आइये जाने चन्द्र गृह के गुण, प्रभाव और परिणाम—

प्यार की चांदनी बिखेरता है चंद्रमा—

प्रेम का कारक चंद्रमा है। नजद‍ीकियां बढ़ना, टूटना, बिगड़ना, बिछड़ना यह सब ह्यूमन लव रिलेशनशिप के जरूरी परिणाम हैं। जिनका सीधा कारक चंद्र है। चंद्रमा स्वयं प्रेम का स्वरूप और प्रतिरूप है। प्रेम की शीतल छाया चंद्रमा के मजबूत होने से ही मिलती है। 

मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा ने स्वयं देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण किया और अनेक दिवस तक भोग-विलास में रत रहे। जिससे बुध ग्रह का जन्म हुआ। अतः किसी के भी जीवन में प्रेम की उत्पत्ति या भोग विलास की प्रवृत्ति चंद्रमा के कुंडली में प्रबल होने के कारण होती है।

दूसरा ग्रह शुक्र-दैत्य गुरु हैं। इनसे ही विवाह आदि कार्य संपन्न होते हैं। अगर शुक्र अस्त हो गया तो विवाह आदि सभी मांगलिक कार्य रुक जाते हैं। तीसरे प्रमुख ग्रह देव गुरु बृहस्पति हैं। बृहस्पति भी प्रेम भाव को प्रकट करने वाले कारक ग्रह हैं। 

सबसे महत्वपूर्ण कारक जीवों में पूर्वजन्म का संस्कार है। यही संस्कार एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। इंद्र ने स्त्रियों को वरदान दिया है- स्त्रियां जब चाहेंगी तब उनके अंदर काम की भावना जागृत और प्रकट हो जाएगी, यह श्रीमद्भागवत में लिखा है। इसीलिए पशुओं को छोड़कर मानव कभी भी फिजीकल रिलेशनशिप के लिए तैयार हो सकता है। माता-पिता, भाई-बहन, गुरु-शिष्य और मित्रों का प्रेम सात्विक, स्वाभाविक और पवित्र प्रेम है। 

समुद्र के ज्वार-भाटा का कारण चंद्रमा ही है, जो लव-इमोशन्स का भी निर्धारक ग्रह है। चंद्र-चकोर, चांदनी का प्रेम और विरह में योग जैसे विषय चंद्रमा को प्रेम का ग्रह बनाते हैं। प्रथम दृष्टि का प्रेम (लव एट फर्स्ट साइट) और कुछ नहीं केवल ग्रहों का परिणाम है। ग्रहों की विशिष्ट युतियां या कहें कॉम्बिनेशन से ही यह स्थिति लाइफ में आती है। 

परमानेंट फ्रेंडशिप, दो व्यक्तियों के प्लेनेट और राशियों के मालिकों के बीच के एस्ट्रो कैल्क्यूलेशन पर आधारित है। मदनोत्सव की मान्यता पीछे भी शुक्र ग्रह की मजबूती प्रमुख कारण है। 

जहां सेक्स और फिजीकल इन्वॉल्वमेंट प्रेम का आधार हो वहां शुक्र प्रबल होता है। जहां डेडिकेशन व कमिटमेंट हो,वहां बृहस्पति यानी ज्यूपिटर प्रेम का कारक होगा। शुक्र का मंगल से भी संबंध होता है। दो लवर्स की कुंडली(होरोस्कोप) में मंगल और शुक्र का अच्छा संबंध लव-फीलिंग्स और लव-रिलेशनशिप को लांग टर्म बनाना है। लव एट फर्स्ट साइट में पिछले जन्मों के ग्रहों की युति तथा कार्यों का परिणाम है।


चंद्र ग्रह : एक नजर में—



।।ॐ नम: शिवाय।।
।ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः

वैज्ञानिक दृष्टिकोण : असल में चंद्र कोई ग्रह नहीं बल्कि धरती का उपग्रह माना गया है। पृथ्वी के मुकाबले यह एक चौथाई अंश के बराबर है। पृथ्वी से इसकी दूरी 4.6860 किलोमीटर मानी गई है। चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा .7 दिन में पूर्ण कर लेता है। इतने ही समय में यह अपनी धुरी पर एक चक्कर लगा लेता है। .5 दिन तक इसकी कलाएं क्षीण होती है तो 15 दिन यह बढ़ता रहता है। चंद्रमा सूर्य से प्रकाश लेकर धरती को प्रकाशित करता है।

पुराणों अनुसार : देव और दानवों द्वारा किए गए सागर मंथन से जो 14 रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था।

चंद्र देवता हिंदू धर्म के अनेक देवताओं मे से एक हैं उन्हें जल तत्व का देव कहा जाता है। चंद्रमा की महादशा दस वर्ष की होती है। चंद्रमा के अधिदेवता अप्‌ और प्रत्यधिदेवता उमा देवी हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं। इन्हें अन्नमय, मनोमय, अमृतमय पुरुषस्वरूप भगवान कहा जाता है।

प्रजापितामह ब्रह्मा ने चंद्र देवता को बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का राजा बनाया। चंद्रमा का विवाह राजा दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ। ये कन्याएं सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में भी जानी जाती हैं, जैसे अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, शतभिषा आदि। 

चंद्रदेव की पत्नी रोहिणी से उनको एक पुत्र मिला जिनका नाम बुध है। चंद्र ग्रह ही सभी देवता, पितर, यक्ष, मनुष्य, भूत, पशु-पक्षी और वृक्ष आदि के प्राणों का आप्यायन करते हैं। 


अशुभ : 
ूध देने वाला जानवर मर जाए। यदि घोड़ा पाल रखा हो तो उसकी मृत्यु भी तय है, किंतु आमतौर पर अब लोगों के यहां ये जानवर नहीं होते। माता का बीमार होना या घर के जल के स्रोतों का सूख जाना भी चंद्र के अशुभ होने की निशानी है। महसूस करने की क्षमता क्षीण हो जाती है। राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चंद्र पर पड़ने से चंद्र अशुभ हो जाता है। मानसिक रोगों का कारण भी चंद्र को माना गया है।

शुभ : शुभ चंद्र व्यक्ति को धनवान और दयालु बनाता है। सुख और शांति देता है। भूमि और भवन के मालिक चंद्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

उपाय : प्रतिदिन माता के पैर छूना। शिव की भक्ति। सोमवार का व्रत। पानी या दूध को साफ पात्र में सिरहाने रखकर सोएं और सुबह कीकर के वृक्ष की जड़ में डाल दें। चावल, सफेद वस्त्र, शंख, वंशपात्र, सफेद चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, बैल, दही और मोती दान करना चाहिए।

देवता : शिव
गोत्र : अत्रि
दिशा : वायव
दिवस : सोमवार
वस्त्र : धोती
पशु : घोड़ा
अंग : दिल, बायां भाग
पेशा : कुम्हार, झींवर
वस्तु : चांदी, मोती, दूध
स्वभाव : शीतल और शांत
वर्ण-जाति : श्वेत, ब्राह्मण
विशेषता : दयालु, हमदर्द
भ्रमण : एक राशि में सवा दो दिन।
नक्षत्र : रोहिणी, हस्त, श्रवण
गुण : माता, जायदाद जिद्दी, शांति

वृक्ष : पोस्त का हरा पौधा, जिसमें दूध हो।
शक्ति : सुख शांति का मालिक, माता का प्यारा, पूर्वजों का सेवक।
वाहन : हिरण, श्वेत रंग के दस घोड़ों से चलने वाला हीरेजड़‍ित तीन पहियों वाला रथ है।
राशि : नक्षत्रों और कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा के मित्र सूर्य, बुध। राहु और केतु शत्रु है। मंगल, गुरु, शुक्र और शनि सम हैं। राहु के साथ होने से चंद्र ग्रहण।
अन्य नाम : सोम, रजनीपति, रजनीश, शशि, कला, निधि, इंदू, 

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