विवाह के समय निर्धारण पर ध्यान देना जरूरी है..–श्रीकान्त पान्डे
विवाह एक अदभुत संयोग होता है जिसका प्रोयोजन सिर्फ मानव के जीवन को और आनंददायक और ज्यादा खुशहाल बनाने के लिय नही अपितु पूर्व जन्मो के पाप और पुन्य के संचित भाव के भोगने के कारक भी होता है।आज कल विवाह का शुभ निर्धारित समय बीत जाने पर ही विवाह होता है ये बड़ा शोक का विषय है ,हमेशा ध्यान रखे की विवाह के शुभ समय ही विवाह हो न की समय के बीत जाने पर,नही तो ज्योतिष के हिसाब से विवाह का समय निकलवाने का ओचित्य क्या बचा , नही तो विवाह उपरांत वैवाहिक जीवन में समस्याए आती है।विवाह के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है की मनुष्य को पूरा जीवन अकेले नही जी सकता क्योकि मनुष्य अपने सुख और दुःख अपने भाव और फीलिंग्स को बाटने के लिय एक मित्र या सच्चे हमसफर की आवश्यकता होती है और विवाह के बाद मनुष्य का अकेलापन भी समाप्त हो जाता है क्योकि मनुष्य एक समाजिक पशु होता है । विवाह के बाद कुंठित होने का भय नही रहता ।विवाह समय निर्धारण के लिये सबसे पहले कुण्डली में विवाह के योग देखे जाते है. इसके लिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र से संबन्ध बनाने वाले ग्रहों का विश्लेषण किया जाता है. जन्म कुण्डली में जो भी ग्रह अशुभ या पापी ग्रह हो उनके इन दृ्ष्टि, युति या स्थिति के प्रभाव से इन ग्रहों से संबन्ध बना रहा होता है. वह ग्रह विवाह में विलम्ब का कारण बन रहा होता है.मारक शुभ-अशुभ,पाप और नीच ग्रहों से भी विवाह में समस्याए आती है। इसलिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव जितना अधिक हो, उतना ही शुभ रहता है (Higher influence of the auspicious planets is good for marriage). तथा अशुभ ग्रहों का प्रभाव न होना भी विवाह का समय पर होने के लिये सही रहता है. क्योकि अशुभ। पापी ग्रह जब भी इन तीनों को या इन तीनों में से किसी एक को प्रभावित करते है. विवाह की अवधि में देरी होती ही है. जन्म कुण्डली में जब योगों के आधार पर विवाह की आयु निर्धारित हो जाये तो, उसके बाद विवाह के कारक ग्रह शुक्र (Venus is the Karak planet for marriage) व विवाह के मुख्य भाव व सहायक भावों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है. आईये देखे की दशाएं विवाह के समय निर्धारण में किस प्रकार सहयोग करती है:- सप्तमेश की दशा- अन्तर्दशा में विवाह- (Marriage in the Mahadasha-Antardasha of Seventh Lord जब कुण्डली के योग विवाह की संभावनाएं बना रहे हों, तथा व्यक्ति की ग्रह दशा में सप्तमेश का संबन्ध शुक्र से हो तों इस अवधि में विवाह होता है. इसके अलावा जब सप्तमेश जब द्वितीयेश के साथ ग्रह दशा में संबन्ध बना रहे हों उस स्थिति में भी विवाह होने के योग बनते हैआ रहा हों तथा ये दोनों जन्म कुण्डली में पंचमेश से भी संबन्ध बनाते हों तो इस ग्रह दशा में प्रेम विवाह होने की संभावनाएं बनती है..अगर एषा नही होता तो सप्तमेश शुक्र का प्रभाव बनाने के लिय जातक को सम्बन्धित उपाय करने चाहिए सप्तम भाव में स्थित ग्रहों की दशा में विवाह (Marriage in the Dasha of the planets in the seventh house सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित हो या उनसे पूर्ण दृष्टि संबन्ध बना रहे हों, उन सभी ग्रहों की दशा – अन्तर्दशा में विवाह हो सकता है. इसके अलावा निम्न योगों में विवाह होने की संभावनाएं बनती है:-
क) सप्तम भाव में स्थित ग्रह, सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर शुभ भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह संबन्धित ग्रह दशा की आरम्भ की अवधि में विवाह होने की संभावनाएं बनाती है. या
ख) शुक्र, सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर अशुभ भाव या अशुभ ग्रह की राशि में स्थित होने पर अपनी दशा- अन्तर्दशा के मध्य भाग में विवाह की संभावनाएं बनाता है.
ग) इसके अतिरिक्त जब अशुभ ग्रह बली होकर सप्तम भाव में स्थित हों या स्वयं सप्तमेश हों तो इस ग्रह की दशा के अन्तिम भाग में विवाह संभावित होता है.
शुक्र का ग्रह दशा से संबन्ध होने पर विवाह (Marriage in the dasha related to Venus)
जब विवाह कारक ग्रह शुक्र नैसर्गिक रुप से शुभ हों, शुभ राशि, शुभ ग्रह से युक्त, द्र्ष्ट हों तो गोचर में शनि, गुरु से संबन्ध बनाने पर अपनी दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने का संकेत करता है. सप्तमेश के मित्रों की ग्रह दशा में विवाह (Marriage in the dasha of friendly planets of the seventh lord) जब किसी व्यक्ति कि विवाह योग्य आयु हों तथा महादशा का स्वामी सप्तमेश का मित्र हों, शुभ ग्रह हों व साथ ही साथ सप्तमेश या शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों, तो इस महाद्शा में व्यक्ति के विवाह होने के योग बनते है. सप्तम व सप्तमेश से दृ्ष्ट ग्रहों की दशा में विवाह (Marriage in the dasha of planets aspected by the seventh house and lord) सप्तम भाव को क्योकि विवाह का भाव कहा गया है. सप्तमेश इस भाव का स्वामी होता है. इसलिये जो ग्रह बली होकर इन सप्तम भाव , सप्तमेश से दृ्ष्टि संबन्ध बनाते है, उन ग्रहों की दशा अवधि में विवाह की संभावनाएं बनती है लग्नेश व सप्तमेश की दशा में विवाह (Marriage in the dasha of the ascendant lord or the seventh lord)
लग्नेश की दशा में सप्तमेश की अन्तर्दशा में भी विवाह होने की संभावनाएं बनती है. शुक्र की शुभ स्थिति (Auspicious position of Venus in Marriage astrology किसी व्यक्ति की कुण्डली में जब शुक्र शुभ ग्रह की राशि तथा शुभ भाव (केन्द्र, त्रिकोण) में स्थित हों, तो शुक्र का संबन्ध अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर दशा से आने पर विवाह हो सकता है. कुण्डली में शुक्र पर जितना कम पाप प्रभाव कम होता है. वैवाहिक जीवन के सुख में उतनी ही अधिक वृ्द्धि होती है शुक्र से युति करने वाले ग्रहों की दशा में विवाह (Marriage in the Dasha of planets in conjunction with Venus) शुक्र से युति करने वाले सभी ग्रह, सप्तमेश का मित्र, अथवा प्रत्येक वह ग्रह जो बली हों, तथा इनमें से किसी के साथ द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों, उन सभी ग्रहों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती हैशुक्र का नक्षत्रपति की दशा में विवाह (Marriage in the dasha of the Nakshatra lord of Venus) जन्म कुण्डली में शुक्र जिस ग्रह के नक्षत्र में स्थित हों, उस ग्रह की दशा अवधि में विवाह सर्वोतम माना जाता है वेद और भारतीय धर्म ग्रंथो में इस बात का विवरण है की ग्रहों का अगर मेल ना बने तो विवाह नही करना चाहिए क्योकि जीवन जीने के लिय इश्वर ने जीवन दिया है ना की बर्बाद करने के लिए.

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