दान व दान के प्रकार …..
भारतीय संस्कृति मे दान का महत्व सर्वादिक बताया गया है हमारे यहाँ जप तप दान यज्ञ का बड़ा भारी प्रभाव है। जब औशधीयों द्वारा किसी बीमार व्यक्ति की व्याधी समाप्त नही होती तो दवा के साथ दुआ व दान की गरिमा को अधिक सफल माना गया है। हमारे यहाँ ग्रहों द्वारा पीडि़त व्यक्ति को पंडि़त लोग दान का सहारा देकर रोग मुक्ति के उपाय सुझाते रहे है गोदान,कन्यादान आदि को हमारे षास्त्रों ने दान की श्रेश्ट श्रेणी में रखा है आईये कुछ एैसे दान भी है जिन्हें हम समाज के हित में करने का बीड़ा उठावें।
.. रक्तदान:- लोगो ने रक्तदान को महादान की संबा दी है व “सारे दान एक बार रक्त दान बार-बार” कहा है।
.. औशघीदानः- अस्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ करने के लिए रोगी व असमर्थ लोगो को औशघी दिलाना श्रेश्ठ दान है।
.. आरोग्यदानः- किसी असहाय व्यक्ति को अपनी देख-रेख में रखकर उसका ईलाज व आपरेषन आदि करवाना।
4. अंगदानः- रोगी का प्राण बचाने के लिए रक्त,माँस या किसी अंग का दान देना।
5. नेत्रदानः- मरणोपरान्त अपने नैत्रों को किसी एैसे व्यक्ति हेतु दान कर जाना जो जन्मान्घ है व हमारे नेत्र दान से दुनिया की रोषनी देख सकें।
6. कायादानः- अपने षरीर से परोपकार के कार्य करना व निस्वार्थ कार्य करके पुण्योपार्जन किया जाय, लुले लगंड़े आदि अथवा किसी अनाथ व निराघार बालक को संरक्षण देना। कायादान दपने आप मे एक विषिश्ठ पुण्य है। किसी व्यक्ति के पास धन न हो साधन न हो, बुद्वि या वाचिक षक्ति न हो फिर भी वह षरीर द्वारा दुसरे की सेवा करें।
7.श्रमदानः- श्रम दान प्रायः सामुहिक कार्यो के लिए होता है। श्रमदान से कई तालाब,सड़क बाॅध आदि का निर्माण करके ग्रामीण लोगो ने अपने कर्तव्य व ग्राम धर्म का परिचय दिया है।
8.समयदानः- व्यक्ति अपनी दिन चर्या मे से थोड़ा समय निकाल कर या ग्रीश्मावकाष या अन्य छुट्टीयों मे सत्कार्य के लिए अपना समय दे।
9.अभयदानः- सब दोनो मे अभयदान श्रेश्ट है बड़े-बड़े दानो का फल समय आने पर क्षीण हो जाता है लेकिन भयभीत प्राणी को अभयदान का फल कभी क्षीण नही होता।
1..आर्षीवाद दानः- हृदय से दिया गया आर्षीर्वाद फलदायी होता है बहु-सास को दैनिक प्रणाम करे तो मन वेमनस्य दूर होकर झगड़े कम होते है धर मे सुखषान्ति रहती है।
11. दयादानः- दयाधर्म का मूल हे, पाप मूल अभिमान,
तुलसी दया न छोडि़ये जब लग घट मे प्राण।।
जो गरीब का हित करे धन्य-धन्य वे लोग कहाँ सुदामा वापुरो कृश्ण मिताई योग, दया दि लमे रखिये, तू क्यो निरदय होय, सरई के सब जीव है कीड़ी कुन्जर सोय महापुरूशो ने कहा है-
छया के समान कोई धर्म नही, हिसां के समान कोई पाप नही, ब्रह्मचर्य के समान कोई व्रत नही व ज्ञान के समान कोई साधन नही, षान्ति के समान कोई सुख नही, ऋण के समान कोई दुख नही, ज्ञान के समान कोई पवित्र नही, ईष्वर के समान कोई इश्छ नही।
12.क्षमादाानः- क्षमा बड़न को चाहिए छोटेन को उत्पात,
कहा कवश्णु को धट गयो जो भृगूमारी लात,
क्षमा करने से मानसिक षान्ति मिलती है।
13.त्यागदानः- सारे सुख त्याग से मिलते है, दुसरो के अधिकार के लिए अपने अधिकार का त्याग करनो, दुसरो की इच्छा के लिए अपनी इच्छा त्याग करना, एैसा करने से निष्चय ही हमारा जीवन सफल होगा।
जे तो को काँटा बुवै ताही तू फूल बोही तू फूल के फूल है वो को है तिरसुल त्याग से सयुक्त परिवार में रहकर संयुक्त परिवार के लिए त्याग करना, सयुक्त परिवार मे बाप-बेटा, सास-बहु, दवेरानी-जिठानी, भाई-बहन, पति-पत्नि, भाई-बहन, एक दुसरे के लिए त्याग करना संयुक्त परिवार एक अनमोल कवच है।
इसी श्रेणी के जीवन में कई दान है जिनसे हमारे जीव न मे सुख षान्ति का अनुभव किया जा सकता है।

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