अक्षय तृतिया (अखातीज 6-मई-…1)——–
अक्षय तृतिया को पूरे भारत वर्ष में कई नामों से जाना और मनाया जाता हैं, जिसमें अक्षय तृतीया, आखा तीज तथा वैशाख तीज प्रमुख हैं। इस वर्ष 2011 में अक्षय तृतीया 6 मई को हैं।
भारतीय परंपराके अंतर्गत अक्षय तृतिया का पर्व प्रमुख त्यौहारों में से एक हैं। अक्षय तृतिया को अबूझ महूर्त भी कहा जाता हैं।
अक्षय तृतिया पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतिया तिथि के दिन मनाया जाता हैं। विद्वानो के अनुशार अक्षय तृतिया के दिन स्नान, जप, होम, दान आदि पूण्य कार्य करना विशेष लाभदायक होता हैं। क्योकि मान्यता हैं, कि इस दिन किये गय पुण्य कार्य का फल व्यक्ति को अक्षय रुप में प्राप्त होता हैं।
अक्षय तृतिया के दिन कोई भी शुभ कार्यो का प्रारम्भ करना विशेष शुभ माना जाता हैं। शास्त्रोक्त मतानुशार इस दिन कोई भी शुभ कार्य शुरु करने से उस कार्य का फल निश्चित स्थिर रुप में प्राप्त होते हैं।
शास्त्रो में उल्लेख हैं कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतिया अर्थात अक्षय तृतिया के दिन भगवान के नर-नारायण, परशुराम, हयग्रीव रुप में अवतरित हुए थे। इस लिये अक्षय तृतिया को परशुराम व अन्य जयन्तियां मानकर उसे उत्सव रुप में मनाया जाता हैं।
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी. इसी कारण से इसे त्रेतायुगादि तिथि भी कहा जाता हैं।
विद्वानो के अनुशार अक्षय तृतिया के दिन गर्मी के मौसम में खाने-पीने-पहनने आदि काम आने वाली और गर्मी को शांत करने वाली सभी वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता हैं।
अक्षय तृतिया के दिन जौ, गेहूं, चने, दही, चावल, खिचडी, ईश (गन्ना) का रस, ठण्डाई व दूध से बने हुए पदार्थ, सोना, कपडे, जल का घडा आदि दान करना भी लाभदायक माना जाता हैं।
अक्षय तृतिया के दिन किए गए सभी धर्म कार्य अति उत्तम रहते हैं।
अक्षय तृतिया के दिन व्रत-उपवास के लिये भी उत्तम माना जाता हैं।
अक्षय तृतिया के दिन देश के कई हिस्सो में चावल, मूंग की बनी खिचडी खाने का रिवाज हैं।
अक्षय तृतिया के दिन गंगा स्नान का बडा महत्व माना जाता हैं।
वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतिया को स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्नाता के लिए कलश, पंखा, खडाऊँ, छाता, सत्तू, ककडी, खरबूजा आदि मौसमी फल, शक्कर इत्यादि पदार्थ ब्राह्माण को दान करने का विधान हैं।
अक्षय तृतिया के दिन चारों धामों में से एक श्री बद्रीनाथ नारायण धाम के पाट खुलते हैं।
अक्षय तृतिया (परशुराम तीज)
वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतिया को अक्षय तृतिया के नाम से जानाजाता हैं। इस दिन श्री परशुरामजी का जन्म दिन होने के कारण इसे परशुराम तीज या परशुराम जयंती भी कहा जाता हैं।
अक्षय तृतीया शुभ मुहूर्त
भारत में पौराणिक काल से सभी शुभ कार्य शुभ मुहुर्त एवं शुभ समय पर प्रारंभ करने का प्रचलन हैं।
व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिये शुभ मुहुर्त और समय का चुनाव किया जाता हैं।
विद्वानो के अनुशार जब भी कोई व्यक्ति किसी शुभ कार्य की शुरुवात शुभ मुहुर्त समय पर करता हैं, तो उस शुभ मुहूर्त समय में किए शुरु किए गये कार्य के सफल होने की उस कार्य में अधिक लाभप्राप्ति की संभावनाएं बढ जाती हैं।
भारत में वसंत पंचमी, रामनवमी, अक्षय तृतिया, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, दशहरा, धनतेरस, दीपावलीम कार्तिक पूर्णिमा आदि को अबूझ महुर्त माना जाता हैं।
इस लिए अबूझ महुर्त में कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ किया जा सकता हैं। शास्त्रोक्त विधान के अनुशार कार्य प्रारम्भ करने के लिये मुहूर्त के अन्य किसी नियम को देखना आवश्यक नहीं हैं। अबूझ महुर्त में किसी भी समय में कार्य प्रारम्भ किया जा सकता हैं।
अक्षय तृतिया के दिन नई भूमि-भव-वाहन खरीदना, सोना-चांदि खरीदना जैसे स्थिर लक्ष्मी से संबंधित वस्तुएं खरीदना सर्वोतम माना गया हैं।
नये व्यवसायीक कार्य का शुभारम्भ करने के लिये इस दिन को प्रयोग किया जा सकता हैं…