**सदाचार के स्वरुप का वर्णन*******
******** प्रभात-मंगल का स्मरण *******
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यहाँ इस सदाचार के स्वरुप का कुछ वर्णन किया जाता है—-सर्वप्रथम ब्राह्ममुहूर्त में उठकर भगवान शंकर स्वर उपदिष्ट प्रभात-मंगल का स्मरण करना चाहिये! इसके द्वारा दे ग्रहादि-स्मरण से दिन मंगलमय बीतता है और दुःखस्वप्नं का फल शांत हो जाता है! वह सुप्रभात स्तोत्र इस प्रकार है!—-
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च!
गुरुश्च शुक्र: सह भानुजेन
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम !!
सनत्कुमार: सनक: सनन्दन
सनातानोsप्यासुरिपिन्ग्लौ च!
सप्त स्वरा: सप्त रसातलाक्ष
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम !!
सप्तार्नवा: सप्तकुलाचलाश्च
सप्तर्षयो द्वीपवराश्च सप्त!
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त
कुर्वेन्तु सर्वे मम सुप्रभातम !!
इस प्रकार इस परम पवित्र सुप्रभात के प्रात: काल भक्तिपूर्वक उच्चारण करने से दुःख स्वपन्न का अनिष्ट फल नष्ट होकर सुस्वपन्न के फल रूप में प्राप्त होता है! सुप्रभात का स्मरण कर पृथ्वी का स्पर्श प्रणाम करके शय्या त्याग करना चाहिये! मन्त्र इस प्रकार है—-
समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमंडले!
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे!!
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मनुष्यों को सदा सदाचार का पालन और दुराचार का परित्याग करना चाहिये! आचारहीन दुराचारी प्राणी का न इस लोक में कल्याण होता है, न परलोक में! असदाचारी प्राणियों द्वारा अनुष्ठित यज्ञ, दान, तप–सभी व्यर्थ जाते हैं, कल्याण कारी नहीं होते! सदाचार रूप वृक्ष चारों पुरुषार्थों का देनेवाला है! धर्म ही उसकी जड़, अर्थ उसकी शाखा, काम [भोग] उसका पुष्प और मोक्ष है!
******** प्रभात-मंगल का स्मरण *******
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यहाँ इस सदाचार के स्वरुप का कुछ वर्णन किया जाता है—-सर्वप्रथम ब्राह्ममुहूर्त में उठकर भगवान शंकर स्वर उपदिष्ट प्रभात-मंगल का स्मरण करना चाहिये! इसके द्वारा दे ग्रहादि-स्मरण से दिन मंगलमय बीतता है और दुःखस्वप्नं का फल शांत हो जाता है! वह सुप्रभात स्तोत्र इस प्रकार है!—-
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च!
गुरुश्च शुक्र: सह भानुजेन
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम !!
सनत्कुमार: सनक: सनन्दन
सनातानोsप्यासुरिपिन्ग्लौ च!
सप्त स्वरा: सप्त रसातलाक्ष
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम !!
सप्तार्नवा: सप्तकुलाचलाश्च
सप्तर्षयो द्वीपवराश्च सप्त!
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त
कुर्वेन्तु सर्वे मम सुप्रभातम !!
इस प्रकार इस परम पवित्र सुप्रभात के प्रात: काल भक्तिपूर्वक उच्चारण करने से दुःख स्वपन्न का अनिष्ट फल नष्ट होकर सुस्वपन्न के फल रूप में प्राप्त होता है! सुप्रभात का स्मरण कर पृथ्वी का स्पर्श प्रणाम करके शय्या त्याग करना चाहिये! मन्त्र इस प्रकार है—-
समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमंडले!
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे!!
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मनुष्यों को सदा सदाचार का पालन और दुराचार का परित्याग करना चाहिये! आचारहीन दुराचारी प्राणी का न इस लोक में कल्याण होता है, न परलोक में! असदाचारी प्राणियों द्वारा अनुष्ठित यज्ञ, दान, तप–सभी व्यर्थ जाते हैं, कल्याण कारी नहीं होते! सदाचार रूप वृक्ष चारों पुरुषार्थों का देनेवाला है! धर्म ही उसकी जड़, अर्थ उसकी शाखा, काम [भोग] उसका पुष्प और मोक्ष है!