पश्चिम दिशा के अनुरूप भवन—


वास्तु शास्त्र प्राकृतिक तत्वों पर आधारित उच्चकोटि का विज्ञान हैं। वास्तुशास्त्र परोक्ष रूप से प्र्रकृति के नियमों का अनुसरण करता हैं जो मानव को पंच तत्वों में सन्तुलन बनाएँ रखने की प्रेरणा देता हैं। सृष्टि की रचना पंच तत्वों से हुई हैं जो कि वायु, अग्नि, जल, आकाश एवं पृथ्वी हैं। यह तत्व एक निश्चित रूप में पाये जाते हैं। यदि इन पंच तत्वों के गुणधर्म को समझकर निर्माण किया जाए तो वास्तु सम्बन्धी अनेक समस्याओं का सहज समाधान संभव हो जाएगा। 
ऐसे भूखण्ड जिसकी संड़क पश्चिमी होतो उसे पश्चिममुखी भूखण्ड कहते है। ऐसे भूखण्डो का प्रभाव बच्चो पर देखा जाता है। पश्चिम दिशा से काल पुरूष  का पेट, गुप्तांग एवं प्रजनन अंग पर विचार किया जाता है। कुण्डली का सप्तम घर से किसी भी गृहस्वामी का पश्चिम देखा जाता है।  इस दिशा का स्वामी वरूण है। इसका प्रतिनिधि ग्रह शनि है।
ज्योतिश में पश्चिम दिशा  का कारक ग्रह षनि को माना जाता है क्यों कि यह अंधकार की ओर अग्रसर है।  पश्चिम दिशा  में षाम के वक्त इन्फ्रारेड किरणों का समावेष होने से षाम की धूप को कीटानुनाषक माना है, अतः पश्चिम दिशा  में बनाए गए TOILET  का उपयुक्त स्थान है।इस दिषा में भूमिगत पानी का टंक भी नहीं बनाते हैं क्यों कि पानी चन्द्रमा का कारक है जो कि षनि के विरोधी ग्रुप से सम्बन्धित है। षनि$चन्द्रमा होने से व्यक्तियों के कार्य बार बार के अथक प्रयासों से विलम्ब या बनते हुए कार्य बिगड़ते रहते हैं तथा परिणाम नकारात्मक तथा उदासी भावों से घिरे रहते हैं। इस दिषा में बने ओवरहैड टैंक, भूमिगत टैंकों या बगीचे से होने वाले पानी के रिसाव से जातक विषेश की मेहनत का परिणाम अपेक्षाकृत कम रहने के साथ साथ व्यर्थ में धन खर्च, व्यर्थ में वाणी प्रयोग, मतभेद, वाद-विवाद होता रहता है।
धन, तुला और मिथुन राशि वालो को पश्चिम दिशा मुख वाला भवन बनाना चाहिए।
/. पश्चिम को ऊँचा, भारी एवं फर्श को भी ऊँची रखे एवं बन्द रखे। 
/. पश्चिम में अगर खिड़कियां होगी तो भवन में किसी भी व्यक्ति को सरदद्र की बीमारी रहेगी।
/. पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से होकर निर्गम हो तो पुरूष लंबी बिमारियों के शिकार होंगे।
/. घर की दीवारें काली-कलूटी, गहरे रंग की हों, घर में अंधेरा व पर्दे अधिक हों, रहस्यमय दरवाजे हों तो ऐसे गृहस्वामी की कुण्डली शनि ग्रह से प्रभावित होती है।
/. पश्चिम दीवार पर अगर दरार या टूटा-फूटा होगा तो गृहस्वामी अधिकतर अपना व्यवसाय बदलता रहेगा व बीमार भी अधिक रहेगा।
/. यदि पश्चिम मुखी भवन हो तो गृहस्वामी अपने धन्धे के अन्दर ज्यादा ध्यान देगा। वह अपनी पत्नी के साथ भी कम रहेगा।
/. पश्चिम दिशा में पूजा स्थान हो तो गृहस्वामी तान्त्रिक, जादू-टोना, ज्योतिष एवं दुःखी होगा। ऐसे कितनों को दुःखी देखा है। वह जिन्दगी में कभी-भी सुख सम्पन्न नहीं हो सकता है। अगर विप्र होगा तो सुखी रहेगा।
/. पश्चिम में रसोई हो तो गृहस्वामी खूब धन कमायेगा किन्तु धन की बरकत नहीं होगी।पष्चिम में रसोईघर नहीं होनी चाहिए क्यों कि रसोई को मंगल ग्रह का कारक माना है तथा पष्चिम दिषा षनि ग्रह से सम्बन्धित है अतः दोनों स्वाभाविक विपरीत परिस्थितियों में कारकत्व को प्राप्त होने के कारण अनावष्यक खर्चों, विवाद, सेहत को प्रभावित करते है। 
/. यदि ठीक पश्चिम में रसोई होगा तो घर में आश्रित जन को गर्मी, मस्से की शिकायत, शनि$मंगल के सयंुक्त प्रभाव के कारण होगी। यदि ऐसे घर का दरवाजा छोटा है तो घर पर केतु का कुप्रभाव होगा जिससे गृहस्वामी के उज्ज्वल भविष्य में बाधा आयेगी।
/. गृह-स्थल व अहाते, गृह के कमरे तथा बरामदे का पश्चिम भाग निम्न हो तो अपयश और अर्थहानि होगी। पश्चिम के खाली स्थल की अपेक्षा पूर्वी दिशा खाली स्थल कम हो तो पुरूष संतान की हानि होती है।
/. इसी प्रकार पूजाघर इस दिषा में नहीं बना सकते क्यों कि पूजाघर गुरू का अधिकार क्षेत्र है जो षनि से विपरीत गु्रप सेसम्बन्धित है। अतः इस दिषा के पूजाघर में एकाग्रता में कमी रहना स्वभाविक हो जाता है। पश्चिम दिशा में पूजा स्थान हो तो गृहस्वामी तान्त्रिक, जादू-टोना, ज्योतिष एवं दुःखी होगा। ऐसे कितनों को दुःखी देखा है। वह जिन्दगी में कभी-भी सुख सम्पन्न नहीं हो सकता है। अगर विप्र होगा तो सुखी रहेगा।
/.मकान की आंतरिक साज सज्जा जो षुक्र ग्रह के कारकत्व में है, को भी षनि ग्रह के अनुकूल प्रारूपित करने पर ही  पष्चिम मुखी भवन अधिक हितकर रहेगा।
/. पश्चिम में बने भवन के दरवाजे का मुख नैऋत्य में होने से दीर्घ रोग, अकाल मृत्यु तथा आर्थिक संकट होने की आशंका होती है।
/. पश्चिम में पूर्व की अपेक्षा अधिक खूला भाग रखने पर पुत्रों को कष्ट एवं हानि का संताप रहता है।
समाधान
.. श्री हनुमान्जी की आराधना करें।
.. शनिवार के दिन भैरव मन्दिर में दीपक जलायें।
.. मुख्य द्वार को आकर्षक बनाए।
4. शनिवार का वृत करें।
5. शनिवार को खेजड़ी में जल डालें।
 पं. दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0 .;;., 

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