क्यों होने चाहिए दिषाओं के अनुरूप भवन..???
नैऋत्य दिशा / मुखी ….मकान/भवन—-
वास्तु का अर्थ है वास करने का स्थान। महाराज भोज देव द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी में ‘समरांगण सूत्रधार’ नामक ग्रंथ लिखा गया था जो वस्तु शास्त्र का प्रमाणिक एवं अमूल्य ग्रथं है। वैसे वास्तु शास्त्र कोई नया विषय या ज्ञान नहीं है। बहुत पुराने समय से यह भारत में प्रचलित था। जीवनचर्या की तमाम क्रियाएं किस दिशा से संबंधित होकर करनी चाहिए इसी का ज्ञान इस शास्त्र में विशेष रूप से बताया गया है। भूमि, जल प्रकाष, वायु तथा आकांश नामक महापंच भूतों के समन्वय संबंधी नियमों का सूत्रीकरण किया, ऋशि मुनियों ने। पूर्व दिशा के परिणाम बच्चों को प्रभावित करते हैं। जिन भवनों में पूर्व और उत्तर में खाली स्थान छोड़ा जाता है, उनके निवासी समृद्ध और निरोगी रहते हैं। मकान के उत्तर और पूर्व का स्थल दूर से ही उनके निवासियों के जीवन स्तर की गाथा स्वयं स्पश्ट कर देते हैं।वास्तु शास्त्र प्राकृतिक तत्वों पर आधारित उच्चकोटि का विज्ञान हैं। वास्तुशास्त्र परोक्ष रूप से प्र्रकृति के नियमों का अनुसरण करता हैं जो मानव को पंच तत्वों में सन्तुलन बनाएँ रखने की प्रेरणा देता हैं। सृष्टि की रचना पंच तत्वों से हुई हैं जो कि वायु, अग्नि, जल, आकाश एवं पृथ्वी हैं। यह तत्व एक निश्चित रूप में पाये जाते हैं। यदि इन पंच तत्वों के गुणधर्म को समझकर निर्माण किया जाए तो वास्तु सम्बन्धी अनेक समस्याओं का सहज समाधान संभव हो जाएगा।
नैऋत्य कोण यानि दक्षिणी पष्चिमी कोण यानि वास्तु की परिभाशा में सबसे निकृश्ट स्थान।
देखा जाता है कि शहरो में छोटी-छोटी जगह होती है और उन्ही पर गेट लगाना पड़ता है। जिसका मैंन गेट दक्षिण पश्चिम में होता है नैऋत्य भूखण्ड कहलाता है। चूंकी नैऋत्य दिशा का महत्त्व वास्तु शास्त्र में ईशान के समक्ष है अतएव ऐसे प्रमाण पर वास्तु निर्माण का कार्य विशेष सावधानी से ही करना चाहिये। और अगर शास्त्रानुसार पद्धति से निर्माण कार्य किया जाये तो यह भूखण्ड सबसे अधिक उपयोगी तथा स्वामी के अनुकूल होता हैै। ऐसे भूखण्डों का मुख्य प्रभाव परिवार प्रमुख उसकी सहधर्मिणी एवं ज्येष्ट पुत्र पर परिलक्षित होता है। ऐसे भूखण्डों में निम्नानुसार विशिष्ट सावधानिया रखना। भुस्वामी के लिये लाभदायक होती है। अन्यथा मृत्युतुल्य आपदाओं का सामना करना पड़ता है।
/. नैऋत्य कोण हमेशा भरा रहना चाहिए।
/. इस प्रकार के भूखण्डो के चारो तरफ खूली जगह रहना उत्तम है।
/. यदि नैऋत्य दिशा में बिना मूल्य के भी भूखण्ड मिलता है तो नहीं लेना चाहिये। यह महाअशुभ है।
/. नैऋत्य कोण में रसोई होगी तो पति-पत्नी मे नित्य कलह होगा। स्त्री को गर्मी की शिकायत, गैस्टिक ट्रबल, हमेशा घर में कलेश रहेगा और जीवन निरस रहेगा।
/. नैऋत्य दिशा में शयनकक्ष सबसे शुभ हुँ परन्तु नैऋत्य दिशा में सोने वाला आलसी हो जाता है और उसे आराम की तलब रहेगी। इसका समाधान यह है कि सोते समय अपने सिर के पिछे लाल बल्ब लगाये और ध्यान रखे की उस बल्ब की रोशनी अपने मुख पर नहीं आनी चाहिए। इसके कारण प्रातःकाल उठोगे तो अपने आप को तरोताजा महसूस करोगे एवं रात को नीन्द अच्छी आयेगी एवं धन की उत्पत्ति होगी।
/. नैऋत्य कोण बढ़ जाने पर मकान मालिक जीवन में कभी भी उन्नति नहीं करेगा, दूसरी औरत भी ला सकता है एवं अश्लील हरकते करेगा।
/. यदि नैऋत्य कोण में खाली स्थान है तो जन्मकुण्डली में राहु अकेला है। गृहस्वामी का खजाना खाली रहेगा।
/. दक्षिण में उत्तर की अपेक्षा अधिक रिक्त स्थान छोड़ना महिलाओ के लिये अशुभ होता है तथा अकाल मृत्यु आदि की आशंका का कारण है। जबकि पश्चिम में पूर्व की अपेक्षा अधिक रिक्त स्थान छोड़ना पुरूषो को ऐसा ही फल देता है। कालान्तर में ऐसे मकानों के निर्माण कर्ता मकान का उपयोग नहीं कर पाते अन्य ही जने मकान का उपयोग करते है।
/. नैऋत्य दिशा में यदि कुआं है जो राहु$चन्द्रमा की युती का प्रभाव है। गृहस्वामी अकारण भयग्रस्त रहेगा एवं मानसिक तनाव से पीडि़त होगा। इससे मकान मालिक की उम्र घटेगी एवं टोटके लगते ही रहेंगे और मालिक कर्जदार रहेगा।
/. यदि भवन पुराना है, नैऋत्य दिशा में टूटी हुई दीवार या दरार है, वहीं कुॅआ है तो भवन में कोई-न-कोई व्यक्ति प्रेतबाधा से पीडि़त होगा। व्यक्ति की जन्मकुण्डली में राहु बिगड़ा हुआ होगा।/. नैऋत्य गृह के लिए दक्षिण-पश्चिम में खाली स्थान हो, पूरब एवं उत्तर में खाली स्थल न हो तो पूर्व-उत्तर को हद बनाकर गृह का निर्माण करवा लें तो आर्थिक नुकसान के साथ पुत्र की हानि होगी और वह गृह स्त्री-संपŸिा बन जाएगा।
/. नैऋत्य दिशा का वर्षा जल दक्षिण के परनाले द्वारा बाहर निकलता हो तो स्त्रियों तथा पश्चिम के परनाले द्वारा निर्गम हो तो पुरूषों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
/. नैऋत्य अग्रेत हो तो शत्रु, अदालत एवं ऋण-संबंधी कठिनाइयाँ पैदा होंगी।
/. नैऋत्य कोण थोड़ा सा काट दिया जाये तो हानि नहीं है।/. दक्षिण-नैऋत्य मार्ग प्रहार से उस गृह की नारियां भयंकर व्याधियों से पीडि़त होंगी। इसके साथ नैऋत्य में कुॅआ हो तो आत्महत्या, दीर्घ रोग अथवा मृत्यु की संभावना है।
/. नैऋत्य दिशा में या दक्षिण के साथ सटे हुए अथवा पश्चिम से जुड़े हुए अग्रेत नहीं होने चाहिए। दक्षिण-नैऋत्य में बढ़ने से स्त्रियों के लिए, पश्चिम-नैऋत्य में अग्रेत हो तो पुरूषों के लिए, दक्षिण, पश्चिम-नैऋत्य दोनों दिशाए मिलकर विदिक या कोण में अग्रेत हों तो स्त्री-पुरूषों के लिए मृत्यु, दीर्घ व्याधि और बदचलन होने की संभावना होगी। साथ ही विशेष दुःख व हानि के शिकार होंगे।
/. नैऋत्य कोण में अगर सेफ्टिक टेंक, कुॅआ, नीचापन होगा तो उस घर में बाहर की हवा, टोटके, वगैराह लगते रहेंगे। मालिक का दिमाग अस्थिर रहेगा।
समाधान
.. मुख्य द्वार पर भुरे रंग या मिश्रित रंग वाले गणपति लगावें।
.. ‘दिग्दोष नाशक’ एवं ‘ईन्द्राणी’ यंत्र लगावे।
.. अच्छे वास्तुशास्त्री से सलाह ले।
4. घर में स्पटिक का श्री यंत्र लगाये।
पं. दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार,
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0 .;; .

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