बार बाधाएं और रूकावट आने पर व्यक्ति को सुनसान भूमि में लकड़ी से ज़मीन खोदकर नीले रंग का फूल दबाना चाहिए. शनि के दुष्प्रभाव के कारण विवाह में विलम्ब हो रहा है तो शनिवार के दिन लकड़ी से भूमि खोदकर काला सुरमा दबाना चाहिए.
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सुखी दाम्पत्य /वैवाहिक सुख के उपाय—-
—-यदि किसी पुरूष या महिला के दाम्पत्य सुख में कमी हो तो दोमुखी तथा गौरीशंकर-इन दोनों रूद्राक्षों को धारण करने से वह कमी पूरी हो जाती है तथा दाम्पत्य जीवन में खुशहाली आ जाती है। सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रतिदिन प्रात: पूजा करते समय शंखनाद करना चाहिए।
—-यदि पति-पत्नी के मन आपस में न मिले तो उनका जीवन दाम्पत्य सुख से वंचित हो जाता है। ऎसे में 11 गोमती चक्रों को लाल सिंदूर की डिब्बी में रखकर घर में रखें तो सभी प्रकार के मन के क्लेश दूर हो जाएंगे। शुक्रवार को पांच कौडियां और एक गोमती चक्र को लाल गुलाब की पंखुडियों के साथ रखकर, ओमृ ह्नीं स: (पति-पत्नी का नाम) वशमानय स्वाहा, मंत्र का एक माला जप नित्य करें तो दाम्पत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है।
—-घर में सुख-शांति हेतु पति-पत्नी दोनों मिलकर लाल वस्त्र में समूर की दाल,रक्त चंदन एवं पांच लघु नारियल बांध लें। फिर हाथ जोडकर पारिवारिक क्लेश की मुक्ति की प्रार्थना करें तथा धूपादि देकर उस पोटली को गंगा में प्रवाहित कर दें। यह कृत्य 11 मंगलवार तक करें। इससे आपसी तनाव दूर होकर दाम्पत्य सुख की वृद्धि होगी।
—-विवाह के पश्चात् जब कन्या की विदाई होने वाली हो तो किसी पीले रंग के धातु के लोटे में गंगाजल लेकर,उसमें थोडी सी पिसी हल्दी मिलाएं और एक तांबे का सिक्का उसमें डालकर कन्या के ऊपर से 7 बार उसार कर उसके आगे गिरा दें। इस उपाय से उसका दाम्पत्य जीवन सदा सुखी रहेगा। कन्या के विवाह में जब चार दिन शेष रह जाएं, तब सात साबुत हल्दी की गांठें, पीतल के प्राचीन तीन सिक्के, केशर, थोडा-सा गुड व चने की दाल किसी पीले वस्त्र में बांधकर कन्या स्वयं अपनी ससुराल की ओर उछाल दे। इस क्रिया से कन्या अपनी सुसराल में पति संग सदा सुरक्षित एवं सुखी रहती है।
अपने ससुराल गृह में प्रवेश करने से पहले यदि कन्या चुपचाप मेहंदी में मिले हुए साबुत उडद गिरा दे और फिर प्रवेश करे तो उसका दाम्पत्य जीवन सदा सुखी और खुशहाल रहेगा। दाम्पत्य जीवन में यदि समस्याएं उठ खडी हों तो उनके शमन के लिए नियमित रूप से केले व पीपल वृक्ष की सेवा करें, अर्थात् गुरूवार को केले व पीपल को जल अर्पित करें, घी का दीपक जलाएं तथा शनिवार को पीपल में सरसों के तेल का दीपक जलाएं एवं मीठा जल अर्पित करें। ऎसा करने से आगे जीवन में कभी कोई समस्या नहीं आएंगी।
—-यदि पत्नी को उसका पति अधिक समय नहंी दे पाता है और इस कारण दोनों में प्रेम कम हो गया है, उनके दाम्पत्य जीवन में अशांति व्याप्त हो गई है, तो पत्नी को चाहिए कि वह केले के वृक्ष का पूजन और देवताओं के गुरू बृहस्पति की सेवा-आराधना आरंभ करे दे। कुछ ही दिनों में फल सामने आ जाएगा। बृहस्पति के दिन किसी चौराहे के पीपल पर जाएं। शुद्ध घी का दीपक और अगरबत्तियां अर्पित करें। एक दोने में या पत्ते पर तीन प्रकार की मिठाई रखकर अर्पित करें और हाथ जोडकर प्रार्थना करें कि मेरे दाम्पत्य जीवन की सभी समस्याओं का निवारण हो जाए। कुल 11 बृहस्पतिवार इस क्रिया को करने से दाम्पत्य जीवन की सभी समस्याओं का शमन हो जाएगा। पति और पत्नी दोनों ही एक-दूसरे की न सुनते हों, जिसके कारण उनके दाम्पत्य जीवन में अशांति व्याप्त हो गई हो, तो प्रात:कृत्यादि से निवृत होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करके किसी मंदिर में जाकर शिवलिंग की पूजा करके निम्न मंत्र का पांच माला जप करें-
“””ओम् नम: संभवाय च मयो भवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च।।”””
—दाम्पत्य सुख की प्राप्ति और अशांति के निवारण के लिए प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर भगवती दुर्गा के चित्र के सम्मुख दीपक और अगरबत्ती जलाकर पुष्प अर्पित करें। किसी भी माला से निम्नलिखित मंत्र का 1.8 जाप करें। कुल 21 दिनों में ही सुख-शांति का वातारण व्याप्त हो जाएगा- धां धीं धूं धूर्जटे! पत्नी वां वीं वूं वाग्धीश्वरि। क्रां क्रीं कं्र कालिका देवि! शांत शीं शूं शुभं कुरू।। यदि किसी कारण वश पति-पत्नी में अनबन हो जाने के कारण दाम्पत्य जीवन में अशांति व्याप्त हो गई हो तो निम्नलिखित मंत्रों का 21 बार नित्य पाठ करने से उनमें पहले जैसा प्रेम उत्पन्न हो जाता है—-
“”ओम यथा नकुलो विच्छिद्य सन्दधात्यहि पुन:। एवा कामस्य विच्छिनं सन्धेहि वीर्यावति:।।
अक्ष्यौ नौ मधुसंकाशे अनीके नौ समंजनम। अन्त: कृशुष्व मां ह्रदि मन इन्नौ सहासति।। “””
शुभ मुहूत्त में अथवा रविवार या मंगलवार के दिन प्रात: काल स्नानादि से निवृत्त होकर, पावन स्थान पर मृगचर्म के आसन पर बैठकर, पूर्व की ओर मुंह करके निम्नलिखित मंत्र का 108 बार जाप करें। तत्पश्चात् आम वृक्ष की लकडी की अगि्न में इस मंत्र को 108 बार बोलते हुए खीर की आहुति देकर हवन करें।
इससे दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होती है- “”ओम् नमो आदेस गुय का धरती में बैठ्या लोहे का पिण्ड राख लगाता गुरू गोरखनाथ आवन्ता जावन्ता हांक दे धार धार मार मार शब्द सांचा फुरो ईश्वरो वाचा।।””
निम्नलिखित मंत्र का 108 बार जप करने से यह सिद्ध हो जाता है। साधन-क्रम कृष्णपक्ष में आरंभ करना अच्छा रहता है। यदि अष्टमी या चतुर्दशी तिथि के दिन निम्नलिखित मंत्र को सिद्ध किया जाए तो अत्यंत प्रभावी होता है। इस मंत्र को प्रतिदिन जपने से सभी प्रकार के पारिवारिक एवं दाम्पत्य क्लेश समाप्त हो जाते हैं- —
ओम् क्षां क्षीं ह्नीं ह्नं क्रौं क्रैं फट् स्वाहा।। निम्नलिखित मंत्र का नियमित 108 जप करने से दाम्पत्य जीवन में कभी कोई विघ्न बाधा नहीं आती- —
“””ओम् उन्नतअऋषाभो वामनस्तअऎन्द्रा वैष्णवाअउन्नत:। शितिबाहु शितिपृष्ठस्तअऎन्द्रा बार्हस्पत्या: शुक्ररूपा- वाजिना: कल्माषाअअगि्ननमारूता: श्यामा पोैष्णा:।।””
—-निम्नलिखित मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का 21 बार जाप करने से अनैक भौतिक सुखों की प्राçप्त होती है और दाम्पत्य जीवन सुखमय रहता है-
(1) उपयामगृहीतोअस्याश्विने तेज: सारस्वत वीर्यमैन्द्र। बलम्! एष ते योनिर्मोदाय त्वानंदाय त्वा मरसेत्वा।।
(2) ओम ऋतं च मेअमृतं मेअपक्षमं च मेअनामयच्च मे जीवातुpमे दीर्घासुत्वं च मे अनमित्र च मेअभयं च मे मुखं च मे शयन च मे सृषाश्च में सुदिनं च मे यज्ञेन कल्पन्ताम।।
—–यदि पति से मनमुटाव के कारण दाम्पत्य जीवन दु:खपूर्ण हो गया है, तो सात गोमती चक्र, सात लघु नारियल, सात मोती शंख और थोडा-सा पीला वस्त्र लें। फिर पति जब निद्रालीन हो तो सभी सामग्री को पति के ऊपर से उतररकर जलती होलिका में फेंक दें। पति से मनमुटाव दूर होकर दाम्पत्य सुख प्राप्त होगा। जो माता-पिता यह चाहते हैं कि उनका दाम्पत्य जीवन सदा सुखी रहे, तो फेरे से पहले पीले रंग के डोरे में पांच गांठें लगा कन्या के हाथ में बांध दें। यह डोरा कंगना को स्पर्श करता रहे। विदाई के समय गंगाजल में थोडी-सी पिसी हल्दी डालकर कन्या के ऊपर से सात बार उसारकर उसके आगे डाले और फिर डोरा खोलकर भगवती पार्वती के चरणों में जाकर रख आएं।
—–यदि पति के कारण पत्नी का दाम्पत्य जीवन पीडादायक सिद्ध हो रहा हो, तो पत्नी अपने हाथों से 11 बेसन के लड्डू, 2 आटे के पेडे, 3 केले तथा थोडी सी गीली चने की दाल किसी ऎसी गाय को खिलाएं जो अपने बछडे को दूध पिला रही हो।
—-यदि किसी स्त्री को ऎसा लगे कि उसका दाम्पत्य जीवन छिन-भिन्न होने वाला है तो वह श्रावण मास में या किसी भी शुभ समय में 11 दिनो तक लगातार रूद्राष्टायायी द्वारा अभिषेक कराए। दाम्पत्य जीवन में प्रेम की वृद्धि के लिए पति द्वारा भोजन करने के बाद उसके बचे भोजन में से निवाला पत्नी अवश्य खाएं किंतु अपने बचे भोजन में से उसे न खाने दे।
—-विवाहिता स्त्री अपने दाम्पत्य सुख के निमित्त नित्य दुर्गा चालीस के पाठ के साथ उनके 108 नामों का जप भी अवश्य करें। जल में गुड डालकर सूर्यदेव का अƒर्य देने से भी दाम्पत्य जीवन सुख से भरपूर रहता है।
—-यदि किसी की स्त्री यौन-तुष्टि न पाने के कारण पति से रूष्ट रहती हो और इस कारण उसे छोडने पर आमादा हो गई हो, तो पति शुक्लपक्ष के सोमवार को प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर श्रीशिव की उपासना करे तथा बुधवार के दिन हिजडे को सुहाग सामग्री दान कर कुछ दक्षिणा भी अर्पित करे।
—-जो स्त्री शनिवार को चमेली के तेल का दीपक जलाकर श्रीसुंदर कांड का पाठ करती है, उसका दाम्पत्य जीवन सुखों से युक्त रहता है।
—यदि पति-पत्नी के बीच किसी न किसी बात को लेकर रोज ही झगडा होता हो तो दोनों ही इस उपाय को करें- शयनकक्ष में पति अपने तकिए के नीचे लाल सिंदूर रखे और पत्नी अपने तकिए के नीचे कपूर की टिक्की रख दें। प्रात: काल पति आधा सिंदूर घर में कहीं गिरा दे और आधा पत्नी की मांग में भर दे और पत्नी कपूर जलादें।झगडा सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। यदि पति नित्य केशर मिश्रित दूध का सेवन करे और पत्नी सदैव हाथों मेे सोने की चूडियां पहने रखे, तो उनका दाम्पत्य जीवन सुख से कभी वंचित नहीं होगा। पत्नी प्रतिदिन प्रात: उठते ही सर्वप्रथम मुख्य द्वार पर एक लोटा जल डाले। स्नानादि के बाद पूजा-पाठ करे तथा मुख्य द्वार पर हल्दी से स्वस्तिक एवं ओम् का चिह्न बनाए। इस उपाय से इसके दाम्पत्य जीवन में सुख और शांति बनी रहती है। यदि घर में खाने-पीने की कोई वस्तु आए तो पहले उसे गृह मंदिर में अर्पित करें। इससे घर तथा दाम्पत्य जीवन सुखद रहता है।
—-शादी करना तो कुछ कठिन नहीं, परंतु पूरे जीवन भर उसे शांति और आनंद के साथ सफलतापूर्वक निबाहना वास्तव में बहुत अधिक त्याग और समझारी की मांग करता है। वैसे जो भी परेशानियां आती हैं, वे प्रारंभ में चंद वर्षो तक ही अधिक परेशान करती हैं। इस अवस्था में पति-पत्नी में सामंजस्य बनाए रखने में ये ताबीज बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निबाह करते हैं।
—-यदि पति-पत्नी दोनों ही तीनों में से किसी भी एक यंत्र का ताबीज बनाकर पहने तब तो तलाक तक आई हुई नौबत भी दूर हो जाती है। इन्हें तैयार करने की विधि भी उपरोक्त के समान है। सबसे अच्छा तो यह रहेगा कि आप इनमें से किसी भी एक को सोने के पतरे पर खुदवाकर गले में पहने जाने वाली चेन के लॉकेट के रूप में धारण करें।

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