******शिव और शंकर में महान अन्तर****पवन तलहन, ****
&&&&&&&&&&&& दोनों एक नहीं हैं&&&&&&&&&&&
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###########ब्रह्माकुकारी कथन############
मित्रो शीर्षक पढ़ कर आप सब अवश्य ही कुछ सोचने लग गये होंगे! और मुझे भी जरुर कुछ न कुछ कह रहे होंगे!
आज मुझे एक हाथ-पुस्तका मिली, और उसमें भगवान शिव जी के प्रति इस प्रकार लिखा था!
***शिव व् शंकर में महान अन्तर*****
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१–परमात्मा शिव तो निराकार है जबकि शंकर शरीरधारी हैं!
२–शिव परमात्मा हैं जो परमधाम के निवासी हैं जबकि शंकर देवता हैं जो सूक्ष्म लोक में रहते हैं!
३–शिव सृष्टि के रचयिता हैं जबकि शंकर तो उनकी रचना हैं!
४–शिव को शिवलिंग के रूप में जबकि शंकर को तपस्या में बैठे दिखाया है! परमात्मा को तपस्या करने की आवश्यता नहीं क्योंकि वे सदा सम्पूर्ण व् परम पवित्र हैं!
५–ज्योतिस्वरूप शिव की मान्यता सभी धर्मों में है जबकि शंकर को केवल भारतवासी ही मानते हैं!
६–परमात्मा शिव विश्व कल्याणकारी हैं जबकि शंकर विनाशकारी हैं!
महत्तव पूर्ण बात ——-जो आगे कही है—दोनों को एक मानने की भूल ने भक्तों को भ्रमित किया है! पाप केवल शिव भगवान को याद करने से कटते हैं!
मित्रो आज ब्रह्माकुमारियों की इस पुस्तक ने भ्रमित कर दिया है! भगवान रूद्र को ब्रह्माकुमारियों ने आज दो भागों में बाँट दिया है—-शिव और शंकर एक नहीं है!
अब प्रश्न यह है कि क्या इस बात को सत्य मान लें, और जो शिव आदि शास्त्रों में कहा गया है, उन धर्म-वाक्य को माने?
मित्रो—-क्या आप शिव और शंकर में अन्तर समझते हो?
क्या शिव और शंकर एक ही के नाम नहीं हैं?
क्या आप ब्रह्माकुमारियों कि बात को सत्य मानते हैं?
क्या शिव और शंकर नाम के अन्तर के कारण हम भ्रलित हो रहे हैं?
किस शास्त्र में कहा है कि शिव और शंकर एक नहीं है?
क्या आप इस अन्धकाररूपी अज्ञान से आप सब सहमत हैं?
क्या इन दोनों में अन्तर बता कर शिव भक्तों को भ्रमित नहीं किया जा रहा?
अब आप भी निर्णय लें, क्या सत्य है और क्या झूठ है!