**गणेश जी की उत्पत्ति का प्रसंग और चतुर्थी-तिथि का माहात्म्य***** 
******************************************
पूर्व समय की बात है, सम्पूर्ण देवता और तपोधन ऋषिगण जब कार्य आरम्भ करते तो उसमें उन्हें विश्चय ही सिद्धि प्राप्त हो जाती थी! कालान्तर में ऐसी स्थिति आ गयी कि अच्छे मार्ग पर चलने वाले लोग विध्न का saamanaa करते हुए kisi प्रकार कार्य में सफलता पानें लगें और निकृष्ट कार्य शील व्यक्ति की कार्य-सिद्धि में कोई विध्न नहीं आता था! तब पितरों सहित सम्पूर्ण देवताओं के मन में यह चिंता उत्पन्न हुई कि विध्न तो asat- कार्यों में honaa चाहए, सत्कार्यों में नहीं, esaa क्यों हो रहा है—इस vishay पर वे परस्पर विचार करने लगे! इस प्रकार मंत्रणा करते-करते उन देवताओं के मन में भगवान शंकर के पास jaakar इस samasyaa को sulajhane की iichchha हुई! तब वे kailaas pahunche और परम गुरु शंकर को प्रणाम कर विनय पूर्वक इस प्रकार प्रार्थना करने लगे—देवाधिदेव mahaadev! असुरों के kaaryon में ही vihn upasthit karanaa आपके लिये उचित है, हमारे कार्यों में नहीं!
देवताओं के इस प्रकार कहने पर भगवान शंकर अत्यंत प्रसन्न हुए और निर्निमेष दृष्टि से भगवती उमा को देखने लगे! देवता bhii vahiin थे! पार्वती कि ओर dekhate हुए वे मन-ही मन sochane लगे–अरे ! इस आकाश का कोई स्वरुप क्यों नहीं दीखता? पृथ्वी, जल, तेज और वायु की मूर्ति तो चक्षुगोचर होती है, किन्तु आकाश की मूर्ति क्यों नहीं दीखती! ऐसा सोचर ज्ञानशक्ति के भण्डार परमपुरुष भगवान भगवान रूद्र हंस पड़े! अभी हंसी बंद भी नानीं हुई थी कि उनके मुख से एक परम तेअजस्वी कुमार प्रकट हो गया, वही गणेश के नाम से प्रसिद्द हुआ! उसका मुख प्रचंड तेज से चमक रहा था! उस तेज से दिशाएँ चमकने लगीं! भगवान शिव के सभी गुण उसमें सनीहित थे! ऐसा जान पड़ता था, मानो साक्षात दूसरे रूद्र ही हों! वह महात्मा कुमार पकात होकर अपनी सस्मित दृष्टि, अद्भुत कांटी, दीप्त मूर्ति तथा रूपके कारण देवताओं के मन को मोहित कर रहा था! उसका रूप बड़ा ही आकर्षक था! भगवती उमा उसे निर्निमेष दृष्टि से देखने लगीं! उन्हें उसकी ओर टकटकी लगाये देखकर भगवान रूद्र के मन में क्रोध का आविर्भाव हो गया! अत: उन परम प्रभु ने उस कुमार को शाप देते हुए कहा– कुमार! तुम्हारा मुख हाथी के मुख जैसा और पेट लंबा होगा! सर्प ही तुम्हारे यज्ञोपवीत का काम देंगें!
इस प्रकार कुमार को शाप देने पर भगवान शंकर का रोष शांत नहीं हुआ! इनका शारीर क्रोध से काँप रहा था! वे उठाकर खड़े हो गये! trishul धारी रूद्र का शारीर जैसे-जैसे hilataa था, वैसे-वैसे उनके श्रीविग्रह के रोमकूपों से तेजोमय जल निकल कर बाहर गिराने लगा! उससे दूसरे अनेक विनायक उतपन्न हो गये! उन सभी के मुख हाथी के मुख जैसे थे तथा उनके शारीर की आभा काले खैर-वृक्ष या अंजन के समान थी! वे हाथों में अनेक पकार के अस्त्र-शस्त्र लिये हुये थे!
उस समय उन विनायकों को देखकर देवताओं की चिंता अत्यधिक बढ़ गयी! पृथ्वी में क्षोप उत्पन्न हो गया! तब चतुर्मुख ब्रह्मा जी हंस पर विराजमान होकर आकाश में आये और यों कहा—देवताओ! तुम लोग धन्य हो! तुम सभी त्रिलोचन एवं अद्भुत रूपधारी भगवान रूद्र के कृपापात्र हो! साथ ही तुमने असुरों के कार्य में विध्न उत्पन्न करने वाले गणेश को प्रणाम करने का सौभाग्य प्राप्त किया है! उनसे इस प्रकार कहने के पश्चात ब्रह्मा जी ने भगवान रूद्र से कहा—विभो! अपने मुख से प्रकट हुये इस बालक को ही आप इन विनायकों का स्वामी बना दें! ये विनायक इनके अनुगामी– अनुचर बन कर रहें! प्रभो! साथ ही मेरी प्रार्थना है कि आपके वर-प्रभाव से आकाश को भी शारीरधारी बन कर पृथ्वी आदि चारों महाभूतों में रहने का सुअवसर मिल जाय! इससे एक ही आकाश अनेक प्रकार से व्यवस्थित हो सकता है!
इस प्रकार भगवान रूद्र और ब्रह्मा जी बातें कर ही रहे थे कि विनायक वहां से चले गये! फिर पितामह ने शम्भू से कहा–देव! आपके हाथ में अनेक समुचित अस्त्र हैं! अब आप ये अस्त्र तथा वर इस बालक को प्रदान करें, यह मेरी प्रार्थना है! ऐसा कहकर ब्रह्मा जी वहाँ से चले गये! तब भगवान शंकर ने अपने सुपुत्र गणेश से कहा—पुत्र ! विनायक, विध्नहर, गजास्य और भवपुत्र –इन नामों से तुम प्रसिद्ध होगें! क्रूर-दृष्टि वाले ये विनायक बड़े उग्र स्वभाव हैं! पर ये सब तुम्हारी सेवा करेंगे! प्रकृष्ट यज्ञ, दान आदि शुभ कर्म के प्रभाव से शक्तिशाली बनकर ये कार्यों में सिद्धि प्रदान करेंगे! तुम्हें देवताओं, यज्ञों तथा एनी कार्यों में भी सर्वश्रेष्ट स्थान प्राप्त होगा! सर्वप्रथम पूजा पाने का अधिकार तुम्हारा होगा! यदि ऐसा न हुआ तो तुम्हारे द्वारा उस कार्य की सफलता बाधित होगी!
ये बातें समाप्त हो गयीं, तब भगवान शंकर ने देवताओं के साथ विभिन्न तीर्थं के जल से पूर्ण सुवर्णकलशों के जल द्वारा गणेश का अभिषेक किया! इस प्रकार जलसे अभिषिक्त होकर विनायकों के स्वामी भगवान गणेश की अद्भुत शोभा होने लगी! उन्हें अबिशिक्त dekhar sabhii देवता भगवान शंकर के saamane इस प्रकार स्तुति करने लगे!—-
गजानन! आपको नमस्कार है! गजानन ! आपको प्रणाम है! विनायक! आपको नस्कार है! chand vikram ! आपको अभिवादन है! आप विध्नों का vinaash करने वाले हैं, आपको प्रणाम है! सर्प की karadhanii से सुशोभित भगवन! आपको अभिवादन है! आप रूद्र के मुख से उत्पन्न हुये हैं तथा लम्बे उदर से सुशोभित हैं, आपको नमस्कार है! हम देवता आपको प्रणाम करते हैं, अत: आप सर्वदा विध्नों को शांत कें!
जब इस प्रकार भगवान रूद्र ने महापुरुष श्रीगणेश जी का अभिषेक कर दिया और देवताओं द्वारा उनकी स्तुति संपन्न हो गयी, तब वे भगवती पार्वती के पुत्र-रूप में शोभा पाने लगे! गणाध्यक्ष गणेश जी की [ जन्म एवं अभिषेक आदि] सारी क्रियाएं चतुर्थी तिथि के दिन ही संपन्न हुई थीं! अतएव तभी से यह तिथि समस्त तिथियों में परम श्रेष्ठ स्थान को प्राप्त हुई! जो भाग्याशाली मानव इस तिथि को तिलों का आहार कर भक्तिपूर्वक गणपति की अराधना करता है, उसपर वे अत्यंत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं–इसमें कोई संशय नहीं है! जो व्यक्ति इस कथा का पतन-पाठन अथवा श्रवन करता है, उसके पास विध्न कभी नहीं फटकते और न उसके पास लेशमात्र पाप ही शेष रह जाता है! [व्.पु. अ -२३]

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here