देवी उपासना–पंडित दयानन्द शास्त्री     



देवी भागवत के आठवें स्कंध में देवी उपासना का विस्तार से वर्णन है। देवी का पूजन-अर्चन-उपासना-साधना इत्यादि के पश्चयात दान देने पर लोक और परलोक दोनों सुख देने वाले होते हैं।

• प्रतिपदा तिथि के दिन देवी का षोडशेपचार से पूजन करके नैवेद्य के रूप में देवी को गाय का घृत (घी) अर्पण करना चाहिए। मां को चरणों चढ़ाये गये घृत को ब्राम्हणों में बांटने से रोगों से मुक्ति मिलती है।
• द्वितीया तिथि के दिन देवी को चीनी का भोग लगाकर दान करना चाहिए। चीनी का भोग लागाने से व्यक्ति दीर्घजीवी होता हैं।
• तृतीया तिथि के दिन देवी को दूध का भोग लगाकर दान करना चाहिए। दूध का भोग लागाने से व्यक्ति को दुखों से मुक्ति मिलती हैं।
• चतुर्थी तिथि के दिन देवी को मालपुआ भोग लगाकर दान करना चाहिए। मालपुए का भोग लागाने से व्यक्ति कि विपत्ति का नाश होता हैं।
• पंचमी तिथि के दिन देवी को केले का भोग लगाकर दान करना चाहिए। केले का भोग लागाने से व्यक्ति कि बुद्धि, विवेक का विकास होता हैं। व्यक्ति के परिवारीकसुख समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
• षष्ठी तिथि के दिन देवी को मधु (शहद, महु, मध) का भोग लगाकर दान करना चाहिए। मधु का भोग लागाने से व्यक्ति को सुंदर स्वरूप कि प्राप्ति होती हैं।
• सप्तमी तिथि के दिन देवी को गुड़ का भोग लगाकर दान करना चाहिए। गुड़ का भोग लागाने से व्यक्ति के समस्त शोक दूर होते हैं।
• अष्टमी तिथि के दिन देवी को श्रीफल (नारियल) का भोग लगाकर दान करना चाहिए। गुड़ का भोग लागाने से व्यक्ति के संताप दूर होते हैं।
• नवमी तिथि के दिन देवी को धान के लावे का भोग लगाकर दान करना चाहिए। धान के लावे का भोग लागाने से व्यक्ति के लोक और परलोक का सुख प्राप्त होता हैं।

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