क्यों होता हें लक्ष्मी जी के साथ..देव गणेश का पूजन…???
भारत एक आध्यात्म और धर्म प्रधान देश है दीपावली भारत का
अत्यन्त प्राचीन सांस्कृतिक पर्व है। इस दिन धन और समृद्धि की
अधिष्ढात्री देवी लक्ष्मी का प्रार्दुभाव हुआ था। लक्ष्मी भगवान विष्णू
की पत्नी है फिर भी लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों
होती है?
आइये जाने कि ऐसा क्यों होता है। यह सर्व विदित सत्य है कि
कोई भी शुभ कार्य गणेश पूजन से ही प्रारम्भ होता है। गणेश जी
बुद्धि प्रदाता है। वे विघ्न विनाशक और विघ्नेश्वर हैं। यदि व्यक्ति
के पास धन सम्पदा है और बुद्धि का अभाव है तो वह उसका
सदुपयोग नहीं कर पायेगा। अतः व्यक्ति का बुद्धिमान और विवेक
होना भी आवश्यक है। तभी धन के महत्व को समझा जा सकता
है। गणेश का विशाल उदर अधिक सम्पदा का प्रतीक है। और सूँढ
कुशाग्र बुद्धि का प्रतीक है।
यह सर्वत्र मान्य है कि बिना गणेश जी की पूजा के किसी भी
पूजा का कोई अभीष्ट फल प्राप्त नहीं होता। जिस प्रकार लक्ष्मी जी
की पूजा से धन सम्पदा और ऐश्वर्य की प्राप्ति हो सकती है। उसी
प्रकार गणेश जी की पूजा से बुद्धि वाक चार्तुय की प्राप्ति होती है।
साथ ही संकटों का नाश होता है। पौराणिक ग्रन्थों में एक कथा में
प्रमाण मिलता है कि लक्ष्मी जी पूजा गणेश जी के साथ क्यों होती
है।
एक बार एक वैरागी साधु को राज सुख भोगने की लालसा हुई
उसने लक्ष्मी जी की आराधना की। उसकी आराधना से लक्ष्मी जी
प्रसन्न हुई तथा उसे साक्षात दर्शन देकर वरदान दिया कि उसे
उच्च पद और सम्मान प्राप्त होगा। दूसरे दिन वह वैरागी साधु राज
दरवार में पहुचा। वरदान मिलने से उसे अभिमान हो गया। उसने
राजा को धक्का मारा जिससे राजा का मुकुट नीचे गिर गया। राजा
व उसके दरबारीगण उसे मारने के लिए दौड़े। परन्तु इसी बीच
राजा के गिरे हुए मुकुट से एक काला नाग निकल कर भागने
लगा। सभी चैंक गये और साधु को चमत्कारी समझकर उस की
जय जयकार करने लगे। राजा ने प्रसन्न होकर साधु को मंत्री बना
दिया। क्योंकि उसी के कारण राजा की जान बची थी। साधु को
रहने के लिए अलग से महल दिया गया वह शान से रहने लगा।
राजा को एक दिन वह साधु भरे दरवार से हाथ खीचकर बाहर ले
गया। यह देख दरबारी जन भी पीछे भागे। सभी के बाहर जाते ही
भूकम्प आया और सभा भवन खण्डहर में तब्दील हो गया। उसी
साधु ने सबकी जान बचाई। अतः साधु का मान सम्मान बढ़ गया।
जिससे उसमें अहंकार की भावना विकसित हो गयी। राजा महल
में एक गणेश जी प्रतिमा थी एक दिन साधु ने वह प्रतिमा यह कह
कर वहाँ से हटवा दी कि यह प्रतिमा अच्छी नहीं है। साधु के इस
कार्य से गणेश जी रुष्ठ हो गये। उसी दिन से उस मंत्री बने साधु
की बुद्धि बिगड़ गई वह उल्टा पुल्टा करने लगा। राजा ने उससे
नाराज होकर कारागार में डाल दिया। वह जेल में पुनः लक्ष्मीजी
की आराधना करने लगा। लक्ष्मी जी ने दर्शन दे कर उससे कहा
कि तुमने गणेश जी का अपमान किया है। अतः गणेश जी की
आराधना करके उन्हें प्रसन्न करों। लक्ष्मीजी का आदेश पाकर वह
गणेश जी की आराधना करने लगा। इससे गणेश जी का क्रोध
शान्त हो गया। गणेश जी स्वप्न में राजा से कहा कि साधु को पुनः
मंत्री बनाया जाये। राजा ने गणेश जी के आदेश का पालन किया
और साधु को मंत्री पद देकर सुशोभित किया। इस प्रकार लक्ष्मीजी
और गणेश जी की पूजा साथ-साथ होने लगी। बुद्धि के देवता
गणेश जी की भी उपासना लक्ष्मीजी के साथ अवश्य करनी चाहिए
क्योंकि यदि लक्ष्मीजी आ भी जाये तो बुद्धि के उपयोग के बिना
उन्हें रोक पाना मुश्किल है।
इस प्रकार दीपावली की रात्रि में लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी की
भी आराधना की जाती है।
दीपावली पर पार्थिव पूजा का अपना विशिष्ट महत्व है।
धर्मशास्त्रों में भी पार्थिव पूजन का विशेष महत्व वर्णित है। इस
पार्थिव पूजन या मिट्टी की प्रतिमाओं के पीछे यह रहस्य छिपा है
कि इससे अमीर और गरीब का अन्तर मिटता है। सभी में समभाव
की भावना का विकास होता है। और यह शुद्ध व पवित्र भी मानी
जाती है।
अतः दीपावली पर मिट्टी की प्रतिमा से ही लक्ष्मी जी व गणेश
जी का विधिवत पूजन व अर्चन करना चाहिए जिससे धन सम्पदा
ऐश्वर्य के साथ-साथ बुद्धि का भी विकास हो।

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